Friday, January 10, 2020

चौथा अध्याय -- सर्वनाम

               चौथा अध्याय -1

                                     सर्वनाम
     एक ही संज्ञा को किसी वाक्य में बार-बार दोहराना भद्दा मालूम होता है; अत: उसे बार-बार न दोहरा कर उसके स्थान में दूसरे शब्दों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार संज्ञा के स्थान में उसके अर्थ को प्रकट करने के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है उन्हें सर्वनाम कहते हैं। मोहन ने कहा-अपनी पुस्तक लेकर मैं कल जाऊँगा।' इसमें अपनी' और 'मैं' शब्द क्रमशः 'मोहन को' और 'मोहन' की जगह प्रयुक्त हुए हैं, इसलिए सर्वनाम हैं। 



                             Watch video/सर्वनाम

यदि इन सर्वनामों का प्रयोग न होता तो इस वाक्य का यह रूप होता--'मोहन ने कहा-मोहन की पुस्तक लेकर मोहन कल जायेगा'। इसमें बार-बार मोहन की आवृत्ति होने के कारण यह बड़ा भद्दा मालूम होता है। इस पुनरुक्ति को दूर करने के लिए सर्वनाम का प्रयोग किया जाता है।

हिन्दी में प्रायः निम्नलिखित सर्वनाम शब्द प्रयुक्त होते हैं --
मैं, तू, वह, यह, आप, सो, जो, कोई, कुछ, कौन, क्या। इन सर्वनाम की प्रयोग के अनुसार पाँच श्रेणियों में विभक्त किया जाता है।

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                              एकवचन                       बहुवचन
1.पुरुषवाचक            मैं, तू, यह, वह,           हम, तुम, ये, वे, आप।
(Personal)             आप।

2. निश्चयवाचक           यह वह                    ये, वे।
(Demonstrative)

3. अनिश्चयवाचक         कोई, कुछ।             कोई, कुछ।
(Indefinite)

4. सम्बन्धवाचक          जो, सो।                 जो, सो।
(Relative)
5. प्रश्नवाचक               कौन, क्या              कौन, क्या।
(Interrogative)

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                                पुरुषवाचक सर्वनाम

वक्ता या लेखक बोलते या लिखते समय या तो अपने विषय में कुछ कहता  है या सुनने वाले और पढ़ने वाले के विषय में, अथवा अपने और सुनने वाले को छोड़कर अन्य किसी के विषय में। इन तीनों रूपों को व्याकरण में पुरुष कहते हैं। जो सर्वनाम बोलने वाले, सुनने वाले और जिसके विषय में कुछ कहा जाये उसका बोध कराते हैं उन्हें पुरुषवाचक सर्वनाम कहते हैं।

     बोलने वाला या लिखने वाला अपने लिए जिस सर्वनाम का प्रयोग करता है उसे उत्तमपुरुष (First Person) कहते हैं; जैसे-मैं (एकवचन); हम (बहुवचन)।
   
    सुनने वाले या पढ़ने वाले के लिए जिस सर्वनाम का प्रयोग होता है उसे मध्यम पुरुष (Second Person) कहते हैं, जैसे-तू (एकवचन), तुम, आप (बहुवचन)।
 
    जिसके विषय में कुछ कहा या लिखा जाये उसके लिए प्रयुक्त होने वाल सर्वनाम शब्द अन्य पुरुष (Third Person) कहलाते हैं, यह, वह (एकवचन), ये , वे, (बहुवचन)।


      मैं और हम
मैं उत्तम पुरुष के एकवचन में और 'हम' बहुवचन में प्रयुक्त होता है। इस बहुवचन का अर्थ संज्ञा के बहुवचन से भिन्न है। 'पुस्तकें ' शब्द एक से अधिक पुस्तकों का सूचक है, पर 'हम' शब्द एक से अधिक 'मैं' (बोलने वालों) का सूचक नहीं है। हम का अर्थ यही है कि बोलने वाला अपने साथियों की ओर से प्रतिनिधि होकर अपनी तथा अपने साथियों की बात कह रहा है। जैसे-'मैं सोया', 'हम सोये'। पर 'हम' निम्नलिखित स्थलों पर एकवचन के अर्थ में भी आता है --

(क) सम्पादक और ग्रन्थकार लोग अपने लिए बहुधा 'हम' का प्रयोग करते हैं।
जैसे-आगे हम सर्वनाम की व्याख्या करेंगे।

(ख) बड़े-बड़े अधिकारी तथा प्रतिष्ठित पुरुष विशेष कर जब वे किसी
अधिकार से बोलते हैं तो 'मैं' की जगह 'हम' का प्रयोग करते ।
जैसे-'हम हुक्म देते हैं'-उसे हाजिर करो।

(ग) किसी समुदाय की ओर से प्रतिनिधि होकर बात कही जाये तब भी कहने वाला अपने लिए हम का प्रयोग करता है।
जैसे-आप की बात हमें स्वीकार नहीं।

(घ) कभी-कभी अभिमान अथवा क्रोध में भी 'मैं' के स्थान पर 'हम' का प्रयोग होता है।
जैसे "विश्वामित्र-हम आधी दक्षिणा लेकर क्या करेंगे?"

(ङ) कहीं-कहीं साधारण बोलचाल में भी 'मैं' की जगह 'हम' का प्रयोग किया जाता है।
 जैसे-(एकवचन) हम अभी खाना नहीं खायेंगे।
        (बहुवचन) हम लोग आज काम पर नहीं जायेंगे।

(च) कभी-कभी एक ही वाक्य में 'मैं' और 'हम' एक ही पुरुष के लिए
क्रमश: व्यक्ति और प्रतिनिधि के रूप में आते हैं।
जैसे-मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि हमारी दुकान में दो भाव नहीं हैं।  भाइयों, क्या मैं आपकी ओर से अधिकारियों से कह दूँ कि जब तक हमारी मांगे पूरी न होगी हम काम पर न आयेंगे?

     तू और तुम
'तू' मध्यम पुरुष के एकवचन में और 'तुम' बहुवचन में आता है। जैसे सभी के समाज में एकवचन में भी 'तुम' का ही प्रयोग होता है। बहुत्व लिए 'हम' की तरह 'तुम' के साथ भी 'लोग' जोड़ दिया जाता। प्राय: निम्नलिखित स्थलों पर 'तू' का प्रयोग किया जाता है।
(क) भक्त की ओर से देवता के प्रति प्रार्थना में।
      जैसे-तू है प्रभू चाँद मैं हैं चकोरा।

(ख) घनिष्ठ मित्र, अपने से छोटे स्नेहपात्र या नौकर आदि के लिए।
       जैसे-'देवदत्त त चल मैं आता हूँ।
             'अरे बेटा! तू तो मरे पर भी सुन्दर लगता है।
             "क्यों रे हरिया, अभी तक तूने कमरा साफ नहीं किया?'

(ग) तिरस्कार और क्रोध में, जैसे-"अभी तैने (तूने) मुझे पहचाना कि
नहीं?" "तू है किस खेत की मूली?" यह, ये; वह, वे 'यह' और 'वह' अन्य पुरुष के एकवचन में तथा 'वे' और 'ये' बहुवचन में प्रयुक्त होते हैं। जैसे-वह खेल रहा है, वे खेल रहे हैं। आदर के लिए एकवचन में भी 'ये' और 'वे' का प्रयोग होता है। जैसे-प्रोफेसर साहब कल देहली जा रहे हैं, वे अपने साथ तुम्हारी सितार लेते जायेंगे। 'यह' तथा 'ये' प्रत्यक्ष का बोध कराते हैं और 'वह' तथा 'वे' परोक्ष का। जैसे-सबेरे उठते-उठते ही मोहन के घर गया था और वह वहाँ मिला नहीं। अरे, ये कब से यहाँ बैठे हैं, पहले इनके लिए कुछ खाने को तो लाओ।

आप का प्रयोग दो रूपों में होता-
        (1) पुरुषवाचक और (2) निजवाचक अर्थों में

(1) पुरुषवाचक अर्थ में

(क) पुरुषवाचक अर्थ में तू और तुम दोनों के स्थान में 'आदर' के लिए आप का प्रयोग होता है। जैसे 'तू चला जा' के स्थान में 'आप चले जाइये' और 'तुम अभी यहाँ बैठो' के स्थान में 'आप यहाँ बैठिये।

(ख) कभी-कभी अन्य पुरुष में 'यह' और 'वह' के स्थान में भी 'आप' का प्रयोग किया जाता है। जैसे-आप (ये) मेरे मित्र हैं। भारतेन्द हरिश्चन्द्र वर्तमान  हिन्दी गद्य के जन्मदाता कहे जाते हैं, आप (वे) काशी के रहने वाले थे। आदर के अर्थ में 'आप' बहुवचन में ही होगा बहुत्व को स्पष्ट प्रकट करने के लिए आप के साथ 'लोग' जोड़ दिया जाता है।
   जैसे-आप लोग शांत रहें, मैं उसे समझा-बुझा दूँगा। अधिक आदर जताने के लिए 'आप' के स्थान में श्रीमान्, श्रीमती, महाराज, देवीजी आदि का प्रयोग होता है। जैसे- श्रीमान् यहाँ कब पधारे? महाराज के दर्शनों की अभिलाषा यहाँ खींच लाई है।

(2) निजवाचक अर्थ में 

इस अर्थ में आप का प्रयोग पुरुषवाचक 'आप' से तीन बातों में भिन्न है।
(क) निजवाचक 'आप' समान रूप से दोनों वचनों के साथ आता है।
जैसे-मैं आप जाऊँगा, हम आप पढ़ेंगे। पुरुषवाचक रूप में वह केवल बहुवचन में आता है।

(ख) निजवाचक 'आप' तीनों पुरुषों से प्रयुक्त होता है; पुरुषवाचक आप केवल मध्यमपुरुष अन्यपुरुष में।

(ग) पुरुषवाचक 'आप' वाक्य में अकेला आता है, पर निजवाचक 'आप' प्राय: दूसरे सर्वनाम तथा संज्ञा के साथ आता है। जैसे-तू आप यह काम कर। तुम आप चले जावो, सुरेन्द्र आप आया,, वे आप यहाँ आये। कभी-कभी आप इस अर्थ में अकेला भी आ जाता है, जैसे-"आप भला तो जग भला" निश्चय जताने के लिए आप के पूर्व 'अपना' या बाद में 'ही' लगा देते हैं। वह अपने आप समझ गया, 'वे आप ही कहने लगे।

'आप' के अर्थ में 'स्वयं', 'स्वत:' 'खुद' आदि का भी प्रयोग होता है।
जैसे-'तुम स्वयं वहाँ जाओ।'

कोई-कोई निज अर्थ वाले 'आप' को 'निजवाचक सर्वनाम का एक स्वतंत्र भेद भी मानते हैं।

                         2. निश्चयवाचक सर्वनाम

निश्चयवाचक सर्वनाम वे हैं जो किसी वस्तु का निश्चय कराएँ। अन्य
पुरुषवाचक यह, वह, ये, वे निश्चयवाचक सर्वनाम हैं। निश्चयवाचक सर्वनाम को निर्देशवाचक या संकेतवाचक भी कहा जाता है। 'यह' और 'ये' पास वाली वस्तुओं के लिए तथा 'वह' और 'वे' दूर की वस्तुओं के लिए आते हैं।

जैसे-जितने फल रमेश लाया है उनमें केवल ये अच्छे निकले हैं। मालम होत है ये उसने आज खरीदे होंगे और वे उसके पास पहले के रखे होंगे। 'ये' शब्द से फलों के समीप होने का तथा 'वे' से दूर होने का निश्चय पाया जाता है।

में, हम, तू, तुम आप, यह, ये, वे इन पुरुषवाचक या निश्चयवाचक
सर्वनामों के साथ निश्चय की अधिकता प्रकट करने के लिए 'ही','ई' या 'ई' प्रत्यय जोड़ दिया जाता है। मैं-मैं ही, तू-तू ही, हम-हमीं, तुम-तुम्हीं,
आप-आप ही, वह-वही, यह-यही, ये-ये ही, वे-वे ही।
जैसे-हमीं चले जायँ, तुम्हीं को बुलाया है। ये ही बदले जायेंगे। हम भी वे ही पुस्तकें लेंगे, जो तुमने चुनी थीं।

                     3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम

जिस सर्वनाम से किसी विशेष वस्तु का बोध नहीं हो उसे अनिश्चयवाचक सर्वनाम कहते हैं । अनिश्चयवाचक सर्वनाम दो हैं-कोई और कुछ।  जैसे-क्या कोई मेरे लिए कुछ दे गया है? इस वाक्य में 'कोई' और 'कुछ' शब्दों से किसी वस्तु के विषय में कुछ निश्चय नहीं पाया जाता।

'कोई' का प्रयोग प्राय: नीचे लिखे अर्थों में होता है

(क) किसी अज्ञात व्यक्ति के लिये आता है, जैसे-देखना, कोई मेरे            पीछे यहाँ आ न जाये।

(ख) जब व्यक्तियों का पता तो हो पर यह मालूम न हो कि उनमें कौन
      उपस्थित है तो 'कोई' का प्रयोग होता है, जैसे-अरे! कोई यहाँ है?

(ग) कोई के पहले 'सब' लग जाये तो उसका अर्थ 'सब लोग' और            'हर' लग जाये तो उसका अर्थ 'प्रत्येक' हो जाता है। जैसे-सब            कोई यह बात कह रहे थे। हर काम हर कोई नहीं कर सकता।

(घ) किसी संख्यावाचक के पहले 'कोई' लग जाये तो उसका अर्थ 'लगभग" हो जाता है। जैसे- इस स्कूल में कोई तीन सौ लड़के होंगे।

(ड़)कोई जब दोहराया जाता है तो उसके अर्थ (महत्व) एक से अधिक होते हैं। जैसे-कोई-कोई (अनेक) द्रव्यवाचक संज्ञा को एक स्वतंत्र संज्ञा मानते हैं।

(च) 'कोई' के साथ 'एक' लग जाने से अधिक अनिश्चय प्रकट होता है। जैसे-तुममें से कोई एक आ जावे।

'कुछ' प्राय: विशेषण की तरह प्रयुक्त होता है, पर नीचे लिखे अर्थों में इसका सर्वनाम के रूप में प्रयोग होता है

(क) किसी अज्ञात पदार्थ या धर्म के लिए। जैसे-घी में कुछ है। उनके मन में कुछ है, यह देखते ही भाँप गया था।

(ख) छोटे जन्तु या पदार्थ के लिये, जैसे-पानी में कुछ है।
'कुछ' का प्रयोग क्रिया विशेषण के रूप में भी होता है। इसका वर्णन आगे क्रिया विशेषण के अध्याय में होगा।

'कोई' का प्रयोग प्राणियों के लिए होता है और 'कुछ' का निर्जीव पदार्थों के लिए या छोटे प्राणियों के लिए।

                 4. सम्बन्धवाचक सर्वनाम

सम्बन्धवाचक सर्वनाम वे हैं जो एक बात का दूसरी बात से सम्बन्ध प्रकट करते हैं, जैसे-जो, जो। 'सो' सदा 'जो' के साथ आता है। जैसे-जो कठिनाई थी सो दूर हो गई। आप जो न कहें सो थोड़ा है। 'सो' के स्थान पर 'वह' का भी प्रयोग होता है। जैसे-'जो हरिश्चन्द्र ने किया वह अब कोई भारतवासी न करेगा। 'कभी-कभी 'जो' या 'सो' में से एक लुप रहता है । जैसे- हुआ सो हो। जो आता है आपके गुण गाता है।

सम्बन्धवाचक सर्वनाम जब दोहराया जाता है तो 'प्रत्येकत्व' का अर्थ प्रकट करता है। जैसे-एक बार आ जाओ फिर जो कहोगे सो करेंगे।

5. प्रश्नवाचक सर्वनाम

जिस सर्वनाम से प्रश्न का बोध हो उसे प्रश्नवाचक सर्वनाम कहते हैं।
जैसे-क्या, कौन। 'कौन' और 'क्या' के प्रयोग में साधारणतया वही अन्तर है जो 'कोई' और 'कुछ' में 'कौन' प्राणियों के लिये विशेष कर मनुष्यों के लिये और 'क्या' क्षु्र प्राणी, पदार्थ या धर्म के लिये आता है। पर निर्धारण के अर्थ में कौन' प्राणी पदार्थ या धर्म तीनों के लिये आता है।

जैसे-इनमें कौन बोला? इन चित्रों में से तुम्हें कौन पसन्द है?
       इनमें पाप कौन है और पुण्य कौन।

   'कौन' तिरस्कार के लिये भी आता है,
   जैसे-तुम मझे रोकने वाले कान है

भिन्नता दिखाने के लिये कौन को दोहरा भी दिया जाता है, जैसे-कह
कौन-कौन नहीं आये।

कौन का प्रयोग विशेषण और क्रिया विशेषण के तौर पर भी होता
जैसे-इसने कौन अपराध किया है? यह काम कौन कठिन है।

जब 'क्या' का अर्थ 'कौन वस्तु' या 'कौन बात' हो तब वह सर्वनाम होता है। जैसे-क्या कहा। जीव क्या है और परमात्मा क्या?

बहुत्व अथवा आश्चर्य के अर्थ में 'क्या' को दोहरा देते हैं। जैसे-उसने
क्या-क्या कहा?

'क्या' का प्रयोग क्रिया विशेषण के रूप में भी होता है। जैसे-तुम मुझसे क्या लड़ोगे! 'क्या' का प्रयोग समुच्चयबोधक के रूप में भी होता है। -क्या वह और क्या तुम, दोनों का नाश कर सकता हूँ।

ऊपर लिखे सर्वनामों के अतिरिक्त एक, दो, और, अन्य, दोनों, सब, दूसरा, पहला, आदि और भी सर्वनाम कहे जाते हैं। जैसे-एक ही पर्याप्त होगा, दो की कोई आवश्यकता नहीं। दोनों ही बिना पूछे चलते बने, यहाँ एक भी नहीं रहा। पहले को अपने काम से फुरसत नहीं, दूसरा दिन-रात इधर-उधर घूमता रहा। सब यहीं आ रहे हैं। उनमें से चार पुस्तकें तो तुम ले ही गये थे और यहाँ रखी है। कई यह कह रहे थे।

कई बार कई सर्वनाम मिलकर सर्वनाम अथवा क्रिया-विशेषण के रूप में भी प्रयुक्त होते हैं। जैसे-जो कोई, कई एक, कोई कुछ तो कोई कुछ, एक दूसरा, कोई न कोई, सब कोई, एक आध, और का और, क्या से क्या, कौन कौन, क्या क्या, एक न एक, कुछ न कुछ आदि। जैसे-जो कोई गंगा पार जा सकेगा, उसी को यह मिलेगा। बताओ तो कौन कौन क्या क्या कह रहे थे! क्या बताऊँ कोई कुछ कहता था तो कोई कुछ, एक दूसरे की बात ही नहीं सुनते थे। सब कोई तो यहाँ आने से रहे पर कोई न कोई (एक न एक) आजकल में यहाँ अवश्य आयेगा और कुछ न कुछ जरूर होगा। हम क्या से क्या सोच रहे थे और यह और का और ही हो गया।

धन्यवाद  !




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