रस की दृष्टि से "चन्द्रगुप्त' नाटक एक विवेचन
'चन्द्रगुप्त' नाटक के दो पक्ष हैं। एक पक्ष का आधार राजनीति है तो दूसरे पक्ष का आधार प्रणयनीति। प्रसाद जी ने राजनीति के प्रचंड तेज के साथ-साथ सुकुमार प्रणय की सुगंधि का सगुम्फन करा दिया है। कहीं-कहीं राजनीति की कलुषित छाया में प्रणय की हल्की रेखा धुंधली पड़ गयी है। कहीं कहीं राजनीति प्रणयनीति का अभिवादन करती दिखायी पड़ती है। ऐसे स्थलों पर श्रृंगार प्रमुख है और राजनीति पक्ष में वीर रस की प्रमुखता है।
राजनीति पक्ष : इसमें तीन प्रमुख घटनायें हैं
(1) सिकंदर का आक्रमण एवं युद्ध
(2) नंद से युद्ध तथा पराभव
(3) सिल्यूकस से युद्ध
इन तीनों घटनाओं का आधार चन्द्रगुप्त है। इसलिए सभी परिस्थितियों में आश्रय चन्द्रगुप्त रहा है। इन तीनों घटनाओं में आलंबन, उद्धीपन आदि अलग-अलग हैं।
प्रथम घटना - रसागों का विश्लेषण :
(अ) आलम्बन : सिकंदर।
(आ) उद्धीपन : (1) पर्वतेश्वर की पराजय के कारण यवन सैनिको का बल बढ़ना (2) चंद्रगुप्त में उत्साह की जागृति (3) गांधार का उत्कोच स्वीकार करने पर सहायता देना (4) पर्वतेश्वर का अपने वादे से हट जाना (5) सिंहरण के पास सिकंदर का संदेश भेजना।
(इ) अनुभाव : (1) सिकंदर को उत्तर देने में सिंहरण की निर्भीकता
(2) सम्मिलित होकर युद्ध का प्रयत्न करना (3) युद्ध का निश्चय।
(ई) संचारी भाव :
(1) गर्व : उदाहरण --
चंद्र : (सिल्यूकस से) जाओ यवन! सिकंदर का जीवन बच जाय ।
तो फिर आक्रमण करना (2-10)
(2) धैर्य : उदाहरण
सिंह: कुछ चिंता नहीं। दृढ़ रहो। समस्त मालव सेना से कह दो कि
सिंहरण तुम्हारे साथ रहेगा। (2-10)
(3) निर्भीकता : उदाहरण -
सिंह : सिकंदर की मालवों की कोई ऐसी सधि नहीं हुई है, जिसमें वे इस कार्य के लिए बाध्य हो। हाँ, भेंट करने केलिए मालिक समेत प्रस्तुत हैं चाहे सधि परिषद् में या रणभूमि में। (2-8)
(4) औत्सुक्य : उदाहरण
यवन -दुर्ग द्वार टूटता है और हमारे सभी वीर सैनिक इस दुर्ग को मटियामेट करते हैं। (2-10)
(5) स्मृति : उदाहरण -
मालव सैनिक : सेनापति, रक्त का बदला। इस नृशंस ने निरीह जनता का अकारण वध किया है। (2-10)
द्वितीय घटना रसांगों का विश्लेषण :
(अ) आलबन - नंद
(आ) उद्दीपन - (1) नद का अत्याचार (2) शकटार का भूगर्भ से बाहर आना और अपनी कहानी कहना (3) मौर्य दपति का बदी होना (4) राक्षस-सुवासिनी के परिणय-विच्छेद का प्रबंध (5) राक्षस-सुवासिनी को अधकूप की आजा।
(इ) अनुभाव - (1) चाणक्य का प्रण करना (2) माता-पिता के बदी होने पर चंद्रगुप्त का उग्र होना (3) शकटार का मनुष्य से घृणा करना (4) विद्रोह की प्रवृत्ति का प्रारंभ
(ई) संचारी : (1) गर्व (2) स्मृति तृतीय घटना - रसागो का विश्लेषण :
(अ) आलबन-सिल्यूकस
(आ) उद्धीपन (1) चाणक्य का रूठकर चले जाना (2) सिंहरण चाणक्य के पथ का अनुगमन करना (3) चद्रगुप्त में उत्साह का स्वावलंबन की प्रबलता।
(इ) अनुभाव चंद्रगुप्त का युद्ध करने केलिए तैयार होना, अपने क्षतरिय कहना।
(ई) संचारी (1) गर्व (2) स्मृति (3) औत्सुक्य
यह है गाजनीतिगत वीररस की निष्पत्ति।
2. प्रणय-नीति प्रणय सर्वदा ही मधुरतम भावनाओं पर आधारित होता है। इसलिए वह श्रृंगार पर ही आधारित होता है।
प्रणय-नीति से संबंधित मुख्य घटनाये ये हैं
(1) अलका-सिहरण का प्रणय
(2) सुवासिनी-राक्षस का प्रणय
(3) चन्द्रगुप्त-कल्याणी का प्रणय
(4) चंद्रगुप्त-मालविका का प्रणय
(5) चंद्रगुप्त-कार्नेलिया का प्रणय
(6) सुवासिनी-चाणक्य का प्रणय
'चंद्रगुप्त' नाटक में राजनीति सबंधी घटनाओं की अपेक्षा प्रणय की घटनाये अधिक हैं। प्रसाद जी ने वीरों के संघर्षपूर्ण ताप को शीतल बनाने केलिए श्रृंगार एवं प्रणय को स्थान दिया है। अलका-सिहरण का प्रणय : रसागों का विश्लेषण
(अ) आलंबन - सिंहरण
(आ) उद्धीपन - (1) तक्षशिला के गुरुकुल में देश-परिस्थिति का तर्कपूर्ण विवेचन (2) राजनीति का जान (3) आम्भीक का परोक्षमखी होता (4) यवन आक्रमण
(इ) अनुभाव - (1) मानचित्र तैयार करना (2) बन्दी होना (3) गांधार देश से बाहर चले जाना (4) राज्य-क़ाति फैलाना (5) सिंहरण का उत्सव एवं उत्साह देने की सतत चेष्टा।
(ई) संचारी भाव - (1) चिंता - उदाहरण :
सिंह - आयविर्त का भविष्य लिखने केलिए कुचक्र और प्रतारणा की लेखनी और मसी प्रस्तुत हो रही है। उत्तरापथ खण्ड-राज्य द्वेष से जर्जर हैं। शीघ्र भयानक विस्फोट होगा। (1-1)
(2) गर्व और विश्वास - उदाहरण :
सिंह - वर्तमान को मैं अपने अनुकूल ना ही लूंगा; फिर चिन्ता किस बात की ?
(3) चिंता (अलका के पक्ष में) - उदाहरण :
सिंह : मैं तुम्हारी सुख-शांति के लिए चिन्तित हैं |
इस प्रकार अलका के हृदय में श्रृंगार की चेतना होती है। परन्तु राजनीति का भारीपन प्रणय की कोमलता केलिए असहय हो गया है। इसी प्रकार प्रणय की अन्य घटनायें भी राजनीति के कारण उभर नहीं सकीं। केवल कार्नेलिया प्रणय के पर्यावसान तक आ पायी है। चद्रगुप्त ही नहीं, चाणक्य भी सुवासिनी की स्मृति से संतुष्ट हो जाता है।
शांत रस : चाणक्य के चरित्र में शांत रस का सफल विकास हुआ है। दाण्ड्यायन के आश्रम में जाना उद्धीपन है। संघर्षों से तटस्थ होने की इच्छा, सन्यासी होने की इच्छा अनुभाव है। हर्ष, मति, निर्वेद, धैर्य संचारी भाव हैं। सुवासिनी के प्रसंग में भाव शाति है। लक्ष्य-प्राप्ति
के बाद स्थायीभाव निर्वेद का प्रतिष्ठापन है। सक्षेप में 'चन्द्रगुप्त में श्रृंगार की अपेक्षा वीर रस की प्रधानता है। इसके अतिरिक्त अन्य रसों का भी संकेत मिलता है। नाटक का प्रारम्भ राजनीति से होता है और अन्त प्रणय से । यही नाटक की रसगत विशेषता है।
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