हिन्दी में लिंग -विधान।
ஹிந்தியில் பால் அமைப்பு
Gender in Hindi
हिन्दी भाषा ज्ञान में सबसे जटिल प्रकरण है लिंग-विधान । दक्षिण भारतीय हिन्दी छात्र छात्राओं, हिन्दी प्रचारक, प्रचारिकाओं के लिए यह एक बडी चुनौती के रूप में खडी है। द्रविड भाषओं में अप्राणिवाचक शब्दों का लिंग-विधान नहीं है। मगर हिन्दी में है।
हिन्दी व्याकरण के लिंग प्रयोग की समस्या सर्वाधिक जटिल है क्योंकि हिन्दी में संज्ञा, विशेषण, क्रिया, वचन आदि के अनुसार सर्वत्र लिंग बदलता जाता है। जैसे, 'खाना' क्रिया में 'रोटी खायी जाती है चावल खाया जाता है और फल खाए जाते हैं। इस प्रयोग वैभिन्न के पीछे कई तर्क logic नहीं है। कर्ता के अनुसार क्रिया का परिवर्तन संस्कृत, अंग्रेजी और भारतीय भाषाओं में प्रायः कहीं नहीं मिलता है। इसलिए निर्धारण का कोई फार्मूला आजतक नहीं बन पाया है। केवल कुछ मोट-मोटे फार्मूले ही बने हैं। जैसे अ, इ, उ से समाप्त होनेवाले शब्द प्रायः पुल्लिंग होते हैं और आ, ई, ऊ से समाप्त होनेवाले शब्द स्त्रीलिंग । किन्तु अपवाद भी बहुत हैं। जैसे निम्नलिखित अकारान्त शब्द हिन्दी में स्त्रीलिंग हैं - बहिन, साँस, गाय, आँख, रात, झील, चील, तलाक, जेल, चपत, जेब, लगान, लगाम, कलम, पुस्तक आदि । प्रचलन में रामायण शब्द स्त्रीलिंग है, मगर रामचरितमानस शब्द पुल्लिंग। महाभारत पुल्लिंग है और उसी का एक भाग 'गीता' स्त्रीलिंग । इसी प्रकार 'साकेत' महाकाव्य पुल्लिंग, मगर 'कामायनी स्त्रीलिंग है।
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आकारान्त शब्दों में कई शब्द पुल्लिंग भी हैं, जैसे-पिता, राजा, बेटा, लडका, मामा, नाना, बाबा, दादा, चाचा, काका, भैया, दरोगा, घोडा, टीका, हीरा, टका, डंडा, माथा, भरोसा, दीवाना, बूढा, काला, खाना, पैसा, घडा, कीडा, बन्दा, जोडा, भेडिया, कौआ, चीता, खटोला, ताला आदि। बूढा उभय लिंगीय है।
इकारांत शब्दों में अधिकतर स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे तिथि, रीति, नीति, सम्प्रति, अनुरक्ति, विपत्ति, भूमि, गति, अभिव्यक्ति, औषधि, भक्ति, श्रुति, रति, कृषि, कृति आदि । किन्तु कुछ इकारान्त शब्द पुल्लिंग भी हैं - जैसे कवि, मुनि, ऋषि, कपि आदि । कवि का स्त्रीलिंग कवयित्री और ऋषि का स्त्रीलिंग ऋषिका। मुनि का स्त्रीलिंग शब्द प्रचलन में नहीं है। कुछ का मत है कि अविवाहित होते थे।
इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि "व्यक्ति' शब्द पुल्लिंग है जबकि 'अभिव्यक्ति' स्त्रीलिंग है। ब्रह्म के अर्थ में विधि पुल्लिंग है और कानून तथा पद्धति के अर्थ में स्त्रीलिंग है।
'ई'कारान्त शब्द प्रायः स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे घोडी, बेटी, लडकी, चींटी, कुमारी, कटोरी, नर्तकी, ताली, थाली, कोठी, गाली, अँगूठी आदि । कटोरा का पुल्लिंग कटोरी और थाली का पुल्लिंग थाल आकार में पृथक होते हैं। इसके विपरीत कई ईकारांत पुल्लिंग शब्द भी पाए जाते हैं। जैसे- माली, भाई, पक्षी, साथी, हाथी, तपस्वी, पयोहारी, फलाहारी, प्रतिहारी इत्यादि । इनका लिंग परिवर्तन किसी एक नियम के अनुसार नहीं किया जा सकता है। जैसे- क्रमशः मालिन, भाभी, पक्षिणी, साथिन, हथिनी, तपस्विनी, प्रतिहारिणी। इन पुल्लिंग शब्दों के स्त्रीलिंग रूप अंगूठी से अँगूठा, कोठी से कोठा, ताली से ताला, करके नहीं बना सकते। माल, थाल, गाल, आदि के ईकारान्त शब्द भी भिन्नार्थक हो जायेंगे। उसी प्रकार कुटी स्त्रीलिंग है और कुटीर पुल्लिंग ।
'उ'कारान्त शब्द प्रायः पुल्लिंग होते हैं जैसे साधु, बन्धु, शत्रु, - राहु, केतु, हेतु, काकू आदि। पर कुछ स्त्रीलिंग शब्द भी होते हैं जैसे-वस्तु, बाहु। साधु से साध्वी, बन्धु से बान्धवी स्त्रीलिंग शब्द बनते हैं जबकि शत्रु उभयलिंगीय शब्द है।
'ऊ'कारान्त शब्द प्रायः स्त्रीलिंग होते हैं - जैसे बहू, तम्बाकू ,लू आदि पर कुछ पुल्लिंग भी होते हैं जैसे डाकू, चाकू, भोंपू, नाऊ, बालू, लहू आदि।
निष्कर्ष यह है कि अ, आ, इ, ई, उ, ऊ यानी बारह खड़ी के अनुसार लिंगों का स्वतंत्र और निरपवाद वर्गीकरण नहीं किया जा सकता। केवल प्रचलन के आधार पर ही उनका निर्णय किया जा सकता है। इस प्रचलित लिंग विभाजन के पीछे कोई तर्क कोई logic नहीं है। सामान्यतया कहा जा सकता है कि बड़े आकार का पदार्थ पुल्लिंग है एवं छोटे आकार का पदार्थ स्त्रीलिंग। लेकिन बडे जीवों में भी नर-मादा होते हैं। कुछ प्राणियों में केवल पुल्लिंग का ही प्रयोग चल रहा है जैसे - भेडिया, चीता, उल्लू-सुवा, गेंडा, सारस, जिराफ, तेंदुआ, मच्छर आदि। इसके विपरीत लोमडी, चील, बतख, तितली, मक्खी, छिपकली आदि शब्दो के पुल्लिंग शब्द नहीं बन पाये हैं।
हिन्दी शब्दों के लिंग विधान को प्रायः इन प्रत्ययों द्वारा पहचाना जा सकता है। जैसे इनी, आती, इया, आइन और ती प्रत्ययों से युक्त शब्द स्त्रीलिंग होते हैं।
उदाहरणार्थ
1. इन – मालकिन, दुलहिन, नाइन, महराजिन, पडोसिन ।
2. इनी – सर्पिणी, सन्यासिनी, हथिनी, कलंकिनी, श्रावणी, दाहिनी, तरंगिणी ।
3. आनी - जवानी सेठानी, नौकरानी, महारानी, जेठानी, देवरानी - किन्तु इसके अपवाद भी हैं - यथा, सेनानी, ज्ञानी, शानी, मानी, दानी इनमें मानी का मानिनी स्त्रलिंग शब्द भी प्रचलित हैं।
4. इया - गुडिया, चुहिया, खोटिया, लुटिया, मचिया, भुजिया आदि।
5. आइन – ठकुराइन, जुलाहिन, सहुआइन, पंडिताइन, चौधराइन आदि -
6. नी - जाटिनी, ऊँटनी, मोरनी, आनाकानी, अगवानी, बचकानी, बागवनी आदि ।
अपवाद हैं - पानी, दानी, अभिमानी, सेठानी
7. ती - युवती, धेवती, तख्ती, सुस्ती, मस्ती, फुर्ती, कुर्ती, सुर्ती, खेती, जूती, तूती, धोती
इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रयोग के आधार पर ही सही लिंग विधान किया जा सकता है; किसी निश्चित नियम के तहत नहीं। लिंग संबन्धी यह भ्रम संस्कृत भाषा में भी विद्यमान रहा है।
उदाहरणार्थ वहाँ नारी के लिए प्रयुक्त तीन शब्द तीन प्रकार अलग अलग लिंगों के हैं। नारी शब्द 'स्त्रीलिंग' है। जबकि 'दारा' पुल्लिंग है, जबकि 'कलत्र' शब्द नपुंसक लिंग है। संस्कृत में देवता स्त्रीलिंग है तो आत्मा, ताना, अग्नि 'पुल्लिंग' है। पवन, शपथ, वायु, वय जैसे कुछ शब्द संदिग्ध हैं। संस्कृत में कुछ लिंग शब्द अलग से गढे गये हैं। जैसे स्त्री सम्राट का स्त्रीलिंग शब्द साम्राज्ञी, साधु का साध्वी, ऋषि का ऋषिका ।
फारसी भाषा मध्य युग में उत्तर भारत पर थोपी गयी। वहाँ यह सात सौ साल तक राजभाषा रही है। देवनागरी लिपि का प्रचलन ही बन्द हो गया। फारसी लिपि प्रचलित रही। अतः हिन्दी भाषा पर फारसी का भी गहरा प्रभाव रहा है। फारसी के कुछ शब्द भिन्न लिंगीय हैं, जैसे चरचा, धारा शब्द वहाँ पुल्लिंग हैं। हिन्दी में चर्चा का बहुवचन हम चर्चायें लिखते हैं जब कि वे 'चरचे' लिखते हैं।
उर्दू के ऐसे कई विशेषण - शब्द हिन्दी में प्रचलित हैं, जिनका लिंग परिवर्तन नहीं किया जा सकता जैसे - जिन्दा, उम्दा, मुर्दा, बेहूदा ताजा, जनाना, मर्दाना आदि। ताजी लिखना व्याकरण सम्मत नहीं है। जनानी मर्दानी का भी काफी अर्थ बदल जाता है।
हिन्दी के देशज शब्दों में भी कहीं-कहीं लिंग परिवर्तन संभव नहीं दीखता है, जैसे बढिया, घटिया, पोंगा आदि उभय लिंगीय हैं। - हिन्दी में ऐसे कई शब्द अंग्रेजी से लिए गए हैं जो पुल्लिंग स्त्रीलिंग दोनों में प्रयुक्त होते हैं, जेसे टिकट, फोटो, ट्रक, पेन, मोटर, तौलिया आदि । इनके अतिरिक्त भी कई उभय लिंगीय शब्द हैं। जैसे बाजार, टक्कर, टीका गंध, दल दल, लालाच, झूठ, रुमाल, नाप, तकिया, पहिया, मोती, गेंद इत्यादि ।
इनका लिंग निर्धारण विशिष्ट संदर्भ में ही किया जा सकता है इनमें प्रायः पुल्लिंग शब्द हैं - फोन, माइक, पेन। -
इस संदर्भ में एक ज्ञातव्य यह है कि पदनामों में लिंग-परिवर्तन नहीं किया जा सकता। जैसे राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, राज्यपाल, निदेशक, प्रधानाचार्य, अध्यक्ष ये केवल पुल्लिंग में ही लिखे जाने चाहिए।
दूसरा ज्ञातव्य यह है कि जिस वाक्य में पुल्लिंग, स्त्रीलिंग के दो या तीन कर्ता होते हैं वहाँ अंतिम शब्द के लिंग के अनुसार ही पूरे वाक्य का लिंग विधान किया जाता है जैसे गाय, बैल और भैंसें आ रही हैं। यदि मूल वाक्य में होता गाय, भैंस और बैल तो क्रिया रखी जाती "आ रहे हैं"। यह भी ज्ञातव्य है कि भैंसा का बहुवचन भी भैंसे और भैंस का बहुवचन होगा भैंसें।
तीसरा महत्त्वपूर्ण ज्ञातव्य है कि यदि दो शब्दों में संधि की जाती है तो उत्तरार्द्ध में प्रयुक्त होनेवाले शब्द के लिंग के अनुसार ही वाक्य बनाया जाना चाहिए। जैसे-आपके आदेशानुसार, आपके योजनानुसार न कि आपकी योजनानुसार इसलिए कि यहाँ 'के अनुसार शब्द पुल्लिंग है। यह सामासिक योजनापूर्ण संधि है।
इस प्रकार अधिकाधिक अभ्यास द्वारा ही लिंग समस्या का राकरण किया जा सकता है। जो संदिग्ध और उभयलिंग शब्द है उनके प्रयोग में कट्टरता नहीं अपनायी जानी चाहिए। संस्कृत और फारसी प्रयोगों को अतिरिक्त छूट देनी होगी। शेष शब्दों को उपर्युक्त स्थूल फार्मूले के अनुसार वर्गीकृत तथा अंगीकृत करना ही समीचीन होगा।
संप्रति कुछ लिंग-परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन से भी प्रेरित दिखाई देते हैं। जैसे-शिक्षित लडकियाँ अपनी बातचीत में पुल्लिंग क्रिया पदों का ज्यादा प्रयोग करने लगी हैं, यथा - 'हम जाएँगी' की जगह 'हम जाएँगे। दूसरे संबोधन में यदाकदा लडकी के लिए भी (महत्व देने के उद्देश्य से) 'बेटे' शब्द का प्रयोग किया जाने लगा है। तीसरे, किसी समूह में जहाँ लडके, लडकियाँ दोनों होते हैं, वहाँ प्रायः पुल्लिंग शब्द का प्रयोग किया जाता है। जैसे 'अब लडके क्लास में आने लगे हैं' का अर्थ लडकों; लडकियों दोनों से है। यही स्थिति आदमी, श्रोता, दर्शक, पाठक, नागरिक, ग्राहक, अभ्यर्थी, मतदाता, लोग आदि शब्दों में भी है।
अक - नायक, चालक, पालक, दायक, लायक, साधक, पाठक, गायक
त्व – महत्व, एकत्व, मनुष्यत्व, पशुत्व, देवत्व, दायित्व
इस संदर्भ में ज्ञातव्य है कि 'ता' प्रत्ययवाले शब्द स्त्रीलिंग होते महत्ता, सत्ता, प्राणवत्ता हैं,
जैसे- महत्ता, सत्ता, प्राणवत्ता
जहाँ 'ना' अक्षर आता है वे शब्द पुल्लिंग होते हैं, यथा टहलना, पलना, चलना। जहाँ 'य' अन्त में हो, वे शब्द पुल्लिंग होते हैं जैसे-भवदीय, स्वकीय, आत्मीय, पदीय। जहाँ 'आपा' अन्त में हो जैसे- मोटापा, बुढापा, छापा, पापा। 'आवा' शब्द
जैसे - चढ़ावा, बढावा, बुलावा, मावा, पहनावा, दिखावा ।
औडा - पकौडा, हथौडा, कौडा, लौंडा, भगोडा
खाना - डाकखाना, दवाखाना, कारखाना, मैखना, पागलखाना
पत - चपत, खपत, संपत
दान - वागदान, कलमदान, पीकदान, अन्नदान दूधवाला, गाडीवाला, ताँगेवाला, रखवाला वाला
एरा - चचेरा, फुफेरा, ममेरा, ऐरागैरा, मौसेरा, सँपेरा
आर - सोनार, लोहार, कहार, कुम्हार, अय्यार, यार
ज्ञातव्य है कि आभूषण रूप में 'हार' शब्द पुल्लिंग है और पराजय के अर्थ में हार शब्द विनय और जयजयकार की तरह स्त्रीलिंग हो जाता है। 'बाजार' शब्द सम्प्रति उभयलिंग दिख रहा है। आकार के अनुसार बडा बाजार छोरी बाजार या इतवारी बाजार जैसे शब्द ज्यादा प्रचलित है। पुल्लिंग की पहचान के कुछ अन्य लक्षण भी हैं जैसे --
1. यह भी उल्लेखनीय है कि भारी वस्तुयें पुल्लिंग हैं और छोटी हल्की वस्तुयें स्त्रीलिंग। अपवाद अनेक हैं जैसे - तोप, मिसाइल, हवेल, सील, मछली आदि शब्द ।
2. हिन्दी में देशों के नाम पुल्लिंग माने जाते हैं जैसे विलायत, ऐशिया, जर्मनी, इटली ।
3. शरीर के विभिन्न अंगों - प्रत्यंगों के नाम पुल्लिंग - स्त्रीलिंग दोनों होते हैं जैसे सिर, ललाट, अधर, कंधा, हाथ, पैर, उदर, नितम्ब, नाखून अँगूठी - केश, करतल, उरोज, कान, मुख, कपोल, कंठ, तलुवा आदि पुल्लिंग हैं और आँख, नाक, भृकुटि, पलक, जीभ, पीठ, कमर, जंघा, कलाई, उँगली. ओंठ, हथेली, कुहनी, एडी, छाती, पुतली, बरौनी आदि शब्द स्त्रीलिंग हैं।
4. हिन्दी देवनागरी वर्णमाला के सभी वर्णाक्षर पुल्लिंग हैं।
5. प्राणिसमुदाय के वाचक शब्द पुल्लिंग हैं- जैसे- दल, मण्डल, - झुण्ड, समूह, गण, वृन्द, वर्ग, परिवार, समाज, संग्रह, परिसर, देश प्रांत. जनपद, अंचल, ग्राम, कस्बा, मोहल्ला, क्षेत्र, संकुल, ब्लाक, सेक्टर, सेक्शन, क्लास, ग्रूप, सम्मेलन, मेला आदि। कुछ अपवाद भी हैं जैसे आबादी, भीड, कॉलनी, सभा, बैठक, गोष्ठी आदि । बस्ती.
6. हिन्दी के कई शब्द नित्य पुल्लिंग हैं जैसे खटमल, गीदडचीता, मगरमच्छ, बिच्छू, कछुआ, गैंडा, खरगोश, भेडिया, सियार, कीडा, कौआ, उल्लू, मोर।
ठीक इसी तरह कुछ शब्द नित्य स्त्रीलिंग हैं - जैसे सन्तान, सवारी, नर्स, मैना, मक्खी, मकडी, दीपक, मछली, तितली, गिलहरी, चिडिया, छिपकली, चील, कोयल, यदाकदा मोर से मोरनी और कोयल से कोकिल विपरित लिंगीय शब्द बना लिये जाते हैं।,
स्त्रीलिंग शब्दों के प्रमुख लक्षण निम्नवत् है :
1. अकारान्त शब्द पुल्लिंग और आकारान्त शब्द (जैसे दया, माया, कृपा, क्षमा) प्रायः स्त्रीलिंग होते हैं। इनमें अपवाद भी बहुत हैं।
2. उकारान्त शब्द जैसे-मृत्यु, सासु । अपवाद हैं -साधु, भानु, गुरु, भालू, पशु ।
3. इकारान्त शब्द जैसे- जाति, प्रकृति, भक्ति, रति, नियति, छवि, अवधि स्त्रीलिंग हैं।
4. ईकारान्त शब्द प्रायः स्त्रीलिंग होते हैं जैसे - लड़की, खिडकी, साडी, लेखनी, कुरसी, दादी, चाची, नदी, आदि। अपवाद हैं माली, भाई, नाई, हाथी, साथी आदि ।
5. आवटवाले शब्द - सजावट, तरावट आदि स्त्रीलिंग हैं।
6. इसी प्रकार आहट चिल्लाहट, खरखराहट, सरसराहट, गडगडाहट, खिलखिलाहट, गुर्राहट, गुडगुडाहट, किलकिलाहट आदि भी।
7. 'इया' से युक्त आदि शब्द स्त्रीलिंग हैं। बुढिया, लोटिया, पहिया, पुडिया, मदिया, बिटिया आदि शब्द स्त्रीलिंग हैं।
8. 'त्ता' से युक्त अपवाद हैं। महत्ता, सत्ता, गुणवत्ता जैसे शब्द स्त्रीलिंग होते हैं। - भत्ता, छत्ता, लत्ता, पत्ता, गत्ता, बित्ता, दुचित्ता आदि शब्द ।
9. आई से बने - लडाई, बडाई, कार्रवाई, हवाई, मलाई, भलाई जैसे शब्द स्त्रीलिंग हैं। अपवाद हैं - हलवाई।
10. अंत में 'नी' वाले करनी, छन्नी, नानी, वाणी, रानी आदि ।
11. इमा- महिमा, गरिमा, लघिमा, लालिमा, पीलिमा, नीलिमा -
12. आस प्यास, लास
13. त- रगत, चाहत, लज्जत, इज्जत, भगत, लागत, खपत आदि ।
14. री, ली - गठरी, मठरी, मछली, बिजली, सुतली, पहेली।
15. भाषाओं और लिपियों के नाम प्राय : स्त्रीलिंग में होते हैं - जैसे जर्मन, संस्कृत, देवनागरी, रोमन ।
16. तिथियों के नाम प्रायः स्त्रीलिंग होते हैं जैसे अमावस, पूर्णिमा
17. कुछ स्त्रीलिंग शब्द उपर्युक्त नियमों से अलग हटकर विकसित हुए हैं।
जैसे मर्द-औरत, सम्राट- सम्राज्ञी, कवि-कवयित्री, विद्वान-विदुषी, विधुर-विधवा ।
18. कहीं कहीं दुहरे। विलोम रूप भी दिखाई देते हैं जैसे नर से नारी और मादा, बहन के विलोम भाई और बहनोई ।
19. कुछ शब्दों के नाम के अनुसार लिंग प्रयोग किया जाता है
जैसे ब्रह्मपुत्र(पु) कामायनी पढी, गोदान पढा, बम्बई घूमी, पुणे देखा।
20. पुल्लिंग से स्त्रीलिंग शब्द बनाने हेतु आ, ई, इया, अह आई, इन, आइन, इका, आनी, नी, वती, मती, इनी, ती, त्ता, री, ट आदि प्रत्यय प्रयुक्त होते हैं। किन्तु अपवाद भी हैं – अस्तु बहुसंख्यक प्रयोग अर्थात् व्यवहारगत अनुपात ही लिंग का निर्णायक होगा। -
हिन्दी के अनेक शब्दों के लिंग संदिग्ध प्रतीत होते हैं। ऐसे कुछ पुल्लिंग शब्द हैं - तारा, तार, ताल, पेट, मधु, शम, दम, तनाव धक्का, ढाढस नजराना, पॉकेट, फर्श, प्रण, पण, पाला, पिक, पुट, कालिज, बादाम, बुत, भरता, भर्ता आदि।
इसी प्रकार के संदिग्ध अथवा विवादास्पद स्त्रीलिंग शब्द हैं पोस्ट, बारात, बहस, खत, लत, नौबत, नज़र, पंचायत, पूँछ, पुस्तक, पेंसिल, पलक, फौज, धूलि-धूल, दौड, भेडिया, धसान, धाड, दाद, धमक, तलब, तलाक, तलाश, तखत, कडक, तनख्वाह, चमक, तरंग, लगान, जेब,थूक, अक, ओस आदि। ,
कुछ शब्दों में बड़ा बारीक अन्तर है - जैसे, भंग पुल्लिंग है और भाँग शब्द स्त्रीलिंग। शरीर के एक प्रत्यंग के रूप में पीठ स्त्रीलिंग है और विद्यापीठ, शक्तिपीठ रूप में पुल्लिंग है। फुहार स्त्रीलिंग है और फुहारा (फौव्वारा) पुल्लिंग। भँवर पुल्लिंग है और भाँवर स्त्रीलिंग । तडक, भडक स्त्रीलिंग है और तडका (छौंका और प्रत्यूषवेला) पुल्लिंग। ध्वज पुल्लिंग है और ध्वजा स्त्रीलिंग। दौड स्त्रीलिंग है और दौडा पुल्लिंग। आतप के अर्थ में धूप स्त्रीलिंग और धूपबर्त्ती में जलनेवाला सुगंधित पदार्थ 'धूप' पुल्लिंग है। 'धूप' पुल्लिंग है किन्तु धूमधामवाला धूम शाब्द स्त्रीलिंग है। बूँद को भी आकार के अनुसार दोनों लिंगों में रखा गया है। कविवर पंत ने विद्वान, भोर, प्रभात, पवन, वायु, आदि कई शब्दों को स्त्रीलिंग में प्रयुक्त किया है।
संस्कृत में अग्नि, आत्मा, वायु को पुल्लिंग और देवता को स्त्रीलिंग माना गया है। वहीं दारा पुल्लिंग है 'कलत्र' नपुंसक लिंग है और नारी स्त्रीलिंग है। हिन्दी में नपुंसक लिंग के न होने से लिंग विपर्यय बहुत हो गया है लिंग निर्णय का कोई सर्व सम्मत फार्मूला आज तक स्थिर नहीं हो पाया। इसे कुछ स्थूल सूत्रों द्वारा मुख्यतः अभ्यास के सहारे ही सीखा जा सकता है। यही स्थिति अन्य व्याकरणिक कोटियों की है। सबमें क्षेत्रीय भेद दिखायी देता है। आवश्यकता यह है कि बहुसंख्यक प्रयोगों के आधार पर तर्क पूर्वक निर्णय लिए जाएँ। इसके लिए संवाद अपेक्षित है। कोई एक वैयाकरण इदमित्थं व्यवस्था नहीं दे सकता। इन बिन्दुओं का समानुपतिक समाधान निकालना ही अपेक्षाकृत निरापद होगा।
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