पाँचवाँ अध्याय
विशेषण (Adjective)
जिस पद से किसी संज्ञा या सर्वनाम की कोई विशेषता या गुण प्रकट हो अथवा उनका क्षेत्र संकुचित हो उसे विशेषण कहते हैं। जैसे-काला (साँप):
'रेशमी' (कपड़ा), पाँच (आम)। 'कपड़ा लाओ' कहने पर लाने वाला सूती, ऊनी, रेशम, किसी तरह का भी कपड़ा ला सकता है, पर कपड़े के साथ यदि रेशमी शब्द जोड दिया जाये-अर्थात्
'रेशमी कपड़ा लाओ, यह कहा जाये तो लाने वाला रेशमी कपड़ा ही लायेगा,
ऊनी या सती नहीं। इस तरह 'रेशमी' शब्द कपड़े की विशेषता प्रकट करता है। और उसके क्षेत्र को संकुचित कर देता है। इसी तरह 'आम लाओ' कहने पर लाने वाला एक आम भी ला सकता है और दस भी। पर जब उसे यह कह दिया जाये कि 'पाँच आम लाओ' तो वह पाँच ही आम लायेगा। 'पाँच' शब्द ने आम के क्षेत्र को संकुचित कर दिया, इसलिए यह भी विशेषण है।
विशेषण (Adjective)
जिस पद से किसी संज्ञा या सर्वनाम की कोई विशेषता या गुण प्रकट हो अथवा उनका क्षेत्र संकुचित हो उसे विशेषण कहते हैं। जैसे-काला (साँप):
'रेशमी' (कपड़ा), पाँच (आम)। 'कपड़ा लाओ' कहने पर लाने वाला सूती, ऊनी, रेशम, किसी तरह का भी कपड़ा ला सकता है, पर कपड़े के साथ यदि रेशमी शब्द जोड दिया जाये-अर्थात्
'रेशमी कपड़ा लाओ, यह कहा जाये तो लाने वाला रेशमी कपड़ा ही लायेगा,
ऊनी या सती नहीं। इस तरह 'रेशमी' शब्द कपड़े की विशेषता प्रकट करता है। और उसके क्षेत्र को संकुचित कर देता है। इसी तरह 'आम लाओ' कहने पर लाने वाला एक आम भी ला सकता है और दस भी। पर जब उसे यह कह दिया जाये कि 'पाँच आम लाओ' तो वह पाँच ही आम लायेगा। 'पाँच' शब्द ने आम के क्षेत्र को संकुचित कर दिया, इसलिए यह भी विशेषण है।
जब विशेषण व्यक्तिवाचक संज्ञा के साथ आता है अथवा किसी के स्वाभाविक गुण को प्रकट करता है तो उससे संज्ञा का क्षेत्र संकुचित नहीं होता केवल विशेषता ही प्रकट होती है। यथा-दयालु ईश्वर, प्रज्ज्वलित आग। पर यहाँ भी कल्पना में क्षेत्र का संकोच होता ही है। इस प्रकार के विशेषण को समानाधिकरण विशेषण कहते हैं। विशेषण द्वारा जिस संख्या की विशेषता प्रकट होती है उसे विशेष्य कहते हैं। रेशमी कपड़ा में 'कपड़ा' विशेष्य है और 'रेशमी' विशेषण। 'काला साँप' में 'साँप' विशेष्य है और 'काला' विशेषण। विशेषण का प्रयोग दो प्रकार से होता है-एक विशेष्य से पहले और दूसरा विशेष्य के बाद। जैसे-ऐसा सुन्दर फूल मैंने पहले कभी नहीं देखा' और 'वह फूल बड़ा सुन्दर है', इन दोनों वाक्यों में 'सुन्दर फूल का विशेषण है। पहले वाक्य में वह विशेष्य (फूल) से पहले आया है और दूसरे वाक्य में पीछे। जो विशेषण विशेष्य के पहले आता है उसे विशेष्य विशेषण कहते हैं और जो विशेषण विशेष्य के पीछे आता उसे विधेय-
विशेषण। जो शब्द किसी शब्द के साथ उसको स्पष्ट करने के लिए प्रयुक्त होता है उसे समानाधिकार शब्द कहते हैं।
जैसे-'मैं' विश्वेश्वर दयाल, यह इकरार करता हूँ, इसमें विश्वेश्वर दयाल' 'मैं' के साथ समानाधिकरण शब्द है।
विशेषण चार प्रकार के हैं-
1. गुणवाचक (Adjectives of Quality)
2.संख्यावाचक (Adjectives of Number)
3. परिमाणवाचक ( Adjectives, of Quantity) 4.सार्वनामिक या निर्देशक विशेषण (Demonstrative Adjectives )
गणवाचक विशेषण जिस विशेषण द्वारा किसी संज्ञा या सर्वनाम में गुण, आकार, स्थल, समय तथा देश आदि की विशेषता पाई जाती है उसे गुणवाचक विशेषण कहते हैं। जैसे
रंग-काला, पीला, लाल, नीला, हरा, सफेद आदि। आकार-गोल, सुडौल, सुन्दर, कुरूप, नुकीला आदि।
दशा-पतला, मोटा, गाढा, गीला, सूखा आदि।
देश-हिन्दुस्तानी, चीनी, जापानी, ईरानी आदि ।
स्थान-बाहरी, भीतरी, ऊँचा, नीचा आदि।
दिशा-पूर्वी, दक्षिणी (दायाँ) आदि।
गुण-अच्छा, बुरा, धर्मात्मा, पापी आदि।
काल-नया, पुराना, भूत, वर्तमान, गत आदि।
नोट-कर्तवाचक, कर्मवाचक और क्रिया द्योतक संज्ञा से विशेषण होकर आती हैं। जैसे-पढ़ने वाले विद्यार्थी, मरा हुआ घोड़ा, पहचाना हुआ आदमी, झूमती डाल।
गुणवाचक विशेषणों के साथ हीनता के अर्थ में 'सा' प्रत्यय जोड़ा जाता है, जैसे-वह बड़ा-सा पेड़ जामुन का है। (बहुत बड़ा नहीं थोड़ा बड़ा)।
संज्ञाओं के साथ 'नाम' या 'नामक', 'सम्बन्धी', 'रूपी', 'तुल्य', समान', सरीखा' आदि प्रत्यय लगाकर भी गुणवाचक विशेषण बनाये जाते हैं, जैसे भरत सरीखा भाई मिलना कठिन है।
लघुपतनक नामक एक कौआ था। समाज सम्बन्धी बातें मिलकर सूचना चाहिए। भवरूपी सागर क, ज्ञान के बिना तरना कठिन है।
गुणवाचक विशेषण के बदले बहुधा ज्ञान के सम्बन्धकारक रूप भी प्रयोग में आते हैं। जैसे विदेशी (विदेश का) राज, जापानी (जापान का) कपड़ा, घरू (घर का) झगड़ा।
कही-कहीं (गुणवाचक विशेषणों का विशेष्य लुप्त रहता है। तब उनका प्रयोग संज्ञाओं के समान होता है। जैसे-बड़ों (बड़े आदमियों) ने सच कहा है। 'तुलसी हाय गरीब (गरीब आदमी) की कबहुँ न निष्फल जाय। '
2. संज्ञा वाचक विशेषण
जो विशेषण किसी संज्ञा सर्वनाम की गणना, क्रम; समूह और गुण आदि का बोध कराते हैं उन्हें संज्ञावाचक विशेषण कहते हैं। जैसे–चार लड़के, पाँचवाँ पृष्, दोनों आदमी, बहुत से फल!
संख्यावाचक विशेषण के तीन भेद हैं-निश्चित संख्यावाचक, अनिश्चित संख्यावाचक और विभागबोधक या प्रत्येक बोधक।
निश्चित संख्यावाचक-विशेषण वे हैं जिनसे निश्चित संख्या का बोध होता है। जैसे-चार, आठवाँ, दस गुणा, सातों। इसके फिर चार भेद हैं।
(क) गणनावाचक-गणनावाचक विशेषणों से गणना की जाती है। जैसे-एक मनुष्य, पाँच फूल, सात वृक्ष।
गणनावाचक विशेषणों के साथ 'एक' लगाने से लगभग' अर्थ प्रकट होता है; जैसे-पन्द्रह-एक आदमी थे-अर्थात् लगभग पन्द्रह आदमी। 'एक' के साथ इसी अर्थ में 'आध' लगाया जाता है; एक आध दिन यहाँ रहूँगा।
दो गणनावाचक विशेषणों के इकट्ठा आने पर भी अर्थ निश्चित हो जाता है। जैसे-दस पन्द्रह दिन मुझे वहाँ लगेंगे। बीस-पचीस ही आदमी थे। बीस, पचास आदि के साथ 'ओं' जोड़ने से भी अर्थ अनिश्चित हो जाता है, जैसे-वहाँ पचासों आदमी मौजूद थे।
(ख) क्रमवाचक-क्रमवाचक विशेषणों से विशेषण की क्रमानुसार गणना का ज्ञान होता है। जैसे-पहला, दूसरा, चौथा, दसवाँ आदि।
क्रमवाचक विशेषण साधारण गणनावाचक विशेषणों के अन्त में 'वाँ' जोड़ने से बनते हैं। जैसे-पाँच से पाँचवाँ, सात से.सातवाँ, आठ से आठवाँ, बीस से बीसवाँ। आगे दिये गये पाँच रूप इन नियमों के अपवाद हैं ।
एक-पहला
दो-दूसरा
तीन-तीसरा
चार-चौथा
छह-छठा
(ग) आवृत्ति वाचक-आवृत्ति वाचक विशेषण यह बताता है कि विशेष्य से जिस वस्तु का बोध होता है वह कै गुणा है। गणनावाचक विशेषण के अन्त में 'गुना' लगाने से आवृत्ति वाचक विशेषण बनता है। 'गुणा' लगाने से पाँच तक और सात आठ के गणनावाचक विशेषणों में कुछ परिवर्तन आ जाता है। जैसे-दुगुना या दूना, तीन-दोगुना या तीन गना, चार-चौगुना, पाँच-पंचगुना, छह-छहगुना, सात-सतगुना, आठ-अठगुना, नौ-नौगुना।
इकहरा, दोहरा, तिहराइत्यादि हरा' प्रत्यय लग कर बने हुए शब्द की भी आवृत्तिवाचक विशेषणों में गणना होती है।
(घ) समुदायवाचक-जिस पद से संख्या के समुदाय का बोध हो वह समुदायवाचक विशेषण कहलाता है। साधारण गणनावाचक विशेषणों के अन्त में 'ओ' लगाने से समुदायवाचक विशेषण बन जाते हैं। जैसे-तीन+ ओ-तीनों, चारों-चारों। 'दो' के साथ 'ओ' की जगह 'नो' लगता है। तुम दानों वहाँ जाओ।
अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण वे हैं जिनसे निश्चित संख्या का ज्ञान नहीं होता; जैसे कई, बहुत से, कुछ, थोडे आदि। जैसे-कई आदमी तुम्हें मिलने आये थे। कुछ दिन यहाँ और रहँगा परीक्षा में थोड़े दिन रह गये हैं। इसी तरह एक दिन ऐसा हुआ' मैं और आम लँगा आदि में 'एक' तथा 'और' भी अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण हैं।
विभागवाचक या प्रत्येकबोधक विशेषण वे हैं जिनके लगाने से विशेषण- बोधित पदार्थों में से प्रत्येक का ज्ञान हो अर्थात् बहुत सी वस्तुओं में प्रत्येक का बोध हो। जैसे- प्रत्येक, हर एक, हर तीसरा। प्रत्येक पुरुष विद्वान् नहीं हो सकता। हर एक को दो आम दो। हर तीसरे दिन हिन्दी-व्याकरण पढ़ा करो।
गणनावाचक शब्द तथा संज्ञा भी दुहराये जाने पर कई बार प्रत्येक बोधक विशेषण का अर्थ देती है। जैसे-एक-एक बालक को दो-दो गेंद दे दो! घर-घर मंगल मोद बढ़े।
3. परिमाणवाचक विशेषण
जिस विशेषण से किसी वस्तु के माप-तोल या परिमाण का पता लगे, वह परिमाणवाचक विशेषण कहलाता है। जैसे-दो गज कपड़ा, दो सेर दूध, मन भर घी।
परिमाणवाचक विशेषण के भी दो भेद हैं। जिससे किसी निश्चित परिमाण का पता लगे उसे निश्चित परिमाणवाचक तथा जिससे किसी निश्चित परिमाण का पता न लगे अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं।
जैसे--(निश्चित परिमाणवाचक) दो मन दूध,
(अनिश्चित परिमाणवाचक) बहुत दूध।
सब, बहुत, थोड़ा, अधिक, कम, सारा, कुछ इत्यादि विशेषण अनिश्चित परिमाणवाचक भी हैं और अनिश्चित संख्यावाचक भी जब वे एकवचन संजा के साथ आते हैं तब अनिश्चित परिणामवाचक होते हैं और जब बहुवचन संख्या के साथ आते हैं तब अनिश्चित संख्यावाचक होते हैं। अनिश्चित परिमाणवाचक तथा अनिश्चित संख्यावाचक विशेषणों में दूसरा भेद यह है कि जब वस्तु के साथ आयें जो गिनी न जा सकें तब अनिश्चित संख्यावाचक होंगे और जब ऐसी वस्तु के साथ आयें जो गिनी न जा सकें अपितु तोली या मापी जा सके तब अनिश्चित परिमाणवाचक होंगे।
प्रान्त-भर के सारे नगरों में हड़ताल मनाई गई', 'सारा नगर खूब सजाया गया' इन दो वाक्यों से अनिश्चित संख्यावाचक तथा अनिश्चित परिमाणवाचक का भेद स्पष्ट हो जायेगा। पहले वाक्य में 'सारे' पद अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण हैं क्योंकि यह बहुवचन संज्ञा के साथ प्रयुक्त हुआ है। चालीस-पचास जितने नगर हैं, उसकी गिनती हो सकती है। दूसरे वाक्य में 'सारा' पद अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण है। क्योंकि वह एकवचन संज्ञा के साथ प्रयुक्त हुआ है। ऐसे ही सब आदमी, कुछ फल, बहुत पुस्तकें, थोड़े कपड़े में सब, कुछ, बहुत, थोड़े, अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण हैं तथा थोड़ा पानी, अधिक मक्खन, कुछ कपड़ा, सब धन, से थोड़ा अधिक, कुछ, सब, निश्चित परिमाणवाचक हैं।
अल्प' 'किचित्' और 'जरा' आदि केवल परिमाणवाचक विशेषण हैं, संख्यावाचक नहीं।
अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण परिमाणवाचक संज्ञाओं में 'औं' जोड़ने अथवा दो निश्चित संख्यावाचक विशेषणों के इकट्ठे आने से भी बनते हैं। जैसे-(सेर-ओं)-सेरों दूध, दो चार सेर दूध।
दो परिमाणवाचक विशेषण मिल कर भी आते हैं, जैसे-थोड़ा बहुत लाभ तो हर व्यवसाय में होता ही है। बहुत अधिक, थोड़ा; आदि के साथ 'सा' प्रत्यय निश्चय के अर्थ में लगाया जाता है; जैसे-जरा सो तो पूँजी है। थोड़ी सी कमाई में क्या गुजर हो सकती है।
निश्चित परिमाणवाचक विशेषण बनाने के लिए परिमाणवाचक छन्द के निश्चित संख्यावाचक विशेषण का प्रयोग किया जाता है, जैसे-चार सेर घी दो मन दूध। एक अर्थ में परिमाणवाचक के साथ 'भर' प्रत्यय भी लगता है
जैसे-गज भर एक गज, सेर भर-एक सेर।
4. निर्देशक या सार्वनामिक विशेषण
जिस विशेषण से किसी ओर निर्देश या संकेत किया जाता है ठसे निर्देशक विशेषण कहते हैं। निर्देश'यह', 'वह' आदि सर्वनाम शब्दों से ही किया जाता है, इसलिए निर्देशक विशेषण को सार्वनामिक विशेषण भी कहा जाता है। वह बन्दर बैठा है, 'यह पुस्तक पढ़ी है'; आदि वाक्यों में 'वह' और 'यह' निर्देशक विशेषण है', क्योंकि इन शब्दों से 'बन्दर ' और ''पुस्तक' की ओर इशारा पाया जाता है।
सर्वनाम शब्द जब अकेले प्रयुक्त हों तो वह सर्वनाम होते हैं और जब किसी संज्ञा से पहले हों तो विशेषण होते हैं। जैसे-'मैं आज देवदत्त के घर गया था पर वह वहाँ मिला नहीं' इस वाक्य में 'वह' सर्वनाम है क्योंकि वह 'देवदत्त' की जगह आया है। वह बन्दर है' इस वाक्य में 'वह' विशेषण है क्योंकि वह संज्ञा (बन्दर) से पहले आया है और बन्दर की ओर निर्देश करता है।
कई सार्वनामिक विशेषण ऐसे हैं जिनका रूप मूल सर्वनाम में जैसा रहता है:
जैसे-यह, वह; और कोई ऐसे हैं जो मूल सर्वनामों में प्रत्यय लगाने से बनते हैं:--
जैसे-ऐसे पुत्र ढूँढ़े नहीं मिलेंगे। जैसा देश वैसा भेष ।
कुछ एक सार्वनामिक विशेषण नीचे दिये जाते हैं --
यह इस ऐसा इतना इस सरीखा
वह उस वैसा उतना उस सरीखा
सो तिस तैसा
जो जिस जैसा जितना
कौन किस कैसा कितना
कोई सा
मुझसा मुझ सरीखा
तुझसा तुझ सरीखा
विशेषणों की तुलना (Degrees of Comparison)
वस्तु के गुण के मिलान को तुलना कहते हैं। तुलना के विचार से विशेषणों की तीन अवस्थाएँ होती हैं-मूल (Positive), उत्तर (Comparative), उत्तम (Superlative)|
मूलावस्था में तुलना नहीं होती, जैसे-मोहन परिश्रमी है।
उत्तरावस्था में दो की तुलना करके एक की अधिकता या न्यूनता दिखाई जाती है।
जैसे-मोहन श्याम से छोटा है,
मोहन श्याम से अधिक चालाक है।
उत्तमावस्था में दो अधिक वस्तुओं की तुलना करके एक को सबसे बढ़कर अथवा सबसे घटकर बताया जाता है।
जैसे-मोहन अपनी श्रेणी में सबसे छोटा है।
विष्णु इन सबसे चालाक है।
जिस संज्ञा या सर्वनाम से तुलना की जाती है, उसके आगे 'से' (अपादान कारक की विभक्ति) लगाते हैं अथवा ' की अपेक्षा' या ' बनिस्वत' का प्रयोग किया जाता है। विशेषण से पूर्व कभी-कभी 'अधिक','कम', 'बढ़कर', 'उत्तर कर', भी लगा देते हैं, जैसे-शिष्य गुरु से तेज (या अधिक तेज) निकला। देवदत्त उससे भी बढ़कर चालाक है।
सर्वोत्तम सूचित करने के लिए विशेषण के पहले 'सबसे' लगाते हैं- वह सबसे अधिक मूर्ख है।
उत्तरावस्था दिखाने के लिए कभी-कभी विशेषणों की द्विरुक्ति करते हैं और द्विरुक्ति में कई बार पहले शब्द के आगे 'से' भी लगाया जाता है; कहीं-कहीं, 'बहुत ही', 'अत्यन्त' आदि शब्द भी लगाये जाते हैं। जैसे-अच्छे-अच्छे वस्त्र, अच्छे से अच्छे वस्त्र, बहुत ही अच्छे वस्त्र। संस्कृत शब्दों में उत्तरावस्था के लिए 'तर' और उत्तमावस्था के लिए 'तम' लगते हैं। जैसे-ज्येष्ठ, श्रेष्ठतर, श्रेष्ठतम, प्रिय, प्रियतर, प्रियतम।
विशेषणों के रूपान्तर
विशेषणों के वही लिग वचन और कारक होते हैं जो उसके विशेष्य के हों। विशेष्यों के लिंग और कारक के कारण, आकारान्त विशेषणों में ही कुछ परिवर्तन होता है, अन्य विशेषणों में नहीं। जैसे-लाल कपड़े, लाल धोती, लाल धोतियाँ, लाल कपड़े से, लाल कपड़ों से। काला कपड़ा, काले कपड़े; काली धोती, काली धोतियाँ।
पुल्लिग विशेष्यों के पूर्व कर्त्ताकारक के एकवचन को छोड़कर शेष सब स्थानों में अकारान्त विशेषणों के अन्तिम 'आ' को 'ए' हो जाता है। जैसे-पीला वस्त्र, पीले वस्त्र, काले साँप से, 'ओ नीले घोड़े के सवार !'
आकारान्त विशेषण स्त्रीलिंग विशेष्य के साथ ईकारान्त हो जाते हैं। जैसे-काली धोती, पतली साड़ियां ।
विशेषण के रूप में प्रयुक्त सर्वनामों में वही रूपान्तर होता है जो उनमें सर्वलासों के रूप में प्रयुक्त होने पर होता है। जैसे-यह घोड़ा, वे घोड़े: इस लड़के ने, इन लड़कियों ने।
हिन्दी में संस्कृत विशेषण का रूप विशेष्य के लिंग के अनुसार बदल भी जाता है और नहीं भी बदलता। दोनों ही रूप हिन्दी में प्रचलित है। जैसे-'सुशील कन्या' भी लिखा जाता है और 'सुशीला' भी पर कुछ संस्कृत शब्द ऐसे हैं, जो स्त्रीलिंग विशेष्यों के साथ पल्लिग रूप में नहीं लिखे जाते। जैसे-'विदुषी कन्या' और 'श्रीमती महारानी, को 'विद्वान कन्या' और 'श्रीमान् महारानी' नहीं लिखा जाता।
विशेषणों की विशेष बातें
(1) पृथकता या अधिकता दिखाने के लिए कहीं-कहीं विशेषणों को दुहरा दिया जाता है। जैसे-छोटे-छोटे फल, लाल-लालआँखें।
(2) विशेषण का भी विशेषण होता है, जैसे-थोड़ी फटी धोती, बड़ा सुन्दर फूल।
(3) गुणवाचक और परिमाणवाचक विशेषण जब क्रिया की विशेषता दिखाते हैं तब क्रिया विशेषण हो जाते हैं। जैसे-बहुत खा गया, घी थोड़ा है।
(4) विशेषण शब्दों के साथ जब विशेष्य नहीं आता और वे स्वयं विशेष्य बन जाते हैं, तब उनके साथ विभक्तियाँ लगती हैं; जैसे-दोनों को दान दो।
विशेषण-भेद की तालिका
विशेषण
गुणवाचक परिमाणवाचक सार्वनामिक संख्यावाचक
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निश्चित अनिश्चित निश्चित अनिश्चित प्रत्येकबोधक
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गणनावाचक क्रमवाचक आवृत्ति वाचक समुदायवाचक
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