Friday, March 20, 2020

चौथा अध्याय -2 सर्वनामों के रूपान्तर /Praveshika/visharadh poorvardh


                                                चौथा अध्याय -2

     सर्वनामों के रूपान्तर 

           वचन और कारक के कारण संज्ञाओं की तरह सर्वनामों के भी रूपान्तर होते हैं, परन्तु लिंग के कारण इनका रूप नहीं बदलता। सर्वनाम का सम्बोधन कारक नहीं होता, क्योंकि किसी को पुकारते समय हम उसका नाम या उपनाम लेकर ही पुकारते हैं, सर्वनाम द्वारा कभी किसी को नहीं पुकारते। कर्त्ता कारक के विभक्ति-रहित बहुवचन में मैं, तु, यह, वह, के रूप क्रम में हम, तुम, ये, वे हो जाते हैं। शेष सर्वनाम जैसे के तैसे रहते हैं। कर्ता कारक तथा संबंध कारक को छोड़कर शेष कारकों के एकवचन में 'मैं' और 'तू' का रूप क्रमश: 'मुझे' और 'तुम' तथा सम्बन्ध को छोड़कर शेष कारकों के बहुवचन में 'हम' और 'तुम' हो जाता है। सम्बन्ध कारक में दोनों वचनों में 'मै' का रूप क्रमश: 'मैं' और 'हम' तथा 'तू' का रूप क्रमश: 'तू' और 'तुम्हारा' हो जाता है और 'का, के, की' के स्थान पर 'रा' 'रे', री' विभक्तियाँ जुड़ती हैं। यह, वह, कौन, जो, सो कोई; के साथ विभक्तियाँ जुड़ने पर एकवचन में क्रम से इस, उस, किस, जिस, तिस, किसी और बहुवचन में इन उन, किन, जिन, तिन, किन रूप हो जाते हैं। विभक्ति-सहित कर्ता कारक के बहुवचन में इनके दो-दो रूप विकल्प से होते हैं। जैसे-इनने, इन्होंने उनसे, उन्होंने, किनने, किन्होंने, जिनने, जिन्होंने, तिनने, तिन्होंने। अन्तिम 'कोई' शब्द का विभक्ति रहित बहुवचन नहीं बनता, बहुवचन में केवल उसकी द्विरुक्ति ही हो जाती है। जैसे-कोई कोई कहते हैं। कई बार बिना द्विरुक्ति के भी 'कोई' शब्द बहुवचन में बिना किसी रूप-परिवर्तन के प्रयुक्त होता है। जैसे-'आज हमारे यहाँ कोई आये हैं।

        मैं तू, यह, वह, कौन और जो सर्वनामों के कर्म और सम्प्रदान कारकों में 'को' की जगह एकवचन में 'ए' और बहुवचन में 'एँ' विभक्तियाँ भी लगती हैं। जैसे-मुझको या मुझे, हमको या हमें आदि। पुरुषवाचक सर्वनामों के विभक्ति रहित कर्ता कारक के एकवचन और संबंध कारक को छोड़कर शेष कारकों में निश्चय के लिये एकवचन में 'इ' और बहुवचन में 'ई' लगाते हैं। जैसे-उसी को, उन्हीं का, तुम्हीं से।

       हम पहले बता चुके हैं कि 'आप' शब्द आदरसूचक और निजवाचक है। आदरसूचक 'आप' शब्द के साथ विभक्तियाँ आती हैं और विभक्ति से पहले उसका रूप नहीं बदलता। परन्तु निजवाचक 'आप' शब्द एकवचन में ही रहता है। बहुवचन संज्ञा और सर्वनाम के साथ भी यह एकवचन में ही रहता है। इसका विकृत रूप 'अपना' है, जो सम्बन्ध कारक में आता है। कर्ता और सम्बन्ध कारक को छोड़ कर शेष कारकों में इस विकृत रूप-अपना के साथ ही सब विभक्तियाँ लगाई जाती हैं। जैसे-अपने से, अपने को।

     कभी-कभी 'अपना' और 'आप' दोनों को मिलाकर भी प्रयोग होता है, तब विभक्ति 'आप' के बाद लगती है। जैसे-अपने आपको, अपने आपसे। जब संज्ञा के समान 'अपना' स्वजनों अथवा अपनी वस्तुओं के अर्थ में आता है तब उसके रूप अन्य आकारान्त संज्ञाओं के समान दोनों वचनों में होते हैं। जैसे-अपने माता पिता की सेवा करो, 'घिरी घटाएँ देख घड़ा मत अपना फोड़ो', अपने लिए मैं क्या लिखू?

     आप शब्द का एक और रूप 'आपस' है। इसका प्रयोग संज्ञाओं के समान होता है, जैसे-आपस में मत लड़ो, आपस की फूट बुरी होती है।

     'सब', 'कुछ' और 'क्या' शब्दों का रूपान्तर नहीं होता। 'सब' शब्द के साथ सम विभक्तियाँ लगती हैं। 'कुछ' और 'क्या' के साथ 'से' और 'का' को छोड़ और विभक्तियाँ नहीं आतीं। जैसे-क्या से क्या, कुछ का कुछ। कई वैयाकरण 'काहे को', 'काहे से' आदि को 'क्या' का रूपान्तर लिखते हैं; परन्तु ये रूप अब प्रयोग में नहीं आते।


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                     सर्वनाम की रूपावली
                  पुरुषवाचक (उत्तम पुरुष)-मैं 

    कर्ता                    मैं, मैंने                    हम, हमने
    कर्म                     मुझे, मुझको            हमें, हमको
    करण                   मुझसे                    हमसे
    संप्रदान                मुझे, मुझको            हमें, हमको
    अपादान               मुझसे                    हमसे
    सम्बन्ध                मेरा, रे, री               हमारा, रे, री
    अधिकरण            मुझमें, मुझ पर         हममें, हम पर

                          पुरुषवाचक (मध्यम पुरुष)-तू 

    कर्ता              तू, तूने                 तुम, तुमने
    कर्म               तुझे, तुमको          तुम्हें, तुमको
    करण             तुझसे                  तुझसे
    संप्रदान          तुझे, तुझको          तुम्हें, तुमको
    अपादान         तुझसे                  तुमसे
    सम्बन्ध           तेरा, रे, री            तुम्हारा, री, रे
   अधिकरण        तुममें, तुझमें        तुझमें, तुझपर

      पुरुषवाचक (अन्य पुरुष) और निश्चयवाचक-वह

     कर्ता           वह, उसने             वे, उनने, उन्होंने
     कर्म            उसे, उसको           उन्हें, उनको
     करण          उससे                   उनसे
     संप्रदान       उसे, उसको            उन्हें, उनको
     अपादान      उससे                   उनसे
     सम्बन्ध        उसका, के, की      उनका, के, की
     अधिकरण    उसमें, उसपर        उनमें, उनपर



             पुरुषवाचक (अन्य पुरुष) और निश्चयवाचक-यह
  कर्ता           यह, इसने           ये, इनने, इन्होंने
  कर्म            इसे, इसको          इनको
  करण          इससे                  इनसे
  संप्रदान       इसे, इसको          इन्हें, इनको
  अपादान      इससे                  इनमें
  सम्बन्ध        इसका, के, की      इनका, के, की
  अधिकरण    इसमें, इस पर       इनमें, इन पर

पुरुषवाचक ( अन्य पुरुष) और निश्चयवाचक-यह
     
       कर्ता          आप, आपने
       कर्म           आपको
       करण         आपसे
       संप्रदान      आपको
      अपादान      आपसे
       सम्बन्ध      आपका, के, की
      अधिकरण    आपमें, आपपर

ऊपर लिखे शब्दों के बहुवचन के पीछे 'लोग' लगा कर भी बोलते हैं।
जैसे-तुम लोग, आप लोग, हम लोग, वे लोग, ये लोग आदि।

                         निजवाचक-आप

       कर्ता               आप
       कर्म                अपने को
      करण              अपने से
      सम्प्रदान          अपने को
      अपादान          आप से
      सम्बन्ध            अपना, ने, नी   
     अधिकरण         अपने में, अपने पर


                        अनिश्चयवाचक-कोई 

          कर्ता           कोई, किसी ने
          कर्म            किसी को
          करण          किसी से
          सम्प्रदान      किसी को
          अपादान      किसी से
          सम्बन्ध        किसी का, के, की
          अधिकरण    किसी में, किसी पर

     कोई कोई इसके सविभक्तिक बहुवचन का रूप 'किन्हीं' लिखते हैं, वे विभक्तियाँ भी इसी रूप के आगे लगाते हैं। किन्हीं ने, किन्हीं को, किन्हीं से।

                   सम्बन्धवाचक जो-जो ( जौन ) 

       कर्ता        जो (जौन), जिसने   जो (जौ), जिनने, जिन्होंने
       कर्म         जिसे, जिसको        जिन्हें, जिनको
       करण       जिससे                  जिनसे
      सम्प्रदान    जिसे, जिसको        जिन्हें, जिनको
      अपादान    जिससे                  जिनसे     
      सम्बन्ध      जिसका, के, की      जिनका, के, की
     अधिकरण   जिसमें, जिस पर     जिनमें, जिन पर

                       सम्बन्धवाचक-सो (तीन)

   कर्ता          सो (तीन), तिनने      सो (तौन), तिनने, तिन्होंने
   कर्म       तिसे, तिसको         तिन्हें ,तिनको
   करण          तिससे                  तिनसे         
   सम्प्रदान      तिसे, तिसको         तिन्हें ,तिनको
   अपादान       तिससे                 तिनसे
   सम्बन्ध         तिसका, के, की    तिनका, के, की
   अधिकरण     तिसमें , तिस पर   तिनमें , तिन पर


                        प्रश्नवाचक-कौन

    कर्ता          कौन, किसने          कौन, किनने, किन्होंने
    कर्म           किसको, किसे        किनको, किन्हें
    करण         किससे                  किनसे
    सम्प्रदान      किसको, किसे        किनको, किन्हें
    अपादान      किससे                  किनसे
     सम्बन्ध       किसका, के, की      किनका, के, की
     अधिकरण   किस में, किस पर    किन में, किन पर

इसी प्रकार 'सब' और 'सभी' के रूप जानो।

धन्यवाद!!!!


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