Wednesday, May 26, 2021

☀️सन्धि☀️

 

       ☀️सन्धि☀️

 sandhi

 ⚛संधि की परिभाषा – दो वर्णों के मेल को संधि कहते है |

 उदाहरण – विद्या + अर्थी = विद्यार्थी ( इसमें विद्यार्थी संधि है )

 

 ⚛संधि विच्छेद – संधि किये गये शब्दों को अलग अलग करके पूर्व की तरह करना ही संधि विच्छेद कहलाता है |

 

 जैसा कि हम जानते है कि दो वर्णों के मेल को संधि कहते है ऊपर के उदाहरण से स्पष्ट है ‘ विद्यार्थी ‘ संधि है | विद्यार्थी को ‘विद्या’ + ‘अर्थी’ अलग –अलग कर देने की प्रक्रिया ही संधि विच्छेद कही जाती है | अत: विद्या + अर्थी संधि विच्छेद है |

 

 ⚛संधि का अर्थ – संधि शब्द का शाब्दिक अर्थ है – जोड़ अथवा मेल |’संधि’ शब्द का अर्थ व्यापक अर्थों में लिया जाता है ,परंतु यहाँ संधि शब्द का अर्थ वर्णों के मेल और विच्छेद से होता है | दो वर्णों का जो मेल या जोड़ होता है वह नियमों के अधीन होता है | संधि के नियम बने हुए है | जिसके अधीन संधि की जाती है |संधि में भाषा के नियमों का पूर्ण रूप से पालन किया जाता है | हिंदी भाषा में तत्सम शब्दों की बहुलता है | अत: संस्कृत के नियमों का पालन किया जाता है |

 

 1. स्वर संधि

 2. व्यंजन संधि

 3. विसर्ग संधि

 

 

 ⚛1. स्वर संधि – दों स्वरों के मेल से जो संधि होती है ,उसे स्वर संधि कहते है |

 

 

 

 जैसे – विद्या + आलय = विद्यालय

 ⚛स्वर संधि के भेद – स्वर संधि के निम्न भेद है :-

 1. दीर्घ संधि

 2. गुण संधि

 3. यण संधि

 4. वृद्धि संधि

 5. अयादि संधि

 

 ⚛1. दीर्घ संधि – [ सूत्र – अक: सवर्णे दीर्घ: ] – जब प्रथम शब्द के अंत में हृस्व या दीर्घ स्वर तथा द्वितीय शब्द के प्रारम्भ में हृस्व या दीर्घ स्वर हो तथा दोनों में स्वर समान हो तो दोनों के स्थान पर दीर्घ स्वर हो जाता है |इसे दीर्घ संधि कहते है |

 इसको इस रूप में भी समझ सकते है कि यदि प्रथम शब्द के अंत में अ,इ,उ,ऋ हृस्व अथवा दीर्घ तथा द्वितीय शब्द के प्रारम्भ में उसी वर्ण का हृस्व अथवा दीर्घ स्वर हो तो दोनों के स्थान पर दीर्घ आ, ई, ऊ, ॠ हो जाता है |

 

 उदाहरण – पुस्तक +आलय = पुस्तकालय ( अ+आ=आ )

 इसकों इस प्रकार समझ सकते है –

 

 अ , आ + अ , आ = आ

 इ , ई + इ , ई = ई

 उ , ऊ + उ , ऊ = ऊ

 ऋ , ॠ + ऋ , ॠ = ॠ

 

 दीर्घ संधि के उदाहरण –

 

 संधि विच्छेद         संधि

 राम +अवतार = रामावतार

 सत्य + अर्थी = सत्यार्थी

 सूर्य +अस्त = सूर्यास्त

 देह + अन्त = देहान्त

 कल्प + अन्त = कल्पान्त

 उत्तम+ अंग = उत्तमांग

 दैत्य +अरि = दैत्यारि

 शरण +अर्थी = शरणार्थी

 राम + अयण = रामायण

 पुष्प + अवली = पुष्पावली

 धन + अर्थी = धनार्थी

 चरण +अमृत = चरणामृत

 स्वर्ण + अवसर = स्वर्णावसर

 शब्द + अर्थ = शब्दार्थ

 अद्य + अवधि = अद्यावधि

 धर्म+ अर्थी = धरमार्थी

 महा + आलय = महालय

 हिम + आलय = हिमालय

 देव + आलय = देवालय

 भोजन + आलय = भोजनालय

 परम + आत्मा = परमात्मा

 परम + आवश्यक = परमावश्यक

 रत्न + आकर = रत्नाकर

 कुश + आसन = कुशासन

 धर्म + आत्मा = धर्मात्मा

 राम + आधार = रामाधार

 नित्य+ आनंद = नित्यानंद

 महा ‌+ आत्मा = महात्मा

 परम + आनंद = परमानंद

 कमल + आसन = कमलासन

 आज्ञा + अनुपालन = आज्ञानुपालन

 राम + आश्रय = रामाश्रय

 वार्ता + आलाप = वार्तालाप

 शिक्षा +अर्थी = शिक्षार्थी

 परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी

 शिव + आलय = शिवालय

 अभि + इष्ट = अभीष्ट

 गिरि + ईश = गिरीश

 कवि + इंद्र = कवींद्र

 रवि + इंद्र = रवींद्र

 नदी + ईश = नदीश

 रजनी + ईश = रजनीश

 मही + ईश = महीश

 परि + ईक्षा = परीक्षा

 वारि + ईश = वारीश

 लक्ष्मी + इच्छा = लक्ष्मीच्छा

 अधि + ईश्वर = अधीश्वर

 भारती + ईश्वर = भारतीश्वर

 मुनि + ईश्वर = मुनीश्वर

 पृथ्वी + ईश = पृथ्वीश

 जानकी + ईश = जानकीश

 प्रति + इति = प्रतीति

 देवी + इच्छा = देवीच्छा

 महती + इच्छा = महतीच्छा

 सू + उक्ति = सूक्ति

 भानु + उदय = भानूदय

 मंजु + ऊषा = मंजूषा

 लघु + ऊर्मि = लघूर्मि

 स्वयंभू + उदय = स्वयंभूदय

 कटु + उक्ति = कटूक्ति

 भू + ऊष्मा = भूष्मा

 लघु + ऊक्ति = लघूक्ति

 वधू + उल्लास = वधूल्लास

 भू + उत्तम = भूत्तम

 भू + उपरि = भूपरि

 मातृ + ऋणम = मातृणम

 मातृ + तृण = मातृण

 पितृ + ऋण = पितृण

 होतृ + ऋकार = होतृकार

 

 

 ⚛2. गुण संधि – [ सूत्र – आद्गुण: ] – यदि अ या आ के बाद हृस्व या दीर्घ इ या ई आवें तो दोनो के स्थान पर ‘ए’ हो जाता है | उ या ऊ आवे तो दोनों के स्थान पर ओ तथा ऋ या ॠ आवे तो दोनों के स्थान पर अर् और लृ आवे तो दोनो के स्थान पर अल् आदेश हो जाता है | इस नियम से बने संधि को गुण संधि कहते है |

 इसे इस प्रकार भी समझ सकते है-

 

 अ या आ + इ या ई = ए

 अ या आ + उ या ऊ = ओ

 अ या आ + ऋ या ॠ = अर्

 अ या आ + लृ      = अल्

 

 गुण संधि के उदाहरण –

 

 संधि विच्छेद     संधि

 सुर + इंद्र = सुरेंद्र

 उप + इंद्र = उपेंद्र

 नर + इंद्र = नरेंद्र

 प्र + इत = प्रेत

 महा + इंद्र = महेंद्र

 स्व +इच्छा = स्वेच्छा

 सुर + ईश = सुरेश

 रमा + ईश = रमेश

 महा + ईश्वर = महेश्वर

 दिन + ईश = दिनेश

 राका + ईश = राकेश

 महा + ईश = महेश

 खग + ईश = खगेश

 नर + ईश = नरेश

 सर्व + ईश्वर = सर्वेश्वर

 सूर्य + उदय = सूर्योदय

 चन्द्र + उदय = चंद्रोदय

 जल + ऊर्मि = जलोर्मि

 नर + उत्तम = नरोत्तम

 पर + उपकार = परोपकार

 महा + उपदेश = महोपदेश

 महा + ऊर्मि = महोर्मि

 गंगा+ ऊर्मि = गंगोर्मि

 महा + ऊर्जा = महोर्जा

 ब्रह्म+ ऋषि = ब्रह्मर्षि

 महा + ऋषि = महर्षि

 देव + ऋषि = देवर्षि

 राज + ऋषि = राजर्षि

 सप्त + ऋषि = सप्तर्षि

 महा + ऋण = महर्ण

 तव +लृकार = तवल्कार

 

 ⚛3. वृद्धि संधि – [ सूत्र – वृद्धिरेचि ] – यदि अ या आ के बाद ए या ऐ आवे तो दोनों के स्थान पर ‘ ऐ ‘ हो जाता है तथा अ या आ के बाद ओ या औ आवें तो दोनों के स्थान पर ‘ औ ‘ आदेश हो जाता है |इस नियम प्रक्रिया को वृद्धि संधि कहते है |

 इसे इस प्रकार समझाया जा सकता है –

 

 अ या आ + ए या ऐ = ऐ

 अ या आ + ओ या औ = औ

 

 वृद्धि संधि के उदाहरण –

 

 संधि विच्छेद      संधि

 

 अद्य + एव = अद्यैव

 देव +ऐश्वर्य = देवैश्वर्य

 मत + ऐक्य = मतैक्य

 नव + ऐश्वर्य = नवैश्वर्य

 कृष्ण + एकत्व = कृष्णैकत्व

 सदा + एव = सदैव

 न + एवम = नैवम

 सर्वदा +एव = सर्वदैव

 तथा + एव = तथैव

 महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य

 एकदा + एव = एकदैव

 वन + ओषधि = वनौषधि

 परम + ओज = परमौज

 उष्ण + ओदन = उष्णौदन

 महा + ओषधि = महौषधि

 परम + औदार्य = परमौदार्य

 महा + ओज = महौज

 

 

 ⚛4. यण संधि [ सूत्र- इको यणचि ] – यदि हृस्व या दीर्घ इ ,उ ,ऋ ,लृ के बाद कोई भी असमान स्वर आये तो उसके स्थान पर क्रमश: य् ,व् ,र ,ल् हो जाता है |

 इसे इस प्रकार समझा जा सकता है –

 

 इ या ई + कोई असमान स्वर = य्

 उ या ऊ + कोई असमान स्वर = व्

 

 

 संधि विच्छेद संधि

 

 यदि + अपि = यद्यपि

 अति + अल्प = अत्यल्प

 उपरि+ उक्त = उपर्युक्त

 प्रति + एक = प्रत्येक

 अति + उक्ति = अत्युक्ति

 अति + आनंद = अत्यानंद

 नि + ऊन = न्यून

 अधि + अयन = अध्ययन

 अति + उत्तम = अत्युत्तम

 रीति + अनुसार = रीत्यनुसार

 अति + उर्ध्व = अत्यूर्ध्व

 दधि + ओदन = दध्योदन

 अति + आवश्यक = अत्यावश्यक

 प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर

 अति + औचित्य = अत्यौचित्य

 अति + उक्ति = अत्युक्ति

 अति + योज = अत्योज

 नदी + आमुख = नद्यामुख

 नदी + उद्गम = नद्युद्गम

 सखी + एक्य = सख्यैक्य

 देवी +आलय = देव्यालय

 देवी+ उक्ति = देव्युक्ति

 देवी ‌+ आगमन = देव्यागमन

 सु + आगत = स्वागत

 सु + अल्प = स्वल्प

 मनु + अंतर = मन्वंतर

 मधु + आलय = मध्वालय

 अनु + आदेश = अन्वादेश

 अनु + ईक्षण = अन्वीक्षण

 वधू + आगमन = वध्वागमन

 वधू + ऐश्वर्य = वध्वैश्वर्य

 पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा

 मातृ + आज्ञा = मात्रज्ञा

 पितृ + इच्छा = पित्रिच्छा

 

 

 ⚛5. अयादि संधि –[ सूत्र – एचोsयवायाव: ] – यदि ए ,ऐ ,ओ, औ, के बाद कोई असमान स्वर आवे तो ए, ऐ, ओ, औ के स्थान पर क्रम से अय् ,आय् , अव् , आव् हो जाता है | जैसे – ने + अन = नयन

 इसको इस प्रकार समझा जा सकता है –

 

 ए + कोई असमान स्वर = अय्

 ऐ + कोई असमान स्वर =आय्

 ओ + कोई असमान स्वर = अव्

 औ + कोई असमान स्वर = आव्

 

 

 संधि विच्छेद संधि

 ने + अन = नयन

 चे + अन = चयन

 शे + अन = शयन

 गै + अक = गायक

 नै + अक = नायक

 गै + अन = गायन

 सै + अक = सायक

 भो + अन = भवन

 गो + ईश = गवीश

 रो + ईश = रवीश

 पो + इत्र = पवित्र

 गो + अन = गवन

 पौ + अक = पावक

 पौ + अन = पावन

 नौ + इक = नाविक

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