Tuesday, February 9, 2021

हिंदी व्याकरण/Hindi Grammar

 

                                        हिंदी व्याकरण


                       पहला खंड भाषा और व्याकरण एवं वर्णविचार


                                       1. भाषा और व्याकरण

           भाषा का हमारे जीवन में बड़ा महत्व है यह संसार के व्यवहार का मूल है । भाषा के अभाव में सारे संसार की स्थिति गंगा के समान बन जाएगी। भाषा एक साधन है, जिसके माध्यम से मनुष्य सोचता है और अपने विचार तथा भावनाएँ व्यक्त करता है। भाषा अतीत तथा वर्तमान में संबंध जोडती है। हमारी सभ्यता और संस्कृति का आधार भाषा ही है

          भाषा याद की व्युत्पत्ति 'भाष' धातु से हुई है, जिसका अर्थ बोलना या व्यक्त ध्वनि समूह का उच्चारण करना है। पूर्ण व स्पष्ट भावाभिव्यक्ति केवल भाषा से ही हो पाती है । इस प्रकार हम कह सकते है कि मानव-सन के विचारों को पूर्णता व स्पष्टता के साथ प्रकट करने के सरल त सशक्त शव्दमय साधन को भाषा कहते है।

           भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर अथवा लिखकर अपने विचारों को प्रकट करता है। 

       भाषा के प्रकार :- भाषा विचार-विनिमय का ही नहीं. मानसिक-संभाषण का भी उत्तम साधन इसलिए विद्वान लोग भाग के तीन पक्ष स्वीकार करते हैं -

      (1) शब्द (2) अर्थ और (3) वक्ता व त्रोता का मन।

        भाषा का दो प्रकार से प्रयोग होता है, मौखिक एवं लिखित । याणी (मुख) द्वारा चोलकर विचार प्रकट करने के सरल साधन को मौखिक (कधित) भाषा तथा लेखनी एवारा लिखकर विचार प्रकट करने के सरल साधन को लिखित भाषा कहते हैं।

      मौखिक भाषा में प्लानियों का प्रयोग होता है तथा लिखित भाषा में ध्यनि-चिहनों का प्रयोग होता है। 

       बोली : उपभाषा: बोली और भाषा में अंतर है । भाषा का क्षेत्र व्यापक होता है । भाषा में लिखित और मौखिक दोनों रूप होते है वोली भाषा का ऐसा रूप है, जो किसी छोट क्षेत्र में बोली जाती है। जब बोली इतनी विकसित हो जाती है कि वह किसी लिपि में लिखी जाने लगे, उसमें साहित्य की रचना होने लगे और उसका क्षेत्र भी अपेक्षाकृत विस्तृत हो जाए. सब उसे भाषा कहा जाता है।

                                            व्याकरण

          भाषा की शुद्धता और एकरूपत्ता बनाये रखना ही व्याकरण का कार्य है । व्याकरण उस शाम्ब को कहते है, जिससे किसी भाषा के शुद्ध रूप का तान करानेवाले नियम बताये गये हो। 


'व्याकरण' शब्द का अर्थ :- जिस शास्त्र के द्वारा भाषा व्याकृत की जाए, 'ध्याक्तिगतेन इति व्याकरणम्' अर्थात् जिस शास्त्र से भाषा के शब्दों का पृथवा पृथक विश्लेषण करके उसकी मूल प्रकृति तथा प्रत्यय का ज्ञान हो, उसे व्याकरण कहते हैं । इस प्रकार व्याकरण या शास्त्र है, जो किसी भाषा का शुद्ध रूप में बोलना और लिगाना सिशाता है और उसके अंग-प्रत्यग का बोध कराता है। दूसरे शब्दों में भाषा के शब्दों की बनावट और उनकी प्रयोग-विधि पर विचार प्रकट करनेवाले शास्त्र को प्याकरण करते है।

         व्याकरण की शब्दानुशासन भी काा जाता है । कारण व्याकरण शब्दों के अशुद्ध प्रयोग पर अनुशासन रखता है


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व्याकरण के अंग :- व्यावहारिक दृष्टि से भाषा की मुख्य इकाई बाक्य है। दूसरे शब्दों में वाक्य ही भाष है। वाक्य का निर्माण शब्दों से कोत्ता है और शब्दों का निर्माण दर्ण से हसी जाधार पर व्याकरण के मुख्यतया चार मुख्य अंगी । वर्ण, शब्द, पथ और वाक्य । इसलिए व्याकरण के मुख्यतः चार विभाग है :-

             1.वर्ण विचार, 2 शच विचार, 3. पद विचार, 4, बास्य विचार

    वर्ण विचार :- व्याकरण के जिस विभाग में वर्ण, उसके भेद, उच्चारण एवं उनके भेल से शष्ट बनाने के नियम जादि का उल्लेख किया जाता है. वा वर्ण विचार कहलाता है।

    शब्द विचार :- व्याकरण के जिस विभाग में शब्द, उसके भेद, उत्पत्ति, व्युत्पत्ति, रथना आदि का उल्लेख किया जाता है, उसे शब्द विचार कहते हैं ।

    पद विचार : व्याकरण के जिस विभाग में पद-भेद रूपांतर और प्रयोग संबंधी नियों पर विचार किया जाता है, वह पद विचार कहलाता है ।

    बाक्य विचार :- व्याकरण के जिस विभाग के अंतर्गत वाक्य, उसके भेद, अन्वय, विश्लेषण, संश्लेषण, रचना, अवयद एवं शब्दों से चाय बनाने के नियम आदि का उल्लेख होता है, उसे वाक्य विचार कहते हैं। 


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