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Thursday, March 10, 2022

 ✍✍हिन्दी व्याकरण -2 ✍✍

 


✍✍हिन्दी व्याकरण -2✍✍

                सन्धि

13. 'सन्धि' (union-y) क्या है? उसके प्रधान भेद क्या-क्या हैं?


      दो अक्षरों के आस-पास होने पर मेल हो जाने से उनमें जो विकार होता है। उसे सन्धि कहते हैं। सन्धि के तीन प्रधान भेद हैं- 
1. स्वर-सन्धि 2. व्यंजन - सन्धि, 3. विसर्ग सन्धि

14. स्वर-सन्धि (union of vowels- உயிரெழுத்துப் புணர்ச்சி) को सोदाहरण समझाइये।

स्वर सन्धिः यह दो स्वरों के पास-पास आने से होती है। इसके पांच भेद हैं दीर्घ, गुण, वृद्धि, यणू, अयादि ।

दीर्घ सन्धिः जब अ, इ, उ, वर्णों की एक ही जाति के दो स्वरों में सन्धि होती है तो वे दोनों चाहे ह्रस्व हों, चाहे एक हस्व और एक दीर्घ हो, चाहे दोनों ही दीर्घ हों, दोनों के स्थानों में एक दीर्घ स्वर हो जाता है। उसे दीर्घ सन्धि कहते हैं।

(उ०)

अ +अ = आ     -  पूर्ण + अवतार = पूर्णावतार
अ+ आ = आ    - रत्न + आवली = रत्नावली
आ + अ = आ   - विद्या + अभ्यास = विद्याभ्यास
आ + आ = आ  - महा + आत्मा = महात्मा
इ + इ = ई        - रवि + इन्द्र = रवीन्द्र
इ+ ई = ई         - कवि + ईश्वर = कवीश्वर
ई + इ = ई        - मही + इन्द्र = महीन्द्र
ई+ई = ई          - गौरी + ईश्वर = गौरीश्वर
उ + उ = ऊ      - गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
उ + ऊ = ऊ    - लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
ऊ + उ = ऊ    - वधू + उत्सव = वधूत्सव
ऊ+ ऊ = ऊ    - भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व

 गुण- सन्धिः यदि 'अ' या 'आ' के आगे 'इ' या 'ई' हो तो दोनों मिलकर 'ए' हो जाते है; उनके आगे 'उ', 'ऊ' हो तो दोनों मिलकर 'ओ' हो जाते हैं; उनके आगे 'ऋ' हो तो दोनों मिलकर 'अर्' हो जाते हैं।

(उ०)

अ + इ = ए        देव + इन्द्र = देवेन्द्र
अ + ई = ए        सुर + ईश = सुरेश
आ + इ = ए       महा + इन्द्र = महेन्द्र
आ + ई = ए       महा + ईश = महेश
अ + उ = ओ      ग्राम + उद्धार = ग्रामोद्धार 
अ + ऊ = ओ     सर + ऊर्मि = सरोर्मि
आ + उ = ओ     महा + उल्लास = महोल्लास 
आ + ऊ = ओ    महा + ऊर्मि = महोर्मि
अ + ऋ = अर्    सप्त + ऋषि = सप्तर्षि 
आ + ऋ = अर्   महा + ऋषि = महर्षि

वृद्धि सन्धिः 'अ' या 'आ', के आगे 'ए' या 'ऐ' हो तो दोनों मिलकर 'ऐ' हो जाते हैं; उनके आगे 'ओ' या 'औ' हो तो दोनों मिलकर 'औ' हो जाते हैं।

(उ०)

अ + ए = = ऐ    सुख + एकांत =सुखैकांत
अ + ऐ = ऐ       सुख + ऐश्वर्य = सुखैश्वर्य
आ + ए = ऐ      सदा + एव = सदैव
आ + ऐ = ऐ      सदा + ऐक्यं = सदैक्यं
अ + ओ = औ    परम + ओषधि = परमौषधि
अ + औ = औ    परम + औषध = परमौषध
आ + ओ = औ   महा + ओषधि = महौषधि
आ + औ = औ   महा + औषध = महौषध

यण् सन्धिः 'इ', 'ई', 'उ', 'ऊ', या 'ॠ', के आगे कोई असवर्ण स्वर आवे तो 'इ', 'ई', के स्थान में 'यू'; 'उ', 'ऊ', के स्थान में 'व्' और ॠ के स्थान में र् हो जाता है।

(उ०)

इ + अ = य       यदि + अपि = यद्यपि
इ + आ = या     प्रति + आगमन = प्रत्यागमन
इ + उ = यु        इति + उक्त = इत्युक्त
इ+ ऊ = यू        प्रति + ऊष = प्रत्यूष
इ+ ए = ये         प्रति + एक = प्रत्येक
इ + ऐ = यै        अति +ऐश्वर्य = अत्यैश्वर्य
इ + ओ = यो      हरि + ओम् = हर्योम् =
इ + औ = यौ      प्रति + औसर = प्रत्यौसर
ई + अ  = य       नदी + अंचल = नद्यंचल
ई + आ = या      भावी + आकर्षण = भाव्याकर्षण
ई + उ = यु         अनी + उत्थान = अन्युत्थान
ई + ऊ = यू        नदी + ऊर्मि = नघूर्मि
ई + ए = ये         भावी + एकता = भाव्येकता
ई + ऐ = यै         मही + ऐश्वर्य = महद्यैश्वर्य
ई + ओ = यो      नदी + ओघ = नद्योघ +
ई + औ = यौ      मही + औदार्य = मद्यौदार्य
उ + अ = व        सु + अल्प = स्वल्प
उ+ आ = वा       सु + आगतम् = स्वागतम्
उ + इ = वि        गुरु + इच्छा = गुर्विच्छा
उ + ई = वी        गुरु + ईश्वर = गुर्वीश्वर
उ + ए = वे        अनु + एषण = अन्वेषण
उ + ऐ = वै         सु + ऐक्य = स्वैक्य
उ + ओ = वो      गुरु + ओज = गुर्योज
उ + औ = वौ      गुरु + औदार्य = गुर्वौदार्य
ऊ + अ = व       भ्रू + अंग = भ्रवंग
ऊ + आ = वा      भ्रू + आकर्षण = भ्रवाकर्षण =
ऊ+ इ =             विभ्रू + इंगित = भ्रविंगित
ऊ + ई = वी        भू + ईश्वर = भ्वीश्वर
ऊ + ए = वे         भू + एकता = भ्वेकता
ऊ + ऐ = वै         भू + ऐक्य = भ्वैक्य
ऊ + ओ = वो      भ्रू + ओज = भ्रवोज
ऊ + औ = वौ      भू + औदार्य = भ्वौदार्य
ॠ + अ = र         पितृ + अनुमति = पित्रनुमति





ॠ + आ = रा    मातृ + आनंद = मात्रानंद
ऋ + इ = रि      मातृ + इव = मात्रिव
ऋ + ई = री      पितृ + ईश = पित्रीश
ऋ + उ = रु      पितृ + उपदेश = पित्रुपदेश
ॠ+ ऊ = रू      पितृ + ऊरु = पित्ररु
ॠ+ ए = रे         भ्रातृ + एकता भ्रात्रेकता 
ऋ+ ऐ  = रै        पितृ + ऐश्वर्य पित्रेश्वर्य
ऋ + ओ = रो     पितृ + ओज पित्रोज
ॠ + औ = रौं     पितृ + औदार्य = पित्रौदार्य

अयादि सन्धिः 'ए' या 'ऐ' के आगे उन्हें छोडकर दूसरा कोई स्वर आ जाय तो 'ए' के स्थान में 'अय' और 'ऐ' के स्थान में 'आय' हो जाता है। उसी तरह 'ओ' या 'औ' के आगे उन्हें छोड़कर दूसरा कोई स्वर आये तो 'ओ' के स्थान में 'अबू' और 'औ' के स्थान में 'आव' हो जाता है।

ए+ अ = अय       ने + अन = नयन
ऐ + अ = आय     गै + अक= गायक
ओ + अ = अव    पो + अन = पवन
औ + अ आव      पौ + अक = पावक
औ + उ = आवु    भी + उक = भावुक

15. व्यंजन संधि (union with consonants - wwwpri 8) को सोदाहरण समझाइये

       व्यंजन के आगे कोई व्यंजन या स्वर आने से जो परिवर्तन होता है उसे व्यंजन सन्धि कहते हैं।

1. किसी वर्ग के प्रथम व्यंजन के बाद किसी वर्ग का तीसरा, चौथा व्यंजन या कोई स्वर अथवा कोई अन्तस्थ अक्षर (यू, र, लू, व्) आये तो प्रथम व्यंजन अपने वर्ग का तीसरा व्यंजन होता है।

(उ०)

षट + दर्शन   = षड्दर्शन
सत + भाव   = सद्भाव
वाक् + ईश   = वागीश
जगत् + ईश  = जगदीश 
वाक + विलास = वाग्विलास
तत् + रूप    = तद्रूप

2. किसी वर्ण के प्रथम व्यंजन के बाद किसी वर्ण का पांचवाँ व्यंजन आए तो प्रथम व्यंजन अपने ही वर्ग का पांचवाँ व्यंजन हो जाता है।

(उ०)

वाक् + मय  = वाङ्मय
षट् + मुक = षण्मुख
जगत् + नाथ = जगन्नाथ

 3. पहले शब्द के अन्त में किसी वर्ग का पहला व्यंजन हो और दूसरे शब्द के आदि में 'ह' हो तो पहले व्यंजन को अपने वर्ग का तीसरा व्यंजन होना पडता है और हू भी उसी वर्ग का चौथा व्यंजन हो जाता है।

वाक् + हर्ज  = वाग्घर्ज
तत् + हित   = तद्धित


4. 'त्' या 'दू' के आगे ल् हो तो 'तू' या 'दू' भी 'लू' हो जाता है ।

तत् + लीन    = तल्लीन
शरद् + लास   = शरल्लास 

5. 'तू' या 'दू' के आगे 'श' हो तो 'तू' या 'द्' का 'च्' हो जाता है और
'श' बदलकर 'छ्' हो जाता है।

सत् + शासन  = सच्छासन
उत् + शिष्ट     = उच्छिष्ट

6. 'तू' या 'दू' के आगे 'च' या 'छ' हो तो 'तू' या 'दू' 'च' हो चाता हैं; 'ज' या 'झ' होने पर 'ज्' हो जाता हैं, 'टू' या 'ठ्' होने पर 'टू' हो जाता हैं; 'ड' या  'ढ' होने पर 'ड्र' हो जाता हे

उत् + चारण   =  उच्चारण
उत् + छेद      = उच्छेद 
सत् + जन     = सज्जन 
विपद् + जाल = विपज्जाल 
बृहत + टीका  = बृहट्टीका
उत् + दयन    = उड्ढयन

7. 'छ' के पूर्व कोई स्वर हो तो बीच में 'चू' का आगमन होता है।

वि + छेद  =  विच्छेद
आ + छादन  = आच्छादन

8. 'म्' के आगे कोई स्पर्श व्यंजन ('क' से 'म' तक) हो तो म् को अनुस्वार अथवा बाद के वर्ण के वर्ग का पांचवाँ वर्ण हो जाना पडता है और यदि कोई अन्य व्यंजन हो तो अनुस्वार हो जाता है

सम् + कल्प  = संकल्प (सङ्कल्प)
किम् + चित्  =  किंचित (किञ्चित)
सम् + तोष = संतोष (सन्तोष) 
संपूर्ण ( सम्पूर्ण) = सम् + पूर्ण
सम् + योग = संयोग
सम् + रक्षक = संरक्षक
सम् + लग्न  =  संलग्न
सम् + वत्   =   संवत्
सम् + शय   = संशय
सम् + सार  = संसार 
सम् + हार  = संहार

(परन्तु सम्राट, सम्राज्ञी और साम्राज्य में 'म्' को अनुस्वार नहीं होना पड़ता )

9. 'ऋ', 'र' या 'ष' के बाद यदि न् हो तो उसे ‘ण्' हो जाना पडता है

चाहे उनके बीच का कोई स्वर, क वर्ग या प वर्ग का कोई वर्ण अथवा यू, व्, ह्   और अनुस्वार में से कोई वर्ण भी हो।

भूष + अन  = भूषण
प्र + मान = प्रमाण
ॠ + न   = ॠण 
राम + अयन = रामायण

10. यदि स् के पूर्व 'अ' या 'आ' को छोडकर कोई और स्वर आवें तो स्  को 'ष' हो जाना पडता है।

अभि + सेक = अभिषेक
वि + सम     = विषम


11. 'र' के आगे यदि 'र' आवे तो पहले र का लोप हो जाता है और
उससे पहले का ह्रस्व स्वर दीर्घ हो जाता है।

निर् + रोग  = नीरोग
निर + रस  =  नीरस 

12. 'स्' या त वर्ग के आगे 'श' या च वर्ग हो तो 'स्' बदलकर 'श्' और 'त' वर्ग क्रम से च वर्ग हो जाता है।

निस् + शंक = निशंक
सत् + जन  = सज्जन
उत् + चारण =  उच्चारण

16. विसर्ग सन्धि (union with hard aspirated vowel - வலிய உயிர்ப்பொலியீற்றுப் புணர்ச்சி ) को सोदाहरण समझाइये।

    स्वरों या व्यंजनों के मेल से विसर्ग में जो परिवर्तन हो जाता है उसे विसर्ग  सन्धि कहते हैं।

    1. यदि विसर्ग के पहले अ और पीछे अ या किसी वर्ग का तीसरा, चौथा या पांचवाँ अक्षर अथवा, य, र, ल, व, ह में से कोई अक्षर हों तो पहले अ और विसर्ग के स्थान में 'ओ' हो जाता है। पीछे के अक्षरों में सिर्फ 'अ' का लोप हो जाता है।

प्रथमः + अध्याय  = प्रथमोध्याय
तेजः + राशि = तेजोराशि
अधः + गति  = अधोगति
मनः + हर     = मनोहर
तपः + बल  = तपोबल
यशः + दा    = यशोदा

   2. यदि विसर्ग के पहले 'अ' हो और पीछे 'अ' के अतिरिक्त कोई और स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है।

अतः + एव  = अतएव

   3. यदि विसर्ग के पहले 'अ' या 'आ' को छोड़कर कोई और स्वर हो और पीछे कोई स्वर, किसी वर्ग का तीसरा चौथा या पाँचवां अक्षर अथवा 'य, ल, व, ह' में से कोई अक्षर हो तो विसर्ग र हो जाता है।

निः + आशा = निराशा
निः + गुण    = निर्गुण
निः + धन     = निर्धन
निः + मम     = निर्मम
निः + यात    =  निर्यात
दु: + लभ  =  दुर्लभ
निः + विकार = निर्विकार 

     4. यदि विसर्ग के पहले 'अ', 'आ' को छोडकर कोई दूसरा स्वर हो और आगे 'र' हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है और उसके पहले का स्वर दीर्घ हो जाता है।

निः + रोग = नीरोग
निः + रस = नीरस

    5. यदि विसर्ग के पहले 'इ' अथवा 'उ' हो और आगे 'क्', 'खू', या ‘प्', 'फ्' हो तो विसर्ग का 'ष' हो जाता है

निः + कलङ्क = निष्कलङ्क
दु: + कर         = दुष्कर
निः + पाप       = निष्पाप
निः + फल       = निष्फल

       6. यदि विसर्ग के बाद 'शू, ष, स्,' हो तो विसर्ग या तो ज्यों का त्यों रहता है अथवा वह आगे का अक्षर हो जाता है।

निः + सन्देह     = निःसन्देह या निस्सन्देह 
दु: + शासन      = दुःशासन या दुश्शासन =

    7. यदि विसर्ग के बाद 'चू' अथवा 'छू' हो तो विसर्ग 'शू' हो जाता है ।

निः + चल   = निश्चल 
निः + छल = निश्छल

8. यदि विसर्ग के बाद 'टू' अथवा 'ठू' हो तो विसर्ग 'ष' हो जाता है।

धनु: + टंकार  = धनुष्टंकार

9. यदि विसर्ग के बाद 'तू' अथवा 'धू' हो तो विसर्ग सू हो जाता है

दु: + तर    = दुस्तर
मनः + ताप  = मनस्ताप

10. यदि विसर्ग के पहले 'अ' और बाद में क्, खू, पू, फ्, में से कोई एक वर्ण हो तो विसर्ग ज्यों का त्यों रहता है।

अधः + पतन  = अधःपतन
पयः + पान   =  पयःपान

11. कुछ अनियमित सन्धियाँ। 

  नमः + कार = नमस्कार
   तिरस्कार = तिरः + कार










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 ✍✍ हिन्दी व्याकरण -1✍✍

 

✍✍ हिन्दी व्याकरण -1 ✍✍

            भाषा

1. भाषा किसे कहते हैं? उसके मुख्य भेद क्या-क्या हैं?

         मनुष्य की सार्थक बोली को भाषा कहते हैं। उसके दो भेद हैं -- 1. कथित भाषा (spoken language Guj& GLongb) 2. लिखित भाषा (written language. जो मुख से बोली और कानों से सुनी जाती है वह कथित भाषा है। जो हाथों से लिखी और आंखों से पढ़ी जाती है वह लिखित भाषा है।

                                    1. भाषा

      कथित भाषा                                       लिखित भाषा


2. व्याकरण किसे कहते हैं? उसके अध्ययन से क्या लाभ है?    उसके कितने भाग हैं?

         विचार विनिमय के लिये हम भाषा का प्रयोग करते हैं। अपने विचारों को ठीक-ठीक प्रकट करने के लिये भाषा का प्रयोग शुद्ध रूप में करना आवश्यक है। इसके लिये कुछ नियम हैं। इन नियमों का संग्रह ही व्याकरण है। व्याकरण शब्द का अर्थ है, अच्छी तरह खोलकर समझना।

व्याकरण के तीन मुरव्य भाग हैं- 

1. वर्ण विचार (orthography - எழுத்திலக்கணம்) 

2. शब्द विचार (etymology - சொல்லிலக்கணம்) 

3. वाक्य विचार (syntax - தொடர்,வாக்கிய இலக்கணம் ).

                        2. व्याकरण

वर्ण विचार          शब्द विचार              वाक्य विचार

           * वर्ण विचार में वर्णों के भेद, आकार, उच्चारण और संधि से हुए उनके रूप परिवर्तनों पर विचार होता है। 

           * शब्द विचार में शब्दों के भेद, रूपांतर और व्युत्पत्ति पर विचार होता है।

         * वाक्य विचार में शब्दों से वाक्य बनाने के नियम, वाक्य-खंड, वाक्य-भेद आदि पर विचार होता है।


3. अक्षर या वर्ण की परिभाषा क्या है? वे कितने प्रकार के हैं?

          भाषा की हरेक मूल ध्वनि को लिखने के लिये उसका एक चिह्न निश्चित किया गया है। इस प्रकार बने चिह्नों को वर्ण या अक्षर कहते हैं। अक्षर दो प्रकार के होते हैं - 

स्वर (vowels உயிர் எழுத்து) और

व्यंजन (consonants- மெய்யெழுத்து)

                    3. अक्षर (44)

स्वर (11)                           व्यंजन (33)


4. वर्ण माला (alphabet-r005) किसे कहते हैं ?

           जो वर्ण बिना किसी अन्य वर्ण की सहायता के अकेले ही बोले जा सकते हैं, उन्हें, स्वर वर्ण कहते हैं; ये संख्या में ग्यारह हैं -'अ' से 'औ' तक। जो वर्ण, स्वयं अकेले नहीं बोले जा सकते और जिन्हें बोलने के लिए, स्वर वर्णों की सहायता की आवश्यकता होती है उन्हें व्यंजन वर्ण कहते हैं। ये संख्या में तैंतीस हैं - 'क' से 'ह' तक। इन चवालीस वर्णो के समुदाय को वर्णमाला कहते हैं। इनके अलावा अं अः जैसे अनुस्वार व विसर्ग मिले हुए स्वरों और क्ष, त्र, ज्ञ जैसे संयुक्ताक्षरों को जोड़कर हिन्दी वर्णमाला के अक्षरों को उनचास (49) कहनेवाले भी हैं। साथ ही अंग्रेजी, फारसी आदि विदेशी भाषाओं के शब्दो के सही उच्चारण के लिये ड, ढ, क्र, ख, ग़, ज, फ़ आदि वर्ण भी बने हैं।


5. स्वर के भेदों को समझाइये।

       उत्पत्ति की दृष्टि से स्वरों के दो भेद हैं - मूल स्वर और संधि स्वर। मूल स्वरों की उत्पत्ति दूसरे स्वर की सहायता के बिना होती है। हिन्दी में चार मूल स्वर हैं - अ, इ, उ, ऋ । इन्हें ह्रस्व या लघु वर्ण (short - @i) भी कहते हैं। इनके उच्चारण में जो समय लगता है उसे एक मात्रा कहते हैं। इसलिये इनका नाम एक मात्रिक स्वर भी हैं।

       सन्धि स्वरों की उत्पत्ति मूल स्वरों के मेल से होती है। ये कुल सात हैं।- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ । इन्हें गुरु (long-நெடில்) वर्ण भी कहते हैं।

       इनके उच्चारण में दो मात्राओं का समय लगता है। इसलिये इन्हें द्विमात्रिक स्वर भी कहते हैं।

        चिल्लाने, पुकारने या गाने में शब्द का अन्तिम सन्धि स्वर लंबा करके बोला जाता है। उसके उच्चारण में तीन मात्राओं का समय लगता है। उसे हम प्लुत (protracted vowel - உயிரளபெடை) या त्रिमात्रिक कहते हैं। सन्धि स्वर को प्लुत दर्शाने के लिये उसके आगे ३ का अंक लगाया जाता है। सन्धि स्वरों के भी दो उपभेद किये जाते हैं - दीर्घ स्वर और संयुक्त स्वर। समान मूल स्वरों के मेल को दीर्घ स्वर कहते हैं - (अ + अ = आ, इ + इ =ई, उ + उ =ऊ) 1. भिन्न-भिन्न स्वरों के मेल को संयुक्त स्वर कहते हैं - (अ + इ = ए, अ + ई = ऐ, अ +उ = ओ, अ +ऊ =औ)

                         5. स्वर (11)

मूल, हस्व, लघु या                           संधि स्वर (7)

एकमात्रिक स्वर (4)             दीर्घ स्वर (3)    संयुक्त स्वर (4)


6. व्यंजन की परिभाषा देकर हिन्दी व्यंजनों का वर्गीकरण कीजिये।

      व्यंजन वे वर्ण हैं जिनका उच्चारण स्वरों की सहायता के बिना नहीं होता। हिन्दी व्यंजनों के तीन भेद हैं

      स्पर्श - 'क' से 'म' तक 25 स्पर्श व्यंजन हैं। इनको बोलते समय जीभ मुँह के अंदर किसी स्थान को स्पर्श करती है।

      अन्तस्थ 'य', 'र', 'ल', 'व', ये चार अन्तस्थ व्यंजन हैं। इनको बोलते समय जीभ मुँह के अन्दर किसी स्थान को थोडा-सा ही स्पर्श करती है। अन्तस्थ का अर्थ है 'बीच में रहनेवाला'। ये चारों वर्ण स्वरों से बहुत कुछ मिलते हैं जैसे - इ + अ = य; उ + अ = व; ॠ + अ =र। इसी कारण इनको अर्ध स्वर (semi vowels - அரை உயிர்கள்) भी कहते हैं।

   ऊष्म - 'श', 'ष', 'स', 'ह' - ये चार वर्ण ऊष्म हैं। इनको बोलते समय सांस मुँह से निकलकर सीधे बाहर चली जाती है। उस समय थोडी गरमी उत्पन्न होती है।

                          6. व्यंजन

   स्पर्श                अन्तस्थ            ऊष्म


7. संयुक्त व्यंजन संबंधी अद्यतन नियमों को समझाइये ।


संयुक्त व्यंजन (compound consonants- கூட்டு மெய் எழுத்துக்கள்) संबंधी अद्यतन नियम इस प्रकार हैं:


1. खडी पाईवाले व्यंजनों में से खडी पाई को हटाकर संयुक्त व्यंजन बनाया जाना चाहिए।

    (उ०) लग्न, ध्वनि, व्यास, स्वीकृति

2. 'क', 'फ' को 'क', 'फ़' बनाकर संयुक्त व्यंजन बनाया जाना चाहिए।

     (उ०) क्त, प्रत

3. ङ, छ, ट, ठ, ड, ढ, द और ह के नीचे हल चिह्न लगाकर बनाना चाहिए।

    (उ०) वाङ्मय, चिह्न, ब्रह्मा आदि

4. संयुक्त 'र' के दो प्रकार के रूप हैं। संयोग में पहले आनेवाला 'र' आगे आनेवाले वर्ण के ऊपर (~) इस चिह्न में परिवर्तित हो जाता है।

       (उ०) अर्क, सर्प, कर्म, फर्श, कोर्ट।

      संयोग में पीछे आनेवाला 'र' खडीपाईवाले व्यंजनों में (त्र) के रूप में और अन्य वयंजनों में (^) के रूप में नीचे लग जाता है। (उ०) क्रम, प्रवाह, उम्र, श्रम, राष्ट्र। ऊपर लिखे रूप (~) में कोई स्वर नहीं होता। नीचे लिखे (त्र,^) रूपों में स्वर होता हैं।


5. हल चिह्न युक्त वर्ण से बननेवाले संयुक्ताक्षर के द्वितीय व्यंजन के साथ 'इ' की मात्रा का प्रयोग, संबंधित व्यंजन के तत्काल पूर्व ही किया जायगा।

(उ०) टू + टि = टि (कुट्टित) द् + धि = द्धि (बुद्धि) (संस्कृत भाषा के लिये पुरानी शैली ही लागू होगी। जैसे संयुक्त, अडू)


8. हिन्दी वर्णों का उच्चारण किन किन स्थानों से होता है? उनका विवेचन कीजिये।

        हिन्दी वर्णों के उच्चारण स्थान ( points of enunciation (பிறப்பிடம்) छः हैं- 

1. कंठ, 2. तालु 3. मूर्धा (तालू के ऊपर का स्थान) 4. दन्त (दांत) 5. ओष्ठ (ओंठ) 6. नासिका (नाक) 

   1. अ, आ, क वर्ग, ह, विसर्ग (:) आदि वर्णों का उच्चारण कंठ से होता है। इसलिये उन्हें कंठ्य वर्ण कहते हैं।

    2. इ, ई, च वर्ग, य, श, वर्णों का उच्चारण तालु से होता है। इसलिये उन्हें तालव्य वर्ण कहते हैं।

    3. ॠ, ट वर्ग, र, ष, वर्णों का उच्चारण मूर्धा से होता है। इसलिये उन्हें मूर्धन्य वर्ण कहते हैं।

    4. त वर्ग, ल, स, वर्णों का उच्चारण दांत से होता है। इसलिये उन्हें दन्त्य वर्ण कहते हैं।

     5. उ, ऊ, प वर्ग वर्णों का उच्चारण ओंठों से होता है। इसलिये उन्हें ओष्ठ्य वर्ण कहते हैं।

   6. ए. ऐ वर्णों का उच्चारण कंठ और तालु दोनों से होता है। इसलिये उन्हें कंठतालव्य वर्ण कहते हैं।

    7. ओ, औ, वर्गों का उच्चारण कंठ और ओंठ दोनों से होता है। इसलिए उन्हें कंठोष्ठ्य वर्ण कहते हैं।

    8. 'व' का उच्चारण दांत और ओंठ दोनों से होता है। इसलिये उसे दन्तोष्ठ्य वर्ण कहा जाता है।

    9. ङ, ञ, ण, न, म, अनुस्वार (_.) वर्णों के उच्चारण में इनके अपने स्थानों के अतिरिक्त नासिका का भी प्रयोग होता है। इसलिये उन्हें अनुनासिक वर्ण कहते हैं।

   8. उच्चारण - स्थानों के अनुसार वर्णों का वर्गीकरण 

कंठ्य  ।    मूर्धन्य  । ओष्ठ्य  ।  कण्ठोष्ठ्य   ।  अनुनासिक

          ।              ।             ।                  ।

      तालव्य       दन्त्य   कण्ठ- तालव्य     दंतोष्ठ्य


9. प्रयत्न (articulation कीजिये । (wwja) किसे कहते हैं? उनका वर्गीकरण कीजिए। 

       वर्णों के स्पष्ट उच्चारण के लिये वाणी द्वारा कुछ चेष्टायें होती हैं। उन्हीं को हम प्रयत्न कहते हैं। किसी वर्ग के उच्चारण में जो प्रयत्न आरंभ में होता है उसे आभ्यन्तर प्रयत्न और जो प्रयत्न अंत में होता है उसे बाह्य प्रयत्न कहते हैं। 

आभ्यन्तर प्रयत्नों के निम्नलिखित चार भेद हैं।


1. विवृत - जिस उच्चारण में गला पूर्ण रूप से खुला रहता है वह विवृत प्रयत्न है। 'अ' आदि सभी स्वर विवृत हैं।


2. स्पृष्ट - जिस उच्चारण में वागिन्द्रिय के दोनों पट पूरी तरह से एक दूसरे से स्पर्श करते हैं उसे स्पृष्ट प्रयत्न कहते हैं। 'क' से 'म' तक के पच्चीस व्यंजन स्पृष्ट हैं


3. ईषत्ववृत - जिस उच्चारण में वागिन्द्रिय थोडी खुली रहती है वह ईषत्विवृत है। य, र, ल, व -- ये चार वर्ण ईषत्विवृत हैं


4. ईषत्स्पृष्ट - जिस उच्चारण में गले के दोनों पट आपस में कुछ-कुछ छूते - हैं वह ईषत्स्पृष्ट है। श, ष, स, ह - ये चार व्यंजन ईषत्स्पृष्ट हैं।

 बाह्य प्रयत्न के दो भेद हैं - 'घोष' और 'अघोष'

     1. घोष (soft letters - மெய்யெழுத்துக்கள்) जिस उच्चारण में गले के तन्तुओं में गूंज उत्पन्न होती है उसे घोष प्रयत्न कहते हैं। वर्गों के तीसरे, चौथे, पांचवे अक्षर, सभी स्वर और य, र, ल, व, ह, आदि घोष प्रयत्न के अंतर्गत हैं।

    2. अघोष - (hard letters- வல்லெழுத்துக்கள்) जिस उच्चारण में गले के तन्तुओं में गूंज उत्पन्न नहीं होती वह अघोष प्रयत्न कहा जाता है। वर्गों के पहले, दूसरे अक्षर और श, ष, स आदि अघोष प्रयत्न के अंतर्गत हैं।

                              9. प्रयत्न

               आभ्यन्तर                                         बाह्य

विवृत     स्पृष्ट   ईषत्विवृत   ईषत्स्पृष्ट               घोष   अघोष


10. अल्प प्राण और महाप्राण वर्ण से आप क्या समझते हैं?

         ये वर्णों के भेद हैं। उच्चारण में लगनेवाले श्रम के आधार पर वर्णों के ये भेद होते हैं। जिन वर्णों के उच्चारण में अधिक श्रम लगे या जिनमें 'ह' का उच्चारण सम्मिलित हो उन्हें महाप्राण वर्ण कहते हैं।

       स्पर्श व्यंजनों में से प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा अक्षर तथा श, ष, स, ह और विसर्ग महाप्राण (aspirated letters உயிர்ப்பொலி எழுத்துக்கள் ) हैं।

 सभी स्वर और शेष व्यंजन अल्प- प्राण (unaspirated letters - உயிர்ப் பொலியற்ற எழுத்துக்கள்) हैं।


11. स्वरापात क्या है? उदाहरण सहित समझाइये -

        शब्दों का उच्चारण करते समय किसी वर्ण पर जो विशेष बल पड़ता है उसे स्वराघात (accent - ஒலியழுத்தம்) कहते हैं। उसके निम्न लिखित नियम हैं।

    1. संयुक्त व्यंजन के पूर्व के अक्षर के स्वर पर बल पड़ता है (उ०) चिन्ता 'चि' पर स्वराघात होता है। विज्ञान वि' पर स्वराघात होता है। धक्का 'ध' पर स्वराघात होता है।

     2. जहाँ शब्द के अन्त में या मध्य में अपूर्णोधरित 'अ' आवे वहाँ पहले के अक्षर पर स्वराघात होता है। (उ०) 'तुम' का उच्चारण 'तुम्' होता है; यहाँ 'तु' पर स्वराघात है। 'रिमझिम' का उच्चारण 'रिम्झिम्' होता है। इसलिये यहाँ 'रि' और 'झि' पर स्वराघात होता है।

    3. विसर्ग के पहले के अक्षर पर बल पडता है (उ०) पुनः में 'न' पर स्वराघात होता है।

       4. इ, उ, या ॠ के पूर्व के अक्षर पर स्वराघात होता है। (उ०) कवि, विधु, विकृत आदि शब्दों में क्रमशः क, वि, वि आदि अक्षरों पर स्वराघात होता है।

      5. शब्दों के एक ही रूप में जब कई अर्थ निकलते हैं तब उनका भेद एक या दूसरे वर्ण पर स्वराघात करने से स्पष्ट हो जाता है। (उ०) 'मगर' शब्द के 'ग' पर स्वराघात हो तो उसका अभिप्राय 'लेकिन' होगा; यदि 'र' पर स्वराघात हो तो उसका अर्थ 'मछली' या 'घडियाल' होगा।

12. वर्ण (letter -(எழுத்து), लिपि (script -வரிவடிவம்), हल (consonant mark- மெய்க்குறியீடு), अनुस्वार (nasal vowel மூக்கொலி உயிர்), चन्द्रबिन्दु (half nasal vowel -அரை மூக்கொலி உயிர்)और विसर्ग ( a symbol of hard  aspirated sound - வலிய உயிர்ப்பொலிக் குறியீடு) से आप क्या समझते हैं?

       लिखित भाषा के उस छोटे से छोटे खण्ड को वर्ण कहते हैं जिसके फिर टुकडे न किये जा सकते - जैसे अ, इ, क्, च्, आदि।

       लिखित अक्षरों को 'लिपि' कहते हैं। उच्चारण के सुभीते के लिये व्यंजनों के साथ 'अ' का भी उच्चारण होता है जैसे 'क', 'म', 'स' ।

       जब किसी व्यंजन को बिना स्वर के दिखलाना हो तो उसके ि लकीर ( ू) लगा दी जाती है। इसे हल कहते हैं। उस व्यंजन को कहते हैं। (उ)क, द, तू |

    जब किसी स्वर का नासिका से उच्चारण किया जाय तो उसे अनुतकि कहते हैं। उसे दर्शाने के लिये स्वर पर जो चिह्न () लगाया जाता है उसे अनुस्वार कहते हैं- जैसे अंक, कंपन, पंक, आदि में। 

     जब किसी स्वर का उच्चारण नासिका और पुख दोनों से किया जाता है तब उसे दर्शाने के लिये स्वर पर जो जिह्न ( ) लगाया जाता है उसे चन्द्रविन्दु कहते हैं- जैसे अँगूठा, यहाँ आदि में।

      शब्दों में अनुस्वार और चन्द्रबिन्दु ङ्, ञ, ण, नू, यू आदि व्यंजनों का रूप धारण कर लेते हैं जैसे संघ, अंकाई, अंचल, अँचला, अंडा, अँटना, अंतर, अंतरा, अंश, अँबराई आदि में।

     जब अ, इ, उ आदि स्वरों का उच्चारण एक झटके के साथ हो जाता है तब उसे दर्शाने के लिये स्वर के पीछे जो चिह्न () लगाया जाता है उसे विसर्ग कहते


हैं। (उ. मुकुन्दः, क्रमः, प्रजापतिः, प्रभुः ।) यह शब्दों के बीच में आकर शू, ष, स्, और हू का रूप भी धारण करता है जैसे दुःशासन, निःफल, दुःसह, दुःख आदि में ।

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एकांकी

✍तैत्तिरीयोपनिषत्

  ॥ तैत्तिरीयोपनिषत् ॥ ॥ प्रथमः प्रश्नः ॥ (शीक्षावल्ली ॥ தைத்திரீயோபநிஷத்து முதல் பிரச்னம் (சீக்ஷாவல்லீ) 1. (பகலுக்கும் பிராணனுக்கும் அதிஷ்ட...