Showing posts with label Hindi literature Q&A. Show all posts
Showing posts with label Hindi literature Q&A. Show all posts

Friday, January 12, 2024

महादेवी वर्मा



       महादेवी वर्मा

ममता का ही नाम महादेवी वर्मा

जन्म : 1907         निधन : 1987

रचनाएँ

काव्य  - नीहार, रश्मि, नीरज, दीपशिखा, सांध्यगीत आदि ।


रेखाचित्र -  अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी आदि ।


निबन्ध  - श्रृंखला की कडियाँ, साहित्यकार की आस्था, क्षणदा, कसौटी पर आदि ।



महादेवी वर्मा (सन् 1907 से 1987 तक)

           सालों पुरानी बात है । जाडे के दिन थे । एक कुत्तिया ने कुछ बच्चे दिये । रात हो जाने पर जाड की ठण्डी के कारण पिल्लों की कूँ- कूँ की ध्वनि सुननेवालों के मन में करुण भावना उत्पन्न करती थी । अनेकों ने अनसुनी कर दी । लेकिन सात साल की एक लड़की ने कहा - बहुत जाडा है, पिल्ले जड़ रहे हैं। मैं उनको उठा लाती हूँ । सबेरे वहीं रख दूँगी । लड़की के हठ के कारण घर के सारे लोग जग गये और पिल्ले घर लाये गये । इसके बाद ही उस लड़की एवं पिल्लों को आश्वासन मिला । यह सात साल की लड़की थी - महादेवी वर्मा । बचपन से ही महादेवी वर्मा को जीव-जन्तुओं के प्रति असीम प्यार था । इसी प्यार के बल से ही महादेवी को अपना नाम सार्थक बनाने का मौका मिला । सच है ममता का दूसरा रूप है - महादेवी वर्मा ।

       विशिष्ट साहित्यकार, करुण भरी कवयित्री महादेवी वर्मा का जन्म मंगलमय एवं रंगभरी, कपडों में ही नहीं बल्कि मन में भी खुशी के रंग भरनेवाली होली के दिन में सन् 1907 को विशिष्ट साहित्यकारों की जन्मभूमि उत्तर प्रदेश के फरुखाबाद में हुआ था । महादेवी अपने माँ- बाप की पहली संतान थी । होली के दिन में इन्हें पाकर पिताजी गोविन्द प्रसाद आनन्द सागर में डूब गये थे । माताजी हेमरानी का भी खुशी का टिकाना नहीं रहा । दोनों इतने प्रसन्न हो गये थे कि अपनी कुल देवता दुर्गा देवी के नाम से इन्हें महादेवी बुलाने लगे । महादेवी स्वभाव में भी महादेवी ही थीं ।

       सात साल की उम्र में ही इनमें कवित्व शक्ति स्थान पाने लगी । आठवें वर्ष में इनसे लिखी गयी 'दिया' कविता की पंक्तियाँ उसकी कवित्व की साक्षी है।

"प्रेम का ही तेल भर जो हम बने निशोक, 

तो नया फैले जगत के तिमिर में आलोक !”

       वैसे बचपन इनका बहुत ही सुखमय था । इनकी माताजी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं और घर में रामायण का सस्वर पाठ किया करती थीं । आर्य समाजी संस्कारों के साथ इन्दोर के मिशन स्कूल में इनकी भर्ती हुई। घर में भी विशेष शिक्षकों की नियुक्ति हुई । इस कारण महादेवी वर्मा हिन्दी, उर्दू और चित्रकला में भी प्रवीण हो गयीं । नौ वर्ष तक इन्होंने खडीबोली हिन्दी में कविता लिखने की पूर्ण क्षमता पायी ।

      बचपन इनका बहुत ही मनोहर था । अपने छोटे भाई तथा बहन के साथ ये पूर्ण उल्लास के साथ खेलती कूदती थीं । महादेवी पढाकू होने के साथ साथ लडाकू भी थीं । प्रकृति और प्राणियों के प्रति इनकी रुचि इनके बचपन को महकते उपवन बना चुकी थी । सब प्रकार से इनका बचपन तथा लडकपन सुखमय था ।

      श्री गंगाप्रसाद पाण्डेय के अनुसार महादेवी वर्मा की शादी नौ वर्ष की छोटी उम्र में करा दी गयी थी । इनके पिता ने अपनी प्यारी बेटी की शादी बहुत कम उम्र में, बडी धूम-धाम से करा दी । लेकिन जैसे ही ये बरेली के पास नवाबगंज नामक कस्बे में स्थित ससुराल भेजी गयी, तो वहाँ रो-धोकर, खाना, पीना, सोना, बोलना आदि सबको त्यागकर दूसरे दिन ही अपना घर पहुँच गई । तेज ज्वर आ जाने के कारण उनके ससुर ने इनको घर छोड दिया । 

       इनके वैवाहिक जीवन की यहीं समामि हो गई। बी.ए. पास होते ही महादेवी वर्मा को उनके ससुराल ले जाने का प्रश्न उपस्थित हुआ । महादेवी वर्मा ने दृढ़ता पूर्वक इनकार कर दिया । उन्होंने अपने पिताजी को अपना यह निश्चय सुना दिया । बाबूजी महादेवी को दूसरा विवाह करने की इच्छा हो तो उसे करवा देने के लिए तैयार थे । लेकिन महादेवी विवाह करना ही नहीं चाहती थी । पढ़ाई में मन जाने के कारण वैवाहिक दायित्व को इन्होंने स्वीकार नहीं किया ।

          सन् 1919 में इन्होंने प्रयाग के क्रास्थवेट कॉलेज में मिडिल की परीक्षा में सर्वप्रथम आने के कारण इनको राजकीय छात्रवृत्ति प्राप्त हुई थी । सन् 1929 में इन्होंने बी.ए. की परीक्षा पास की । सन् 1931 में प्रयाग महिला विश्वविद्यालय में संस्कृत में एम.ए. पास करके प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बन गयी थी । प्रयाग महिला विद्यापीठ को आगे बढाने में, प्रशस्त एवं प्रसिद्ध बनाने में इनका योगदान अतुलनीय है । प्रधानाचार्य से बाद में उसी विद्यापीठ के कुलपति के दायित्व को भी सालों तक इन्होंने संभाला ।

       साहित्य में महादेवी वर्मा का प्रवेश 'नीहार' कविता संग्रह के साथ हुआ था । इनकी कविताओं में करुणा तथा पीडा को उचित स्थान दिया गया है । महादेवी वर्मा की करुण तथा आध्यात्मिक चेतना को उनकी इन पंक्तियों से हम समझ सकते हैं -

     मेरे बिखरे प्राणों में
          सारी करुणा दुलका दो ।
    मेरी छोटी सीमा में 
        अपना अस्तित्व मिटा दो । 
    पर शेष नहीं होगी यह 
        मेरे प्राणों की क्रीड़ा, 
    तुमको पीड़ा में ढूँढ़ा 
     तुममें ढूँढ़ेंगी पीड़ा ।

महादेवी वर्मा की रचनाओं में करुण भावना की प्रधानता के लिए एक और उदाहरण है -

सजनि मैं इतनी करुण हूँ 
करुण जितनी रात 
सजनि मैं उतनी सजल 
जितनी सजल बरसात ।

करुण भावना के साथ-साथ पीडा को भी इन्होंने महत्वपूर्ण स्थान दिया है । सन्धिनी से चंद पंक्तियाँ -

विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात !
वेदना में जन्म करुणा में मिला आवास !
अश्रु चनता दिवस इसका अश्रु गिनती रात !
जीवन विरह का जलजात !

      काव्य में शब्द-योजना और लय की जरूरत के बारे में महादेवी के विचार है - "हमारा समस्त दृश्य जगत् परिवर्तनशील ही नहीं, एक निश्चित गति-क्रम में परिवर्तनशील है, जो अपनी निरन्तरता से एक लययुक्त आकर्षण-निकर्षण को छन्दायित करता है । काव्य व्यष्टिगत तथा समष्टिगत जीवन को एक विशेष गति-क्रम की ओर प्रेरित करने का साधन है, अतः उसकी शब्द-योजना में भी एक प्रवाह, एक लय अपेक्षित रहेगी ।"

     सुप्रसिद्ध छायावाद की कवयित्री महादेवी वर्मा के बारे में श्री विनय मोहन ने कहा है - "छायावाद युग ने महादेवी को जन्म दिया और महादेवी ने छायावाद को जीवन । यह सच है कि छायावाद के चरम उत्कर्ष के मध्य में महादेवी ने काव्य भूमि में प्रवेश किया और छायावाद के सृजन, व्याख्यान तथा विश्लेषण द्वारा उसे प्रतिष्ठित किया ।"

     प्रकृति वर्णन में महादेवी महान देवी थी । उनकी निम्नलिखित पंक्तियाँ इस बात की साक्षी है -

यह स्वर्ण रश्मि छू श्वेत भाल, 
बरसा जाती रंगीन हास, 
सेली बनता है इन्द्रधनुष, 
परिमल मल मल जाता बतास, 
पर रागहीन तू हिम निधान !

       महादेवी की कविताओं में महान प्रेरणा भी मिलती है । उनकी निम्नलिखित पंक्तियाँ भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति पर प्रकाश डालने के साथ मनुष्य के मन में महान आशा प्रदीप्त करने में समर्थ निकलती हैं -

      सब बुझे दीपक जला लूँ ।
 घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी जगा लूँ ।

दीप मेरे जल अकम्पित, घुल अचंचल । 
पथ न भूले एक पग भी, 
घर न खोये, लघु वहग भी, 
स्निग्ध लौ की तूलिका से 
आँक सब की छाँह उज्जवल !


देशभक्ति इनमें एक और विशेषता है । देश भक्तों के बारे में 'सन्धिनी' में लिखती हैं -

"हे धरा के अमर सुत ! 
तुमको अशेष प्रणाम ! 
जीवन के अजय प्रणाम ! 
मानव के अनन्त प्रणाम !”


“हिमालय" पर लिखी हुई महत्वपूर्ण कविताओं का संकलन अपने-आप में भी एक बहुत बडी राष्ट्रीय उपलब्धि है। 'हिमालय' के समर्पण में महादेवी लिखती हैं -

        "जिन्होंने अपनी मुक्ति की खोज में नहीं, वरन् भारत-भूमि को मुक्त रखने के लिए अपने स्वप्न समर्पित किये हैं, जो अपना सन्ताप दूर करने के लिए नहीं, वरन् भारत की जीवन-ऊष्मा को सुरक्षित रखने के लिए हिम में गले हैं, जो आज हिमालय में मिलकर धरती के लिए हिमालय बन गए हैं, उन्हीं भारतीय वीरों की पुण्य स्मृति में ।"

     देश भक्ति मनुष्य मन में अपूर्व शक्ति प्रदान करनेवाली है। देश भक्ति की झलक इन वाक्यों में निखर उठता है । मानवीय गुणों को रचनाओं में स्थान देकर महादेवी साहित्य में सदा सर्वथा के लिए महान देवी बनी है। 'नीरजा' महादेवी की कविताओं का तीसरा संग्रह है और साहित्यकारों के मतानुसार इनकी सर्वसुन्दर कृति है । इसके लिए इन्हें 'साहित्य सम्मेलन' से पारितोषिक दिया जा चुका है ।

       करुण, कोमल कविताएँ ही नहीं बल्कि सुन्दर सुरुचिपूर्ण गद्य लेखन में भी महादेवी वर्मा का स्थान सर्वोपरी है । 'अतीत के चल चित्र' इनकी प्रथम गद्य पुस्तक है । इसमें महादेवी जी की कुछ संस्मरणात्मक कहानियाँ का संग्रह है । इनके संस्मरणों में यथार्थता की झलक मिलती है। इनकी कहानियों में पात्रों का चित्रण सजीव एवं सहज रूप से किया गया है । साहित्य में व्यक्तिगत अनुभूतियों को स्थान देने में महादेवी का स्थान काफी अग्रगण्य है । अपने घर के नौकर रामा के बारे में महादेवी तद्रूप चित्रण प्रस्तुत करती है

       "रामा के संकीर्ण माथे पर खूब धनी भौंहें और छोटे-छोटे स्नेह तरल आँखें किसी थके झुंझलाये शिल्पी की अन्तिम भूल जैसी मोटी नाक, साँस के प्रवाह से फैले हुए से नथुने, मुक्त हँसी से भर कर फूले हुए से होंठ तथा काले पत्थर की प्याली में दही की याद दिलानेवाली सघन और सफेद दन्तपंक्ति ।" इन शब्दों को पढ़ लेने से रामा का रूप पाठकों के सामने अपने आप उभर आयेगा । बदलू कुम्हार का वर्णन भी यथार्थता का बोध कराता है । उनका सभी पात्र यथार्थता का बोध कराने में सक्षम है। “श्रृंखला की कडियाँ" महादेवी की दूसरी गद्य-पुस्तक है । इसमें नारी-समस्याओं को प्रधानता दी गयी है ।

'महादेवी का विवेचनात्मक गद्य' पुस्तक में महादेवी ने अपनी विवेचनात्मक गद्य लेखन की क्षमता दर्शायी है । भावात्मक, विचारात्मक एवं विवेचनात्मक गद्य साहित्य में महादेवी का अलग पहचान है ।

       "साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबन्ध" महादेवी वर्मा के बहुप्रशंसिय आलोचनात्मक निबन्धों का संग्रह है। “गीतिकाव्य" पर महादेवी वर्मा का निबन्ध इस प्रकार के निबंधों में प्रथम एवं प्रमाणित है । "यथार्थ और आदर्श" निबन्ध इनकी कौशल पर प्रकाश डालता है । साहित्यिक विवादों पर महादेवी का विचार है - "हमारे साहित्यिक विवाद इन सब अभिशापों से ग्रसित और दुखद हैं, क्योंकि उनके मूल में जीवन के ऊपरी सतह की विवेचना नहीं है, वरन उसकी अन्तर्निहित एकता का खण्डों में बिखरकर विकासशून्य हो जाना प्रमाणित करते हैं । 

         साहित्य गहराई की दृष्टि से पृथ्वी की वह एकता रखता है, जो बाह्य विविधता को जन्म देकर भीतर तक रहती है । सच्चा साहित्यकार भेदभाव की रेखाएँ मिटाते-मिटाते स्वयं मिट जाना चाहेगा, पर उन्हें बना-बनाकर स्वयं बनना उसे स्वीकार न होगा ।" साहित्य में समाज और सामाजिक महत्ववाले विषयों के लेकर लिखने में भी ये सक्षम थीं ।

          पशु-पक्षियों तथा जीव-जंतुओं के प्रति महादेवी वर्मा को अपार प्यार था । इनका मेरा परिवार इस बात की साक्षी है । 'निक्की, रोजी, रानी' लेख में अपने तथा परिवार के सदस्यों से पाले गये निक्की-नेवला, रोजी-कुत्ती तथा रानी-घोडा का वर्णन यथार्थ रूप से किया गया है । 'गिल्लू' में गिलहरी का व्यवहार, लेखिका के प्रति उसका प्यार आदि का चित्रण बखूबी ढंग से किया है । "नीलकंठ मोर" में नीलकंठ और राधा का सच्चा प्यार, नीलकंठ का अद्भुत व्यवहार, "कुब्जा" मोरनी की ईर्ष्या आदि का विवरण करके पशु-पक्षियों के प्रति पाठकों का भी दिल आकर्षित करने का स्तुत्य प्रयास महादेवी वर्मा के द्वारा किया गया है।   

       महादेवी वर्मा साहित्य के क्षेत्र में सचमुच महान देवी है । इनकी 'दीपशिखा' काव्य-कृति को पढ़ने के बाद निरालाजी ने लिखा - 

हिन्दी के विशाल मन्दिर की वीणा-वाणी, 

स्फूर्ति-चेतना-रचना की प्रतिमा कल्याणी ।

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने भी इनकी प्रशंसा मुक्त कंठ से की थी । उनकी उन्नत पंक्तियाँ हैं -

  सहज भिन्न हो महादेवियाँ एक रूप में मिलीं मुझे, 

बता बहन साहित्य-शारदा वा काव्यश्री कहूँ तुझे ।

      सचमुच महादेवी वर्मा साहित्य-शारदा ही हैं । करुण तथा पीडा से युक्त कविताएँ, महानता तथा मानवता पर जोर देनेवाली कहानियाँ, श्रेष्ठ-मानव के साथ पशु-पक्षियों के प्रति भी उनका प्यार दर्शानेवाले गद्य रचनाएँ, संस्मरण, रेखा-चित्र, विचारात्मक, विवेचनात्मक निबंध आदि से महादेवी वर्मा महान कवयित्री ही नहीं बल्कि उत्कृष्ट गद्य लेखिका के रूप में हिन्दी प्रेमियों के मन में सम्माननीय स्थान पाती हैं ।

      सामाजिक जीवन में प्रतिफलित होनेवाले प्रायः सभी महत्वपूर्ण विषयों को लेकर पाठकों के मन में जड-चेतन, शीलता-अश्लीलता, यथार्थ-आदर्श, सभ्यता-संस्कृति, अतीत-वर्तमान, सिद्धान्त-क्रिया, नर-नारी, आत्मा-परमात्मा आदि के बारे में सजगता उत्पन्न करने में महादेवी महानदेवी साबित हुई है ।

      लेखिका का व्यक्तिगत जीवन सदा परमार्थ, सेवार्थ के लिए ही रहा । त्योहारों के दिन इनके घर में बडी भीड़ होती थी । सुप्रसिद्ध कवयित्री, महान लेखिका, ममता तथा मानवता की मूर्ति महादेवी वर्मा का निधन अपनी अस्सी साल की उम्र में 11 सितम्बर 1987 को हुआ था । शरीर के मिट जाने पर भी सद्भावनों के कारण, अतुलनीय साहित्य सेवा के कारण आज भी महादेवी वर्मा हिन्दी प्रमियों के मन में जी रही हैं।

                    $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$





विष्णु प्रभाकर


               विष्णु प्रभाकर


उत्तम भावना से भरे उन्नतम् उपन्यासकार

जन्म : 1912

रचनाएँ

उपन्यास     6

कहानी संग्रह   19

लघुकथा संग्रह 3

नाटक   19

रूपान्तर 3

एकांकी नाटक 19

अनुदित    2

जीवनी और संस्मरण  15

यात्रा वृतांत    5

विचार निबंध   2

बाल नाटक व एकांकी संग्रह   11

जीवनियाँ     2

बाल कथा संग्रह   12

विविध पुस्तकें    19

तथा रूपक संग्रह





मूर्धन्य उपन्यासकार विष्णु प्रभाकर (सन् 1912 से अब तक)

       भारतीय उपन्यास के अंतिम दशक (1991 से 2000 तक) में श्री विष्णु प्रभाकर का स्थान प्रशंसनीय है । कहानीकार, एकांकीकार, उपन्यासकार, आलोचक, साहित्यिक चिंतक आदि विभिन्न साहित्य विधाओं के प्रशस्त साहित्यकार विष्णु प्रभाकर की साहित्य सेवा सराहनीय एवं अनुकरणीय है । ये अपनी रचनाओं में सामाजिक समस्याओं को प्रधानता देते हैं । खासकर नारी समस्याओं पर इन्होंने अपनी कलम चलायी । विशिष्ट सामाजिक चिंतक विष्णु प्रभाकर समाज तथा सामाजिक समस्याओं पर प्रकाश डालने में सशक्त हैं ।

       विष्णु प्रभाकर का जन्म मुजफ्फर नगर के जानसठ तहसील स्थित मीरापुर गाँव में 20 जुलाई 1912 को हुआ । प्रमाण पत्रों के अनुसार इनका जन्म 21 जून सन् 1912 होने पर भी असल में इनका जन्म 20 जुलाई 1912 को ही हुआ था । अपनी आत्मकथा पंखहीन में ये कहते हैं 

     "मेरा जन्म 20 जुलाई, 1912 को हुआ । लेकिन मेरे सभी प्रमाण पत्रों में 21 जून 1912 लिखा हुआ है ।"

      इनको अपनी जन्मभूमि, अपने गाँव के प्रति विशेष प्यार है । अपना गाँव मीरापुर के बारे में इनका कथन है - -

   "मेरा जन्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक छोटे-से कस्बे मीरापुर में हुआ था । वास्तव में यह कभी आस-पास के गाँवों के 'बाजार' के रूप मैं विकसित हुआ होगा । कभी इसका नाम मेरा-पुर था । बाद में न जाने कैसे मीरा नाम की देवी से इसका सम्बन्ध हो गया । बचपन में हमारे घर में "मीरा की कढाई" जैसा एक त्योहार भी मनाया जाता था । इसकी तहसील है जानसठ और जिला है मुजफ्फर नगर ।"

       तीसरी कक्षा तक इन्होंने अपने ही गाँव में शिक्षा पायी । गाँव के प्राइमरी स्कूल में पढ रहे थे । लेकिन उसके बाद अपने मामाजी के कारण उन्हें गाँव छोडकर पंजाब के हिसार जाना पडा । पंजाब के हिसार में अपने मामा के यहाँ रहते हुए वहाँ के चन्दूलाल एंग्लो हाई स्कूल से सन् 1929 में इन्होंने मैट्रिक परीक्षा पास की । गणित और हिन्दी इनका प्रिय विषय रहा । हिन्दी में भूषण, प्राज्ञ, विशारद तक पढाई की । इनके बाद प्रभाकर तथा बी.ए. परीक्षाएँ पास की ।

       धन कमाने के लिए अपने परिवार की आर्थिक स्थिति में मदद करने के लिए ये हिसार के पशु-पालन फार्म पर काम करने लगे । इसी फार्म पर 15 साल तक क्लर्क के रूप में काम किया । फिर बाद में अकावुंटेंड बने । इन्होंने सन् 1955 से 1957 तक आकाशवाणी में ड्रामा प्रोड्यूसर के पद पर काम किया ।

        विष्णु प्रभाकर का असली नाम विष्णु था । घर में इन्हें विष्णु दयाल या विष्णु सिंह के नाम से पुकारते थे । प्राइमरी स्कूल में इनका नाम विष्णु दयाल था । अपने मामा के साथ पंजाब जाने के बाद वहाँ के आर्यसमाजी विद्यालय में वर्ण के अनुसार विष्णु गुप्त के नाम से बुलाये जाते थे । पशु पालन फार्म पर अनेक गुप्त के होने के कारण ये विष्णु दत्त बना दिये गये थे । अंत में 'प्रभाकर' परीक्षा पास करने के कारण एक प्रकाशक ने उनका नाम विष्णु प्रभाकर बना दिया था । विष्णु प्रभाकर नाम उन्हें धीरे-धीरे पसन्द भी आया । अभी अब पूर्ण रूप से विष्णु प्रभाकर है ।

           अपनी 26 वर्ष की आयु में विष्णु प्रभाकर की शादी सुशीला नामक सुशील युवती से सन् 1938 को हुई थी । अपनी पत्नी के प्रति इनका प्यार अटूट एवं अतुलनीय है । इनका वैवाहिक जीवन काफी सुखमय था । अब वे विधुर हैं और अपने पुत्र के साथ दिल्ली में जी रहे हैं। अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद विष्णु प्रभाकर ने अपना प्रसिद्ध उपन्यास, कर्ममयी नारी की कहानी का उपन्यास "कोई तो" (1995) को अपनी प्यारी पत्नी सुशीला को अर्पण करते हुए लिखे हैं - 

"सुशीला को जो अब नहीं है पर जो इस उपन्यास के शब्द-शब्द में रमी हुई है ।"

          साहित्यिक क्षेत्र में इनका प्रवेश एक कवि के रूप में हुआ था । फिर बाद में इन्हें कहानी साहित्य में रुचि बढने लगी । इन्होंने लगभग दो सौ कहानियाँ लिखी । लेकिन इनकी कहानी संग्रह में 150 कहानियाँ ही स्थान पायी हैं। बाकी में कुछ खो गया, कुछ को खुद विष्णु प्रभाकर ने खोने दिया । विष्णु प्रभाकर की सम्पूर्ण कहानियाँ आश्रिता, अभाव, मेरा वतन, मुरब्बी आदि खण्डों में संग्रहित हैं । इनकी ज्यादातर कहानियाँ समाज तथा सामाजिक समस्याओं से सम्बन्धित है ।

        विष्णु प्रभाकर एक सफल कवि भी हैं । शुरू में ये कविताएँ लिखते थे । फिर धीरे-धीरे गद्य साहित्य में खासकर कहानी साहित्य में इनकी रुचि बढ़ने लगी । विष्णु प्रभाकर के शब्दों में... "शुरू में मैंने कविताएँ लिखीं । वह युग पद्य काव्य का भी था, तो मैंने कुछ गद्य काव्य भी लिखे, फिर कहानी भी लिखी, पर अंतत: कहानी लिखना ही मुझे रास आया । शुरू में जब ये सरकारी फार्म पर काम कर रहे थे तब प्रेमबन्धु के नाम से लिखा करते थे । फिर बाद में विष्णु प्रभाकर के नाम से जाने जाने लगे ।"

        उपन्यास के प्रति इनकी विशिष्ट रुचि का भी विशेष कारण है। विष्णु प्रभाकर के अनुसार उपन्यास के मुक्त क्षेत्र में अभिव्यक्ति पर कोई बंधन नहीं है। वह संपूर्ण की उपलब्धि है । एक साथ कई स्तरों और धरातलों पर वह चलता है । विभिन्न कहानियों का चित्रण स्वतंत्र सत्ता के साथ उभर सकते हैं । यथार्थ को प्रकट करने के लिए उपन्यास ही सबसे सशक्त माध्यम है । अपने आप को मुक्त करने का आनन्द जितना उपन्यास के माध्यम से संभव हो सकता है उतना कहानी या नाटक के माध्यम से नहीं । इसी कारण से श्री विष्णु प्रभाकर अपने आपको श्रेष्ठ एवं मूर्धन्य उपन्यासकार साबित करने में सक्षम रहे ।

         विष्णु प्रभाकर की भाषा सरल, सहज खडीबोली है । विषय के अनुरूप, वातावरण एवं आवश्यकता के अनुरूप सरल, सबल एवं सहज भाषा का प्रयोग इनकी विशेषता है । पात्रों की मनोभावनाओं को समझाने में, उनके रहन-सहन, आचार-विचार पर प्रकाश डालने में विष्णु प्रभाकर की भाषा अतुलनीय है । उपन्यास में इनकी शैली बहुत भिन्न एवं प्रशंसनीय है । इनकी ज्यादातर रचनाओं में पत्रात्मक शैली का प्रयोग किया है । उपन्यास में पत्रों के साथ स्वप्नों को भी उचित स्थान देने में आप विशिष्ट स्थान पाते हैं । छोटे नाटकों को भी उन्होंने स्थान दिया है। कहानी तथा उपन्यास की कथावस्तु के बारे में विष्णु प्रभाकर का विचार इस प्रकार है ।

       "जहाँ तक कथावस्तु का संबंध है, वह जीवन से भी मिलता है और विचार से भी । लेकिन प्रत्येक घटना तो कहानी नहीं होती । कलाकार का संस्पर्श ही उस घटना को कहानी का रूप देता है।"

        उनके साहित्य में उत्कृष्ट मानवता की खोज ही मुख्य उद्देश्य बनता है। वाद के बारे में भी इनका विचार सबसे भिन्न है। अपने लेखन के बारे में विष्णु प्रभाकर खुद कहते हैं - "आदर्श मुझे वहीं तक प्रिय है जहाँ तक वह यथार्थ का संबल है । 'वाद' में मैं आज तक विश्वास नहीं कर पाया । मेरे साहित्य में अग्नि नहीं है । मात्र सहज संवेदना है, जिसे आज के लेखक दुर्बलता ही मानते हैं । मैं जो हूँ वह हूँ। मैं मूलतः मानवतावादी हूँ । उत्कृष्ट मानवता की खोज मेरा लक्ष्य है ।"

      भारतीय स्वाधीनता संग्राम को लेकर सन् 1950 में आकाशवाणी के लिए 6 रूपक नाटक लिखे थे । उनमें से एक की यह कविता उनकी देश भक्ति का परिचायक है -

   "मैं बोलो किसकी जय बोलूँ जनता की या कि जवाहर की ? या भूला भाई देसाई - से, कानूनी नर-नाहर की ? या कहूँ समय की बलिहारी, जिसने यह कर दिखाया है ।"

       विष्णु प्रभाकर पहले कहानियाँ ही लिखा करते थे । फिर बाद में कहानी से एकांकी के क्षेत्र में आ गए । इसका मूल कारण सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री प्रभाकर माचवे हैं। उन्होंने ही विष्णु प्रभाकर को नाटकें लिखने के लिए प्रोत्साहन किया । एक बार उन्होंने विष्णु प्रभाकर से कहा कि उनकी कहानियों में संवाद की मात्रा अधिक एवं प्रभावशाली है, अगर वे नाटक लिखेंगे तो सफल नाटककार बन सकते हैं। सन् 1939 में विष्णु प्रभाकर ने अपना पहला एकांकी नाटक "हत्या के बाद" लिख डाला ।

        विष्णु प्रभाकर विशुद्ध गाँधीवादी एवं देश भक्त हैं । स्वतंत्रता के पहले से आज तक वे खद्दर के ही कपडे पहनते हैं । इसके पीछे भी एक रोचक घटना है । लडकपन में अपने चाचा के साथ एक सभा में इन्होंने भाग लिया । उस सभा में एक छोटा सा लड़का खद्दर पहनकर सब से यह विनती करने लगा कि मैं छोटा बच्चा हूँ, खद्दर पहनता हूँ । आप सब बडे हैं, सदा खद्दर ही पहनिए । इस भाषण से, उस बालक से प्रभावित होकर पूर्ण मन से इन्होंने खद्दर पहनना शुरू किया । आज तक खद्दर ही पहनते हैं। यह उनकी देशभक्ति तथा दृढ़ निश्चय के लिए एक सशक्त उदाहरण है।

         विष्णु प्रभाकर के विचार में अपने दुख को जो सबका दुख बना लेता है वही महान साहित्यकार होता है, व्यक्ति के सुख-दुख, दर्द- पीडा, प्यार, व्यथा-वेदना को जो रचना सबका दुख-सुख, पीडा-प्यार, व्यथा-वेदना बना देने में समर्थ होती है वही महान है । व्यक्ति और समाज के यथार्थ से कटकर लेखक नहीं हो सकता । लेखक के यहीविचार ने उन्हें उन्नतम साहित्यकार साबित किया है ।

       नारीमुक्ति की भावना इनकी कहानियों तथा उपन्यासों में प्रमुख स्थान पाती है । विष्णु प्रभाकर 'नारी' को मनुष्य के पद पर, शक्तिस्वरूपिणी के रूप में प्रतिष्ठित करना चाहते थे । उन्हीं के शब्दों में... "मैं नारी की पूर्ण मुक्ति का समर्थक हूँ। अंकुश यदि आवश्यक ही है तो यह काम भी वह स्वयं करें ।" समाज एवं सामाजिक प्रगति के बारे में भी इनका ध्यान आकृष्ट हुआ है । समाज की विभिन्न समस्याओं पर प्रकाश डालकर उनके प्रति जागरूकता पैदा करना इनका लक्ष्य रहा है । इस प्रकार वे श्रेष्ठ सामाजिक चिंतक साबित होते हैं ।

       विष्णु प्रभाकर के साहित्य में ही नहीं, उनके जीवन में, उनके व्यक्तित्व में भी यथार्थता की झलक मिलती है । एक सुप्रसिद्ध साहित्यकार होने के बावजूद भी अपने बारे में, अपने साहित्य के बारे में इन्होंने जो कुछ कहा है वह इस बात की साक्षी है - "मैंने अपनी रचनाओं की चर्चा नहीं की है, करने योग्य कुछ है भी नहीं । मुझे अपनी रचनाएँ प्राय: अच्छी नहीं लगती और दूसरों का प्राय: अच्छी लगती हैं ।"

         अभिव्यक्ति के बारे में विष्णु प्रभाकर का मत है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का लेखक के लिए वही महत्व है जो जीवन के लिए गति का । जहाँ गति का अभाव है, वहाँ मृत्यु है, जहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है वहाँ साहित्य भी नहीं है क्योंकि साहित्य मानवात्मा की बंधनहीन अभिव्यक्ति है ।

     " आवारा मसीहा " के नाम से बंगला के उन्नतम कथाकार श्री शरच्चंद्र चट्टोपाध्याय की जीवनी लिखकर इन्होंने बंगला और हिन्दु साहित्य के बीच में संबंध लाने का स्तुत्य प्रयास किया है। यह अन्यतम कृति भारत की रागात्मक एकता का ज्वलंत उदाहरण है । शरच्चंद्र सिर्फ बंगाल के ही नहीं, सारे देश के गौरव हैं । इनकी जीवनी "आवारा मसीहा" विष्णु प्रभाकर की कीर्ति पताका है । आवारा मसीहा का अनुवाद भारत की सभी प्रमुख भाषाओं में हुआ है ।

       "आवारा मसीहा” की रचना के बारे में विष्णु प्रभाकर का कथन है - "शरत मेरे प्रिय लेखक थे । मैं अकसर उनके उपन्यासों के पात्रों को लेकर सोचा करता था । लेकिन मैं आसानी से उनके जीवन की सामग्री प्राप्त नहीं कर सका । यद्यपि मैंने बंगला सीख ली थी, कुछ किताबें भी पढ़ी थीं लेकिन उनमें ऐसा कुछ भी नहीं था जो मुझे जीवनी लिखने के लिए पर्याप्त सामग्री जुटा पाता । इसलिए अन्ततः मैं उनके वास्तविक जीवन की खोज में निकल पडा । सोचा था कि अधिक से अधिक एक साल लगेगा । लेकिन लगे चौदह साल । कहाँ-कहाँ नहीं घूमना पड़ा मुझे ? देश-विदेश में उन सब स्थानों पर गया जिनका सम्बन्ध उनके जीवन से था या उनके पात्र वहाँ रहे थे । इसलिए जब यह जीवनी प्रकाशित हुई तो हिन्दी साहित्य में मेरा स्थान सुरक्षित हो गया ।

      विष्णु प्रभाकर के उपन्यासों में निशिकांत, टूटते परिवेश, संस्कार, संकल्प, स्वप्नमयी, अर्धनारीश्वर तथा कोई तो सर्वप्रमुख हैं। इन सब में सामाजिक समस्याओं को, खासकर नारी पर शोषण का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत किया गया है । यह नायिका प्रधान कहानी है । इसमें नायिका कमला विधवा है और अपने चरित्र के बल से वह धीरे-धीरे पाठकों के मन और प्राण में बसती जाती है । निडर विधवा कमला को देखकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं । 'तट के बंधन' की नीलम और स्वप्नमयी की अलका भी भुलाए नहीं भूलेंगी । 

          "कोई तो" एक कर्ममयी नारी की कहानी है । इस उपन्यास की नायिका वर्तिका यथार्थ जीवन जीना चाहती है और किसी भी हालत में अपने आपको छिपाना या मुखौटा लगाना नहीं चाहती । वर्तिका को प्रधानता देने के साथ उससे सम्बन्धित अन्य पात्रों के द्वारा आज के भ्रष्ट, दूषित समाज का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करने में विष्णु प्रभाकर अपने आपको विशिष्ट साहित्यकार के रूप में दर्शाने में सफल हुए हैं। "कोई तो" में नारी तथा वैवाहिक समस्याएँ, राजनैतिक तथा धार्मिक समस्याएँ, गरीबी तथा आर्थिक विपन्नता की समस्याएँ आदि का यथार्थ चित्रण किया गया है । “संकल्प” की साहसी विधवा सुमति भी नारी शक्ति का प्रतीक है । नारी स्वतंत्रता एवं शक्ति पर विष्णु प्रभाकर ने अपनी कलम अधिकतम चलायी ।

          मूर्धन्य उपन्यासकार विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित हैं । सन् 1953-54 में अंतर्राष्ट्रीय कहानी प्रतियोगिता में 'शरीर से परे' को प्रथम पुरस्कार । आवारा मसीहा पर पब्लो नेरुदा सम्मान, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार । सत्ता के आरपार नाटक के लिए भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा 'मूर्ति-देवी' पुरस्कार । सूर पुरस्कार-हरियाणा अकादमी, तुलसी पुरस्कार - उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, शरत् पुरस्कार - बंग साहित्य परिषद भगलपुर, शलाका सम्मान - हिन्दी अकादमी, दिल्ली । सन् 2002 को भारत सरकार की पद्मभूषण की उपाधि से विष्णु प्रभाकर सम्मानित हैं ।

     हिन्दी साहित्य सेवा में पूर्ण रूप से लगे हुए विष्णु प्रभाकर हिन्दी जगत में चमकनेवाले तारों में से एक हैं। यह तो सौभाग्य की बात है कि तिरानबे साल की लंबी उम्र पार करके साहित्य सेवा में लगे हुए हैं । ईश्वर से यही प्रार्थना है कि मूर्धन्य उपन्यासकार, मूल्यवान साहित्यकार विष्णु प्रभाकर को और अनेक साल हमारे साथ रहने दें ।


         &&&&&&&&&&&&&&&&











Tuesday, January 9, 2024

जयशंकर प्रसाद / रचनाएँ

 

                        जयशंकर प्रसाद

         बाबू जयशंकर प्रसाद की प्रतिभा हिन्दी साहित्य में सर्वतोमुखी है। वे कवि, नाटककार, उपन्यासकार, कहानीकार और निबन्धकार है। -



काव्य : 

प्रसाद जी ने प्रेम राज्य (1909 ई.), वन मिलन (1909 ई.), अयोध्या का उद्धार (1910 ई.), शोकोच्छवास (1910 ई.), प्रेम पथिक (1914 ई.), महाराणा का महत्त्व (1914 ई.), कानन कुसुम, चित्रकार (1918 ई.), झरना (1918. ई.), आँसू (1925 ई.), लहर (1933 ई.) और कामायनी (1934 ई.) नामक काव्य लिखे हैं। कामायनी की गणना विश्व साहित्य में की जाती है।


नाटक : 

प्रसाद ने चौदह नाटक लिखे और दो का संयोजन किया था।

(1) 'सज्जन' (सन् 1910-11) : 

उनकी प्रारंभिक एकांकी नाट्य कृति है। उसकी कथावस्तु महाभारत की एक घटना पर आधारित है। चित्ररथ कौरवों को पराजित कर बंदी बनाता है। युधिष्ठिर को इसका पता चलता है तो वे अर्जुन आदि को चित्ररथ से युद्ध करने केलिए भेजते हैं। युद्ध में चित्ररथ पराजित होता। दुर्योधन की निष्कृति होती है। युधिष्ठर के उदात्त चरित्र को देखकर चित्ररथ, इंद्र आदि देवता प्रसन्न होते हैं।

इसमें प्रसाद ने प्राचीन भारतीय नाट्य-तत्त्वों (नांदी, प्रस्तावना, भरतवाक्य आदि) का प्रयोग किया है। कहीं-कहीं पाश्चात्य तत्त्वों का भी प्रयोग किया है।

(2) कल्याणी परिणय (सन् 1912) : 

इसकी कथावस्तु यह है कि चन्द्रगुप्त चाणक्य की सहायता से नंद वंश का विनाश करता है और उसकी कन्या कल्याणी से विवाह कर लेता है। इसमें भी प्राचीन नाट्य तत्त्वों का प्रयोग किया गया है।

(3).प्रायश्चित्त (सन् 1912) : 

इसमें मुसलमान शासन के आरंभ और राजपूत राजाओं के अवसान का वर्णन मिलता है। जयचंद्र मुहम्मद गोरी को आमंत्रित करता है और पृथ्वीराज को ध्वस्त करा देता है। जब अपनी बेटी संयोगिता की करुणा विगलित मूर्ति उसके ध्यान में आती है तो वह पश्चात्ताप से काँप उठता है। गंगा में डूबकर आत्म-हत्या कर लेता है। इसमें प्रसादजी ने प्राचीन परिपाटी (नांदी पाठ, प्रशस्ति आदि) को छोड दिया है।

(4) करुणालय (सन् 1913) :

 हिन्दी में नीति-नाट्य की दृष्टि से यह प्रथम प्रयास है। यह एकांकी नाटक है। यह पाँच दृश्यों में विभक्त है। इसमें राजा हरिश्चंद्र की कथा है। नाट्य-कला से अधिक इसमें कहानी-कला का विकास लक्षित होता है।

(5) यशोधर्म देव : 

प्रसाद जी ने इसकी रचना सन् 1915 में की थी। परन्तु यह अप्रकाशित है।

(6) राज्यश्री (सन् 1915) : 

नाट्य-कला की दृष्टि से प्रसाद ने इसमें पूर्ण सफलता प्राप्त की है। इसकी कथा संक्षेप में इस प्रकार है- राज्यश्री राज्यवर्धन तथा हर्षवर्धन की बहन है। वह शांतिदेव के चंगुल में फँसती है। अंततः वह दिवाकर की सहायता से उसके चंगुल से मुक्त होती है। वह आत्मदाह करना चाहती है। हर्षवर्धन उसे वैसे करने से रोक देता है। अन्त में भाई-बहन बौद्ध-धर्म के अनुयायी बनते हैं। यह प्रसाद का पहला ऐतिहासिक नाटक है।

(7) विशाख (सन् 1921) : 

प्रसादजी ने सन् 1921 में इसकी रचना की। इसमें व्यवस्थित भूमिका मिलती है। इसमें प्रसाद ने अपनी रचनाओं के उद्देश्य को बताया है। इस नाटक का प्रमुख पात्र विशाख है। वह तक्षशिला के गुरुकुल से शिक्षा समाप्त कर वापस आ रहा है। वह सुश्रुदा नामक नाग को एक बौद्ध भिक्षु के कर्ज से मुक्त करा देता है। इससे प्रसन्न सुश्श्रुदा अपनी बेटी चंद्रलेखा का विवाह विशाख से कर देता है। परन्तु तक्षशिला के राजा नरदेव चन्द्रलेखा को पहले छल-छद्म से और बाद में बलप्रयोग से अपने वश करना चाहता है। परन्तु वह इस प्रयत्न में असफल होता है। उसकी लंपटता और कुपथगामिता से खिन्न उसकी पत्नी आत्महत्या कर लेती है।

(8) अजातशत्रु (सन् 1922) : 

इसमें प्रसाद ने भारतीय और पाश्चात्य नाट्य सिद्धांतों का सश्लिष्ट एवं उत्कृष्ट प्रयोग किया है। भगवान बुद्ध के प्रभाव से, बिंबसार शासन से विरक्त होकर अपने पुत्र अजातशत्रु को राज्य-सत्ता सौंपता है। परन्तु देवदत्त (गौतम बुद्ध का प्रतिबन्दी) की उत्प्रेरणा से कोशल के राजकुमार विरुद्धक के पक्ष में अजातशत्रु अपने पिता बिम्बसार और अपनी बडी माँ वासवी को प्रतिबन्ध में रखने लगता है। कौशम्बी नरेश अजातशत्रु को कैद कर देता है। वासवी की सहायता से अजातशत्रु की निष्कृति होती है। जब अजातशत्रु पिता बनता है तो उसमें पितृत्व के आलोक का उदय होता है। वह अपने पिता से क्षमा-याचना करता है।

(9) जनमेजय का नागयज्ञ (सन् 1923) : 

प्रसिद्ध पौराणिक कथा के आधार पर इस नाटक की रचना की गयी है।

(10) कामना (सन् 1923-24) : 

यह प्रसाद का प्रतीकात्मक नाटक है। इसमें ईर्ष्या, द्वेष आदि मनोवृत्तियों का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है।

(11) स्कन्दगुप्त (सन् 1924) : 

आचार्य नंददुलारे वाजपेयी के अनुसार यह प्रसादजी के नाटकों में सर्वश्रेष्ठ है। इसकी कथा इस प्रकार है-"मगध सम्राट के दो रानियाँ हैं। छोटी रानी अनंतदेवी अपूर्व सुंदरी और कुटिल चालों की है। वह अपने पुत्र पुरुगुप्त को सिंहासनारूढ़ कराकर शासन का सूत्र अपने हाथ में लेती है। बडी रानी देवकी का सुयोग्य पुत्र स्कन्दगुप्त राजसत्ता से उदासीन हो जाता है। परन्तु जब हूण कुसुमपुर को आक्रमण कर लेते हैं तो स्कन्दगुप्त उनको पराजित कर कुसुमपुर को स्वतंत्र कर देता है। हिंसा, विशेष गृह-कलह से विरक्त होकर वह पुरुगुप्त को राज्य सौंप देता है। प्रेममूर्ति देवसेना और देश-प्रेम की साक्षात् मूर्ति स्कन्दगुप्त की विदा से नाटक का अन्त होता है।


WATCH SUMMARY WITH TAMIL EXPLANATION

Skanda gupt natak VIDEO SUMMARY


(12) चन्द्रगुप्त (सन् 1928) : 

इसमें चन्द्रगुप्त द्वारा नंद वंश का नाश, सेल्यूकस की बेटी कार्नेलिया से उसका विवाह आदि वर्णित हैं। चरित्र चित्रण, वातावरण का निर्माण और घटनाओं का घात-प्रतिघात समीचीन और स्थायी प्रभाव डालनेवाला है।

(13) एक घूँट् (सन् 1929) : 

यह एक एकांकी नाटक है। इसमें मानवीय विकारों के कोमल एवं उलझे हुए तन्तुओं के आधार पर चरित्रों का गठन किया गया है। आनन्द स्वच्छंद प्रेम का पुजारी है। उसका कहना है कि आनंद ही सब कुछ है। परन्तु बनलता कहती है कि समाज-विहित, गुरुजनों द्वारा संपोषित वैवाहिक जीवन ही सार्थक और सही दिशा निर्देशक है।

(14) ध्रुवस्वामिनी (सन् 1933) : 

इसमें रामगुप्त की कथा है। प्रसाद ने ध्रुवस्वामिनी को एक जागृत नारी के रूप में चित्रित किया है। उन्होंने उसके द्वारा अनमेल विवाह की समस्या को हमारे सामने प्रस्तुत किया है।

(15) सुंगमित्र (अपूर्ण) :

प्रसाद ने नाटकों के अतिरिक्त कहानियाँ, निबन्ध और उपन्यास भी लिखे हैं। यथा-


निबन्ध : काव्य-कला तथा अन्य निबन्ध

उपन्यास : तितली, कंकाल, इरावती (अपूर्ण)

कहानी-संग्रह : 

1. छाया (सन् 1913), 2. आकाशदीप (सन् 1928), 3. आँधी (सन् 1929), 4. इन्द्रजाल (सन् 1936) 5. प्रतिध्वनि ।

‐------------






Sunday, August 6, 2023

Hindi literature



11. ’लछमा’ किस कहानी का पात्र है ?

(अ) पुरस्कार (ब) कोसी का पटवार✔️

(स) पिता (द) परिंदे


12. प्रकाशन वर्ष के अनुसार जयशंकर प्रसाद की कहानियों का सही अनुक्रम है-

(क) इन्द्रजाल

(ख) आकाशदीप

(ग) ग्राम

(घ) गूदड़साई

नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन चुनिए:

(अ) ग, घ, ख, क✔️ (ब) क, ख, ग, घ

(स) ख, ग, घ, क (द) घ, ख, क, ग


13. ’’आज के व्यापक सामाजिक संबंधों के संदर्भ में जीने वाले व्यक्ति के माध्यम से ही मुक्तिबोध ने ’अँधेरे में’ कविता में अस्मिता की खोज को नाटकीय रूप दिया है।’’

यह कथन किस आलोचक का है ?

(अ) नामवर सिंह✔️ (ब) रामविलास शर्मा

(स) रमेश कुन्तल मेघ (द) रामस्वरूप चतुर्वेदी


14. निम्नलिखित में से किस विचार से गांधीवादी दर्शन सहमत नहीं है ?

(अ) सत्य और अहिंसा

(ब) मनुष्य की सार्थकता जानने में नहीं, करने में है।

(स) सादा जीवन और श्रम पर जोर

(द) साध्य की शुद्धता लेकिन साधन की अशुद्धता✔️


15. प्रकाशन वर्ष के अनुसार श्रीलाल शुक्ल के उपन्यासों का सही अनुक्रम है-

(क) बिस्त्रामपुर का संत

(ख) मकान

(ग) सूनी घाटी का सूरज

(घ) पहला पड़ाव

नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए-

(अ) घ, क, ख, ग (ब) ख, ग, क, घ

(स) ग, ख, घ, क ✔️ (द) क, ख, ग, घ


16. प्रकाशन वर्ष के अनुसार कृष्णा सोबती के उपन्यासों का सही अनुक्रम है-

(क) समय-सरगम

(ख) मित्रो मरजानी

(ग) ऐ लड़की

(घ) सूरजमुखी अंधेरे के

नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन चुनिए-

(अ) क, ख, ग, घ (ब) घ, ग, ख, क

(स) ख, क, घ, ग (द) ख, घ, ग, क ✔️


17. रामचंद्र शुक्ल न ’हिंदी साहित्य का इतिहास’ में देव के कितने ग्रंथों का उल्लेख किया है ?

(अ) 22 (ब) 23✔️

(स) 24 (द) 25




18. ’जिन्दगीनामा’ उपन्यास में-

(क) बीसवीं शताब्दी के प्रथम पन्द्रह वर्षों में पंजाब के किसानों-ग्रामीणों के जीवन का चित्रण है।

(ख) महानगर वासी उच्च मध्यवर्गीय वृद्ध व्यक्तियों की जीवन स्थितियों का चित्रण है।

(ग) परिनिष्ठित हिंदी को पंजाबी प्रयोगों से आक्रान्त कर दिया है।

(घ) विवाहेतर सन्तान और उसकी स्वीकृति का प्रश्न वर्णित है।

नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिए:

(अ) क और ग ✔️ (ब) क और ख

(स) ख और ग (द) ग और घ


19. ’मैं नीर भरी दुख की बदली’ का प्रतिपाद्य है-

(क) इसमें रहस्यवादी ढंग से जीवन की नश्वरता की बात की गई है।

(ख) इसमें स्त्री के सामाजिक प्रदेय और श्रेय का रेखांकित किया गया है।

(ग) स्त्री का जीवन दुख में ही बीतता रहा है।

(घ) स्त्री अपने आँसुओं को व्यर्थ नहीं जाने देती है। वह उसी से नया सृजन करती रही है।

नीचे दिए गए विकल्पों में सही उत्तर का चयन कीजिए-

(अ) क और ग (ब) ख और घ

(स) क और ख (द) ग और घ✔️


20. जगदीश चन्द्र कृत उपन्यास ’धरती धन न अपना’ की अंतर्वस्तु निम्नलिखित में से किस विषय पर आधारित है ?

(अ) पंजाब की ग्रामीण पृष्ठभूमि में दलित जीवन की कथा✔️

(ब) देश-विभाजन के बाद पंजाबी शरणार्थियों की समस्या

(स) वायलिन और बन्दूक, संगीत और युद्ध का द्वन्द्व

(द) युद्ध और प्रेम

Q& A Hindi literature




 1. 'अंग्रेज' किस भाषा का शब्द है? – फ्रांसीसी

2. अंलकेश किसका पर्यायवाची शब्द है? – कुबेर

3. अधिकतर भारतीय भाषाओं का विकास किस लिपि से माना जाता है? – ब्राह्मी लिपि

4. अनुप्रास अलंकार के कितने भेद प्रकार है? – तीन 

5. 'अपनी करनी पर उतरनी' लोकोक्ति का क्या अर्थ हैं? – अपना कार्य ही फलदायक होता है

6. अमीर खुसरो ने किस भाषा के विकास में अग्रणी भूमिका निभाई? – खड़ी बोली

7. 'अलंकार' किसका पर्यायवाची शब्द है? – आभूषण 

8. 'अवसरवादी व्यक्ति हमेशा अपना उल्लू सीधा करने का प्रयास करता है' मुहावरे का अर्थ है? – स्वार्थी

9. अष्टाछाप का जहाज किस कवि को कहा जाता है? – सूरदास 

10. आंचलिक रचनाओं का संबंध किससे होता है? – क्षेत्र विशेष 

11. आचरण की सभ्यता किसकी रचना है? – सरदार पूर्ण सिंह

12. 'आम बजट के ऊपर बहस होगी' वाक्य का शुद्ध रूप क्या होगा? – आज बजट पर बहस होगी 

13. उज्जवल चरित्र के लिए मानसिक दृढ़ता आवश्यक है, वाक्य में अशुद्ध क्या है? – उज्जवल, सही शब्द होगा उज्ज्वल

14. उष्म (गरम) व्यंजन कौन-कौन से है? – श, ष, स, ह

15. 'एक और एक ग्यारह होते' लोकोक्ति का अर्थ क्या है? – संघ में बड़ी शक्ति है

16. कठिन काव्य का प्रेत किस कवि को कहा जाता है? – केशवदास 

17. कबीर किस काव्य धारा के कवि थे? – ज्ञानमार्गी

18. कलम का जादूगर किस कवि लेखक को कहा जाता है? – रामवृक्ष बेनीपुरी 

19. 'कलम तोड़ना' मुहावरे का अर्थ क्या होगा? – बहुत अच्छा लिखना 

20. किस काल को हिंदी साहित्य का स्वर्णयुग कहा जाता है? – भक्तिकाल 

21. किस बोली/भाषा को 'अंतर्वेदी' के नाम से जाना जाता है? – ब्रजभाषा 

22. किसे राष्ट्र कवि कहा जाता है? – रामधारी सिंह दिनकर 

23. कौन-सी भाषा हिंदी की आदि जननी है? – संस्कृत 

24. 'खिसयानी बिल्ली खंभा नोचे' लोकोक्ति का अर्थ क्या है? –  असफलता से लज्जिजत होकर क्रोध करना

25. 'घोंसले में चिड़िया है?' वाक्य में कौन–सा कारक है? – अधिकरण कारक 

26. 'चरण कमल बन्दों हरि राई' में कौन-सा अलंकार है? – रूपक 

27. 'चाय' किस भाषा का शब्द है? – चीनी 

28. चारों चरणों में समान मात्राओं वाले छंद को क्या कहते है? – सममात्रिक छंद 

29. छंद का सर्वप्रथम उल्लेख कहां मिलता है? – ऋग्वेद

30. 'जिंदा रहने की इच्छा' वाक्य के लिए एक शब्द क्या है? –  जिजीविषा

31. जिसकी पत्नी गुजर गई हो वाक्य के लिए शब्द क्या है? – विधुर 

32. जो कि शीघ्र प्रसन्न हो जाये वाक्य के लिए एक शब्द क्या होगा? – आशुतोष

33. जो भोजन रोगी के लिए निषिद्ध है वाक्यांश के लिए एक शब्द क्या होगा? – अयध्य

34. 'जो व्यतीत हो गया' वाक्य के लिए उपयुक्त शब्द क्या है? –  अतीत

35. जो हिसाब-किताब की जांच करता हो, उसे क्या कहते है? – अंकेक्षक 

36. जौहर खुलना का अर्थ क्या है – भेद का पता लगना

37. ठन-ठन गोपाल का क्या अर्थ है? – कंगाल 

38. 'तरनि तनूजा तट तमाल तरूवर बहु छाएं' पंक्ति में कौन–सा अलंकार है? – अनुप्रास 

39. 'तिनके की ओट में पहाड़' लोकोक्ति का अर्थ क्या होगा? – छोटी चीज के पीछे बड़े रहस्य का छिपा होना

40. त्रिपुरा राज्य की राज्य भाषा क्या है? – बांग्ला





Sunday, July 2, 2023

प्रमुख भारतीय लेखक व उनकी पुस्तकें * 

 


        प्रमुख भारतीय लेखक व उनकी पुस्तकें



पंचतंत्र ➞ विष्णु शर्मा

प्रेमवाटिका ➞ रसखान

मृच्छकटिकम् ➞ शूद्रक

कामसूत्र ➞ वात्स्यायन

दायभाग ➞ जीमूतवाहन

नेचुरल हिस्द्री ➞ प्लिनी

दशकुमारचरितम् ➞ दण्डी

अवंती सुन्दरी ➞ दण्डी

बुध्दचरितम् ➞ अश्वघोष

कादम्बरी् ➞ बाणभटृ

अमरकोष ➞ अमर सिहं

शाहनामा  ➞ फिरदौसी

साहित्यलहरी ➞ सुरदास

सूरसागर ➞ सुरदास

हुमायूँनामा ➞ गुलबदन बेगम

नीति शतक ➞ भर्तृहरि

श्रृंगारशतक ➞ भर्तृहरि

वैरण्यशतक ➞ भर्तृहरि

मुद्राराक्षस ➞ विशाखदत्त

अष्टाध्यायी ➞ पाणिनी

भगवत् गीता ➞ वेदव्यास

महाभारत ➞ वेदव्यास

मिताक्षरा ➞ विज्ञानेश्वर

राजतरंगिणी ➞ कल्हण

अर्थशास्त्र ➞ चाणक्य

कुमारसंभवम् ➞ कालिदास

 रघुवंशम् ➞ कालिदास

अभिज्ञान शाकुन्तलम् ➞ कालिदास

गीतगोविन्द ➞ जयदेव

 मालतीमाधव ➞ भवभूति

 उत्तररामचरित ➞ भवभूति

पद्मावत् ➞ मलिक मो. जायसी

आईने अकबरी ➞ अबुल फजल

अकबरनामा ➞ अबुल फजल

 बीजक ➞ कबीरदास

रमैनी ➞ कबीरदास

 सबद ➞ कबीरदास

किताबुल हिन्द ➞ अलबरूनी

 चित्रांगदा ➞ रविन्द्र नाथ टैगौर

 गीतांजली ➞ रविन्द्र नाथ टैगौर

 विसर्जन ➞ रविन्द्र नाथ टैगौर

 गार्डनर ➞ रविन्द्र नाथ टैगौर

 हंग्री स्टोन्स ➞ रविन्द्र नाथ टैगौर

 गोरा ➞ रविन्द्र नाथ टैगौर

 चाण्डालिका ➞ रविन्द्र नाथ टैगौर

भारत-भारती ➞ मैथलीशरण गुप्त

 डेथ ऑफ ए सिटी ➞ अमृता प्रीतम

 कागज ते कैनवास ➞ अमृता प्रीतम

 फोर्टी नाइन डेज ➞ अमृता प्रीतम

 इन्दिरा गाँधी रिटर्नस ➞ खुशवंत सिहं

 दिल्ली ➞ खुशवंत सिहं

द कम्पनी ऑफ वीमैन ➞ खुशवंत सिहं

 सखाराम बाइण्डर ➞ विजय तेंदुलकर

 इंडियन फिलॉस्पी ➞ डॉ. एस. राधाकृष्णन

 इंटरनल इंडिया ➞ इंदिरा गाँधी

 कामयानी ➞ जयशंकर प्रसाद

 आँसू ➞ जयशंकर प्रसाद

 लहर ➞ जयशंकर प्रसाद

 लाइफ डिवाइन ➞ अरविन्द घोष

 ऐशेज अॉन गीता ➞ अरविन्द घोष

अनामिका ➞ सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

 परिमल ➞ सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

 यामा ➞ महादेवी वर्मा

 ए वाइस ऑफ फ्रिडम ➞ नयन तारा सहगल

 एरिया ऑफ डार्कनेस ➞ वी. एस. नायपॉल 

 अग्निवीणा ➞ काजी नजरुल इस्लाम

डिवाइन लाइफ ➞ शिवानंद

 गोदान ➞ प्रेमचन्द्र

 गबन ➞ प्रेमचन्द्र

कर्मभूमि ➞ प्रेमचन्द्र

 रंगभूमि ➞ प्रेमचन्द्र

कितनी नावों में कितनी बार ➞ अज्ञेय

 गोल्डेन थेर्सहोल्ड ➞ सरोजिनी नायडू

 ब्रोकेन विंग्स ➞ सरोजिनी नायडू

पल्लव ➞ सुमित्रानन्दन पंत

 चिदम्बरा➞ सुमित्रानन्दन पंत्त

 कुरूक्षेत्र ➞ रामधारी सिहं 'दिनकर'

उर्वशी ➞ रामधारी सिहं 'दिनकर'

द डार्क रूम ➞ आर. के. नारायण

 मालगुड़ी डेज ➞ आर. के. नारायण

 गाइड ➞ आर. के. नारायण

 माइ डेज ➞ आर. के. नारायण

नेचर क्योर ➞ मोरारजी देसाई

चन्द्रकान्ता ➞ देवकीनन्दन खत्री

 देवदास ➞ शरतचन्द्र चटोपाध्याय

 चरित्रहीन ➞  शरतचन्द्र चटोपाध

Monday, February 28, 2022

 💁‍♀️अनेक शब्दों के लिए एक शब्द-

 

 💁‍♀️अनेक शब्दों के लिए एक शब्द- 


1- जो कभी बूढ़ा न हो – अजर

2- जिसकी कभी मृत्यु न हो- अमर

3- जो दिखाई न दे – अदृश्य

4- जिसे जाना न जा सके- अज्ञेय

5- जो दिया न जा सके – अदेय

6- जो पिया न जा सके- अपेय

7- जो खाया न जा सके- अखाद्य

8- जिसे छूना वर्जित हो – अस्पृश्य

9- जिसे पहले पढ़ा न हो – अपठित

10- जिसे टाला न जा सके- अवश्यम्भावी

11- जिसके बारे में कुछ पता न हो- अज्ञात

12- जिसे जीता न जा सके- अजेय

13- जिसे हराया न जा सके- अपराजेय

14- जिसका उल्लंघन न किया जा सके- अनुलंघनीय

15- पीछे चलने वाला – अनुगामी

16- साथ चलने वाला – सहचर

17- मन की बात जानने वाला- अंतर्यामी

18- सब कुछ देख लेने वाला- सर्वदृष्टा

19- सब कुछ जानने वाला- सर्वज्ञानी, सर्वज्ञ

20- अपने आप में मग्न रहने वाला- अंतर्मुखी

21- सबसे घुल मिल जाने वाला- बहिर्मुखी

22- कुछ न जानने वाला- अज्ञानी

23- रात्रि में घूमने वाला – रात्रिचर, निशाचर

24- प्रतिदिन होने वाला- दैनिक, रोजाना

25- सप्ताह में एक बार होने वाला- साप्ताहिक

26- पंद्रह दिन में एक बार होने वाला- पाक्षिक

27- माह में एक बार होने वाला- मासिक

28- तीन महीने में एक बार होने वाला-त्रैमासिक

29- छः महीने में एक बार होने वाला-अर्द्धवार्षिक, छमाही

30- साल में एक बार होने वाला – वार्षिक, सालाना

31- पूरे जीवन भर – आजीवन

32- करने योग्य कार्य – करणीय

33- जहां कोई इंसान न हो – निर्जन

34- संसार से संबंधित- लौकिक, सांसारिक

35- संसार से बाहर का- अलौकिक, पारलौकिक

36- पूरे दिन के क्रिया-कलाप- दिनचर्या

37- जिसे जीतना कठिन हो- दुर्जय

38- जो हो न सके – असम्भव

39- शाक सब्जी खाने वाला- शाकाहारी

40- मांस खाने वाला- मांसाहारी

41- सब कुछ कहने वाला- सर्वाहारी

42- बहुत कम खाने वाला- अल्पाहारी

43- कड़वे वचन बोलने वाला – कटुभाषी

44- मीठा बोलने वाला – मधुरभाषी

45- कम बोलने वाला- मितभाषी

46- दूसरों की बुराई, निंदा करने वाला- परनिंदक, निंदक

47- बड़ाई या प्रसंशा करने वाला – प्रसंशक

48- जो बोलने में असमर्थ हो – मूक, गूंगा

49- जो सुनने में असमर्थ हो – बधिर, बहरा

50- जो देखने में असमर्थ हो – अंधा 

51- जिसका कोई अंग काम न करता हो – विकलांग, दिव्यांग

52- जिसकी बुद्धि बहुत तेज हो – कुशाग्रबुद्धि

53- जिसकी बुद्धि कमजोर हो – मंदबुद्धि

54- आसानी से प्राप्त होने वाला – सुलभ

55- बहुत कठिनाई से मिलने वाला – दुर्लभ

56- जिसे करना कठिन हो – दुष्कर

57- जिसे कोई शोक न हो – अशोक

58- दूसरों से जलन रखने वाला – ईर्ष्यालु

59- दूसरों का उपकार करने वाला – परोपकारी

60- सुख दुख में समान रहने वाला – स्थिरप्रज्ञ

61- जिसका मूल्य न बताया जा सके – अमूल्य

62- जिसका कोई सगा-सम्बन्धी न हो – अनाथ

63- भाग्य जिसका साथ न दे – अभागा

64- जो पहले कभी न हुआ हो – अभूतपूर्व

65- जो शीघ्र ही मरने वाला हो – मरणासन्न

66- जिसे पड़ से हटा दिया गया हो- पदच्युत

67- दूसरों की भलाई के लिए सोचने वाला – शुभचिंतक

68- जिसकी मृत्यु हो गयी हो- स्वर्गीय, मृत

69- लम्बे समय तक जीवित रहने वाला – चिरंजीवी

70- जिसका जीवन दूसरों पर आश्रित हो – परजीवी

71- जो दूर की सोचता हो – दूरदर्शी

72- धरती और आकाश के बीच का स्थान- अंतरिक्ष

73- किसी देश के अंदर के मामले- अंतर्देशीय

74- जो बीत चुका हो – अतीत, भूत,

75- जो इंद्रियों के द्वारा न जाना जा सके- अगोचर

76- जिसने इंद्रियों को वश में कर लिया है- जितेंद्रिय

77- दोपहर के पहले का समय – पूर्वाह्न

78- दोपहर के बाद का समय- अपराह्न

79- जिसका त्याग न किया जा सके- अपरिहार्य

80- जिसका अनुभव किया जा चुका हो – अनुभूत

81- बिना वेतन काम करने वाला – अवैतनिक

82- जिसका कोई शत्रु न हो – अजातशत्रु

83- जिसके पास कुछ न हो – अकिंचन

84- जो कानून के विरुद्ध हो – अवैधानिक, अवैध

85- जो तोला या नापा न जा सके – अपरिमेय

86- जिसका इलाज न हो सके – असाध्य

87- जिसका मन कहीं और लगा हो – अन्यमनस्क

88- आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना – अपरिग्रह

89- सामान्य नियम के विरुद्ध – अपवाद

90- अनुचित खर्च करने वाला – अपव्ययी

91- जिसका कभी अंत न हो- अनंत

92- जिसके समान कोई दूसरा न हो – अद्वितीय

93- जिसका खण्डन न किया जा सके – अकाट्य

94- जिसपर मुकदमा चल रहा हो – अभियुक्त,

95- जिसकी कोई सीमा न हो – असीम

96- जिसके आने की कोई तिथिं न हो – अतिथि

97- जो घूमता फिरता आ जाए – आगंतुक

98- ऊपर चढ़ने वाला- आरोही

99- जो ऊपर कहा गया हो- उपर्युक्त

100- किसी के बाद उसके पद यत् संपत्ति को ग्रहण करने वाला – उत्तराधिकारी

101- जो जमीन उपजाऊ हो – उर्वरा

102- जिसका उल्लेख करना आवश्यक हो- उल्लेखनीय

103- जल और जमीन दोनों पर चलने वाला- उभयचर

104- खाने के बाद बचा हुआ जूठन- उच्छिष्ट

105- जिस जमीन पर कुछ उत्पन्न न हो – ऊसर

106- एक ही आदमी का अधिकार – एकाधिकार

107- इतिहास से संबंधित – ऐतिहासिक

108- इंद्रियों से सम्बंधित – ऐन्द्रिक

109- जो अपनी इच्छा पर निर्भर हो – ऐच्छिक

110- अपनी विवाहिता पत्नी से उत्पन्न पुत्र – औरस

111- ऊपरी आचरण – औपचारिक

112- कर्तव्य न सूझ रहा हो- किंकर्तव्यविमूढ़

113- भूख-प्यास और भय से घबराया हुआ – कातर, अधीर

114- कथा जो जनसामान्य में प्रचलित हो- किंवदंती

115- किसका ज्ञान सीमित हो, जो एक ही स्थान के बारे में जानता हो – कूपमंडूक

116- जो खरीदा गया हो – क्रीत

117- किये गए अहसान को भूल जाने वाला – अहसानफरामोश, कृतघ्न118- उपकार मानने वाला – कृतज्ञ

119- कार्य हो जाने से संतुष्ट – कृतार्थ

120- किसी वस्तु को देखने अथवा सुनने की प्रबल इच्छा – कौतूहल

121- कविता लिखने वाली स्त्री – कवयित्री

122- सारे शरीर की हड्डियों का ढांचा – कंकाल

123- बाधाओं या कांटों से भरा मार्ग – कंटकाकीर्ण

124- कमल के समान सुंदर आंखों वाली – कमलनयनी

125- किसी विचार को कार्य रूप में बदलना – कार्यान्वयन

126- जो काम से जी चुराता हो – कामचोर

127- जो अच्छे चाल चलन का न हो – कुचाली

128- मन गढ़ंत बात – कपोलकल्पित

129- काम में लगा रहने वाला – कर्मठ

130- लता बेलों से घिरा सुंदर स्थान – कुंज

131- ऐसा ग्रहण जिसमें सूर्य या चन्द्रमा पूरा ढंक जाए- खग्रास

132- जो आकाश में चलता हो – खेचर, नभचर

133- खाने योग्य पदार्थ – खाद्य

134- आकाश को चूमने या छूने वाला – गगनचुंबी

135- दिन और रात के बीच का समय – गोधूलि

136- जो भोजन देर से पचे – गरिष्ठ

137- जिसके सिर पर बाल न हो – गंजा

138- गंगा से उतपन्न या सम्बंधित – गांगेय

139- घुलने योग्य पदार्थ – घुलनशील

140- जिसका राज्य पूरी पृथ्वी पर हो – चक्रवर्ती

141- जो सदा से चला आ रहा हो – चिरन्तन, शाश्वत

142- जिसके चार पैर हों – चतुष्पद

143- अपने लाभ के लिए किसी की प्रशंसा करने वाला – चाटुकार

144- ऐसा काव्य जिसमें गद्य और पद्य दोनों हों – चम्पू

145- चारों ओर की सीमा – चौहद्दी

146- बरसात के चार महीने- चौमासा

147- छिपे वेश में रहना – छद्मवेश

148- किसी में दोष ढूढना – छिद्रान्वेषण

149- किसी पर आरोप लगा कर छेड़ना – छींटाकसी

150- जनता द्वारा चलाया जाने वाला शासन – जनतंत्र

151- जीने की प्रबल इच्छा – जिजीविषा

152- किसी पर विजय पाने की इच्छा – जिगीषा

153- जानने की इच्छा रखने वाला – जिज्ञासु

154- जो संतान अवैध हो – जारज

155- जल में चलने वाला यान – जलयान

156- जन्म से सौ वर्ष का समय – जन्मशती, जन्मशताब्दी

157- जो जन्म से ही अंधा हो – जन्मांध

158- बुढ़ापे के कारण जर्जर – जराजीर्ण

159- पेट की अग्नि – जठराग्नि

160- जंगल की आग – दावानल

161- पति का बड़ा भाई – जेठ

162- बेटी का पति – जामाता, दामाद

163- स्वाभावतः झगड़ा करने वाला – झगड़ालू

164- किसी विषय पर अपना मत रखना – टिप्पणी

165- सिक्के ढलने के कारखाना – टकसाल

166- चारों ओर से जल से घिरी जमीन – टापू

167- जिसमें बाण रखे जाते हैं – तरकश, तूणीर

168- तर्क के आधार पर ठीक हो – तार्किक, तर्कसंगत

169- भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों काल को जानने वाला – त्रिकालज्ञ

170- जो त्याग देने लायक हो – त्याज्य

171- विवाद या गुटबाजी से अलग रहने वाला – तटस्थ

172- जिसको त्याग दिया गया हो – त्यक्त

173- काम में निष्ठापूर्वक लगा हुआ – तत्पर

174- एक व्यक्ति द्वारा चलाया जाने वाला मनमाना शासन- तानाशाही

175- करचोरी से प्रतिबंधित माल बेचने वाला – तस्कर

176- जो देवताओं के योग्य हो – दिव्य

177- गोद लिया हुआ पुत्र – दत्तक

178- जहां जाना कठिन हो – दुर्गम

179- पति- पत्नी का जोड़ा – दम्पति

180- दण्ड दिए जाने योग्य – दंडनीय

181- जिसका मुख्य दाईं ओर हो –दक्षिणावर्त, दक्षिणाभिमुखी

182- पूरी तरह मन लगाकर – दत्तचित्त

183- बुरे चरित्र वाला – दुश्चरित्र

184- जिसे करना बहुत कठिन हो – दुष्कर

185- जो अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहता हो – दृढ़प्रतिज्ञ

186- अपने देश से विश्वासघात करने वाला – देशद्रोही

187- तेज गति से जाने वाला – द्रुतगामी

188- ऐसा अकाल जिसमें भिक्षा देना भी कठिन हो – दुर्भिक्ष

189- जिसे भेदना कठिन हो – दुर्भेद्य

190- जिसका समाधान कठिन हो – दुःसाध्य

191- अनुचित बात के लिए आग्रह करना – दुराग्रह

192- जिसे पूजा द्वारा प्रसन्न करना कठिन हो – दुराराध्य

193- जिसके दश मुंह हों – दशानन, दशमुख

194- जिस पर तिथि या दिनांक अंकित हो – दिनांकित

195- जो अपने ऋण चुकाने में असमर्थ हो – दिवालिया

196- जिसकी बाहें घुटनों तक लम्बी हों – आजानुबाहु

197- जो देखने योग्य हो – दर्शनीय

198- पुराने संकुचित विचारों वाला – दकियानूस

199- विवाह के बाद बहू का दोबारा ससुराल आना – द्विरागमन

200- जिसे दबाया/ पीड़ित किया गया हो – दलित

201- नजर का दोष होना – दृष्टिदोष

202- दो भाषाएं बोलने वाला – द्विभाषी,

203- दो भिन्न भाषा बोलने वालों के बीच मध्यस्थता करने वाला – द्विभाषिया

204- जो वस्तु दूसरों के यहां रखी हो – धरोहर

205- धन देने वाली – धनदा

206- धार्मिक सिद्धान्तो के अनुसार आचरण करने वाला – धर्मात्मा

207- धनुष धारण करने वाला – धनुर्धर

208- यात्रियों के लिए बने आश्रय स्थल – धर्मशाला

209- मछली पकड़ने वाली जाति – धीवर

210- जिसकी धर्म में निष्ठा हो – धर्मनिष्ठ

211- जो गिनती के योग्य न हो – नगण्य

212- जो ईश्वर को न मानता हो – नास्तिक

213- ईश्वर में विश्वास रखने वाला – आस्तिक

214- जो निंदा के योग्य हो – निंदनीय

215- जो कामना रहित हो – निष्काम

216- जो नीचे लिखा गया हो- निम्नलिखित

217- जो भयभीत न होता हो – निर्भीक, अभय

218- बिना मांस का – निरामिष

219- जिसके मन में दया न हो – निर्दयी

220- जिसके हृदय में ममता न हो – निर्मम

221- बिना किसी फीस/ शुल्क का – निःशुल्क

222- जो चिंता से रहित हो – निश्चिंत

223- जिसका कोई आधार न हो – निराधार

224- जो विषय भोग से रहित हो – निरीह

225- जिसको किसी प्रकार का लोभ न हो – निस्पृह

226- जिसका कोई आसरा न हो – निराश्रय

227- जो नष्ट होने वाला हो – नश्वर

228- जिसे अक्षर ज्ञान न हो – निरक्षर

229- जिसके पास शक्ति का अभाव हो – निर्बल, दुर्बल

230- जो हर बात में निराशा प्रकट करता हो – निराशावादी

231- रात्रि के मध्य भाग का समय – निशीथ

232- जिस पर किसी प्रकार का अंकुश न हो – निरंकुश

233- जिसके पास कोई उत्तर न हो – निरुत्तर

234- बिना पलक झपकाए लगातार देखना – निर्निमेष

235- जिसका कोई आकार न हो – निराकार

236- सरकारी अधिकारियों का शासन – नौकरशाही, लालफीताशाही

237- जिसके विषय में कोई मतभेद या विवाद न हो – निर्विवाद

238- जो नया आया हो – नवागत

239- जहां किसी बात का डर या खतरा न हो – निरापद

240- देश के बाहर माल भेजना – निर्यात

241- दूसरे देश से माल लेना – आयात

242- जिसका निषेध किया गया हो – निषिद्ध

243- जिसपर कोई कलंक न लगा हो – निष्कलंक

244- जिसने कभी पाप न किया हो – निष्पाप

245- जिसमें तेज न हो – निष्तेज

246- जिसकी सहायता करने वाला कोई न हो – निस्सहाय

247- नीति का ज्ञान रखने वाला – नीतिज्ञ

248- जिसकी आशा न की गयी हो – अप्रत्याशित

249- बिना जड़ का – निर्मूल

250- हाल ही में पैदा हुआ – नवजात

251- हाल में ब्याही वधू – नववधू

252- नगर में रहने वाला – नागरिक

253- पुत्री की पुत्री – नातिन

254- नरक से संबंधित या नरक में रहने वाला – नारकीय

255- जिसमें शब्द न हो रहा हो – निःशब्द

256- जिसकी कोई संतान न हो – निःसंतान

257- जिसे देश से निकाला गया हो – निर्वासित

258- जिसे कोई रोग न हो – निरोग

259- जिसकी उपमा न दी जा सके – निरुपम

260- सिर से पाँव तक के सब अंग – नखशिख

261- नया उदय होने वाला – नवोदित

262- जिसका गला नीले रंग का है – नीलकंठ

263- जिसका कोई अर्थ न हो – निरर्थक

264- निम्न कोटि का – निकृष्ट

265- जो शंका करने वाला योग्य न हो – निःशंक

266- जो दूसरे के अधीन हो – परतंत्र

267- मिट्टी का बना हुआ या पृथ्वी से संबंधित – पार्थिव

268- जो सुख दुख से परे हो – परमहंस

269- जो प्रशंसा के योग्य हो – प्रशंसनीय

270- जो देखने में प्रिय लगे – प्रियदर्शी

271- पद का लालची – पदलोलुप

272- जिसकी पूजा की जा सके – पूजनीय

273- इतिहास लेखन से पहले का – प्रागैतिहासिक

274- पिता से प्राप्त की हुई संपत्ति – पैतृक

275- पत्ते की बनी हुई कुटी – पर्णकुटी

276- आंखों के सामने – प्रत्यक्ष

277- उपकार के बदले किया गया उपकार – प्रत्युपकार

278- जो गिरा हुआ हो – पतित

279- जिसका जन्म शरीर से हो – पिंडज

280- किये हुए पाप को स्वीकार कर दण्ड भोगना – प्रायश्चित

281- परिश्रम के बदले मिला हुआ धन आदि – पारिश्रमिक

282- पशुओं का या पशुओं जैसा – पाशविक

283- जिसे पीने की तीव्र इच्छा हो – पिपासु

284- किसी के निधन की वार्षिक तिथिं – पुण्यतिथि

285- अपने पुत्र की पत्नी – पुत्रवधू

286- किसी बात को दोबारा कहना – पुनरुक्ति

287- जिसकी प्रतिष्ठा या सम्मान हो – प्रतिष्ठित

288- जिसके आर पार देखा जा सके – पारदर्शी

289- जो कहीं जाकर वापस लौट आया हो- प्रत्यागत

290- ठीक समय पर तुरंत उपाय सोच लेने वाला- प्रत्युतपन्नमति

291- जो प्रमाण से सिद्ध हो सके – प्रमेय

292- विदेश में रहने वाला व्यक्ति – प्रवासी

293- प्रश्न के रूप में पूछने योग्य – प्रष्टव्य

294- स्त्री जिसने बच्चे को जन्म दिया हो – प्रसूता

295- हास्य रस प्रधान नाटक – प्रहसन

296- किसी टूटी फूटी वस्तु का फिर से निर्माण – पुनर्निर्माण

297- जिसकी कामना पूरी हो गयी हो – पूर्णकाम

298- किसी प्रश्नपत्र के लिए निर्धारित अंक, पूरे अंक – पूर्णांक

299- पुत्र का पुत्र – पौत्र

300- पुत्र की पुत्री – पौत्री


✍✍ हिंदी में प्रथम रचनाएँ और रचनाकार।



    हिंदी में प्रथम रचनाएँ और रचनाकार। 

हिंदी का प्रथम कवि – सरहपाद

हिन्दी की प्रथम रचना – श्रावकाचार (देवसेन)

हिन्दी का प्रथम उपन्यास – परीक्षा गुरु (श्रीनिवास दास)

हिंदी का प्रथम मौलिक नाटक – नहुष (गोपालचंद्र)

हिंदी की प्रथम आत्मकथा – अर्द्धकथानक (बनारसी दास जैन)

हिंदी की प्रथम जीवनी – दयानंद दिग्विजय (गोपाल शर्मा)

हिंदी का प्रथम रिपोर्ताज – लक्ष्मीपुरा (शिवदान सिंह चौहान)

हिंदी का प्रथम यात्रा संस्मरण – लंदन यात्रा (महादेवी वर्मा)

हिंदी के प्रथम मौलिक कहानी – इंदुमती (किशोरी लाल गोस्वामी)

हिंदी की प्रथम वैज्ञानिक कहानी – चंद्रलोक की यात्रा (केशव प्रसाद सिंह)

हिंदी का प्रथम गद्य काव्य – साधना (राय कृष्णदास)

हिंदी खड़ी बोली का प्रथम काव्य ग्रंथ – एकांतवासी योगी (श्रीधर पाठक)

हिंदी की प्रथम अतुकांत रचना – प्रेम पथिक (जयशंकर प्रसाद)

हिंदी छायावाद का प्रथम काव्यसंग्रह – झरना (जयशंकर प्रसाद)

शुद्ध एवं परिमार्जित खड़ी बोली के प्रथम लेखक – रामप्रसाद निरंजनी

हिंदी खड़ी बोली का प्रथम गद्य ग्रंथ – भाषा योग वशिष्ठ

दक्षिण भारत में हिंदी खड़ी बोली में साहित्य सर्जन करने वाले प्रथम – मुल्लावजही

हिंदी खड़ी बोली के प्रथम प्रतिष्ठित कवि – अमीर खुसरो

हिंदी साहित्य का प्रथम महाकाव्य – पृथ्वीराज रासो (चंदबरदाई)

हिंदी का प्रथम वक्रोक्ति कथात्मक महाकाव्य – पद्मावत (जायसी)

हिंदी का प्रथम महाकाव्य – पद्मावत (जायसी)

हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य – प्रियप्रवास (हरिऔध)

हिंदी खड़ी बोली के प्रथम रचना – चंद छंद बरनन की महिमा (गंग कवि)

हिंदी में दोहा चौपाई का सर्वोत्तम प्रयोगकर्ता – सरहपाद

प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन – 1975 ई• नागपुर

हिंदी का प्रथम गीतिनाट्य – करुणालय (प्रसाद)

रससूत्र के प्रथम व्याख्याता – भट्टलोलक (उत्पत्तिवाद)

हिंदी में रीतिकाल का प्रथम ग्रंथ – हिततरंगिणी (कृपाराम)

आधुनिक हिंदी का प्रथम अभिनीत नाटक – जानकी मंगल (शीतला प्रसाद त्रिपाठी)

‘गीतिकाव्य’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग – कुसुममाला की भूमिका में (लोचन प्रसाद पांडे)

साधारणीकरण का सर्वप्रथम प्रयोग – भट्ट नायक

हिंदी का प्रथम एकांकी – एक घूंट (जयशंकर प्रसाद)

हिंदी में काव्यशास्त्र की प्रथम पुस्तक – साहित्यलहरी (सूरदास)

सूफी प्रेमाख्यान का प्रथम काव्य – चंदायन (मुल्लादाउद)

हिंदी साहित्य में छंद शास्त्र की प्रथम रचना – छंदमाला

हिंदी में रीति सिद्धांत के प्रथम प्रस्तोता – आचार्य केशवदास

हिंदी का प्रथम गीत रचयिता – विद्यापति

हिंदी में प्रयोगवाद शब्द का सर्वप्रथम प्रयोगकर्ता – नंददुलारे वाजपेई

हिंदी में नई कविता शब्द का सर्वप्रथम नामकरणकर्ता – अज्ञेय

हिन्दी का प्रथम रेखाचित्र संकलन – पदंपराग (पद्दम सिंह शर्मा)

हिन्दी आलोचना की प्रथम पुस्तक – हिंदी कालिदास की आलोचना

हिंदी में प्रथम तुलनात्मक आलोचना – पदमसिंह शर्मा

हिंदी के प्रथम मार्क्सवादी आलोचक – डा• शिवदान सिंह चौहान

प्रगतिशील लेखक संघ के प्रथम सभापति – मुंशी प्रेमचंद

राजभाषा आयोग के प्रथम अध्यक्ष – बाल गंगाधर खरे

हिंदी का प्रथम साप्ताहिक पत्र – उदंत मार्तण्ड

हिंदी का प्रथम दैनिक पत्र – समाचार सुधावर्षण

हिंदी की प्रथम पत्रिका – संवाद कौमुदी

हिंदी साहित्य परिषद के प्रथम अध्यक्ष – पुरुषोत्तम दास टंडन

नाटक संबंधी प्रथम सैद्धांतिक ग्रंथ – रूपक रहस्य (श्याम सुन्दर दास)

हिंदी साहित्य के लिए प्रथम ज्ञानपीठ पुरस्कार – सुमित्रानंदन पंत (चिदंबरा)

हिंदी साहित्य के लिए प्रथम साहित्य अकादमी पुरस्कार – माखनलाल चतुर्वेदी (हिम तरंगिणी)

हिंदी के लिए प्रथम व्यास सम्मान – डॉ रामविलास शर्मा (भारत के भाषा परिवार और हिंदी)

हिंदी के लिए प्रथम सरस्वती सम्मान – डॉ हरिवंश राय बच्चन आत्मकथा

Wednesday, May 26, 2021

📒प्रयोजनमूलक हिन्दी📒

 

       📒 प्रयोजनमूलक हिन्दी📒

prayojan moolak hindi

प्रयोजनमूलक हिन्दी में प्रयोजन शब्द का अर्थ है- ’उद्देश्य’। जिस भाषा का प्रयोग किसी विशेष प्रयोजन के लिए किया जाए, उसे ’प्रयोजनमूलक भाषा’ कहा जाता है।


हिंदी में प्रयोजनमूलक हिन्दी शब्द ‘ functional language ‘ के रूप में प्रयुक्त किया जा रहा है, जिसका तात्पर्य है- जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग में लायी जाने वाली भाषा।’ इसका प्रमुख लक्ष्य जीविकोर्पान का साधन बनना होता है। यह हिंदी साहित्य तक सीमित नहीं है, बल्कि प्रशासन, कार्यालय, मीडिया, बैंक, विधि, कृषि, वाणिज्य, तकनीकी, विज्ञापन, विज्ञान, शैक्षिक आदि विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग में ली जा रही है। विभिन्न व्यवसायों से संबंधित व्यक्तियों जैसे- डाॅक्टर, वकील, पत्रकार, मीडियाकर्मी, व्यापारी, किसान, वैज्ञानिक आदि के कार्य-क्षेत्रों में प्रयुक्त भाषा ही ’प्रयोजनमूलक’ भाषा कहलाती है।


’प्रयोजनमूलक हिंदी का तात्पर्य है-

’’वह हिंदी जिसका अपना विशेष लक्ष्य, हेतु या प्रयोजन है।’’ प्रयोजनमूलक हिंदी का व्यक्तिगत अर्थ है- वह हिंदी जिसका प्रयोग प्रयोजन विशेष के लिए किया जाए। साथ ही इस हिंदी के माध्यम से ज्ञान विशेष की प्राप्ति और विशिष्ट सेवात्मक क्षेत्रों में कौशल, निपुणता एवं प्राणिण्य प्राप्त करने के लिए किया जाता है। प्रयोजनमूलक भाषा का क्षेत्र सीमित होते हुए भी यह कमी भी साधन से साध्य नहीं बनती है। इसका लक्ष्य सेवा-माध्यम होता है, जो जीविकोपार्जन का साधन बनता है।

डाॅ. अर्जुन चव्हाण ने प्रयोजनमूलक हिंदी के निम्नलिखित उद्देश्य बताए है-


◆ हिंदी की व्यावहारिक उपयोगिता से परिचित कराना।

◆ स्वयं रोजगार उपलब्ध कराने में युवकों की मदद करना।

◆ विविध सेवा-क्षेत्रों में युवक-युवतियों को सेवा के अवसर उपलब्ध करा देना।

◆ रोजी-रोटी की समस्या हल करने में छात्र सक्षम हो, इस दृष्टि से उसका पाठ्यक्रम तैयार करना।

◆ अनुवाद कार्य को बढ़ावा देना तथा इसके जरिए सफल अनुवादक तैयार करना।

◆ कार्यालयों में प्रयुक्त होने वाली हिंदी भाषा का समग्र ज्ञान प्रदान करना।

◆ दफ्तरी भाषा की पारिभाषिक शब्दावली बनाना तथा उसमें कौशल हसिल करना।

◆ तकनीकी भाषा की परिभाषिक शब्दावली तैयार करना तथा उसमें निपुणता प्राप्त करना।

◆ साक्षात्कार, वार्तालाप, संभाषण आदि विषयक ज्ञानात्मक कौशल के विकास हेतु प्रयास करना।

◆ शिक्षण-प्रशिक्षण के माध्यम के रूप में हिंदी को सक्षम बनाना।

◆ जनसंचार के साधनों के अनुकूल बनाने हेतु हिंदी को विकसित करना।

◆ राष्ट्रभाषा के प्रचार एवं प्रसार के दायित्व का निर्वहन करना।

◆ राष्ट्र तथा राष्ट्रभाषा के प्रति अपनी अस्मिता जीवित रखना।

◆ सामाजिक तथा राष्ट्रीय आवश्यकताओं की संपूर्ति करना।

◆ ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में चरम विकास करना।

◆ वैश्विक संदर्भ में अपने देश की भाषा का सम्मान करना, उसकी प्रतिष्ठा रखना।


डाॅ. चव्हाण ने मीडिया की सबसे अधिक जरूरत भाषा के जानकार की बताई है। उनका कहना है कि ’’आज आवश्यकता अच्छे संपादक, अनुवादक, संवाददाता, निर्दशक, प्रूफरीडर, डाक्यूमेंट्री-लेखक, पटकथा लेखक, संवाद लेखक, गीतकार और काॅमेंटेªटर की है, लेकिन योग्य व्यक्ति के अभाव के कारण मीडिया काम निपटा रहा है।


अब हिंदी के पाठ्यक्रमों में भी परिवर्तन करना अनिवार्य है। अब मीडिया के लिए उपयुक्त हिंदी अर्थात् प्रयोजनमूलक हिंदी के गंभीर अध्ययन की आवयकता है।’’


प्रयोजनमूलक हिन्दी की अवधारणा को समझने के लिए कुछ प्रश्नों के उत्तर दिए गए है 


1. ’प्रयोजनमूलक हिंदी’ से आप क्या समझते है ?


उत्तर- प्रयोजनमूलक हिंदी से अभिप्राय उस हिंदी से है, जिसका अपना विशेष लक्ष्य, हेतु या प्रयोजन हो। ’प्रयोजन’ शब्द अंग्रेजी के ’निदबजपवदंस’ शब्द का हिंदी पर्याय है। इसे ’कामकाजी हिंदी’ भी कहा जाता है।



उत्तर- प्रयोजनमूलक हिंदी के चार उद्देश्य हैं- हिंदी को व्यावहारिक उपयोगिता से परिचित कराना, स्वयं रोजगार उपलब्ध कराने में युवाओं की मदद करना, अनुवाद कार्य को प्रोत्साहित करना एवं कार्यालयी हिंदी का समग्र ज्ञान प्रदान करना।


3. कार्यालयी हिंदी किसे कहते है ?


उत्तर– कार्यालयी हिंदी से अभिप्राय उस हिंदी से है जो सरकारी, अर्द्धसरकारी तथा निजी कार्यालयों में प्राशसनिक क्षेत्र के प्रयोग में लाई जाती है।


4. जनसंचार के विविध माध्यमों में प्रयोजनमूलक हिंदी किस रूप में काम में लाई जाती है ?


उत्तर- प्रयोजनमूलक हिंदी जनसंचार माध्यमों के सभी रूपों में, जिनमें मुद्रित माध्यम, श्रव्य माध्यम, दृश्य-श्रव्य माध्यम व क्षेत्रीय प्रचार-प्रसार माध्यम शामिल है, सूचना एवं प्रसारण के कार्य के लिए प्रयोग में लाई जाती है।


5. प्रयोजनमूलक हिंदी एवं सामान्य हिंदी में क्या अंतर है ?


उत्तर- प्रयोजनमूलक हिंदी एवं सामान्य हिंदी एक ही भाषा के दो रूप है, परन्तु उनकी शब्दावली, वाक्य-संरचना आदि भिन्न-भिन्न होती है। सामान्य भाषा मनुष्य की पहली आवश्यकता है लेकिन प्रयोजनमूलक भाषा की आवश्यकता उसके बाद होती है। प्रयोजनमूलक भाषा का क्षेत्र सीमित होता है। किन्तु सामान्य हिंदी का क्षेत्र विस्तृत होता है।


6. प्रयोजनमूलक हिंदी किन-किन क्षेत्रों में प्रयोग में लाई जाती है ?

उत्तर- प्रयोजनमूलक हिंदी वाणिज्य एवं व्यापार, विज्ञान एवं तकनीकी, कार्यालयों, विधि, सामाजिक विज्ञान, संचार माध्यमों एवं विज्ञापनों में काम में लाई जाती है।


7. सम्पर्क भाषा किसे कहते है ?


उत्तर- सम्पर्क भाषा से अभिप्राय उस भाषा से है, जिस भाषा के माध्यम से एक क्षेत्र के लोग देश दूसरे क्षेत्र के लोगों से या एक भाषा के बोलने वाले लोग अन्य भाषा-भाषियों से अपने विचारों का आदान-प्रदान करके अपना सम्पर्क बनाए रखते है। यह शब्द अंग्रेजी के शब्द ’लिग्ंवा फ्रेंका’ का हिंदी अनुवाद है, जिसे ’सामान्य बोली’ अथवा ’लोक बोली’ भी कहा जा सकता है।

8. राष्ट्रभाषा को परिभाषित कीजिए ?


उत्तर- राष्ट्रभाषा से अभिप्राय किसी भी देश की उस भाषा से है, जो उस देश के अधिकांश जनसमुदाय द्वारा वैचारिक अभिव्यक्ति के लिए प्रयोग में लाई जाती हैं, जिसके शब्द-भंडार में देश की विविध बोलियों, उपभाषाओं एवं विभाषाओं के शब्द शामिल होते हैं तथा जिसका विकास स्वतंत्र रूप से होता है।


9. राष्ट्रभाषा और राजभाषा में क्या अंतर है ?


उत्तर- राष्ट्रभाषा समूर्च राष्ट्र के अधिकांश जन-समुदाय द्वारा प्रयोग में लाई जाती है जबकि राजभाषा का प्रयोग प्रायः राजकीय, प्रशासनिक तथा सरकारी-अर्द्धसरकारी कर्मचारियों-अधिकारियों द्वारा किया जाता है। राजभाषा विविध प्रकार के राजकीय कार्यकलापों की अभिव्यक्ति का माध्यम होती है एवं राष्ट्रभाषा जनसमुदाय की अभिव्यक्ति का माध्यम होती है।


10. हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का विचार कहाँ से जन्मा ?


उत्तर- हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का विचार सर्वप्रथम बंगाल में उदित हुआ। बंगाल के मूर्धन्य समाजसुधारक केशवचन्द्रसेन ने सर्वप्रथम सारे देश के लिए एक राष्ट्रभाषा हिंदी की उदार कल्पना प्रस्तुत की। राजनीतिक संस्था कांग्रेस ने आगे चलकर इस दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।


11. राष्ट्रभाषा सम्मेलन में क्या निर्णय लिया गया ?


उत्तर- 1930 के कांग्रेस अधिवेशन में आयोजित राष्ट्रभाषा सम्मेलन में स्वीकार किया गया कि देश का अन्तप्र्रान्तीय कार्य राष्ट्रभाष हिंदी में ही होना उचित एवं हितकारी है।


12. राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रचार-प्रसार में किन संस्थाओं ने अहम् भूमिका निभाई ?


उत्तर- काशी नोगरी प्रचारिणी सभा हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, राष्ट्रभाषा प्रचार सीमित, वर्धा आदि संस्थाओं ने राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


13. संविधान सभा में राजभाषा संबंधी भाग को कब स्वीकार किया गया ?

उत्तर- डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में संविधान सभा ने 14 सितम्बर, 1949 को राजभाषा संबंधी भाग को स्वीकृति प्रदान की। इसी दिन से हिंदी भारत की राजभाषा बनी।

14. राजभाषा संबंधी उपलब्ध क्या है ?


उत्तर- भारतीय संविधान के भाग 5, 6 और 17 में राजभाषा संबंधी उपबंध है। इसके भाग 17 का शीर्षक ही ’राजभाषा’ है। इस भाग में चार अध्याय है, जो क्रमशः संघ की भाषा, प्रादेशिक भाषाएँ, उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों की भाषा तथा विशेष निर्देश से संबंधित है। ये चारों अध्याय अनुच्छेद 343 से 351 के अन्तर्गत आते हैं।


15. भारतीय संविधान में राजभाषा-संबंधी प्रमुख प्रावधानों एवं उपबंधों को कितने वर्गों में बाँटा गया है ?

उत्तर- भारतीय संविधान में राजभाषा संबंधी प्रमुख प्रावधानों एवं उपबंधों को चार वर्गों में बाँटा गया है-

(ख) विधान मण्डल में प्रयुक्त होने वाली भाषा।

(ग) संघ की राजभाषा।

(घ) विधि-निर्माण और न्यायालयों में प्रयुक्त होने वाली भाषा।


16. संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित भारतीय भाषाएँ कौनसी है ?


उत्तर- संविधान की आठवीं अनुसूची में पहले केवल चैदह भाषाएँ शामिल की गई थी, बाद में ’सिंधी’ भाषा को जोङने से पंद्रह भाषाएँ हो गई। अगस्त, 1992 में एक संशोधन के द्वारा कोंकणी, नेपाली और मणिपुरी भाषाओं को जोङकर अठारह भाषाएँ कर दी गई। 2004 में इस सूची में चार भाषाएँ और जोङी गई हैं- डोगरी, मैथिली, संथाली और बोडो। वर्तमान में आठवीं अनुसूची में स्वीकृत भाषाओं की संख्या 22 है।


17. संविधान के भाषा संबंधी अनुच्छेदों में कौनसे दो महत्वपूर्ण संशोधन हुए ?


उत्तर- संविधान के राजभाषा संबंधी अनुच्छेदों में पहला संशोधन 1956 में हुआ, जब अनुच्छेद 350 में 350 (क) जोङा गया और प्राथमिक स्तर पर मात भाषा में शिक्षा की सुविधा उपलब्ध कराने पर बल दिया गया। दूसरे संशोधन द्वारा 350 (ख) जोङकर भाषायी अल्पसंख्यकों के लिए राष्ट्रपति द्वारा विशेष अधिकारी नियुक्त करने की बात की गई।



उत्तर- राष्ट्रपति ने 7 जून, 1955 ई. को अनुच्छेद 344 (1) के अनुसरण में राजभाषा आयोग के गठन का आदेश जारी किया, जिसके अध्यक्ष श्री बी.जी. खरे थे तथा इसमें संविधान की 8 वीं अनुसूची में दर्ज विभिन्न भारतीय भाषाओं के बीस अन्य सदस्य भी शामिल थे।

19. राजभाषा संसदीय समिति का गठन कब और क्यों किया गया ?


उत्तर- राजभाषा संसदीय समिति का गठन 1956 में राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 344 (4) और 345 (5) के अनुसरण में किया गया। इसके तीस सदस्यों में से 20 लोकसभा के व 10 राज्यसभा के सदस्य थे। पं. गोविन्दवल्लभ पंत इस समिति के अध्यक्ष बनाये गये। राजभाषा आयोग द्वारा 1956 में प्रस्तुत रिपोर्ट पर विचार करने एवं उनकी सिफारिशों की जाँच करने के लिये इसका गठन किया गया।


उत्तर- 10 मई, 1963 को संसद ने राजभाषा अधिनियम पारित किया, जिसमें कुल नौ धाराएँ हैं।

21. राजभाषा संकल्प क्या है ?


उत्तर- राजभाषा संकल्प दिसम्बर, 1967 में दोनों सदनों के द्वारा पारित वह संकल्प हैं जिसे 18 जनवरी, 1968 के राजपत्र में अधिसूचित किया गया। इसमें राजभाषा हिंदी के विकास एवं प्रसार से संबंधित संकल्प किये गये। यह संकल्प कोई नियम, अधिनियम या कानूनी आदेश नहीं है बल्कि एक सिफारिश मात्र है।


22. मानक भाषा से आप क्या समझते है ?

उत्तर- मानक भाषा से अभिप्राय भाषा के व्याकरणसम्मत, शुद्ध परिनिष्ठित एवं परिमार्जित रूप से है। इस स्थान पर पहुँचने के लिए भाषा को कई प्रक्रियाओं से गुजरना पङता है।


23. मानक भाषा के चार अभिलक्षण कौनसे है ?


उत्तर- मानक भाषा के चार अभिलक्षण हैं –

(। ) मानकीकरण, अर्थात् मान्य प्रयोगों को निर्धारित करने के लिए नियमों का कोडीकरण।

(।। ) स्वायतत्ता, अर्थात् भाषा का अपनेह्यप्रयोजन और प्रकार्य में विशिष्ट और स्वतंत्र होना।

(।।। ) ऐतिहासिकता, अर्थात् भाषा का कालक्रम के संदर्भ में सहज और सामान्य रूप में विकसित होना।

(4) जीवन्तता, अर्थात् समाज में प्रत्येक क्षेत्र में प्रयुक्त होना और निरन्तर विकासमान होना।


24. हिन्दी भाषा के मानकीकरण की आवश्यकता क्यों पङी ?

उत्तर- हिंदी एक विस्तृत भू-भाग की भाषा है। समय के साथ-साथ हिंदी पर देशी भाषाओं के साथ-साथ अरबी, फारसी, तुर्की तथा अँग्रेजी भाषाओं का बहुमुखी प्रभाव पङा। इस प्रभाव के कारण तथा हिंदी के बढ़ते हुए राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय दायित्वों के कारण हिंदी के मानकीकरण की आवश्यकता महसूस की गई।


25. डाॅ. भोलानाथ तिवारी ने मानकीकरण की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए किन चार चरणों की चर्चा की है ?

(। ) भाषा के विविध क्षेत्रीय रूपों में से किसी एक रूप का चयन करना, जिसका आधार उस रूप का देश की राजधानी के समीप बोला जाना होता है।

(।। ) प्रसार

(।।। ) प्रयोग

(५) भाषा विशेष के सभी लोगों की स्वीकृति मिलना।


26. देवनागरी लिपि के सुधार के लिये सर्वप्रथम कौनसा फांट बनाया गया ?

उत्तर- 1926 में सर्वप्रथम लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 190 टाइपों का एक फांट बनाया, जिसे ’तिलक फांट’ कहते हैं।

27. स्वरों की बारहखङी किसने तैयार की ?


उत्तर- सावरकर बंधुओं ने स्वरों की बारहखङी तैयार की। अ, आ, अइ, अई, अउ, अऊ, अए, अऐ, ओ, औ। महात्मा गाँधी ने ’हरिजन सेवक’ पत्र में कई वर्ष तक इसी बारहखङी का प्रयोग किया।


28. देवनागरी लिपि के सुधार की प्रक्रिया में डाॅ. श्याम सुन्दर दास का क्या सुझाव रहा ?


उत्तर– डाॅ. श्याम सुन्दर दास ने सुझाव दिया कि ङ्, ´् के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग किया जाये। यथा-अङ्क के स्थान पर अंक एवं म´्च के स्थान पर मंच लिखा जाए।



उत्तर- हिंदी साहित्य सम्मेलन, 1935 में इन्दौर में आयोजित किया गया, जिसमें राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के सभापतित्व में ’नागरी लिपि सुधार समिति’ बनाई गई, जिसके संयोजक काका कालेलकर थे।


30. काका कालेलकर की अध्यक्षता में गठित ’लिपि सुधार समिति’ ने क्या सुझाव दिये ?


उत्तर- काका कालेलकर की अध्यक्षता में गठित लिपि सुधार समिति ने निम्नलिखित सुधार दिए –

(। ) लिखने में भले ही शिरोरेखा न हो किन्तु छपाई में रहनी चाहिए। ’अ’ की बारहखङी स्वीकार की जाये।


(।।। ) अ, झ, ण को मान्यता मिले।

(।अ) रेफ को भी अलग से व्यंजन के बाद लगाया जाये।


31. आचार्य नरेन्द्र देव समिति का गठन कब और क्यों किया गया ?


उत्तर- आचार्य नरेन्द्रदेव समिति का गठन 1947 में उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा आचार्य नरेन्द्रदेव की अध्यक्षता में किया गया। इस समिति का उद्देश्य पूर्ववर्ती समितियों के सभी सुझावों का गहन अध्ययन करना तथा अपने सुझाव प्रस्तुत करना था।


32. आचार्य नरेन्द्र देव की लिपि सुधार समिति ने क्या सुधार प्रस्तुत किये ?

उत्तर– आचार्य नरेन्द्र देव की लिपि सुधार समिति ने पूर्ववर्ती सुझावों का अध्ययन कर निम्नलिखित सुझाव दिये –

(। ) ’अ’ की बारहखङी भ्रामक है।

(।। ) मात्राएँ यथास्थान बनी रहें किन्तु उन्हें थोङा दाहिनी ओर हटाकर लगाया जाये।

(।।। ) अनुस्वार के स्थान पर सर्वत्र शून्य तथा खङी पाई वाले व्यंजनों को छोङकर संयोग में हलन्त चिन्ह् लगाया जाये।

(।अ) ’ळ’ को वर्णमाला में स्थान मिले।

(अ) ’र’ को सर्वत्र ’र’ ही लिखा जाये जैसे -प्रेम-प्रेम, त्रुटि-त्रुटि।

(अ।) विविध वर्णों तथा क्ष, त्र, द्य की वर्णमाला से हटा दिया जाए। क्ष के स्थान पर क्श, त्र के स्थान पर त्र तथा द्य के स्थान पर द्य लिखा जाए


33. 1953 में लखनऊ परिषद की बैठक में क्या सुझाव दिये गये ?

उत्तर- 1953 में डाॅ. राधाकृष्णन् की अध्यक्षता में लखनऊ में सम्पन्न हुई परिषद की बैठक में निम्नलिखित निर्णय लिये गये –

(। ) हृस्व ’इ’, मात्रा ( ि) और ख, ध, भ, छ के स्थान पर क्रमशः छोटी इ, बङी ’इ’ मात्रा ( ी), ख, ध, भ, छ को अपनाया जाये।

(।। ) संयुक्त वर्णों के स्वतंत्र चिन्हों को छोङकर शेष वर्णों को मिलाकर ही लिखा जाए।


34. देवनागरी लिपि के मानकीकरण के मार्ग में आज कौनसी बाधाएँ हैं ?


उत्तर- देवनागरी लिपि के मानकीकरण के मार्ग में आज की निम्नलिखित बाधाएँ हैं –

(। ) लेखन में दो प्रकार के अक्षरों का प्रचलन।

(।। ) अंकों में द्विरूपता।

(।।।) अनुस्वार और चन्द्रबिन्दु के प्रयोग में निश्चित नियम का अभाव

(।अ) मात्राओं में द्विरूपता, जैसे-गैया-गइया।

हिंदी प्रश्नोतर -7

 

          हिंदी प्रश्नोतर -7


(1) भाषाई आधार पर सर्वप्रथम किस राज्य का गठन हुआ ?

(A)आंध्रप्रदेश ✓      (B)पंजाब

(C) राजस्थान          (D)जम्मू कश्मीर


(2) मगही किस भाषा की उपबोली है ?

(A)राजस्थानी ✓    (B)पश्चिमी हिन्दी

(C)पूर्वी हिन्दी        (D)बिहारी 


( 3 ) निम्न मे से कौन सी भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती है ?

(A)सिंधी    (B)उडिया  (C)गुजराती (D) मराठी ✓


(4) दक्षिणी भारत मे हिन्दी प्रचार सभा का मुख्यालय कहॉ पर स्थित है ?

(A)मैसूर  (B)चेन्नई ✓ (C)बंगलोर  (D) हैदराबाद 

 

(5) महेन्द्र का सन्धि विच्छेद क्या है ?

(A)महो+इन्द्र     (B)महा+इन्द्र✓

(C)महे+इन्द्र    (D)इनमें से कोई नहीं 


(6) निम्न मे से कौन सी भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती है ?

(A)सिंधी  (B)उडिया  (C)गुजराती   (D)मराठी ✓


(7) कवर्ग का उच्चारण-स्थान है ?

(A) मूर्धा   (B) दन्त   (C) ओष्ठ  (D) कण्ठ ✓


(8) इनमें से कौन सा शब्द संज्ञा से बना हुआ विशेषण है?

(A)इच्छुक✓  (B) प्यास  (C)पशु  (D)सन्तोष 


(9) कौन सा शब्द संस्कृत से तद्भव बनाया गया है ?

(A)बच्चा✓   (B)वच्छ    (C) (A) और (B) दोनों 


(10) दक्षिणी भारत मे हिन्दी प्रचार सभा का मुख्यालय कहॉ पर स्थित है ?

(A)मैसूर  (B)चेन्नई✓  (C)बंगलोर    (D) हैदराबाद 


(11) इनमें से कौन विधेय-विशेषण है ?

(A) मेरा लड़का आलसी है।

(B)सतीश सुंदर लड़का है।✓

 (C) (A) और (B) दोनों

 (D) इनमें से कोई नहीं 

 

(12) हिन्दी भाषा का जन्म कहाँ हुआ है ?

(A) उत्तरभारत✓     (B)आंध्रप्रदेश

(C)जम्मू कश्मीर   (D) इनमें से कोई नहीं 


(13) इनमें से किस शब्द में लिंगप्रत्यय-संबंधी अशुद्धियाँ है?

(A)अनाथा    (B)गायिका

 (C)गोपी      (D)नारि ✓


(14) इनमें से अल्पविराम कौन सा है ?

(A)वह रोज आता है✓    (B)यह हाथी है।

(C)धीरे-धीरे            (D)इनमें से कोई नहीं 


(15) संज्ञा के कितने भेद है ?

(A)दस     (B)पाँच✓

(C)सात      (D)आठ 


(16) खटमल शब्द  है ?

(A)पुंलिंग✓     (B)स्त्रीलिंग

(C)उभयलिंग     (D)इनमें से कोई नहीं 


(17)श्याम सोता है यह कौन सी क्रिया है ?

(A)अकर्मक क्रिया✓      (B)सकर्मक क्रिया

(C)(A) और (B) दोनों   (D)इनमें से कोई नहीं 


(18) इनमें से कौन सी शब्द देशज है ?

(A)चिड़ियाँ✓     (B)कीमत

(C)(A) और (B) दोनों

(D)इनमें से कोई नहीं 


(19) इनमें से हवा का पर्यायवाची कौन है ?

(A)धीर    (B)तनुज  (C) बयार   (D)नाराच ✓


(20) 'मक्खियाँ मारना' मुहावरे का अर्थ बताइए ?

(A)इन्तजार करना    (B)लाभ के बदले हानि

 (C) बेकार बैठे रहना✓    (D)साहसिक कार्य 


(21) इनमें से कौन-सी युग्म शब्द गलत है ?

(A)नगर- शहर      (B)नशा- मद

 (C)नारी- स्त्री       (D)निसान- चिह्न ✓


(23 ) इनमें से अर्थ के अनेकार्थक शब्द क्या है ?

(A)कारण, मतलब, धन✓   (B) सत्य, जल, धर्म

 (C) सूर्य, प्रिय, सहयोगी     (D)रहित, दीन, उद्देश्य 


हिन्दी प्रश्न उत्तर -5 & 6


       हिन्दी प्रश्न उत्तर -5 

1. ‘अतीत के चलचित्र’ के रचयिता कौन हैं? – महादेवी वर्मा

2. ‘अशोक के फूल’ (निबंध सग्रह) के रचनाकार कौन हैं? – हज़ारी प्रसाद द्विवेदी

3. ‘अष्टछाप’ के सर्वश्रेष्ठ भक्त कवि कौन हैं? – सूरदास

4. ‘आँसू’ (काव्य) के रचयिता कौन हैं? – जयशंकर प्रसाद

5. ‘एक नार पिया को भानी। तन वाको सगरा ज्यों पानी।’ यह पंक्ति किस भाषा की है? – ब्रजभाषा

6. ‘कामायनी’ किस प्रकार का ग्रंथ है? – महाकाव्य

7. ‘गागर में सागर’ भरने का कार्य किस कवि ने किया है? – बिहारीलाल

8. ‘गाथा’ (गाहा) कहने से किस लोक प्रचलित काव्यभाषा का बोध होता है? – प्राकृत

9. ‘घनिष्ठ’ की शुद्ध उत्तरावस्था क्या है? – घनिष्ठतर

10. ‘चारु’ शब्द की शुद्ध भावात्मक संज्ञा क्या है? – चारुता

11. ‘चिंतामणि’ के रचयिता कौन हैं? – रामचन्द्र शुक्ल

12. ‘जो अपनी जान खपाते हैं, उनका हक उन लोगों से ज़्यादा है, जो केवल रुपया लगाते हैं।’ यह कथन ‘गोदान’ के किस पात्र द्वारा कहा गया है? – महतो

13. ‘जो जिण सासण भाषियउ सो मई कहियउ सारु। जो पालइ सइ भाउ करि सो तरि पावइ पारु॥’ इस दोहे के रचनाकार का नाम क्या है? – देवसेन

14. ‘झरना’ (काव्य संग्रह) के रचयिता कौन हैं? – जयशंकर प्रसाद

15. ‘दुरित, दुःख, दैन्य न थे जब ज्ञात, अपरिचित जरा-मरण-भ्रू पात।।’ इस पंक्ति के रचनाकार कौन हैं? – सुमित्रानंदन पंत

16. ‘देखन जौ पाऊँ तौ पठाऊँ जमलोक हाथ, दूजौ न लगाऊँ, वार करौ एक करको।’ ये पंक्तियाँ किस कवि द्वारा सृजित हैं? – नाभादास

17. ‘दोहाकोश’ के रचयिता कौन हैं? – सरहपा

18. ‘नमक का दरोगा’ कहानी के लेखक कौन हैं? – प्रेमचंद

19. ‘नागनंदा’ नामक संस्कृतनटक की रचना किस शासक ने की? – हर्षवर्धन ने

20. ‘नाट्यशास्त्र’ की रचना किसने की? – भरत मुनि

21. ‘निराला के राम तुलसीदास के राम से भिन्न और भवभूति के राम के निकट हैं।’ यह कथन किस हिन्दी आलोचक का है? – डॉ. रामविलास शर्मा

22. ‘निरुत्तर’ शब्द का शुद्ध सन्धि विच्छेद क्या है? – निः+उत्तर

23. ‘निशा -निमंत्रण’ के रचनाकार कौन हैं? – हरिवंश राय बच्चन

24. ‘पंचवटी’ कौन-सा समास है? – द्विगु

25. ‘पद्मावत’ किसकी रचना है? – मलिक मुहम्मद जायसी

26. ‘परहित सरिस धर्म नहि भाई, परपीड़ा सम नहिं अधमाई’। इस पंक्ति के रचयिता कौन हैं? – तुलसीदास

27. ‘पल्लव’ के रचयिता कौन हैं? – सुमित्रानंदन पंत

28. ‘पवित्रता की माप है मलिनता, सुख का आलोचक है दुःख, पुण्य की कसौटी है पाप।’ यह कथन ‘स्कन्दगुप्त’ नाटक के किस पात्र का है? – देवसेना

29. ‘प्रगतिवाद उपयोगितावाद का दूसरा नाम है।’ यह कथन किसका है? – नन्द दुलारे बाजपेयी

30. ‘प्रभातफेरी’ काव्य के रचनाकार कौन हैं? – नरेन्द्र शर्मा

31. ‘प्रिय दर्शिका’ नामक संस्कृत ग्रंथ की रचना किस शासक ने की? – हर्षवर्धन ने

32. ‘प्रेमसागर’ के रचनाकार कौन हैं? – लल्लू लालजी

33. ‘बाँगरू’ बोली का किस बोली से निकट सम्बन्ध है? – खड़ीबोली

34. ‘बैताल पच्चीसी’ के रचनाकार कौन हैं? – सूरति मिश्र

35. ‘भक्तमाल” भक्तिकाल के कवियों की प्राथमिक जानकारी देता है, इसके रचयिता कौन थे? – नाभादास

36. ‘भरहूत स्तूप’ का निर्माण किसने कराया? – पुष्यमित्र शुंग ने

37. ‘भारत भारती’ (काव्य) के रचनाकार कौन हैं? – मैथिलीशरण गुप्त

38. ‘मनुष्य के आचरण के प्रवर्तक भाव या मनोविकार ही होते हैं, बुद्धि नहीं।’ यह कथन किसका है? – रामचन्द्र शुक्ल का

39. ‘रस मीमांसा’ रस-सिद्धांत से सम्बन्धित पुस्तक है, इस पुस्तक के लेखक कौन हैं? – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

40. ‘रानी केतकी की कहानी’ की भाषा को क्या कहा जाता है? – खड़ीबोली

41. ‘रामचरितमानस’ में कितने काण्ड हैं? – 7

42. ‘रामचरितमानस’ में प्रधान रस के रूप में किस रस को मान्यता मिली है? – भक्ति रस

43. ‘लहरें व्योम चूमती उठती। चपलाएँ असंख्य नचती।’ पंक्ति जयशंकर प्रसाद के किस रचना का अंश है? – कामायनी

44. ‘शिवा बावनी’ के रचनाकार कौन हैं? – भूषण

45. ‘संस्कृति के चार अध्याय’ किसकी रचना है? – रामधारी सिंह ‘दिनकर’

46. ‘साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप’। इस पंक्ति के रचयिता कौन हैं? – कबीर

47. ‘सुन्दर परम किसोर बयक्रम चंचल नयन बिसाल। कर मुरली सिर मोरपंख पीतांबर उर बनमाल॥ ये पंक्तियाँ किस रचनाकार की हैं? – सूरदास

48. ‘सुहाग के नूपुर’ के रचयिता कौन हैं? – अमृतलाल नागर

49. ‘हरिश्चन्द्री हिन्दी’ शब्द का प्रयोग किस इतिहासकार ने अपने इतिहास ग्रंथ में किया है? – रामचन्द्र शुक्ल

50. ‘हितोपदेश’ की रचना किसने की? – नारायण पंडित

51. ‘हिन्दी साहित्य का अतीत: भाग- एक’ के लेखक का क्या नाम है? – डॉ. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र

52. ‘कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय’ में कौन-सा अलंकार है? – यमक

53. ‘पृथ्वीराज रासो’ के रचनाकार कौन हैं? – चन्दबरदाई

54. अंकोरवाट कहाँ स्थित है? – कंबोडिया


हिन्दी प्रश्नोतर - 6

‘रामचरितमानस’ के इन कांडों का सही क्रम है :

A) किष्किंधाकांड – अरण्यकांड – सुंदरकांड – लंकाकांड

B) अरण्यकांड – किष्किंधाकांड – सुंदरकांड – लंकाकांड✔

C) सुंदरकांड – लंकाकांड – किष्किंधाकांड – अरण्यकांड

D) लंकाकांड – सुंदरकांड – किष्किंधाकांड – अरण्यकांड


2. निम्नलिखित आचार्यों का सही कालक्रम है :

A) सुकरात – प्लेटो – अरस्तू – होरेस✔

B) प्लेटो – सुकरात – होरेस – अरस्तू

C) अरस्तू – सुकरात – प्लेटो – होरेस

D) होरेस – अरस्तू – सुकरात – प्लेटो


3. कालक्रमानुसार इन कहानियों का सही वर्ग बताइए :

A) उसने कहा था – दुलाईवाली – टोकरी भर मिट्टी – रानी केतकी की कहानी

B) दुलाईवाली – उसने कहा था – रानी केतकी की कहानी – टोकरी भर मिट्टी

C) रानी केतकी की कहानी – टोकरी भर मिट्टी – दुलाईवाली – उसने कहा था✔

D) टोकरी भर मिट्टी – रानी केतकी की कहानी – दुलाईवाली – उसने कहा था


4. प्रकीशन के आधार पर प्रेमचंद के उपन्यासों का सही क्रम है :

A) सेवासदन – प्रेमाश्रम – गबन – गोदान✔

B) प्रेमाश्रम – सेवासदन – गोदान – गबन

C) गबन – गोदान – सेवासदन – प्रेमाश्र

D) सेवासदन – प्रेमाश्रम – गोदान – गबन


5. कालक्रम के अनुसार निराला की रचनाओं का सही क्रम है :

A) गीतिका – परिमल – कुकुरमुत्ता – गीतगुंज

B) गीतगुंज – कुकुरमुत्ता – गीतिका – परिमल

C) परिमल – गीतिका – कुकुरमुत्ता – गीतगुंज✔

D) कुकुरमुत्ता – गीतगुंज – परिमल – गीतिका


6. प्रकाशन के क्रमानुसार ‘प्रसाद’ जी के कहानी संग्रहों का सही क्रम है :

A) प्रतिध्वनि – छाया – आकाशदीप – इंद्रजाल

B) छाया – प्रतिध्वनि – आकाशदीप – इंद्रजाल

C) इंद्रजाल – छाया – प्रतिध्वनि – आकाशदीप

D) आकाशदीप – प्रतिध्वनि – छाया – इंद्रजाल


7. कालक्रमानुसार समीक्षा से संबंधित कृतियों का सही वर्ग है :

A) कालिदास की लालित्य योजना – कालिदास की निरंकुशता – कालिदास का भारत – कविकुल गुरु

B) कविकुल गुरु – कालिदास का भारत – कालिदास की निरंकुशता – कालिदास की लालित्य योजना

C) कालिदास की निरंकुशता – कालिदास का भारत – कविकुल गुरु – कालिदास की लालित्य योजना✔

D) कालिदास का भारत – कविकुल गुरु – कालिदास की लालित्य योजना – कालिदास की निरंकुशता


8. हिंदीतर प्रदेशों के इन रचनाकारों का कालक्रमानुसार सही वर्ग है :

A) सेनापति – भूषण – पद्माकर – रंगेय राघव✔

B) रंगेय राघव – भूषण – सेनापति – पद्माकर

C) पद्माकर – रंगेय राघव – भूषण – सेनापति

D) सेनापति – पद्माकर – रंगेय राघव – भूषण


9. निम्नलिखित कवियों को उनकी कृतियों के साथ सुमेलित कीजिए –

1) सत्यनारायण कविरत्न   i) गंगालहरी

2) जगन्नाथदास रत्नाकर   ii) वीर सतसई

3) रामचरित उपाध्याय  iii) भ्रमरदूत

4) वियोगी हरि       iv) देवदूत


a b c d

(A) ii iii i iv

(B) iii i iv ii✔

(C) iii iv ii i

(D) i iv ii iii


10. निम्नलिखित नाटकों के साथ उनके पत्रों को सुमेलित कीजिए –

1) अंधेर नगरी           i) चाणक्य

2) कोर्ट मार्शल           ii) सुरेखा

3) द्रौपदी                  iii) रामचन्दर

4) कौमुदी महोत्सव     iv) नारायण दास


a b c d

(A) iv iii ii i✔

(B) iii i ii iv

(C) iii iv ii i

(D) i iv ii iii

हिन्दी प्रश्नोत्तर 3 & 4



        हिन्दी प्रश्नोत्तर  3 


1. ’हम राज्य लिये मरते हैं’ किसकी काव्य-पंक्ति है?

उत्तर——– मैथिलशरण गुप्त

2. ’हिन्दी व्याकरण’ किसकी रचना है?

उत्तर——– कामताप्रसाद गुरु

3.’हिन्दी शब्दानुशासन’ किसने लिखा है?

उत्तर——– किशोरीदास वाजपेई

4.’हिन्दी भाषा का उद्भव और विकास’ किसकी रचना है?

उत्तर——– उदय नारायण तिवारी

5. ’देवीदीन’ मुंशी प्रेमचन्द के किस

उपन्यास का पात्र है?

उत्तर——– गबन

6. ’प्रैक्टिकल क्रिटिसिज्म’ किसका ग्रन्थ है?

उत्तर——– रिचर्ड्स

7. ’सेक्रेड वुड’ किसकी रचना है?

उत्तर——– टी.एस. इलियट

8. ’लिरिकल बैलेडस’ किसने लिखा है?

उत्तर——– विलियम वर्ड्सवर्थ

9. ’पोयटिक्स’ किसकी कृति है?

उत्तर——– अरस्तू

10. ’जात पांत पूछै नहिं कोई’ किसकी पंक्ति है?

उत्तर——– रामानन्द

11. ’प्रेम प्रेम ते होय प्रेम ते पारहिं पइए’ पंक्ति के

रचनाकार कौन हैं?

उत्तर——– सूरदास

12. ’आधुनिक काल में गद्य का आविर्भाव सबसे प्रधान

घटना है’ किसका कथन है?

उत्तर——– आचार्य रामचन्द्र शुक्ल


हिन्दी प्रश्नोत्तर  -4 



1-हिंदी साहित्य का इतिहास दर्शन किसका है

1-विश्वनाथ

2-सुमनराजे

3-नलिन विलोचन शर्मा✅


2-हिंदी साहित्य का आधा इतिहास किसका है

1-सुमन राजे✅

2- बच्चन सिंह

3-नलिन विलोचन शर्मा


3-हिंदी साहित्य का बृहद इतिहास कितने खंडों में है

1-12

2-14

3-17

4- 16✅


4-विद्यापति की पदावली में किस रास की प्रधानता है

1- श्रृंगार✅

2-शांत

3-वात्सल्य


5-अवधूत मत का पर्यायवाची शब्द है

1-सिद्ध

2-नाथ✅

3-जैन


6-जैन साहित्य में रामकथा किस नाम से स्वयम्भू द्वारा लिखी गई है

1-पउमचरिउ✅

2-रामचरित

3-महापुराण


7-मैथली हिंदी में रचित ग्रन्थ का नाम बताएं

1-पदावली✅

2-रौलवेल

3-प्राकृत पैंगलं


8- इनमे से रासो को अर्ध प्रामाणिक रचना माना है

1-कविराज श्यामलदास

2-हजारी✅

3-शुक्ल


9-ब्रजभाषा कवि नंददास के किस काव्य ग्रंथ पर प्रेमाख्यानों का प्रभाव है

1-रसमंजरी

2-रूपमंजरी✅

3-भवर गीत


10-किस सूफी प्रेमाख्यान की रचना 1503 ईसवी में कई गई

1-पदमावत

2-मृगावती✅

3-मधुमालती


11-कामदेव की स्तुति किस प्रेमाख्यान ग्रंथ में है

1-पद्मबत

2-हंसावली

3-माधबनाल काम कंदला✅


12-पद्मावती के पिता का नाम था

1-गंधर्ब सेन✅

2-रत्न सेन

3-कुमारसेन


13-हरड़े बानी का सम्पादन किया

1-गरीबदास, निस्किनद दास

2-संतदास,जगन्नाथ दास✅

3-इनमे से कोई नही


14-कवीर ने वैष्णव सम्प्रदाय से क्या ग्रहण किया

1-प्रेमतत्व

2-अहिंसाबाद

3-अहिंसा का तत्व✅


15-पुष्टिमार्ग की स्थापना की

1- वल्लभाचार्य✅

2-विट्ठलनाथ

3-रामानुजाचार्य


16-रसखान के दीक्षा गुरु है

1- विट्ठलनाथ ✅

2-बल्लभचार्य

3-माधवाचार्य


17-भ्रमर गीत में कौन सा रस प्रमुख है

1-श्रृंगार

2-संयोग श्रृंगार

3-वियोग श्रंगार✅


18-जानकी मंगल किस भाषा मे रचित ग्रंथ है

1-अवधि✅

2-ब्रजभाषा

3-बुंदेली


19-हरिहर वापट की रचना का नाम है

1-पौरेषय रामायण✅

2-आध्यात्म रामायण

3-बांग्ला रामायण


20-इनमे से अग्रदास के गुरु है

1-कृष्ण दास पयहारी✅

2-रामानंद 

3-राघवानंद


21- रामायण महानाटक के रचयता है

1-हृदयराम

2-रामानंद

3-प्राणचंद चौहान✅


22प्रसन्नराघव के रचयिता कवि कौन है

भभूत

 जयदेव ✅

कालिदास 

विश्वनाथ


 23गदाधर भट्ट किस संप्रदाय के कवि हैं

चेतन संप्रदाय ✅

सखी संप्रदाय

 बल्लभ संप्रदाय

केशवदास कृत 


24रस निरूपक ग्रंथ इन में से कौन सा है

रामचंद्रिका 

विज्ञान गीता 

रसप्रिया✅

हिन्दी प्रश्नोत्तर -1 & 2

 


    हिन्दी प्रश्नोत्तर -1 

                                                              

प्रश्‍न – (1) वर्णो के समूह को कहते है।

उत्‍तर – शब्‍द


प्रश्‍न – (2) विस्‍तृत तथ्‍यों को संक्षिप्‍त में लिखना कहलाता है।

उत्‍तर – सारांश


प्रश्‍न - (3) ‘सुवाच्‍य‘ का सही अर्थ है।

उत्‍तर – सुपठनीय लेख


प्रश्‍न - (4) शिक्षण की श्रेष्‍ठ प्रविधि है।

उत्‍तर – प्रश्‍न प्रविधि


प्रश्‍न - (5) शब्‍द भण्‍डार में वृद्धि करने की प्रमुख विधि है।

उत्‍तर – वार्तालाप


प्रश्‍न - (6) बाल्‍यावस्‍था में भाषा सीखने का मुख्‍य आधार होता है।

उत्‍तर – अनुसरण


प्रश्‍न - (7) दु:ख की अनुभूति पर वाचक का स्‍वर भारी होना है।

उत्‍तर – ध्‍वनिवश्‍यता


प्रश्‍न - (8) ‘ कामायनी ’ किसकी प्रसिद्ध रचना है।

उत्‍तर – जयशंकर प्रसाद


प्रश्‍न – (9) ‘ गीतांजलि ’ के रचनाकार है।

उत्‍तर – रवीन्‍द्रनाथ टैगोर


प्रश्‍न – (10) ‘ गोदान ’ के लेखक है।

उत्‍तर – मुंशी प्रेमचन्‍द      


प्रश्‍न – (11) जो धातु या शब्‍द के अंत में जोडा जाता है। उसे क्‍या कहते है।

उत्‍तर – प्रत्‍यय


प्रश्‍न – (12) प्रख्‍यात में कौन सा उपसर्ग है।

उत्‍तर – प्र


प्रश्‍न – (13) हिन्‍दी में ‘कृत’ प्रत्‍ययों की संख्‍या कितनी है।

उत्‍तर – 42


प्रश्‍न – (14) ‘पुरोहित’ शब्‍द में प्रयुक्‍त उपसर्ग है।

उत्‍तर – पुर:


प्रश्‍न – (15) ‘संस्‍कार’ शब्‍द में प्रयुक्‍त उपसर्ग है।

उत्‍तर – सम्


प्रश्‍न – (16) ‘विज्ञान’ शब्‍द में प्रयुक्‍त उपसर्ग है।

उत्‍तर – वि


प्रश्‍न – (17) ‘चिरायु’ शब्‍द में प्रयुक्‍त उपसर्ग है।

उत्‍तर – चिर


प्रश्‍न – (18) ‘निर्वाह’ शब्‍द में प्रयुक्‍त उपसर्ग है।

उत्‍तर – निर


प्रश्‍न – (19) ‘धुंधला’ शब्‍द में प्रयुक्‍त प्रत्‍यय है।

उत्‍तर –ला


Part-2 

प्रश्‍न – (1) ‘जिसके पास कुछ भी न हो’ उसे कहते है।

उत्‍तर – अकिंचन


प्रश्‍न – (2) ‘ जो व्‍यतीत हो गया हो ’ उसे कहते है।

उत्‍त्‍र - अतीत


प्रश्‍न – (3) ‘ जिसकी थाह न मिले ’ उसे कहते है।

उत्‍तर – अथाह


प्रश्‍न – (4) ‘ रात में पहरा देने वाला व्‍यक्ति ’ उसे कहते है।

उत्‍तर – यामिक


प्रश्‍न – (5) ‘ जिस वस्‍तु का मूल्‍य न आंका जा सके ’ उसे कहते है।

उत्‍तर – अमूल्‍य


प्रश्‍न – (6) ‘ श्रीगणेश करना ’ मुहावरे का अर्थ है।

उत्‍तर – शुभारम्‍भ करना


प्रश्‍न – (7) ‘ हाथ पैर मारना ’ मुहावरे का अर्थ है।

उत्‍तर – काफी प्रयत्‍न करना


प्रश्‍न – (8) ‘ हाथ मलना ’ मुहावरे का अर्थ है।

उत्‍तर – पछताना


प्रश्‍न – (9) ‘ चेहरे पर हवाइयॉ उडना ’ मुहावरे का अर्थ है।

उत्‍तर – घबराना


प्रश्‍न – (10) ‘ टका – सा मॅुह लेकर रहना ’ मुहावरे का अर्थ है।

उत्‍तर – शर्मिन्‍दा होना


प्रश्‍न – (11) हिन्‍दी खडी बोली किस अपभ्रंस से विकसित हुई है।

उत्‍तर – शौरसेनी


प्रश्‍न – (12) भाषा के आधार पर भारतीय राज्‍यों की पुन: संरचना कब की गई थी।

उत्‍तर – 1956 ई में


प्रश्‍न – (13) भाषाई आधार पर सर्वप्रथम किस राज्‍य का गठन हुआ।

उत्‍तर – आंन्‍ध्र प्रदेश


प्रश्‍न – (14) ‘बघेली’ बोली का संबंध किस उपभाषा से है।

उत्‍तर – पूर्वी हिन्‍दी


प्रश्‍न – (15) भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल भाषाओं की संख्‍या है।

उत्‍तर – 22


प्रश्‍न – (16) हिन्‍दी की आदि जननी है।

उत्‍तर – संस्‍कृत


प्रश्‍न – (17) भाषा की सबसे छोटी इकाई है।

उत्‍तर – वर्ण


प्रश्‍न – (18) हिन्‍दी वर्णमाला में ‘अयोगवाह’ वर्ण कौन से है।

उत्‍तर – अं, अ:


प्रश्‍न – (19) ‘ए’ ‘ऐ’ वर्ण क्‍या कहलाते है।

उत्‍तर – कंठ-तालव्‍य


प्रश्‍न – (20) ‘क’, ‘ग’, ‘ज’, ‘फ’ ध्‍वनियॉ किसकी है।

उत्‍तर – अरबी-फारसी

एकांकी

✍तैत्तिरीयोपनिषत्

  ॥ तैत्तिरीयोपनिषत् ॥ ॥ प्रथमः प्रश्नः ॥ (शीक्षावल्ली ॥ தைத்திரீயோபநிஷத்து முதல் பிரச்னம் (சீக்ஷாவல்லீ) 1. (பகலுக்கும் பிராணனுக்கும் அதிஷ்ட...