गबन की कथावस्तु
गबन दयानाथ के बट रमानाथ की कथा है। रमानाथ एक मध्यवित्तीय परिवार का व्यक्ति है। उसकी शादी मुन्शी दीनदयाल की बेटी जालपा से होती है। शादी में दिल खोलकर स्वर्च किया जाता है। मुन्शी दीनदयाल के लिए शादी का खर्च कोई बड़ी बात नही थी, क्योंकि यद्यपि उसका वेतन कुल पाँच रुपये था, उनको आय के और कौन से मार्ग थे, यह कौन जानता है। लेकिन दयानाथ के लिए शादी में किया गया खर्च एक समस्या बन जाता है। शादी के बाद उन्हें जान पड़ता है, कि अपनी समाधि से ज्यादा वे खर्च कर चुके हैं, बढा कर्ज उन पर हो गया है। रमानाथ घर का खर्च घटाने के बजाय अभी घर पर भार स्वरूप है और बहू जालपा एक चन्द्रहार के लिए जैसे रूठी हुई है। जन कर्जवालो का तकाजा बहुत बढ़ जाता है तो रमानाथ गहनो की चोरी करता है और उन्हें बेच्कर कर्ज चुकाता है। घर की दशा दिन-ब-दिन बिगड़ने लगती है। इन परिस्थितियों को देखकर रमानाथ म्युनिसिपैलिटी में तीस रुपये की नौकरी करते लगता है। नौकरी होते है ही वह आभूषण प्रेमी पत्नी को प्रसन्न करने के लिए 650 रुपये के गहने । उधार बनवाता है। इससे जालपा बहुत प्रसन्न होती है।
स्थानीय महिला समाज में जालपा अपना नाम लिखा लेती है। । वहाँ बानेवाली वकील यदुभूषण की पत्नी रतन जालपा के रूप-लावण्य न पर मुग् होकर अपने यहाँ उसे चाय का निमंत्रण देती है। जलरा के । कंगन रतन को बहुत अच्छे लगते हैं। इसलिए रतन वैसे ही कंगन बनवाने का के लिए रमानाथ को रुपये देती है। रमानाथ जब सर्राफ को रुपये देकर : कंगन बनवाने के लिए आर्डर देता है तो सरफि रुपये पुरानी बाकरी के रस मद में जमा कर लेता है और कंगन बनाने को मना कर देता है। रतन । कंगन के लिए बराबर तंग करने लगती है। तब रमानाथ उससे दस दिन के की अवधि मौगता है। नौवे दिन की शाम को रतन उसे याद दिलाती । है कि अगले दिन या तो कंगन ले आना या रुपये लौटा देना!
अगले दिन रमानाथ अपने दफ़तर के रुपयो को खजाने में जमा न करके घर ले आता है और सैर करने बाहर चल देता है। जब इधर रतन कंगन के लिए तकाजा करने आती है तो जालपा रुपये दे देती । यह विषय रमानाथ को मालूम होने पर बड़ा चितित होता है। माखिर जब रुपयों का इन्तजाम नहीं कर पाता है तो घर से भागता है ।
रेल में राजनाथ की मुलाकात देवीदीन नाम के खटीक से होती जो कलकत्ते में शाक-भाजी का धंधा करता है देवीदीन के यहाँ रमानाथ को न केवल आश्रय मिलता है, बल्कि रमानाथ देवीदीन के घर में परिवार का एक अंग बनकर रहता है।
रमानाथ के भागते ही जालपा आभूषण बेचकर सरकारी रुपये जमा बार करती तथा कुछ कर्ज चुकाती है। वह अपने श्रृंगार की सारी सामाग्री गंगा में प्रवाहित कर देती है।
जीवन के ढलते दिनों में भी पैसे कमाने की फिक्र में दौड-धूप करनेवाले वकील यदुमूषण की बीमारी बढ़ती जाती है और रतन उन्हें कलकत्ता ले जाती है। कलकत्ते में रतन रमानाथ को बहुत दूंढ़ती है। कितु अपने प्रयत्न में असफल ही रह जाती है। वहाँ पर वकील साहब की बीमारी इतनी बढ़ती है कि वह रतन को विधवा बनाकर ही छोडती है।
बडी कुशलता से रमानाथ का पता लगाकर जालपा कलकत्ता पहुंचती है। उसे रमानाथ की नीचता पर दुःख होता है कि वह सरकारी गवाह बन गया। जिस जालपा ने तत्परता से रमानाथ को गबन की बदनामी से बचाया था, वह रमानाथ को आत्मिक-पतन से भी बचाने में लग जाती। वह गुप्त रूप से रमानाथ के पास यह समाचार मिजवाती कि प्रयाग में उस पर कोई मुकदमा नहीं है। किंतु रमना नही सँभलता। बह शहादत्त देता है जिससे बेचारे बेगुनाहों को सजा हो जाती है । जालपा क्रोधोन्मत मूर्ति बनकर रमानाथ की नीचता, कायरता और पतन की भत्त्सना करती है तो रमानाथ की आँखें खुलती है। वह पति के किये पाप का प्रायश्चित करने के लिए एक गरीब अभियुक्त (दिनेश) के यहाँ सेवा करने लगती, इसे देखकर रमानाथ बहुत पछताता है। वह जज के सामने सारी हकीकत बयान कर देता है। फलस्वरूप फिर मुकदमा चलता है और अभियुक्त रिहा कर दिये जाते हैं। रमानाथ भी बंदी हो जाता है।
उधर देवीदीन गाँव में कुछ जमीन लेकर खेती आरम्भ करता है। साथ ही पशु-पालन का काम भी करता है। रमानाथ, जालपा, रतन, जोहरा देवीदीन के पास पहुँच जाते हैं और ग्राम सुधार का कार्य करने लगते है। रतन की मृत्यु हो जाती है। पुलिस की निगरानी में रमानाथ के रहते समय उसे बहलाने के लिए जिस जोहरा वेश्या की नियुक्ति की गई थी, वही अपनी सेवा, आत्म-त्याग और सरल स्वभाव से सभी को मुग्ध कर लेती है। उसके जीवन का अन्त डूबते हुओं को बचाने के प्रयत्न में होता है।
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