सामान्य उच्चारण सम्बन्धी दोष
सामान्य रूप से उच्चारण संबंधी दोग निम्नांकित प्रकार के पाये जाते हैं जिनके निराकरण के लिए शिक्षक को विशेष रूप से सचेष्ट रहना चाहिए
(1) ऋ.ञ.ष और ज्ञ का मूल उच्चारण अब नहीं रह गया है और इनका उच्चारण क्रमशः रि.य,श, और ग्य के रूप में होता है। कहीं-कहीं 'ऋ' को 'रु के रूप में भी उच्चरित करते हैं जैसे क्रुपा अथवा प्रक्रुति जो अशुद्ध है। 'ऋ का मानक हिन्दी उच्चारण अब 'रि' की भाँति मान लिया गया है। पर '' वर्तनी में मौजूद है अत: 'ऋ' वाले शब्दों को समझा अवश्य दिया जाय ऋग् (वेद), ऋजु, ऋण, ऋत, ऋतु ऋषभ, ऋषि आदि ऋ मात्रा युक्त शब्दों को भी समझा दिया जाय-कृपा, कृषि, कृतज्ञ, कृतार्थ, गृह, घृणा, दृश्य, नूप, नृत्यु, मृत्यु आदि । इसी प्रकार 'त्र' वाले शब्दों के उच्चारण भी बता देना चाहिए-ज्ञान, विज्ञान, सर्वज्ञ, मर्मज्ञ, अभिज्ञ, अनभिज्ज, संज्ञा, विज्ञापन, कृतज्ञ आदि 'ज' का हिन्दी में स्वतन्त्र प्रयोग नहीं है। 'ष' के सम्बन्ध में आगे विस्तार से लिखा जायेगा।
(2) 'इ' को दीर्घ 'ई' के रूप में उच्चारित करने का दोष बहुत अधिक पाया जाता है। हरि, कवि, यदि, यद्यपि, क्योंकि, कान्ति, त्रुटि, मुनि, शांति, व्यक्ति, बुद्धि, आपत्ति, नियुक्ति, अनुभूति, कृषि आदि शब्दों में हम हस्व 'इ की जगह दीर्घ 'ई' की मात्रा का उच्चारण करते हैं। अतः ऐसे शब्दों में हस्व 'इ' का उच्चारण-अभ्यास खूब करना चाहिए।
कभी-कभी दीर्घ 'ई' को हस्व 'इ' के रूप में भी बालक बोलते हैं, जैसे 'आशौर्वाद' को आशिर्वाद, ईश्वर और 'इश्वर, तीर्थ को 'तिर्थ' ।
ऐसे शब्दों में जिनमें हस्व 'इ' एवं दीर्घ 'ई' दोनों हों उनका उच्चारण और भी अशुद्ध होता है, जैसे नीति, प्रीति, रीति दो हस्व 'इ' वाले शब्दों का उच्चारण भी बालक अशुद्ध करते हैं जैसे-स्थिति, परिस्थिति, तिथि, इति आदि।
(3) 'उ को दीर्घ 'क' बोलने का दोष। गुरु, मधु, साधु, आयु, शत्रु, बिन्दु, तालु, भानु, कटु, पशु, शिशु प्रभु, शंभु, दयालु, कृपालु, आदि शब्दों में अन्तिम 'उ' का उच्चारण गलती से 'ऊ' के समान हो जाता है। अतः ऐसे शब्दों के शुद्ध उच्चारण का अभ्यास अपेक्षित है।
ऊ का उच्चारण कभी-कभी 'उ' के रूप में विद्यार्थों करते हैं। पूज्य, पूज्यवर, पूर्ति, पूजा, मूल्य, शून्य, शूद्र आदि का पुज्य, पुज्यवर,पुर्ति, पुजा, मुल्य,शुन्य, शुद्र के रूप में अशुद्ध उच्चारण पाया जाता है। अत: इनके शुद्ध उच्चारण का अभ्यास आवश्यक है।
(4) ऐ को 'अय','अ + ए' और 'अ +इ' की भाँति तथा औ'अ + औ', 'अ + व' और 'अ अ' की भांति उच्चरित करते हैं । इस कारण कभी-कभी पैसा को 'पयसा" बैसा को 'बयसा', पौरुष को 'पवरुष', औषधि को 'अवषधि' बोलते हुए देखा जाता है। कभी-कभी इसका विपरीत भी होता है जैसे नवनीत का 'नौनीत', अवसर को 'औसर' इस दोष का निराकरण आवश्यक है।
ऐ, औ उक्यारण तदभव शब्दों में गो ग + ए और अ । ओ की पाति होता है, जैसे, पैसा, कैसा, पैसा और ठोर, दौडा.चौडा मादि। परतत्सम शब्द में अ । ३और अ । त के समान तोता है, जैसे, मतेमय, पर्थ, सैन्य, पैना, दैत्य, और ऐश्वर्य, वैभव, वैराग, नैराश्य, सैनिक आदिः औदार्य, गौरव, पौरुष, शौर्य मौच््य पौत्र, कौतुक, कारण, सौन्दर्य, कौशल, मौलिक आदि।
(5) 'क', 'ख', ', 'अ', 'फ' पनियां अरबी, फारसी नत्सम शब्दों में होती है ये देवनागरी की मूल ध्वनियों में नहीं है, इस कारण कुछ विद्वानों का मत है कि इन्नों क, ख, ग,ज, फ के रूप में हो उच्चरित करना चाहिए। बिना हम ध्यनियों वाले अनेक अरबी-फारसी के तत्सम शब्द हिन्दी भाषा में आ गये हैं, अत: उनमें शुद्ध रूप में अंगीकार करके उच्चरित करना चाहिए । ऐसे शब्दों की भी एक सूची बनाकर उनके उच्चारण का अभ्यास अपेक्षित है, जैसे कलम, कचूल, काबिल खर्च, सुर्ख, ख्याल, दाखिल ख़ुदा, खादिम, गरीब, गालिब, गरूर, ग्रापिल, ज़मीन, ज्यादा, जुत, तमीज क, जनाना, बाज़, फारसी नका माफ, साफ़ आदि।
(6) छ', 'च्छ' और क्ष'।' के उच्चारण में प्रायः भूल (' क्ष को 'छ' और 'छ' को 'क्ष', 'च्छ' को 'छ' या ' क्ष रूप में उच्चारण) पायी जाती है। इनका उच्चारण छात्रों को अलग-अलग स्पष्ट रूप में समझा देना चाहिए। 'छ' च वर्ग का एक वर्ण है। च्छ में च् और छ का संयोग है। 'क्ष क् + ष का संयोग है। इस प्रकार इन तीनों अक्षरों छ' 'च्छ' क्ष का स्पष्ट ज्ञान और उच्चारण आवश्यक है। इस दृष्टि से निम्नांकित प्रकार की शब्द-सूची बनाकर उनके सही उच्चारण का अभ्यास उपयोगी हो सकता है-
'-छन, छल, छिद्र छवि छलना, छंद, छपाना, छमाछम छात्र छात्रालय, छाया, छिन्न, छुट्टी, छुरी, छेद, छेकानुप्रास आदि।
आदि। छ-अच्छा, इच्छा, स्वच्छ, प्रच्छन, स्वच्छंद, उच्छवास, शुभेच्छु हितेच्छु, आच्छादन
-षत्रिय, लक्ष, लक्ष्य, पक्ष, दक्ष, यक्ष, वृक्ष क्षण प्रत्यक्ष, कका, रक्षा, रक्षक, भिक्षा, क्षमा, शिक्षा शिक्षक,भिक्षु, भिक्षुक, पक्षी प्रतीक्षा परीक्षा, अपेक्षा, उपेक्षा, अक्षर, साक्षात्, समीक्षा,दक्षिण, दक्षिणा आदि।
(7) 'ट' और 'ठ' के उच्चारण में भी प्राय: भूल होती है। यद्यपि दोनों का उच्चारण स्थान मूर्धा है पर 'ट' अल्पप्राण है और 'उ' महाप्राण है। विद्यार्थी 'ट' को 'ठ के रूप में और 'ठ' को ' के रूप में प्रायः अशुद्ध उच्चारण करते हैं। इन दोनों का योग होने पर तो 'ट्' का उच्चारण जैसा ही हो जाता है जैसे चिट्ठी' का 'चिठ्ठी'। इन दोनों के स्पष्ट उच्चारण-ज्ञान और प्रयोग के अभाव में वर्तनी की त्रुटियाँ भी होती हैं । अतः ऐसे शब्दों का उच्चारण-अभ्यास आवश्यक है-इष्ट, शिष्ट, दृष्टि, कष्ट, पुष्ट, संतुष्ट, व्यष्टि, आकृष्ट,परिशिष्ट, पृष्ठ, कनिष्ठ, ज्येष्ठ, घनिष्ठ, काष्ठ, सौष्ठव, अनुष्ठान, प्रतिष्ठा आदि।
(8) '' 'ढ' को 'ड़' और 'ढ' के रूप में उच्चरित करने का दोष भी बालकों में पाया जाता है। इसी कारण गुढाकेश का मुड़ाकेश और गूढ को गूढ़ कहने और लिखने लगे हैं ड ढ़ के
No comments:
Post a Comment
thaks for visiting my website