रस-विवेचन
रस नौ प्रकार के हैं -
शृंगार, करुणा, हास्य अरु रौद्र, भयानक शांत ।
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अद्भुत, बीभत्स, वीर, ये हैं नव रस विख्यात ।।
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क्रमशः उक्त नौ रसों के नौ स्थायी भाव है
रति, शोक अरु हास, क्रोध, भय, वह वैराग्य उर भाव ।
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विस्मय, ग्लानि, उत्साह ये हैं नौ स्थायी भाव ।।
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शृंगार, करुण, हास्य, रौद्र, भायानक, अद्भुत, बीभत्स, वीर, शांत - ये नौ रस साहित्य में सर्वमान्य हैं। इनके अतिरिक्त कुछ लोग वात्सल्य नामक दसवाँ रस मानते हैं, जिसका विवेचन आगे किया गया है।
(१) शृंगार रस (Love)
शृंगार रस का स्थायी भाव रति (प्रेम) होता है। इस के भेद हैं --
१. संयोग शृंगार या संभोग शृगार ।
२. वियोग या विप्रलंभ शृंगार ।
स्थायी भाव-रति (प्रेम)। यद्यपि संयोग या वियोग का स्थायी भाव प्रेम है, संयोग में नायक और नायिका के मिलन का सुखद वर्णन होता है, वियोग में एक दूसरे के बिछुड़ने पर मिलन काल की घटानाएँ स्मृति में आकर दुखद हो जाते हैं।
आलंबन विभाव-नायक या नायिका। अगर नायक आलंबन हो तो नायिका आश्रय होती है और नायिका आलंबन हो तो नायक आश्रय होता है।
उद्दीपन विभाव-सौंदर्य, बादल की घटाएँ, कोयल की कूक, मलयानिल, एकांत स्थान आदि।
अनुभाव-प्रेमासक्त की स्मृति से रोमांचित होना, अश्रुपात, कंपन, मुसकान् आदि।
संचारी भाव-जुगुप्सा और मरण को छोड़कर शेष सभी संचारी भाव शृंगार रस में आते हैं।
उदाहरण-१. संयोग शृंगार-
चितवत चकित चहूँ दिस सीता ।
कहँ गये नृप किसोर मन चीता
लतन ओट तब सखिन्ह दिखाए
श्यामल गौर किसोर सुहाए।।
उक्त प्रसंग 'रामचरित मानस' के वाटिका प्रसंग से है। राम आलंबन विभाव है और सीता आश्रय है। राम का सौन्दर्य उद्दीपन विभाव है। एक क्षण केलिए राम को न पाकर सीता के मन में चिन्ता का उठना, मन की बेचैनी से इधर-उधर देखना अनुभाव है। आवेग, चपलता, हर्ष, संचारी भाव हैं।
२. वियोग शृंगारः
भूषन वचन विलोकत सिय के।
प्रेम विवस मन कंप पुलक तन,
नीरज नयन नीर भरे पिय के।
सीता के वस्त्र और भूषण आलंबन विभाव है और राम आश्रय है। सुग्रीव के वचन आदि उद्दीपन विभाव हैं। प्रेम में विवश होना, प्रिया की चिता में रोना आदि अनुभाव हैं। कंप, पुलक, उद्वेग, क्लेष आदि संचारी भाव हैं।
विशेषः-शृंगार रस को 'रस राज' कहते हैं, क्योंकि सब से अधिक संचारी भाव इसमें आते हैं। दूसरा कारण यह है कि शृंगार के स्थायी भाव (प्रेम) का अभाव सृष्टि के सभी प्रणियों पर है।
२. हास्य रस (Humour)
विचित्र वेश-भूषा, आकार, अंगों की चेष्टाएँ तथा वाणी से हृदय में जो विनोद (गुदगुदी) का अनुभव होता है उसे हास्य रस कहते हैं।
स्थायी भाव-हास
आलंबन विभाव-विचित्र वेश-भूषा, वाणी, आदि।
उद्दीपन विभाव-आलंबन की चेष्टाएँ।
अनुभाव (आश्रय की) मुस्कुराहट, लोटपोट होना, दंतपंक्ति का दीखना, नेत्रों का पुलकन।
संचारी भाव-रोमांच, हर्ष, उत्सुकता आदि ।
उदाहरण--
उस फोम के गद्दों सी,
देवी, मोटी यह देह हुई।
या एयर फुल उन डनलप के
ट्यूबों से तुम को होड हुई।
कुछ समझ नहीं मेरी आता
यदि बढते अंग रहे ऐसे
तब इस घर के दरवाजे में
बोलो तुम आओगी कैसे?
इस में स्थायी भाव हास है। आलंबन मोटी पत्नी का फूला हुआ शरीर । आश्रय पति । उद्दीपन विभाव-डनलप के ट्यूबों-का फूलना, फोम के गद्दे-सा मोटापन, मोटापे के कारण दरवाजे में न समा सकना। अनुभाव मुटापे को देखकर हँसी आना। संचारी-भाव चपलता, उत्सुकता, हर्ष इत्यादि ।
विशेष-हास्य छः प्रकार का होता है
१. स्मित-आँखों में विकास और ओंठ थोडा फड़के।
२. हसित-आँखों में विकास और ओंठो में फडकन के साथ दाँत दिखाई देने लगे।
३. विहसित-दांतां के दिखाई देने के साथ कुछ मधुर शब्द भी हो।
४. अवहसित-विहसित हँसी के साथ कंधे और सिर भी हिलने लगे।
५. अवहसित –यदि हँसते हँसते आँखों में पानी आ जाय ।
६. अतिहसित-हँसते हँसते हाथ पैर पटकने लगते हैं।
(३) करुण रस (Pathos)
प्रियव्यक्ति के पीडित व मृत होने, इष्ट वस्तु वैभव आदि के नष्ट होने से हृदय में जो क्षोभ और क्लेश होता है उसी की व्यंजना से करुण रस बनता है।
स्थायी भाव-शोक।
अलंबन विभाव-विनष्ट प्रिय जुन एवं ऐश्वर्य ।
उद्दीपन विभाव-प्रियजन का दाह कर्म, उनके वस्त्र आदि का देखना और उनसे संबंधित कथा सुनना।
अनुभाव-देव निदा, भाग्य निन्दा, प्रलाप, आह भरना, स्तम्भ आदि।
संचारी भाव-निर्वेद, मोह, श्रम, विषाद, जडता, व्याधि, ग्लानि, देन्य इत्यादि ।
उदाहरण
"भैया कहो मेरे दृगों का आज तारा है कहाँ?
मुझ दुःखनी हतभगिनी का सौख्य तारा है कहाँ?
आलंबन विभाव-अपने प्रिय पुत्र अभिमन्यु का निधन।
उद्दीपन-पुत्र का शव, उसकी वीरता की प्रशंसा ।
अनुभाव-दैव निंदा, भाग्य निदा ।
संचारी भाव-निर्वेद, विषाद, चिन्ता, दैन्य ।
विशेष-वियोग शृंगार में भी करुण रस की-सी टशा होती है। लेकिन वियोग शृंगार में प्रियजन के मिलने की आशा व संभावना होती है, करुण में नहीं।
आचार्यों ने करुण के पाँच भेद माने हैं-
(१) करुण, (२) अति करुण, (३) महा करुण, (४) लघु करुण, (५) सुख करुण ।
४. रौद्र रस ( Anger)
अपना अपमान या हानि के कारण उत्पन्न क्रोध से रौद्र-रस का संचार होता है।
स्थायी भाव-क्रोध।
आलंबन विभाव-शत्रु, देश द्रोही, कपटी आदि।
उद्दीपन विभाव-विपक्षी के किये हुए अपराध, उसकी चेष्टाएँ।
अनुभाव-आँखें लाल होना, दाँत और ओंठों को भाषण, गर्जन-तर्जन इत्यादि। चबाना, कठोर
संचारी भाव-आवेग, अमर्ष, उग्रता, गर्व आदि।
उदाहरण
"उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा।
मानों हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा ।
मुख बाल-रवि सम लाल होकर ज्वाल-सा बोधित हुआ।
प्रलायार्थ उनके मिस वहाँ क्या काल ही क्रोधित हुआ।।"
यहाँ क्रोध स्थायी भाव है। आलम्बन-अभिमन्यु को मारने वाला जयद्रथ है। उद्दीपन-अकेले छोटे से अभिमन्यु को चक्रव्यूह में फ्रैंसाकर सात महारथियों का आक्रमण करना। अनुभाव-शरीर काँपना, मुख का लाल होना आदि। संचारी भाव-उग्रता, श्रम, अमर्ष, आवेग आदि।
(५) वीर रस ( Bravery )
शत्रु का उत्कर्ष, उसकी ललकार, देश, जाति, धर्म की दुर्दशा आदि से उसको मिटाने के लिए हृदय में पुरुषार्थ और उत्साह उत्पन्न होता है उसी के वर्णन में वीर रस का संचार होता है।
स्थाथी भाव-उत्साह।
आलंबन विभाव-शत्रु या विरोधी।
उद्दीपन विभाव-शत्रु की गर्वोक्ति-सेना, रण, वाद्य, कोलाहल आदि ।
अनुभाव-बाँह फडकना, प्रतिज्ञा करना, हथियारों का प्रहार, आक्रमण आदि ।
संचारि भाव-स्मृति, धृति, रोमांच, उग्रता, हर्ष आदि । उदाहरण
प्राणन के लाले पडे, यम के हवाले पडे,
पाले पड़े खूब राजपूत तलवारन के
करों के भार शीश कट-कट गिरे भूमि
प्याले से लगे भरे काली-कलारिन के ।
आलंबन शत्रु सेना । तारने का ( बचाओ-बचाओं का) कोलाहल उद्दीपन है। करवालों का प्रभाव, शत्रु पक्ष के सिरों का कट-कट कर गिरना आक्रमण आदि अनुभाव हैं। धृति, रोमांच, गर्व, हर्ष, उग्रता आदी संचारी भाव हैं।
विशेष-वीर चार प्रकार के होते हैं-युद्ध वीर, दया वीर, दानवीर, धर्मवीर । युद्धवीर में शत्रु के नाश का, दया वीर में दयापात्र के कष्ट नाश का, दान वीर में त्याग का और धर्म वीर में अधर्म का नष्ट कर धर्म की स्थापना का उत्साह होता है। सभी वीरों में युद्ध वीर की प्रधानता होती है। अतः ऊपर यद्ध वीर का ही वर्णन दिया गया है।
६. भयानक रस ( Fear )
किसी डरावने प्राणी को देखने, अपराध के लिए दंड पाने की कल्पना तथा शक्तिशाली के सामना होने की व्याकुलता से भय लगता है। इसी से भयानक रस बनता है।
स्थायी भाव-भय
आलंबन विभाव-अनिष्ट कारक वस्तु या ध्वनि, चोर, डाकू, बलवान शत्रु ।
उद्दीपन विभाव-भयानक दृश्य या भयानक जीव की चेष्टाएँ, उसके कार्य, भयंकर अग्नि, ऊँची ऊठती लहरें, सुनसान जगह, अचानक आहट आना।
अनुभाव-कंप, स्वेद, रोमांच, वैवर्ण्य, स्वर-भंग, मूर्छा, इधर-उधर झाँकना।
संचारी भाव-आवेग, दैन्य, त्रास, मृत्यु, चिंता आदि उदाहरण
एक ओर अजगरहि लखि, एक ओर मृगराय ।
विकल बटोही बीच ही गिरा मूरचा खाय ।।
आलंबन-शेर और अजगर। उद्दीपन-शेर और अजगर की चेष्टाएँ । अनुभाव-मूर्छा खाकर गिरना। त्रास, शंका, चिता संचारी भाव हैं।
७. बीभत्स रस (Hatred)
अरुचिकर या घृणा उत्पन्न करनेवाली वस्तुओं को देखकर या पुनर्कर उनके वर्णन से हृदय में जो ग्लानि या जुगुप्सा होती है। उसी में बीभत्स रस की निष्पत्ति होती है।
स्थायी भाव-घृणा या जुगुप्सा ।
आलंबन विभाव-घृणित वस्तुएँ दृश्य या व्यक्ति।
उद्दीपन विभाव-गृद्ध, चील, कौवों का नोच-नोच कर मांस खाना, दुर्गन्ध, कुरूपता, मक्खियों का घाव आदि पर भिनभिनाना।
अनुभाव-थूकना, नाक सिकोडना, मुहँफेरना, संकोच आदि।
संचारी भाव आवेग, अपस्मार, व्याधि, मूछा, वैराग्य आदि।
उदाहरण --
सिर पै बैठ्यो काग आँख दोउखात निकारत ।
खींचत जीभहिं स्यार अतिहि आनंद उर धारत। ।
गिद्ध जाँध कहँ खोदि-खोदि के मांस उचारत।
स्वान आँगुरिन काटि-काटि कै खान विचारत।।
-सत्य हरिश्चन्द्र
८. अद्भुत रस (Wonder)
किसी असाधारण वस्तु, व्यक्ति या दृश्य को देखने से मन में जो आश्चर्य का भाव उठता है उसी में अद्भुत रस उत्पन्न होता है।
स्थायी भाव-विस्मय या आश्चर्य ।
आलम्बन विभाव-अलौकिक वस्तु व्यक्ति या दृश्य और उसके व्यापार ।
उद्दीपन विभाव-आश्चर्य जनक वस्तु, व्यक्ति तथा दृश्यों को देखना या उनका वर्णन सुनना।
अनुभाव-मुंह का खुला रह जाना, दांतो तले उँगली दबाना, रोमांचित होना, आँखें फाडकर देखना आदि। उदाहरण
नैया में नदिया बही जाया।
एक अचंभा में सुना, कुआँ में लग गयी आग।
पानी-पानी जल गया, मछली खेले फाग।
यहाँ आश्चर्य जनक चीजें आलंबन है। उनका वर्णन उद्दीपन है। कुएं में आग लग जाना तथा सारा पानी सूख जाना। इन सब को सुनकर आश्वचर्य चकित होना या कानों पर विश्वास न करना अनुभाव है। उत्सुकता, भ्रांति, वितर्क आदि संचारी भाव हैं।
९. शांत रस (Peace)
संसार की सभी वस्तुओं को नश्वर और क्षणभंगुर समझ कर, ईश्वरीय तत्व का बोध होने से मानसिक शांति मिलती है। इसी के वर्णन, श्रवण और पठन से शांत रस की उद्भावना होती है।
स्थायी भाव-निर्वेद।
आलम्बन विभाव-परमार्थ, शास्त्र-चितंन आदि।
उद्दीपन विभाव-ऋषि आश्रम, तीर्थ स्थल, महात्माओं का सत्संग और उनके उपदेश, शास्त्रों का पठन एवं श्रवण ।
अनुभाव-पुलक, अश्रु, रोमांच, तल्लीनता ।
संचारी भाव-हर्ष, निर्वेद, धृति, स्मरण, विबोध।
उदाहरण
प्रभो मेरे अवगुण चित न घरों।
समदरसी है नाम तिहारौ चाहे तो पार करो।
अलंबन परमार्थ। उटपदीपन-एकांतस्थल, जहाँ प्रार्थना व चिंतन किया जाय। पुलकन, तल्लीनता अनुभाव हैं। निर्वेद, आवेग, धृति आदि संचारी भाव हैं।
एक अन्य रस
१०. वात्सल्य रस (Affection )
यह रस अभी तक शृंगार के अंतर्गत ही था। किन्तु बाल साहित्य प्रचुर मात्रा में मिलने से इसको एक अलग रस मान लिया गया है।
छोटे बच्चों का सौन्दर्य, तुतली बोली. उनकी चेष्टाएँ और उनके क्रिया कलाप देख कर मन उनकी और खिच जाता है। उससे उनके प्रति हृदय में स्नेह उत्पन्न होना वात्सल्य रस है।
स्थायी भाव-संतान स्नेह। (अपत्य)
आलंबन विभाव-शिशु या बालक ।
उद्दीपन विभाव-बालकों की चेष्टाएँ, तुतली बोली, उनका हठ, भोला रूप।
अनुभाव-हँसना, चूमना, पुलकित होना, पालने झुलान, खेलना, भरना आदि।
संचारीभाव-हर्ष, आवेग, मोह, शंका, चिता, जडता स्मृति आदि ।
उदाहरण
माँ-ओ कह कर बुला रही थी, मिट्टी खाकर आई थी।
कुछ मुँह में कुछ लिये हाथ में, मुझे खिलाने आई थी।
पुलक रहे थे अंग, दृगों में कौतूहल था छलक रहा ।
मुँह पर थी अह्लाद लालिमा, विजय गर्व था झलक रहा।
आलंभन विभाव-बालिका। आश्रय माँ है। बालिका को माँ का बुलाना, बलिका का मिट्टी खाते हुए आना, हाथ में मिट्टी लेकर माँ को खिलाने की चेष्टा करना आदिउदुदीपन विभाव हैं। माँ का है समा, आदि अनुभाव हैं। हर्ष, आवेग, मोह, उन्माद, जडता आदि संचारी भाव हैं।
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