Tuesday, April 13, 2021

कहानी - Kahani / कवि और कंजूस


           कहानी - Kahani 
          
          कवि और कंजूस




       किसी गाँव में गोवर्धन नामक एक आदमी रहता था। वह अच्छा कवि था। लेकिन । गरीब था। वह कविता लिखना छोड़कर कुछ नहीं जानता था। परिवार में माँ-बाप थे, पती । थी. बच्चे थे। इसलिए वह रोज़ आस-पास के किसी जमींदार या अमीर के घर जाता था और उनका गुणगान करते हुए कविता सुनाता था। वे लोग अपनी तारीफ़ सुनकर गोवर्धन को कुछ-न-कुछ देते थे। बस, इसी से गरीब कवि किसी-न-किसी तरह अपने जीवन का निर्वाह करता था। कभी-कभी उसे खाली हाथ लौटना पड़ता था।

      एक दिन गोवर्धन पास के किसी गाँव में गया । वहाँ वह महेंद्र नामक आदमी के पहुँची। महेंद्र धनवान था, लेकिन बड़ा कंजूस था । किसी को भूलकर भी खोटी दमडी तक नहीं देता था। गोवर्धन ने महेंद्र को अपना परिचय दिया। उसके बाद उसने इस अर्थ की एक कविता सुनायी कि महेंद्र बड़ा वीर है और दानी भी है। महेद्र खुश हुआ। उसने नौकर से कहा "कवि को सोने की थाली भेंट करो"। 

      यह सुनकर गोवर्धन भी खुश हुआ। वह कहने लगा कि महेंद्र के समान बड़ा वीर और दानी आस-पास के गाँवों में कोई नहीं है । यह सुनकर महेंद्र बहुत खुश हुआ। नौकर से कहा "थाली में एक सौ अशरफ़ियाँ भी ले आओ।

      गोवर्धन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। लेकिन नौकर अंदर से आया नहीं। थोड़ी देर के बाद गोवर्धन ने महेंद्र से पूछा कि आपका नौकर क्यों नहीं आया। महेंद्र ने कहा कि वह नहीं आएगा।

    गोवर्धन का दिल बैठ गया। उसने पूछा कि क्या मुझे सोने की थाली और एक सौ अशर्फ़ियाँ नहीं मिलेंगी? महेंद्र हँसते हुए कहने लगा - तुमने मुझे वीर और दानी कहा। मैं जानता हूँ कि यह झूठ है। मुझे खुश करने के लिए तुम झूठ बोले । उसी तरह तुमको खुश करने के लिए मैं भी झूठ बोला । झूठ की वजह से हम दोनों थोड़ी देर के लिए खुश रहे। बस, अब तुम जा सकते हो। गोवर्धन ने चुपचाप घर की राह ली।


     कहानी का सारांश :


                 1. कवि और कंजूस


        एक गाँव में गोवर्धन नामक एक गरीब कवि अपने परिवार के साथ रहता था

        एक दिन वह महेंद्र नामक धनवान के घर पहुँचा। महेंद्र बड़ा कजूस था। कवि गोवर्धन उसपर झूठी प्रशंसा की कविता सुनायी। इसे सुनकर महेंद्र ने अपने नौकर से गोवर्धन के ए सोने की थाली और एक सौ अशर्फियों ले आने को कहा। मगर नौकर नहीं आया।

        गोवर्धन के पूछने पर महेंद्र ने कहा कि आपने मुझे खुश करने के लिए झूठी प्रशंसा । उसी तरह आपको खुश करने के लिए में भी झूठ बोला। गोवर्धन को खाली हाथ घर लौटना पड़ा।


सीखः- कंजूस भूलकर भी दमडी नहीं देता ।

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