चन्द्रगुप्त नाटक के नामकरण
हमारे साहित्य में नामकरण चार प्रकार से हुए हैं। प्रथम तो नामकरण नायक के कारण होता है और उसमें यह ध्यान दिया जाता है कि नायक अपने नायकत्व से पूर्ण हो । दूसरे, नामकरण नायिका के नाम पर होता है। जैसे, चन्द्रावली, राज्यश्री आदि। तीसरे, घटना के आधार पर नामकरण होता है। इस प्रकार की रचनाओं में घटना की मानता होती है। नायक या नायिका प्रमुख पात्र होते हुए भी उसके -कलाप उसे घटना का साधन मात्र प्रतिपादित करते हैं। चौथे, -विशेष के आधार पर भी नामकरण किया जाता है, परन्तु बहुत ही कम।
चन्द्रगुप्त' नाटक का नामकरण उसके प्रमुख पात्र चंद्रगुप्त के आधार हुआ है। इसके मुल नाटक का नाम नायिका के नाम पर कल्याणी बरणय' रखा गया था। ऐतिहासिकता की खोज ने कल्याणी को पीछे लाकर प्त को आगे बढ़ा दिया है। इतिहास राजा और समाज के सम्मिलित कर्ष और संस्कृति का संकलन मात्र है। अतः चंद्रगुप्त का आगे आ ना स्वाभाविक ही है।
"चन्द्रगुप्त नाटक में प्रमुख पात्र चन्द्रगुप्त और चाणक्य हैं। इन नों पात्रो की तुलना करने से चन्द्रगुप्त नाटक का नायक मालूम पड़ता यद्यपि चाणक्य के व्यक्तित्व के सामने चन्द्रगुप्त के व्यक्तित्व का ई अपना महत्त्व नहीं है, फिर भी चन्द्रगुप्त ही नायक है, क्योंकि णक्य के व्यक्तित्व में स्थिरता है तो चन्द्रगुप्त के व्यक्तित्व में गतिशीलता चाणक्य शक्ति है तो चन्द्रगुप्त साधन है । चन्द्रगुप्त का व्यक्तित्व स्तुतः चाणक्य के सूर्य के प्रकाश पर ही आधारित है।
चन्द्रगुप्त सर्व प्रथम तक्षशिला के स्नातक के रूप में आता है। जब वह कल्याणी की रक्षा में तत्पर देखा जाता है, हमें उसकी कार्यशीलता का परिचय मिलता है। मुख्यतः चंद्रगुप्त के दो रूप हमारे सामने आते (1) आत्म-सम्मान और वीरता से संबंधित रूप और (2) प्रेम से परिपूर्ण रूप। इतना ही नहीं, उसमें नायक के लिए आवश्यक सब गुण मौजूद हैं।
चन्द्रगुप्त तलवार का धनी है, योद्धा है, स्त्रैण और क्लीव नहीं। वह अन्यायों का डटकर मुकाबला करता है। वह यवन-आक्रमणों से देश की रक्षा करने का निर्णय लेता है। चाणक्य चन्द्रगुप्त से कहता है . लो मौर्य चन्द्रगुप्त! अपना अधिकार छीन लो। मेरा पुनर्जन्म होगा। मेरा जीवन राजनैतिक कुचक्रो से कुत्सित और कलकित हो उठा है।" इससे दो बातें स्पष्ट होती है -- (1) चंद्रगुप्त का चरित्र चाणक्य के चरित्र की अपेक्षा महान है।
(2) फल का भोक्ता चंद्रगुप्त है।
फल का भोक्ता ही नायक होता है। नाटक के अन्य पात्र सिंहरण, अलका, कल्याणी, राक्षस आदि हैं। उनके चरित्र का पूर्ण विकास नहीं हो सका है। अतः चंद्रगुप्त ही नाटक का नायक है।
सारांश यह है कि 'चन्द्रगुप्त' नाटक का नामकरण नायक चन्द्रगुप्त के आधार पर किया गया है।
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