निर्मला
उपन्यास / कथासार
उदयभानुलाल बनारस के एक प्रसिद्ध वकील थे। उनकी आमदनी अच्छी थी। लेकिन वे बचत करना नहीं जानते थे। जब उनकी बड़ी लड़की निर्मला के विवाह का वक्त आया तब दहेज की समस्या उठ खडी हुई। बाबू भालचंद्र सिन्हा के ज्येष्ठ पुत्र भुवनमोहन सिन्हा से निर्मला की शादी की बात पक्की हो गई। सौभाग्य से सिन्हा साहब ने दहेज पर जोर नहीं दिया। इससे उदयभानुलाल को राहत मिली। निर्मला केवल पन्द्रह वर्ष की थी। इसलिए विवाह की बात सुनकर उसे भय ही ज्यादा हुआ। एक दिन उसने एक भयंकर स्वप्न देखा। वह एक नदी के किनारे पर खडी थी। एक सुंदर नाव आयी। पर मल्लाह ने निर्मला को उस पर चढ़ने नहीं दिया। फिर एक टूटी-फूटी नाव में उसे जगह मिली। नाव उलट जाती है और निर्मला पानी में डूब जाती है। तभी निर्मला की नींद टूटी।
निर्मला के विवाह की तैयारियां शुरू हो गयीं। दहेज देने की ज़रूरत न होने से उदयभानुलाल बारातियों का स्वागत धूमधाम से करने के लिए पानी की तरह रुपए खर्च करने लगे। यह बात उनकी पत्नी कल्याणी को पसंद नहीं आयी। इस कारण से पति पत्नी के बीच में जोरदार वाद-विवाद चला। कल्याणी ने मायके जाने की धमकी दी। पत्नी के कठोर वचन से दुखित होकर उदयभानुलाल ने उसे एक सबक सिखाना चाहा। नदी के किनारे पहुंचकर, वहां कुरता आदि छोडकर उन्होंने किसी अन्य शहर में कुछ दिनों के लिए चले जाने का निश्चय किया। लोग समको के मे नदी में डूब गए। तब पत्नी की धर्मड दूर हो जायेगी। उदयभानुत्ताल आधी रात को नदी की ओर चल पडे। एक बदमाश रे, जो उनका पुराना दुश्मन था, उन पर लाठी चलाकर मार गिरा दिया।
अब निर्मला के विवाह की जिम्मेदारी कल्याणी पर आ पड़ी। उसने पुरोहित मोटेराम के द्वारा सिन्हा को पत्र भेजा। वर्तमान हालत को देखकर साधारण ढंग से शादी के लिए स्वीकृति देने की प्रार्थना की। सिन्हा असल में लालची थे। वे उदयभानुलाल के स्वभाव से परिचित थे। उनका विचार था कि दहेज का इनकार करने पर उससे भी ज्यादा रकम मिल जायेगी। उदयभानु लात की मृत्यु की खबर सुनकर उनका विचार बदल गया। उनकी स्वी रंगीली बाई को कल्याणी के प्रति सहानुभूति थी। लेकिन पति की इच्छा के विरुद्ध वह कुछ नहीं कर सकी। बेटा भुवनमोहन भी बढ़ा लालची था। वह दहेज के रूप में एक मोटी रकम मांगता बा चाहे कन्या में कोई भी ऐब हो।
मोटेराम निर्मला के लिए अन्य छरों की खोज करने लगे। अगर लड़का कुतीन या शिक्षित या नौकरी में हो तो दहेज अवश्य मांगता था । आखिर मन मारकर कल्याणी ने निर्मला के लिए लगभग चालीस साल के वकील तोताराम को वर के रूप में चुन लिया । वे काफ़ी पैसेवाले थे । उन्होंने दहेज की मांग भी नहीं की ।
निर्मला का विवाह तोताराम से हो गया । उनके तीन लड़के थे मंसाराम, जियाराम, सियाराम । मंसाराम सोलह बरस का था । वकील की विधवा बहिन रुक्मिणी स्थाई रूप से उसी घर में रहती थी । तोताराम निर्मला को खुश रखने के लिए सब तरह के प्रयत्न करते थे । अपनी कमाई उसीके हाथ में देते थे । लेकिन निर्मला उनसे प्रेम नहीं कर सकी; उनका आदर ही कर सकी । रुक्मिणी बात-बात में निर्मला की आलोचना और निन्दा करती थी । लड़कों को निर्मला के विरुद्ध उकसाती थी । एक बार निर्मला ने तोताराम से शिकायत की तो उन्होंने सियाराम को पीट दिया ।
निर्मला समझ गयी कि अब अपने भाग्य पर रोने से कोई लाभ नहीं है। अतः वह बच्चों के पालन-पोषण में सारा समय बिताने लगी । मंसाराम से बातें करते हुए उसे तृप्ति मिल जाती थी । निर्मला पर प्रभाव डालने के लिए तोताराम रोज अपने साहसपूर्ण कार्यों का वर्णन करने लगे जो असल में झूठ थे । एक दिन उन्होंने बताया कि घर आते समय तलवार सहित तीन डाकू आ गए और उन्होंने अपनी छडी से उनको भगा दिया । तभी रुक्मिणी आकर बोली कि कमरे में एक सांप घुस गया है। तुरंत तोताराम भयभीत होकर घर में बाहर निकल गए । निर्मला समझ गयी कि सुशी जी क्या चाहते हैं । उसने पत्नी के रूप में अपने को कर्तव्य पर मिटा देने का निश्चय किया।
निर्मला अब सज-धजका रहने और पति से हंसकर बातें करने लगी । लेकिन जब मुंशी जी को मालूम हुआ कि वह मंसाराम से अंग्रेजो सोस रही है तब वे सोचने लगे कि शायद इसलिए आज का मिर्मसा प्रसन्न दिखती है। उनके मन में शंका पेदा हो ची। इनको एक उपाय सुशा । मंसाराम पर यह आक्षेप लगाया किया आधार घूमता है। इसलिए वह स्कूल में ही रहा करे मंत्रियों ने सोचा कि निर्मला ने मसाराम को शिकायत की होगा। यह निमंता में झगड़ा करने लगी । निर्मला ने तोलाराम से अपना निर्माय बदलने को कहा । मुंशी जी का हदय और भी शंकित हो गया।
मंसाराम दुखी होकर सारा दिन घर पर ही रहने लगा। वह बहुत कमजोर भी हो गया। मुंशी जी को शंका जरा कम हुई। एक दिन संसाराम अपने कमरे में बैठे रो रहा था। मुशी जी ने उसे सांत्वना देते हुए मारा दोष निर्मल पर मड़ दिया । निष्कपट बालक उस पर विश्वास करके अपनी विमाता से नफरत करने लगा निर्मला भी अपने पति के शक्को स्वभाव को समझ गयी उसने पसाराम में बोलना भी बंद कर दिया ।
मंसाराम को गहरा दुख हुआ कि निर्मला ने उसके पिताजी से उसको शिकायत की थी । वह अपने को अनाथ समड़ाकर कमरे में ही पड़ा रहता था । एक रात को वह भोजन काने के लिए भो नहीं उठा । निर्मला लड़प उठी । मुंशी जी बाहर गये हुए थे । निर्मला सासाराम के कमरे में जाकर उसे प्यार से समझाने लगी। उसी वक्त तोताराम आ गए। तुरंत निर्मला कठोर स्वर में बोलने लगी और मंसाराम की शिकायत करने लगी । ममाराम इस भाव-परिवर्तन को नहीं समझ सका । निर्मला के व्यवहार में उसे वेदना हुई। अगले दिन वह हेडमास्टर से मिलकर हास्टल में रहने का प्रबंध कर आया निर्मला से कहे बिना वह अपना सामान लेकर चला गया।
निर्मला ने सोचा कि चुट्टी के दिन भसाराम घर आएगा । पर वह नहीं आया । मसाराम की आर्म पोडा का अनुमान कर उसे अपार दुख हुआ। एक दिन उसे मालूम हुआ कि मंसाराम को बुखार हो गया है। वह मुंशी जी से प्रार्थना करने लगी कि वे मसाराम को हास्टल से घर लाएं ताकि उसकी सेवा ठीक तरह से हो सके । यह सुनकर मुंशी जी का संदेह फिर ज्यादा हो गया।
मंसाराम कई दिनों तक गहरी चिन्ता में डूबा रहा । उसे पढ़ने में बिलकुल जी नहीं लगा । जियाराम ने आकर घर को हालत बतायी । यह भी कहा कि पिताजी के कारण ही निर्मला को कठोर व्यवहार का स्वांग करना पड़ा । इस विषय पर मंसाराम गहराई से सोचने लगा । तब अचानक यह समझ गया कि पिता जो के मन में निर्मला और उसको लेकर संदेह पैदा हुआ है । यह इस अपमान को सह नहीं सका । उसके लिए जीवन भार- स्वरूप हो गया। गहरी चिन्ता के कारण उसे जोर से बुखार हो गया । वह स्कूल के डाक्टर के पास गया । उनसे बातें करते हुए उसे एक जहरीली दवा के बारे में जानकारी मिली जिसे पीते ही दर्द के बिना मनुष्य मर जा सकता है । तुरंत वह खुश हो गया । थियेटर देखने गया । लौटकर हास्टल में शरारतें कीं । अगले दिन ज्वर को तोवता से वह बेहोश हो गया । तोताराम बुलाये गये । स्कूल के अध्यक्ष ने मंसाराम को घर ले जाने को कहा । अपने संदेह के कारण मुंशी जी उसे घर ले जाने को तैयार नहीं थे । इसे समझकर मंसाराम ने भी घर जाने से इनकार कर दिया । उसे अस्पताल में दाखिल कर दिया गया ।
यह जानकर निर्मला सिहर उठी । लेकिन मुंशी जी के सामने उसे अपने भावों को छिपाना पड़ा । वह खूब श्रृंगार करके सहास वदन से उनसे मिलती-बोलती थी । अस्पताल में मंसाराम की हालत चिन्ताजनक हो गई।
तीन दिन गुज़र गये । मुंशी जी घर न आए । चौथे दिन निर्मला को मालूम हुआ कि ताजा खून दिये जाने पर ही मंसाराम बच सकता है यह सुनते हो निर्मला ने तुरंत अस्पताल जाने और अपना खून देने का निश्चय कर लिया। उसने ऐसी हालत में मुंशी जी से डरना या उनकी शंका की परवाह करना उचित नहीं समडा। यह देखकर रुक्मिणी को पहली बार निर्मला पर दया आयी । निर्मला को देखते ही मंसाराम चौंककर उठ बैठा । मुंशी जी निर्मला को कठोर शब्दों से डांटने लगे मंसाराम निर्मला के पैरों पर गिरकर रोते हुए बोला - "अम्मा जी, मैं अगले जन्म में आपका पुत्र बनना चाहूंगा । आपकी उम्र मुझसे ज्यादा न होने पर भी मैंने हमेशा आपको माता की दृष्टि से ही देखा ।" जब मुंशी जी ने सुना कि निर्मला खून देने आयी है तब उनकी सारी शंका दूर हो गयी और निर्मला के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हुई ।
डाॅक्टर निर्मला की देह से खून निकाल रहे थे । तभी मंसाराम का देहांत हो गया । मुंशी जी को अपना भयंकर अपराध महसूस हुआ। उनका जीवन भारस्वरूप हो गया । कचहरी का काम करने में दिल नहीं लगा। उनकी तबीयत खराब होने लगी।
मुंशी जी और उस डाक्टर में दोस्ती हो गयी जिसने मंसाराम की चिकित्सा की थी । डाक्टर की पत्नी सुधा और निर्मला सहेलियां बन गयीं । निर्मला अकसर सुधा से मिलने उसके घर जाने लगी । एक बार उसने सुधा को अपने अतीत का सारा हाल सुनाया । सुधा समझ गयी कि उसका पति ही वह वर था जिसने दहेज के अभाव में निर्मला से शादी करने से इनकार किया था। उसने अपने पति की तीव्र आलोचना की । पूछने पर उसने अपने पति से बताया कि निर्मला की एक अविवाहित बहिन है।
तीन बातें एकसाथ हुई। निर्मला की कन्या ने जन्म लिया । उसकी बहिन कृष्णा का विवाह तय हुआ । मुंशी जी का मकान नीलाम हो गया। बच्चे का नाम आशा रखा गया । डाक्टर (भुवनमोहन सिन्हा) ने निर्मला के प्रति अपने अपराध के प्रायश्चित्त के रूप में अपने भाई का विवाह कृष्णा से दहेज के बिना तय करा दिया। यह बात निर्मला को मालूम नहीं थी । सुधा ने निर्मला से छिपाकर उसकी मां को विवाह के लिए रुपए भी भेजे थे ।
ये सारी बाते निर्मला को विवाह के समय ही मालूम हुई । वह डा. सिन्हा के प्रायश्चित्त से प्रभावित हुई । विवाह के दिन उसने डाक्टर से अपनी कृतज्ञता प्रकट कर दी । आगे कुछ समय के लिए निर्मला मायके में ही ठहर गई ।
इधर जियाराम का चरित्र बदलने लगा । वह बदमाश हो गया । वह बात-बात पर अपने पिताजी से झगडा करने लगा। यहां तक उसने कह डाला कि मंसाराम को आप ही ने मार डाला । उनको बाजार में पिटवा देने की धमकी दी । एक दिन डा. सिन्हा ने उसे खूब समझाया तो वह पछताने लगा । उसने निश्चय किया कि आगे वह पिताजी की बात मानेगा । परंतु डाक्टर से मिलकर जब वह घर आया तब आधी रात हो चुकी थी। मुंशी जी उस पर व्यंग्य करने लगे । जियाराम का जागा हुआ सद्भाव फिर विलीन हो गया।
निर्मला बच्ची के साथ घर वापस आयी । उसी दिन बच्ची के लिए मिठाई खरीदमे के संबंध में बाप-बेटे में झगडा हो गया । निर्मला ने जियाराम को डांटा । मुंशी जी ने जियाराम को पीटने के लिए हाथ उठाया । लेकिन निर्मला पर थप्पड़ पड़ा । जियाराम पिताजी को धमकी देकर बाहर चला गया निर्मला को भविष्य की चिन्ता सताने लगी उसने सोचा कि उसके पास जो गहने हैं वे ही भविष्य में काम आएंगे।
उस रात को अचानक उसकी नींद खुली । उसने देखा कि जियाराम की आकृतिवाला कोई उसके कमरे से बाहर जा रहा है। अगले दिन वह सुधा के घर जाने की तैयारी कर रही थी। तभी उसे मालूम हुआ कि उसके गहनों की संदेश गायब है । उसे रातवाली घटना याद आयी। जियाराम से पूछताछ करने पर उसने कह दिया कि वह घर पर नहीं था। वकील साहब को मालूम होने पर थाने के लिए चल दिये । निर्मला को जियाराम पर संदेह था । परन्तु विमाता होने के कारण उसे चुप रहना पड़ा । इसलिए वह मुंशी जी को रोक न सकी । थानेदार ने घर आकर और जांच करके बताया कि यह घर के आदमी का ही काम है । कुछ दिनों में माल बरामद हो गया। तभी मुंशी जी को असली बात मालूम हुई। जियाराम को कैद होने से बचाने के लिए थानेदार को पांच सौ रुपये देने पड़े । मुंशी जी घर आये तो पता चला कि जियाराम ने आत्महत्या कर ली।
गहनों की चोरी हो जाने के बाद निर्मला ने सव गर्व कम कर दिया। उसमा स्वभाव भी बदल गया । वह कशा हो गयी । पैसे बचाने के लिए वह नौकरानी के बदले पियाराम को हो बार-बार बाजार दाहालले था । वह एक दिन जो पी लाया उसे खराब बनाकर लाटा देने को कह दिया । दुकानदार वापस लेने के लिए तैयार न हुआ। वहा बेठे एक साध को मियाराम पर दया आयी। उनके कहने पर वासिय ने अलाण यी दिया । गधु को सियाराम के घर की हालत पालामा दई । जा वे चालने लगे लय सियाराम भी उनके साथ हो लिया । साधू ने बताया कि वे भी विमाता के अत्याचार से पीड़ित थे। इसलिए घर छोड़कर भाग गये। एक साधु के शिष्य वनका योगपिदमा मीच ली । वे उसको सहायता से अपनी मृत मां के दर्शन कर लेते हैं । साधु की बातों से सियाराम प्रभावित हुआ आर अपने घर को ओर चला असल में यह बाबा जी एक धूतं था आर लड़की को भगा ले जानेवाला था।
सियाराम पर लौटा नो निर्मला ने लकड़ी के लिए जाने को कहा। वह इनकार करके बाहर चला गया । घर के काम अधिक होने के कारण वह ठीक तरह से स्कूल में जा पाला था । उस दिन भी वह स्कूल नजाका एक पेड़ के नीचे बैठ गया । उसे भूख सता रही थी। इसे घर लौटने को इच्छा नहीं हुई ।बावा जो से मिलने के लिए उत्सुक होकर बने इडने लगा । सहसा वे रास्ते में मिल पडे। पता चला कि वे उसी दिन हरिद्वार जा रहे हैं । सियाराम ने अपने को भी ले चलने की प्रार्थना को । साध ने मान लिया। वेारा सियाराम जान न सका कि वह बाधा जी के जाल मे फस गया है।
मुंशी जी बड़ी थकावट के साथ शामको घर आये। उन्हें सारा दिन भोजन नहीं मिला था। उनके पास मुकदमे आते नहीं थे या आने पर हार जाते थे। नत्र वे किसीसे उधार लेका निर्मला के साथ देने थे। उस दिन उनको मालूम हुआ कि सियाराम मे कुछ भी नहीं पापा और उसे पैसे भी नहीं दिये गये। उनको निर्मला पर पहली चार क्रोध आया। यजुन गत बोलने पर भी सिया नहीं आया तो पुशी जी धवगये। बाहर जाकर सब जगह टूटने पर भी सिया का पता नहीं चला। अगले दिन भी सुबह में आधी रात तक दृढकार वे हार गये।
तीसरे दिन शमको पुंशी जी ने निर्मला से पूछा कि क्या उसके पास रुपये हैं । निर्मला झूठ बोली कि उसके पास नहीं है। रात को मुंशी जी अन्य शहरों में सियाराम को ढूंढने के लिए निकल पड़े। निर्मला को ऐसा जान पड़ा कि उनसे फिर भेंट न होगी ।
एक महीना पूरा हुआ। न तो मुशो जो नोटे आर न उनका कोई खन मिला । निर्मला के पास जो रुपा थे वे कम होते जा रहे थे । के सुधा के यहां उसे थोड़ी मानसिक शांति मिलती थी। एक दिन सवेरे वह सुधा के यहां पहुंची । सुधा नदी-स्नान करने गयी हुई थी। निर्मला सुधा के कमरे में जा बैठी । डा सिन्हा ऐनक ढूँढते हुए उस कमरे में आये निर्मला को एकांत में पाकर उनका मन न हो उता । वे उससे प्रेम को याचना करने लगे।
तुरंत वह कापरे से भागकर दरवाजे पर पहुंची । तब सुधा को नारो से उतरते देखा । उसके लिये रुके बिना निर्मला तेजी से अपने पाक और चली गयी । सुधा कुछ समझा नहीं सकी। उसने डाक्टर को पूजा । उन्होंने स्पष्ट उत्तर नहीं दिया । सुधा तुरंन निर्मला के या महुली । निर्मला चारपाईयर पड़ी रही थी। उसने स्पष्ट रूप मे तो अपने रोने का कारण नहीं बताया । लेकिन बुद्धिमति सुण समन गयी कि डाक्टर ने दुवहार किया है। अत्यंत क्रोधित होकर यह निकल पड़ी निर्मला उसे रोक न सकी ।
उसे ज्वर चढ़ आया । दूसरे दिन उसे रुक्मिणी के जरिये मालूम हुआ कि डा. सिन्हा को मृत्यु हो चुकी थी । निर्मला को अपार वेदना हुई कि उसोक कारण डाक्टर का अंत असमय हो गया। जल निर्मला डाक्टर के यहां पहुची तब तक लाश उठ चुकी थी। सुधा ने बताया कि उसने पर लौटकर पति की कड़ी आलोचना मार दी। इससे क्षुब्ध होकर डाक्टर ने अपना अंत कर लिया।
एक महीना गुज़र गया । सुधा वह शहर छोडकर अपने देवर के साथ बली जा चुकी थी निर्मला के जीवन में सुनापन छा गया। अब रोना ही एक काम रह गया । उसका स्वास्ट्य अत्यंत खराव ही गया। तो समझ गयी कि उसके जीवन का अंत निकट आ गया है। उसने मक्मिणी से माफी मागा कि वह उसकी उचित सेवा न कर सकी। रक्रिमणी ने भी उससे अपने कपटपूर्ण व्यवहार के लिए क्षमा याचना को । निर्मला ने बच्ची को रुकमणी के हाथ सौंप दिया ।
फिर तीन दिन तक वह रोये चली जाती थी । यह न किसीसे बोलती थी, न किसी की ओर देखती थी और न किसी का कुछ सूती थी । चौथे दिन संध्या समय निर्मला ने अंतिम सांस ली । मुहल्ले के लोग जमा हो गये । लाश बाहर निकाला गयो । यह प्रश्न उठा कि कान दाह करेगा । लोग इसी चिन्ता में थे कि महसा एक बड़ा पथिक आकर खड़ा हो गया वह मुशी तोताराम थे।
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