सुभाषितानि
यस्मिन् देशे न सम्मानो, न प्रीति च बान्धवाः ।
न च विद्यागमः कश्चित्, न तत्र दिवसं वसेत् ॥ १ ॥
अन्वयः-यस्मिन् देशे न सम्मानो न प्रीतिः न च बान्धवाः न च कश्चित
विद्यागमः तत्र दिवसं न बसेत् ।
अर्थ:-जिस देश में सम्मान न हो, प्रेम न हो, सम्बन्धी न हों तथा जहाँ कोई
विद्या का आगम (प्राप्तिसाधन) न हो वहाँ एक दिन भी न रहे।
भावार्थ:-मनुष्य को उसी देश में रहना चाहिये, जहाँ सम्मान और प्रेम मिले ।
जहाँ सम्बन्धी रहते हों तथा जहाँ विद्या प्राप्त होती हो ।
अश्वं नैव गजं नैव व्याघ्रं नंव च नैव च।
अजापुत्रं बलि दद्यात्, देवो दुर्बलघातकः ॥ २ ॥
अन्वयः-अश्व बलि नंब (दद्यात्), गजं बासि नंब (दद्यात्), व्याप्तं नव च नैव च
(दद्यात्) अजापुत्रं बलि दद्यात्; (यतः) देवः दुर्बलघातकः (भवति)।
अर्थः-घोडे को बलि नहीं दिया जाता, हाथी को भी बलि नहीं दिया जाता,
शेर को कभी भी बलि नहीं दिया जाता। केवल बकरे को हो बलि
दिया जाता है; क्योंकि देव भी निर्बलों का हो पातक होता है।
भावार्थ:-जो बलबान होते हैं उनका धात ईश्वर भी नहीं करता ।
दुबल ही सर्वत्र मारे जाते हैं ।
उदारस्य तृणं वित्तं शूरस्य मरणं तृणम् ।
विरक्तस्य तृणं भार्या, निःपृहस्य तृणं जगत् ॥ ३ ॥
अन्वयः-उदारस्य (कृते) वित्तं तृणम्, शुरस्य (कृते) मरणं तृणम्, विरक्तस्य (कृते)
भार्या तुणम्, नि:स्पूहस्य (कृते) जगत् तुणं (अस्ति) ।
अर्थ:-जो उदार है उसके लिए धन तिनके के समान (तुच्छ) है, जो वीर है. उसके
लिए मृत्यु तुच्छ है, वैरागी के लिए स्त्री तुच्छ है और निर्लोभी के लिए सारा
विश्व ही तृणवत् है।
जननी जन्मभूमिश्च जाह्नवी च जनार्दनः ।
जनकः पञ्चमश्चैव, जकाराः पञ्च दुर्लभाः ॥ ४ ॥
अन्वयः-जननी जन्मभूमिः जाह्नवी जनाईनः पञ्चमः च जनकः (एते)
पञ्च जकाराः दुर्लभाः (सन्ति)।
अर्थः-जननी, जन्मभूमि, जाह्नवी, जनार्दन और जनक ये पाँच जकार
संसार में कठिनता से मिलते हैं।
भावार्थ:-भगवान् श्रीकृष्ण, गंगा, मातृभूमि, माता और पिता का
सौख्य इस जगत में प्राप्त होना बड़ा कठिन है।
शैले शैले न माणिक्यं, मौक्तिकं न गजे गजे ।
साधवो नहि सर्वत्र, चन्दनं न वने वने ॥ ५ ॥
अन्वयः-माणिक्यं शैले शैले न (भवति) मौक्तिकं गजे गजे न ( भवति)
चन्दनं बने बने न (भवति ) । इत्थमेव साधव: सर्वत्र न (भवन्ति ।
अर्थ:-माणिक्यादि रत्न हरएक पर्वत पर नहीं होते, हरएक हाथी के
मस्तक में मोती नहीं होता, हरएक जंगल में चन्दन नहीं होता,
इसी प्रकार सज्जन पुरुष सभी स्थानों पर नहीं हुआ करते।
भावार्थ:-मल्यवान वस्तुएँ जिस प्रकार दुर्लभ हैं, उसी प्रकार साधु पुरुष
भी बड़े दुर्लभ है ।
प्रदोषे दीपकश्चन्द्रः, प्रभाते दीपको रविः।
त्रैलोक्ये दीपको धर्मः, सुपुत्र: कुलदीपकः ॥ ६ ॥।
अन्वयः-चन्द्रः प्रदोषे दीपकः (भवति) रविः प्रभाते दीपकः, धर्मः
त्रैलोक्य दीपकः, सुपुत्रः कुलस्य दीपकः (भवति ) ।
अर्थ:-रात में चन्द्रमा दीपक का काम करता है, सूर्य प्रातःकाल के समय
दीपक का काम करता है, धर्म तीनों लोकों में दीपकका काम करता है
और सुपुत्र अपने कुलों में बीपक का काम करता है।
भावार्थ:-चन्द्र, सूर्य, धर्म और सुपुत्र दीपक के समान चमकते है और
अपने-अपने क्षेत्र का अन्धकार दूर करते हैं।
येषां न विद्या न तपो न दानं
ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।
ते मृत्युलोके भुवि भारभूताः
मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥ ७ ॥
अन्वयः-येषां न विद्या, न तपः न दानं, न ज्ञानं न शोलं, न गणः न धर्मः,
ते मर्त्यलोके भुवि भारभूताः मृगाः मनुष्यरूपेण चरन्ति ।
अर्थ:-जिनके पास न विद्या है, न तप है, न दानवृत्ति है, न जान है, न
सदाचरण है, न कोई गुण है और न कोई धर्म है, बे पृथ्वी पर
भार बने हुए पशु ही है। इस मत्यंलोक में मनुष्य का रूपमात्र
धारण किए हुए वे विचरण करते हैं ।
भावार्थ:-मनुष्य सद्गुणों से ही मनुष्य बनता है । बिना गुणों के तो
बह पशु के समान है।
यस्यास्ति वित्तं स नरः कुलीनः
स पण्डितः स श्रुतवान् गुणज्ञः ।
स एव वक्ता स च दर्शनीयः
सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ते ॥ ८ ॥
अन्वयः-यस्य वित्तं अस्ति सः नरः कुलीनः । (यस्य वित्तं अस्ति)
सः पण्डितः श्रुतवान् गुणजः च ( अस्ति) सः एव वक्ता,
स च दर्शनीयः, (यतः) सर्वे गुणाः काञ्चनं आश्रयन्ते ।
अर्थ:-जिसके पास धन है वह मनुष्य कुलीन है, जिसके पास धन
है वही पंडित, ज्ञानी और गुणज्ञ है, वही वक्ता और दर्शनीय है;
क्योंकि सभी गुण सुवर्ण (धन) में आधित है।
भावार्थ:-जिसके पास धन है वह गुणरहित होकर भी गुणी माना
जाता है और जिनके पास गुण हैं वह धनरहित होने पर
गुणहीन माना जाता है।
परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः,
परोपकाराय वहन्ति नद्यः ।
परोपकाराय दुहन्ति गावः,
परोपकाराय सतां विभूतयः ॥ ९ ॥
अन्वयः-वृक्षाः परोपकाराय फलन्ति, नद्यः परोपकाराय वहन्ति, गावः
परोपकाराय दुहन्ति, सतां विभूतयः परोपकाराय ( भवन्ति) ।
अर्थ:-वृक्ष परोपकार के लिए फल देते हैं, नदियाँ परोपकार के लिए बहुती हैं।
और गौवें परोपकार के लिए दूध देती है। इसी प्रकार सज्जनों की
विभूतियाँ परोपकार के लिए होती हैं ।
भावार्थ:-वृक्ष, नबी और गाय के समान सज्जन पुरुष भी परोपकारी होते हैं ।
वृथा वृष्टिः समुद्रेषु, वृथा तृप्तस्य भोजनम् ।
वृथा दानं समर्थस्य, वृथा दीपो दिवाऽपि च ॥ १० ॥।
अन्वयः-समुद्रेषु वृष्टिः वृथा, तृप्तस्य भोजनं वृथा, समर्थस्य (कृते)
दानं वृथा, दिवापि दीपः वृथा (भवति) ।
अर्थः-समुन्न में वृष्टि व्यर्थ है, जिसका पेट भरा है उसे भोजन देना
व्यर्थ है, जो सम्पन्न है उसे दान देना व्यथं है और दिन में
दीपक जलाना व्यर्थ है ।
भावार्थ:-काम वही करना चाहिए जिसकी आवश्यकता हो ।
सुभाषितानि
worthful saying
एवमे माता च पिता त्वमेष,
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।
खमेव विद्या हषिणं त्वमेव,
त्वमेव सर्व मम बेवदेव ।।
अन्वयः-हे विदेव एवं एप मम माता, वं एवं मम पिता, वं एवं व वन्धुः,
वं एव सखा, त्वं एव विद्या, त्वं एवं द्रविंग स्वं एवं मम सर्वम् ।
Meaning :-Oh, Lord of Gods! You are my mother and
my father as well. You are my brother and
my friend also. You are my knowledge a
treasure and you are every thing for me.
आचारः परमो धर्मः, आचारः परमं तपः
आचारः परमं ज्ञान, आचारात् कि न साध्यते? ।।
अन्वयः-आचारः परमः धर्मः, आचारः परमं तपः आचार:
परमं ज्ञानं आचारात् किं न साध्यते ?
Meaning :-Good behaviour is the best religion.
Good behaviour is good knowledge.
Good behaviour is a great penance.
What is there that will not be acquired by
good behaviour ? Of course everything.
will be acquired by the man of good behaviour.
विद्वत्त्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन ।
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते ।।
अन्वयः-विद्वत्त्वं च नृपत्वं च कदाचन तुल्यं न व राजा स्वदेसे पूज्यते,
विद्वान सर्वत्र पूज्यते ।
Meaning :-The learnedness and the kingship can never be
compared with each other, because the king is
respected in his own country only, while the
learned person is greatly respected anywhere
in the world.
विद्या ददाति विनयं विनयात् याति पात्रताम् ।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनाद्धर्म ततः सुखम् ॥
अन्वयः-विद्या विनयं ददाति, विनयात पात्रतां याति,
पात्रत्वात् धनं आप्नोति, धनात् धर्म (आप्नोति)
ततः सुखं (आप्नोति) ।
Meaning :-A man gains humility by learning.
By humility he becomes worthy.
Worthyness gives him riches and
he becomes happy.
Gist :-A learned man gets respect everywhere. He is humble of course due to his becoming worthy. He earns a good deal of money and as a matter of fact he gets satisfaction and the luxurious life.
सुखमापतितं सेव्यं कुःखमापतितं तथा ।
चक्रवत्परिवर्तन्ते चुःखानि च सुखानि च |।
अन्वयः-आपतितं सुखं सेव्यं तथा आपतितं दुःणं सेण्यं
चुःखानि च मुखानि व चक्रवत् परिवर्तन्ते ।
Meaning :-As the man accepts happiness so he should welcome sorrow which falls on him, because happiness and the sorrow go hand in hand as if they were in one wheel.
Gist: Happiness and sorrow are not constant. Both of them come and go as well. Hence a man should be ready to welcome both equally. They rotate like a wheel.
अयं निजः परो बेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।
अन्वयः-अयं निजः वा परः इति गणना लघुचेतसां (भवति) उदारचरिताना तु वसुधा एव कुटुम्बकं (भवति)।
Meaning :-This is my man and that one is a foreigner this sort of discrimination prevails in the narrowminded people. But for the people with generous heart all the world is their own family.
Gist :-For them, who think highly, the world is, as if their own family. But those, who are narrow minded, treat people with discrimination.
सुन्दरोऽपि सुशीलोऽपि कुलीनोऽपि महाधनः ।
शोभते न विना विद्या विद्या सर्वस्य भूवणम् ॥
अन्वयः-सुन्दरः अपि, सुशीलः अपि कुलोनः अपि, महाधनः (अपि)
विद्यां बिना न शोभते (यतः) विद्या सर्वस्य भूषणम् ॥
Meaning :-Though beautiful, of good character,
born of high family and born with a
silver spoon in the mouth, one does not
shine without learning. Hence learning
is the greatest ornament of all.
Gist :-A man becomes great only with the attainment
of learning and not by riches or beauty.
चिन्तनीया हि विपदामादौ एवं प्रतिक्रिया।
न कूपखननं युक्तं प्रदीप्ते वह्निना गृहे ।।
अन्वयः-विपदां प्रतिक्रिया आदौ एव चिन्तनीया, वहिनना गृहे प्रदीप्ते
(सति) कूपखननं न युक्तं ( भवति) ।
Meaning: A man should think in advance about
the remedy of impending calamities.
. It is not wise to dig a well when
the house is on fire,
Gist :-One must be always very alert about the forth coming difficulties and disasters, so that one can find remedy in advance.
गौरवं लभ्यते दानान्न तु वित्तस्य संचयात् ।
स्थितिरुच्चैः पयोदानां पयोधीनामधः स्थितिः॥
अन्वयः-दित्तस्य दानात् गौरवं लभ्यते न तु संचयात्, पयोदानां स्थितिः उच्चैः
(भवति) पयोधीनां स्थितिः अधः (भवति) ।
Meaning: A man is respected by charity
(donating the wealth) and not by
accumulating wealth. The clouds
stay up in the sky (because they give off
water i.e. donate their wealth) but the position-
situation of the sea is down on the carth
(as the sea only accumulates water, its wealth.)
Gist :-The man who can sacrifice can become progressive
in life. Accumulation of wealth is not the sign of
progress.
नास्ति लोभसमो व्याधिः नास्ति कोधसमो रिपुः ।
नास्ति दारिद्रघवत् दुःखं नास्ति ज्ञानात् परं सुखम् ।।
अन्वयः-लोभसमः व्याधिः नास्ति, कोधसमः रिपुः नास्ति, दारिद्रय वत् दुःखं नास्ति,
ज्ञानात् परं सुखं नास्ति ।
Meaning :-There is no severe disease like greed.
There is not an enemy like anger.
There is no pain like poverty.
And there is no happiness greater
than knowledge.
Gist :- There is no great disease like avarice, no great
enemy like anger and no pain like poverty.
A man gets inner satisfaction only by knowledge
and hence a man should learn and become wise.
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