Friday, January 12, 2024

महादेवी वर्मा



       महादेवी वर्मा

ममता का ही नाम महादेवी वर्मा

जन्म : 1907         निधन : 1987

रचनाएँ

काव्य  - नीहार, रश्मि, नीरज, दीपशिखा, सांध्यगीत आदि ।


रेखाचित्र -  अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी आदि ।


निबन्ध  - श्रृंखला की कडियाँ, साहित्यकार की आस्था, क्षणदा, कसौटी पर आदि ।



महादेवी वर्मा (सन् 1907 से 1987 तक)

           सालों पुरानी बात है । जाडे के दिन थे । एक कुत्तिया ने कुछ बच्चे दिये । रात हो जाने पर जाड की ठण्डी के कारण पिल्लों की कूँ- कूँ की ध्वनि सुननेवालों के मन में करुण भावना उत्पन्न करती थी । अनेकों ने अनसुनी कर दी । लेकिन सात साल की एक लड़की ने कहा - बहुत जाडा है, पिल्ले जड़ रहे हैं। मैं उनको उठा लाती हूँ । सबेरे वहीं रख दूँगी । लड़की के हठ के कारण घर के सारे लोग जग गये और पिल्ले घर लाये गये । इसके बाद ही उस लड़की एवं पिल्लों को आश्वासन मिला । यह सात साल की लड़की थी - महादेवी वर्मा । बचपन से ही महादेवी वर्मा को जीव-जन्तुओं के प्रति असीम प्यार था । इसी प्यार के बल से ही महादेवी को अपना नाम सार्थक बनाने का मौका मिला । सच है ममता का दूसरा रूप है - महादेवी वर्मा ।

       विशिष्ट साहित्यकार, करुण भरी कवयित्री महादेवी वर्मा का जन्म मंगलमय एवं रंगभरी, कपडों में ही नहीं बल्कि मन में भी खुशी के रंग भरनेवाली होली के दिन में सन् 1907 को विशिष्ट साहित्यकारों की जन्मभूमि उत्तर प्रदेश के फरुखाबाद में हुआ था । महादेवी अपने माँ- बाप की पहली संतान थी । होली के दिन में इन्हें पाकर पिताजी गोविन्द प्रसाद आनन्द सागर में डूब गये थे । माताजी हेमरानी का भी खुशी का टिकाना नहीं रहा । दोनों इतने प्रसन्न हो गये थे कि अपनी कुल देवता दुर्गा देवी के नाम से इन्हें महादेवी बुलाने लगे । महादेवी स्वभाव में भी महादेवी ही थीं ।

       सात साल की उम्र में ही इनमें कवित्व शक्ति स्थान पाने लगी । आठवें वर्ष में इनसे लिखी गयी 'दिया' कविता की पंक्तियाँ उसकी कवित्व की साक्षी है।

"प्रेम का ही तेल भर जो हम बने निशोक, 

तो नया फैले जगत के तिमिर में आलोक !”

       वैसे बचपन इनका बहुत ही सुखमय था । इनकी माताजी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं और घर में रामायण का सस्वर पाठ किया करती थीं । आर्य समाजी संस्कारों के साथ इन्दोर के मिशन स्कूल में इनकी भर्ती हुई। घर में भी विशेष शिक्षकों की नियुक्ति हुई । इस कारण महादेवी वर्मा हिन्दी, उर्दू और चित्रकला में भी प्रवीण हो गयीं । नौ वर्ष तक इन्होंने खडीबोली हिन्दी में कविता लिखने की पूर्ण क्षमता पायी ।

      बचपन इनका बहुत ही मनोहर था । अपने छोटे भाई तथा बहन के साथ ये पूर्ण उल्लास के साथ खेलती कूदती थीं । महादेवी पढाकू होने के साथ साथ लडाकू भी थीं । प्रकृति और प्राणियों के प्रति इनकी रुचि इनके बचपन को महकते उपवन बना चुकी थी । सब प्रकार से इनका बचपन तथा लडकपन सुखमय था ।

      श्री गंगाप्रसाद पाण्डेय के अनुसार महादेवी वर्मा की शादी नौ वर्ष की छोटी उम्र में करा दी गयी थी । इनके पिता ने अपनी प्यारी बेटी की शादी बहुत कम उम्र में, बडी धूम-धाम से करा दी । लेकिन जैसे ही ये बरेली के पास नवाबगंज नामक कस्बे में स्थित ससुराल भेजी गयी, तो वहाँ रो-धोकर, खाना, पीना, सोना, बोलना आदि सबको त्यागकर दूसरे दिन ही अपना घर पहुँच गई । तेज ज्वर आ जाने के कारण उनके ससुर ने इनको घर छोड दिया । 

       इनके वैवाहिक जीवन की यहीं समामि हो गई। बी.ए. पास होते ही महादेवी वर्मा को उनके ससुराल ले जाने का प्रश्न उपस्थित हुआ । महादेवी वर्मा ने दृढ़ता पूर्वक इनकार कर दिया । उन्होंने अपने पिताजी को अपना यह निश्चय सुना दिया । बाबूजी महादेवी को दूसरा विवाह करने की इच्छा हो तो उसे करवा देने के लिए तैयार थे । लेकिन महादेवी विवाह करना ही नहीं चाहती थी । पढ़ाई में मन जाने के कारण वैवाहिक दायित्व को इन्होंने स्वीकार नहीं किया ।

          सन् 1919 में इन्होंने प्रयाग के क्रास्थवेट कॉलेज में मिडिल की परीक्षा में सर्वप्रथम आने के कारण इनको राजकीय छात्रवृत्ति प्राप्त हुई थी । सन् 1929 में इन्होंने बी.ए. की परीक्षा पास की । सन् 1931 में प्रयाग महिला विश्वविद्यालय में संस्कृत में एम.ए. पास करके प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बन गयी थी । प्रयाग महिला विद्यापीठ को आगे बढाने में, प्रशस्त एवं प्रसिद्ध बनाने में इनका योगदान अतुलनीय है । प्रधानाचार्य से बाद में उसी विद्यापीठ के कुलपति के दायित्व को भी सालों तक इन्होंने संभाला ।

       साहित्य में महादेवी वर्मा का प्रवेश 'नीहार' कविता संग्रह के साथ हुआ था । इनकी कविताओं में करुणा तथा पीडा को उचित स्थान दिया गया है । महादेवी वर्मा की करुण तथा आध्यात्मिक चेतना को उनकी इन पंक्तियों से हम समझ सकते हैं -

     मेरे बिखरे प्राणों में
          सारी करुणा दुलका दो ।
    मेरी छोटी सीमा में 
        अपना अस्तित्व मिटा दो । 
    पर शेष नहीं होगी यह 
        मेरे प्राणों की क्रीड़ा, 
    तुमको पीड़ा में ढूँढ़ा 
     तुममें ढूँढ़ेंगी पीड़ा ।

महादेवी वर्मा की रचनाओं में करुण भावना की प्रधानता के लिए एक और उदाहरण है -

सजनि मैं इतनी करुण हूँ 
करुण जितनी रात 
सजनि मैं उतनी सजल 
जितनी सजल बरसात ।

करुण भावना के साथ-साथ पीडा को भी इन्होंने महत्वपूर्ण स्थान दिया है । सन्धिनी से चंद पंक्तियाँ -

विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात !
वेदना में जन्म करुणा में मिला आवास !
अश्रु चनता दिवस इसका अश्रु गिनती रात !
जीवन विरह का जलजात !

      काव्य में शब्द-योजना और लय की जरूरत के बारे में महादेवी के विचार है - "हमारा समस्त दृश्य जगत् परिवर्तनशील ही नहीं, एक निश्चित गति-क्रम में परिवर्तनशील है, जो अपनी निरन्तरता से एक लययुक्त आकर्षण-निकर्षण को छन्दायित करता है । काव्य व्यष्टिगत तथा समष्टिगत जीवन को एक विशेष गति-क्रम की ओर प्रेरित करने का साधन है, अतः उसकी शब्द-योजना में भी एक प्रवाह, एक लय अपेक्षित रहेगी ।"

     सुप्रसिद्ध छायावाद की कवयित्री महादेवी वर्मा के बारे में श्री विनय मोहन ने कहा है - "छायावाद युग ने महादेवी को जन्म दिया और महादेवी ने छायावाद को जीवन । यह सच है कि छायावाद के चरम उत्कर्ष के मध्य में महादेवी ने काव्य भूमि में प्रवेश किया और छायावाद के सृजन, व्याख्यान तथा विश्लेषण द्वारा उसे प्रतिष्ठित किया ।"

     प्रकृति वर्णन में महादेवी महान देवी थी । उनकी निम्नलिखित पंक्तियाँ इस बात की साक्षी है -

यह स्वर्ण रश्मि छू श्वेत भाल, 
बरसा जाती रंगीन हास, 
सेली बनता है इन्द्रधनुष, 
परिमल मल मल जाता बतास, 
पर रागहीन तू हिम निधान !

       महादेवी की कविताओं में महान प्रेरणा भी मिलती है । उनकी निम्नलिखित पंक्तियाँ भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति पर प्रकाश डालने के साथ मनुष्य के मन में महान आशा प्रदीप्त करने में समर्थ निकलती हैं -

      सब बुझे दीपक जला लूँ ।
 घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी जगा लूँ ।

दीप मेरे जल अकम्पित, घुल अचंचल । 
पथ न भूले एक पग भी, 
घर न खोये, लघु वहग भी, 
स्निग्ध लौ की तूलिका से 
आँक सब की छाँह उज्जवल !


देशभक्ति इनमें एक और विशेषता है । देश भक्तों के बारे में 'सन्धिनी' में लिखती हैं -

"हे धरा के अमर सुत ! 
तुमको अशेष प्रणाम ! 
जीवन के अजय प्रणाम ! 
मानव के अनन्त प्रणाम !”


“हिमालय" पर लिखी हुई महत्वपूर्ण कविताओं का संकलन अपने-आप में भी एक बहुत बडी राष्ट्रीय उपलब्धि है। 'हिमालय' के समर्पण में महादेवी लिखती हैं -

        "जिन्होंने अपनी मुक्ति की खोज में नहीं, वरन् भारत-भूमि को मुक्त रखने के लिए अपने स्वप्न समर्पित किये हैं, जो अपना सन्ताप दूर करने के लिए नहीं, वरन् भारत की जीवन-ऊष्मा को सुरक्षित रखने के लिए हिम में गले हैं, जो आज हिमालय में मिलकर धरती के लिए हिमालय बन गए हैं, उन्हीं भारतीय वीरों की पुण्य स्मृति में ।"

     देश भक्ति मनुष्य मन में अपूर्व शक्ति प्रदान करनेवाली है। देश भक्ति की झलक इन वाक्यों में निखर उठता है । मानवीय गुणों को रचनाओं में स्थान देकर महादेवी साहित्य में सदा सर्वथा के लिए महान देवी बनी है। 'नीरजा' महादेवी की कविताओं का तीसरा संग्रह है और साहित्यकारों के मतानुसार इनकी सर्वसुन्दर कृति है । इसके लिए इन्हें 'साहित्य सम्मेलन' से पारितोषिक दिया जा चुका है ।

       करुण, कोमल कविताएँ ही नहीं बल्कि सुन्दर सुरुचिपूर्ण गद्य लेखन में भी महादेवी वर्मा का स्थान सर्वोपरी है । 'अतीत के चल चित्र' इनकी प्रथम गद्य पुस्तक है । इसमें महादेवी जी की कुछ संस्मरणात्मक कहानियाँ का संग्रह है । इनके संस्मरणों में यथार्थता की झलक मिलती है। इनकी कहानियों में पात्रों का चित्रण सजीव एवं सहज रूप से किया गया है । साहित्य में व्यक्तिगत अनुभूतियों को स्थान देने में महादेवी का स्थान काफी अग्रगण्य है । अपने घर के नौकर रामा के बारे में महादेवी तद्रूप चित्रण प्रस्तुत करती है

       "रामा के संकीर्ण माथे पर खूब धनी भौंहें और छोटे-छोटे स्नेह तरल आँखें किसी थके झुंझलाये शिल्पी की अन्तिम भूल जैसी मोटी नाक, साँस के प्रवाह से फैले हुए से नथुने, मुक्त हँसी से भर कर फूले हुए से होंठ तथा काले पत्थर की प्याली में दही की याद दिलानेवाली सघन और सफेद दन्तपंक्ति ।" इन शब्दों को पढ़ लेने से रामा का रूप पाठकों के सामने अपने आप उभर आयेगा । बदलू कुम्हार का वर्णन भी यथार्थता का बोध कराता है । उनका सभी पात्र यथार्थता का बोध कराने में सक्षम है। “श्रृंखला की कडियाँ" महादेवी की दूसरी गद्य-पुस्तक है । इसमें नारी-समस्याओं को प्रधानता दी गयी है ।

'महादेवी का विवेचनात्मक गद्य' पुस्तक में महादेवी ने अपनी विवेचनात्मक गद्य लेखन की क्षमता दर्शायी है । भावात्मक, विचारात्मक एवं विवेचनात्मक गद्य साहित्य में महादेवी का अलग पहचान है ।

       "साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबन्ध" महादेवी वर्मा के बहुप्रशंसिय आलोचनात्मक निबन्धों का संग्रह है। “गीतिकाव्य" पर महादेवी वर्मा का निबन्ध इस प्रकार के निबंधों में प्रथम एवं प्रमाणित है । "यथार्थ और आदर्श" निबन्ध इनकी कौशल पर प्रकाश डालता है । साहित्यिक विवादों पर महादेवी का विचार है - "हमारे साहित्यिक विवाद इन सब अभिशापों से ग्रसित और दुखद हैं, क्योंकि उनके मूल में जीवन के ऊपरी सतह की विवेचना नहीं है, वरन उसकी अन्तर्निहित एकता का खण्डों में बिखरकर विकासशून्य हो जाना प्रमाणित करते हैं । 

         साहित्य गहराई की दृष्टि से पृथ्वी की वह एकता रखता है, जो बाह्य विविधता को जन्म देकर भीतर तक रहती है । सच्चा साहित्यकार भेदभाव की रेखाएँ मिटाते-मिटाते स्वयं मिट जाना चाहेगा, पर उन्हें बना-बनाकर स्वयं बनना उसे स्वीकार न होगा ।" साहित्य में समाज और सामाजिक महत्ववाले विषयों के लेकर लिखने में भी ये सक्षम थीं ।

          पशु-पक्षियों तथा जीव-जंतुओं के प्रति महादेवी वर्मा को अपार प्यार था । इनका मेरा परिवार इस बात की साक्षी है । 'निक्की, रोजी, रानी' लेख में अपने तथा परिवार के सदस्यों से पाले गये निक्की-नेवला, रोजी-कुत्ती तथा रानी-घोडा का वर्णन यथार्थ रूप से किया गया है । 'गिल्लू' में गिलहरी का व्यवहार, लेखिका के प्रति उसका प्यार आदि का चित्रण बखूबी ढंग से किया है । "नीलकंठ मोर" में नीलकंठ और राधा का सच्चा प्यार, नीलकंठ का अद्भुत व्यवहार, "कुब्जा" मोरनी की ईर्ष्या आदि का विवरण करके पशु-पक्षियों के प्रति पाठकों का भी दिल आकर्षित करने का स्तुत्य प्रयास महादेवी वर्मा के द्वारा किया गया है।   

       महादेवी वर्मा साहित्य के क्षेत्र में सचमुच महान देवी है । इनकी 'दीपशिखा' काव्य-कृति को पढ़ने के बाद निरालाजी ने लिखा - 

हिन्दी के विशाल मन्दिर की वीणा-वाणी, 

स्फूर्ति-चेतना-रचना की प्रतिमा कल्याणी ।

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने भी इनकी प्रशंसा मुक्त कंठ से की थी । उनकी उन्नत पंक्तियाँ हैं -

  सहज भिन्न हो महादेवियाँ एक रूप में मिलीं मुझे, 

बता बहन साहित्य-शारदा वा काव्यश्री कहूँ तुझे ।

      सचमुच महादेवी वर्मा साहित्य-शारदा ही हैं । करुण तथा पीडा से युक्त कविताएँ, महानता तथा मानवता पर जोर देनेवाली कहानियाँ, श्रेष्ठ-मानव के साथ पशु-पक्षियों के प्रति भी उनका प्यार दर्शानेवाले गद्य रचनाएँ, संस्मरण, रेखा-चित्र, विचारात्मक, विवेचनात्मक निबंध आदि से महादेवी वर्मा महान कवयित्री ही नहीं बल्कि उत्कृष्ट गद्य लेखिका के रूप में हिन्दी प्रेमियों के मन में सम्माननीय स्थान पाती हैं ।

      सामाजिक जीवन में प्रतिफलित होनेवाले प्रायः सभी महत्वपूर्ण विषयों को लेकर पाठकों के मन में जड-चेतन, शीलता-अश्लीलता, यथार्थ-आदर्श, सभ्यता-संस्कृति, अतीत-वर्तमान, सिद्धान्त-क्रिया, नर-नारी, आत्मा-परमात्मा आदि के बारे में सजगता उत्पन्न करने में महादेवी महानदेवी साबित हुई है ।

      लेखिका का व्यक्तिगत जीवन सदा परमार्थ, सेवार्थ के लिए ही रहा । त्योहारों के दिन इनके घर में बडी भीड़ होती थी । सुप्रसिद्ध कवयित्री, महान लेखिका, ममता तथा मानवता की मूर्ति महादेवी वर्मा का निधन अपनी अस्सी साल की उम्र में 11 सितम्बर 1987 को हुआ था । शरीर के मिट जाने पर भी सद्भावनों के कारण, अतुलनीय साहित्य सेवा के कारण आज भी महादेवी वर्मा हिन्दी प्रमियों के मन में जी रही हैं।

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