कामायनी पर विशेष : जयशंकर प्रसाद
प्रकाशन वर्ष - 1935
कुल सर्ग - 15
सर्ग का क्रम - चिंता आशा श्रद्धा काम वासना लज्जा कर्म ईर्ष्या इडा स्वप्न संघर्ष निर्वेद दर्शन रहस्य आनंद
अंगीरस - शांत (निर्वेद)
मुख्य पात्र - मनु, श्रद्धा, इडा कुमार
मुख्य छंद - ताटक
दर्शन - शैव
प्रतीक - मनु - मन, श्रद्धा - हृदय, इडा - बुद्धि,कुमार - मानव
सर्गों में विशेष छंद
आल्हा छंद - चिंता सर्ग आशा सर्ग स्वप्न सर्ग निर्वेद सर्ग
लावनी छंद - रहस्य सर्ग इडा सर्ग श्रद्धा सर्ग काम सर्ग लज्जा सर्ग
रोला छंद - संघर्ष सर्ग
सखी छंद - आनन्द सर्ग
रूपमाला छंद - वासना सर्ग
पुरस्कार - मंगलाप्रसाद पारितोषिक
विद्वानों की राय इस कृति पर
"वर्तमान हिंदी कविता में दुर्लभ कृति" - हजारी प्रसाद द्विवेदी
"विश्व साहित्य का आठवाँ काव्य " - श्याम नारायण
"आधुनिक हिंदी कविता का रामचरित मानस" - रामनाथ सुमन
"विराट सामंजस्य की सनातन गाथा" - विश्वम्भरनाथ मानव
"आर्ष ग्रन्थ" - डॉ. नागेन्द्र
"आधुनिक हिंदी काव्य का सर्वाधिक महत्वपूर्ण ग्रन्थ" - शुक्ल जी
"मधुरस से सिक्त महाकाव्य" - रामरतन भटनागर
"मानवता का रसात्मक इतिहास" - नन्द दुलारे वाजपेयी
"कामायनी समग्रता में समासोक्ति का विधान लक्षित करती है" - डा. नागेन्द्र
"इसकी अन्तेर्योजना त्रुटिपूर्ण और समन्वित प्रभाव की दृष्टि से दोषपूर्ण है" - शुक्ल जी
"छायावाद का उपनिषद" - शांतिप्रिय द्विवेदी
"फैंटेसी कृति" - मुक्तिबोध
"एक क्म्पोजीसन" - रामस्वरूप चतुर्वेदी
"यह अपने आप में चिति का विराट वपु मंगल है - डॉ. बच्चन सिंह
कामायनी पर लिखे गये ग्रन्थ
जयशंकर प्रसाद - नन्द दुलारे वाजपेयी
कामायनी एक पुनर्विचार - मुक्तिबोध
कामायनी का पुनर्मूल्यांकन - रामस्वरुप चतुर्वेदी
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