Thursday, April 30, 2020

सातवाँ अध्याय / भाग-1/क्रियाओं का रूपान्तर/praveshika/visharadh poorvardh


                                                             सातवाँ अध्याय
                                                          क्रियाओं का रूपान्तर

जिस तरह संज्ञा में लिंग वचन और कारकों के कारण विकार (रूपान्तर) होता है उसी तरह क्रिया में भी काल, प्रकार, वाच्य, लिग, वचन तथा पुरुष के कारण विकार होता है। कालकृत विकास-मैं खाया हूँ, मैं खाऊँगा। प्रकारकृत विकार-मोहन ध्यान लगाकर पढ़ता है। मोहन, तुम्हें ध्यान लगाकर पढ़ना चाहिए। मोहन तू ध्यान लगाकर पढ़। वाच्य कृत विकार-मोहन पुस्तक पढ़ता है, मोहन से पुस्तक पढ़ी जाती है।

लिगकृत विकार-शेर चलता है, शेरनी चलती है। वचनकृत विकार-वह देखता है, वे देखते हैं। पुरुषकृत विकार-मैं जाता हूँ, तुम जाते हो; वे जाते हैं।




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                    काल (Tense) 

क्रिया के जिस रूप से उसके होने या करने का समय पाया जाता है उसे काल कहते हैं। काल के तीन भेद होते हैं-भूत, वर्तमान और भविष्यत्। जिन क्रियाओं का व्यापार अब से पहले समाप्त हो चुका है वे भूतकाल की क्रिया कहलाती काल की क्रिया हैं, जिन क्रियाओं का व्यापार अब भी चल रहा है वे वर्तमान कहलाती है और जिन क्रियाओं का व्यापार अभी शुरू होना है वे भविष्यत् काल की क्रिया कहलाती हैं।
            भूतकाल (Past Tense) 

भूतकाल के छह भेद हैं-
(1) सामान्य, (2) आसन्नभूत, (3) पूर्णभूत,
(4) अपूर्ण भूत, (5) संदिग्धभूत, (6) हेतुहेतुमद्भूत।

(1) सामान्य भूत-क्रिया के जिस रूप से भूतकाल के किसी विशेष समय का निश्चय नहीं होता उसे सामान्य कहते हैं। जैसे-मोहन ने मेला देखा, मैंने भोजन खाया। इन वाक्यों की क्रियाओं (देखा, खाया) से सामान्यभूत का ज्ञान होता है-अर्थात् यह ज्ञान नहीं होता कि देखने या खाने का व्यापार अभी-अभी समाप्त हुआ है या काफी देर पहले समाप्त हो चुका था।

सामान्य भूत काल क्रिया बनाने की रीति

 (क) अकारान्त धातुओं के अन्तिम 'अ' के स्थान में पुल्लिग के एकवचन में 'आ' और बहुवचन में 'ए' तथा स्त्रीलिंग के एकवचन में 'ई' और बहुवचन में 'ई' लगाते हैं जैसे -

                         एकवचन         बहुवचन
हंस  {  पुल्लिंग         हँसा            हँसे
          स्त्रीलिंग         हँसी           हँसीं


 (ख) आकारान्त और आकारांत धातुओं के आगे पल्लिंग के एकवचन में 'या'  और बहुवचन में 'ये' तथा स्त्रीलिंग के एकवचन में 'ई' और बहुवचन में ई' जोड़े जाते हैं।

 खा   {  (पु०)   खाया     खाये
            (स्त्री०) खाई      खाईं

 रो    {  रोया, रोये
           रोई,   रोईं

(ग) ईकारान्त और एकारान्त धातुओं के पुल्लिग में इकारान्त करके उनके आगे एकवचन में 'या' और बहुवचन में 'ये' जोड़ देते हैं। ईकारान्त धातुओं के स्त्रीलिंग के एकवचन में कोई परिवर्तन नहीं होता। बहुवचन में केवल अनुस्वार लग जाता है। एकारान्त धातुओं के रूप स्त्रीलिंग में ईकारान्त धातुओं की तरह होते हैं-अर्थात् उनके एकवचन में 'ई' और बहुवचन में 'ई' ही जाता है।

 पी  {   (पु०)   पिया     पिये
          (स्त्री०)  पी       पीं

  दी   {   (पु०) दिया     दिये
             (स्त्री०) दी      दीं

 एकारान्त धातुओं में 'से' और 'खे' धातु अपवाद हैं। इनके रूप क्रमश:

'सेया', 'सेई' और 'खेई' बनते हैं।

 (घ) ऊकारान्त धातुओं का उकारान्त बनाकर पुल्लिग में आ' और 'ए' तथा स्त्रीलिंग में 'ई' और जोड़ देते हैं।

  छू    { (पु०)    छुआ   छुए
           (स्त्री०)  छुई     छुईं

 (ङ) 'जा', 'कर' और 'हो' धातुओं के रूप इस प्रकार होते हैं ।

 जा  (पु०)   गया   गये या गए { (पु०) किया, किये
       (स्त्री०) गई    गईं               (स्त्री०) की, कीं


हो   (पु०)   हुआ हुए
      (स्त्री०) हुई हुई

 (2) आसन्नभूत-क्रिया के जिस रूप से क्रिया के व्यापार का समय आसन्न (निकट) में ही समाप्त हुआ समझा जाये उसे आसन्न कहते हैं। जैसे-वह गया है, वह सोया है।

 ऐतिहासिक घटना के कहने में बहुत बार पूर्ण भूत के बदले आसन्नभूत का प्रयोग होता है-
अमरीका कोलंबस ने खोजा है;
ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया है।
 कई वैयाकरण इसे 'पूर्ण वर्तमान के नाम से वर्तमान काल का भेद मानते हैं।

आसन्न भूत-काल क्रिया बनाने की रीति- 

सामान्य भूत की क्रियाओं के आगे क्रम से नीचे चिह्न लगाने से आसन्न-भूत कालिक क्रिया के रूप बनते हैं। स्त्रीलिंग में सामान्य भूत-कालिक क्रिया के एक वचन के रूप के आगे ये चिह्न लगाये जायेंगे।

                   पुल्लिग में स्त्रीलिंग (दोनों में) 
                       एकवचन       बहुवचन 
 उत्तम पुरुष            हूँ                  हैं
 मध्यम पुरुष           है                  हों
 अन्य पुरुष             है                  हैं

                     पुल्लिंग                   स्त्रीलिंग
              एकवचन  बहुवचन     एकवचन  बहुवचन
उत्तम पुरुष   बैठा हूँ   बैठा है।      बैठी हूँ    बैठी हैं।

मध्यम पुरुष  बैठा है  बैठे हो।      बैठी है   बैठी हैं।

अन्य पुरुष   बैठा है   बैठे हैं।       बैठी है   बैठी हैं।


(3) पूर्णभूत-क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि उसके व्यापार को समाप्त हुए बहुत समय गुजर चुका है वह पूर्णभूत कहलाता है, जैसे-पिया था। था।

पूर्ण भूत-काल क्रिया बनाने की रीति- 
सामान्य (स्त्रीलिंग में एकवचन रूप) के आगे नीचे लिखे चिह्न लगाने से पूर्णभूत के रूप बनते हैं।

                 पुल्लिंग                 स्त्रीलिंग
तीनों          था,  थे                   थी, थीं
पुरुषों में  { जागा था, जागे थे।   जागी थी, जागी थीं।

 (4) अपूर्णभूत-क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि क्रिया भूतकाल में हो रही थी पर उसकी समाप्ति का पता न लगे वह अपूर्णभूत कहलाता है।जैैसे--

वह पढ़ रहा था। तू सो रहा था।
वह पढ़ता था। तू सोता था।

अपूर्णभूत-कालिक क्रिया बनाने की रीति-

धातु के आगे नीचे लिखे चिह्न लगाने से अपूर्णभूत के रूप बन जाते हैं।

तीनों पुरुषों में
एकवचन     बहुवचन          एकवचन     बहुवचन
ता था          ते थे                ती थी        ती थीं
रहा था         रहे थे              रही थी       रही थीं
देखता था     देखते थे       देखती थी    देखती थीं देख रहा था  देख रहे थे    देख रही थी   देख रही थीं

 (6) संदिग्धभूत-क्रिया के जिस रूप से भूतकाल तो पाया जाये किन्तु उसके होने में कुछ सन्देह हो उस सन्दिग्धभूत कहते हैं। जैसे-खाया होगा। पिया होगा।

सन्दिग्धभूत-कालिक-क्रिया बनाने की रीति 
सामान्यभूत के रूपों (स्त्रीलिंग में एकवचन रूप) के आगे क्रमश: नीचे लिखे चिह लगाने से सन्दिग्धभूत के रूप बन जाते हैं।

                          पुल्लिंग    स्त्रीलिंग

        एकवचन   बहुवचन      एकवचन    बहुवचन
उ० पु०  हूँगा       होंगे             हूँगी        होंगी
म० पु०  होगा      होंगे             होगी       होंगी
अ० पु० होगा      होंगे             होगी       होंगी

उ० पु० उठा हूँगा  उठे होंगे     उठी  हूँगी   उठी होंगी
म० पु० उठा होगा उठे होंगे     उठी  हूँगी   उठी होंगी
अ० पु० उठा होगा उठे होंगे    उठी  हूँगी   उठी होंगी

मध्यम पुरुष में तुम के साथ होगे' और 'होगी' लगेगा, पर आप के साथ 'होंगे' और 'होंगी'। 'हूँगी' की जगह प्राय: 'होऊँगी' भी बोला जाता है।

(6) हेतुहेतुमदभूत-क्रिया के जिस रूप से यह पाया जाये कि,कार्य  भूतकाल में होना संभव था किन्तु किसी कारण से न हो सका उसे हेतुहुतमत कहते हैं। जैसे-यदि आप आ जाते तो काम अवश्य हो जाता-अर्थात् आपके न आने के कारण काम नहीं हुआ।

हेतुहेतुमद्भूत-कालिक क्रिया बनने की रीति- 

धातु के आगे नीचे लिखे चिह्न लगाने से हेतुहेतुमद्भूत कालिक क्रिया विनती है।
                           पुल्लिंग         स्त्रीलिंग

तीनों पुरुषों में-    ता   ते             ती       तीं

                     खाता    खाते    खाती    खातीं

        वर्तमान काल (Present tense) 

वर्तमान काल के तीन भेद हैं-
1. सामान्य वर्तमान,
2. संदिग्ध वर्तमान,
3.अपूर्ण वर्तमान।

1) सामान्य वर्तमान-क्रिया का वह रूप, जिससे सामान्य रूप से क्रिया का वर्तमान काल में होना पाया जाए, सामान्य वर्तमान कहता है। जैसे-वह आता है, वह देखता है।

सामान्य वर्तमान का प्रयोग स्वभाव प्रकट करने और ऐतिहासिक घटना क साधारण रूप से वर्णन करने में भी होता है। पहले प्रकार के वर्तमान को 'स्वभावबोधक वर्तमान' कहते हैं, और दूसरे प्रकार के वर्तमान को 'ऐतिहासिक वर्तमान' (स्वभावबोधक वर्तमान) जैसे-पृथ्वी घूमती है, पानी नीचे की ओर बहता है। (ऐतिहासिक वर्तमान) जैसे-राजा जनक को निराश देख रामचन्द्र जी उठते हैं, धीरे-धीरे धनुष के पास जाते हैं और उसे उठाकर बिना किसी कष्ट के उस पर चाप चढ़ा देते हैं।

सामान्य-वर्तमान कालिक क्रिया बनाने की रीति- 

हेतुहेतुमद्भूत के रूपों के आगे क्रम से नीचे लिखे चिह्न लगाने में सामान्य वर्तमान के रूप बन जाते हैं--

                   एकवचन      बहुवचन

 उ० पु०             हूँ                 हैं

 म० पु०             है                हो

 अ० पु०            है                 हैं



                    पुल्लिंग                  स्त्रीलिंग
         एकवचन     बहुवचन   एकवचन    बहुवचन
उ० पु०  हँसता हूँ    हँसते हैं    हँसती हूँ     हँसती हैं।

म० पु० हँसता है   हँसते हो     हँसती है    हँसती हो।
अ० पु० हँसता है   हंसते हैं।    हँसती हैं     हँसती है।


(2) संदिग्ध वर्तमान-
क्रिया का रूप, जिससे वर्तमान काल की क्रिया के होने में सन्देह पाया जाये, सन्दिग्ध वर्तमान कहलाता है।
जैसे-वह खाता होगा, जाता होगा।

सन्दिग्ध-वर्तमान-कालिक क्रिया बनाने की रीति- हेतुहेतुमद्भूत के रूपों के आगे सन्दिग्ध भूत के चिह्न लगाने से सन्दिग्ध वर्तमान के रूप बन जाते हैं।
           
                   पुल्लिंग           स्त्रीलिंग

         एकवचन  बहुवचन     एकवचन   बहुवचन
उ० पु० खाता हूँगा खाते होंगे खाती होगीखाती होंगी
म० पु० खाता होगाखाते होंगे खाती होगीखाती होंगी
अ०पु० खाता होगाखाते होंगे खाती होगीखाती होंगी

 (3) अपूर्ण क्रिया-वर्तमान क्रिया का वह रूप जिससे यह मालूम हो कि क्रिया का व्यापार अभी जारी है, अपूर्ण वर्तमान कहलाता है। जैसे-वह जा रहा है, मैं खा रहा हूँ।

अपूर्ण-वर्तमान कालिक क्रिया बनाने की रीति- 
धातु के आगे के नीचे लिखे प्रत्यय जोड़ने से अपूर्ण वर्तमान के रूप बन जाते हैं।

              पुल्लिंग स्त्रीलिंग
          एकवचन  बहुवचन    एकवचन  बहुवचन 
उ० पु०  रहा हूँ        रहे हैं            रही हूँ    रही हैं

म० पु० रहा है        रहे हो            रही है   रही हो

अ० पु०  रहा है  रहे हैं                रही है   । रही हैं।


भविष्यत् काल (Future tense) 

भविष्यत् काल के दो भेद हैं-
1. सामान्य भविष्यत्, 2. संभाव्य भविष्यत।

(1) सामान्य भविष्यत-क्रिया का वह रूप, जिससे सामान्य रीति से क्रिया के आगे होने की सूचना मिले, सामान्य भविष्यत् कहलाता है। जैसे-वह पढ़ेगा। वह खेलेगा।

सामान्य-भविष्यत्-कालिक-क्रिया बनाने की रीति-धातु के नीचे लिखे प्रत्यय लगाने से सामान्य भविष्यत् काल के रूप बनते हैं --

                     पुल्लिंग             स्त्रीलिंग 
         एकवचन बहुवचन       एकवचन बहुवचन 
उ० पु०  ऊँगा       एँगे                  ऊँगी      एँगी   
म० पु०  एगा       ओगे                एगी      ओगी

अ० पु०  एगा    एँगे                    एगी       एँगी

यदि धातु आकारान्त हो तो प्रत्यय अंतिम 'अ' के स्थान पर लगाये जाते हैं; जैसे-'देखा' से 'देखूगा', 'पढ़' से 'पदूंगा', 'लिख' से 'लिखूगा'।

 आ' ई' "ऊ' या ओ' जिस धातुओं के अंत में हो उनके आगे 'ए' और 'ऐ' के बदले विकल्प से 'वे' या 'ये' और 'वें' या 'यें भी लगाये जाते हैं।
जैसे-खाएगा, खावेगा, खोयेगा, खोवेगा।

आकारान्त धातुओं के आगे 'ए' और 'ए के बदले 'य' और 'ये' तथा ईकारान्त धातुओं में 'ये' और 'ये' भी लगाये जाते हैं।
जैसे-खायगा, खाएगा, खायेगा, खावेगा, जायेंगे, जायेंगे, जायेंगे, जावेंगे।

ईकारान्त तथा ऊकारान्त धातुओं के बाद वे"वें' से भिन्न भविष्यत काल वाले कोई प्रत्यय हों तो उनका अन्त्य स्वर हस्व हो जाता है।
 जैसे-पिऊँगा, पिएँगे, छुयेंगा, छुऊँगा, छूवेगा।

एकारान्त धातुओं के आगे 'ए''ऐ.' के स्थान में 'ये'' हो जाते हैं। जैसे-खेएंगी, खेवेंगे परन्तु 'दे' और 'धातु' के अन्तिम एकार का लोप हो जाता है, इसलिए उनके रूप होते हैं-दूँ, लगा, दोगे, लोगे।

 (2) संभाव्य भविष्यत् क्रिया के जिस रूप से भविष्यत् की संभावना पाई जाये वह संभाव्य भविष्यत् कहलाता है-जैसे शायद वह आज दिल्ली जावे।

 संभाव्य-भविष्य काल की क्रिया बनाने की रीति-सामान्य भविष्यत् के रूप से 'गा', 'गे''गी' आदि पृथक्क र देने से संभाव्य भविष्यत् के रूप बन जाते

वर्तमान और भविष्यत् कालों में भी हेतुहेतुमद्भूत की भांति कार्य-कारण भाव होता है। जैसे सोता है सो खोता है (वर्तमान); जागेगा सो पायेगा| (भविष्यत्) । इन्हें हेतुहेतुमद् वर्तमान और हेतुहेतुमद् भविष्यत् कह सकते हैं।

                                            2. प्रकार (Mood)

               क्रिया के कई एक रूपों से केवल काल का ही नहीं अपितु उसके विधान की रीति का भी ज्ञान होता है। कोई कार्य निश्चित तौर से हो रहा (राम पढ़ रहा है), किसी को करने की आज्ञा दी जाती है (राम, जा तू पढ़)-इन सब अर्थों को प्रकट करने के लिए कई रीतियों से क्रिया का विधान किया जाता है। इन्हीं विधान की रोतियों को जनाने वाले क्रिया के रूप ' अर्थ" के प्रकार कहलाते हैं।

               हिन्दी में क्रियाओं के मुख्य तीन ' अर्थ' या 'प्रकार' होते हैं। 1. निश्चयार्थ, 2. संभावनार्थ, 3. प्रवर्तनार्थ का विध्यर्थ । 

(1) निश्चयार्थ-क्रिया के जिस रूप में किसी विधान  का निश्चय सूचित होता है उसे निश्चयार्थ कहते हैं। इसे साधारण प्रकार भी कहा जाता है।

             सामान्य वर्तमान, अपूर्ण वर्तमान, सामान्य भूत, आसन्न भूत, पूर्ण भूत, अपूर्ण भूत तथा सामान्य भविष्यत् की क्रियाएँ इसी प्रकार की होती हैं। जैसे-राम पढ़ता हैं, राम पढ़ रहा है, राम पढ़ रहा था, राम पढ़ेगा।

(2) सम्भावनार्थ- वह रूप जिससे सम्भावना (अर्थात् अनुमान, इच्छा, कर्तव्य या सन्देह) पाई जाये सम्भावनार्थ कहलाता है। सन्दिग्ध भूत, सन्दिग्ध वर्तमान तथा सम्भाव्य भविष्यत् के रूप इसी प्रकार के होते हैं। हेतुहेतुमद्भूत की क्रियाएँ भी इसी रूप के अन्तर्गत हैं। जैसे-( अनुमान) राम अभी तक यहाँ नहीं पहुँचा, 
          कदाचित् वह रास्ते में ही बात करने लगा हो। (इच्छा) राम, तुम अपनी श्रेणी में प्रथम रहो। (कर्तव्य) मोहन, तुम्हें अपने माता-पिता की सेवा करनी चाहिए। ( सन्देह) न जाने, वह अपने घर होगा या नहीं? (हेतुहेतुमद्भूत) यदि वे स्वयं एक बार आ गये होते तो फैसला हो जाता।

(3) प्रवर्तनार्थ या विध्यर्थ- क्रिया के जिस रूप से प्रवर्तता (किसी काम में प्रवृत्त करना या लगाना) पाई जाये उसे प्रवर्तंनार्थ या विध्यर्थ कहते हैं। आजा, प्रार्थना, अनुमति, प्रश्न, उपदेश आदि को प्रकट करने वाले क्रिया के सब रूप इसके अन्तर्गत हैं। (प्रार्थना) परमात्मन्! दुष्कर्मों से बचाइए। (प्रश्न) मैं दिल्ली चला जाऊँ? (अनुमति) हाँ जाओ। (उपदेश) माता-पिता का कहना मानो।

       विधिनिया के भेद हैं-सामान्यविधि और परोक्षविधि ।

        जिस क्रिया से आज्ञा प्रार्थना आदि का सामान्य रूप से बोध होता हो उसे सामान्यविधि क्रिया कहते हैं-घर जाओ। महात्मन्। विराजिए।

         जिस क्रिया से आज्ञा आदि का पालन आगे को (परोक्ष में) हो उसे परोक्ष विधि क्रिया कहते हैं। जैसे-बड़े आनन्द से रहना, अपने कुशल का समाचार भेजते रहिएगा। परोक्षविधि भविष्यत् काल की होती है। 

               विधिक्रिया बनाने के नियम

(क) सामान्य विधि क्रिया मध्यम पुरुष एकवचन 'तू' के आगे धातु जोड़ने से बनती हैं। जैसे-तू चल, तू खा।

(ख) 'तुम' मध्यम पुरुष बहुवचन के आगे धातु के अन्त में 'ओ' जोडा जाता है। जैसे-तुम चलो। तुम मत डरो।

(ग) मध्यम पुरुष ' आप' के साथ धातु के आगे 'ए' या 'इये' प्रत्यय लगाया जाता है-आप सुनिए। आप ठहरिये।

(घ) प्रथम पुरुष और उत्तम पुरुष विधि के वे ही रूप होते हैं जो संभाव्य भविष्यत् के अर्थात् सामान्य भविष्यत् के रूपों के आगे से 'ग', 'गे', 'गी' हटा देने पर विधि के रूप बन जाते हैं। 
      जैसे-वह करे, वह जावे. मैं आऊँ।

परोक्षविधि में धातु के आगे-इयो, ते रहियो, ते रहना, अथवा ते रहिएगा लगता है। जैसे-सेवा करियो। सेवा करते रहियो, छुट्टियों में स्कूल का काम करते रहना। आप जरा मेरे पीछे घर की देख-भाल करते रहिएगा। 

                                क्रियाओं के कुछ फुटकर रूप

काल-तथा प्रकार कृत उपरिलिखित रूपों के अतिरिक्त क्रिया के कुछ और फुटकर रूप होते हैं जैसे

(1) पूर्वकालिक- जब कुत्ता एक क्रिया समाप्त कर तत्क्षण ही दूसरी क्रिया में प्रवृत्त होता है और पहली क्रिया पर वाक्य समाप्त नहीं होता तो उसे पूर्व कालिक क्रिया कहते हैं। यह धातु के अन्त में 'कर' अथवा 'करके ' लगाने से बनती है। वह अविकारी क्रिया है। हाथ में पुस्तक लेकर यहाँ आओ। हाथ मुँह घो कर खाना खा लो। स्नान करके तुम्हारे साथ चलूंगा।

(2) तात्कालिक क्रिया-यह क्रिया भी मुख्य क्रिया के अधीन होती है। इससे मुख्य क्रिया के साथ होने वाले व्यापार की समाप्ति का बोध होता है। धातु के साथ 'ते' प्रत्यय मिलाकर उसके आगे 'ही' जोड़ने से यह क्रिया बनती है।

यहाँ से जाते ही मैं उससे मिला। खाना खाते ही स्कूल को चल पड़ा।

 (3) अपूर्ण क्रियाद्योतक-इससे मुख्य क्रिया के साथ होने वाले व्यापार

की अपूर्णता सूचित होती है। इसका रूप भी तात्कालिक क्रिया के समान होता है पर साथ में 'ही नहीं जुड़ता। मैंने उसे यहाँ आते देखा था। तुम्हें झूठ बोलते शर्म नहीं आती।

(4) पूर्णक्रियाद्योतक-इससे मुख्य क्रिया के साथ होने वाले व्यापार की पूर्णता सूचित होती है। इसमें प्रायः धातु के सामान्य भूत के अन्तिम 'आ' या 'ई'

को 'ए' हो जाता है। भूख के मारे जान निकली जाती है। इस धार्मिक संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने की हम कमर कसे बैठे हैं।

                                                      3. वाच्य

वाच्य क्रिया के उस रूपान्तर को कहते हैं जिससे यह जाना जाये कि वाक्य में क्रिया द्वारा किये विधान (कहीं गई बात) का मुख्य विषय कर्ता है, कर्म है या केवल भाव (धातु का अर्थ) है।

वाच्य तीन हैं-
1. कर्तृवाच्य (Active Voice)
2. कर्म वाच्य (Passive Voice) 
3. भाव वाच्य (Impersonal Voice) |

      कर्तृवाच्य में क्रिया द्वारा किये गये विधान (कही गई बात) का मुख्य विषय का होता है, कर्म वाच्य में क्रिया के विधान का मुख्य उ्देश्य कर्म तथा भाववाच्य में धातु का अर्थ ही मुख्य होता है। जैसे-' राम चिट्टी लिखता है।" इस वाच्य से 'लिखता है क्रिया का उद्देश्य राम' (कत्ता ) है, राम, लिखता है यही मुख्य वाक्य है चिट्ठी' (कर्म) का वर्णन गौण है। 'राम से चिट्ठी लिखी जाती है। इससे 'लिखी जाती है। क्रिया के विधान का विषय 'चिट्ठी' (कर्म) है चिट्ठी' लिखी जाती है, यह मुख्य अंग है 'राम से' (कर्त्ता) गौण है। मुझसे सोया नहीं जाता इसमें केवल 'सोया नहीं जाता' मुख्य है । कर्म सो इसमें कोई है ही नहीं और कर्चा (मुझसे) गौण है। अत: पहले वाक्य में लिखता है, क्रिया कर्तृवाच्य, दूसरे में लिखी जाती है। क्रिया कर्म और तीसरे में सोया जाता' क्रिया भाववाच्य है।

        कर्तृवाच्य में कर्ता प्रधान होता है। क्रिया का सीधा सम्बन्ध कर्ता से होता अतएव क्रिया के लिंग और वचन मुख्यतया कर्त्ता के अनुसार होते हैं।

          कर्मवाच्य में सकर्मक और अकर्मक दोनों तरह की क्रियाओं का प्रयोग होता है, जैसे राम सोता है, गोविन्द दूध पीता है, लड़के हाको खेलते हैं, स्त्रियाँ पानी भरती हैं। अपूर्णभूत और हेतुहेतुमद्भुत को छोड़कर शेष भूतकाल की सकर्मक क्रियाओं में जहाँ कर्म बिना विभक्ति के आता है, क्रिया के लिग और वचन कर्म के अनुसार होते हैं और जहाँ कर्म विभक्ति- सहित होता है वहाँ क्रिया सदा एकवचन पुल्लिग और अन्य पुरुष में रहती है तथा कर्त्ता के साथ 'ने' विभक्ति लगती है, जैसे-मोहन ने आम तोड़े। मोहन ने नाशपातियाँ तोड़ीं। मोहन ने राम को हराया। कर्ता के साथ क्रिया के लिंग वचन आदि न मिलने पर भी यदि वाक्य में कर्ता की प्रधानता हो तो कर्तृवाच्य ही होगा।

      कर्मवाच्य में कर्म की प्रधानता होती है और क्रिया का सम्बन्ध कर्म से होता है। अतएव उसके लिंग और वचन कर्म के अनुसार होते हैं और कर्म निर्विभक्ति कर्ता कारक में आता है तथा 'कर्ता' करण कारक में रखा जाता है या कर्ता के साथ 'द्वारा' शब्द जोड़ दिया जाता है। जैसे-बच्चे से दूध पिया जाता है, स्त्रियों द्वारा कपड़े सिले जाते हैं। परन्तु जब कर्म के साथ 'को' विभक्ति हो तो क्रिया सदा पुल्लिंग एकवचन और अन्य पुरुष में रहती हैं। जैसे-हमको आजकल में बुलाया जायेगा। कर्मवाच्य केवल सकर्मक क्रियाओं में होता है अर्थात इसमें कर्म का होना आवश्यक है।

    जानना, भूलना, खोना आदि कुछ सकर्मक क्रियाएँ बहुधा कर्मवाच्य में नहीं आतीं।

       द्विकर्मक क्रियाओं के कर्मवाच्य में प्रधान कर्म ही विधान का मुख्य विषय बनता है, गौण कर्म ज्यों का त्यों रहता है। जैसे-'राम ने श्याम को कथा सुनाई का कर्मवाच्य होगा राम से श्याम को कथा सुनाई गई'।

       भाववाच्य में भाव (धातु के अर्थ) की प्रधानता होती है; कर्तां या कर्म की नहीं। यह अकर्मक क्रियाओं से हो बनता है और इसमें क्रिया सदा पुल्लिंग एकवचन और अन्य पुरुष में रहती है। इसका प्रयोग अधिकतर निषेधार्थक वाक्यों में होता है। जैसे-सोया नहीं जाता; बैठा नहीं जाता।

          कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य या भाववाच्य बनाने की रीति

            कर्तृवाच्य की क्रिया को सामान्य भूत के रूप में लाकर उसके साथ 'काल' पुरुष वचन' और 'लिंग' के अनुसार 'जाना' क्रिया के रूप जोड़ने से सकर्मक कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य और अकर्मक कर्तृवाच्य से भाववाच्य क्रिया बन जाती है।

             सकर्मक कर्तृवाच्य                                                 कर्मवाच्य

      चौकीदार ने चोर पकड़ा है।                               चौकीदार से चोर पकड़ा गया है।

      हरि ग्रंथ पढ़ेगा                                               हरि से ग्रंथ पढ़ा जायेगा


             अकर्मक कर्तृवाच्य                                                  भाववाच्य

        मैं नहीं उठता                                                   मुझसे उठा नहीं जाता।
       
        गाय नहीं चलती                                                गाय से चला नहीं जाता।

           हिन्दी में कर्मवाच्य क्रिया का प्रयोग सर्वत्र नहीं होता: उसका प्रयोग बहुधा नीचे लिखे स्थानों में ही होता है

           (1) जब क्रिया का कर्ता अज्ञात हो अथवा उसके व्यक्त करने की आवश्यकता न हो; जैसे-चोर पकड़ा गया है, आज हुक्म सुनाया जायेगा।
            (2) कानूनी भाषा और सरकारी कागज पत्रों से प्रभुता जताने के लिए जैसे-आम जनता को सूचित किया जाता है कि नियम भंग करने वालों को कड़ा दंड दिया जायेगा।
             (3) असमर्थता के अर्थ में, जैसे-रोगी से अन्न नहीं खाया जाता। हमसे तुम्हारी दुर्दशा न देखी जायेगी।

कर्मवाच्य के बदले में बहुधा नीचे लिखी रचनाएँ आती हैं

            (1) कभी-कभी सामान्य वर्तमान काल की अन्य पुरुष बहुवचन क्रिया का प्रयोग कर कर्ता का अध्याहार करते हैं; जैसे-ऐसा कहते हैं (ऐसा कहा जाता है) ऐसा सुनते हैं (ऐसा सुना जाता है)।

             (2) कभी-कभी वाच्य की समानार्थिनी अकर्मक क्रिया का प्रयोग होता है, जैसे घर बनता है (बनाया जाता है) वह लड़ाई में मरा ( मारा गया) क्यारी सिंच रही है (सींची जा रही है)।

              (3) कुछ सकर्मक क्रियार्थक संज्ञाओं के अधिकरण के साथ 'आना' क्रिया के विवक्षित काल का प्रयोग किया जाता है; जैसे-सुनने में आया है (सुना गया है) । देखने में आता है (देखा जाता है)।

                                     क्रिया के लिंग वचन और पुरुष

संज्ञा के समान क्रिया के भी पुल्लिंग और स्त्रीलिग ये दो लिग तथा एकवचन और बहुवचन ये दो वचन होते हैं और सर्वनाम की तरह इसके उत्तम, मध्यम तथा अन्य (या प्रथम) तीन पुरुष होते हैं। क्रिया के पुरुष लिग और वचन कहीं तो कत्तां के अनुसार होते हैं, कहीं कर्म के अनुसार और कहीं इन दोनों में से किसी के अनुसार भी नहीं होते। इस प्रकार क्रियाओं का तीन प्रकार से प्रयोग होता है।

          (1) कर्तरि प्रयोग-जिसमें क्रिया के पुरुष लिंग और वचन कर्ता के अनुसार होते हैं उसे कर्तरि प्रयोग कहते हैं समस्त कर्तृवाच्य क्रियाओं में कतरि प्रयोग नहीं होगा। अकर्मक क्रियाओं के सम्पूर्ण कालों में तथा सकर्मक क्रियाओं के अपूर्णभूत और हेत्मद्भूत-भूतकाल के इन भेदों-और वर्तमान तथा भविष्यत् काल के रूप में कर्तृवाच्य में कर्तरि प्रयोग होता है। इसमें कर्त्ता  निर्विभक्तिक रहता है। जैसे-राम हँसा। सीता हँसी। लड़का बैठा है। लड़के बैठे हैं। लड़कियाँ पढ़ रही थीं। वह सोया होगा। यदि वह आ जाता तो काम अवश्य हो जाता। लड़के प्रार्थना करते हैं। लड़कियाँ पाठ पढ़ती हैं। मैं पाठ पढ़ंगा तुम पाठ पढोगे। वह पाठ पढ़ेगा।

          (2) कर्मणि प्रयोग-जिसमें क्रिया के लिंग वचन तथा पुरुष कर्म के अनुसार होते हैं उसे कर्मणि प्रयोग कहते हैं।

कर्मणि प्रयोग दो प्रकार के होते हैं- (क) कर्तृवाच्य कर्मणि प्रयोग और (ख) कर्मवाच्य कर्मणि प्रयोग । साधारणतया अपूर्ण भूत और हेतुहेतुमद्भूत को छोड़कर कर्तृवाच्य की शेष सम्पूर्ण भूतकालिक क्रियाएँ तथा कर्मवाच्य की सारी क्रियाएँ प्रयोग में आती हैं। कर्मणि प्रयोग में कर्म निर्विभक्तिक होता है, परन्तु कर्तृवाच्य कर्मणि प्रयोग में कर्ता के साथ से' विभक्ति जुड़ती है तथा कर्मवाच्य कर्मणि प्रयोग में कर्ता करणकारक में होता है या उसके साथ 'के द्वारा' शब्द जुड़ता है। जैसे-(कर्तृवाच्य) राम ने खाना खाया, मोहन ने पुस्तकें पढ़ी, ताजमहल शाहजहाँ ने बनवाया था; कमरे मैंने बनवाये हैं: लड़कों ने पुस्तकें पढ़ी होंगी। (कर्मवाच्य) यह पत्र राम से (के द्वारा) लिखा गया है।

          (3) भावे प्रयोग-जिस क्रिया के लिंग वचन और पुरुष कर्ता या कर्म के अनुसार नहीं होते, अर्थात् जो सदा अन्य पुरुष पुल्लिंग तथा एकवचन में रहती है उसे भावे प्रयोग कहते हैं। भावे प्रयोग तीन तरह का होता है-1. कर्तृवाच्य भावे प्रयोग, 2. कर्मवाच्य भावे प्रयोग, 3. भाववाचक भावे प्रयोग । कर्तृवाच्य भावे प्रयोग में सकर्मक धातुओं में कर्ता और कर्म दोनों सविभक्तिक होते हैं, तथा अकर्मक क्रियाओं में केवल कर्ता ही सविभक्तिक होता है। कर्म वाच्य भावे प्रयोग में कर्म सविभक्तिक होता है और कर्ता प्राय: लुप्त रहता है भाववाच्य की समस्त क्रियाएँ भावे प्रयोग में आती हैं। यदि कर्ता की आवश्यकता हो तो उसे करण कारक में रखते हैं। (कर्तृवाच्य) राम ने रावण को मारा। राम ने राक्षसों को मारा। इन वृक्षों को दुष्यन्त ने बोया है। इन वृक्षों को बालकों ने बोया है। (कर्मवाच्य) आँखें दिखलाने के लिए राम को दिल्ली भेजा जायेगा (भाववाच्य) यहाँ बैठा नहीं जाता।

वाच्य और उनके प्रयोग को स्पष्ट करने के लिए आगे नक्शा दिया जाता है। 



              बोलना, बकना, समझना, जानना, पुकारना ये सकर्मक क्रियाएँ और सजातीय सकर्मक क्रियाएँ अपूर्णभूत और हेतुहेतुमद्भूत को छोड़ कर भूतकाल के अन्य भेदों में विकल्प से कर्मणि प्रयोग में आती हैं । लाना, ले जाना, भूलना और नित्यताबोधक सकर्मक संयुक्त क्रियाएँ कर्तरिप्रयोग में आती हैं। नहाना, छींकना क्रियाएँ विकल्प से भावेप्रयोग में आती हैं।

               बोलना- मैं कुछ न बोली।

                         मैंने झूठ नहीं बोला।

     नाचना-  वह नाच नाची।

            उसने नाच नाचा।

     लाना-   वर्षा अपूर्व शोभा लाई।

     नित्यताबोधक-'सब ग्वाल बाल नित्य कान्ह की बंसी सुना किये',

     नहाना-    हम खूब नहाए।

                   हमने खूब नहाया।

क्रियाओं की रूपावली (Conjugation of Verbs)
दिग्दर्शन के लिए एक अकर्मक और एक सकर्मक धातु रूपावली नीचे दी जाती है। इसी के अनुसार दूसरे धातुओं की रूपावली भी समझनी चाहिये।

                  अकर्मक 'उठ' धातु कर्तृवाच्य







                                     अकर्मक 'उठ धातु भाववाच्य
     
                                            सामान्य भूत

                 मुझसे, तुझसे, उससे, हमसे, तुमसे, उनसे, उठ गया

                                            आसन्न भूत

                मुझसे, तुझसे, उससे, हमसे, तुमसे, उनसे, उठ गया था

                                             पूर्ण भूत

               मुझसे, तुझसे, उससे, हमसे, तुमसे, उनसे, उठ गया था।

                                            अपूर्ण भूत

                मुझसे, तुझसे, उससे, हमसे, तुमसे, उनसे, उठ गया था।

                                            संदिग्ध भूत

                मुझसे, तुझसे, उससे, हमसे, तुमसे, उनसे, उठ गया होगा

                                            हेतुहेतुमदभूत

                मुझसे, तुझसे, उससे, हमसे, तुमसे, उनसे, उठा जाता है


                                            सामान्य वर्तमान

                मुझसे, तुझसे, उससे, हमसे, तुमसे, उनसे, उठ जाता है

                                            संदिग्ध वर्तमान

                मुझसे, तुझसे; उससे, हमसे, उनसे, उठा जाता होगा,

                                           अपूर्ण वर्तमान

                मुझसे, तुझसे, उससे, हमसे, तुमसे, उनसे, उठा जा रहा है।

                                           संभाव्य भविष्यत्

                मुझसे, तुझसे, उससे, हमसे, तुमसे, उनसे, उठा जावे

                                           सामान्य भविष्यत्

                 मुझसे, तुझसे, उससे, हमसे, तुमसे, उनसे, उठा जावेगा

                                                विधि

                   तुझसे, तुमसे, उससे, उनसे, उठा जाए

                                    सकर्मक 'ख' धातु कर्तृवाच्य

पहले बताया जा चुका है कि कर्तृवाच्य में भी सामान्य भूत, आसन्न भूत पूर्ण भूत और संदिग्ध भूत की क्रियाओं में लिंग और वचन कर्म के लिग और वचन के अनुसार बदलते हैं, अत: इन चारों कालों में 'कर्म पुल्लिग' और 'कर्म स्त्रीलिंग कर रूप दिये गये हैं।

                                            सामान्य भूत

                                 कर्म पुल्लिंग (जैसे रसगुल्ला)

       एकवचन    मैंने (1),  हमने,   तूने,  तुमने,  उसने,  उन्होंने,  खाया।

       बहुवचन        "            "        "         "      "          "      खाय

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1. अकर्मक क्रियाओं के कत्ता के साथ 'ने' नहीं लगता। सकर्मक क्रियाओं के अपूर्ण और हेतुहेतुमदभूत को छोड़कर शेष भूतकालों में ने लगता है। अपवाद-'लाना' भूलना' बोलना' से बनी हुई क्रियाओं के और 'जान 'चकना', 'सुनना' के रूपों से मिलकर बनी क्रियाओं के कर्ता में 'ने नहीं लगता। जैसे-राम पुस्तक लाया है।
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संयुक्त क्रियाएँ (Compound Verb)

             दो (कभी-कभी तीन) मूल धातुओं के मेल से जब कोई क्रिया बनती है तो उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं। "मैं भोजन कर चुका", 'मैं हाकी खेल सकता हूँ" इत्यादि वाक्यों में 'कर चुका', और 'खेल सकता हूँ' संयुक्त क्रियाएँ हैं। नीचे दिए हुए क्रिया के सामान्य रूपों से बनी हैं । कर चुका- ( करना + चुकना), खेल सकता हूँ-(खेलना + सकना)

               संयुक्त क्रियाओं में पहली क्रिया प्राय: मुख्य होती है और दूसरी उसके अर्थ 1. में विशेषता उत्पन्न कर देती है।" मैं हाकी खेलता हूँ" से पता लगता है कि मैं खेलने का कार्य करता हूँ। "मैं हाकी खेल सकता हूँ" यह प्रकट करता है कि मुझमें हाकी खेलने का सामर्थ्य है- मुझे खेलना आता है। इस प्रकार 'सकना' क्रिया ने 'खेलना' क्रिया के अर्थ में विशेषता पैदा कर दी है।

              भिन्न-भिन्न अर्थों में आने वाली कुछ संयुक्त क्रियाएँ तथा उनके बनाने की रीति नीचे दी जाती है। 
            (क) आरम्भबोधक और अवकाशबोधक -  .क्रिया के सामान्य रूप के 'त' को 'ने' करके आगे 'लगाना' या 'पाना' क्रिया लगाने से क्रमश: आरंभबोधक  और अवकाशबोधक क्रियाएँ बन जाती हैं। (आरंभवोधक) जैसे मेंह बरसने  लगा। मैं सोने लगा हूँ । (अवकाशबोधक) जैसे मुझे जाने दो। नहीं, तुम जाने न  पाओगे।

             (ख) समाप्तिबोधक और शक्तिबोधक- धातु के आगे, 'चुकना' और 'सकना' क्रिया जोड़ने से क्रमश: समाप्तिबोधक और शक्तिबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं। (समाप्तिबोधक जैसे-भोजन कर चुका । (शक्तिबोधक) जैसे चल सकता हूँ, पढ़ सकता हूँ।

             (ग) विवशता बोधक-क्रिया के सामान्य रूप के आगे 'पढ़ना' या 'होना' क्रिया जोड़ने से विवशता प्रकट होती है । जैसे-उसके बचाव के लिए झूठ बोलना होगा या बोलना पड़ेगा, कर्मों का फल भोगना पड़ता है।

             (घ) नित्यताबोधक- सामान्य भूतकालिक क्रिया के आगे 'करना' क्रिया जोड़ने से नित्यता प्रकट होती है। जैसे-कल से मैं आया करूँगा, वे घूमने आया करते हैं। (जाना धातु का रूप 'गया' न होकर 'जाया' होता है।)

              (ङ) इच्छा बोधक- क्रिया के साधारण रूप से सामान्यभूत के आगे चाहना क्रिया जोड़ने से इच्छा बोधक संयुक्त क्रिया बनती है। जैसे-मैं आज ही के यह काम करना चाहता हूँ या किया चाहता हूँ। क्रिया सामान्यभूत रूप के आगे 'चाहता' क्रिया जोड़ने से व्यापार का तत्काल होना भी प्रकट होता है। जैसे-गाड़ी 1. आया चाहती है। मकान गिरा चाहता है। बादल बरसा चाहते हैं।

               (च) तत्कालबोधक और अनुमति बोधक- सामान्य भूतकालिक क्रिया अन्तिम स्वर को 'ए' में बदल कर आगे 'देना' या 'डालना' क्रिया लगाने से 'तत्कालबोधक' संयुक्त क्रिया बनती है। जैसे-अभी लिखे देता हूँ या लिखे डालता हूँ। क्रिया के साधारण रूप के अन्तिम 'अ' को 'ए' में बदल कर आगे 'देना' क्रिया जोड़ने से अनुमति चोधक क्रिया बनती है। जैसे-मुझे जाने दीजिये।

               धातु के साध 'डालना क्रिया जोड़ने से धातु का अर्थ जोरदार हो जाता है। जैसे खा डालना, तोड़ डालना, मार डालना।
                (छ) सातत्य (लगातार रहना ) बोधक- हेतुहेतुमदभूतकालिक क्रिया के आगे या सामान्यभूतकालिक क्रिया के अन्तिम स्वर को 'ए' में बदल कर उसके आगे 'चलना', 'जाना' और 'रहना' क्रिया लगाने से सातत्यबोधक  संयुक्तक्रियाएँ बनती हैं। जैसे-आगे बढ़ते (बढ़े) चलो। काम करते (किये)  आओ। मैं उससे डरता हूँ। बकते रहो (बके जाओ), मुझे परवाह नहीं। 
               
                  (ज) जब दो समान अर्थवाली या समान ध्वनि वाली क्रियाओं का संयोग होता है, तब उन्हें पुनरुक्त संयुक्त क्रियाएँ कहते हैं। जैसे-पढ़ना-लिखना; करना-धरना, समझना-बूझना।

                  जो क्रिया केवल यमक (ध्वनि) मिलाने के लिए आती है वह निरर्थक होती है। जैसे-पूछना-ताछना, होना-हवाना। 
                
                  पुनरुक्त क्रियाओं में दोनों क्रियाओं का रूपान्तर होता है परन्तु सहायक क्रिया केवल पिछली क्रिया के साथ आती है जैसे-अपना काम देखो भालो। वह यहाँ आया जाया करता है। अपने शहर वालों से मिलते-जुलते रहना चाहिए।
                 
                     (झ) संयुक्त क्रियाओं में कभी-कभी सहकारी क्रिया के कृदन्त के आगे दूसरी सहकारी क्रिया आती है, जिससे तीन-तीन अथवा चार धातुओं की भी संयुक्त क्रिया बन जाती है। जैसे-इसकी तत्काल सफाई कर लेनी चाहिए।

   धन्यवाद! 
                             *************************************



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एकांकी

✍तैत्तिरीयोपनिषत्

  ॥ तैत्तिरीयोपनिषत् ॥ ॥ प्रथमः प्रश्नः ॥ (शीक्षावल्ली ॥ தைத்திரீயோபநிஷத்து முதல் பிரச்னம் (சீக்ஷாவல்லீ) 1. (பகலுக்கும் பிராணனுக்கும் அதிஷ்ட...