✍प्रयोजनमूलक हिन्दी के विविध वर्गों का विवरण दीजिए।
(अथवा)
प्रयोजनमूलक हिंदी की विभिन्न प्रवृत्तियों का विवेचन करते हुए एक निबन्ध लिखिए।
भाषा की विभिन्न प्रवृत्तियाँ उसके परिनिष्ठित रूप के प्रयोग में विशेष योगदान करती हैं। विविध क्षेत्रों में विभिन्न विषयों, विचारों, घटनाओं आदि का विवेचन करते समय भाषा की अनेक स्वतंत्र प्रवृत्तियाँ अवस्थित होती है। विशिष्ट क्षेत्र, विद्या अथवा विषय-वस्तु को सक्षम अभिव्यक्ति के लिए भाषा विशेष की विविध प्रवृत्तियों का ज्ञान, अध्ययर और अनुशीलन अपेक्षणीय है।
•प्रयोजनमूलक हिंन्दी की विविध शैलियों के अनुरूप हिंदी भाषा की अनेक प्रवृत्तियाँ देखी जा सकती है यथा :
(1) साहित्यिक (Literary) (2) बोलचाल (Conversational)
( 3 ) प्रशासनिक (Administrative)
(4) व्यावसायिक (Professional, Commercial)
(5) वैज्ञानिक और तकनीकी (Scientific & Technical)
( 6 ) जन संचार से संबद्ध (पत्रकारिता, रेडियो, दूरदर्शन आदि) (7) विधि के कार्यों से संबद्ध हिन्दी (Law, Legislative etc
(1) साहित्यिक (Literary) : यह प्रवृत्ति हिन्दी की सबसे भ महत्वपूर्ण प्रवृत्ति है। साहित्यिक प्रवृत्ति किसी भी भाषा की अनिवारक आवश्यकता है। यह अधिकतर शिक्षित वर्गों तक सीमित रहती है। रू लेकिन लोक साहित्य इसी का अंग होने पर भी मौखिक रूप में वर्ष पर्यन्त जन-वाणी में सुस्थिर है।
साहित्यिक रूप में जन साधारण के जीवन के साथ दर्शन, राजनीति, पाँ संस्कृति आदि का आलेख पाया जाता है। हिन्दी की साहित्यिक परम्परा ब बहुत पुरानी है। स. 1050 से साहित्यिक धारा अपने जीवत्त रूप से प्रवाहित रही है। विविध काल खंडों की युग-चेतना तथा सामाजिक इ सांस्कृतिक एवं राजनीतिक आवश्यकताओं के अनुरूप साहित्यिक प्रवृत्तियों म में परिवर्तन होता रहा। वीर गाथा काल (आदिकाल), भक्ति कालीन विविध धाराएँ और शाखाएँ, रीतिकाल, आधुनिककालीन विभिन्न वाद इस तथ्य के साक्षी हैं। हिन्दी साहित्य युग-बोध एवं युग चेतना से अनुप्राणित होकर सघन अभिव्यक्ति के प्रयास में विविध बोलियाँ विविध देशी और विदेशी भाषाओं के शब्दों को आत्मसात करती हई, अपने शब्द को पुष्ट करती रही। यह उसकी गत्यात्मक और सर्व समावेशी प्रवृत्ति हैं।
(2) बोलचाल (Conversational) : यह प्रवृत्ति मूलत: जन साधारण से जुड़ी हुई है। यह प्रवृत्ति क्षेत्रीय और स्थानीय बोलियों से अत्यधिक जुडी हुई है। पश्चिमी हिन्दी, पूर्वी हिन्दी, भोजपुरी, छत्तीसघडी, अवधी, मैथिली, पहाडी, राजस्थानी, व्रज आदि का प्रभाव इस प्रवृत्ति की विशेषता है। इन्हीं बोलियों के साहित्यिक क्षेत्र में पदार्पण करने के कारण साहित्यिक रूप में भी विविधता पाई गयी है। विविध बोलियों में खडीबोली का विकास होकर हिन्दी का मानक रूप बना । गुजराती, मराठी, पंजाबी भाषाओं के प्रभाव से नये रूपों का विकास होने लगा। आन्ध्रप्रदेश में प्रचलित 'दक्खिनी हिन्दी' बोलचाल अथवा व्यावहारिक हिन्दी के विकास का एक ज्वलन्त उदाहरण है।
(3) प्रशासनिक कार्यालयी हिन्दी (Administrative official) : हिन्दी का प्रशासनिक रूप अपनी विशिष्ट पारिभाषिक पदावली, शब्द भण्डार, पद-रचना और पारिभाषिक शब्दों से पुष्ट रहता है। प्रशासन के विभिन्न अंगों, उपांगों से सम्पर्क स्थापित करने के लिए हिन्दी का प्रशासनिक रूप अत्यधिक उपयुक्त है। प्रयोजन मूलक हिन्दी की यह अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रवृत्ति है। इसमें विषय वस्तु के सरलतम रूप में प्रस्तुतीकरण पर अधिक बल दिया जाता है। आवश्यकता के अनुसार नये शब्दों का गठन, शब्दों में परिवर्तन और अन्य भाषाओं से शब्दों का ग्रहण प्रशासनिक हिन्दी की बडी विशेषता है।
इसके प्रयोग के लिए हिन्दी का कार्यसाधक ज्ञान अपेक्षित है। इसे कार्यालयीन हिन्दी के नाम से भी अभिहित किया जाता है। पत्राचार, मसौदा या टिप्पणी लेखन, संक्षेपण या सार-लेखन, प्रतिवेदन या रिपोर्ट अनुवाद आदि कार्यालयीन काम काज इसके अन्तर्गत आते हैं।
(4) व्यावसायिक ( Professional, Commercial) : व्यावसायिक हिन्दी विविध व्यवसायों से जुडी होती है। बाजार समाचार, विज्ञापन, वाणिज्य, व्यापार की भाषा, सर्राफे की भाषा, मंडियो की भाषा, बोलों की भाषा के रूप में इसके अन्तर्गत आता है। प्रयोजनमूलक हिन्दी का यह एक महत्वपूर्ण अंग है।
( 5 ) वैज्ञानिक और तकनीकि (Scientific & Technical) : हिन्दी का यह रूप आधुनिक युगीन और विशेषतया साठोत्तरी युगीन देर है। भारतवर्ष के राजभाषा पद पर हिन्दी भाषा के आसीन होने के साथ इस प्रवृत्ति का विकास तेजी के साथ होने लगा। सन् 1961 में राष्ट्रपति के आदेशानुसार (27 अप्रेल, 1960) भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अधीन 'वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग' की स्थापना की गयी है। इस आयोग ने हिन्दी की इस प्रवृत्ति के विकास में विशेष योगदान दिया।
( 6 ) जन संचार से संबद्ध (पत्रकारिता, रेडियो, दूरदर्शन आदि) : जन संचार से संबद्ध हिन्दी आजकल अत्यंत लोकप्रिय है। पत्रकारिता, रेडियो, दूरदर्शन, विज्ञापन आदि के माध्यम से इस रूप का विकास पाया जाता है। विशेष रूप से दूरदर्शन और रेडियो के माध्यम से हिन्दी के प्रचार और प्रसार के साथ-साथ भारत की भावात्मक एकता के लक्ष्य की ओर भी हिन्दी का यह रूप अत्यन्त प्रयोजनमूलक साबित हो रहा है।
(7) विधि के कार्यों से संबद्ध हिन्दी (Law and Legislative) : विधान मंडल, विधान सभा एवं संसद में होनेवाले विविध कार्यों में, विशेष रूप से प्रतिवेदन, प्रेस विज्ञप्ति, संकल्प, घोषणा, गजट अधिसूचनाएँ आदि इसके अन्तर्गत आते हैं।
इस प्रकार साहित्यिक विधाओं, संगीत, बाजार, समाचार पत्र, रेडियो, दूरदर्शन, कानून, विधि, संसद, क्रय-विक्रय का संसार, फिल्म, चिकित्सा, व्यवसाय, खेत-खलिहान-इन विभिन्न प्रयोग-क्षेत्रों में प्रयोजनमूलक हिन्दी की विभिन्न प्रवृत्तियाँ परिलक्षित होती है।
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