काव्य सौंदर्य के तत्व
कविता को पढ़कर या सुनकर हमें सौंदर्य की अनुभूति होती है। इस अनुभूति से हमें आनंद मिलता है। पुराने आचार्यों ने सौंदर्य के इस अनुभव को आस्वाद कहा है। यह सौंदर्यानुभूति या आस्वाद ही काव्य साहित्य का सार है। इसमें भाव सौंदर्य, नाद सौंदर्य और विचार सौंदर्य सम्मिलित हैं। काव्य के सौंदर्य को बढ़ाने में रस, छंद, अलंकार, शब्द शक्तियों आदि तत्व अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभातें हैं। प्रस्तुत पाठ में हम काव्य-सौंदर्य के इन्हीं तत्वों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।
1.1 अलंकार
जिस प्रकार किसी युवती को वस्त्रों और आभूषणों से सजा दिया जाए तो वह अधिक सुंदर लगने लगती है उसी प्रकार यदि भाषा को सुंदर शब्दों और अलंकारों से युक्त कर दिया जाए तो वह अधिक आकर्षक प्रतीत होती है। कहने का अभिप्राय यह है कि अलकारों से काव्य की शोभा बढ़ जाती है। इस प्रकार काव्य को रुचिकर, सुंदर और प्रभावशाली बनाने के लिए शब्द या अर्थ के स्तर पर जो योजना की जाती है, उसे अलंकार कहते हैं।
अलंकार मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं :- (क) शब्दालंकार और (ख) अर्थालंकार।
जहाँ वर्ण और शब्द के कारण कथन में रमणीयता आए उसे शब्दालंकार और जहाँ अर्थ के कारण कविता में रमणीयता और पूर्णता आए उसे अर्थालंकार कहते हैं।
शब्दालंकार के चार प्रमुख भेद हैं :
1. अनुपास 2. यमक 3. श्लेष 4. वक्रोक्ति।
अर्थालंकारों की संख्या सौ से अधिक है, लेकिन प्रस्तुत पाठ में हम उपमा, रूपक और उत्प्रेक्षा
इन तीन अलंकारों पर ही विचार करेंगे।
अनुप्रास अलंकार
इस अलंकार में समान व्यंजनों की आवृत्ति होती है। इससे कविता में सुंदरता और लय आ जाती है। भारतेंदु हरिश्चंद्र के प्रकृति वर्णन की निम्नलिखित पंक्तियों को देखिए :
'तरनि तनूजा तट तमाल, तरुवर बहु छाए।'
उपर्युक्त पंक्ति में 'त' वर्ण की पाँच बार आवृत्ति हुई है, इसलिए यह अनुप्रास अलंकार का अच्छा उदाहरण है।
इसी प्रकार सुमित्रानंदन पंत की इन दो पंक्तियों को देखिए :
मृदु मंद मंद मंथर, लघु तरणि हंसिनी-सी सुंदर,
तिर रही खोल पालों के पर।
इस कविता की पहली पंक्ति में मंद की आवृत्ति हुई है। वर्णों की आवृत्ति से कविता में माधुर्य, सुंदरता और लयात्मकता आ जाती है जो सुनने वालों को अच्छी लगती है।
अनुप्रास अलंकार के दो और उदाहरण देखिए
(1) झाँक न झंका के झोंके में झुककर खुले झरोखे से - (पंचवटी-मैथिलीशरण गुप्त)
(2) सास ससुर गुर सजन सुहाई, सुत सुंदर सीतल सुखदाई (रामचरितमानस-तुलसीदास)
यहाँ पहले उदाहरण में 'झ' और 'क' की और दूसरे उदाहरण में 'स' वर्ण की अनेक बार आवृत्ति हुई है, अतएव यहाँ अनुपास अलंकार है।
यमक अलंकार
यमक में एक ही शब्द की दो या अधिक बार आवृत्ति होती है और इन दोहराए जाने वाले शब्दों के अर्थ भी भिन्न-भिन्न होते हैं। यमक के प्रयोग से कविता में लयात्मकता, चमत्कार और सुंदरता आ जाती है। इसका उदाहरण देखिए :
कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय
या पाए बौराए जग, वा खाए बौराए।
इस दोहे में 'कनक' शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है और दोनों 'कनक' के अर्थ अलग-अलग हैं। पहले 'कनक' का अर्थ धतूरा है और दूसरे 'कनक' का अर्थ 'सोना' (धातु) है। धतूरा खाने से नशा होता है और सोने को पा लेने मात्र से मनुष्य में घमंड (अंहकार) आ जाता है। यहाँ कवि ने सोने और धतूरे में तुलना के लिए एक ही शब्द का प्रयोग किया है, इसलिए यहाँ यमक अलंकार है।
दूसरा उदाहरण देखिए :
सारंग ले सारंग चली, सारंग पुग्यो आय
सारंग ले सारंग धर्यो सारंग सारंग माय
इसमें सारंग शब्द के अर्थ है
1. घटा, 2 सुंदरी 3 वर्षा (मेघ) 4 वस्त्र 5 घड़ा, 6 सुंदरी, 7 सरोवर।
एक अन्य उदाहरण देखिए :-
तीन बेर खाती थी वे तीन बेर खाती हैं।
यहाँ पहले 'बेर' का अर्थ बार (तीन बार) से है जब कि दूसरे का अर्थ बेर (फल) है।
ऐसे ही नीचे लिखे उदाहरण में :
खग-कुल कुल कुल-सा बोल रहा। किसलय का अंचल डोल रहा।
पहले 'कुल' का अर्थ समूह है और दूसरे कुल कुल का अर्थ खगों (पक्षियों) के चहचहाने का स्वर है। अतएव यहाँ यमक अलंकार है।
उपमा अलंकार
जैसा कि पहले भी हम बता चुके हैं कि उपमा, रूपक और उत्प्रेक्षा ये अर्थालंकार है और ये सादृश्यमूलक हैं। सादृश्यमूलक अलंकारों की विशेषताएँ निम्नलिखित है :
1. सादृश्यमूलक अलंकारों में दो वस्तुओं में समानता बताई जाती है।
2. सादृश्यमूलक अलंकारों में चार तत्व होते हैं। ये तत्व हैं :
(क) उपमेय वह वस्तु या व्यक्ति जिसकी किसी दूसरी वस्तु अथवा व्यक्ति से तुलना की जाए।
(ख) उपमान: जिस वस्तु या व्यक्ति से तुलना की जाए।
(ग) सामान्य धर्म वह गुण जिसके कारण उपमेय और उपमान में समानता दिखाई जाए।
(घ) वाचक शब्द वह पद या शब्द जिसके द्वारा उपमेय और उपमान की समता प्रकट की जाए।
जिस पंक्ति में दो भिन्न पदार्थों अथवा व्यक्तियों में समान गुण के कारण समानता दिखाई जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है, जैसे
पीपर पात सरिस मन डोला
अर्थात पीपल के पत्ते के समान मन कॉप रहा था। यहाँ 'मन' उपमेय, 'पीपर पात उपमान डोला सामान्य धर्म और 'सरिस' (के समान) वाचक शब्द है, अतएव यह उपमा अलंकार है।
निम्नलिखित पंक्तियों में उपमा का उदाहरण देखिए :
राम लखन सीता सहित सोहत पर्ण निकेत
जिमि बस वासव अमरपुर, शचि जयंत समेत ।
राम, सीता, लक्ष्मण-उपमेय सहित साधारण धर्म, इंद्र शचि जयंत-उपमान जिमि-उपमा वाचक
एक अन्य उदाहरण देखिए :
लघु तरणि हंसिनी-सी सुंदर तिर रही खोल पालों के पर
यहाँ लघु तरणि (छोटी नौका) उपमेय की हँसिनी उपमान तुलना की गई है। 'सी' वाचक शब्द है और सुंदर समान धर्म है।
रूपक अलंकार
'रूपक अलंकार वहाँ होता है जहाँ उपमेय पर उपमान का आरोप करते हुए दोनों में अभेद बताया जाए। 'उपमा' की तरह 'रूपक' में उपमेय तथा उपमान दोनों का अलग-अलग उल्लेख होता है, परंतु कवि दोनों को अलग-अलग कहकर भी उनमें अभेद या एकता बताता है, जैसे:
चरण कमल बंद हरि राई।
यहाँ श्रीकृष्ण के चरण उपमेय (प्रस्तुत) और कमल उपमान (अप्रस्तुत) है। प्रस्तुत में अप्रस्तुत अथवा चरण में कमल का अरोप है, अतः यहाँ रूपक अलंकार है।
प्रसाद की इन पंक्तियों में भी रूपक का अच्छा उदाहरण देखा जा सकता है।
बाइव ज्वाला सोती थी, इस प्रणय सिंधु के तल में।
प्यासी मछली-सी आँखें भी विकल रूप के जल में ।।
इसमें आँखों में मछली का आरोप रूप में जल के आरोप का कारण
इसी प्रकार निम्नलिखित पंक्तियाँ देखिए :
बीती विभावरी जाग री।
अंबर पनघट में डुबों रही तारा-घट ऊषा नागरी।
यहाँ अंबर, तारा और उषा उपमेय पर क्रमश: पनघट और नागरी उपमान का आरोपण हो रहा है।
उत्प्रेक्षा अलंकार
'उत्प्रेक्षा' का अर्थ कल्पना या संभावना होता है। उपमेय में उपमान की कल्पना या संभावना दिखाई जाए तो उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। उत्प्रेक्षा अलंकार में कवि 'मानो', 'मानहुँ', 'जानहुँ', 'गोया', 'ऐसा लगता है', 'सचमुच ही आदि शब्दों के द्वारा 'कल्पना' या संभावना को व्यक्त करते हैं। अत: इन शब्दों के द्वारा उत्प्रेक्षा अलंकार की पहचान की जा सकती है। इस संबंध में एक पुराने कवि ने इसके लक्षण इस प्रकार बताए हैं। उपमेय भिन्न, उपमान भिन्न, फिर भी समझो एकमुख मानो है। चंद्रमा, यह उत्प्रेक्षा टेक' ।
उदाहरण :
चमचमात चंचल नयन, बिच घूँघट-पट झीन।
मानहुँ सुर सरिता विमल जल उछरत जुग मीन।।
बिहारी के इस दोहे में घूँघट के झीने (पतले) पट में चमचमाते चंचल नयनों (आँखों) के लिए कहा गया है कि मानो वे गंगा के स्वच्छ जल में उछलती हुई दो मछलियाँ हैं। इस संभावना या कल्पना के कारण यहा उत्प्रेक्षा अलंकार है। नायिका के नयन यहाँ उपमेय और मछली उपमान है।
दूसरा उदाहरण देखिए :
रहिमन पुतरी स्याम, मनहु जलज मधुकर लसै।
यहाँ श्याम पुतली (उपमेय आँख की काली पुतली) में जलज मधुकर (कमल पर बैठा भरा उपमान) की संभावना की गई है 'मनहु' वाचक शब्द है, अतएव यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
रामचरितमानस की निम्नलिखित पंक्तियाँ देखिए :
अति कटु वचन कहति कैकेयी मानहु लोन जरे पै देई।
यहाँ 'कटु वचन' उपमेय में 'लोन' उपमान की संभावना किए जाने से उत्प्रेक्षा अलंकार है। इसी प्रकार बिहारी की निम्नलिखित पंक्तियाँ उत्प्रेक्षा अलंकार का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं :
सोहत ओढ़े पीत पट श्याम सलोने गात
मनो नीलमणि सैल पर आतप परयो प्रभात।
यहाँ 'श्याम' उपमेय में 'शैल' उपमान की संभावना की जा रही है।
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