✍ प्रयोजन मूलक हिन्दी की विभिन्न शैलियों
🌷🌷🌷प्रयोजन मूलक हिन्दी की विभिन्न शैलियों का परिचय देते हुए एक विवरणात्मक निबन्ध लिखिए।
(अथवा)
प्रयोजनमूलक हिन्दी के संबन्ध में आपकी क्या अवधारणा है? उसकी विभिन्न शैलियों का विवेचन कीजिए।
हिन्दी भाषा का जो रूप अपने साहित्यिक रूप के अतिरिक्त शैली का औद्योगिक, व्यापारिक, वैज्ञानिक, प्रशासनिक, सामाजिक और सरकार के अन्य क्षेत्रों की पूर्ति करता है। वही प्रयोजनमूलक हिन्दी है। प्रयोजनमूलक हिन्दी का रूप अत्यधिक व्यावहारिक है, जब कि उसका साहित्यिक रूप अधिक परिनिष्ठित होता है। लेकिन दोनों रूप एक दूसरे के पूरक है। साहित्यिक रूप उसे स्थित्यात्मक बताता है, तो प्रयोजन मूलक रूप उसे गत्यात्मक बनाता है। प्रयोजनमूलक रूप ही उसे जीवन्त बनाता है। उसे लोकप्रिय बनाता है।
कई प्रयोजनमूलक प्रवृत्तियों और शैलियों के माध्यम से हिन्दी की प्रवाहमयता अक्षुण्ण है।
प्रयोजनमूलक हिंन्दी की विभिन्न शैलियाँ:
शैली भाषा-सौंदर्य को बनाये रखनेवाला साधन है। नीरस से नीरस विषय भी शैली की विलक्षणता के कारण पाठक को आकृष्ट कर सकता है। शैली के माध्यम से ही विचारों तथा भावों को स्पष्ट और प्रभावोत्मादक ढंग से प्रकट किया जा सकता है। प्रयोजनमूलक हिंन्दी की प्रमुख शैलियाँ निम्न लिखित हैं -
(1) पत्र-लेखन शैली (2) संवाद शैली (3) विचारात्मक शैली (4) भावात्मक शैली (5) विवरणात्मक शैली।
1. पत्रलेखन शैली: प्रयोजनमूलक हिंदी की महत्वपूर्ण पत्र-लेखन की शैली है। यह सर्वाधिक उपयोगी, जीवन के सभी क्षेत्रों ● लोकप्रिय एवं आवश्यक रूप है। उद्देश्य, प्रयोग तथा क्षेत्र के आधार प पत्रों के अनेक प्रकार प्रचलित हैं। पत्र के स्वरूप और प्रकार के पत्र-लेखन की विभिन्न शैलियाँ पायी जाती हैं। अनुसार मुख्य रूप से हिंदी पत्रों के विविध प्रकार निम्नांकित है :
(अ) व्यक्तिगत पत्र (व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक..
(आ) व्यावसायिक पत्र
(इ) कार्यालयीन पत्र
(ई) अधिकारिक पत्र
(उ) व्यावहारिक पत्र
(ऊ) सार्वजनिक पत्र ।
पत्रों के प्रकारों के अनुरूप पत्र की भाषा, शैली और गठन प्रयुक्त की जाती है। पत्र-लेखन शैली की निम्न लिखित विशेषताएँ. अपेक्षित है (1) स्पष्टता (2) सरलता (3) शिष्टता (4) संक्षिप्तता (5) प्रभावोत्पादकता (6) विशिष्ट भाषा शैली (7) भाव, विचार तथा तथ्य की अन्विति ।
2. संवाद शैली : संवाद शैली साहित्यिक और व्यावहारिक (प्रयोजन मूलक) दोनों रूपों में महत्वपूर्ण है। संवाद विचारों के आदान प्रदान का माध्यम है। साधारणतया व्यक्ति-व्यक्ति या समुदायों के बीच विचार-विमर्श के मूल में संवाद शैली ही कार्य करती है। प्रयोजन मूलक क हिंदी की शैलियों में संवाद-शैली ही उसे गतिशीलता देती है। चित्रपट दूरदर्शन, एकांकी तथा नाटकों के माध्यम से हिंदी का प्रयोजनमूलक रूप अधिकाधिक उभरकर सामने आ रहा है और भारत के विभिन्न भाषा भाषियों को भावात्मक एकता के सूत्र में पिरो रहा है। संवाद शैली की निम्न लिखित विशेषताएँ अपेक्षित हैं।
(1) संक्षिप्तता और प्रभावोत्पादकता
(2) स्वाभाविकता (साहित्यिक स्तर पर पात्रानुकूल)
(3) सरलता, बोधगम्यता और सरसता
(4) सजीवता और प्रसंग की अनुकूलता ।
3. विचारात्मक शैली : प्रयोजनमूलक हिंदी की अन्य शैलियों की अपेक्षा यह अत्यधिक गंभीर, दुर्बोध और वैचारिक मानी जाती है।उसके अन्तर्गत अत्यंत शिष्ट, स्तरीय एवं परिनिष्ठत भाषा का प्रयोग पाया जाता है। यह लेखक की बौद्धिक क्षमता, प्रखर चिंतन, अभिव्यक्ति कौशल एवं शब्द भंडार पर लेखक के अधिकार पर निर्भर रहती है। इसमें विचारों का तर्कपूर्ण विश्लेषण, वर्गीकरण, निरूपण तथा मूल्यांकन का विशेष महत्व होता है। इसमें प्रायः पारिभाषिक शब्दावली, सूत्र वाक्य और सामाजिक शब्द-कौशल का प्रयोग किया जाता है। यह शैली अधिकतर निबन्ध, प्रबन्ध तथा आलोचना आदि विधाओं में प्रयुक्त है।
4. भावात्मक शैली : यह अत्यन्त प्रभावी और लोकप्रिय है। भावात्मक शैली का मुख्य लक्ष्य पाठकों के हृदय में भावों का उद्रेक उत्पन्न करके रस-संचार करवाना है। भाव सरलता और प्रभावान्वितता इसका प्रमुख लक्षण है। अलंकृत भाषा-शैली इसकी मुख्य विशेषता है। रसमाधुर्य एवं लालित्य गुण इसके प्राण तत्व है। व्यक्तिगत पत्रों और ललित निबन्धों में कविता के अतिरिक्त इस शैली का प्रयोग किया जाता है।
5. विवरणात्मक शैली : विभिन्न घटनाओं के विवरण के लिए इस शैली का प्रयोग किया जाता है। वर्ण्य विषय को रोचक बनाने के लिए लेखक कौतूहल का समावेश करवाता है और चमत्कृत भाषा का प्रयोग करता है। इसमें किसी घटना, स्थिति, स्थान एवं वस्तु का बिम्बात्मक वर्णन-विश्लेषण प्रस्तुत किया जाता है। यह विवरणात्मक एवं सूचनात्मक भी होती है।
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