रूपरेखा:
(i) प्रस्तावना
(ii) प्राचीनकाल की शिक्षा प्रणाली
(iii) मुगल-काल में शिक्षा प्रणाली
(iv) अंग्रेजी-शासन में शिक्षा-प्रणाली
(v) राजनैतिक चेतना
(vi) शिक्षाशास्त्रियों के विचार
(vii) उपसंहार
(i)प्रस्तावना :
भारत सारे संसार में ज्ञान और विद्या का केन्द्र माना जाता था । दूर-दूर के देशों से लोग विद्या प्राप्त करने के लिए भारत आया करते थे और आज भी आया करते हैं। मौर्यकाल में तक्षशिला मनुष्य में छिपी हुई पूर्णता को प्रत्यक्ष करने का काम शिक्षा निरन्तर कर रही है। विश्वविद्यालय, गुप्त-काल में नालन्दा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय की ख्याति देश-विदेश में थी। इस प्रकार
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(ii) प्राचीनकाल की शिक्षा प्रणाली :
शकों और हूणों के आक्रमणों से शिक्षा का हास हुआ । उसके बाद
विजेता मुसलमानों ने अनेको पुस्तकालयों को जलाकर राख कर दिया । इसी समय गुरुकुल शिक्षा का आरंभ हुआ। इस शिक्षा-प्रणाली में गुरु का स्थान ऊँचा था और विद्यार्थीगण उनके आश्रम में निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करते थे। वहाँ धर्म ग्रन्थों, वेदों, ज्योतिष आदि विषयों की शिक्षा दी जाती थी।
(ii) मुगल-काल में शिक्षा प्रणाली :
मुगल-काल में शिक्षा प्रणाली में प्रगति नहीं हुई थी । शिक्षा धर्मग्रंथों तक ही सीमित रही । पुस्तकों का मिलना सुलभ नहीं था, अतः पढ़नेवालों की संख्या भी बहुत कम होती थी।
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(iv) अंग्रेज़ी-शासन में शिक्षा प्रणाली :
अंग्रेजों के काल में शिक्षा का एक नया अध्याय शुरू हुआ । उनका
उद्देश्य भारतीयों को अपनी भाषा सिखाना मात्र था, जो अंग्रेज़ी पढ़ते थे, उन्हें सरकारी नौकरी आसानी से मिल जाती थी। इस कारण अंग्रेज़ी का प्रचार तेज़ी से होने लगा। सरकारी नौकरी प्राप्त करनेवाले भारतीय यह भूल जाते थे कि शासक भारतीयों को सभ्य एवं बर्बर समझते थे और इंग्लैंड के इतिहास को उज्जवल ।
(v) राजनैतिक चेतना :
ऐसी स्थिति में भारतीय समाज वेत्ताओं तथा नेताओं का ध्यान इस राष्ट्र-विरोधी शिक्षा के दोषों की ओर गया । स्वामी श्रद्धानन्द ने सन् 1890 के आस-पास गुरुकुल कागंडी की स्थापना की । इसमें
विद्यार्थियों को सभी विषय हिन्दी में पढ़ाए जाते थे । साथ ही संस्कृत का अध्ययन भी अनिवार्य कर दिया गया था।
(vi) शिक्षाशास्त्रियों के विचार:
बेरोज़गारी के फैलने के डर से महात्मा गाँधी ने पुस्तकीय शिक्षा के साथ-साथ उद्योग-धंधे और कला-कौशल सिखाये जाने पर जोर दिया, जिससे विद्यार्थी अपने पैरों पर खड़ा रह सके। सन् 1979 में सरकार ने शिक्षा में आमूल परिवर्तन लाने के उद्देश्य से 'राष्ट्रीय शिक्षा नीति' स्वीकार की । इस नीति की थोड़ी उल्लेखनीय विशेषताएँ हैं-
(i) 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देना ।
(ii) शिक्षा के द्वारा उनके व्यक्तित्व और चरित्र का विकास करना । (ii) प्राथमिक स्तर पर क्षेत्रीय भाषा के माध्यम से शिक्षा देना ।
(iv) माध्यमिक स्तर पर उद्योग-धंधों तथा शिल्पों की शिक्षा अवश्य
देना आदि ।
(vii) उपसंहार :
अब सरकार पंचवर्षीय योजनाओं के द्वारा शिक्षा-प्रणाली के सुधार की ओर काफ़ी ध्यान दे रही है। सरकार का लक्ष्य है कि सारे बच्चे विद्यालय जाएँ और प्रौढ़ भी साक्षर हों । आशा है कि यह नयी शिक्षा प्रणाली देश के लिए लाभकारी सिद्ध होगी।
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