Tuesday, May 11, 2021

लोकोक्तियाँ और उनके अर्थ

 


लोकोक्तियाँ और उनके अर्थ – Hindi Loktokis with Meanings

1. अन्त बुरे का बुरा-बुरे का परिणाम बुरा होता है।

2. अन्त भला सो भला-परिणाम अच्छा रहता है तो सब-कुछ अच्छा कहा जाता है।

3. अन्धा क्या चाहे दो आँखें—प्रत्येक व्यक्ति अपनी उपयोगी वस्तु को पाना चाहता है।

4. अन्धी पीसे कुत्ता खाय-परिश्रमी के असावधान रहने पर उसके परिश्रम का फल निकम्मों को मिल जाता है।

5. अन्धे के आगे रोए अपने नैन खोए-जिसमें सहानुभूति की भावना न हो, उसके सामने दुःख-दर्द की बातें करना व्यर्थ है।

6. अन्धों में काना राजा-मूों के समाज में कम ज्ञानवाला भी सम्मानित होता है।

7. अक्ल बड़ी या भैंस-शारीरिक शक्ति की अपेक्षा बुद्धि अधिक बड़ी होती है।

8. अधजल गगरी छलकत जाय-अधूरे ज्ञानवाला व्यक्ति ही अधिक बोलता डींगें हाँकता. है।

9. अपना पैसा खोटा तो परखनेवाले का क्या दोष-अपने अन्दर अवगुण हों तो दूसरे बुरा कहेंगे ही।

10. अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग-सबका अपनी-अपनी अलग बात करना।

11. अपनी करनी पार उतरनी-अपने बुरे कर्मों का फल भुगतना ही होता है।

12. अपने घर पर कुत्ता भी शेर होता है-अपने स्थान पर निर्बल भी अपने को बलवान् प्रकट करता है।

13. अपना हाथ जगन्नाथ-अपना कार्य स्वयं करना।

14. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता-अकेला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता।

15. अशर्फियाँ लुटें और कोयलों पर मुहर-मूल्यवान् वस्तुओं की उपेक्षा करके तुच्छ वस्तुओं की चिन्ता करना।

16. आँख के अन्धे गाँठ के पूरे—मूर्ख और हठी।

17. आँखों के अन्धे, नाम नयनसुख-गुणों के विपरीत नाम होना।।

18. आई मौज फकीर की दिया झोपड़ा फूंक-वह व्यक्ति, जो किसी भी वस्तु से मोह नहीं करता है।

19. आगे कुआँ पीछे खाई—विपत्ति से बचाव का कोई मार्ग न होना।

20. आगे नाथ न पीछे पगहा-कोई भी जिम्मेदारी न होना।

21. आटे के साथ घुन भी पिसता है-अपराधी के साथ निरपराधी भी दण्ड प्राप्त करता है।

22. आधी तज सारी को धाए, आधी मिले न सारी पाए-लालच में सब-कुछ समाप्त हो जाता है।

23. आप भला सो जग भला-अपनी नीयत ठीक होने पर सारा संसार ठीक लगता है।

24. आम के आम गुठलियों के दाम-दुहरा लाभ उठाना।

25. आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास-किसी महान कार्य को करने का लक्ष्य बनाकर भी निम्न स्तर के काम में लग जाना।

26. आसमान से गिरा खजूर पर अटका-एक विपत्ति से छूटकर दूसरी में उलझ जाना।

27. उठी पैंठ आठवें दिन लगती है—एक बार व्यवस्था भंग होने पर उसे पुन: कायम करने में समय लगता है।

28. उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई-निर्लज्ज बन जाने पर किसी की चिन्ता न करना।

29. उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे-अपना दोष स्वीकार न करके उल्टे पूछनेवाले पर आरोप लगाना।

30. ऊधो का लेना न माधो का देना–स्पष्ट व्यवहार करना।

31. एक और एक ग्यारह होना—एकता में शक्ति होती है।

32. एक चुप सौ को हराए-चुप रहनेवाला अच्छा होता है।

33. एक तन्दुरुस्ती हजार नियामत-स्वास्थ्य का अच्छा रहना सभी सम्पत्तियों से श्रेष्ठ होता है।

34. एक तो करेला, दूसरे नीम चढ़ा-अवगुणी में और अवगुणों का आ जाना।

35. एक तो चोरी दूसरी सीनाजोरी-गलती करने पर भी उसे स्वीकार न करके विवाद करना।

36. एक थैली के चट्टे-बट्टे-सबका एक-सा होना।

37. एक पन्थ दो काज-एक ही उपाय से दो कार्यों का करना।

38. एक हाथ से ताली नहीं बजती-झगड़ा एक ओर से नहीं होता।

39. एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं—एक ही स्थान पर दो विचारधाराएँ नहीं रह सकतीं।

40. एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय-प्रभावशाली एक ही व्यक्ति के प्रसन्न कर लेने पर सबको प्रसन्न करने की आवश्यकता नहीं रह जाती। सबको प्रसन्न करने के प्रयास में कोई भी प्रसन्न नहीं हो पाता।

41. ओखली में सिर दिया तो मूसलों का क्या डर–कठिन कार्य में उलझकर विपत्तियों से घबराना बेकार है।

42. ओछे की प्रीत बालू की भीत-नीच व्यक्ति का स्नेह रेत की दीवार की तरह अस्थायी क्षणभंगुर. होता है।

43. कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर संयोगवश कभी कोई किसी के काम आता है तो कभी कोई दूसरे के।

44. कभी घी घना, कभी मुट्ठीभर चना, कभी वह भी मना-जो कुछ मिले, उसी से सन्तुष्ट रहना चाहिए।

45. करघा छोड़ तमाशा जाय, नाहक चोट जुलाहा खाय-अपना काम छोड़कर व्यर्थ के झगड़ों में फँसना हानिकर होता है।

46. कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली-दो असमान स्तर की वस्तुओं का मेल नहीं होता।

47. कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा; भानुमती ने कुनबा जोड़ा-इधर-उधर से उल्टे-सीधे प्रमाण एकत्र कर अपनी बात सिद्ध करने का प्रयत्न करना।

48. कागज की नाव नहीं चलती-बिना किसी ठोस आधार के कोई कार्य नहीं हो सकता।

49. कागा चला हंस की चाल-अयोग्य व्यक्ति का योग्य व्यक्ति जैसा बनने का प्रयत्न करना।

50. काठ की हाँड़ी केवल एक बार चढ़ती है-कपटपूर्ण व्यवहार बार-बार सफल नहीं होता।

51. का बरसा जब कृषि सुखाने-उचित अवसर निकल जाने पर प्रयत्न करने का कोई लाभ नहीं होता।

52. को नृप होउ हमहिं का हानी—राजा चाहे कोई भी हो, प्रजा की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं होता। प्रजा, प्रजा ही रहती है।

53. खग जाने खग ही की भाषा–एकसमान वातावरण में रहनेवाले अथवा प्रवृत्तिवाले एक-दूसरे की बातों के सार शीघ्र ही समझ लेते हैं।

54. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है—एक का प्रभाव दूसरे पर पड़ता है।

55. खोदा पहाड़ निकली चुहिया-अधिक परिश्रम करने पर भी मनोवांछित फल न मिलना।

56. गंगा गए गंगादास जमुना गए जमुनादास-देश-काल-वातावरण के अनुसार स्वयं को ढाल लेना।

57. गुड़ न दे, गुड़ जैसी बात तो करे–चाहे कुछ न दे, परन्तु वचन तो मीठे बोले।

58. गुड़ खाए, गुलगुलों से परहेज-किसी वस्तु से दिखावटी परहेज।

69. घर का भेदी लंका ढावै-अपना ही व्यक्ति धोखा देता है।

60. घर का जोगी जोगना,आन गाँव का सिद्ध-गुणवान् व्यक्ति की अपने स्थान पर प्रशंसा नहीं होती।

61. घर की मुर्गी दाल बराबर-घर की वस्तु का महत्त्व नहीं समझा जाता।

62. घर खीर तो बाहर खीर-यदि व्यक्ति अपने घर में सुखी और सन्तुष्ट है तो उसे सब जगह सुख और सन्तुष्टि का अनुभव होता है।

63. घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने-झूठी शान दिखाना।

64. घी कहाँ गिरा, दाल में व्यक्ति का स्वार्थ के लिए पतित होना।

65. घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या-संकोचवश पारिश्रमिक न लेना।

66. घोड़े को लात, आदमी को बात-घोड़े के लिए लात और सच्चे आदमी के लिए बात का आघात असहनीय होता है।

67. चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए-लालची होना।

68. चलती का नाम गाड़ी—जिसका नाम चल जाए वही ठीक।

69. चादर के बाहर पैर पसारना—हैसियत क्षमता. से अधिक खर्च करना।

70. चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात-सुख क्षणिक ही होता है।

71. चिड़िया उड़ गई फुरै-अभीष्ट व्यक्ति अथवा वस्तु का प्राप्ति से पूर्व ही गायब हो जाना/मृत्यु हो जाना।

72. चिराग तले अँधेरा-अपना दोष स्वयं को दिखाई नहीं देता।

73. चोर-चोर मौसेरे भाई-समाजविरोधी कार्य में लगे हुए व्यक्ति समान होते हैं।

74. चूहे का जाया बिल ही खोदता है-बच्चे में पैतृक गुण आते ही हैं।

75. चोरी का माल मोरी में जाता है—छल की कमाई यों ही समाप्त हो जाती है।

76. छछून्दर के सिर पर चमेली का तेल-कुरूप व्यक्ति का अधिक शृंगार करना।

77. जल में रहकर मगर से बैर-अधिकारी से शत्रुता करना।

78. जहाँ चाह वहाँ राह—इच्छा, शक्ति से ही सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।

79. जहाँ देखी भरी परात, वहीं गंवाई सारी रात-लोभी व्यक्ति वहीं जाता है, जहाँ कुछ मिलने की आशा होती है।

80. जाके पाँव व फटी बिबाई, सो क्या जाने पीर पराई—जिसने कभी दुःख न देखा हो, वह दूसरे की पीड़ा दुःख. को नहीं समझ सकता।

81. जिसकी लाठी उसकी भैंस-शक्तिशाली की विजय होती है।

82. जिस थाली में खाना उसी में छेद करना-कृतघ्न होना।

83. जैसे कंता घर रहे वैसे रहे विदेश–स्थान परिवर्तन करने पर भी परिस्थिति में अन्तर न होना।

84. जैसा देश वैसा भेष—प्रत्येक स्थान पर वहाँ के निवासियों के अनुसार व्यवहार करना।

85. जैसे नागनाथ वैसे साँपनाथ-दो नीच व्यक्तियों में किसी को अच्छा नहीं कहा जा सकता।

86. जो गरजते हैं बरसते नहीं-अकर्मण्य लोग ही बढ़-चढ़कर डींग मारते हैं। अथवा कर्मनिष्ठ लोग बातें नहीं बनाते। .

87. ढाक के वही तीन पात-कोई निष्कर्ष हल. न निकलना।

88. तबेले की बला बन्दर के सिर—एक के अपराध के लिए दूसरे को दण्डित करना।

89. तीन लोक से मथुरा न्यारी-सबसे अलग, अत्यन्त महत्त्वपूर्ण।

90. तीन में न तेरह में, मृदंग बजावे डेरा में किसी गिनती में न होने पर भी अपने अधिकार का ढिंढोरा पीटना।

91. तुम डाल-डाल हम पात-पात-प्रतियोगी से अधिक चतुर होना। अथवा प्रतियोगी की प्रत्येक चाल को विफल करने का उपाय ज्ञात होना।

92. तुरत दान महाकल्याण-किसी का देय जितनी जल्दी सम्भव हो, चुका देना चाहिए।

93. तू भी रानी मैं भी रानी, कौन भरेगा पानी—सभी अपने को बड़ा समझेंगे तो काम कौन करेगा।

94. तेली का तेल जले, मशालची का दिल-व्यय कोई करे, दुःख किसी और को हो।

95. तेल देख तेल की धार देख–कार्य को सोच-विचारकर करना और अनुभव प्राप्त करना।

96. थोथा चना बाजे घना-कम गुणी व्यक्ति में अहंकार अधिक होता है।

97. दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते-मुफ्त की वस्तु का अच्छा-बुरा नहीं देखा जाता।

98. दाल-भात में मूसलचंद-किसी कार्य में व्यर्थ टाँग अड़ाना।

99. दिन दूनी रात चौगुनी-गुणात्मक वृद्धि।

100. दीवार के भी कान होते हैं रहस्य खुल ही जाता है।

101. दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम-दुविधाग्रस्त व्यक्ति को कुछ भी प्राप्त नहीं होता।

102. दूर के ढोल सुहावने होते हैं—प्रत्येक वस्तु दूर से अच्छी लगती है।

103. धोबी का कुत्ता घर का न घाट का-लालची व्यक्ति कहीं का नहीं रहता/लालची व्यक्ति लाभ से वंचित रह ही जाता है।

104. न तीन में, न तेरह में महत्त्वहीन होना, किसी काम का न होना।

105. न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी-झगड़े की जड़ काट देना।

106. नाच न जाने/आवै आँगन टेढ़ा-काम न आने पर दूसरों को दोष देना।

107. नाम बड़े, दर्शन छोटे-प्रसिद्धि के अनुरूप निम्न स्तर होना।

108. न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी-न इतने अधिक साधन होंगे और न काम होगा।

109. नीम हकीम खतरा-ए-जान-अप्रशिक्षित चिकित्सक रोगी के लिए जानलेवा होते हैं।

110. नौ नकद न तेरह उधार-नकद का विक्रय कम होने पर भी उधार के अधिक विक्रय से अच्छा है।

111. नौ दिन चले अढ़ाई कोस-धीमी गति से कार्य करना।

112. नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली—जीवनभर पाप करने के बाद बुढ़ापे में धर्मात्मा होने का ढोंग करना।

113. पढ़े फारसी बेचे तेल, यह देखा कुदरत का खेल-भाग्यवश योग्य व्यक्ति द्वारा तुच्छ कार्य करने के लिए विवश होना।

114. बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी-विपत्ति अधिक समय तक नहीं टल सकती।

115. बगल में छोरा, नगर में ढिंढोरा-वाँछित वस्तु की प्राप्ति के लिए अपने आस-पास दृष्टि न डालना।

116. बड़े मियाँ सो बड़े मियाँ छोटे मियाँ सुभानअल्लाह-छोटे का बड़े से भी अधिक धूर्त होना।

117. बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद-मूर्ख व्यक्ति गुणों के महत्त्व को नहीं समझ सकता।

118. बाप ने मारी मेंढकी, बेटा तीरंदाज-कुल-परम्परा से निम्न कार्य करते चले आने पर भी महानता का दम्भ भरना।

119. बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना-अचानक कार्य सिद्ध हो जाना।

120. भइ गति साँप छछून्दति केरी-दुविधा की स्थिति।

121. भरी जवानी में माँझा ढीला-युवावस्था में पौरुष उत्साह.हीन होना।

122. भागते भूत की लँगोटी भली-न देनेवाले से जो भी मिल जाए, वही ठीक है।

123. भूखे भजन न होय गोपाला-भूखे पेट भक्ति भी नहीं होती।

124. भैंस के आगे बीन बजाना-मूर्ख के आगे गुणों का प्रदर्शन करना व्यर्थ होता है।

125. मन चंगा तो कठौती में गंगा-मन के शुद्ध होने पर तीर्थ की आवश्यकता नहीं होती।

126. मरे को मारे शाहमदार राजा से लेकर धूर्त तक सभी सामर्थ्यवान् कमजोर को ही सताते हैं।

127. मान न मान मैं तेरा मेहमान-जबरदस्ती गले पड़ना।

128. मुँह में राम बगल में छुरी-कपटपूर्ण व्यवहार।

129. मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक-प्रत्येक व्यक्ति अपनी पहुँच के भीतर कार्य करता है।

130. यथा नाम तथा गुण-नाम के अनुरूप गुण।

131. यथा राजा तथा प्रजा-जैसा स्वामी वैसा सेवक।

132. रस्सी जल गई ऐंठ न गई-अहित होने पर भी अकड़ न जाना।

133. राम नाम जपना पराया माल अपना-धर्म का आडम्बर करते हुए दूसरों की सम्पत्ति को हड़पना।

134. लातों के भूत बातों से नहीं मानते-नीच बिना दण्ड के नहीं मानते।

135. लाल गुदड़ी में भी नहीं छिपते—गुणवान् हीन दशा में होने पर भी पहचाना जाता है।

136. शौकीन बुढ़िया चटाई का लहँगा-शौक पूरे करते समय अपनी आर्थिक स्थिति की अनदेखी करना।

137. साँच को आँच नहीं सत्यपक्ष का कोई भी विपत्ति कुछ नहीं बिगाड़ सकती/सत्य की सदैव विजय होती है।

138. साँप निकल गया लकीर पीटते रहे कार्य का अवसर हाथ से निकल जाने पर भी परम्परा का निर्वाह करना।

139. साँप भी मरे और लाठी भी न टूटे-काम भी बन जाए और कोई हानि भी न हो।

140. सावन हरे न भादों सूखे-सदैव एक-सी स्थिति में रहना।

141. सावन के अन्धे को सब जगह हरियाली दिखना-स्वार्थ में अन्धे व्यक्ति को सब जगह स्वार्थ ही दिखता है।

142. सिर मुड़ाते ही ओले पड़ना—कार्य के आरम्भ में ही बाधा उत्पन्न होना।

143. सूरज को दीपक दिखाना-सामर्थ्यवान को चुनौती देना; ज्ञानी व्यक्ति को उपदेश देना।

144. हंसा थे सो उड़ गए, कागा भए दिवान–सज्जनों के पलायन कर जाने पर सत्ता दुष्टों के हाथ में आ जाती है।

145. हमारी बिल्ली हमीं को म्याऊँ-पालक पालनेवाले. के प्रति विद्रोह की भावना रखना।

146. हल्दी/हर्र लगे न फिटकरी, रंग चोखा आए-बिना कुछ प्रयत्न किए कार्य अच्छा होना।

147. हाथ कंगन को आरसी क्या-प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती।

148. हाकिम की अगाड़ी, घोड़े की पिछाड़ी-विपत्ति से बचकर ही निकलना चाहिए।

149. हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और-कपटी व्यक्ति कहते कुछ हैं, करते कुछ हैं।

150. हाथी के पाँव में सबका पाँव-ओहदेदार व्यक्ति की हाँ में ही सबकी हाँ होती है।

151. होनहार बिरवान के होत चीकने पात-प्रतिभाशाली व्यक्ति के लक्षण आरम्भ से ही दिखने लगते हैं।

152. हाथी निकल गया, दुम रह गई—सभी मुख्य काम हो जाने पर कोई मामूली-सी अड़चन रह जाना।

153. होइहि सोइ जो राम रचि राखा-वही होता है, जो भगवान् ने लिखा होता है।












No comments:

Post a Comment

thaks for visiting my website

एकांकी

Correspondence Course Examination Result - 2024

  Correspondence Course  Examination Result - 2024 Click 👇 here  RESULTS