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Sunday, April 28, 2024

निर्मला  - कथासार

 


निर्मला  - कथासार



       उदयभानुलाल बनारस के एक प्रसिद्ध वकील थे। उनकी आमदनी अच्छी थी । लेकिन वे बचत करना नहीं जानते थे । जब उनकी बडी लड़की निर्मला के विवाह का वक्त आया तब दहेज की समस्या उठ खडी हुई । बाबू भालचंद्र सिन्हा के ज्येष्ठ पुत्र भुवनमोहन सिन्हा से निर्मला की शादी की बात पक्की हो गई । सौभाग्य से सिन्हा साहब ने दहेज पर जोर नहीं दिया । इससे उदयभानुलाल को राहत मिली । निर्मला केवल पन्द्रह वर्ष की थी। इसलिए विवाह की बात सुनकर उसे भय ही ज्यादा हुआ । एक दिन उसने एक भयंकर स्वप्न देखा । वह एक नदी के किनारे पर खडी थी । एक सुंदर नाव आयी । पर मल्लाह ने निर्मला को उस पर चढ़ने नहीं दिया । फिर एक टूटी-फूटी नाव में उसे जगह मिली । नाव उलट जाती है और निर्मला पानी में डूब जाती है। तभी निर्मला की नींद टूटी ।


निर्मला के विवाह की तैयारियां शुरू हो गयीं । दहेज देने की ज़रूरत न होने से उदयभानुलाल बारातियों का स्वागत धूमधाम से करने के लिए पानी की तरह रुपए खर्च करने लगे । यह बात उनकी पत्नी कल्याणी को पसंद नहीं आयी । इस कारण से पति- पत्नी के बीच में जोरदार वाद-विवाद चला। कल्याणी ने मायके चले जाने की धमकी दी। पत्नी के कठोर वचन से दुखित होकर उदयभानुलाल ने उसे एक सबक सिखाना चाहा। नदी के किनारे पहुंचकर, वहां कुरता आदि छोडकर उन्होंने किसी अन्य शहर में कुछ दिनों के लिए चले जाने का निश्चय किया । लोग समझेंगे कि वे नदी में डूब गए । तब पत्नी की घमंड दूर हो जायेगी। उद्यभानुलाल आधी रात को नदी की ओर चल पडे । एक बदमाश ने, जो उनका पुराना दुश्मन था, उन पर लाठी चलाकर मार गिरा दिया ।

        अब निर्मला के विवाह की जिम्मेदारी कल्याणी पर आ पडी । उसने पुरोहित मोटेराम के द्वारा सिन्हा को पत्र भेजा । वर्तमान हालत को देखकर साधारण ढंग से शादी के लिए स्वीकृति देने की प्रार्थना की । सिन्हा असल में लालची थे । वे उद्यभानुलाल के स्वभाव से परिचित थे । उनका विचार था कि दहेज का इनकार करने पर उससे भी ज्यादा रकम मिल जायेगी । उदयभानुलाल की मृत्यु की खबर सुनकर उनका विचार बदल गया । उनकी स्त्री रंगील बाई को कल्याणी के प्रति सहानुभूति थी । लेकिन पति की इच्छा के विरुद्ध वह कुछ नहीं कर सकी। वेटा भुवनमोहन भी बडा लालची था । वह दहेज के रूप में एक मोटी रकम मांगता था चाहे कन्या में कोई भी ऐब हो ।

       मोटेराम निर्मला के लिए अन्य वरों की खोज करने लगे । अगर लड़का कुलीन या शिक्षित या नौकरी में हो तो दहेज अवश्य मांगता था । आखिर मन मारकर कल्याणी ने निर्मला के लिए लगभग चालीस साल के वकील तोताराम को वर के रूप में चुन लिया । वे काफ़ी पैसेवाले थे । उन्होंने दहेज की मांग भी नहीं की।


निर्मला का विवाह तोताराम से हो गया । उनके तीन लड़के थे मंसाराम, जियाराम, सियाराम । मंसाराम सोलह बरस का था । वकील की विधवा बहिन रुक्मिणी स्थाई रूप से उसी घर में रहती थी । तोताराम निर्मला को खुश रखने के लिए सब तरह के प्रयत्न करते थे । अपनी कमाई उसीके हाथ में देते थे । लेकिन निर्मला उनसे प्रेम नहीं कर सकी; उनका आदर ही कर सकी । रुक्मिणी बात-बात में निर्मला की आलोचना और निन्दा करती थी । लड़कों को निर्मला के विरुद्ध उकसाती थी । एक बार निर्मला ने तोताराम से शिकायत की तो उन्होंने सियाराम को पीट दिया । -

     निर्मला समझ गयी कि अब अपने भाग्य पर रोने से कोई लाभ नहीं है । अतः वह बच्चों के पालन-पोषण में सारा समय बिताने लगी । मंसाराम से बातें करते हुए उसे तृप्ति मिल जाती थी । निर्मला पर प्रभाव डालने के लिए तोताराम रोज अपने साहसपूर्ण कार्यों का वर्णन करने लगे जो असल में झूठ थे। एक दिन उन्होंने बताया कि घर आते समय तलवार सहित तीन डाकू आ गए और उन्होंने अपनी छडी से उनको भगा दिया । तभी रुक्मिणी आकर बोली कि कमरे में एक सांप घुस गया है । तुरंत तोताराम भयभीत  होकर घर से बाहर निकल गए । निर्मला समझ गयी कि मुंशी जी क्या चाहते हैं। उसने पत्नी के रूप में अपने को कर्तव्य पा मिटा देने का निश्चय किया ।


निर्मला अब सज-धजकर रहने और पति से हंसकर बातें करने लगी । लेकिन जब मुंशी जी को मालूम हुआ कि वह मंसाराम से अंग्रेज़ी सीख रही है तब वे सोचने लगे कि शायद इसीलिए आजकल निर्मला प्रसन्न दीखती है । उनके मन में शंका पैदा हो गयी । उनको एक उपाय सूझा । मंसाराम पर यह आक्षेप लगाया कि वह आवारा घूमता है । इसलिए वह स्कूल में ही रहा करे। रुक्मिणी ने सोचा कि निर्मला ने मंसाराम की शिकायत की होगी। वह निर्मला से झगड़ा करने लगी । निर्मला ने तोताराम से अपना निर्णय बदलने को कहा । मुंशी जी का हृदय और भी शंकित हो गया ।

         मंसाराम दुखी होकर सारा दिन घर पर ही रहने लगा । वह बहुत कमजोर भी हो गया । मुंशी जी की शंका जरा कम हुई । एक दिन मंसाराम अपने कमरे में बैठे रो रहा था । मुंशी जी ने उसे सांत्वना देते हुए सारा दोष निर्मला पर मढ़ दिया । निष्कपट बालक उस पर विश्वास करके अपनी विमाता से नफ़रत करने लगा । निर्मला भी अपने पति के शक्की स्वभाव को समझ गयी । उसने मंसाराम से बोलना भी बंद कर दिया।

       मंसाराम को गहरा दुख हुआ कि निर्मला ने उसके पिताजी से उसकी शिकायत की थी। वह अपने को अनाथ समझकर कमरे में ही पडा रहता था । एक रात को वह भोजन करने के लिए भी नहीं उठा । निर्मला तडप उठी । मुंशी जी बाहर गये हुए थे । निर्मला मंसाराम के कमरे में जाकर उसे प्यार से समझाने लगी। उसी वक्त तोताराम आ गए । तुरंत निर्मला कठोर स्वर में बोलने लगी और मंसाराम की शिकायत करने लगी । मंसाराम इस भाव-परिवर्तन को नहीं समझ सका । निर्मला के व्यवहार से उसे वेदना हुई । अगले दिन वह हेडमास्टर से मिलकर हास्टल में रहने का प्रबंध कर आया । निर्मला से कहे बिना वह अपना सामान लेकर चला गया ।

         निर्मला ने सोचा कि छुट्टी के दिन मंसाराम घर आएगा । पर वह नहीं आया । मंसाराम की आत्म पीडा का अनुमान कर उसे अपार दुख हुआ । एक दिन उसे मालूम हुआ कि मंसाराम को बुखार हो गया है। वह मुंशी जी से प्रार्थना करने लगी कि वे मंसाराम को हास्टल से घर लाएं ताकि उसकी सेवा ठीक तरह से हो सके । यह सुनकर मुंशी जी का संदेह फिर ज्यादा हो गया ।

मंसाराम कई दिनों तक गहरी चिन्ता में डूबा रहा । उसे पढने में बिलकुल जी नहीं लगा । जियाराम ने आकर घर की हालत बतायी । यह भी कहा कि पिताजी के कारण ही निर्मला को कठोर व्यवहार का स्वांग करना पडा । इस विषय पर मंसाराम  गहराई से सोचने लगा । तब अचानक वह समझ गया कि पिता जी के मन में निर्मला और उसको लेकर संदेह पैदा हुआ है। वह इस अपमान को सह नहीं सका । उसके लिए जीवन भार-स्वरूप हो गया। गहरी चिन्ता के कारण उसे जोर से बुखार हो गया । वह स्कूल के डाक्टर के पास गया । उनसे बातें करते हुए उसे एक ज़हरीली दवा के बारे में जानकारी मिली जिसे पीते ही दर्द के बिना मनुष्य मर जा सकता है । तुरंत वह खुश हो गया । थियेटर देखने गया । लौटकर हास्टल में शरारतें कीं । अगले दिन ज्वर की तीव्रता से वह बेहोश हो गया । तोताराम बुलाये गये । स्कूल के अध्यक्ष ने मंसाराम को घर ले जाने को कहा । अपने संदेह के कारण मुंशी जी उसे घर ले जाने को तैयार नहीं थे । इसे समझकर मंसाराम ने भी घर जाने से इनकार कर दिया । उसे अस्पताल में दाखिल कर दिया गया ।

       यह जानकर निर्मला सिहर उठी । लेकिन मुंशी जी के सामने उसे अपने भावों को छिपाना पड़ा। वह खूब श्रृंगार करके सहास वदन से उनसे मिलती-बोलती थी । अस्पताल में मंसाराम की हालत चिन्ताजनक हो गई ।

        तीन दिन गुज़र गये । मुंशी जी घर न आए । चौथे दिन निर्मला को मालूम हुआ कि ताजा खून दिये जाने पर ही मंसाराम बच सकता है। यह सुनते ही निर्मला ने तुरंत अस्पताल जाने और अपना खून देने का निश्चय कर लिया । उसने ऐसी हालत में मुंशी मंसाराम कई दिनों तक गहरी चिन्ता में डूबा रहा । उसे पढने में बिलकुल जी नहीं लगा । जियाराम ने आकर घर की हालत बतायी । यह भी कहा कि पिताजी के कारण ही निर्मला को कठोर व्यवहार का स्वांग करना पडा । इस विषय पर मंसाराम जी से डरना या उनकी शंका की परवाह करना उचित नहीं समझा। यह देखकर रुक्मिणी को पहली वार निर्मला पर दया आयी ।


निर्मला को देखते ही मंसाराम चौंककर उठ बैठा । मुंशी जी निर्मला को कठोर शब्दों से डांटने लगे । मंसाराम निर्मला के पैरों पर गिरकर रोते हुए बोला - "अम्मा जी, मैं अगले जन्म में आपका पुत्र बनना चाहूंगा । आपकी उम्र मुझसे ज्यादा न होने पर भी मैंने हमेशा आपको माता की दृष्टि से ही देखा ।" जब मुंशी जी ने सुना कि निर्मला खून देने आयी है तब उनकी सारी शंका दूर हो गयी और निर्मला के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हुई ।

     डाक्टर निर्मला की देह से खून निकाल रहे थे । तभी मंसाराम का देहांत हो गया । मुंशी जी को अपना भयंकर अपराध महसूस हुआ। उनका जीवन भारस्वरूप हो गया । कचहरी का काम करने में दिल नहीं लगा । उनकी तबीयत खराब होने लगी ।

     मुंशी जी और उस डाक्टर में दोस्ती हो गयी जिसने मंसाराम की चिकित्सा की थी । डाक्टर की पत्नी सुधा और निर्मला सहेलियां बन गयीं । निर्मला अकसर सुधा से मिलने उसके घर जाने लगी । एक बार उसने सुधा को अपने अतीत का सारा हाल सुनाया । सुधा समझ गयी कि उसका पति ही वह वर था जिसने दहेज के अभाव में निर्मला से शादी करने से इनकार किया था । उसने अपने पति की तीव्र आलोचना की । पूछने पर उसने अपने पति से बताया कि निर्मला की एक अविवाहित बहिन है ।

        तीन बातें एकसाथ हुई। निर्मला की कन्या ने जन्म लिया। उसकी बहिन कृष्णा का विवाह तय हुआ । मुंशी जी का मकान नीलाम हो गया । वच्ची का नाम आशा रखा गया (डाक्टर (भुवनमोहन सिन्हा) ने निर्मला के प्रति अपने अपराध के प्रायश्चित्त के रूप में अपने भाई का विवाह कृष्णा से दहेज के बिना तय करा दिया। यह वात निर्मला को मालूम नहीं थी । सुधा ने निर्मला से छिपाकर उसकी मां को विवाह के लिए रुपए भी भेजे थे।

      ये सारी बातें निर्मला को विवाह के समय ही मालूम हुई । वह डा. सिन्हा के प्रायश्चित्त से प्रभावित हुई । विवाह के दिन उसने डाक्टर से अपनी कृतज्ञता प्रकट कर दी । आगे कुछ समय के लिए निर्मला मायके में ही ठहर गई ।

   इधर जियाराम का चरित्र बदलने लगा । वह बदमाश हो गया । वह बात-बात पर अपने पिताजी से झगडा करने लगा। यहां तक उसने कह डाला कि मंसाराम को आप ही ने मार डाला । उनको बाजार में पिटवा देने की धमकी दी । एक दिन डा. सिन्हा ने उसे खूब समझाया तो वह पछताने लगा । उसने निश्चय किया कि आगे वह पिताजी की बात मानेगा । परंतु डाक्टर से मिलकर जब वह घर आया तब आधी रात हो चुकी थी। मुंशी जी उस पर व्यंग्य करने लगे । जियाराम का जागा हुआ सद्भाव फिर विलीन हो गया ।


निर्मला बच्ची के साथ घर वापस आयी । उसी दिन बच्ची के लिए मिठाई खरीदने के संबंध में बाप-बेटे में झगडा हो गया । निर्मला ने जियाराम को डांटा । मुंशी जी ने जियाराम को पीटने के लिए हाथ उठाया । लेकिन निर्मला पर थप्पड पड़ा । जियाराम पिताजी को धमकी देकर बाहर चला गया । निर्मला को भविष्य की चिन्ता सताने लगी । उसने सोचा कि उसके पास जो गहने हैं वे ही भविष्य में काम आएंगे ।

     उस रात को अचानक उसकी नींद खुली । उसने देखा कि जियाराम की आकृतिवाला कोई उसके कमरे से बाहर जा रहा है। अगले दिन वह सुधा के घर जाने की तैयारी कर रही थी। तभी उसे मालूम हुआ कि उसके गहनों की संदूक गायब है । उसे रातवाली घटना याद आयी । जियाराम से पूछताछ करने पर उसने कह दिया कि वह घर पर नहीं था । वकील साहब को मालूम होने पर थाने के लिए चल दिये । निर्मला को जियाराम पर संदेह था । परन्तु विमाता होने के कारण उसे चुप रहना पडा । इसलिए वह मुंशी जी को रोक न सकी । थानेदार ने घर आकर और जांच करके बताया कि यह घर के आदमी का ही काम है। कुछ दिनों में माल बरामद हो गया । तभी मुंशी जी को असली बात मालूम हुई। जियाराम को कैद होने से बचाने के लिए थानेदार को पांच सौ रुपये देने पडे । मुंशी जी घर आये तो पता चला कि जियाराम ने आत्महत्या कर ली ।


गहनों की चोरी हो जाने के बाद निर्मला ने सब खर्च कम कर दिया। उसका स्वभाव भी बदल गया। वह कर्कशा हो गयी। पैसे बचाने के लिए वह नौकरानी के बदले सियाराम को ही बार-बार बाज़ार दौड़ाती थी। वह एक दिन जो घी लाया उसे खराब बताकर लौटा देने को कह दिया । दूकानदार वापस लेने के लिए तैयार न हुआ। वहां बैठे एक साधु को सियाराम पर दया आयी । उनके कहने पर बनिये ने अच्छा घी दिया । साधु को सियाराम के घर की हालत मालूम हुई । जब वे चलने लगे तब सियाराम भी उनके साथ हो लिया । साधु ने बताया कि वे भी विमाता के अत्याचार से पीडित थे । इसलिए घर छोड़कर भाग गये । एक साधु के शिष्य बनकर योगविद्या सीख ली । वे उसकी सहायता से अपनी मृत मां के दर्शन कर लेते हैं। साधु की बातों से सियाराम प्रभावित हुआ और अपने घर की ओर चला। असल में वह बाबा जी एक धूर्त था और लड़कों को भगा ले जानेवाला था ।

 सियाराम घर लौटा तो निर्मला ने लकडी के लिए जाने को कहा। वह इनकार करके बाहर चला गया । घर के काम अधिक होने के कारण वह ठीक तरह से स्कूल न जा पाता था । उस दिन भी वह स्कूल न जाकर एक पेड के नीचे बैठ गया। उसे भूख सता रही थी । उसे घर लौटने की इच्छा नहीं हुई । बाबा जी से मिलने के लिए उत्सुक होकर उन्हें ढूंढने लगा । सहसा वे रास्ते में मिल पडे। पता चला कि वे उसी दिन हरिद्वार जा रहे हैं। सियाराम ने अपने  को भी ले चलने की प्रार्थना की। साधु ने मान लिया । वेचारा सियाराम जान न सका कि वह बाबा जी के जाल में फंस गया है।


मुंशी जी वडी थकावट के साथ शामको घर आये । उन्हें सारा दिन भोजन नहीं मिला था । उनके पास मुकदमे आते नहीं थे या आने पर हार जाते थे । तब वे किसीसे उधार लेकर निर्मला के हाथ देते थे । उस दिन उनको मालूम हुआ कि सियाराम ने कुछ भी नहीं खाया और उसे पैसे भी नहीं दिये गये । उनको निर्मला पर पहली बार क्रोध आया । बहुत रात बीतने पर भी सिया नहीं आया तो मुंशी जी घबराये । बाहर जाकर सब जगह ढूंढने पर भी सिया का पता नहीं चला । अगले दिन भी सुबह से आधी रात तक ढूंढकर वे हार गये ।

        तीसरे दिन शामको मुंशी जी ने निर्मला से पूछा कि क्या उसके पास रुपये हैं । निर्मला झूठ बोली कि उसके पास नहीं है । रात को मुंशी जी अन्य शहरों में सियाराम को ढूंढने के लिए निकल पड़े । निर्मला को ऐसा जान पड़ा कि उनसे फिर भेंट न होगी ।

      एक महीना पूरा हुआ । न तो मुंशी जी लौटे और न उनका कोई खत मिला । निर्मला के पास जो रुपए थे वे कम होते जा रहे थे । केवल सुधा के यहां उसे थोड़ी मानसिक शांति मिलती थी । एक दिन सबेरे वह सुधा के यहां पहुंची । सुधा नदी-स्नान करने गयी हुई थी। निर्मला सुधा के कमरे में जा बैठी । डा. सिन्हा ऐनक ढूंढते हुए उस कमरे में आये । निर्मला को एकांत में पाकर उनका मन चंचल हो उठा। वे उससे प्रेम की याचना करने लगे ।


तुरंत वह कमरे से भागकर दरवाजे पर पहुंची । तब सुधा को तांगे से उतरते देखा । उसके लिये रुके बिना निर्मला तेजी से अपने घर की ओर चली गयी। सुधा कुछ समझ नहीं सकी। उसने डाक्टर से पूछा । उन्होंने स्पष्ट उत्तर नहीं दिया । सुधा तुरंत निर्मला के यहां पहुंची । निर्मला चारपाई पर पडी रो रही थी। उसने स्पष्ट रूप से तो अपने रोने का कारण नहीं बताया । लेकिन बुद्धिमति सुधा समझ गयी कि डाक्टर ने दुर्व्यहार किया है । अत्यंत क्रोधित होकर वह निकल पड़ी । निर्मला उसे रोक न सकी ।

     उसे ज्वर चढ़ आया । दूसरे दिन उसे रुक्मिणी के ज़रिये मालूम हुआ कि डा. सिन्हा की मृत्यु हो चुकी थी । निर्मला को अपार वेदना हुई कि उसीके कारण डाक्टर का अंत असमय हो गया । जब निर्मला डाक्टर के यहां पहुंची तब तक लाश उठ चुकी थी । सुधा ने बताया कि उसने घर लौटकर पति की कड़ी आलोचना कर दी । इससे क्षुब्ध होकर डाक्टर ने अपना अंत कर लिया ।

     एक महीना गुजर गया । सुधा वह शहर छोडकर अपने देवर के साथ चली जा चुकी थी । निर्मला के जीवन में सूनापन छा गया । अब रोना ही एक काम रह गया । उसका स्वास्थ्य अत्यंत खराब हो गया । वह समझ गयी कि उसके जीवन का अंत निकट आ गया है । उसने रुक्मिणी से माफ़ी मांगी कि वह उसकी उचित सेवा न कर सकी । रुक्मिणी ने भी उससे अपने कपटपूर्ण व्यवहार के लिए क्षमा याचना की । निर्मला ने बच्ची को रुक्मिणी के हाथ सौंप दिया ।

 फिर तीन दिन तक वह रोये चली जाती थी । वह न किसीसे बोलती थी, न किसीकी ओर देखती थी और न किसी का कुछ सुनती थी । चौथे दिन संध्या समय निर्मला ने अंतिम सांस ली । मुहल्ले के लोग जमा हो गये । लाश बाहर निकाली गयी । यह प्रश्न उठा कि कौन दाह करेगा । लोग इसी चिन्ता में थे कि सहसा एक बूढ़ा पथिक आकर खड़ा हो गया । वह मुंशी तोताराम थे ।


Wednesday, March 24, 2021

Expected Questions August 2021/VISHARAD POORVARDH

 

                    VISHARAD POORVARDH

               Expected Questions August 2021

Paper-1 

1. किन्हीं चार अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए:

• महाराज, आप तो साधु है, सिद्धपुरुष हैं।.........1

• महाराज, आजकल पृथ्वी पर.......1

• लेकिन मुझे दुःख है कि मैं स्वयं तुम्हें यहां न आने ....2

•  हम भी क्या मनहूस आदमी हैं जो......2

• कहने को तो कोई कुछ कह सकता है, लेकिन....3

• लेकिन इससे अपने कमरे की खूबसूरती......3

• जाकर देख तो, क्या दशा है......4

•  कैसा बुरा रिवाज़ है जिसे ........4

• पागल ! राजा केद हो गये हैं। छोड़ दो इन.....5

• शत्रु का लोहा गरम भल.......6

• यदि वे सम्पन्नता के पालने में........7

• आदमी सिर्फ चारा या दाना खानेवाला ......8

• सूरज डूबने जा रहा था,......8

• पुराने ऋषियों से मतभेद रखना हमारे....9

• बुद्ध और महावीर से बढ़कर यदि कोई त्याग, ......9

• 'ॐ' या 'जयहिंद' से शुरू करके.....11


2. • पठित पुस्तक के आधार पर ' भोलाराम का जीव***' या 'गर्मियों के दिन ' पाठ का सारांश लिखिए।

• पठित पुस्तक के आधार पर "भोलाराम का जीव'' (या) "बापू के कदमों मैं " पाठ का सारांश लिखिए।

     • पठित पुस्तक के आधार पर "कफ़न" (या) "बापू के कदमों मैं " पाठ का सारांश लिखिए।


3. • "तोताराम" (या) "सुधा" का चरित्र-चित्रण कीजिए।***

     • "तोताराम' (या) "मंसाराम" का चरित्र-चित्रण कीजिए।

4. किन्हीं तीन पर टिप्पणियाँ लिखिए:

    • कल्याणी • उदयभानुलाल*   • भालचंद्र सिन्हा  

    • पंडित मोटेराम* • जियाराम*  • भुवन मोहन सिन्हा*  

    • रंगीली बाई *  • कृष्णा*

5. किसी एक कहानी का सारांश लिखकर कहानी-कला की दृष्टि से उसकी विशेषताएँ लिखिए:

   • नादान दोस्त       • कोटर और कुटीर • उसने कहा था  

   • वापसी    • बदला

6. किन्हीं तीन पर टिप्पणियाँ लिखिए:

     • केशव   • चातक पुत्र* • बुद्धन  • लहना सिंह* • सुबेदारनी 

     • शाहनी*   •  कोटय्या • गजाधर बाबू*  •  शकलदीप बाबू* 

     •  डॉक्टर • गूंगा • चमेली   • जमुना 

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       Paper- 2

1. किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर लिखिए

 •  शब्द किसे कहते हैं? अर्थ की दृष्टि से उसके कितने भेद हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

 • व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्द कितने प्रकार के होते है ? बे क्या क्या है? सोदाहरण लिखिए।

 • संज्ञा किसे कहते हैं? अर्थ की दृष्टि से उसके कितने भेद हैं? उदाहरण सहित लिखिए।

 •  विशेषण किसे कहते हैं? उसके कितने भेद है? उदाहरण सहित समझाइए।

 •  बनावट की दृष्टि से क्रिया के कितने भेद है? उदाहरण दीजिए।

 • क्रिया किसे कहते हैं? कर्म की दृष्टि से उसके कितने भेद हैं ? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

 •  कारक किसे कहते है? उसके भेदों को उदाहरण सहित समझहा।

 • भविष्यत्काल किसे कहते हैं? उसके कितने भेद हैं? उदाहरण देकर समझइए।

 •  समास किसे कहते हैं? उसके भेदों को सोदाहरण समझाइए।

 • एकवचन से बहुवचन बनाने के कुछ मुख्य नियम क्या-क्या है? सोदाहरण समझइए।

 • 'ने' प्रयोग के मुख्य नियम कौन-कौन से है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। 

 • वाच्य किसे कहते हैं? उसके कितने भेद है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।


7) पद परिचय दीजिए : 

 •  मेरी छोटी बहन अभी स्कूल से आयी है।                             

 •  अहा! आप और में परीक्षा में पास हो गये।

 •  समझदार लड़के किसीसे नहीं लड़ते।

2. (अ) शुद्ध कीजिए :-

• हर एक हिन्दुस्तानी हिन्दी जानना चाहिए।

• मैं यह काम करने को नहीं सकता।

• मुझे तीन भाई हैं।

• राम बहुत चालाकी लड़का है।

• मेरे को उन्होंने देख चुका।

• जो काम को शुरू करो, वह ज़रूर पूरा करो।

• उस घर सीता की घर से बहुत दूर है।

• तुम मेरी बात को जवाब क्यों नहीं देते?

• उसने पचास आम लाये थे।

•  हम हिंदी पढ़ना ज़रूर है।

• सब लोग उसको तारीफ करते हैं।

• में उस किताब को पढ़ी।

• कोयल मीठा गाता है।

• वह आते ही में चला गया।

• इस पुस्तक पढ़कर पाँच साल हुआ।

•  महाराज दशरथ की तीन रानियाँ थीं।

  (आ) सूचना के अनुसार बदलिए :-

• सीता तड़के नहीं उठ सकती।                   (वाच्य बदलिए)

• मैं रोज़ दो केले खाता हूँ।                         (वाच्य बदलिए)

• राधा एक अच्छा चित्र बनाएगी।                (वाच्य बदलिए) 

• किसने यह चित्र बनाया?                         (वाच्य बदलिए)

• जल्दी जाओ। तभी गाड़ी पकड़ सकते हो।  (वाक्य जोड़कर लिखिए)

• मैं आपसे मिलूंगा। फिर दिल्ली आऊँगा।    (वाक्य जोड़कर लिखिए)

• वह गरीब है। पर वह उदार है ।                (दोनों वाक्यों को जोडिए)

• अध्यापक पाठ पढ़ाते हैं।                         (सामान्य भूतकाल में लिखिए)

• नौकर बाज़ार से तरकारियाँ लाया।        (सामान्य वर्तमानकाल में लिखिए)

• हम हिंदी सीखते हैं।                            (अपूर्ण भूतकाल में लिखिए)

• हम देश की सेवा करेंगे।                       (सामान्य वर्तमानकाल लिखिए)

• लोगों का दुख देखकर गाँधीजी दुखी होते थे।

           ('दुखी' के बदले 'दुख' और 'दुख' के बदले 'दुखी' का प्रयोग कीजिए)

• भूख से लोग दुखी हैं।          ('दुखी' के बदले 'दुख' का प्रयोग कीजिए) 

• स्कूल के छात्र बीमार हैं।       ('बीमार' के बदले 'बीमारी' का प्रयोग कीजिए)

• हिन्दी पढ़ना ज़रूरी है।         ('ज़रूरी' के बदले 'ज़रूरत' का प्रयोग कीजिए)

• राम ने अच्छी तैयारी नहीं की। वह परीक्षा में  उत्तीर्ण नहीं हुआ।

          ('अगर.....तो' का प्रयोग कीजिए)

• परिश्रम करोगे। धन कमाओगे।       ('जितना.....उतना' का प्रयोग कीजिए)

• जल्दी स्टेशन जाओ। गाड़ी नहीं मिलेगी।     ('नहीं तो' का प्रयोग कीजिए)

• राम के स्टेशन पहुँचते ही गाड़ी छूट गयी। ('ज्योहि....त्याहि का प्रयोग कीजिए)

(इ) लिंग बदलिए :-

     चेला     महोदय     बंदर     अध्यापक   विद्यार्थी    अभिनेता  भिखारी   पिता    

     देवर    भेड़ा  चाचा  सुत   बालक   साँप    पिता   मोर   ससुर   गुरु   कवि 

     सखा   गायक   शेर   लेखक    पुरुष   विद्यार्थी    बैल     इंद्र     बादशाह

     नाना   डिब्बा   बाघ   ऊँट  भैंसा   इंद्र  मालिक  ।

(ई) वचन बदलिए :--

      मुर्गा   नायिका   कमरा   मूर्ति    फल   पोती   हाथी     बहू    दीवार   गुड़िया

     कौआ    घर    रुपया      फूल    केला    भाई   पेड़   मोती   कवि    डाकू

     बकरा    मामा     पेड़    बच्ची    थैली    ऋतु   पहिया   आँख  कहानी

     राजा  औरत    धातु     अध्यापिका     मुनि     विधि  ।

3. रूप-रेखा देते हुए किसी एक विषय पर निबन्ध लिखिए :--

  • शिक्षा में यात्रा का महत्त्व  2

  • पुस्तकालय की उपयोगिता 3

  • हमारा प्रिय विषय (साहित्य) 4

  • जन-जागरण में समाचार-पत्रों का योगदान  6

  • भारतीय समाज में नारी का स्थान  7

  • राष्ट्रभाषा हिन्दी का महत्व 9

  • आदर्श विद्यार्थी   11

  • भारतीय कृषि की समस्याएँ    12

  • वर्षा ऋतु    14 

  •  राष्ट्र में भावनात्मक एकता   15

  • विज्ञापन के साधन एवं उनका महत्त्व  18

  • मद्य-निषेध 19 


4. • हिन्दी पुस्तक बिक्री केन्द्र, नई दिल्ली की ओर से लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद 

       को पुस्तकें मँगाने का आदेश देते हुए पत्र लिखिए । 2

     • राजपाल एण्ड सन्स, नई दिल्ली की ओर से गीता पुस्तक मंदिर, बेंगलूरु को 

         व्यापारिक परिचय माँगते हुए पत्र लिखिए। 3

      • चौधरी एण्ड सन्स, नई दिल्ली की ओर से उत्तर प्रदेश के प्रभागीय प्रबंधक के 

        नाम माल के लुप्त होने की शिकायत करते हुए एक पत्र लिखिए। 8

     • प्रमोद बुक हाउस, इलाहाबाद की ओर से रजिस्ट्री पार्सल के न मिलने की शिकायत 

       करते हुए डाक अधिकारी को शिकायती-पत्र लिखिए।-  9 

     • महात्मा गाँधी विद्यालय, टी.नगर को हिन्दी अध्यापक की आवश्यकता है। 

       उक्त पद के लिए अपना आवेदन प्रस्तुत करते हुए एक पत्र लिखिए। 19

    • अग्नि-बीमा के संबंध में पूछताछ करते हुए सुरेश एण्ड सन्स, साहूकारपेट 

       की ओर से न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, चेन्नई को एक पत्र लिखिए। 20


5. निम्नलिखित गद्यांश का एक तिहाई में संक्षिप्त रूप लिखिए :--

  • ईसा की अठारहवीं शताब्दी के...... 1

  • किसानों का गाँव था, मेहनती आदमी के लिए पचास काम थे। मगर.......2

  • भाई। तुम्हारे दिल्ली आने के निर्णय.......3

  • चुंगी-दफ़्तर का नाम तीन...4

  • आपके दांत की यह शिक्षा दे रहे है...5

  • महापुरुष बड़े-बड़े सिद्धांतो को........8

6. अपनी प्रांतीय भाषा में अनुवाद कीजिए :-

     • मेहनत करना मनुष्य की.........2

    • उत्पादन बढ़ाने के लिए दीर्घकाल व्यापी...4

    • निर्भयता के उदय के बिना शर्त्र-त्याग सम्भन ........5

    • हतिहास बताता है कि.......8

    • हिन्दुस्तान के अधिकतर .........15 

7. हिन्दी में अनुवाद कीजिए :

    • மேலைநாடுகளில் சாந்தி தத்துவம் .......2

    • இன்று நம் நாட்டிற்கு மிக முக்கியமான தேவை....4

    •  என்னுடைய செல்வம் ஒரு பெட்டியிலோ.........5


              *************


       Paper -3 

                       பிரிவு - 1

 (1,2,3 & 4)

 • காவிரியின் சிறப்புகளை தொகுத்தெழுதுக. *

 • தமிழ் இலக்கியத்தில் 'திருமந்திரம்' என்னும் திருமறை

   பற்றி விளக்கவும்.*

• மதுரை மாநகர்' இலக்கியக் கண்ணோட்டத்தில் எவ்வாறு

   சிறந்து விளங்குகிறது? *

 • இலக்கியத்தில் நகைச்சுவை எவ்வாறு இடம் பெற்றுள்ளது?*

• இலக்கியக் கனிகள்' என்னும் தலைப்பில் கனிகளைப் 

  பற்றி சுவைபட கூறப்பட்டுள்ளதை விவரிக்கவும்.*

 • இலக்கியத் தம்பியரை பாடநூல் துணை கொண்டு விளக்குக. 

• கரும்பு பற்றி இலக்கியங்கள் யாது கூறுகின்றன?

 • திலகவதியாரின் திருத்தொண்டின் சிறப்பினை விளக்குக.


                            பிரிவு - 2


5. எவையேனும் நான்கிற்கு இடஞ்சுட்டிப் பொருள் 

    விளக்கம் தருக:

   • கடமையைச் செய் பலனை எதிர்பார்க்காதே.

   • இல்லாத ஊருக்குப்போகாத வழியை அறியாத மக்களிடம்

    புரியாதபடி சொல்லிவைக்கும் சத்திய வாக்கு

   • கனியும் கிழங்கும் தானியங்களும் 

      கணக்கின்றித் தருநாடு - இது

  • பாசம் என்பது யாதெனக் கேட்டேன்; 

    பகிர்ந்து பாரென இறைவன் பணித்தான்.

  • சுண்டு விரலிலே குண்டலப்பூச்சி 

     சுருண்டு கிடப்பானேன் சிங்கி


(6,7 & 8) 

   •'தென்றல்' குறித்து பாரதிதாசன் கூறும் கருத்துக்கள் யாவை

   • சிங்கனுக்கும் சிங்கிக்கும் இடையே நடந்த உரையாடலைத்

    தொகுத்து வரைக.

  • சீதையை அனுமன் எவ்வாறு தேற்றினான்? 

  • அப்பூதியடிகள் நாவுக்கரசரிடம் கொண்டிருந்த பேரன்பு 

     பற்றி தொகுத்து வரைக.

  • தேசம் ஒன்று; தேசியம் ஒன்று - எனும் தலைப்பில்

    கண்ணதாசன் கூறும் கருத்துக்கள் யாவை?

 • ஆண்டாள் பாடியருளிய திருப்பாவை செய்யுளை விளக்குக.


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VISHARADPOORVARDH/ Expected Questions August 2021





Tuesday, March 23, 2021

निर्मला / कथासार/ Nirmala /Novel- Summary-Mumshi Prem chand

                

                            निर्मला


                      उपन्यास  /  कथासार




         उदयभानुलाल बनारस के एक प्रसिद्ध वकील थे। उनकी आमदनी अच्छी थी। लेकिन वे बचत करना नहीं जानते थे। जब उनकी बड़ी लड़की निर्मला के विवाह का वक्त आया तब दहेज की समस्या उठ खडी हुई। बाबू भालचंद्र सिन्हा के ज्येष्ठ पुत्र भुवनमोहन सिन्हा से निर्मला की शादी की बात पक्की हो गई। सौभाग्य से सिन्हा साहब ने दहेज पर जोर नहीं दिया। इससे उदयभानुलाल को राहत मिली। निर्मला केवल पन्द्रह वर्ष की थी। इसलिए विवाह की बात सुनकर उसे भय ही ज्यादा हुआ। एक दिन उसने एक भयंकर स्वप्न देखा। वह एक नदी के किनारे पर खडी थी। एक सुंदर नाव आयी। पर मल्लाह ने निर्मला को उस पर चढ़ने नहीं दिया। फिर एक टूटी-फूटी नाव में उसे जगह मिली। नाव उलट जाती है और निर्मला पानी में डूब जाती है। तभी निर्मला की नींद टूटी।

         निर्मला के विवाह की तैयारियां शुरू हो गयीं। दहेज देने की ज़रूरत न होने से उदयभानुलाल बारातियों का स्वागत धूमधाम से करने के लिए पानी की तरह रुपए खर्च करने लगे। यह बात उनकी पत्नी कल्याणी को पसंद नहीं आयी। इस कारण से पति पत्नी के बीच में जोरदार वाद-विवाद चला। कल्याणी ने मायके जाने की धमकी दी। पत्नी के कठोर वचन से दुखित होकर उदयभानुलाल ने उसे एक सबक सिखाना चाहा। नदी के किनारे पहुंचकर, वहां कुरता आदि छोडकर उन्होंने किसी अन्य शहर में कुछ दिनों के लिए चले जाने का निश्चय किया। लोग समको के मे नदी में डूब गए। तब पत्नी की धर्मड दूर हो जायेगी। उदयभानुत्ताल आधी रात को नदी की ओर चल पडे। एक बदमाश रे, जो उनका पुराना दुश्मन था, उन पर लाठी चलाकर मार गिरा दिया।

       अब निर्मला के विवाह की जिम्मेदारी कल्याणी पर आ पड़ी। उसने पुरोहित मोटेराम के द्वारा सिन्हा को पत्र भेजा। वर्तमान हालत को देखकर साधारण ढंग से शादी के लिए स्वीकृति देने की प्रार्थना की। सिन्हा असल में लालची थे। वे उदयभानुलाल के स्वभाव से परिचित थे। उनका विचार था कि दहेज का इनकार करने पर उससे भी ज्यादा रकम मिल जायेगी। उदयभानु लात की मृत्यु की खबर सुनकर उनका विचार बदल गया। उनकी स्वी रंगीली बाई को कल्याणी के प्रति सहानुभूति थी। लेकिन पति की इच्छा के विरुद्ध वह कुछ नहीं कर सकी। बेटा भुवनमोहन भी बढ़ा लालची था। वह दहेज के रूप में एक मोटी रकम मांगता बा चाहे कन्या में कोई भी ऐब हो।

       मोटेराम निर्मला के लिए अन्य छरों की खोज करने लगे। अगर लड़का कुतीन या शिक्षित या नौकरी में हो तो दहेज अवश्य मांगता था । आखिर मन मारकर कल्याणी ने निर्मला के लिए लगभग चालीस साल के वकील तोताराम को वर के रूप में चुन लिया । वे काफ़ी पैसेवाले थे । उन्होंने दहेज की मांग भी नहीं की ।

        निर्मला का विवाह तोताराम से हो गया । उनके तीन लड़के थे मंसाराम, जियाराम, सियाराम । मंसाराम सोलह बरस का था । वकील की विधवा बहिन रुक्मिणी स्थाई रूप से उसी घर में रहती थी । तोताराम निर्मला को खुश रखने के लिए सब तरह के प्रयत्न करते थे । अपनी कमाई उसीके हाथ में देते थे । लेकिन निर्मला उनसे प्रेम नहीं कर सकी; उनका आदर ही कर सकी । रुक्मिणी बात-बात में निर्मला की आलोचना और निन्दा करती थी । लड़कों को निर्मला के विरुद्ध उकसाती थी । एक बार निर्मला ने तोताराम से शिकायत की तो उन्होंने सियाराम को पीट दिया । 

       निर्मला समझ गयी कि अब अपने भाग्य पर रोने से कोई लाभ नहीं है। अतः वह बच्चों के पालन-पोषण में सारा समय बिताने लगी । मंसाराम से बातें करते हुए उसे तृप्ति मिल जाती थी । निर्मला पर प्रभाव डालने के लिए तोताराम रोज अपने साहसपूर्ण कार्यों का वर्णन करने लगे जो असल में झूठ थे । एक दिन उन्होंने बताया कि घर आते समय तलवार सहित तीन डाकू आ गए और उन्होंने अपनी छडी से उनको भगा दिया । तभी रुक्मिणी आकर बोली कि कमरे में एक सांप घुस गया है। तुरंत तोताराम भयभीत होकर घर में बाहर निकल गए । निर्मला समझ गयी कि सुशी जी क्या चाहते हैं । उसने पत्नी के रूप में अपने को कर्तव्य पर मिटा देने का निश्चय किया।

        निर्मला अब सज-धजका रहने और पति से हंसकर बातें करने लगी । लेकिन जब मुंशी जी को मालूम हुआ कि वह मंसाराम से अंग्रेजो सोस रही है तब वे सोचने लगे कि शायद इसलिए आज का मिर्मसा प्रसन्न दिखती है। उनके मन में शंका पेदा हो ची। इनको एक उपाय सुशा । मंसाराम पर यह आक्षेप लगाया किया आधार घूमता है। इसलिए वह स्कूल में ही रहा करे मंत्रियों ने सोचा कि निर्मला ने मसाराम को शिकायत की होगा। यह निमंता में झगड़ा करने लगी । निर्मला ने तोलाराम से अपना निर्माय बदलने को कहा । मुंशी जी का हदय और भी शंकित हो गया।

      मंसाराम दुखी होकर सारा दिन घर पर ही रहने लगा। वह बहुत कमजोर भी हो गया। मुंशी जी को शंका जरा कम हुई। एक दिन संसाराम अपने कमरे में बैठे रो रहा था। मुशी जी ने उसे सांत्वना देते हुए मारा दोष निर्मल पर मड़ दिया । निष्कपट बालक उस पर विश्वास करके अपनी विमाता से नफरत करने लगा निर्मला भी अपने पति के शक्को स्वभाव को समझ गयी उसने पसाराम में बोलना भी बंद कर दिया ।

       मंसाराम को गहरा दुख हुआ कि निर्मला ने उसके पिताजी से उसको शिकायत की थी । वह अपने को अनाथ समड़ाकर कमरे में ही पड़ा रहता था । एक रात को वह भोजन काने के लिए भो नहीं उठा । निर्मला लड़प उठी । मुंशी जी बाहर गये हुए थे । निर्मला सासाराम के कमरे में जाकर उसे प्यार से समझाने लगी। उसी वक्त तोताराम आ गए। तुरंत निर्मला कठोर स्वर में बोलने लगी और मंसाराम की शिकायत करने लगी । ममाराम इस भाव-परिवर्तन को नहीं समझ सका । निर्मला के व्यवहार में उसे वेदना हुई। अगले दिन वह हेडमास्टर से मिलकर हास्टल में रहने का प्रबंध कर आया निर्मला से कहे बिना वह अपना सामान लेकर चला गया।

          निर्मला ने सोचा कि चुट्टी के दिन भसाराम घर आएगा । पर वह नहीं आया । मसाराम की आर्म पोडा का अनुमान कर उसे अपार दुख हुआ। एक दिन उसे मालूम हुआ कि मंसाराम को बुखार हो गया है। वह मुंशी जी से प्रार्थना करने लगी कि वे मसाराम को हास्टल से घर लाएं ताकि उसकी सेवा ठीक तरह से हो सके । यह सुनकर मुंशी जी का संदेह फिर ज्यादा हो गया।

         मंसाराम कई दिनों तक गहरी चिन्ता में डूबा रहा । उसे पढ़ने में बिलकुल जी नहीं लगा । जियाराम ने आकर घर को हालत बतायी । यह भी कहा कि पिताजी के कारण ही निर्मला को कठोर व्यवहार का स्वांग करना पड़ा । इस विषय पर मंसाराम गहराई से सोचने लगा । तब अचानक यह समझ गया कि पिता जो के मन में निर्मला और उसको लेकर संदेह पैदा हुआ है । यह इस अपमान को सह नहीं सका । उसके लिए जीवन भार- स्वरूप हो गया। गहरी चिन्ता के कारण उसे जोर से बुखार हो गया । वह स्कूल के डाक्टर के पास गया । उनसे बातें करते हुए उसे एक जहरीली दवा के बारे में जानकारी मिली जिसे पीते ही दर्द के बिना मनुष्य मर जा सकता है । तुरंत वह खुश हो गया । थियेटर देखने गया । लौटकर हास्टल में शरारतें कीं । अगले दिन ज्वर को तोवता से वह बेहोश हो गया । तोताराम बुलाये गये । स्कूल के अध्यक्ष ने मंसाराम को घर ले जाने को कहा । अपने संदेह के कारण मुंशी जी उसे घर ले जाने को तैयार नहीं थे । इसे समझकर मंसाराम ने भी घर जाने से इनकार कर दिया । उसे अस्पताल में दाखिल कर दिया गया ।

        यह जानकर निर्मला सिहर उठी । लेकिन मुंशी जी के सामने उसे अपने भावों को छिपाना पड़ा । वह खूब श्रृंगार करके सहास वदन से उनसे मिलती-बोलती थी । अस्पताल में मंसाराम की हालत चिन्ताजनक हो गई।

        तीन दिन गुज़र गये । मुंशी जी घर न आए । चौथे दिन निर्मला को मालूम हुआ कि ताजा खून दिये जाने पर ही मंसाराम बच सकता है यह सुनते हो निर्मला ने तुरंत अस्पताल जाने और अपना खून देने का निश्चय कर लिया। उसने ऐसी हालत में मुंशी जी से डरना या उनकी शंका की परवाह करना उचित नहीं समडा। यह देखकर रुक्मिणी को पहली बार निर्मला पर दया आयी । निर्मला को देखते ही मंसाराम चौंककर उठ बैठा । मुंशी जी निर्मला को कठोर शब्दों से डांटने लगे मंसाराम निर्मला के पैरों पर गिरकर रोते हुए बोला - "अम्मा जी, मैं अगले जन्म में आपका पुत्र बनना चाहूंगा । आपकी उम्र मुझसे ज्यादा न होने पर भी मैंने हमेशा आपको माता की दृष्टि से ही देखा ।" जब मुंशी जी ने सुना कि निर्मला खून देने आयी है तब उनकी सारी शंका दूर हो गयी और निर्मला के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हुई ।

    डाॅक्टर निर्मला की देह से खून निकाल रहे थे । तभी मंसाराम का देहांत हो गया । मुंशी जी को अपना भयंकर अपराध महसूस हुआ। उनका जीवन भारस्वरूप हो गया । कचहरी का काम करने में दिल नहीं लगा। उनकी तबीयत खराब होने लगी।

      मुंशी जी और उस डाक्टर में दोस्ती हो गयी जिसने मंसाराम की चिकित्सा की थी । डाक्टर की पत्नी सुधा और निर्मला सहेलियां बन गयीं । निर्मला अकसर सुधा से मिलने उसके घर जाने लगी । एक बार उसने सुधा को अपने अतीत का सारा हाल सुनाया । सुधा समझ गयी कि उसका पति ही वह वर था जिसने दहेज के अभाव में निर्मला से शादी करने से इनकार किया था। उसने अपने पति की तीव्र आलोचना की । पूछने पर उसने अपने पति से बताया कि निर्मला की एक अविवाहित बहिन है।

        तीन बातें एकसाथ हुई। निर्मला की कन्या ने जन्म लिया । उसकी बहिन कृष्णा का विवाह तय हुआ । मुंशी जी का मकान नीलाम हो गया। बच्चे का नाम आशा रखा गया । डाक्टर (भुवनमोहन सिन्हा) ने निर्मला के प्रति अपने अपराध के प्रायश्चित्त के रूप में अपने भाई का विवाह कृष्णा से दहेज के बिना तय करा दिया। यह बात निर्मला को मालूम नहीं थी । सुधा ने निर्मला से छिपाकर उसकी मां को विवाह के लिए रुपए भी भेजे थे ।

       ये सारी बाते निर्मला को विवाह के समय ही मालूम हुई । वह डा. सिन्हा के प्रायश्चित्त से प्रभावित हुई । विवाह के दिन उसने डाक्टर से अपनी कृतज्ञता प्रकट कर दी । आगे कुछ समय के लिए निर्मला मायके में ही ठहर गई ।

      इधर जियाराम का चरित्र बदलने लगा । वह बदमाश हो गया । वह बात-बात पर अपने पिताजी से झगडा करने लगा। यहां तक उसने कह डाला कि मंसाराम को आप ही ने मार डाला । उनको बाजार में पिटवा देने की धमकी दी । एक दिन डा. सिन्हा ने उसे खूब समझाया तो वह पछताने लगा । उसने निश्चय किया कि आगे वह पिताजी की बात मानेगा । परंतु डाक्टर से मिलकर जब वह घर आया तब आधी रात हो चुकी थी। मुंशी जी उस पर व्यंग्य करने लगे । जियाराम का जागा हुआ सद्भाव फिर विलीन हो गया।

       निर्मला बच्ची के साथ घर वापस आयी । उसी दिन बच्ची के लिए मिठाई खरीदमे के संबंध में बाप-बेटे में झगडा हो गया । निर्मला ने जियाराम को डांटा । मुंशी जी ने जियाराम को पीटने के लिए हाथ उठाया । लेकिन निर्मला पर थप्पड़ पड़ा । जियाराम पिताजी को धमकी देकर बाहर चला गया निर्मला को भविष्य की चिन्ता सताने लगी उसने सोचा कि उसके पास जो गहने हैं वे ही भविष्य में काम आएंगे।

       उस रात को अचानक उसकी नींद खुली । उसने देखा कि जियाराम की आकृतिवाला कोई उसके कमरे से बाहर जा रहा है। अगले दिन वह सुधा के घर जाने की तैयारी कर रही थी। तभी उसे मालूम हुआ कि उसके गहनों की संदेश गायब है । उसे रातवाली घटना याद आयी। जियाराम से पूछताछ करने पर उसने कह दिया कि वह घर पर नहीं था। वकील साहब को मालूम होने पर थाने के लिए चल दिये । निर्मला को जियाराम पर संदेह था । परन्तु विमाता होने के कारण उसे चुप रहना पड़ा । इसलिए वह मुंशी जी को रोक न सकी । थानेदार ने घर आकर और जांच करके बताया कि यह घर के आदमी का ही काम है । कुछ दिनों में माल बरामद हो गया। तभी मुंशी जी को असली बात मालूम हुई। जियाराम को कैद होने से बचाने के लिए थानेदार को पांच सौ रुपये देने पड़े । मुंशी जी घर आये तो पता चला कि जियाराम ने आत्महत्या कर ली।

       गहनों की चोरी हो जाने के बाद निर्मला ने सव गर्व कम कर दिया। उसमा स्वभाव भी बदल गया । वह कशा हो गयी । पैसे बचाने के लिए वह नौकरानी के बदले पियाराम को हो बार-बार बाजार दाहालले था । वह एक दिन जो पी लाया उसे खराब बनाकर लाटा देने को कह दिया । दुकानदार वापस लेने के लिए तैयार न हुआ। वहा बेठे एक साध को मियाराम पर दया आयी। उनके कहने पर वासिय ने अलाण यी दिया । गधु को सियाराम के घर की हालत पालामा दई । जा वे चालने लगे लय सियाराम भी उनके साथ हो लिया । साधू ने बताया कि वे भी विमाता के अत्याचार से पीड़ित थे। इसलिए घर छोड़कर भाग गये। एक साधु के शिष्य वनका योगपिदमा मीच ली । वे उसको सहायता से अपनी मृत मां के दर्शन कर लेते हैं । साधु की बातों से सियाराम प्रभावित हुआ आर अपने घर को ओर चला असल में यह बाबा जी एक धूतं था आर लड़की को भगा ले जानेवाला था।

        सियाराम पर लौटा नो निर्मला ने लकड़ी के लिए जाने को कहा। वह इनकार करके बाहर चला गया । घर के काम अधिक होने के कारण वह ठीक तरह से स्कूल में जा पाला था । उस दिन भी वह स्कूल नजाका एक पेड़ के नीचे बैठ गया । उसे भूख सता रही थी। इसे घर लौटने को इच्छा नहीं हुई ।बावा जो से मिलने के लिए उत्सुक होकर बने इडने लगा । सहसा वे रास्ते में मिल पडे। पता चला कि वे उसी दिन हरिद्वार जा रहे हैं । सियाराम ने अपने को भी ले चलने की प्रार्थना को । साध ने मान लिया। वेारा सियाराम जान न सका कि वह बाधा जी के जाल मे फस गया है।

       मुंशी जी बड़ी थकावट के साथ शामको घर आये। उन्हें सारा दिन भोजन नहीं मिला था। उनके पास मुकदमे आते नहीं थे या आने पर हार जाते थे। नत्र वे किसीसे उधार लेका निर्मला के साथ देने थे। उस दिन उनको मालूम हुआ कि सियाराम मे कुछ भी नहीं पापा और उसे पैसे भी नहीं दिये गये। उनको निर्मला पर पहली चार क्रोध आया। यजुन गत बोलने पर भी सिया नहीं आया तो पुशी जी धवगये। बाहर जाकर सब जगह टूटने पर भी सिया का पता नहीं चला। अगले दिन भी सुबह में आधी रात तक दृढकार वे हार गये।

        तीसरे दिन शमको पुंशी जी ने निर्मला से पूछा कि क्या उसके पास रुपये हैं । निर्मला झूठ बोली कि उसके पास नहीं है। रात को मुंशी जी अन्य शहरों में सियाराम को ढूंढने के लिए निकल पड़े। निर्मला को ऐसा जान पड़ा कि उनसे फिर भेंट न होगी । 

        एक महीना पूरा हुआ। न तो मुशो जो नोटे आर न उनका कोई खन मिला । निर्मला के पास जो रुपा थे वे कम होते जा रहे थे । के सुधा के यहां उसे थोड़ी मानसिक शांति मिलती थी। एक दिन सवेरे वह सुधा के यहां पहुंची । सुधा नदी-स्नान करने गयी हुई थी। निर्मला सुधा के कमरे में जा बैठी । डा सिन्हा ऐनक ढूँढते हुए उस कमरे में आये निर्मला को एकांत में पाकर उनका मन न हो उता । वे उससे प्रेम को याचना करने लगे।

        तुरंत वह कापरे से भागकर दरवाजे पर पहुंची । तब सुधा को नारो से उतरते देखा । उसके लिये रुके बिना निर्मला तेजी से अपने पाक और चली गयी । सुधा कुछ समझा नहीं सकी। उसने डाक्टर को पूजा । उन्होंने स्पष्ट उत्तर नहीं दिया । सुधा तुरंन निर्मला के या महुली । निर्मला चारपाईयर पड़ी रही थी। उसने स्पष्ट रूप मे तो अपने रोने का कारण नहीं बताया । लेकिन बुद्धिमति सुण समन गयी कि डाक्टर ने दुवहार किया है। अत्यंत क्रोधित होकर यह निकल पड़ी निर्मला उसे रोक न सकी ।

      उसे ज्वर चढ़ आया । दूसरे दिन उसे रुक्मिणी के जरिये मालूम हुआ कि डा. सिन्हा को मृत्यु हो चुकी थी । निर्मला को अपार वेदना हुई कि उसोक कारण डाक्टर का अंत असमय हो गया। जल निर्मला डाक्टर के यहां पहुची तब तक लाश उठ चुकी थी। सुधा ने बताया कि उसने पर लौटकर पति की कड़ी आलोचना मार दी। इससे क्षुब्ध होकर डाक्टर ने अपना अंत कर लिया।

      एक महीना गुज़र गया । सुधा वह शहर छोडकर अपने देवर के साथ बली जा चुकी थी निर्मला के जीवन में सुनापन छा गया। अब रोना ही एक काम रह गया । उसका स्वास्ट्य अत्यंत खराव ही गया। तो समझ गयी कि उसके जीवन का अंत निकट आ गया है। उसने मक्मिणी से माफी मागा कि वह उसकी उचित सेवा न कर सकी। रक्रिमणी ने भी उससे अपने कपटपूर्ण व्यवहार  के लिए क्षमा याचना को । निर्मला ने बच्ची को रुकमणी के  हाथ सौंप दिया ।

   फिर तीन दिन तक वह रोये चली जाती थी । यह न किसीसे बोलती थी, न किसी की ओर देखती थी और न किसी का कुछ सूती थी । चौथे दिन संध्या समय निर्मला ने अंतिम सांस ली । मुहल्ले के लोग जमा हो गये । लाश बाहर निकाला गयो । यह प्रश्न उठा कि कान दाह करेगा । लोग इसी चिन्ता में थे कि महसा एक बड़ा पथिक आकर खड़ा हो गया वह मुशी तोताराम थे।


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Saturday, February 13, 2021

Visharadh poorvardh/Easy Language

 

               Visharadh poorvardh 

              आसान पर्चा Easy Language 

1. किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर लिखिए :-

     1. वाघ के बारे में आप क्या जानते हैं ?

                           புலி

               புலி பூனை இனத்தைச் சேர்ந்த விலங்கு, பூனையைப் போலவே புலியும் பகலில் தூங்கும். இரவில் இரைதேடிக் கிளம்பும் பூனையின் கால்களின் கீழ்ப்பகுதி மெத்துமெத்தென்று இருப்பது போலவே புலியின் கால்களும் இருக்கும்.

              பசு, எருமை, மான் போன்ற புல்லை உண்டு வாழும் விலங்குகளைப் புலி வேட்டையாடும். புலியின் கண்களும், காதுகளும் கூர்மையானவை புவியால் நெடுந்தூரம் வரை பார்க்க முடியும். புலியால் காற்றின் அசைவைக் கூடக் கேட்க முடியம்.

           புலியின் உடல் ஏறக்குறைய ஆறு அடி முதல் ஒன்பது அடிவரை நீளமாக இருக்கும். அதன் உடலில் அகலமான கருப்புப் பட்டைகள் இருக்கும். இதன் தலை சிறியதாக இருக்கும். இதன் கால்களில் வளைவான கூாமையான நகங்கள் இருக்கும். இதன் தாடைகளில் இரண்டிரண்டு கூரிய கோரைப் பற்கள் இருக்கும்

            புலி சத்தமின்றி வேட்டை விலங்கிடம் செல்லுகிறது. புலியைப் பார்த்தவுடன் அந்த விலங்கு திகைத்து நின்று விடுகிறது. உடனே புவி அதை அடித்து உண்கிறது. சில சமயம் விலங்குகளின் பின்பக்கம் சென்று தாக்குவதும் உண்டு

            இந்நாள்களில் காட்டை அழிப்பதாலும் விலங்குகளை வேட்டையாடிக் கொல்வதாலும் புலியின் எண்ணிக்கை குறைந்து வருகிறது. இந்திய அரசு சரணாலயங்கள் அமைத்துப் புலிகளைப் பாதுகாக்கிறது. புலி வேட்டையைத் தடுக்கும் சட்டம் இயற்றப்பட்டுள்ளது.


      2) तमिल भाषा को प्राचीनता का विवरण दीजिए।

                      தமிழ் மொழி

          தமிழ்மொழி உலகத்தின் பழமையான மொழிகளுள் ஒன்று பல ஆயிரம் ஆண்டுகளாகச் சிறிதும் சிதைவுறாமல் இருப்பது இதன் சிறப்பு. தமிழ் என்னும் சொல்லுக்கு இனிமை என்று பொருள். தமிழ் இனிமையான மொழியாகும்

         தமிழ் மொழியில் பழைமையான இலக்கியங்கள் உள்ளன அவை சங்க இலக்கியங்கள் என அழைக்கப்படுகின்றன. இவை பத்துப்பாட்டு, எட்டுத்தொகை, பதினெண்கீழ்க்கணக்கு ஆகியவை. 

         சங்க இலக்கியங்கள் பழங்காலத் தமிழரின் வாழ்க்கை முறை நாகரிகம் ஆகியவற்றை விளக்குகின்றன. பழந்தமிழரின் வீரம் அரசியல், கொடை ஆகியவற்றையும் விளக்குகின்றன. சில நூல்கள் பழந்தமிழரின் குடும்ப வாழ்க்கை பற்றிக் கூறுகின்றன. சில நூல்கள் வாழும் முறை பற்றிக் கூறுகின்றன

        தமிழ் மொழியின் சங்க இலக்கியங்களுள் திருக்குறளும் ஒன்று. நீதி நூல்களுள் திருக்குறளே தலை சிறந்த நூலாக விளங்குகிறது. இதை இயற்றியவர் திருவள்ளுவர்.

         இருபதாம் நூற்றாண்டின் முற்பகுதியில் வாழ்ந்தவர் கவிஞர் பாரதியார். இவர் மகாகவி என்று அழைக்கப்படுகிறார். தம் கவிதைகள் மூலம் மக்களின் மனதில் நாட்டுப்பற்றை வளர்த்தார். அவர் தேசியக் கவிஞர் என்றும் அழைக்கப்படுகிறார்.

        அகத்தியம்" தமிழ் மொழியின் முதல் இலக்கண நூலாகும் இது இப்போது முழுமையாகக் கிடைக்கவில்லை. அகத்தியரின் மாணவர் தொல்காப்பியர் என்பவர் இயற்றிய நூல் தொல்காப்பியம் இதுவே தமிழின் முதல் இலக்கண நூலாகக் கருதப்படுகிறது. பின் வந்த காலகட்டங்களில் நன்னூல், தண்டி அலங்காரம் போன்ற இலக்கண நூல்கள் எழுதப்பட்டன.


      3) तिरुपति की विशेषताएँ क्या है?

                         திருப்பதி

              திருப்பதி நம் நாட்டின் புண்ணியத் தலங்களுள் ஒன்று இது ஆந்திர மாநிலத்தின் சித்தூர் மாவட்டத்தில் உள்ளது திருப்பதியில் உள்ள இறைவன் பெயர் திருவேங்கடேசப் பெருமாள் என்பதாகும். இவரை வடநாட்டவர் பாலாஜி என்ற அழைப்பர். இவர் ஏழுமலைகளின் மேல் வாழ்கிறார் அதனால் ஏழுமலையான் என்றும் மக்கள் அழைப்பார்கள்

             திருப்பதி கோவிலுக்குள் நுழைந்தவுடன் வலப்பக்கத்தில் கிருஷ்ணதேவராயர் அவருடைய துணைவியார் ஆகியோரது சிலைகள் காட்சியளிக்கின்றன. கொஞ்சம் முன்னே சென்றால் உயர்ந்த கொடிக்கம்பம் நிற்கிறது. வேங்கடவன் ஆலயக் கோபுரத்தை ஆனந்த நிலையம் என்பர். பெருமாளின் திருமேனியின் அழகு கண்களைக் கூசச் செய்கிறது.

              பகவானின் கழுத்தில் தங்க நகைகள் அணிவிக்கப்பட்டுள்ளன. இவை பல்லவர், சோழர், பாண்டியர் மற்றும் விஜயநகர மன்னர்களால் அளிக்கப்பட்டவை. பக்தர்கள் ஆண்டவனுக்குக் காணிக்கை செலுத்தும் பணம் பலகோடி ரூபாயாகும். இந்தப் பணம் சாலைகள் அமைத்தல், பேருந்துகள் இயக்குதல், சத்திரம் கட்டுதல், ஆலய நிர்வாகம், சமய நூல்கள் வெளியிடுதல் ஆகியவற்றுக்குச் செலவு செய்யப்படுகிறது.



निम्नलिखित गाड्यांश का अपनी प्रांतीय भाषा में अनुवाद कीजिए :- 

        (1)

     नित्य सबेरे उठो। अपने माता-पिता, बड़े भाई-बहन और अन्य सब बुजुर्गों को प्रणाम करो। जब कोई नया आदमी तुम्हारे घर आए, या तुम अपने पिताजी के साथ किसी के यहाँ जाओ, तो उनको प्रणाम करो। वे जो बाते तुमसे पूछें, उनका सोच समझकर उत्तर दो। इन्तीं बातों को "आदर करना" कहते हैं।


தினமும் காலையில் எழுந்திரு உன் அன்னை, தந்தை அண்ணன், அக்கா மற்றுமுள்ள பெரியோர்கள் ஆகியோருக்கு வணக்கம் செய்ய யாரேனும் புதியவர் வீட்டிற்கு வந்தாலோ, நீ உன் தந்தையுடன் பிறருடைய வீட்டிற்கு சென்றாலோ முதலில் அவர்களுக்கு வணக்கம் செய், அவர்கள் உன்னிடம் எந்த விஷயங்களைப்பற்றியாவது வினவினால் நன்கு யோசித்து அவற்றிற்கு விடையளி, இவற்றைத்தான் மரியாதை செய்தல் என்கிறோம்.


        (2)


किसान गाँव में रहते हैं। वे पहले खेत जोतते हैं, फिर वीज बोते हैं। खेत की सिंचाई करते हैं, खाद देते हैं; खेत की रखवाली करते हैं। अनाज पक जाने पर फसल काटते हैं। वे चावल, गेहूँ आदि कई तरह के अनाज पैदा करते हैं। उनकी मेहनत से हम भोजन पाते हैं।


உழவர்கள் கிராமங்களில் வாழ்கிறார்கள். அவர்கள் முதலில் வயலை உழுகிறார்கள்: பிறகு விதை விதைக்கிறார்கள் : வயலுக்கு நீர் பாய்ச்சுகிறார்கள் : உரமிடுகிறார்கள்: வயலுக்குக் காவல் காக்கிறார்கள் தானியம் முற்றிய பிறகு பயிர் அறுவடை செய்கிறார்கள். அவர்கள் நெல் கோதுமை முதலிய பலவகையான தானியங்களை விளைவிக்கிறார்கள் அவர்களுடைய உழைப்பால் நாம் உணவு பெறுகிறோம்.

      (3)

तन्दुल्ला रहने के लिए भोजन के कुछ नियमों का पालन करना चाहिए। भूख बल्ले पर ही खाना चाहिए। चीजों को खूब चबाकर खाना चाहिए जल्दी- जल्दी नहीं खाना चाहिए। भोजन में मिर्च मसाला ज्यादा नहीं होना चाहिए। कुछ चीजें खाने योग्य नहीं होती। उनको कभी नहीं खाना चाहिए।


உடல் நலத்துடன் இருப்பதற்கு உணவு பற்றிய சில விதிமுறைகளைக் கடைப்பிடிக்க வேண்டும், நன்றாகப் பசித்த பிறகே சாப்பிட வேண்டும். உணவுப் பொருட்களை நன்றாக மென்று தின்ன வேண்டும். அவசர அவசரமாகச் சாப்பிட்டக் கூடாது. உணவில் மிளகாய் மசாலா அதிகம் இருக்கக்கூடாது. சில பொருட்கள் உண்ணத் தகுந்தவையல்ல. அப்படிப்பட்ட பொருட்களை ஒருபோதும் சாப்பிடக்கூடாது


     (4)


गंगा के किनारे एक गाँव था। उसका नाम शृंगवेरपुर था। गुह उस गाँव का मुखिया या। वह भील जाति का या। वह पढ़ा-लिखा नहीं था लेकिन बड़ा चतुर और अक़लमंद या। गंगा नदी में नाव चलाकर वह अपना जीवन बिताता था।


கங்கை கரையில் ஒரு கிராமம் இருந்தது. அதன் பெயர் சருங்கபேரபரம், அந்தக் கிராமத்துத் தலைவன் குகன், அவன் வேடர் குலத்தைச் சேர்ந்தவன். அவன் எழுதப்படிக்கத் தெரிந்தவன் அல்லன் ஆனால் அவன் மிகுந்த திறமைசாலியாகவும், அறிவாளியாகவும் இருந்தான். கங்கை ஆற்றில் படகு ஓட்டித் தன் வாழ்க்கையை


நடத்திவந்தான்,


(5)


ताजमहल दुनिया की सात अद्भुत चीज़ों में से एक है। करीब तीन सौ सालों के पहले बना यह महल आज और अभी बना-सा दीखता है। चांदनी रात में इसका सौन्दर्य सौ गुना बढ़ जाता है। इसको देखने के लिए दूर-दूर के देशों से लोग आते हैं। सब लोग इसकी खूबसूरती और कारीगरी देखकर दाँतों तले उँगली दवाते हैं।


தாஜ்மஹல் உலகின் ஏழு அற்புதங்களில் ஒன்றாக விளங்குகிறது. ஏறக்குறைய முந்நூறு ஆண்டுகளுக்கு முன் கட்டப்பட்ட தாஜ்மஹல் இன்று இப்பொழுது தான் கட்டப்பட்டது போல் தோன்றுகிறது நிலா வெளிச்சத்தில் இதன் அழகு நூறு மடங்கு கூடிவிடுகிறது. இதை காண்பதற்காக நெடுந்தொலைவிலுள்ள நாடுகளிலிருந்தெல்லாம் மக்கள் வருகிறார்கள். எல்லா மக்களும் இதனுடைய அழகையும் வேலைப்பாட்டையும் கண்டு வியப்படைகின்றார்கள்.


(6)


रत्नाकर ने एक दिन एक साधु को पकड़ा। वह उसको मारने लगा। साधु ने शांत स्वर में कहा- "तुम मुझे क्यों मारते हो? मत मारों। मारने से पाप होगा। यह पाप कोई नहीं वाँटेगा। यह काम तुम छोड़ दो।" साधु निडर होकर बोला। 

இரத்தினாகரன் ஒருநாள் ஒரு துறவியைப் பிடித்தான் அவன் அவரை அடிக்கத் தொடங்கினான். துறவி சிறிதும் அஞ்சாமல் அமைதியான குரலில் அவனிடம், "நீ என்னை ரன் அடிக்கிறாய். அடிக்காதே. அடிப்பதனால் பாவம் உண்டாகும், அந்தப் பாவத்தை எவனும் பகிர்ந்துகொள்ள மாட்டான். இந்தத் தொழிலை நீ விட்டுவிடு என்று கூறினார்.)


(7)


बड़े कवि होने पर भी भक्त पोतना खेती-बारी करके अपना जीवन यापन करते थे। वे लोगों से कहते थे- "खेती-बारी का पेशा उत्तम है। इससे किसी को कोई नुकसान नहीं होगा। इसलिए मैं यह पेशा छोड़ना नहीं चाहता।"


பெருங்கவிஞராக இருந்தும் போதனா உழவுத் தொழில் செய்தே வாழ்க்கை நடத்திவந்தார். "உழவுத்தொழில் உயர்வன தொழில் இதனால் யாருக்கும் எந்த இழப்பும் ஏற்படாது. ஆதலால் நான் இந்தத் தொழிலை விட விரும்பவில்லை" என்று போதனா மற்றவரிடம் கூறிவந்தார்


(8)


एक हफ्ता बीत गया। सवेरे का समय था। राजा रानी के साथ महल में बैठे थे। नया मंत्री भी पास में रहा। राजा ने नये मंत्री से पूछा, "कल रात को मैं लेटा हुआ था। उस समय किसीने मेरी छाती पर लात मारी। मना करने पर भी वह बार-बार लात मारता रहा।"


ஒரு வாரம் கழிந்தது. காலை நேரம், அரசர் அரசியுடன் அரண்மனையில் அமர்ந்திருந்தார். புதிய அமைசானும் அருகில் இருந்தான். அரசர் புதிய அமைச்சனை நோக்கி, "நேற்று இரவு நான் படுத்திருந்தேன். அப்போது யாரோ ஒருவன் என் மார்பின்மீது காலால் உதைத்தான், நான் தடுத்தும் கூட அவன் உதைத்துக் கொண்டேயிருந்தான். அவனுக்கு என்ன தண்டனை கொடுக்கலாம் என்று கேட்டார்


(9)


एक गाँव में एक बनिया रहता था। वह बड़ा लालची था। उसी गाँव में एक गरीब आदमी रहता था। वह बड़ा चालाक था । एक दिन वह बनिये के घर गया और बोला भाई साहब, कल मेरे घर में एक शादी है। आप मुझे कुछ बरतन दीजिए।


ஓர் ஊரில் ஒரு வணிகன் வசித்து வந்தான், அவன் மிகுந்த பேராசைக்காரன். அதே ஊரில் ஓர் ஏழை வாழ்ந்து வந்தான். அவன் பெரிய தந்திரக்காரன். ஒரு நாள் அவன் வணிகன் வீட்டிற்குப்போய், அண்ணே, நாளை என் வீட்டில் ஒரு திருமணம் நடைபெறவிருக்கிறது நீங்கள் எனக்குக் கொஞ்சம் சமையல் பாத்திரங்கள் கொடுங்கள் என்று கேட்டான்


(10)


गुलाब काली या लाल मिट्टी में खूब पनपता है। एक अंश गोवर की खाद चार अंश मिट्टी में मिलाकर दीजिए तो पौधा खूब बढ़ेगा। गुलाब खुली जमीन में ही पनपेगा। इसे सूरज की रोशनी खून मिलनी चाहिए। गीली ज़मीन गुलाब की खेती के योग्य नहीं है।


ரோஜா வண்டல் மண் அல்லது செம்மண்ணில் நன்றாக தழைத்து வளர்கிறது. ஒரு பங்குச் சாண உரமும் நான்கு பங்கு மண்ணும் சேர்த்து உரமாக இட்டால் ரோஜாச் செடி நன்றாக வளரும் ரோஜா திறந்த வெளியில்தான் தழைத்து வளரும், இதற்குச் சூரிய ஒளி நன்றாகக் கிடைக்க வேண்டும். ஈரமண் ரோஜா பயிரிடுவதற்கு ஏற்றதன்று


(11)


मंदिर और मूर्ति को देखने दूर-दूर से लोग आने लगे उनमें सोलह साल का एक लड़का था। उसने मूर्ति को देखकर कहा- "यह मूर्ति बहुत सुन्दर है। पर इसके पत्थर में दोष है। इसलिए यह मूर्ति पूजा के योग्य नहीं है।" राजा को भी यह खबर मिली।


கோவிலையும் சிலையையும் பார்ப்பதற்கு


நெடுந்தொலைவிலிருந்தெல்லாம் மக்கள் வந்தனர். அவர்களுள் பதினாறு வயது பையன் ஒருவனும் இருந்தான். அவன் அந்தச் சிலையைப் பார்த்துவிட்டு "இந்தச்சிலை மிக அழகாக இருக்கிறது. ஆனால் இது செய்யப்பட்டுள்ள கல் குற்றமுள்ளது. அதனால் இந்தச் சிலை பூஜைக்குகந்தது அன்று” என்று தெரிவித்தான். இந்தச் செய்தி அரசன் காதுகளுக்கெட்டியது.

महात्मा गाँधी ने जब स्वतंत्रता की बिगुल बजायी और अंग्रेज़ों से युद्ध होह दिया, तो राजेन्द्र बाबू भी महात्माजी के साथ मैदान में आ डटे। वे एक सिपाही की भांति सदा मोर्चे पर डटे रहे। राजेन्द्र बाबू ने देश के लिए नाना प्रकार के कष्ट सहन किये और कई बार जेल गये। राजेन्द्र वाबू भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने।


அண்ணல் காந்தியடிகள் சுதந்திரப் போராட்டத்திற்கு அழைப்பு விடுத்து ஆங்கிலேயருடன் சுதந்திரப் போர் தொடுத்தபொழுது இராசேந்திர பாபுவும் காந்தியடிகளுடன் களமிறங்கினார். அவர் ஒரு போர்வீரனைப் போல் எப்பொழுதும் போர்முகத்தில் உறுதியாக நின்றார் இராசேந்திர பாபு நாட்டிற்காகப் பல துன்பங்களைத் தாங்கிக் கொண்டார் பலமுறை சிறைக்குச் சென்றார்


(13)


एस्किमो बड़े ही परिश्रमी होते हैं। परिश्रम से वे न तो कभी जी चुराते हैं और न घबराते हैं। कठिन परिश्रम के बिना इनका गुज़र ही ना मुश्किल है। एस्किमो शिकार करने में बड़े ही चतुर होते हैं। अब एस्किमो मोटर-बोट पर बैठकर बन्दूकों की सहायता से शिकार करने लगे हैं।


எஸ்கிமோக்கள் மிகுந்த உழைப்பாளிகள், உழைப்பதற்கு அவர்கள் பின்வாங்குவதுமில்லை: அஞ்சுவதுமில்லை. பாடுபட்டு உழைக்காவிட்டால் இவர்கள் வாழ்க்கை நடத்துவதே கடினமாகிவிடும் எஸ்கிமோக்கள் வேட்டையாடுவதில் வல்லவர்கள். முன்னர் இவர்கள் சாதாரணப் படதகளில் சென்று வில் அம்பைப் பயன்படுத்திக் கடல் பிராணிகளை வேட்டையாடி வந்தனர். ஆனால் இப்போது விசைப்படகுகளில் வேட்டையாடுகின்றனர்.) சென்று துப்பாக்கிகளைக் கொண்டு


(14)


ओणम के दिन लोग तरह-तरह के खेल खेलते हैं। उस दिन स्कूल और दफ्तरों की छुट्टी होती है। नदियों में नौका विहार चलता है स्त्रियाँ मंगल गीत गाकर नाचती हैं। ओणम खुशी का त्योहार है और केरल का राष्ट्रीय त्योहार है।


ஓணம் பண்டிகையன்று கல்வி நிலையங்களுக்கும் அறுவகைங்களுக்கும் விடுமுறை நாளாகும். அன்று கேரள மக்கள் பலவகையான விளையாட்டுகள் விளையாடுகிறார்கள், ஆறுகளில் படகுவிளையாட்டு நடைபெறுகிறது. பெண்கள் மங்கள கீதம் இசைத்து நடனம் ஆடுகின்றனர். ஓணம் மக்களின் மகிழ்ச்சித் திருவிழா மட்டுமின்றிக் கேரள மாநிலத்தின் தேசியப் பண்டிகையும் ஆகும்


(15)


श्रीनगर के पास डल नामक सबसे सुन्दर झील है। डल झील में तैरते हुए खेतों का दृश्य बहुत ही सुन्दर होता है। ये तैरते हुए खेत तख्तो पर घास पूस आदि फैलाकर बनाये जाते हैं। इनके ऊपर मिट्टी बिछाकर उसमें टमाटर, खीरा आदि बोये जाते हैं। 


"ஸ்ரீநகருக்கருகில் "டல்" என்னும் மிக அழகிய ஏரியுள்ளது. உடல்" ஏரியில் மிதக்கும் வயல்களின் காட்சி மிகவும் அழகானது மரப்பலகைகளை இணைத்து நீரில் மிதக்கவிடுகின்றனர். அதன்மேல் புல், வைக்கோல் முதலியவற்றைப் பரப்புகின்றனர். அவற்றின் மேல் மண்ணைப்பித் தக்காளி, வெள்ளரிக்காய் முதலியன பயிரிடுகின்றனர்


(16)


अमेरिका में इसी समय संसार के सब धर्मों की एक बड़ी सभा हुई। उसमें शामिल होने के लिए स्वामीजी भारत की ओर से भेजे गये थे। सभा में व्याख्यान देने के लिए उन्हें केवल पन्द्रह मिनट मिले थे। पर इतने थोडे से समय में ही उन्होंने भारतीय धर्म की उत्तमता सिद्ध कर दी। उनके दिये हुए व्याख्यान की सभी विद्वानों ने बहुत प्रशंसा की।


இச்சமயத்தில் அமேரிக்காவில் உலகிலுள்ள அனைத்து மதங்களின் பேரவை கூடியது. அதில் கலந்துகொள்ள சுவாமி விவேகானந்தர் பாரத நாட்டின் சார்பில் அமேரிக்கா சென்றார் பேரவையில் உரையாற்றுவதற்கு அவருக்குப் பதினைந்து நிமிடங்கள் தரப்பட்டன. ஆனால் இந்தக் கொஞ்ச நேரத்திலேயே அவர் நிகழ்த்திய விரிவுரையை எல்லா அறிஞர் பெருமக்களும் பாராட்டினார்.

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Tuesday, February 9, 2021

Visharadh poorvardh नवीन हिन्दी व्याकरण 50%

 

          Visharadh poorvardh 

        नवीन हिन्दी व्याकरण 50%

1.निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।


1 संधि किसे कहते है? उसके कितने भेद हैं? सोदाहरण समझाइए ।  October 

2. स्वर संधि किसे कहते हैं? उसके कितने भेद है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।

3. शब्द किसे कहते हैं? अर्थ की दृष्टि से उसके कितने भेद है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। 

4. व्युत्पत्ति की दृष्टि से शब्द कितने प्रकार के होते हैं ? ये बया क्या है? सोदाहरण लिखिए। oct

5. प्रयोग की दृष्टि से शब्दों के कितने भेद हैं? सोढाहरण समझाइए।

6. संज्ञा किसे कहते है? अर्थ की दृष्टि से उसके कितने भेद हैं ? उदाहरण सहित लिखिए।oct

7. सर्वनाम किसे कहते हैं? उसके कितने भेद हैं? सादाहरण समझाइए। oct

8. विशेषण किसे कहते है। उसके कितने भेद हैं? 

     उदाहरण सहित समझाइए। क्रिया किसे कहते हैं? oct

9. कर्म की दृष्टि में उसके कितने भेद हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।

10 बनावट की दृष्टि से क्रिया के कितने भेद है? उदाहरण दीजिए। oct

11 लिंग किसे कहते हैं? हिंदी में लिंग-परिवर्तन के मुख्य नियम सोदाहरण समझाइए।

12.एकवचन से बहुवचन बनाने के कुछ मुख्य नियम क्या-क्या है? सोदाहरण समझाइए। -oct

13. कारक किसे कहते हैं? उसके भेदों को उदाहरण सहित समझइए। 




Thursday, February 4, 2021

Visharadh poorvardh / இலக்கியக் கனிகள்/ important questions 50% Syllabus

 

      

                   Visharadh poorvardh 

                

                  இலக்கியக் கனிகள்


        1. திருமூலர் திருமந்திரம்


முன்னுரை

        நந்திதேவர் மரபில் வந்தவர் எண்வகைச் சித்தி கைவரப்பெற்றவர் தவராச யோகி என்று தாயுமானவரால் போற்றப்பட்டவர் திருமூலர், அவர் இயற்றியதே சைவசித்தாந்த முதல் நூல் என்றும், பத்தாம் திருமுறை என்றும் கூறப்படும் திருமந்திரம். அவர் நூல் சிறப்பைப்பற்றி இக்கட்டுரையில் விரிவாகக் காண்போம்

      பொருள்

          ஒருமுறை திருமூலர், திருவாவடுதுறையில் சில பசுக்கள், பாம்பு கடித்து இறந்த மூலன் என்ற மாடு மேய்ப்பவனைச் சூழ்ந்து கதறக் கண்டார். இந்நிலையில் இறைவன் திருவருளால் அப்பசுக்களின் துயரைப் போக்கக் கருதித் தம் உடலை ஓர் இடத்தில் மறைத்து வைத்துத் தம் உயிரை அம்மூலன் உடலில் புகுத்தினார் மூலன் உயிர் பெற்று எழக்கண்ட பசுக்கள் அவரை மோந்து கனைத்தன; துள்ளின. கன்றை நினைந்து ஊர் நோக்கிச் சென்றன. மூலன் மனைவி தெருவில் நிற்கும் திருமூலரைத் தன் கணவன் எனக்கருதி அழைக்க நமக்குத் தொடர்பு ஒன்றும் இல்லை' என்று கூறித் திருமூலர் பொதுமடம் நுழைந்தார். தம் உடல் தேடியும் காணப்பெறாதது கண்டு இறைவன் ஆகம உண்மைப் பொருளை உலகிற்கு அருளிச் செய்யவே தம் உடலை மறைத்தார் போலும் என்று கருதித் திருவாவடுதுறையில் ஓர் அரசமரத்தின் கீழ் இருந்து ஆண்டிற்கு ஒரு பாடலாக மூவாயிரம் பாடல்களைப் பாடியருளினார்.

        இவ்வாறு திருமூலர் இயற்றிய திருமந்திரம் ஒன்பது தந்திரம் கொண்டது. அது சாத்திர நூல்; தோத்திர நூல் அறநூல். உள் நிகழும் நெறியாவருக்கும் ஒக்குமல்லவா திருமூலர் கருத்தும், திருவள்ளுவர் கருத்தும் பல இடங்களில் ஒன்று படக் காணலாம். எடுத்துக்காட்டாகக் காகம் தனக்குக் கிடைத்த இரையினைத் தனித்து உண்ணாது. பிற காகங்களையும் அழைத்து உண்ணும் என்று திருவள்ளுவர் கூறுகின்றார். இக்கருத்தைத் திருமூலரும் காக்கை வாயிலாக


       வேட்கை உடையீர் விரைந்து ஒல்லை

        உண்ணன்மின்

        காக்கை கரைந்து உண்ணும் காலம் அறிமினே

என்று கூறுகின்றார்.

           திருவள்ளுவர் வறுமை கொடியது அதை விடக்கொடியது ஒன்றும் இல்லை என்று கூறுகின்றார். திருமூலரும் வறுமை உற்றவர்களுக்குக் கொடை இல்லை, கோளில்லை, கொண்டாட்டமில்லை. அவர் நடைப்பிணம் என்கின்றார். நேற்று இருந்த ஒருவன் இன்று இல்லை என்ற பெருமை உடையது இந்த உலகம் என்று திருவள்ளுவர் நிலையாமையைப் பற்றிக் கூறுகின்றார்.  

          திருமூலரும், உணவு உண்ட மனைவியுடன் பேசி இருந்த இடப்பக்கம் வலி என்று படுத்த மணாளன் இயற்கை எய்தினான் என்று கூறுகின்றார்.

          திருவள்ளுவர், ஆசை இல்லாதவருக்குத் துன்பம் இல்லை என்று கூறுகிறார். இவ்வாறே திருமூலரும் ஆசை விட விட ஆனந்தம் ஆம் என்று முடிக்கின்றார்.

           திருமந்திரம் பல உவமைகளைத் தன்பால் கொண்டது. எடுத்துக்காட்டாகப் பலாக்கனி விட்டு ஈச்சம்பழம் நயப்போர் நாடி உண்பது போலப் பிறன்மனை மனையாள் அகத்திருக்கப் பிறர் மனையாளை விரும்பும் செயல் உள்ளது என்கின்றார். மலரில் மணம் மறைந்திருப்பது போலக் கண்ணுக்குத் தெரியாமல் சீவனில் சிவம் கலந்திருக்கும் என்ற உண்மையை,

     பூவினில் கந்தம் பொருந்திய வாறுபோல்

     சீவனுக்குள்ளே சிவமணம் பூத்தது

என்று உவமை மணம் கமழ உயர்ந்த உண்மை ஒன்றைக் கூறுகின்றார்.

         இறுதியாகச் சில தத்துவப் பொருளை நகைச்சுவை தோன்ற எளிய முறையில் கூறி உயர்ந்த உண்மையை விளக்குவார் திருமூலர். எடுத்துக்காட்டாகக் கத்திரி விதைக்கப் பாகல் முளைத்துப் பின் தோண்டிப் பார்க்கப் பூசணி பூக்கத் தோட்டக்குடிகள் தொழுது ஓடப் பின்னர் தோட்டம் முழுவதும் வாழை பழுத்தது என்கிறார். இதன் உண்மை யோகப் பயிற்சி செய்ய வைராக்கியம் தோன்றும், தத்துவ ஆராய்ச்சி செய்யச் சிவம் தோன்றும், சிவம் தோன்ற ஐம்பொறி அடங்கும் ஆன்ம லாபம் கிட்டும் என்பதாகும். ஐம்பொறிகளை அடக்கி ஆள்வோர் பேரின்ப வாழ்வில் திளைப்பர் என்ற உண்மைப் பொருளைக் கூறவரும் திருமூலர் மேய்ப்பார் இன்றித் திரியும் பார்ப்பான் பசு ஐந்தும் பாலாய்ச் சொரியும்' என்று கூறுகின்றார்.


முடிவுரை:

           இவ்வாறு சைவத் திருமுறைகளில் பத்தாம் திருமுறை எனப் போற்றப்படும் திருமூலர் திருமந்திரம் தன்னேரிலாத உயர்ந்த உண்மைகளைக் கொண்ட உயர்ந்த தமிழ்க் கருவூலம் என்றால் அது உண்மை வெறும் புகழ்ச்சி இல்லை.


           ************************

1.  இலக்கியம் காட்டும் இன்பத் தம்பியர்

     முன்னுரை

          யாதும் ஊரே யாவரும் கேளிர் என்ற பண் பாடுவது தமிழ் மரபு. உடன் பிறவாதோரையும் உடன் பிறந்தவராகக் கொண்டு வாழ்வது தமிழர் மரபு ஆதலின், இலக்கியம் காட்டும் இன்பத் தம்பியர் சிலர் வரலாற்றை இக்கட்டுரையில் விரிவாகக் காண்போம்.

      பொருள்

          'கல்வியில் பெரியவர் என்று போற்றப்படும் கம்பர் தாம் இயற்றிய இராம காதையில் வரும் தம்பியர் பலர் அவருள் ஒருவனே இலக்குவன் இவன் இராமன்பால் பெரும் பற்றுக் கொண்ட தம்பி. இராமன் கானகம் சென்றபோது தானும் நிழல்போல உடன் சென்றவன். இராமன் சிற்றன்னையால் காடு செல்ல நேர்ந்தது என்பது கேள்வியுற்றுச் சீற்றங் கொண்டு கைகேயியின் எண்ணம் நிறைவேற விடேன்' என்று வெகுண்டு கூறி நின்றவன். இவன் இராமனை மீட்டு நாட்டிற்கு அழைத்துச் செல்ல வரும் பரதன் பண்பு உணராது அவனைக் கொன்று அழிப்பதாகக் கூறி நின்றவன். இவ்வாறு இவன் கொள்ளும் சீற்றம் எல்லாம் இராமன் பால் வைத்த பேரன்பே காரணம் ஆகும்.

          அயோமுகி என்ற அரக்கி இலக்குவனைத் தூக்கிச் செல்ல, அவனைக் காணாது வருந்திய இராமன், 

       அறப்பால் உளதேல் அவன்முன் னவனாய்ப்

       பிறப்பால் உறின் வந்து பிறக்க 

           என்று கூறி இறக்கத் துணிகிறான். ஆனால், தம்பியால் மூக்கு அறுபட்ட அரக்கி அயோமுகி குரல் கேட்டு அவன் இருப்பிடம் உணர்ந்து கண்டு அளவிலா மகிழ்ச்சி அடைகிறான். இவ்வாறே, இந்திரசித்து ஏவிய நாகபாசத்தால் இலக்குவன் இறந்தால் தானும் இறப்பேன்' என்று இராமன் கூறுவது அவன் அன்பின் ஆழத்தைக் காட்டும்.

          அடுத்துக் கம்பர் காட்டும் தம்பியாம் பரதனின் பண்பு நலத்தைப் பார்ப்போம். இராமன் நாடு ஆளாமல் காடு ஆள நேரிட்ட பொழுது தன் தாய் கோசலையிடம்

      பங்கமில் குணத்து எம்பி பரதனே

      துங்கமா முடிசூடுகின்றான்

 என்று கூறுகிறான்

              இவ்வாறே தந்தையை இழந்த, இராமனைப் பிரிந்த பரதனும், அந்தமில் பெருங்குணத்து இராமனே, தன் தந்தையும், தாயும், தம்முனும் ஆதலால் அவனைக் கண்டு வணங்கினாலன்றித் தன்துயர் தீராது என்று கூறுகின்றான். தாய் வாங்கிக் கொடுத்த ஆட்சியைத் தீவினை என்ன நீத்துச் சிந்தனை முகத்தில் தேக்கி இராமனை மீட்கக் காடு போந்த பரதன் பண்பிற்கு ஆயிரம் இராமர் ஒன்று சேர்ந்தாலும் அவன் ஒருவனுக்கு ஈடாக மாட்டார்கள் என்று குகன் கூறும் கூற்றுக்கு மாற்றுரைக்கக் கல் இல்லை. இராமனே பரதனைச் "சேணுயர் தருமத்தின் தேவி என்றும் 'செம்மையின்  ஆணி என்றும் போற்றி உரைக்கின்றான்

             குலத்தினால் தாழ்ந்து, கொள்கையால் உயர்ந்து தொடர்ந்து தம்பியாக இராமனால் போற்றப்பட்டவன் கங்கை வேடன் குகன். இவன் இராமனிடத்துப் பேரன்பு கொண்டவன். அதனால் தான் இராமனை மீட்கப் படையுடன் வந்த பரதனை அவன் மனநிலை உணராது இராமனைக் காட்டிற்கு அனுப்பியதோடு அவன் மீது போர் தொடுக்கவும் வருகின்றான் என்று கருதி அப்பரதன் படைகளை எலிகளாகவும், தன்னைப் பாம்பு எனவும் கூறுகின்றான். ஆனால் மரவுரி தரித்து, உடல் மாசடைந்து, ஒளியிழந்த முகம் கொண்டு துன்பமே உருவமாய் இராமன் சென்ற திசை நோக்கித் தொழுது வருகின்ற பரதனைக் கண்டு தன் மனக்கருத்தினை மாற்றிக் கொள்கின்றான். வில்கையிலிருந்து விழ விம்முகிறான் எம்பெருமான் பின் பிறந்தார் இழைப்பரோ பிழைப்பு என்ற முடிவுக்கு வருகின்றான்.

               இனி, இராவணன் தம்பியாம் கும்பகருணனின் சிறப்பைக் காண்போம். கும்பகருணன் தோள் வலிமை வாய்ந்தவன். அவன் இருதோள் அகலம் காணப் பலநாள் பிடிக்குமாம். செஞ்சோற்றுக் கடன் கழிக்க விரும்பிய கும்பகருணன் தன் தமையன் செய்வது தவறு என்று அறிந்தும், தன்னை நெடிது நாள் வளர்த்த போர்க்கோலம் செய்வித்துப் போருக்கு அனுப்பிய இராவணனுக்காகவே போரிட்டு மாள்வேன்; நீர்க்கோலம் போன்ற நிலையாத வாழ்வை விரும்பேன் என்று கூறும் அவன் கூற்று செய்ந்நன்றி மறவாத சீலத்திற்கு தலைவனாம் தலைவனாம் ஓர் உரைகல் இன்னும் குரங்கினத் சுக்கிரீவனையும், வீடணனையும் அரக்கர்குலத் தம்பியாக ஏற்று வாழ்ந்தவன் கோசல நாடு உடைய வள்ளல் எனப் போற்றப்படுகின்ற இராமன்.

             இவ்வாறு வில்லின் பெருமை கூறும், இராம காதை கூறும் தம்பியர் சிலரைக்கண்ட நாம் வேலின் பெருமை கூறும் கந்த புராணம் காட்டும் தம்பி ஒருவனைக் காண்போம், சிவனருள் பெற்றவன் சூரபதுமன். அவன் ஆறிருதடந்தோள் ஆறுமுகனைப் பாலன் என்று கருதி அவனோடு பொருது மைந்தரை இழக்கின்றான். தம்பி சிங்கமுகனைப் போருக்கு அனுப்புகின்றான். மைந்தரையும் மதிசால் அமைச்சரையும் சூரபதுமனுக்கு அறிவுரை இழந்த கூறத்தொடங்கிய அருமைத்தம்பி சிங்கமுகனின் அறிவுரை, தமையனுக்கு நஞ்சாகத் தோன்றிற்று கெடுமதி கண்ணுக்குத் தெரியாதல்லவா?

          கந்தனாம் ஒருவனைக் கடக்கப் பெற்றிடின் 

           வந்து உனைக் காண்பன் .

என்று வஞ்சினம் கூறிப் போர்மேற் சென்று மடிந்து புகழ் பெறுகிறான் சிங்கமுகன்

       முடிவுரை

          இவ்வாறு, இராம காதையும், கந்த புராணமும் காட்டும் தம்பியர் வரலாறு செய்ந்நன்றி மறவாத சீலத்திற்கு - கடமை உணர்ச்சிக்கு - உண்மை அன்பிற்கு ஒரு பிறப்பிடம் என்றால் அவர்  பெருமையை என்னென்பது.!


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                       3. இலக்கியக் கரும்பு

       முன்னுரை

        ஒரு நாட்டின் பழமையின் பெருமையைக் காட்டுவது இலக்கியம். நம்முன்னோர் நமக்குக் கொடுத்து விட்டுப்போன கருவூலம் இலக்கியம். அது கூறும் கரும்பின் சிறப்பைப்பற்றி இக்கட்டுரையில் விரிவாகக் காண்போம்

        பொருள்

         ஒரு நிலத்திற்கு அழகு நெல்லும், கரும்புமாம். இவ் விரண்டினுள் கரும்பினை இவ்வுலகிற்குக் கொணர்ந்தவர் கடையேழு வள்ளல்களில் ஒருவராகிய அதியமான் நெடுமான் அஞ்சியின் முன்னோர் எனத் தங்கம் நிகர் சங்க இலக்கியங்களில் ஒன்றாகிய புறநானூறு கூறுகின்றது.

          இத்தகைய கரும்பு பல்வேறு இலக்கியங்களில் பாங்குற எடுத்தாளப்படுகிறது,  தமிழ்நாட்டுச் சாக்கிரடீஸ் என்று போற்றப்படும் திருவள்ளுவர் இழோர் நன்கு ஒறுக்கப்பட்ட பின்னரே பயன்படுவர் என்பதைக் கூறவருங்கால் ஆலையில் இட்டுப் பிழியச் சாறு தரும் கரும்பையே உவமையாகக் காட்டுகிறார் செகவீரபாண்டியன் தாம் இயற்றிய குமரேச வெண்பாவினுள் திருக்குறள் கருத்தைப் பின்பற்றிப் பாண்டவர் சொல்லக் கொடாத துரியோதனன், அவர் கொல்லக் கொடுத்தான் என்று கூறவருகின்றவர், கரும்பு போல் கொல்லப் பயன்படும் கீழ்' என்ற தொடரையே ச காட்டுகின்றார். நீதி நூல்களில் ஒன்றாகிய நாலடியாரும் - நற்குடிப் பிறந்தார் எவ்வளவு வருந்தினும், இகழினும் மனம் மாறுபடாத் தீய சொற்களைக் கூறார்; நன்மையே - புரிவர் என்பதைக் கூற வருங்கால் கரும்பைக் கடித்தும், இடித்தும் சாறு கொண்டாலும் அது இன்சுவையே தரும் என்ற தொடரையே காட்டுகின்றது.

           அருளாளர்கள் கூறுகின்றனர் இறைவனைக் கரும்பு எனவே நாடு போற்றும் நாவுக்கரசர் 'கரும்பினில் கட்டி போல்வார் கடவூர் வீரட்டனார்' என்று போற்றுகின்றார். திருப்புறம்பியத்தில் எழுந்தருளியுள்ள அம்பிகையின் பெயரே 'கரும்படு சொல்லம்மை' ஆகும். இலக்கியங்களில் காமனும், கரும்பு வில்லி என்றும் கரும்பு வில்லோன் என்றும் போற்றப்படுகின்றான்.

         கற்பனைக் களஞ்சியம் என்று போற்றப்படும் துறைமங்கலம் சிவப்பிரகாசர் உயிர் துறந்த போது அவர் பிரிவு ஆற்றாது உடன்பிறந்த தம்பியாம் வேலையர் தாம் சந்ததி இன்றிக் கரும்பின் கணுப்போல் இருந்து துயர் உறுகின்றேன் என்று கரும்பையே எடுத்தாளுகின்றார்

        கொங்குவேள் என்பவரால் இயற்றப்பட்ட பெருங்கதை என்ற நூலில் கரும்பின் ஊறல் எனப்படும் கள் வகை ஒன்று கூறப்படுகின்றது. அழகிய சொக்கநாதர் என்ற அருந்தமிழ்ப் புலவர் மயிலையும் கரும்பையும் காட்டி இரட்டுற மொழிதலாகப் பாடப்பெற்ற பாடல் ஒன்றில் உடலில் கண்களைப் பெறுதல், மன்மதன், முருகன் எனப்பொருள் தரும் வேளால் விரும்பப் பெறுதல், தோகை பெறுதல் அசைந்து ஆடுதல் போன்ற பொதுத் தன்மைகளால் மயிலும் கரும்பும் ஒன்று என்று கூறுகின்றார். 'காதற்ற ஊசியும் வாராது காணும் கடைவழிக்கே' என்று கூறி ஒட்டுடன் பற்று இன்றி உலகைத்துறந்த பட்டினத்தாகும் திருவொற்றியூர்ப் பெருமானைத் தீங்கரும்பாகவே காட்டுகின்றார்.

          ஓங்குபுகழ் ஒற்றிக் கடலருகே நிற்கும் கரும்பு 

என அவர் கூறும் மாண்பே மாண்பு.

          தமிழர் திருநாளாம் பொங்கல் நாளில் மங்காத இடம் பெறுவது கரும்பு தெய்வ மணம் கமழும் பெரியபுராணத்தை இயற்றிய சேக்கிழார் பெருமான் திருமுனைப்பாடி நாட்டில் ஆறுபோலப் பெருகி வரும் கருப்பஞ்சாறு ஆங்காங்கு மலைகளை உடைப்பதாகவும், அவ்வெள்ளத்தைக் கரும்பின் கட்டியாம் வெல்லக் கட்டியால் அடைப்பதாகவும் பேசுகின்றார். இறுதியாக நெஞ்சை அள்ளும் சிலப்பதிகாரம் எனப் பாரதியாரால் போற்றப்படும் சிலப்பதிகாரத்தில் வரும் காப்பியத் தலைவனாகிய கோவலன்-புது மணம் கொண்ட கோவலன் தன் மனைவியாம் கண்ணகியைப் பாராட்டுங்கால்,

     மாசறு பொன்னே வலம்புரி முத்தே 

     காசறு விரையே கரும்பே தேனே 

எனப் பாராட்டும் திறத்தை நாடறியும்; ஏடறியும்

      முடிவுரை

        இவ்வாறு, இலக்கியம் கண்ட இன்பக் கரும்பு படிக்கப் படிக்க இன்சுவை தரும் என்றால் அதன் பெருமையை என்னென்பது?


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                         4. திலகவதியார்

           மாதருக்குள் திலகம் -  நாவுக்கரசரை நல்வழிப்படுத்திய நங்கை-  திலகவதியார். அவர் வரலாற்றை அருள் சிறப்பை இக்கட்டுரையில் விரிவாகக் காண்போம்.

          திலகவதியார் திருமுனைப்பாடி நாட்டில் திருவாமூரில் பிறந்தார். இவர் தந்தையின் பெயர் புகழனார். தாய் மாதினியார். இவர் தம்பியே வேதநெறி தழைத்தோங்க மிகு சைவத்துறை விளங்க வந்து பிறந்த மருணீக்கியார் இத்திலகவதியாருக்குப் பெற்றோர் கலிப்பகையார் என்ற ஒருவரை மணம் பேசியிருந்தனர். அரசன் ஆணையால் கலிப்பகையார் போர்மேற் சென்றிருந்தார். இடையில் திலகவதியாரின் தந்தையும் தாயும் இறந்தனர் இருமுது குரவரை இழந்த திலகவதியாரும், மருணீக்கியாரும் துன்பக்கடலில் மூழ்கினர், உறவினர் தேற்ற ஒருவாறு தேறினர். போர்மேற் சென்றிருந்த சுலிப்பகையாரும் போர்க்களத்தில் உயிர் கொடுத்துப் புகழ் கண்டார் துன்பம் தொடர்ந்தே வருமல்லவா ? 

       இச் செய்தி கேட்ட திலகவதியார் உயிர்விடத் துணிந்தார். தம்பியாம் மருணீக்கியார் அவரைத் தேற்ற முயன்றார். அவர் திருவடிகளில் வீழ்ந்து தம் தாய் தந்தையர் மறைந்த பின்பும் தாம் உயிர் வாழ்ந்திருப்பது அவரை வணங்கப் பெறுவதனால் அவர் உயிர்விடத் துணிந்தால் அவருக்கு முன் தாம் உயிர் துறப்பதாகக் கூறினார் அம் மொழி கேட்ட திலகவதியார் தம்பி வாழத் தாம் வாழ உறுதி கொண்டார். திலகவதியார் உயிர் துறந்திருப்பின் நாம் அப்பர் பெருமான் தொண்டு அறியோம். அவர் உழவாரப்படைச் சிறப்பு அறியோம். ஆதலின் அப்பர் பெருமானை உலகிற்கு அளித்த அன்னை திலகவதியார் எனலாம்.

          திலகவதியார் உயிர்வாழ இசைந்தமை கண்ட மருணீக்கியார் மனவருத்தம் நீங்கினார் உலகில் நிலையாமையை உணர்ந்தார். எங்கும் அறச்சாலை தண்ணீர்ப்பந்தல் அமைத்தார் வேண்டுவோர் வேண்டுவன கொடுத்தார். உலகில் சமண மதமே சாலச்சிறந்த மதம் என்று கருதிச் சமணர் நிறைந்த பாடலிபுரம் சென்றார். சமண மதத்தில் சேர்ந்தார்.

         உண்மை பல உணர்ந்தார். தருமசேனர் என்ற பட்டமும் பெற்றார். சமணத் தலைவராகவும் திகழ்ந்தார்.

        இவ்வாறு பிறமதம் சார்ந்து வாழும் தம்பியின் நிலை குறித்துத் திருவதிகை திலகவதியார் முறையிட்டுத் பிறசமயத்திலிருந்து மாற்ற எம்பெருமானிடம் தம்பியைப் என்று வேண்டும் வேண்டிக்கொண்டார் இறைவனும் திலகவதியார் வேண்டுகோளுக்கு இரங்கி அவர் கனவில் சூலைநோய் கொடுத்துத் தம்பியை ஆட்கொள்வோம்' என்று அருளிச் செய்தார். தருமசேனர் சூலை நோயுற்றார். அந்நோய் அவர் வயிற்றைக் குடைந்து பெரிதும் வருத்தியது சமணர் மயிற்பீலி கொண்டு தடவி அந்நோயை மாற்ற முனைந்தும் பயனில்லை ஒருநாள் ஒருவரும் அறியாதவாறு தருமசேனர் இரவில் திலகவதியார் வாழும் திருவதிகை திருமடத்தை வந்து சேர்ந்தார் தமக்கையின் திருவடிகளில் வீழ்ந்து தம் நோய் தீர்க்க வேண்டினார் தம்மை அடைந்தார் பற்ற்றுக்கும் பெருமான் பாதங்களை வணங்கிப் பணிசெய்வீர்; இது இறைவன் திருவருளே' என்று கூறித் திருநீறு அளித்தார் அதைத் தம் உடலில் பூசிக்கொண்டு திலகவதியார் பின் சென்ற மருணீக்கியார் திருவதிகை வீரட்டானர் கோயிலுக்குச் சென்று சூலை நோய் கூற்றாயினவாறு விலக்ககிலீர் தீரக் எனத் தொடங்கும் திருப்பதிகம் பாடினார், அவர் சூலை நோய் இடம் தெரியாது மறைந்தது. 'உன் திருநாமம் நாவுக்கரசு என்று நிலை பெறுவதாக' என்ற வாக்கு வானில் எழுந்தது அன்று முதல் தருமசேனர் திருநாவுக்கரசரானார்.

       முடிவுரை

          இவ்வாறு, 'உழவாரம் கொள் செங்கையர் என்று போற்றப்படும் திருநாவுக்கரசரை அறப்போர் வீரராக்கிய அன்னை திலகவதியார் என்றால் அவர் நிறையை-பொறையை-மாற்றுரைக்கக் கல் எது ? 


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                    5. மதுரை மாநகர்

      முன்னுரை

           கூடல், நான்மாடக்கூடல், ஆலவாய், கடம்பவனம் கன்னிபுரம் என்று போற்றப்படும் ஊர் மதுரை மாநகர். இது வரலாறு கண்ட பெரு நகரம். தமிழ் வளர்த்த தன்னேரிலாத பாண்டி மாநகரம். இந்நகரின் சிறப்பை இக்கட்டுரையில் விரிவாகக் காண்போம்.

     பொருள்

           மதுரையை வருணிக்கப் புகுந்த ஒரு புலவர் பாண்டி நாட்டைச் செந்தாமரை மலர் என்றார். மதுரை மாநகர் அம்மலரில் திருமகள் வாழும் பொகுட்டு என்றார் இவ்வாறே, பரஞ்சோதி முனிவர் தாம் பாடிய திருவிளையாடற் புராணத்தில் மதுரையின் சிறப்பைக் கூற வருங்கால் பாண்டிநாடு எனும் பாங்குறு நங்கைக்கு மதுரை எழில்மிகு திருமுகம் என்றார். இம்மதுரையில் வாழ்ந்து கொண்டிருக்கும் பொழுதே சீவன் முத்தி கிடைக்கும் ஆதலின் இந்நகரைச் சீவன் முத்திபுரம் என்பர். இம்மதுரையில் எழுந்தருளிய சோமசுந்தரக் கடவுள் அறுபத்து நான்கு திருவிளையாடல் செய்ததாகத் திருவிளையாடற்புராணம் கூறுகின்றது. தங்கம் நிகர் சங்க இலக்கியங்களில், பத்துப்பாட்டில் ஒன்றாகிய மதுரைக் காஞ்சி இம்மதுரை மாநகரைக் குறித்துச் சிறப்பாகக் கூறுகின்றது. இந்நூலைப் பாடியவர் மாங்குடி மருதனார் பாண்டி நாட்டில் ஐவகை நிலவளனும் அழகுற அமைந்திருப்பதால் பாண்டியன் பஞ்சவன் எனப்படுவான். இப்பாண்டி நாட்டின் நடுவில் பாங்குற அமைந்ததே மதுரை மாநகர். இங்கு ஆறு கிடந்தாற்போல அகன்ற நெடுந்தெருக்கள் காணப்படும் என்று கூறப்படுகிறது. அங்காடித் தெருவில் பல்வேறு மொழி பேசுவோர் காணப்படுவர். இங்கு நாளங்காடி அல்லங்காடி என இருவகைக் கடைகள் மிளிரும் கோயில்களில் திருவிழா இனிது நடைபெறும் .

       சமன் செய்து சீர்தூக்கும் கோல்போல்' நடுவு நிலைமை பெற்ற அறங்கூறவையம் மதுரையில் விளங்கிற்று. காவிதிப் பட்டம் பெற்ற அமைச்சர் அன்பும், அறனும் கொண்டு, நன்றும் தீதும் கண்டு பழி இன்றி வாழ்ந்தனர் என்று உச்சிமேல் புலவர்கொள் நச்சினார்க்கினியர் தம் உரையில் போற்றுகின்றார் மதுரைக் கடைவீதியில் சங்கு வளையல் விற்பார் சிலர் ; மணிகளுக்குத் துளை இடுவார் சிலர்: பூவும் புகையும் விற்பார் சிலர் : ஓவியம் வரைவார் சிலர் பொன்மாற்றுக் காண்பார் சிலர்; புடவைகளை நின்று விற்பார் சிலர் .

        மதுரையில் சோறிடும் அறச்சாலைகள் பல இருந்தன. அச்சாலைகளில் பல்வகைக் கனி, காய் இலைக்கறி, ஊன் கலந்த சோறு போன்றவற்றை நாளும் படைப்பர். ஊர்க்காவலர் தம் கடமை வழுவாது ஊரைப் பாதுகாத்து வருவர்.


இவ்வாறே பத்துப்பாட்டில் ஒன்றாகிய திருமுருகாற்றுப் படையிலும், மதுரை மாநகரின் சிறப்பு அழகு பெறக் கூறப்படுகின்றது. பாண்டியரின் தலைநகராம் மதுரை வாயிலில் பகைவரைப் போருக்கு அழைப்பதுபோல் மீனக்கொடிகள் உயர்ந்து விளங்கும் என்று கூறப்படுகின்றது. இன்னும் கோட்டை வாயிலில் பந்துகளும், பாவைகளும் தொங்கவிடப்பட்டிருக்கும் இதன் மேற்கில் அமைந்திருப்பதே முருகப்பெருமான் எழுந்தருளியுள்ள ஆறுபடை வீடுகளில் ஒன்றாகிய திருப்பரங்குன்றம்.

            எட்டுத்தொகைகளில் ஒன்றாகிய பரிபாடல் மதுரையின் சிறப்பைக் கூற வருங்கால் உலகே வாடினும் தான் வாடாத தன்மை கொண்டது மதுரை மாநகர் என்று கூறுகிறது அம்மதுரை மாநகரை ஒரு தராசுத்தட்டிலும், மற்ற உலகப் பொருள்களை மற்றொரு தட்டிலும் வைத்தாலும் மதுரைத்தட்ட தாழ்ந்து இருக்கும் என்று கூறுகிறது.

        'ஈவாரைக் கொண்டாடி ஏற்பாரைப் பார்த்துவக்கும் மதுரை, திருமால் உந்தியில் மலர்ந்த தாமரை மலர் என்கின்றது. அதன் தெருக்கள் தாமரை இதழ்களாம். இறைவன் கோயில் அம்மலர் நடுவில் இருக்கும் பொகுட்டாம். மக்கள் மகரந்தமாம். புலவர்கள் வண்டினமாம், என்னே! ஆசிரியர் காட்டும் கற்பனை நெஞ்சை அள்ளும் சிலப்பதிகாரம் மதுரையில் நால்வகைப் பொன் விற்கும் கடைவீதி, பட்டினும் மயிரினும், பருத்தி நூலினும் ஆடை நெய்யப்பட்ட அறுவை வீதி, கூல வீதி போன்ற பல விதிகளைப் பற்றிக் கூறுகின்றது.

          பாவை பாடிய வாயால் திருக்கோவை பாடிய மணிவாசகப் பெருந்தகையார் மதுரையில் சங்கம் இருந்து தமிழ் ஆராய்ந்த உண்மையை,

            கூடலின் ஆய்ந்த ஒண்தீந் தமிழ் என்ற தொடரால் குறிப்பிடுகின்றார் திரிபுரம் எரித்த விரிசடைக்கடவுளாம் சிவபெருமானே இறையனார் என்ற பெயரோடு சங்கப் புலவருள் ஒருவராகத் தாமும் இருந்து தமிழ் வளர்த்ததாகக் கூறப்படுகின்றது.

          குமரகுருபரர் மதுரையில் எழுந்தருளியுள்ள அம்பிகையின் மீது மீனாட்சி அம்மை பிள்ளைத்தமிழ் என்ற ஒரு நூல் பாடியுள்ளார் பாண்டியன் அறிவுடைநம்பி போன்ற அரசர்களும் மதுரையிலிருந்து தமிழ் வளர்த்த பாண்டிய மன்னர்களே.

       முடிவுரை:

         இவ்வாறு சங்கம் கண்டது - தமிழ் வளர்த்தது - தெய்வமணம் கமழ்வது வரலாற்றுச் சிறப்புடையது நம் மதுரை மாநகர் என்றால் அதன் பழமையை பெருமையை அளவிட்டு உரைக்க முடியுமா? 


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Monday, October 5, 2020

V.P/ இலக்கியக்கனிகள்&மலர்ச்செண்டு

 V.P/ இலக்கியக்கனிகள்&மலர்ச்செண்டு 

1. திருமூலர் திருமந்திரம்


முன்னுரை


நந்திதேவர் மரபில் வந்தவர்-எண்வகைச் சித்திதவராச யோகி என்று தாயுமானவர் போற்றப்பட்டவர் திருமூலர். அவர் இயற்றியதே சைவசித்தாந்த முதல் நூல் என்றும், பத்தாம் திருமுறை என்றும் கூறப்படும் திருமந்திரம். அவர் நூல் சிறப்பைப்பற்றி இக்கட்டுரையில் விரிவாகக் காண்போம் கைவரப்பெற்றவர்.


பொருள்


ஒருமுறை திருமூலர், திருவாவடுதுறையில் சில பசுக்கள், பாம்பு கடித்து இறந்த மூலன் என்ற மாடு மேய்ப்பவனைச் சூழ்ந்து கதறக் கண்டார். இந்நிலையில் இறைவன் திருவருளால் அப்பசுக்களின் துயரைப் போக்கக் கருதித் தம் உடலை ஓர் இடத்தில் மறைத்து வைத்துத் தம் உயிரை அம்மூலன் உடலில் புகுத்தினார் மூலன் உயிர் பெற்று எழக்கண்ட பசுக்கள் அவரை மோந்து கனைத்தன; துள்ளின. கன்றை நினைந்து ஊர் நோக்கிச் சென்றன. மூலன் மனைவி தெருவில் நிற்கும் திருமூலர் தன் கணவன் எனக்கருதி அழைக்க நமக்குத் தொடர்பு ஒன்றும் இல்லை' என்று கூறித் திருமூலர் பொதுமடம் நுழைந்தார் தம் உடல் தேடியும் காணப்பெறாதது கண்டு இறைவன் ஆகம உண்மை பொருளை உலகிற்கு அருளிச் செய்யவே தம் உட மறைத்தார் போலும் என்று கருதித் திருவாவடுதுறையில் ஓர் அரசமரத்தின் கீழ் இருந்து ஆண்டிற்கு ஒரு பாடலாக மூவாயிரம் பாடல்களைப் பாடியருளினார்


இவ்வாறு திருமூலர் இயற்றிய திருமந்திரம் ஒன்பது தந்திரம் கொண்டது. அது சாத்திர நூல்; தோத்திர நூல் அறநூல். உள் நிகழும் நெறியாவருக்கும் ஒக்குமல்லவா திருமூலர் கருத்தும், திருவள்ளுவர் கருத்தும் பல இடங்களில் ஒன்றுபடக் காணலாம். எடுத்துக்காட்டாகக் காகம் தனக்குக் கிடைத்த இரையினைத் தனித்து உண்ணாது. பிற காகங்களையும் அழைத்து உண்ணும் என்று திருவள்ளுவர் கூறுகின்றார். இக்கருத்தைத் திருமூலர் காக்கை வாயிலாக


வேட்கை உடையீர் விரைந்து ஒல்லை உண்ணன்மின் காக்கை கரைந்து உண்ணும் காலம் அறிமினே என்று கூறுகின்றார் .

திருவள்ளுவர் வறுமை கொடியது விடக்கொடியது ஒன்றும் இல்லை என்று கூறுகிறார் திருமூலரும் வறுமை உற்றவர்களுக்குக் கொடை இல்லை, கோளில்லை, கொண்டாட்டமில்லை. அவர் நடைப்பிணம் என்கின்றார். நேற்று இருந்த ஒருவன் இன்று இல்லை என்ற பெருமை உடையது இந்த உலகம் என்று திருவள்ளுவர் நிலையாமையைப் பற்றிக்கூறுகிறார்.

திருமூலர், உணவு உண்ட மனைவியுடன் பேசி இருந்த இடது பக்கம் வலி என்று படுத்த மணாளன் இயற்கை எய்தினார் என்று கூறுகிறார்


திருவள்ளுவர், ஆசை இல்லாதவர்கள் துன்பம் இல்லை என்று கூறுகிறார். இவ்வாறே திருமூலரும் ஆசை விட விட ஆனந்தம் ஆமே என்று முடிக்கிறார்


திருமந்திரம் பல மகளைத் உவமை தன்பால் கொண்டது. எடுத்துக்காட்டாகப் பலாக்கனி விட்டு ஈச்சம்பழம் நாடி உண்பது போல நயப்போர் மனையாள் பிறன்மனை அகத்திருக்கப் பிறர் மனையாளை விரும்பும் செயல் உள்ளது என்கிறார் மலரில் மணம் மறைந்திருப்பது போலக் கண்ணுக்குத் தெரியாமல் சீவனில் சிவம் கலந்திருக்கும் என்ற உண்மையை பூவினிற் கந்தம் பொருந்திய வாறுபோல் சீவனுக்குள்ளே சிவமணம் பூத்தது என்று உவமை மணம் கமழ உயர்ந்த உண்மை ஒன்றைக் கூறுகிறார்

இறுதியாகச் சில தத்துவப் பொருளை நகைச்சுவை தோன்ற எளிய முறையில் கூறி உயர்ந்த உண்மையை விளக்குவார் திருமூலர். எடுத்துக்காட்டாகக் கத்திரி விதைக்கப் பாகல் முளைத்தது பின் தோண்டிப் பார்க்கப் பூசணி பூக்கத் தோட்டக்குடிகள் தொழுது ஓடப் பின்னர் தோட்டம் முழுவதும் வாழை பழுத்தது என்கிறார். இதன் உண்மை யோகப் பயிற்சி செய்ய வைராக்கியம் தோன்றும். தத்துவ ஆராய்ச்சி செய்யச் சிவம் தோன்றும். சிவம் தோன்ற ஐம்பொறி அடங்கும் ஆன்ம லாபம் கிட்டும் என்பதாகும். ஐம்பொறிகளை அடக்கி ஆள்வோர் பேரின்ப வாழ்வில் திளைப்பர் என்ற உண்மைப் பொருளைக் கூறவரும் திருமூலர், மேய்ப்பார் இன்றித் திரியும் 'பார்ப்பான் பசு ஐந்தும் பாலாய்ச் சொரியும்' என்று கூறுகிறார்


முடிவுரை


இவ்வாறு சைவத் திருமுறைகளில் பத்தாம் திருமுறை எனப் போற்றப்படும் திருமூலர் திருமந்திரம் தன்னேரிலாத உயர்ந்த உண்மைகளைக் கொண்ட உயர்ந்த தமிழ்க் கருவூலம் என்றால் அது உண்மை வெறும் புகழ்ச்சி இல்லை.


2. இலக்கியம் காட்டும் இன்பத் தம்பியர்


முன்னுரை:


யாதும் ஊரே யாவரும் கேளிர்' என்ற பண் பாடுவது தமிழ் மரபு. உடன் பிறவாதோரையும் உடன் பிறந்தவராகக் கொண்டு வாழ்வது தமிழர் மரபு. 

ஆதலின், இலக்கியம் காட்டும் இன்பத் தம்பியர் சிலர் வரலாற்றை இக்கட்டுரையில் விரிவாகக் காண்போம்


பொருள்


கல்வியில் பெரியவர்' என்று போற்றப்படும் கம்பர் தாம் இயற்றிய இராம காதையில் வரும் தம்பியர் பலர் அவர்கள் ஒருவனே இலக்குவன். இவன் இராமன்பால் பெரும் பற்றுக் கொண்ட தம்பி. இராமன் கானகம் சென்றபோது தானும் நிழல்போல உடன் சென்றவன். இராமன் சிற்றன்னையால் காடு செல்ல நேர்ந்தது என்பது கேள்வியுற்றுச் சீற்றங் கொண்டு கைகேயியின் எண்ணம் நிறைவேற விடேன்' என்று வெகுண்டு கூறி நின்றவன். அவன் இராமனை மீட்டு நாட்டிற்கு அழைத்துச் செல்ல வரும் பரதன் பண்பு உணராது அவனைக் கொன்று அழிப்பதாகக் கூறி நின்றவன். இவ்வாறு இவன் கொள்ளும் சீற்றம் எல்லாம் இராமன் பால் வைத்த பேரன்பே காரணம் ஆகும்.

அயோமுகி என்ற அரக்கி இலக்குவனைத் தூக்கிச் செல்ல, அவனைக் காணாது வருந்திய ராமன் 

அறப்பால் உளதேல் அவன் முன் னவனாய்ப் 

பிறப்பால் உறின் வந்து பிறக்க 


என்று கூறி இறக்கத் துணிகிறான். ஆனால், தம்பியால் மூக்கு அறுபட்ட அரக்கி அயோமுகி குரல் கேட்டு அவன் இருப்பிடம் உணர்ந்து கண்டு அளவிலா மகிழ்ச்சி அடைகிறான். இவ்வாறே, இந்திரசித்து ஏவிய நாகபாசத்தால் இலக்குவன் இறந்தால் தானும் இறப்பேன்' என்று இராமன் கூறுவது அவன் அன்பின் ஆழத்தைக் காட்டும்.


அடுத்துக் கம்பர் காட்டும் தம்பியாம் பரதனின் பண்பு நலத்தைப் பார்ப்போம். இராமன் நாடு ஆளாமல் காடு ஆள நேரிட்ட பொழுது தன் தாய் கோசலையிடம்


பங்கமில் குணத்து எம்பி பரதனே துங்கமா முடி சூடுகிறான்' என்று கூறுகிறான்


இவ்வாறே தந்தையை இழந்த, இராமனைப் பிரிந்த பரதனும், அந்தமில் பெருங்குணத்து இராமனே, தன் தந்தையும், தாயும், தம்முனும் ஆதலால் அவனைக் கண்டு வணங்கினாலன்றித் தன்துயர் தீராது என்று


கூறுகின்றான். தாய் வாங்கிக் கொடுத்த ஆட்சியைத் தீவினை என்ன நீத்துச் சிந்தனை முகத்தில் தேக்கி இராமனை மீட்கக் காடு போந்த பரதன் பண்பிற்கு ஆயிரம் இராமர் ஒன்று சேர்ந்தாலும் அவன் ஒருவனுக்கு ஈடாக மாட்டார்கள் என்று குகன் கூறும் கூற்றுக்கு மாற்றுரைக்கக் கல் இல்லை. இராமனே பரதனைச் 'சேணுயர் தருமத்தின் தேவு' என்றும் செம்மையின் ஆணி என்றும் போற்றி உரைக்கின்றான்


குலத்தினால் தாழ்ந்து, கொள்கையால் உயர்ந்து தொடர்ந்து தம்பியாக இராமனால் போற்றப்பட்டவன் கங்கை வேடன் குகன். இவன் இராமனிடத்துப் பேரன்பு கொண்டவன். அதனால் தான் இராமனை மீட்கப் படையுடன் வந்த பரதனை அவன் மனநிலை உணராது, இராமனைக் காட்டிற்கு அனுப்பியதோடு அவன் மீது போர் தொடுக்கவும் வருகின்றான் என்று கருதி அப்பர் தன் படைகளை எலிகளாகும், தன்னைப் பாம்பு  எனவும் கூறுகின்றான். ஆனால் மரவுரி தரித்து, உடல் மாசடைந்து, ஒளியிழந்த முகம் கொண்டு துன்பமே உருவமாய் இராமன் சென்ற திசை நோக்கித் தொழுது வருகின்ற பரதனைக் கண்டு தன் மனக்கருத்தினை மாற்றிக் கொள்கின்றான். வில்கையிலிருந்து விம்முகிறது எம்பெருமான் விழ பிறந்தார் இழைப்பரோ பிழைப்பு' என்ற முடிவுக்கு வருகிறார் .


இனி, இராவணன் தம்பியாம் கும்பகர்ணன் சிறப்பைக் காண்போம். கும்பகருணன் தோள் வலிமை வாய்ந்தவன். அவன் இருதோள் அகலம் காணப் பின் பலநாள் பிடிக்குமாம். செஞ்சோற்றுக் கடன் கழிக்க விரும்பிய கும்பகருணன் தன் தமையன் செய்வது தவறு என்று அறிந்தும், தன்னை நெடிது நாள் வளர்த்த போர்க்கோலம் செய்வித்துப் போருக்கு அனுப்பிய என்று கூறும் அவன் கூற்று செய்ந்நன்றி மறவாத சீலத்திற்கு ஓர் உரைகல்.

 இன்னும் குரங்கினத் தலைவனாம் சுக்கிரீவனும் அரக்கர் குலத் தலைவனாம் வீடணனையும் தம்பியாக ஏற்று வாழ்ந்தவன் கோசல நாடு உடைய வள்ளல் எனப்போற்றப்படுகின்ற ராமன் இராவணனுக்காகவே போரிட்டு மாள்வேன் நீர்க்கோலம் போன்ற நிலையாத வாழ்வை விரும்பேன்.












Saturday, August 8, 2020

4. द्रुतगामी पत्र - EXPRESS LETTER

 सरकारी कार्यालयों में हिन्दी का प्रयोग


4. விரைவு அஞ்சல்


தந்தியின் வாசகம் போல் அமைந்து தபால் மூலம் அனுப்பப்படும் கடிதம்     द्रुतगामी पत्र  - என்று சொல்லப்படுகிறது அஞ்சலகத்தில் இக்கடிதம் பெறப்பட்டவுடன் தந்தி போல் முக்கியமாகக் கருதப்பட்டு உடனடியாக இதன் மீது நடவடிக்கை எடுக்கப்படுகிறது. இப்படிப்பட்ட கடிதங்களுக்கு அஞ்சலகம் மற்றகடிதங்களை விட முன்னுரிமை வழங்குகிறது. 

குறிப்பு :-

தற்சமயம் Express I.letter நடைமுறையில் இல்லை . மாறாக Speed Post நடைமுறைக்கு வந்துள்ளது.


उदाहरण :

सं..............           

                                     ................... विभाग  

प्रेषक

श्री  ..............................।

 उपसचिव, 

    ................................।

सेवा में

       सचिव,

       .............................. ।

महोदय,


                                                                                       दिनांक.................


विषय:    पत्र व्यवहार का माध्यम.......... .

संदर्भ:     आपका पत्र सं. .................   दिनांक .............


आपके उपर्युक्त पत्र की प्राप्ति सधन्यवाद स्वीकृत करते हुए आपके

पत्र के पैराग्राफ 3 के अनुपालन में ......................'सरकार के

एतद्विषयक राजकीय आदेश के प्रति इसके साथ भेजी जा रही है।

                                                                                          भवदीय,

                                                                                ...................................

                                                                                           उप सचिव



सधन्यवाद   -   with thanks - நன்றியுடன்

अनुपालन   -   in fulfilment of, compliance - இணக்கம் 

एतद्विषयक  - about this matter - இவ்விஷயம்

राजकीय      - सरकारी, official - அரசு சார், அலுவல் சார்

प्राप्ति पर      - on receipt of - வரப்பெற்றது

कार्यवाही      -  action - நடவடிக்கை

अग्रिम     - priority - முன்னுரிமை


4. द्रुतगामी पत्र - EXPRESS LETTER


पत्र जिसकी शब्द-रचना तार के रूप में होती है, किन्तु जो डाक द्वारा भेजा जाता है, द्रुतगामी पत्र कहलाता है प्राप्ति पर यह पत्र तार की भांति आवश्यक समझा जाता है और इस पर तुरन्त ही कार्यवाही की जाती है। इस प्रकार के पत्रों को डाक विभाग साधारण पत्रों की अपेक्षा अग्रता देता है।
















एकांकी

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