Monday, February 19, 2024

"बड़े घर की बेटी" 

 

               "बड़े घर की बेटी" 


 *कहानीकार का परिचय* 


मुशी प्रेमचन्द का स्थान हिन्दी कथा साहित्य में सबसे ऊँचा है। उनको तीन सौ से अधिक कहानियाँ हिन्दी साहित्य की अमर निधि है। ग्यारह उत्तम उपन्यास भी इनकी देन है। मुंशी प्रेमचन्द उपन्यास सम्राट कहलाते है। उनकी सबसे बडी विशेषता यह है कि जीवन के हर क्षेत्र का व्यक्ति उनके साहित्य में स्थान पा सका है। प्रेमचन्द यथार्थवादी थे साथ साथ आदर्शवादी भी। बड़े घर की बेटी प्रेमचन्द की प्रसिद्ध भावात्मक तथा मनोवैज्ञानिक कहानी है।


 *कथानक:* 


आनंदी ठाकुर बेनीमाधव सिंह के पहले बेटे श्रीकंठ की पत्नी थी। शहरी सभ्यता में पली हुई, पढी-लिखी लडकी थी। पर ससुराल में न कोई विलास सामग्री थी न टीमटाम। वह तो देहाती परिवार था। फिर भी आनंदी ने बहुत जल्दी ही अपने को वातावरण के अनुरूप बदल लिया। पति श्रीकंठ बगल के शहर में नौकरी करता था और केवल छुट्टी के दिनों में घर आया करता था। श्रीकंठ का छोटा भाई लाल बिहारी अनपढ था और गाँव में ही मौज मस्ती करता था। 


एक दिन दोपहर को वह दो चिडियाँ लेकर घर आया और आनंदी से पकाने को कहा। आनंदी ने खूब घी डालकर मांस बनाया। लाल बिहारी खाने बैठा तो दाल में घी नहीं था। पूछने पर आनंदी ने कहा कि सारा घी मांस में पड़ गया। इस बात को लेकर दोनों में कहासुनी हुई। गुस्से में आकर लाल बिहारी ने उसपर खडाऊँ दे मारी। आनंदी के रोकने के कारण सिर तो बच गया पर उंगली में चोट लगी। वह इतना अपमान और दर्द सह न सकी। उसने निश्चय कर लिया कि इस उद्दण्ड लडके को दंड देकर ही छोड़ेगी। 


शनिवार को जब श्रीकंठ घर आया तो लाल बिहारी ने आनंदी की शिकायत की और पिता बेनीमाधव ने भी उसका पक्ष लिया। जब आनंदी द्वारा श्रीकंठ को वास्तविक बात मालूम हुई तो वह तिलमिला उठा। जिस घर में अपनी पत्नी का अपमान और अनादर होता है उस घर में नहीं रहना चाहा। पिताजी के बहुत समझाने पर भी श्रीकंठ अपने इरादे में अटल रहा और लाल बिहारी का मुँह तक देखना नहीं चाहता था। 


लाल बिहारी को अपने बडे भाई का तिरस्कार बहुत बुरा लगा। उसे अपने किये का बड़ा दुख हुआ। उसने आनंदी से माफी मांगी और कहा कि बड़े भाई घर न छोड़ें और मैं खुद घर छोड़ चला जाऊँगा। आनंदी का कोमल हृदय पछताने लगा। लाल बिहारी के आंसुओं ने आनंदी के दिल को पिघला दिया। आनंदी खुद कमरे से बाहर आयी और लाल बिहारी का हाथ पकड़कर उसे रोक डाला। दोनों के पवित्र आंसुओं ने दिलों का सारा मैल धो डाला। दयावती आनंदी ने बिगडते परिवार को जुटा लिया। बेनी माधव पुलकित होकर बोल उठे "बड़े घर की बेटियाँ ऐसी ही होती हैं। बिगड़ता हुआ काम बना लेती हैं।"

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