रीतिकाल
रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियों
रीतिकाल को "उत्तर मध्यकाल' भी कहा जाता है। इस काल का समय संवत् 1700 से लेकर संवत् 1900 तक माना जाता है। इस युग में भारत पर मुसलमानों का राज्य था। उनके दरबार में सुरा सुन्दरी का बोलबाला था। इसलिए इस समय के काव्य में श्रृंगार रस की प्रधानता रही। नारी को केवल मनोरंजन और विलास की सामग्री समझा गया। दरबारी कवि की दृष्टि नारी के लाचण्य एवं कोमलता तक ही सीमित रही। उस समय की जनता में भी विलास की प्रधानता के कारण भक्ति की भावना मन्द पड़ गयी थी रीतिकाल में कविता के दो प्रकार हैं-
(क) रीतिबद्ध काव्यधारा,(ख) रीतिमुक्त काव्यधारा ।
(क) रीतिबद्ध काव्यधारा
रीति की प्रवृत्ति से बंधकर चलने वाली काव्यधारा रीतिबद्ध कहलायी इसमें लक्षण ग्रन्थ लिखे गए। केशव, मतिराम, चिन्तामणि, बिहारी आदि इस धारा के कवि हैं। इनके काव्य में चमत्कार तथा शृंगार की अधिकता है।
(ख) रीतिमुक्त काव्यधारा
रीति से हटकर चलने वाली काव्यमारा रीतिमुक्त काव्यधारा कहलायो । इस धारा के कवियों स्वच्छन्द प्रेम भाव से प्रेरित होकर काव्य-रचना की। इन्होंने लक्षण मन्य नहीं लिखे और न लक्षण मन्यों से प्रभावित होकर काव्य-रचना की। काव्य की इस धारा के प्रमुख कवि घनानन्द, बोधा, आलम, ठाकुर आदि हैं।
रीतिकालीन काव्य की विशेषताएँ
(1) श्रृंगारिकता
रीतिकालीन कविता में भंगार रस की प्रधानता मिलती है। कवियों ने श्रृंगार के संयोग तथा वियोग दोनों पक्षों का चित्रण किया है। संयोग गंगार के रूप चित्रण में रीतिकालीन कवि सिद्धहस्त हैं। सभी रीति कवियों ने वियोग की विविध दशाओं का मार्मिक वर्णन किया है।
(2) चमत्कारिकता
इस युग के कवियों का लक्ष्य चमत्कार द्वारा पाठक और श्रोता के मन को आकृष्ट करना रहा है। इसका कारण राजदरबारी वातावरण तथा ठससे प्रभावित जन-सामान्य की प्रवृत्ति थी । इसका एक कारण अलंकारों के द्वारा अपनी कविता को सजाना भी था।
(3) भक्ति और नीति-
रीतिकालीन कवियों ने भंगारी वातावरण से ऊबकर भक्ति और नीति सम्बन्धी सूक्तियाँ भी लिखी है, परन्तु उनका मन अपने सीमित घेरे में ही रमा है। डा. नगेन्द्र के शब्दों में, "भक्ति और नीति उनके जीवन की अन्तिम अवस्था की द्योतक हैं।"
(4) वीर रस की कविता
यद्यपि रीतिकाल में शृंगारी कविता की प्रधानता है, किन्तु वीर रस की क्षीण घारा भी उसके साथ-साथ प्रवाहित रही। एषण लाल और सूदन आदि ने वीर रस की श्रेष्ठ कविताएँ लिखीं।
(5) अभिव्यंजना प्रणाली
इन कवियों की अभिव्यंजना प्रणाली विशेष मनोरम है। बिहारी, मतिराम, घनानन्द, पद्याकर आदि कवियों ने नारी के सौन्दर्य का वर्णन किया है।
(6) बजभाषा
इस युग में साहित्य रचना ब्रजभाषा में हुई परन्तु उसमें अन्य बोलियों का भी मिश्रण है इस काल के काण्य में पद मैत्री, सानुप्रासिकता, उक्ति-वैचित्र्य आदि विशेषताएं अधिक मात्रा में मिलती हैं। इस काल में बजभाषा में विशेष निखार, माधुर्य एवं प्रांजलता का समावेश हुआ आ है। (7) काव्य रूप-
इस काल की कविता में मुक्तक शैली का अधिक प्रयोग हुआ। कवियों का उद्देश्य राजाओं और रईसों की रसिक वृत्ति को सन्तुष्ट करना था। इसके लिए मुक्तक शैली ही अधिक उपयुक्त थी।
(8) छन्द व अलंकार-
रीतिकाव्य में अधिकांशत: कवित्त, सवैया और दोहा जैसे छन्दों का प्रयोग किया गया है। यद्यपि बीच-बीच में छप्पय, बरवे हरिगीतिका, पद आदि छन्द भी आ गए हैं। रीतिकालीन कवि चमत्कारप्रिय थे। इस चमत्कार प्रदर्शन के लिए यमक, अनुप्रास, उल्ेक्षा आदि अलंकारों का प्रयोग किया है ।
(9) निष्कर्ष
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि रीतिकालीन काव्य कला-पक्ष की दृष्टि से अत्यन्त मनोरम और समृद्ध है और भाव-पक्ष का चमत्कार तथा प्रभावशीलता भी कम नहीं है।
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