Friday, March 27, 2020

छठा अध्याय / क्रिया

                                                                  छठा अध्याय
        क्रिया
            जिस शब्द से किसी व्यापार का होना या करना पाया जाये वह क्रियापद कहलाता है। जैसे 'राम पढता है' इस वाक्य में पढ़ता है' पद राम के पढ़ने का कार्य बतलाता है। इसलिए यह क्रिया-पद है। इसी तरह 'मोहन आया था', 'हरि पत्र लिखता है। इन वाक्यों में आया था' और 'लिखता है' भी क्रिया-पद है।

            सब प्रकार की क्रिया के मूल शब्दों से बनी हैं जिन्हें धातु कहते हैं। लिखता है' क्रिया में लिख' मूल धातु और 'ता है' प्रत्यय है। इसी प्रकार 'आया था में आ' मूल धातु है और 'या था' प्रत्यय है।




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          धातु के आगे 'ना' प्रत्यय जोड देने से जो शब्द बनता है वह क्रिया क साधारण रूप कहलाता है।
       जैसे-'खा' से 'खाना',
           'आ' से  आना',
            'भाग' से "भागना',
            'हो' से 'होना,
            'लिख' से 'लिखना'।

        क्रिया का साधारण रूप बहुधा संज्ञा के समान प्रयुक्त होता है; जैसे-'उसका हँसना' देख मैं बहत प्रसन्न हआ हूँ।' ऐसे जीने से मरना भला।' इन वाक्यों में 'हँसना', 'जीना' और 'मरना' संज्ञा हैं।कोई-कोई ऐसे शब्दों को क्रियार्थक संज्ञा कहते हैं।

       कई धातुओं का भी भाववाचक संज्ञा के समान प्रयोग होता है। जैसे-घडदौड में कौन जीता? खेल शीघ्र ही समाप्त हो गया। 

                                                               क्रिया के भेद

              क्रिया द्वारा दो अर्थ प्रकाशित होते हैं एक व्यापार और दूसरा फल। 'मोहन भोजन खाता है'-यहाँ खाने का व्यापार (चेष्टा-दांतों से चबाना आदि) तो मोहन कर रहा है पर उस व्यापार का फल भोजन पर पड़ता है अर्थात् भोजन खाया या चबाया जा रहा है। 'मोहन सोता है इसमें सोने का व्यापार मोहन पर गया है और उसका फल (सोने का सुख आदि) भी मोहन को ही मिल रहा है। इस प्रकार क्रियायें दो तरह की हैं। एक वे जिनके व्यापार और फल अलग-अलग स्थानों पर पड़ते हैं, दूसरी वे जिनके व्यापार और फल एक ही वस्तु-करने वाले में रहते हैं। पहली क्रिया को सकर्मक और दूसरी को अकर्मक कहते हैं।

         व्यापार या कार्य करने वाले को कुत्ता (Subject) कहते हैं और उस व्यापार का फल कुत्ता से निकल कर जिस पर पड़ता है उसे कर्म (Object)|

        इसलिए जिन क्रियाओं के व्यापार का फल कर्त्ता को छोड़ कर्म पर पड़ता है वे सकर्मक (Transitive) और जिन क्रियाओं के व्यापार और फल कर्त्ता में ही रहते हैं वे अकर्मक (Intransitive) कहलाती हैं।

       बहुधा इन अर्थों वाली क्रिया अकर्मक होती हैं-होना, लजित होना, उतना, जागना, पढ़ना, क्षीण होना, डरना, जीना, मरना, सोना, चमकना।

       कुछ क्रिया प्रयोग के अनुसार सकर्मक भी होती हैं और अकर्मक भी, जैसे-बदलना, भरना, ललचाना, खुजलाना। जैसे-'तू भी बदल (अकर्मक) फलक कि जमाना बदल (अकर्मक) गया। पहलू बदल कर (सकर्मक) उन्हांने हा बात तो ठीक है। बूंद-बूंद से घड़ा भरता है (अकर्मक), उसने आँहें भर कर सकर्मक) कहा। ये चीजें देख कर मेरा जी ललचाता (अकर्मक) है, ये चीजें मेरे को ललचाती (सकर्मक) हैं मेरे हाथ खुजलाते हैं। (अकर्मक), मेरी पीठ को तो जरा खुजलाओ (सकर्मक)।

      जब सकर्मक क्रियाओं द्वारा केवल व्यापार प्रकट होता है और कर्म की विवशता न हो तब वे भी अकर्मक हो जाती हैं जैसे-'ईश्वर की कृपा से बहरा सनता है और गूंगा बोलता है', इस वाक्य में 'सुनता है' और 'बोलता है' अकर्मक क्रियाएँ हैं।

     जब वे अकर्मक क्रियाओं के साथ इन क्रियाओं से बनी आवश्यक संज्ञाएँ जोड़ दी जाएँ तब वे सकर्मक हो जाती हैं, जैसे लड़की ने अच्छा नाच नाचा; मैं ऐसी चाल चला कि वे देखते ही रह गये। ऐसी सकर्मक क्रियाओं को सजातीय क्रिया कहते हैं और कर्म को सजातीय कर्म। ऐसा कर्म किसी-किसी सकर्मक क्रिया के साथ भी जुड़ा हुआ पाया जाता है; यथा-पक्षी अनोखी बोली बोल रहे हैं।

     कई सकर्मक क्रियाएँ एक कर्म (एक कर्मवती) होती हैं; जैसे-मैंने खाना खाया; और कई द्विकर्मक (दो कर्मवाली) होती हैं; जैसे-मैंने उसे कथा सुनाई, मोहन ने मुझे पाठ पढ़ाया, इन वाक्यों में दो-दो कर्म हैं। पहले आये हुए 'उसे"और 'मुझे' कर्म गौण तथा पीछे आये हुए 'कथा' और 'पाठ' कर्म मुख्य कर्म हैं।

     द्विकर्मक क्रियाओं के दो कर्मों में से गौण और मुख्य कर्म जानने की विधि यह है कि क्रिया के साथ प्रश्न के लिए 'किसको' और 'क्या' लगाया जाये। 'किसको' के उत्तर में जो आये वह कर्म होगा और 'क्या' के उत्तर में जो आये वह मुख्य कर्म होगा। 'मोहन ने किसको क्या; पढ़ाया?' इस वाक्य का उत्तर यही होगा-मोहन ने मुझे पाठ पढाया। मुझे'किसको' की जगह पर आया है इसलिये यह गौण कर्म है और पाठ 'क्या' की जगह आया है इसलिए वह मुख्य कर्म है।

      गौण कर्म कभी-कभी लुप्त भी रहता है। जैसे-आज पंडित ने महाभारत की कथा सुनाई।

                                                         अपूर्ण क्रिया 

            कई सकर्मक क्रिया ऐसी हैं जिनका आशय केवल कर्ता से पूरा नहीं होता। उनके अर्थ को पूरा करने के लिये किसी और शब्द की आवश्यकता रहती है।ऐसी क्रिया निकलना, ठहरना आदि। वह (मुर्ख) है; वह (बीमार) रहता है, मेरे आगे तम (चतुर) बनते हो। इन वाक्यों में कोष्ठक में दिये गये शब्द क्रियाओं के अर्थ को पूरा करने के लिये जोड़े गये हैं, इनके बिना अर्थ पूरा नहीं होता। अत: इन वाक्यों की क्रिया अपूर्ण क्रिया हैं। अपूर्ण अकर्मक क्रिया कहलाती हैं; जैसे-होना, रहना, बनना

          इस प्रकार कुछ एक सकर्मक क्रिया भी होती हैं जिनका आशय कर्म के रहते हुए भी पूरा नहीं होता। कोई शब्द अर्थ की पूर्ति के लिए उनके साथ जोडना ही पड़ता है। ऐसी क्रिया अपूर्ण सकर्मक कहलाती हैं; जैसे-करना, बनाना,समझना आदि। जैसे-मैंने  तुम्हारा काम (पूरा) कर दिया।
                राम ने विभीषण को (लंकापति) बना दिया।
                मैंने तो उन्हें (देवता ही) समझा था।
         इन अपूर्ण क्रियाओं के आशय की पूर्ति के लिये जिन शब्दों की (जो संज्ञा या विशेषण ही होते हैं) आवश्यकता पड़ती है उन्हें 'पूरक' (Complement) कहते हैं। ऊपर लिखे उदाहरण में कोष्ठक के अन्तर्गत शब्द 'पूरक' हैं।

         जब इन क्रियाओं का आशय पूरक के बिना ही पूरा हो जाता है, तब ये पूर्ण क्रिया (अकर्मक या सकर्मक) कहलाती हैं।
         जैसे-ईश्वर है; मैंने ग्रन्थ बनाया है । वह सदा वन में रहता है।

                                     यौगिक धातु 

       व्युत्पत्ति (बनावट) के विचार से धातुओं के दो भेद हैं

           1. मूल धातु 2. यौगिक धातु

       मूल धातु वे हैं जो किसी दूसरे शब्द से न बने हों ।
           जैसे-कर (ना), बैठ-(ना), चल (ना), पढ़ (ना) आदि।

     यौगिक धातु वे हैं जो दूसरे शब्दों से बनाये जाते हैं। ये तीन तरह से बनते हैं।

      1. धातु के प्रत्यय जोड़ने से सकर्मक तथा प्रेरणार्थक धातु बनते हैं, जैसे-गिरना से गिराना या गिरवाना।
      2. संज्ञा या विशेषण आदि दूसरे शब्द-भेदों में प्रत्यय जोड़ने से नाम-धातु बनते हैं; जैसे-धिक्कार से धिक्कारना,  अपना से अपनाना।
      3. संयुक्त क्रियाएँ दो या तीन धातुओं के मिलने से बनती हैं; जैसे-कर सकना, खा चुकना।

                         प्रेरणार्थक क्रियाएँ 

       जिन क्रियाओं से यह जान पडे कि कर्त्ता कार्य को स्वयं न करके किसी दूसरे को उसके करने की प्रेरणा देता है वे प्रेरणार्थक क्रिया (Causal verbs) कहलाती हैं,
जैसे-'मोहन मुनीम से चिट्ठी लिखवाता है', इस वाक्य में 'लिखवाता है' क्रिया से यह जान पड़ता है कि मोहन आप चिट्ठी न लिखकर मुनीम को चिट्ठी लिखने की प्रेरणा देता है; 'इसलिए लिखवाता है' प्रेरणार्थक क्रिया है। प्रेरणा करने वाले को 'प्रेरक कुत्ता' और जिसको प्रेरणा की जाती है उसे 'प्रेरित कर्ता' कहते हैं। ऊपर के वाक्य में 'मोहन' मुख्य या प्रेरक कर्त्ता और 'मुनीम' गौण या प्रेरित कुत्ता है। प्रेरित कुत्ता करण कारक में प्रयुक्त होता है।

        आना, जाना, पाना, रुकना, होना आदि क्रियाओं को छोड कर शेष क्रियाओं से दो-दो प्रकार की प्रेरणार्थक क्रिया बनती है, जिनमें पहले प्रकार की क्रियायें बहुधा सकर्मक क्रिया ही के अर्थ में आती हैं, उनमें स्पष्ट प्रेरणा नहीं पाई जाती। दूसरे प्रकार की क्रियाओं से प्रेरणा स्पष्ट हो जाती है।
  जैसे --
   खाना    खिलाना   खिलवाना   सुनना   सुनाना   सुनवाना
   सोना     सुलाना    सुलवाना    कहना   कहाना   कहलवाना
   जागना  जगाना    जगवाना    गिरना   गिराना   गिरवाना

      मूल में जो क्रिया अकर्मक होती हैं उनसे क्रमश: सकर्मक और प्रेरणार्थक क्रियाएँ बनती है तथा जो क्रियाएँ सकर्मक होती हैं उनसे क्रमशः द्विकर्मक और प्रेरणार्थक । जैसे-'घर गिरता है', इस वाक्य में 'गिरता है' क्रिया अकर्मक है। इससे पहले प्रेरणार्थक क्रिया सकर्मक बनेगी। जैसे कारीगर घर गिराता है, दूसरी क्रिया वस्तुतः प्रेरणार्थक होगी।

     जैसे-ठेकेदार मजदूर' से घर गिरवाता है। बच्चा दूध पीता है' इसमें 'पीता है' क्रिया सकर्मक है। इसलिए इससे पहली प्रेरणार्थक क्रिया द्विकर्मक बनेगी।
     जैसे–माता बच्चे को दूध पिलाती है और दूसरी वस्तुतः प्रेरणार्थक होगी।
     जैसे–माता धाय से बच्चे को दूध पिलवाती है।





प्रेरणार्थक क्रिया बनाने के नियम 

     (1) मूल धातु के अन्त में 'आ' जोड़ने से पहली प्रेरणार्थ और 'वा' जोड़ने से दूसरी प्रेरणार्थक क्रिया बनती है। जैसे--

उठना            उठाना           उठवाना
चलाना          चलना            चलवाना
पढ़ना            पढ़ाना            पढ़वाना
बदलना         बदलवाना        बदलवाना
समझवाना     समझना          समझाना

     (2) दो अक्षरों के धातुओं में 'ऐ' और 'औ' को छोड़कर अन्य पहला दीर्घ स्वर प्राय: हस्व हो जाता है। जैसे --

जागना                जगाना                जगवाना
ओढ़ना                उढ़ाना                 उढ़वाना
काटना                 कटाना                कटवाना
भीगना            भिगाना, भिगोना        भिगवाना
जीतना                 जिताना               जितवाना
भूलना                 भुलाना                भुलवाना
डूबना             डुबाना, डुबोना           डुबवाना
लेटना                  लिटाना               लिटवाना
छोड़ना                 छुड़ाना               छुड़वाना

   (3) कुछ एकाक्षर (एक व्यंजन और एक स्वर वाले) धातुओं के अन्त में क्रमश: 'ला' और 'लवा' लगाते हैं और दीर्घ स्वर हस्व हो जाता है, तथा कुछ एकाक्षर धातुओं से केवल एक ही प्रेरणार्थक क्रिया बनती है, उसके अंत में 'ल' और 'लवा' की जगह 'वा' लगता है।

पीना                पिलाना             पिलवाना
सोना                सुलाना             सुलवाना
गाना                गवाना
खाना               खिलाना
चूना                 चुवाना
ढोना                ढुवाना
बोना                बुवाना
छूना                छुवाना
'ख'धातु के रूप अनियमित हैं।
खाना  खिलाना,      खवाना  खिलवाना

    (4) कुछ धातुओं के पहले प्रेरणार्थक रूप 'आ' और 'ला' लगाने से बनते हैं तथा दूसरे प्रेरणार्थक रूप 'वा' और 'लवा' लगाने से बनते हैं।
जैसे --
कहना     कहना, कहलाना         कहवाना कहलवाना
देखना     दिखना, दिखलाना      दिखवाना, दिखलवाना 
सीखना    सीखना, सीखना        सिखवाना, सिखलवाना

    (5) कुछ धातुओं के रूप अनियमित होते हैं।
(6) कुछ धातुओं के रूप तो दोनों बनते हैं पर दोनों का अर्थ एक ही होता है।
 जैसे--
 रखना         रखाना             या      रखवाना
  सीना         सिलाना            या      सिलवाना
  देना           दिलाना            या      दीवाना



                     अकर्मक बनाने के नियम 

    (1) दो अक्षरों के धातुओं के पहले स्वर को और तीन अक्षरों के धातुओं में दूसरे अक्षर के स्वर को दीर्घ करने से अकर्मक धातु सकर्मक बन जाते हैं

गड़ना         गाड़ना            पिसना        पीसना
मरना         मारना             लुटना        लूटना
निकलना    निकलवाना      सँभालना     संभलना

कभी-कभी पहले 'इ' का 'ए' और 'उ' का 'ओ' हो जाता है --

  दिखाना          देखना            खुलना        खोलना
  मुड़ना            मोड़ना            तुलना        तोलना

      (2) कुछ धातुओं के अन्तिम 'ट' को 'ड' होकर पहले 'अ' को 'आ' और  'उ' या 'ऊ' को 'ओ' हो जाता है।  जैसे---
 
               छूटना              छोड़ना
               फटना              फाड़ना
               फूटना              फोड़ना

    (3) कुछ रूप अनियमित भी होते हैं। जैसे --

  सिलाना     सीना     
  बिकना     बेचना     
  टूटना      तोड़ना

     कुछ धातुओं के सकर्मक और प्रेरणार्थक रूप अलग अलग होते हैं और दोनों  में अर्थ का अन्तर रहता है। जैसे --

गडना का सकर्मक रूप गाड़ना और प्रेरणार्थक गड़ना है। 'गाडना' का अर्थ है  पृथ्वी के अन्दर दबाना और 'गड़ाना' का अर्थ है चुभोना।

                      2. नाम धातु क्रियाएँ
     क्रिया को छोड़ कर अन्य शब्दों में प्रत्यय जोड़ने से ज धातु बनती है. अथवा जो नाम (संज्ञा या विशेषण) ही धातु के समान प्रयुक्त होते हैं, उन्हें नामधा कहते हैं। नाम धातुओं से जो क्रिया बनती हैं, उन्हें 'नामधातु क्रियाएँ' कहते हैं।

      जो नामधातु प्रत्यय लगाने से बनते हैं उनमें प्राय: 'आ', 'या' और 'ला प्रत्यय लगाये जाते हैं। उसका पहला स्वर   यदि दीर्घ हो तो हस्व हो जाता है। 'या' प्रत्यय परे होने पर शब्द के अन्तिम स्वर को 'इ' हो जाता है।


शब्द        प्रत्यय       नामधातु          क्रिया का सामान्य रूप

लाज         आ           लजा                  लजाना
गर्म           आ           गर्मा                   गर्माना
हाथ          या            हथिया               हथियाना
बात          या            बतिया               बतियाना
झूठ          ला            झुठला               झुठलाना
दुख          आ            दुखा                  दुखाना
बिलग       आ             बिलगा              बिलगाना

कई नाम ही सीधे धातु के समान प्रयुक्त होते हैं --

   रँग       रँगना                    गुजर     गुजरना
   गाँठ     गाँठना                   दुहरा    दुहराना
   दाग     दागना                    खरीद   खरीदना
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अनुकरणवाचक शब्दों से नामधातु बनाते हैं। उन्हें अनुकरण धातु भी कहते हैं। जैसे

छलछल       छलछलना      टर्र           टर्राना
भिनभिन     भिनभिनाना    खटखट     खटखटना
बड़बड़        बड़बड़ना        थरथर       थरथराना

    3. संयुक्त क्रियाएँ 

    इसका विवेचन क्रिया के रूपान्तर के बाद किया जायेगा, क्योंकि क्रिया का रूपान्तर जानने के बाद इनकी बनावट समझना आसान होगा।

धन्यवाद!!!!

  








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