हिन्दी शब्द-भण्डार में संस्कृत के अतिरिक्त अन्य देशी और विदेशी शब्दों का समागम हुआ है -
किसी भाषा में प्रयुक्त होनेवाले समस्त शब्दों के समूह को उस भाषा का शब्द-समूह कहते हैं। किसी भाषा के पूरे शब्द-समूह का सही अनुमान लगाना संभव नहीं है । फिर भी उस भाषा के शब्द कोशों के आधार पर शब्दों की संख्या का अनुमान लगाया जा सकता है । इस आधार पर हिन्दी में डेढ़ लाख से ज्यादा शब्दों का होने का अनुमान लगाया गया है।
इनके अलावा सात लाख के करीब पारिभाषिक एवं तकनीकी शब्द बने हैं।
हिन्दी शब्द-समूह के शब्दों को चार वर्गों में रखा जाता है।
1. तत्सम,2. तद्भव,3.विदेशी,4. देशज ।
1. तत्सम शब्द :-'तत्सम' का अर्थ 'उसके समान' है। जब संस्कृत के शब्द बिना किसी परिवर्तन के, उसी रूप में प्रयुक्त होते हैं उन शब्दों को तत्सम कहते हैं। भारतीय भाषाओं में संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग प्रचुर मात्रा में देखने को मिलता है।
आदि।
हिन्दी में प्रचलित कुछ तत्सम शब्द :- करुणा, माया, दया, अग्नि, उत्साह, विद्या, वृक्ष, सूर्य, नयन, सहस्त्र
2. तद्भव शब्द :- तद्भव का अर्थ है, उससे उत्पन्न, अर्थात संस्कृत से उत्पन्न । जो संस्कृत शब्द कुछ परिवर्तन के साथ हिन्दी में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें तद्भव शब्द कहते हैं । जैसे :
जिह्वा से जीभ, हस्त से हाथ, कृष्ण से कन्हैया, सर्प से साँप, कर्ण से कान, कर्म से काम, माता से माँ, त्वम से तुम, सप्त से सात, दुग्ध से दूध, मस्तक से माथा आदि ।
तद्भव शब्द बनते समय कई परिवर्तनों से गुज़रना पड़ता है।
जैसे :- कर्म - कर्म - कर्म - काम
सर्प-सर्प-सर्प-सांप
अग्रे-अग्गे-आगे
मस्तक-माथा-माथा
अग्नि-अग्नि- आग
3. विदेशी शब्द :- भारत में अनेक विदेशियों का आक्रमण और आगमन हुआ। इसी वजह से भारतीय भाषाओं में अनेक विदेशी शब्दों का प्रयोग होने लगा। विदेशियों के संपर्क के कारण हिन्दी शब्द-भंडार में अनेक विदेशी शब्द आ गये। अरबी, फारसी, पुर्तगाली, फ्रांसीसी और अंग्रेज़ी की अनेक ध्वनियों और शब्दों का प्रयोग हिन्दी में होने लगा। जैसे
फारसी :- कमर, किनारा, खाक, ज़मीन बाज़ार आदि ।
अरबी :- कागज़, खून, तकदीर, किताब, कत्ल आदि ।
पुर्तगाली कमीज़, कमरा, कप्तान, अलमारी आदि । - पेंसिल, बटन, फीस, कमेटी, क्रिकेट, फुटबॉल, पीज़ा, ऑवन आदि ।
अंग्रेजी: स्कूल, स्टेशन, 4. देशज शब्द:- जिन शब्दों की व्युत्पत्ति का पता न हो और जो किसी क्षेत्र की बोलियों में प्रयुक्त हो, ऐसे शब्दों को उसी क्षेत्र में जन्म हुआ मानते हैं और इन्हें देशज शब्द कहते हैं।
जैसे :- खिड़की, घर, पगड़ी, गाड़ी, पेट आदि ।
इनके अलावा अन्य कुछ स्रोतों से भी नये शब्द बनते हैं :
1. दो शब्दों के मेल से कुछ नये शब्द बन जाते हैं : विद्या + आलय = विद्यालय, रेलगाड़ी = रेलगाड़ी, रथोत्सव = रथोत्सव ।
2. व्यक्तिवाचक संज्ञाओं से भी कुछ शब्द बनते हैं। 'सैंडो बनियान' में सैंडो एक पहलवान का नाम है। हरिश्चन्द्र (सत्यवादी), नारद (कलह करनेवाला),
सावित्री (पतिव्रता), चीनी (चीन का), बनारस (बनारस का) आदि ।
3.ध्वनि के आधार पर शब्द:
भिनभिनाहट - (मक्खियों की आवाज़), सरसराहट (कपड़ों से आवाज़), हिनहिनाहट - (घोड़े का
4. उपसर्ग या प्रत्यय लगाकर नये शब्दों का निर्माण करते हैं :
जैसे :- अथक, कारण, अकाल, अमर
अनजान, अनबन, अनमेल
दुर्दिन, दुर्भिक्ष, दुराशा, दुर्गा
मानवता, सुंदरता, देवता
भुलक्कड़, घुमक्कड़, पियक्कड़ 4.
दिखावा, बुलावा, चलाऊ, कमाऊ
जन साधारण की भाषा में तद्भव शब्दों की अधिकता होती है। शिक्षित और शिष्ट वर्ग की भाषा में तत्सम शब्दों का प्रयोग अधिक होता है । साहित्य रचना में भी तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग होता है। बोलचाल की भाषा
में देशज और विदेशी शब्दों का अधिक उपयोग होता है।
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