Thursday, March 10, 2022

 ✍✍हिन्दी व्याकरण -2 ✍✍

 


✍✍हिन्दी व्याकरण -2✍✍

                सन्धि

13. 'सन्धि' (union-y) क्या है? उसके प्रधान भेद क्या-क्या हैं?


      दो अक्षरों के आस-पास होने पर मेल हो जाने से उनमें जो विकार होता है। उसे सन्धि कहते हैं। सन्धि के तीन प्रधान भेद हैं- 
1. स्वर-सन्धि 2. व्यंजन - सन्धि, 3. विसर्ग सन्धि

14. स्वर-सन्धि (union of vowels- உயிரெழுத்துப் புணர்ச்சி) को सोदाहरण समझाइये।

स्वर सन्धिः यह दो स्वरों के पास-पास आने से होती है। इसके पांच भेद हैं दीर्घ, गुण, वृद्धि, यणू, अयादि ।

दीर्घ सन्धिः जब अ, इ, उ, वर्णों की एक ही जाति के दो स्वरों में सन्धि होती है तो वे दोनों चाहे ह्रस्व हों, चाहे एक हस्व और एक दीर्घ हो, चाहे दोनों ही दीर्घ हों, दोनों के स्थानों में एक दीर्घ स्वर हो जाता है। उसे दीर्घ सन्धि कहते हैं।

(उ०)

अ +अ = आ     -  पूर्ण + अवतार = पूर्णावतार
अ+ आ = आ    - रत्न + आवली = रत्नावली
आ + अ = आ   - विद्या + अभ्यास = विद्याभ्यास
आ + आ = आ  - महा + आत्मा = महात्मा
इ + इ = ई        - रवि + इन्द्र = रवीन्द्र
इ+ ई = ई         - कवि + ईश्वर = कवीश्वर
ई + इ = ई        - मही + इन्द्र = महीन्द्र
ई+ई = ई          - गौरी + ईश्वर = गौरीश्वर
उ + उ = ऊ      - गुरु + उपदेश = गुरूपदेश
उ + ऊ = ऊ    - लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
ऊ + उ = ऊ    - वधू + उत्सव = वधूत्सव
ऊ+ ऊ = ऊ    - भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व

 गुण- सन्धिः यदि 'अ' या 'आ' के आगे 'इ' या 'ई' हो तो दोनों मिलकर 'ए' हो जाते है; उनके आगे 'उ', 'ऊ' हो तो दोनों मिलकर 'ओ' हो जाते हैं; उनके आगे 'ऋ' हो तो दोनों मिलकर 'अर्' हो जाते हैं।

(उ०)

अ + इ = ए        देव + इन्द्र = देवेन्द्र
अ + ई = ए        सुर + ईश = सुरेश
आ + इ = ए       महा + इन्द्र = महेन्द्र
आ + ई = ए       महा + ईश = महेश
अ + उ = ओ      ग्राम + उद्धार = ग्रामोद्धार 
अ + ऊ = ओ     सर + ऊर्मि = सरोर्मि
आ + उ = ओ     महा + उल्लास = महोल्लास 
आ + ऊ = ओ    महा + ऊर्मि = महोर्मि
अ + ऋ = अर्    सप्त + ऋषि = सप्तर्षि 
आ + ऋ = अर्   महा + ऋषि = महर्षि

वृद्धि सन्धिः 'अ' या 'आ', के आगे 'ए' या 'ऐ' हो तो दोनों मिलकर 'ऐ' हो जाते हैं; उनके आगे 'ओ' या 'औ' हो तो दोनों मिलकर 'औ' हो जाते हैं।

(उ०)

अ + ए = = ऐ    सुख + एकांत =सुखैकांत
अ + ऐ = ऐ       सुख + ऐश्वर्य = सुखैश्वर्य
आ + ए = ऐ      सदा + एव = सदैव
आ + ऐ = ऐ      सदा + ऐक्यं = सदैक्यं
अ + ओ = औ    परम + ओषधि = परमौषधि
अ + औ = औ    परम + औषध = परमौषध
आ + ओ = औ   महा + ओषधि = महौषधि
आ + औ = औ   महा + औषध = महौषध

यण् सन्धिः 'इ', 'ई', 'उ', 'ऊ', या 'ॠ', के आगे कोई असवर्ण स्वर आवे तो 'इ', 'ई', के स्थान में 'यू'; 'उ', 'ऊ', के स्थान में 'व्' और ॠ के स्थान में र् हो जाता है।

(उ०)

इ + अ = य       यदि + अपि = यद्यपि
इ + आ = या     प्रति + आगमन = प्रत्यागमन
इ + उ = यु        इति + उक्त = इत्युक्त
इ+ ऊ = यू        प्रति + ऊष = प्रत्यूष
इ+ ए = ये         प्रति + एक = प्रत्येक
इ + ऐ = यै        अति +ऐश्वर्य = अत्यैश्वर्य
इ + ओ = यो      हरि + ओम् = हर्योम् =
इ + औ = यौ      प्रति + औसर = प्रत्यौसर
ई + अ  = य       नदी + अंचल = नद्यंचल
ई + आ = या      भावी + आकर्षण = भाव्याकर्षण
ई + उ = यु         अनी + उत्थान = अन्युत्थान
ई + ऊ = यू        नदी + ऊर्मि = नघूर्मि
ई + ए = ये         भावी + एकता = भाव्येकता
ई + ऐ = यै         मही + ऐश्वर्य = महद्यैश्वर्य
ई + ओ = यो      नदी + ओघ = नद्योघ +
ई + औ = यौ      मही + औदार्य = मद्यौदार्य
उ + अ = व        सु + अल्प = स्वल्प
उ+ आ = वा       सु + आगतम् = स्वागतम्
उ + इ = वि        गुरु + इच्छा = गुर्विच्छा
उ + ई = वी        गुरु + ईश्वर = गुर्वीश्वर
उ + ए = वे        अनु + एषण = अन्वेषण
उ + ऐ = वै         सु + ऐक्य = स्वैक्य
उ + ओ = वो      गुरु + ओज = गुर्योज
उ + औ = वौ      गुरु + औदार्य = गुर्वौदार्य
ऊ + अ = व       भ्रू + अंग = भ्रवंग
ऊ + आ = वा      भ्रू + आकर्षण = भ्रवाकर्षण =
ऊ+ इ =             विभ्रू + इंगित = भ्रविंगित
ऊ + ई = वी        भू + ईश्वर = भ्वीश्वर
ऊ + ए = वे         भू + एकता = भ्वेकता
ऊ + ऐ = वै         भू + ऐक्य = भ्वैक्य
ऊ + ओ = वो      भ्रू + ओज = भ्रवोज
ऊ + औ = वौ      भू + औदार्य = भ्वौदार्य
ॠ + अ = र         पितृ + अनुमति = पित्रनुमति





ॠ + आ = रा    मातृ + आनंद = मात्रानंद
ऋ + इ = रि      मातृ + इव = मात्रिव
ऋ + ई = री      पितृ + ईश = पित्रीश
ऋ + उ = रु      पितृ + उपदेश = पित्रुपदेश
ॠ+ ऊ = रू      पितृ + ऊरु = पित्ररु
ॠ+ ए = रे         भ्रातृ + एकता भ्रात्रेकता 
ऋ+ ऐ  = रै        पितृ + ऐश्वर्य पित्रेश्वर्य
ऋ + ओ = रो     पितृ + ओज पित्रोज
ॠ + औ = रौं     पितृ + औदार्य = पित्रौदार्य

अयादि सन्धिः 'ए' या 'ऐ' के आगे उन्हें छोडकर दूसरा कोई स्वर आ जाय तो 'ए' के स्थान में 'अय' और 'ऐ' के स्थान में 'आय' हो जाता है। उसी तरह 'ओ' या 'औ' के आगे उन्हें छोड़कर दूसरा कोई स्वर आये तो 'ओ' के स्थान में 'अबू' और 'औ' के स्थान में 'आव' हो जाता है।

ए+ अ = अय       ने + अन = नयन
ऐ + अ = आय     गै + अक= गायक
ओ + अ = अव    पो + अन = पवन
औ + अ आव      पौ + अक = पावक
औ + उ = आवु    भी + उक = भावुक

15. व्यंजन संधि (union with consonants - wwwpri 8) को सोदाहरण समझाइये

       व्यंजन के आगे कोई व्यंजन या स्वर आने से जो परिवर्तन होता है उसे व्यंजन सन्धि कहते हैं।

1. किसी वर्ग के प्रथम व्यंजन के बाद किसी वर्ग का तीसरा, चौथा व्यंजन या कोई स्वर अथवा कोई अन्तस्थ अक्षर (यू, र, लू, व्) आये तो प्रथम व्यंजन अपने वर्ग का तीसरा व्यंजन होता है।

(उ०)

षट + दर्शन   = षड्दर्शन
सत + भाव   = सद्भाव
वाक् + ईश   = वागीश
जगत् + ईश  = जगदीश 
वाक + विलास = वाग्विलास
तत् + रूप    = तद्रूप

2. किसी वर्ण के प्रथम व्यंजन के बाद किसी वर्ण का पांचवाँ व्यंजन आए तो प्रथम व्यंजन अपने ही वर्ग का पांचवाँ व्यंजन हो जाता है।

(उ०)

वाक् + मय  = वाङ्मय
षट् + मुक = षण्मुख
जगत् + नाथ = जगन्नाथ

 3. पहले शब्द के अन्त में किसी वर्ग का पहला व्यंजन हो और दूसरे शब्द के आदि में 'ह' हो तो पहले व्यंजन को अपने वर्ग का तीसरा व्यंजन होना पडता है और हू भी उसी वर्ग का चौथा व्यंजन हो जाता है।

वाक् + हर्ज  = वाग्घर्ज
तत् + हित   = तद्धित


4. 'त्' या 'दू' के आगे ल् हो तो 'तू' या 'दू' भी 'लू' हो जाता है ।

तत् + लीन    = तल्लीन
शरद् + लास   = शरल्लास 

5. 'तू' या 'दू' के आगे 'श' हो तो 'तू' या 'द्' का 'च्' हो जाता है और
'श' बदलकर 'छ्' हो जाता है।

सत् + शासन  = सच्छासन
उत् + शिष्ट     = उच्छिष्ट

6. 'तू' या 'दू' के आगे 'च' या 'छ' हो तो 'तू' या 'दू' 'च' हो चाता हैं; 'ज' या 'झ' होने पर 'ज्' हो जाता हैं, 'टू' या 'ठ्' होने पर 'टू' हो जाता हैं; 'ड' या  'ढ' होने पर 'ड्र' हो जाता हे

उत् + चारण   =  उच्चारण
उत् + छेद      = उच्छेद 
सत् + जन     = सज्जन 
विपद् + जाल = विपज्जाल 
बृहत + टीका  = बृहट्टीका
उत् + दयन    = उड्ढयन

7. 'छ' के पूर्व कोई स्वर हो तो बीच में 'चू' का आगमन होता है।

वि + छेद  =  विच्छेद
आ + छादन  = आच्छादन

8. 'म्' के आगे कोई स्पर्श व्यंजन ('क' से 'म' तक) हो तो म् को अनुस्वार अथवा बाद के वर्ण के वर्ग का पांचवाँ वर्ण हो जाना पडता है और यदि कोई अन्य व्यंजन हो तो अनुस्वार हो जाता है

सम् + कल्प  = संकल्प (सङ्कल्प)
किम् + चित्  =  किंचित (किञ्चित)
सम् + तोष = संतोष (सन्तोष) 
संपूर्ण ( सम्पूर्ण) = सम् + पूर्ण
सम् + योग = संयोग
सम् + रक्षक = संरक्षक
सम् + लग्न  =  संलग्न
सम् + वत्   =   संवत्
सम् + शय   = संशय
सम् + सार  = संसार 
सम् + हार  = संहार

(परन्तु सम्राट, सम्राज्ञी और साम्राज्य में 'म्' को अनुस्वार नहीं होना पड़ता )

9. 'ऋ', 'र' या 'ष' के बाद यदि न् हो तो उसे ‘ण्' हो जाना पडता है

चाहे उनके बीच का कोई स्वर, क वर्ग या प वर्ग का कोई वर्ण अथवा यू, व्, ह्   और अनुस्वार में से कोई वर्ण भी हो।

भूष + अन  = भूषण
प्र + मान = प्रमाण
ॠ + न   = ॠण 
राम + अयन = रामायण

10. यदि स् के पूर्व 'अ' या 'आ' को छोडकर कोई और स्वर आवें तो स्  को 'ष' हो जाना पडता है।

अभि + सेक = अभिषेक
वि + सम     = विषम


11. 'र' के आगे यदि 'र' आवे तो पहले र का लोप हो जाता है और
उससे पहले का ह्रस्व स्वर दीर्घ हो जाता है।

निर् + रोग  = नीरोग
निर + रस  =  नीरस 

12. 'स्' या त वर्ग के आगे 'श' या च वर्ग हो तो 'स्' बदलकर 'श्' और 'त' वर्ग क्रम से च वर्ग हो जाता है।

निस् + शंक = निशंक
सत् + जन  = सज्जन
उत् + चारण =  उच्चारण

16. विसर्ग सन्धि (union with hard aspirated vowel - வலிய உயிர்ப்பொலியீற்றுப் புணர்ச்சி ) को सोदाहरण समझाइये।

    स्वरों या व्यंजनों के मेल से विसर्ग में जो परिवर्तन हो जाता है उसे विसर्ग  सन्धि कहते हैं।

    1. यदि विसर्ग के पहले अ और पीछे अ या किसी वर्ग का तीसरा, चौथा या पांचवाँ अक्षर अथवा, य, र, ल, व, ह में से कोई अक्षर हों तो पहले अ और विसर्ग के स्थान में 'ओ' हो जाता है। पीछे के अक्षरों में सिर्फ 'अ' का लोप हो जाता है।

प्रथमः + अध्याय  = प्रथमोध्याय
तेजः + राशि = तेजोराशि
अधः + गति  = अधोगति
मनः + हर     = मनोहर
तपः + बल  = तपोबल
यशः + दा    = यशोदा

   2. यदि विसर्ग के पहले 'अ' हो और पीछे 'अ' के अतिरिक्त कोई और स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है।

अतः + एव  = अतएव

   3. यदि विसर्ग के पहले 'अ' या 'आ' को छोड़कर कोई और स्वर हो और पीछे कोई स्वर, किसी वर्ग का तीसरा चौथा या पाँचवां अक्षर अथवा 'य, ल, व, ह' में से कोई अक्षर हो तो विसर्ग र हो जाता है।

निः + आशा = निराशा
निः + गुण    = निर्गुण
निः + धन     = निर्धन
निः + मम     = निर्मम
निः + यात    =  निर्यात
दु: + लभ  =  दुर्लभ
निः + विकार = निर्विकार 

     4. यदि विसर्ग के पहले 'अ', 'आ' को छोडकर कोई दूसरा स्वर हो और आगे 'र' हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है और उसके पहले का स्वर दीर्घ हो जाता है।

निः + रोग = नीरोग
निः + रस = नीरस

    5. यदि विसर्ग के पहले 'इ' अथवा 'उ' हो और आगे 'क्', 'खू', या ‘प्', 'फ्' हो तो विसर्ग का 'ष' हो जाता है

निः + कलङ्क = निष्कलङ्क
दु: + कर         = दुष्कर
निः + पाप       = निष्पाप
निः + फल       = निष्फल

       6. यदि विसर्ग के बाद 'शू, ष, स्,' हो तो विसर्ग या तो ज्यों का त्यों रहता है अथवा वह आगे का अक्षर हो जाता है।

निः + सन्देह     = निःसन्देह या निस्सन्देह 
दु: + शासन      = दुःशासन या दुश्शासन =

    7. यदि विसर्ग के बाद 'चू' अथवा 'छू' हो तो विसर्ग 'शू' हो जाता है ।

निः + चल   = निश्चल 
निः + छल = निश्छल

8. यदि विसर्ग के बाद 'टू' अथवा 'ठू' हो तो विसर्ग 'ष' हो जाता है।

धनु: + टंकार  = धनुष्टंकार

9. यदि विसर्ग के बाद 'तू' अथवा 'धू' हो तो विसर्ग सू हो जाता है

दु: + तर    = दुस्तर
मनः + ताप  = मनस्ताप

10. यदि विसर्ग के पहले 'अ' और बाद में क्, खू, पू, फ्, में से कोई एक वर्ण हो तो विसर्ग ज्यों का त्यों रहता है।

अधः + पतन  = अधःपतन
पयः + पान   =  पयःपान

11. कुछ अनियमित सन्धियाँ। 

  नमः + कार = नमस्कार
   तिरस्कार = तिरः + कार










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