Monday, January 25, 2021

स्कन्दगुप्त नाटक /सारांश/जयशंकर प्रसाद/Skandagupta story


                                               स्कन्दगुप्त 

                                                  नाटक 

                                        लेखक : जयशंकर प्रसाद

                                                 सारांश 

         स्कन्दगुप्त नाटक का सारांश :-



                                                (प्रथम अंक)


                भारत के इतिहास में गुप्तों का शासन काल स्वर्ण काल माना जाता है। इसी वंश के राजा कुमार गुप्त थे कुमार गुप्त परम वीर थे। उन्होंने कई युद्ध किये और विजयी बने। कुमार गुप्त की रानी का नाम देवकी है। इन दोनों का पुत्र स्कन्दगुप्त है। कुमार गुप्त की दूसरी रानी का नाम अनन्त देवी है वह यौवना है। इन दोनों का पुत्र पुरगुप्त है। कुमार गुप्त वृद्ध होने के बाद भी वासना के लोलुप रहते हैं। वे अनन्त देवी की बातें मानते हैं। उसका गुलाम बनकर रहते हैं।

      दृश्य 1

                     उज्जयिनी नगर में गुप्त साम्राज्य की सेना की पड़ाव में नाटक आरंभ होता है। युवराज स्कन्दगुप्त अकेले टहल रहे है। स्कन्दगुप्त को राजा बनने की इच्छा नहीं है। वह अपने को मात्र एक सैनिक समझता है। वह अधिकार से दूर रहना चाहता है। वह अधिकार सुख को मादक और सारहीन U njo समझता है। इसी समय वृद्ध सेनापति पूर्णदत्त वहाँ आता है। युवराज स्कन्द अधिकारों से दूर रहते हैं- यह पर्णदत्त को पसन्द नहीं है। इससे वह दुखी है। पर्णदत्त युवराज से कहता है कि महाबलाधिकृत वीरसेन मर गये हैं और प्रौढ सम्राट कुमारगुप्त विलास में डूबे रहते हैं। इस संदर्भ में प्रजा की रक्षा करना आपका कर्तव्य है। इसलिए अधिकारों से उदासीन रहना आपको शोभा नहीं देता।

                   स्कन्दगुप्त से पर्णदत्त आगे कहता है कि हम अभी पुष्यमित्रों से लड़ रहे हैं। इसके बाद यूनानियों से लड़ना है। कपिशा नगर के श्वेत हूण भी आक्रमण करने आ रहे हैं। इस विकट परिस्थिति में आपको अधिकारों से उदासीन देखकर दिल घबराता है। इसी समय पर्णदत्त का पुत्र चक्रपालित वहाँ आता है। वह गुप्त कुल के उत्तराधिकार नियम को अव्यवस्थित बताता है। इस पर पर्णदत्त उसे डाँटता है। तब मालव देश से दूत आता है और कहता है हमारे महाराज विश्वशर्मा मर गये हैं। उनका बेटा बन्धुवर्मा नये महाराज बन गये हैं। श्वेत हूण मालव पर आक्रमण करनेवाले हैं। मालव सेना हूणों से लड़ने के लिए तैयार रहती है। फिर भी हमारे महाराज आप की सहायता मांग रहे हैं।

                  मालव और गुप्त साम्राज्य में एक संधि है। उसके अनुसार मालव की रक्षा करना गुप्त साम्राज्य का दायित्व है। यह सोचकर स्कन्द गुप्त पर्णदत्त से कहता है कि शरणागतों की रक्षा करना क्षत्रिय थर्म है। इसलिए मैं बंधुवर्मा की सहायता के लिए जाता है और आप पुष्यमित्रों से युद्ध कीजिए। सब यह सुनकर प्रसन्न होते हैं। चक्रपालित भी स्कन्द के साथ जाना चाहता है मगर स्कन्द मना करके अकेले जाता है।

             दृश्य - 2

                  कुसुमपुर में महराज कुमारगुप्त अपने राजमहल में अपने मंत्रियों के साथ आलोचना कर रहे हैं। वहाँ धातुसेन नामक व्यक्ति भी मौजूद हैं। वह सिंहल का राजकुमार है। उसका दूसरा नाम कुमारदास है। वह पर्यटक के रूप में भारत आया है। वह हँसोड है। वह सम्राट कुमारगुप्त का आत्माय बन जाता है। दोनों है हँसकर बातें करने के आदी हैं। धातुसेन का व्यंग्य कुमारगुप्त को रुचता हैं। धातुसेन सम्राट की जीतों की प्रशंसा कर रहा है। मंत्री पृथ्वीसेन और सेनापति भटार्क भी वहाँ विद्यमान हैं। विदूषक मुद्गल भी आ पहुँचता है। वह पेटू है। इस संबंध में बात करके सब को हँसाता है।

              सेनापति भटार्क कहता है कि सौराष्ट्र की गति विधि देखाने के लिए एक सुयोग्य सेनापति की आवश्यकता है। मंत्री पृथ्वीसेन समझ जाता है कि भटार्क सौराष्ट्र जाना चाहता है। इसपर वह कहता है कि अब इसकी आवश्यकता नहीं है। जरूरत पड़ने पर आपको वहाँ भेजा जाएगा। सम्राट भी यही कहते हैं। इस समय धातुसेन और मुदगल हास्य भाव से कुछ कहते हैं। सब हँसते है। एक भी शब्द भटार्क के बारे में नहीं है। मगर वह मूर्ख समझ लेता है कि सब उसे असमर्थ समझकर हँस रहे हैं। फिर पृथ्वीसेन और भटार्क वहाँ से चले जाते हैं ।

                 मुद्गल सम्राट से कहता है कि युवराज स्कन्दगुप्त की कल्याण कामना के लिए महारानी देवकी पूजा कर रही हैं। आपको भी शामिल होने के लिए बुला रही हैं। मगर सम्राट कहते है कि मैं आज पारसीक नर्तकियों का नाच देखनेवाला हूँ। कल आऊंगा । मुद्गल चला जाता है। इसी संदर्भ में सम्राट की दूसरी रानी अनन्तदेवी पारसीक नर्तकियों के साथ आती है। नाच-गान होता है।

           दृश्य - 3

            कश्मीर में मातृगुप्त नामक एक कवि है। वह मालिनी नामक लड़की ने प्यार करता है। वह लड़की मातृगुप्त को धोखा देती है। इसलिए उसका जीवन भार स्वरूप हो जाता है। इसपर मातृगुप्त काशमीर छोड़कर कुसुमपुर आता है। मातृगुप्त ही कवि कालिदास है।

             कुसुमपुर के पथ में जब मातृगुप्त जा रहा है तब मुद्गल उससे मिलता है। मुद्गल कवि मातृगुप्त से कहता है कि मैं तुझे युवराज स्कन्द के पास रखवाऊँगा। अच्छा वेतन मिलेगा। इसपर मातृगुप्त बहुत खुश होता है। वह मुद्गल से कहता है कि काशमीर मंडल में हणों का आतंक है। कविता सुननेवाला कोई नहीं है। इसलिए में काशमीर छोड़कर राजधानी कुसुमपुर आया। अब आपका कहना मानूंगा।

            मुद्गल के जाने के बाद मातृगुप्त प्यार की पुरानी यादों में खोकर गीत गाता है। उसमें अपना दुख व्यक्त करता है। धातुसेन छिपकर उसका गीत सुनता है। फिर प्रकट होकर मातृगुप्त की प्रशंसा करता है। धातुसेन कहता है कि मैं अपने एक मित्र को देखने आया हूँ। उसका नाम प्रख्यातकीर्ति है। वह महाबोधि विहार का श्रमण है। गुप्त साम्राज्य का वैभव भी देखता चाहता था। इसलिए यहाँ आया हूँ। अब जल्द चला जाऊँगा। वे दोनों सम्राट कुमार गुप्त और अनन्तदेवी के बारे में बात करते हैं। मातृगुप्त यह कहकर आश्चर्य प्रकट करता है कि सम्राट अपनी दूसरी पत्नी अनन्तदेवी के इशारे पर नाच रहे हैं।

            दृश्य - 4

            यह दृश्य अनन्तदेवी के प्रकोष्ठ में होता है। अनन्तदेवी अपनी सहचरी  जया के साथ बात करती है। वह भटार्क की प्रतीक्षा में है। इतने में गुप्त द्वार खुलता है और भटार्क प्रवेश करता है। दोनों मिलकर साम्राज्य और सम्राट के विरुद्ध षड्यन्त्र रचते हैं। अनन्तदेवी सम्राट को मार डालकर अपने पुत्र पुरगुप्त को राजा बनाना चाहती है। भटार्क इसमें उसकी मदद करने का वादा करता है। उसको सेनापति बनाकर सौराष्ट्र भेजा नहीं गया- इसे अपना अपमान मानकर भटार्क प्रतिशोध लेने के लिए अनन्त देवी की मदद करता है। अनन्तदेवी इस षड्यन्त्र में प्रपंचबुद्धि नामक कापालिक को भी मिलाना चाहती है। प्रपंचबुद्धि उसी समय वहाँ आता है। तीनों मिलकर सम्राट कुमारगुप्त की हत्या करने का षड्यन्त्र रचते हैं। फिर सब चले जाते हैं।

           दृश्य- 5

              यह दृश्य सम्राट कुमारगुप्त के अन्तःपुर के द्वार के बाहरी ओर होता है। शर्वानाग वहाँ पहरा देता है। शर्वनाग पहले राजविश्वासी था मगर अनन्तदेवी और भटार्क की बातों में आकर राजद्रोही बन जाता है। उसकी पत्नी रामा उसे हमेशा निकम्मा कहती रहती है । इसलिए वह किसी तरह संपत्ति प्राप्त करना चाहता है। इसलिए लोभ के कारण भटार्क की मदद करने को तैयार हो जाता है। अनन्तदेवी, भटार्क और पुरगुप्त तीनों सम्राट के कमरे में है। इतने में बाहर मंत्री पृथ्वीसेन, महादण्डनायक और महाप्रतिहार वहाँ आते हैं। 

             तीनों सैनिक से दरवाजा खोलने को कहते हैं। वह इनकार करता है। इतने में दरवाजा खुलता है। अन्दर से भटार्कऔर पुरगुप्त बाहर निकलते हैं। भटार्क कहता है कि सम्राट मर गये है। अब पुरगुप्त ही सम्राट है। पृथ्वीसेन इसका विरोध करता है और कहता है कि स्कन्दगुप्त ही सम्राट का उत्तराधिकारी है। भटार्क उन तीनों को बन्दी करना चाहता है। इसके मैत्री पहले वे तीनों आत्म हत्या करके मर जाते हैं।

          दृश्य-6

               मुद्गुल महादेवी देवकी की आज्ञा मानकर युवराज स्कन्द से मिलने के लिए अवन्ती जाता है। वहाँ युवराज नहीं है। वहाँ पर्णदत्त मुद्गल से कहता है कि किसी भी तरह सम्राट कुमारगुप्त के छोटे भाई गोविन्दगुप्त को ढूँढ निकालो। इसलिए वह गली में जा रहा है। तब मातृगुप्त से मिलता है। दोनों बातें करते रहते हैं। इतने में एक हूण वहाँ आता है। वह वहाँ के नागरिकों को तंग करता है। इसी समय वहाँ एक साधु आता है। वह हूण से लड़ता है और उसे वहाँ से भगाता है। वही गोविन्द गुप्त है। यह देखकर मुद्गल प्रसन्न होता है। 

         दृश्य- 7

               मालव राज्य का राजा बन्धुवर्मा है। उसकी पत्नी का नाम जयमाला है। देवसेना बंधुवर्मा की बहन और भीमव्मा उसका भाई है। उनके महल में एक धनवान की पुत्री रहती है। उसका नाम विजया है। वह रूपवती है। देवसेना को गाने का शौक है।

               हूण मालव पर आक्रमण करते हैं। बन्धुवर्मा और भीमवर्मा बड़ी वीरता से लड़ते हैं फिर भी हूणों को रोक नहीं पाते हैं। देवसेना और जयमाला को कोई भय नहीं है। वे मरने को तैयार रहती हैं मगर विजया अपने ऐश्वर्य को भोगना चाहती है। अपने सुंदर रूप का गर्व भी है। हूण  अन्तःपुर तक आ जाते हैं। जयमाला और देवसेना युद्ध में भीमवर्मा की सहायता करती है। ठीक इसी समय युवराज स्कन्दगुप्त आता है। हूणों को हराकर उनको बन्दी बनाता है। विजया स्कन्द को देखती है और स्कन्द विजया को देखता है। दोनों एक दूसरे को चाहने लगते हैं।


                                                (द्वितीय अंक)

         दृश्य - 1

                यह दृश्य मालव राज्य में बहनेवाली शिप्रा नदी तट के एक बगीचे में होता है। देवसेना और विजया दोनों बातें करती रहती हैं। देवसेना विजया से स्कन्दगुप्त के बारे में पूछती है। विजया कहती है कि यह ठीक ही है कि युवराज को देखकर मेरा मन ढीला हुआ मगर मैं उसे कुछ राजकीय प्रभाव कहकर टाल दे सकती हूँ। युवराज के संबंध में भी वह अपना गर्व छोड़ने के लिए तैयार नहीं रहती। मगर देवसेना कहती है कि तुम भाग्यवती हो, युवराज तुम्हारी ओर आकृष्ट है। उनको खो न दो। दोनों स्कन्द को उधर आते देख चली जाती हैं।

               स्कन्दगुप्त और चक्रपालित वहाँ आते हैं। स्कन्दगुप्त लड़ाई और वीरता को बड़ा नहीं मानकर त्याग को बड़ा मानता है। वह कहता है कि प्राणों का मोह त्यागना ही वीरता है। चक्रपालित कहता है कि दिन रात युद्ध करना ही जीवन है। पुष्यमित्रों का युद्ध समाप्त हो गया है। अब आप को राजधानी लौटना है। आपको सम्राट बनना है। इसपर स्कन्द कहता है कि सम्राट कुमारगुप्त का आसन मेरे योग्य नहीं है। मुझे सिंहासन नहीं चाहिए। पुरगुप्त को रहने दो। उत्तर में चक्रपालित कहता है कि यदि ऐसा हुआ तो लोग कष्ट भोगेंगे। फिर वे दोनों वहाँ से चले जाते हैं।

              उनके जाने के बाद विजया और देवसेना आती हैं। युवराज सम्राट बनना नहीं चाहते है- यह सुनकर विजया का प्यार कम हो जाता है। देवसेना इस संबंध में पूछती है तो विजया के दिल में चोट लगती है। तब विजया चक्रपालित की प्रशंसा करती है। इतने में बन्धुवर्मा वहाँ आता है । वह कहता है कि स्कन्द राजधानी लौट रहे है। शायद राज्याभिषेक संपन्न होगा।

          दृश्य - 2

            यह दृश्य राजधानी के एक मठ में होता है। प्रपंचबुद्धि, भटार्क और शर्वनाग बातें करते हैं। प्रपंचबुद्धि कहता है कि महादेवी देवकी के कारण राजधानी में विद्रोह की संभावना है। इसलिए उनका वध करना है और शर्वनाग को ही वह काम करना है। शर्वनाग कहता है कि दुश्मन को दिखाओ। उसे मारूंगा या स्वयं मरूँगा मगर अबला महादेवी की हत्या नहीं करूँगा। प्रपंचबुद्धि और भटार्क उसे दारू पिलाते हैं। नशे में आकर शर्वनाग देवकी की हत्या करने को तैयार हो जाता है। धातुसेन ये बात छिपकर सुन लेता है।

          दृश्य - 3

             यह दृश्य महादेवी देवकी के राजमंदिर के बाहरी भाग में होता है। शर्वनाग देवकी की हत्या करने को तैयार रहता है। वह अपनी पत्नी रामा से सारी बातें बता देता है। रामा वहाँ से भाग जाती है। अनन्तदेवी, प्रपंचबुद्धि और भटार्क वहाँ आते हैं। शर्वनाग उनके साथ जाता है।

         दृश्य - 4

              देवकी अपने ही महल में कैद में हैं। रामा उनसे मिलकर उनका सचेत करती है। मगर देवकी मौत से नहीं डरती। इसी समय अनन्त देवी, प्रपंचबुद्धि, भटार्क और शर्वनाग वहाँ आते हैं। रामा छुरी निकालकर शर्वनाग को मारने को तैयार हो जाती है। शर्वनाग भी तलवार लेकर उसपर आक्रमण करने को तैयार हो जाता है। इसी समय दरवाजा तोड़कर स्कन्द भीतर घुस आता है। आते ही शर्वनाग की गर्दन दबाकर तलवार जान लेता है। स्कन्द, भटार्क को भी हराता है। अनन्तदेवी स्कन्द से प्राण भिक्षा माँगती है। स्कन्द सबको क्षमा करके वहाँ से भगा देता है।

         दृश्य - 5

              यह दृश्य मालव राज्य के अवन्ती दुर्ग में घटता है। बन्धुवर्मा, भीमवर्मा, जयमाला तीनों बात कर रहे है। बन्धुवर्मा मालव राज्य स्कन्द के हाथों में सौंपना चाहता है। उसीसे मालव का विकास और रक्षा संभव है- यह बन्धुवर्मा का विचार है। भीम सहमत होता है। हल्के वाद विवाह के बाद जयमाला भी सहमत होती है। देवसेना वहाँ आती है। वह भी र प्रस्ताव से सहमत होती है।

       दृश्य - 6

                कुसुमपुर से चलकर भटार्क मालव राज्य के उज्जयिनी नगर आता है। रास्ते में उसकी माँ कमला उसे रोककर डाँटती है। वह भटाक से कहती है कि तुमने कृतघ्न होकर महादेवी देवकी की हत्या की कोशिश की। धिक्कार है तुमको। वह रोने लगती है। भटार्क उसको समाधान करने की कोशिश करता है। इसी समय कृद्ध विजया भी वहाँ आती है। विजया भटार्क की पहचान पाकर उससे प्रभावित होती है।

               इसी समय मातृगुप्त, मुद्गल और गोविन्दगुप्त तीनों वहाँ आते हैं। भटार्क को वहाँ देखकर चकित हो जाते हैं। भटार्क तलवार निकालता है। गोविन्दगुप्त उसके हाथ से तलवार छीन लेता है। कमला और भटाक दोनो विजया को दिखाकर कहते है कि इस स्त्री से हमारा जान पहचान नहीं है। मगर विजया अपने को अपराधिनी बताकर स्वयं उनके साथ जाती है। पविन्दगुष्त सबको लेकर स्कन्द के पास जाता है।

       दृश्य - 7

               यह दृश्य उज्जयिनी में बंधवर्मा की राजसभा में होता है। सभा भरी है। बंधुवर्मा, भीमवर्मा, मातृगुप्त, मुद्गल, स्कन्दगुप्त, गोविन्दगुप्त सब मौजूद है। स्कन्द गुप्त बन्धुवर्मा से कहता है कि मित्र मालवेश! बढो, सिंहासन पर बैठो। हम लोग तुम्हारा अभिनंदन करे। तब जयमाला कहती है कि देव, यह सिंहासन आपका है। आर्यावर्त के सम्राट के सिवा अब दूसरा कोई मालव के सिंहासन पर नहीं बैठ सकता।

               स्कन्द कहता है कि विपत्तियों के बादल घिर रहे हैं। अन्तर्विद्रोह की ज्वाला प्रज्वलित है, इस समय मैं सैनिक बन सकूँगा, सम्राट नहीं। फिर भी गोविन्दगुप्त और बन्धुवर्मा दोनों स्कन्द का हाथ पकड़कर उसे सिंहासन पर बिठाते हैं। देवकी राजतिलक करती है। सैनिक भटार्क, शर्वनाग, विजया और कमला को ले आते हैं। स्कन्द अपनी माता देवकी की आज्ञा मानकर Incha शर्वनाग को अन्तर्वेद का विषयपति नियुक्त करता है। शर्वनाग देवकी के चरणों पर गिरकर माफी माँगता है। देवको उसे माफ़ कर देती है।

              स्कन्द भटार्क को गुप्त साम्राज्य का महाबलाधिकृत बनाता है। उन लोगों के साथ विजया को देखकर स्कन्ध आश्चर्य चकित होता है। वह उससे इस संबंध में पूछता है तो विजया बोलती है कि मैंने भटार्क को है। अपना पति मान लिया है। यह सुनकर सब हैरान हो जाते हैं। स्कन्द गुप्त दुखी होता है। देवसेना साफ़ साफ़ समझाती है कि हम सब से प्रतिशोध लेने के लिए ही विजया ने ऐसा किया है। देवसेना देख लेती है कि स्कन्द विजया का प्यार न मिलने से दुखी होता है।

                                                  (तृतीय अंक)

          दृश्य - 1

                उज्जयिनी के पास शिप्रा नदी के तट पर प्रपंचबुद्धि अकेला बैठा है। वह किसी श्मशान पर जाकर उग्रतारा नामक देवी की उपासना करने की बात सोच रहा है। तब भटार्क वहाँ आता है। भटार्क को जीवित देखकर प्रपंचबूद्धि को आश्चर्य होता है। वह सोचता था कि स्कन्द ने भटार्क को मार डाला होगा। इस संबंध में पूछने पर भटार्क कहता है कि स्कन्द ने मुझे अपमानित करके क्षमा किया। फिर दोनों वहाँ से चले जाते हैं। उन दोनों के जाने के बाद विजया वहाँ आती है। थोड़ी देर में देवसेना भी आती है।

               देवसेना विजया से स्कन्द को ठुकराकर भटार्क को अपनाने के संबंध में सरलता से पूछती है। मगर विजया कृद्ध होकर कहती है कि तुम्हारे परिवार ने मेरी सहायता करने का नाटक खेलकर मेरे प्यार को नष्ट कर दिया है। विजया को भ्रम है कि बन्धुवर्मा ने मालव देश देकर स्कन्द को खरीद लिया है और स्कन्द अब देवसेना से ही विवाह करेगा इसे गुढ़ शब्दों में कहती भी है। यह सुनकर देवसेना कहती है कि मैं मूल्य देकर प्यार नहीं लेना चाहती हैं। ऐसा कहकर देवसेना वहाँ से चली जाती है।

               उसके जाने के बाद प्रपंचबुद्धि और भटार्क वहाँ आते हैं। विजया प्रपंचबुद्धि को प्रणाम करती है। तब विजया कहती है कि किसी भी तरह देवसेना को मार डालो। प्रपंचबुद्धि कहता है कि देवी उग्रतारा की साधना के । लिए एक राजबलि चाहिए। तुम किसी तरह देवसेना को श्मशान में लाओ बाकी सब में देख लूँगा। मातृगुप्त छिपकर सब बातें सुन लेता है।

          दृश्य - 2

              श्मशान में स्कन्दगुप्त टहलता रहता है। वह विजया के संबंध में सोचकर दुखी होता है। वह प्रपंचबुद्धि को देख लेता है। एक पेड़ के पीछे छिपकर देखता है। इतने में विजया देवसेना को लेकर वहाँ आती है। विजया धोखे से देवसेना को प्रपंचबुद्धि के सामने खड़ा करके स्वयं खिसक जाती है। प्रपंचबुद्धि देवसेना को एक हाथ से पकड़कर दूसर हाथ से खड्ग उठाता है। देवसेना मरने से पहले स्कन्द का स्मरण करके चिल्लाती है कि प्रियतम। मेरे देवता युवराज! तुम्हारी जय हो। फिर सिर झुकाकर मरने को तैयार रहती है। मातृगुप्त पीछे से आकर प्रपंच का हाथ पकड़कर अलग ले जाता है। स्कन्द, देवसेना को सहारा देकर सुरक्षित स्थान में ले जाता है।

         दृश्य - 3

               मगध में अनंतदेवी, पुरगुप्त, विजया और भटार्क बातें करते रहते हैं। हूणों का दूत वहाँ आता है। वह कहता है कि आप लोगों ने हमारी सहायता करने का वचन दिया मगर ऐसा नहीं किया। अन्तर्वेद का विषय पति शर्वनाग ने हमारा रहस्य जानकर सरकार का धन भी बचा लिया। भटार्क जवाब देता है कि जल्दी स्कन्द हूणों पर आक्रमण करनेवाला है। तब मैं तुम लोगों के साथ रहूँगा और अपना वचन निभाऊँगा। इससे तृप्त होकर दूत चला जाता है।

        दृश्य - 4

                मालव में जयमाला और देवसेना बातें करती रहती हैं। देवसेना के दो चार सखियाँ भी उपस्थित हैं । स्कन्द युद्ध करने चला है। इसलिए देवसेना दुखी है। सखियाँ उससे स्कन्द के संबंध में और उन दोनों के प्यार के संबंध में पूछती हैं। मजाक उड़ाती हैं। इसपर देवसेना रो पड़ती है। भीमवर्मा आकर समाचार देता है कि शकमण्डल को स्कन्द ने जीत लिया है। मगर युद्ध में गोविन्दगुप्त वीरगति को प्राप्त हुए। मरने से पहले गोविन्दगुप्त ने बन्धुवर्मा को महाबलाधिकृत बनाने को कहा है। इसलिए बन्धुवर्मा सैनिकों की पड़ाव में ही रहेंगे। मातृगुप्त ने देवसेना को बचाया ने इस खुशी में स्कन्द मातृगुप्त को कश्मीर का शासक बना दिया है। यह सुनकर देवसेना अत्यन्त प्रसन्न होती है और स्कन्द के प्यार की गहराई को समझ पाती है।

       दृश्य - 5

             गांधार की घाटी में युद्ध होता है। स्कन्द और बन्धुवर्मा सैनिकों के साथ है। उसी समय एक चर स्कन्द गुप्त से कहता है कि मगध सेना और भटार्क पर विश्वास न करें। इसपर स्कन्द बन्धुवर्मा से कहता है कि तुम कुंभा के रणक्षेत्र में जाओ। मैं यहाँ स्थिति को संभालूँगा। मगर बन्धुवम्मा युद्ध क्षेत्र में स्वयं रहकर स्कन्द को भटार्क के यहाँ भेज देता है। स्कन्द गुप्त के जाने के बाद बन्धुवर्मा कई हूणों को मार डालकर स्वयं मर जाता है। मरने से पहले दूसरों से कहता है कि स्कन्द से कहिए कि भीमवर्मा और देवसेना उनकी शरण हैं।

       दृश्य - 6

               भटार्क कुंभा के रणक्षेत्र में स्कन्द को धोखा देता है। स्कन्द हूणों को मार भगाता है। स्कन्द सैनिकों के साथ कुंभा नदी में उतरकर हूणों का पीछा करना चाहता है। धूर्त भटार्क बांध तोड़ देता है। नदी में भीषण बाढ़ आती है। स्कन्द और सैनिक उसमें बह जाते हैं ।

                                                       (चतुर्थ अंक)

        दृश्य -1

              अनन्तदेवी और विजया के बीच वाद विवाद चलता है। विजया को भ्रम है कि अनन्तदेवी भटार्क को चाहती है। अनन्तदेवी को भ्रम है कि विजया पुरगुप्त से विवाह करके सम्राज्ञी बनने का सपना देख रही है। इन बातों को लेकर दोनों झगड़ती हैं। अंत में विजया राजमहल से निकल जाती है। विजया अपनी गलतियों पर पछताती है। वह मानती है कि स्कन्द को नीचा दिखाने के लिए ही उसने अपना रूप, धन, यौवन भटार्क को दान किया। इस संदर्भ में वह शर्वनाग से मिलती है। शर्वनाग उसे देश सेवा का निमंत्रण देता है। विजया मान जाती है।

         दृश्य - 2

              भटार्क शिविर में रहता है। तब उसकी माँ कमला के साथ स्कन्द की माँ देवकी आती है। देवकी भटार्क से अपने पुत्र स्कन्द के बारे में पूछती है। भटार्क कहता है कि स्कन्द कुंभा नदी में बह गया है। यह सुनकर देवकी - नीचे गिरकर मर जाती हैं। यह देखकर भटार्क पछताना है। वह कह देता है कि आगे वह युद्ध नहीं करेगा। अब वह संघर्ष से अलग है।

         दृश्य - 3

              काश्मीर में मातृगुप्त के न्यायालय में एक सैनिक एक स्त्री के साथ आता है। सैनिक कहता है कि इस स्त्री का धन चुराया गया है। यह मुह खोलकर अपने करीबी व्यक्तियों का विवरण नहीं देती है। इसलिए चोर को पकड़ना मुश्किल हो रहा है। यह श्रीनगर की समृद्धि शालिनी वेश्या है। मातृगुप्त उसका नाम जानना चाहता है। इसपर सैनिक कहता है कि इसका नाम मालिनी है। मातृगुप्त चकित होता है। वह उस स्त्री की घूंघट हटाता है। वह मातृगुप्त के प्रेम को ठुकारानेवाली स्त्री है। अपनी प्रेमिका को वेश्या के रूप में देखकर मातृगुप्त काँप उठता है। वह दैव को कोसता है। फिर वह राज कोष से धन लेने की अनुमति देकर मालिनी को भेज देता है। मातृगुप्त भी स्कन्द के लापता होने से दुखी है। वह आगे उद्बोधन के गीत गाने का निश्चय करता है।

        दृश्य - 4

            धातुसेन और प्रख्यातकीर्ति दोनों मित्र आपस में बात करते हैं। धातुसेन मातृगुप्त से मिलना चाहता है। तब प्रख्यातकीर्ति कहता है कि मातृगुप्त विरक्त होकर घूम रहा है।

       दृश्य - 5

              ब्राह्मण प्राणियों की बलि चढाना चाहते हैं। बौद्ध उनको ऐसा करने से रोकते हैं। प्रख्यातकीर्ति वहाँ जाकर दोनों पक्षों को सही न्याय बताता है। उसकी बात मानकर ब्राह्मण बलि चढाये बिना चले जाते हैं।

         दृश्य - 6

               विजया पथ में जा रही है। मातृगुप्त उसे देखता है। दोनों बातें करते हैं। विजया उससे कहती है कि अब तक तुम प्रेम के गीत गा रहे थे। आगे उद्बोधन गीत गाओ ताकि वीर युवक देश रक्षा के लिए आगे आएँ। यह सुनकर मातृगुप्त प्रसन्न होता है। इसी समय चक्रपालित, भीमवर्मा, प्रख्यातकीर्ति सब आते हैं। प्रख्यातकीर्ति कहता है कि वह धातुसेन की प्रार्थना से उन लोगों को खोज रहा था।

        दृश्य - 7

               कमला की कुटी के बाहरी स्थान में स्कन्द आता है। उसका रूप विकृत है। वहीं शर्वनाग भी आता है। वह आवेग में है। वह दैवनिंदा करके चला जाता है। उसको देखकर स्कन्द समझ पाता है कि अन्तर्वेद को हूणों ने कुचल दिया है। इसके बाद शर्वनाग की पत्नी रामा आती है। वह स्कन्द को पहचान नहीं पाती। इसी हाल में वह स्कन्द से कहती है कि मेरी संतान को हूणों ने मार डाला। फिर वह स्कन्द को पहचानती है। मगर भ्रम समझकर चली जाती है। देशवासियों का दुख जानकर स्कन्द को अपार वेदना होती है।

             स्कन्द अपने को अकेला पाकर दुखी होता है। कमला उसे ठीक ठीक पहचानती है। उसे उत्सुक्ता प्रदान करती है। इसी संदर्भ में देवसेना चीखती चिल्लाती वहाँ आती है। उसकी आवाज़ से ही स्कन्द उसे पहचान लेता है। देवसेना के पीछे एक हूण आता है। वह उसे पकड़ना चाहता है। देवसेना छुरी निकालकर आत्म हत्या करना चाहती है। इसी समय पर्णदत्त आकर उसकी रक्षा करता है। हूण माफ़ी माँगकर जान बचाकर भाग जाता है। कमला स्कन्द को खबर देती है कि देवसेना सुरक्षित है। कनिष्क स्तूप के पास आपकी माता की समाधि है। आप वहाँ जाकर देवसेना से मिल सकते हैं। माँ मर चुकी है-यह जानकर स्कन्द असहय वेदना से मूर्छित हो जाता है।

  

                                                        (पंचम अंक)

              दृश्य- 1

               मुद्गल रास्ते में जा रहा है। वह थककर सिर पर हाथ रखकर बैठ जाता है। उसके स्वगत कथन से हमें मालूम होता है कि बंधुवर्मा की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी जयमाला सती हो चुकी है। पर्णदत्त और देवसेना दोनों महादेवी देवकी की समाधि पर जीवन व्यतीत कर रहे हैं। चक्रपालित, भीमवर्मा और मातृगुप्त अब स्कन्द को खोज रहे हैं। पुरगुप्त और हूणों में संधि हो गयी है। समस्त भारत हूणों के चरणों में लोट रहा है।

              तब विजया वहाँ आती है। विजया स्कन्द के संबंध में पछती है। पहले मुद्गल रहस्य को छिपाता है। अंत में विजया को विश्वास पात्र समझकर उससे कहता है कि आज शामको सम्राट स्कन्दगुप्त अपनी माता की समाधि पर आनेवाले है। यह समाचार पाकर विजया स्कन्ध से मिलने जाती है। इसके बाद भटार्क वहाँ आता है। उसके स्वगत कथन से लगता कि वह भी स्कन्द से मिलना चाहता है।

             दृश्य- 2

              कनिष्क स्तूप के आसपास पर्णदत्त भीख माँगता है। वह अनाथ बच्चों को पालने के लिए भीख माँगता है। देवसेना भी वहीं है। व गीत गाती है। गीत के समाप्त होते होते स्कन्द वहाँ आता है। वह अपनी माँ की समाधि के समीप घुटने टेककर फूल चढाता है। देवसेना भी आती है। वह स्कन्द को देखकर अत्यन्त प्रसन्न होती है और चिल्लाती है, कि सम्राट की जय हो। देवसेना स्कन्द को सारा वृत्तांत सुनाती है। स्कन्द देवसेना से विवाह करके समाज से हटकर अलग जीवन जीना चाहता है। मगर देवसेना अस्वीकार कर देती है। वह कहती है कि सम्राट मैंने आपके सिवाय किसी को भी दिल में स्थान नहीं दिया। फिर भी मैं आपमे विवाह नहीं करूँगी क्योंकि लोग कहेंगे कि मालव देकर देवसेना के लिए स्कन्द को खरीदा गया। उसके विचार का मान रखते हुए स्कन्द आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा करता है। यह सुन देवसेना स्वयं चकित हो जाती है। वह पर्णदत्त को लाने के लिए जाती है। इस बीच विजया आकर स्कन्द से मिलती है। वह स्कन्द से कहती है कि अभी मेरे पास दो रत्न गृह है। उनकी सहायता से सैन्य इकट्ठा करो। शत्रुओं को भगाओ। सम्राट बनो। मुझसे शादी करो।

                  स्कन्द साफ इन्कार कर देता है। वह कहता है कि मैंने आजीवन ब्रह्मचारी बनकर रहने की प्रतिज्ञा कर ली है । भटार्क इसी समय वहाँ आता है। वह विजया के विरुद्ध दो चार शब्द कहता है। इसे अपना अपमान समझकर विजया छुरी मारकर आत्म हत्या कर लेती है। भटार्क भी आत्म 1. हत्या करना चाहता है। मगर स्कन्द उसे रोक देता है। स्कन्द भटाके से हूणों को देश से भगाने में सहायता करने को कहता है। भटार्क सहर्ष मान लेता है। भटार्क विजया की लाश को दफनाने के लिए मिट्टी खोदता है। तब नीचे का रत्नगृह प्रकट होता है। स्कन्द कहता है कि भटा्क यह धन तुम्हारा है। मगर भटार्क कहता है कि नहीं, यह धन देश का है। 

             दृश्य - 3

                   पर्णदत्त पथ में भीख मांग रहा है। स्कन्दगुप्त उससे जा मिलता है। स्कन्द को देखकर पर्णदत्त प्रसन्न होता है। चक्रपालित, भीमवर्मा, मातृगुप्त, नाग, कमला, रामा सब वहाँ आते हैं और जय नाद करते हैं।

            दृश्य - 4

                 अनन्त देवी, पुरगुप्त, प्रख्यातकीर्ति और हुण सेनापति चारों महाबोधि विहार में बातें कर रहे हैं। प्रख्यातकीर्ति कहता है कि आप बौद्धधर्म की सहायता करेंगे ऐसा सोचकर मैंने आपका साथ दिया। मगर ऐसा नहीं हो रहा है। हूण सेनापति समाचार देता है कि स्कन्दगुप्त जीवित है। संभव है, बहुत जल्द ही अंतिम युद्ध होगा। हूण सेनापति, प्रख्यात कार्तिक को मारने के लिए तलवार उठाता है। इसी समय धातुसेन सैनिकों के साथ वहाँ आता है। सम्राट स्कन्दगुप्त की जय पुकारता है। सबको कैद करके ले जाता है।

           दृश्य - 5

                रणक्षेत्र में स्कन्द, भटार्क, चक्रपालित, पर्णदत्त, मातृगुप्त, भीमव्मा सभी है। हूणों का सरदार सिंगल घायल होता है। वह बन्दी होता है। सम्राट को बचाने में पर्णदत्त की मृत्यु हो जाती है धातुसेन, अनन्तदेवी और पुरगुप्त को कैदी के वेश में स्कन्द के सामने लाता है। अनन्त देवी क्षमा माँगती है और पुरगुप्त स्कन्द का पैर पकड़ता है। स्कन्द पुरगुप्त को रक्त का टीका लगाकर कहता है कि पुरगुप्त ही सम्राट है। खिगिल वहाँ से भगा दिया जाता है।

           दृश्य - 6

                  उद्यान में देवसेना गा रही है। स्कन्दगुप्त आता है। स्कन्द आजीवन देवसेना को देखते रहना चाहता है। मगर वह स्कन्द को छोड़कर जाना चाहती है। स्कन्द हृदय को पत्थर बनाकर देवसेना को जाने की अनुमति देता है। वह घुटने टेकती है। स्कन्द उसके सिर पर हाथ रखता है।

                 

                                                       शुभम।





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एकांकी

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