वर्तनी विमर्श
भाषा में वर्तनी का महत्त्व असंदिग्प है। गलत वर्तनी से भाषिक सौंदर्य को क्षति ही नहीं पहुंचती ब्रपितु कई बार अर्थ के सम्प्रेषण में भी बाधा आती है। पदि कोई व्यक्ति 'वह लुट गया' लिखने के बदले गलती से 'वह लूट गया' लिख दे, तो मात्रा की एक छोटी-सी भूल सारे अर्थ को चौपट कर देगी।
देवनागरी एक वैज्ञानिक लिपि है। अतः हिंदी के अधिकांश पाब्द अपने उच्चारण के अनुसार लिखे जाते हैं। फिर भी मात्रा, बलाघात, अनुनासिकता, व्यंजन संयोग आदि के अपूर्ण अनुकरण के कारण कई लोग, विशेषतः छात्र कुछ शब्दों को बशुद्ध लिखते हैं। इस अध्याय में वर्तनी की अशुद्धियों के कुछ पहलुओं पर विचार किया जायेगा।
मात्रा-वर्तनी की भूलों में सबसे बड़ी संख्या ह्रस्व-दीर्घ मात्राओं की है। निम्नलिखित बातें इन्हें शुद्ध लिखने में सहायक होंगी।
इ की मात्रा --
(1) संस्कृत के ति प्रत्ययांत शब्द ह्रस्व इकारांत होते हैं, जैसे -
रीति कृति
नीति उक्ति
गति तृप्ति
मति प्रीति
स्थिति स्मृति
शांति शक्ति
कांति भक्ति
क्रांति ख्याति
भ्रांति श्रुति आदि।
कुछ उपसर्ग युक्त ति प्रत्ययांत शब्द भी ध्यान देने योग्य हैं --
प्रगति उन्नति
संगति अवनति
दुर्गति प्रणति
संमति प्रतीति
अनुमति अन्विति
उपस्थिति नियुक्ति
परिस्थिति व्याप्ति
प्रकृति विभक्ति
विकृति सुनीति
प्रतिकृति विपत्ति आदि ।
-इसके अतिरिक्त थि और टि प्रत्यय वाले शब्द भी वस्तुतः ति प्रत्ययांत ही हैं ।
अतः ये सब भी ह्रस्व इकारांत होते हैं, जैसे --
ऋद्धि दृष्टि
समृद्धि वृष्टि
सिद्धि तुष्टि
प्रसिद्धि सन्तुष्टि
वृद्धि सृष्टि
शुद्धि पुष्टि
बुद्धि
उपलब्धि
(2) संस्कृत के त प्रत्यवांत शब्दों में 'त' से पूर्व की 'इ'सदैव हस्व होती है,
जैसे --
विदित अंकित
आशंकित आच्छादित
सन्तुलित प्रतिबिम्बित
सम्मानित लिखित
पीड़ित पठित
आतंकित सम्बन्धित
खण्डित सम्बोधित
पुष्पित प्रकाशित
पल्लवित प्रेषित
कण्टकित निष्काषित
कलंकित आप्लावित आदि ।
अपवाद --
कुछ त प्रत्ययांत शब्दों में उपान्त्य 'इ' दीर्घ भी पाई जाती है।
भयभीत प्रतीत
संगीत क्रीत
गीत अतीत
गृहीत बीत
अनुगृहीत शीत
विनीत अधीत आदि ।
(वास्तव में ये शब्द उपर्युक्त नियम के अपवाद नहीं है । ऐसे शब्दों में या तो मूल क्रिया ही दीर्घ ईकारांत होती है या उपसर्ग और क्रिया के संयोग से ई दीर्घ हो जाती है।)
(3) इक प्रत्ययांत शब्दों में भी उपान्त्य 'इ' ह्रस्व होती है, जैसे -
लौकिक साहित्यिक
दैनिक मानसिक
साप्ताहिक शारीरिक
मासिक वैदिक
वार्षिक पौराणिक
धार्मिक सामयिक
सामाजिक व्यावहारिक
राजनैतिक प्रादेशिक
व्यावसायिक मानसिक
भौतिक आध्यात्मिक
सामूहिक मानसिक
(4) संस्कृत के उपसर्गों में 'इ' सर्वत्र हस्ब होती है, जैसे
निश्चित निषेध
निःसन्देह नियोजन
निष्कंटक अपितु
निष्कम्प अतिक्रमण
निरादर अभिनय
निर्देशक अभिमान
निराहार अभिशाप
विशेष अधिकार
विदेश अधिष्ठाता
विचार प्रतिकार
परिवार प्रतिनिधि
परिचय प्रतिज्ञा
अपवाद : परीक्षा, वीतराग, प्रतीत, अतीत, समीक्षा, प्रतीक्षा, बाधित, अभीष्ट ।
(इन शब्दों में उपसर्ग का उत्तरवर्ती है या ई के साथ संयोग होने से दीर्ष हो गया है।)
(5) ईकारांत पाब्दों का अन्त्य ई बहुवचन का प्रत्यय लगने पर हस्व हो जाता है, जैसे
(1) पुल्लिंग
एकवचन बहुवचन (सपरसर्ग)
आदमी आदमियों
भिखारी भिखारियों
हाथी हाथियों
ज्योतिषी ज्योतिषियों
व्यापारी व्यापारियों
संन्यासी संन्यासियों
(2) स्त्रीलिंग
एकवचन बहुवचन बहुवचन (सपरसर्ग)
लड़की लड़कियाँ लड़कियों
नारी नारियाँ नारियों
रानी रानियाँ रानियों
रोटी रोटियाँ रोटियों
साड़ी साड़ियाँ साड़ियों
गाड़ी गाडियाँ गाड़ियों
(6) कुछ तद्भव प्रत्यय लगने पर शब्दों का प्रारंभिक ई हस्ब हो जाता है। जैसे-
मीठा मिठाई
पीट (ना) पिटाई
भीख भिखारी
पीछा पिछलग्गू आदि।
दीर्घ ई
(1) हिंदी के तद्भव स्त्रीलिंग शब्द अधिकतर दोघं ईकारांत होते हैं, जैसे-
सीपी चटनी
घंटी सब्जी
जोली रोटी
हँसी गिनती
खुशी मस्ती
नौकर माटी आदि ।
(2) अनीय प्रत्ययांत शब्दों का उपान्त्य ई दीर्घ होता है, जसे-
माननीय दर्शनीय
पूजनीय शोचनीय
आदरणीय स्मरणीय
निन्दनीय रमणीय
विचारणीय प्रेक्षणीय
गोपनीय वन्दनीय आदि।
(3) ई प्रत्ययांत विशेषण दीर्घ ईकारांत होते हैं, जैसे
कामी लोभी
क्रोधी अन्यायी
लालची दानी
भारी अनुरागी
सुनो संयमी
दुःखी रोगी आदि ।
ह्रस्व उ
(1) संस्कृत के तत्सम शब्द प्रायः ह्रस्व उकारान्त होते हैं, जैसे
साधु भिक्षुक
शिशु चक्षु
गुरु मृत्यु
मुदु वायु
लघु ऋतु
सिन्धु रिपु
दयालु जन्तु आदि ।
अपवाद-वधू, चमू, प्रसू ।
(2) 'क' प्रत्ययात पाब्दों का उत्पान्त्य 'उ' हस्व होमा है,
भावुक भिक्षुक
इच्छुफ
कामुक
(3) सम्भा के जपसगों में सर्व हस्थ उ होता है, जैसे
अनुभव अनुनय
अनुसार दुर्बोध
सुयोग उद्धार
सुपुत्र उद्भव
दुष्ट उपकार
दुश्चरित्र उपचार
दुर्गन्ध उपदेश
दुराचार उन्नति
दुर्गम उज्ज्वल
(4) दीर्घ ऊकारांत शब्दों का अन्त्य ऊ. बहुवचन में हरब हो जाता है, जैसे
पुल्लिंग
एकवचन सपरसर्ग बहवचन
हिन्दू हिन्दुओं
भालू भालुओं
गेहूँ गेहूंओं
बिच्छू बिच्छुओं
बुद्धू बुद्धुओं
स्त्रीलिंग
एकवचन बहुवचन सपरसर्ग बहुवचन
बहू बहुएँ बहुओं
जोरू जोरूएँ जोरों
लू लुएँ लुओं
झाडू झाडुएं झाडुओं
(5) कुछ तद्भव प्रत्ययों का संयोग होने पर शब्दों का प्रारम्भिक ऊ ह्रस्व हो जाता है । जसे-
पूजा पुजारी
दूध दुधारू
बूढ़ा बुढ़ापा
पूर्व पुरवाई
भूल भुलक्कड़
दीर्घ ऊ--- हिंदी में दीर्घ ऊकारांत शब्द कम हैं ।
गुछ शब्द निम्नलिखित हैं।
तद्भव शब्द-हिन्द, भालू, मोटू, भोंद्र, तोद्ू, बुद्ध, उत् विच्छू, चाकू
डाकू, कोल्हू, भालू, लडू, गेरू, झगड़ालू, लजालू टिकाऊ, बिकाऊ, उपजाऊ,
लू, बहु, जोरू आदि ।
तत्सम शब्द-चमू, वधू, प्रभू, प्रसू, (वीरप्रसू)
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