व्याकरण
चौथा अध्याय
सन्धि
चौथा अध्याय
सन्धि
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दो अक्षरों के आस-पास होने पर मेल हो जाने से उनमें जो विकास होता है, उसे सन्धि कहते हैं,
जैसे-राम- अवतार-रामावतार इसमें राम का अन्त्य ''
और अवतार का पहला 'अ' मिलकर (दीर्घ) 'आ' हो गया है। इस परिवर्तन को सन्धि कहते हैं।
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संयोग और सन्धि में यह अन्तर है कि संयोग होने पर अक्षर बदलते नहीं,पर संधि उच्चारण के नियमानुसार एक में या दोनों अक्षर में परिवर्तन हो जाता है। कभी-कभी उन दोनों की जगह उनसे भिन्न कोई तीसरा अक्षर आ जाता है। इसके अतिरिक्त संयोग केवल व्यंजनों में ही होता है, पर सन्धि स्वर और व्यंजन
दोनों में होती है।
(संधि के विषय संस्कृत से सम्बन्ध रखता है संस्कृत में संधियों के बात से नियम है। यहाँ केवल वही नियम दिये जाएंगे जो हिन्दी में विशेष रूप से प्रयुक्त होने वाले संस्कृत शब्दों को बनावट को समझने के लिए आवश्यक है। क्योंकि इन नियमों के जान बिना कई अच्छे लेखक भी 'आत्माभिमान' और "मनोकामना' जैसे अशुद्ध प्रयोग करते पाये जाते हैं।
सन्धि तीन प्रकार की है-
(1) स्वर-संधि,
(2) व्यंजन-सन्धि,
(3) विसर्ग-सन्धि।
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1. स्वर-संधि
दो स्वरों के पास-पास आ जाने से जो सन्धि होती है उसे स्वर-सन्धि कहते है। स्वर-सन्धि के पाँच भेद हैं-दीर्घ, गुण, वृद्धि यण, अयादि।
(क) दीर्घ-संधि-यदि सवर्ण (सजातीय) स्वर पास -पास आऊं तो दोनों के बदले सवर्ण दीर्घ स्वर हो जाता है-अरथ्थात् हस्व या दीर्घ अ, इ. उ से परे यदि हव या दीर्थ अ,इ उ हों तो दोनों के स्थान में वही दीर्घ स्वर हो जाता है,
जैसे --
अ+अ=आ -परम-अर्थ-परमार्थ
अ+आ=आ - रत्न +आकर - रत्नाकर
आ+आ=आ -विद्या-अभ्यास-विद्याभ्यास
आ+आ=आ -महा-आशय-महाशय
इ+इ=ई -कवि-इन्द्र-कवीन्द्र
इ+ई=ई -कवि-ईश्वर-कवीश्वर
ई+ई=ई -मही-इन्द्र-महेन्द्र
ई+ई+ई -मही-ईश-महेश
उ+उ=ऊ -गुरु-उपदेश-गुरूपदेश
ऊ-उ-ऊ- वधू-उत्सव-वधूत्सव
ऋ और ऋ की सन्धि का हिन्दी में कोई उदाहरण नहीं मिलता।
(ख) गुण सन्धि-यदि अ या आ के आगे इ या ई हो तो दोनों मिलकर ए, उ या ऊ हों तो दोनों मिलकर ओ और ऋ हो तो दोनों मिलकर अर् हो जाते हैं।
अ या आ+इ या ई=ए,
जैसे
देव+इन्द्र -देवेन्द्र
सुर+ईश -सुरेश
महा+इन्द्र -महेन्द्र
रमा + ईश -रमेश।
अ आ+उ या ऊ- ओ,
जैसे
वीर + उचित = वीरोचित,
नव + उडा =नवोढ़ा,
महा+उत्सव =महोत्सव।
अ आ ऋ-अर्
जैसे
सप्त+ऋषि =सप्तर्षि,
महा+ऋषि =महर्षि।
(ग) वृद्धि संधि- अ या आ के आगे ए या ऐ हो तो दोनों मिलकर ऐ, और ओ या औ हो तो दोनों मिलकर औ हो जाते हैं।
जैसे
एक+एक =एकैक
सदा+एव =सदैव
मत+ऐक्य =मतैक्य
महा+ऐश्वर्य =महेश्वर्य
वन +औषधि =वनौषधि
महा+ओज =महौज
परम+औदार्य =परमौदार्य
महा+औदार्य =महौदार्य
( य) यण सन्धि -इ, ई. उ. ऊ या ऋ के आगे कोई असवर्ण स्वर आवे तो इ, ई के स्थान में यू, ठ, ऊ के स्थान में व और ऋके स्थान में र हो जाता है।
जैसे-
यदि+अपि =यद्यपि
इति+आदि =इत्यादि
अभि+उदय=अभ्युदय
नि+ ऊन = न्यून
प्रति + एक = प्रत्येक
नदी+अर्पण = नद्यर्पण
सु+आगत= स्वागत
पितृ+अनुमति= पित्रनुमति
(च) अयादि सन्धि-ए, ओ, ऐ, औ, से परे यदि कोई स्वर हो तो ए को अय्, ओ को अव; ऐ को आयु तथा औ को आवू हो जाता है।
जैसे-
ने+अन = नयन
गै +अक = गायक
अन+एषण = अन्वेषण
मातृ+ आनन्द =मात्रानन्द।
भी+अन =भवन
भी+ उक = भावुक।
कहीं-कहीं संस्कृत से भिन्न हिन्दी के शब्दों के स्वर के साथ संस्कृत-शब्दों के स्वर की संधि भी दिखाई देती है।
जैसे-
ऊपर+उक्त = उपरोक्त
जिला+अधीश = जिलाधीश
ये सन्धियाँ यद्यपि व्याकरण-सम्मत नहीं हैं, पर अब बहुत प्रचलित हो गई हैं। उपरोक्त' का शुद्ध रूप (उपरि-उक्त) उपयुक्त है। पर आजकल खयातनामा
लेखक भी 'उपरोक्त का प्रयोग करते हैं।
2. व्यंजन संधि
व्यंजन से परे स्वर या व्यंजन के आने से व्यंजन में जो विकार होता है उसे
व्यंजन संधि कहते हैं। व्यंजन-संधि के मुख्य-मुख्य नियम नौचे दिये जाते हैं।
(क) कु, चू, टू और पू के आगे कोई स्वर या किसी वर्ग का तीसरा चौथा
अक्षर अथवा यु, र ल, व ह में से कोई वर्ण हो तो क् को गू च् को जू, ट् को ड्
और पू को बू हो जाता है। जैसे-
वाक् ईश-वागीश
वाक् विलास-वाग्विलास
षट्-दर्शन-षड्दर्शन
वाग्दान-वाग्दान
अच-अन्त-अजन्त
खाज-खाज य) यण सन्धि-इ, ई. उ. ऊ या ऋ के आगे कोई असवर्ण स्वर आवे तो
इ, ई के स्थान में यू, ठ, ऊ के स्थान में व और ऋके स्थान में र हो जाता है।
जैसे-
यदि-अपि-यद्यपि
इति-आदि-इत्यादि
अभि-उदय-अभ्युदय
न्यून-न्यून
प्रत्येक-प्रत्येक
नदी-अर्पण-नद्यर्पण
सुआगत-स्वागत
पितृ-अनुमति-पित्रनुमति
(च) अयादि सन्धि-ए, ओ, ऐ, औ, से परे यदि कोई स्वर हो तो ए को
अय्, ओ को अव; ऐ को आयु तथा औ को आवू हो जाता है। जैसे-
ने+अन-नयन
गै अक-गायक
अन-एषण-अन्वेषण
मातृ-आनन्द-मात्रानन्द।
भी-अन-भवन
भी-उक-भावुक।
कहीं-कहीं संस्कृत से भिन्न हिन्दी के शब्दों के स्वर के साथ संस्कृत-शब्दों
के स्वर की संधि भी दिखाई देती है। जैसे-
ऊपर+उक्त-उपरोक्त
ये सन्धियाँ यद्यपि व्याकरण-सम्मत नहीं हैं, पर अब बहुत प्रचलित हो गई
हैं। उपरोक्त' का शुद्ध रूप (उपरि-उक्त) उपयुक्त है। पर आजकल खयातनामा
लेखक भी 'उपरोक्त का प्रयोग करते हैं।
जिलाधीश-जिलाधीश
2. व्यंजन संधि
व्यंजन से परे स्वर या व्यंजन के आने से व्यंजन में जो विकार होता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं। व्यंजन-संधि के मुख्य-मुख्य नियम नौचे दिये जाते हैं।
(क) कु, चू, टू और पू के आगे कोई स्वर या किसी वर्ग का तीसरा चौथा अक्षर अथवा यु, र ल, व ह में से कोई वर्ण हो तो
क् को ग् च् को ज् ,
ट् को ड्और प् को ब् जाता है।
जैसे-
वाक् + ईश = वागीश
वाक् + विलास = वाग्विलास
षट्+ दर्शन = षड्दर्शन
वाक् + दान = वाग्दान
अच+ अन्त = अजन्त
खप् + ज = खाज
(ख) किसी वर्ग के पहले चार अक्षरों से परे यदि किसी वर्ग का पाँचवों जाता है। जैसे
वक् + मय = वाङ्मय,
षट्+ मास = पड़ मास,
जगत+नाथ = जगन्नाथ।
(ग) त् के आगे कोई स्वर, ग, घ, द, ध, ब, भअथवा य, र, व में से अक्षर हो तो त् को द् हो जाता है।
जग +ईश = जगदीश
उत्+ गम = उद्गम
भगवत् + भक्ति = भगवद् भक्ति
तत्+ रूप = तदूप।
(घ) त्या द को च या छ परे होने पर च, ज या झ परे होने पर जु, टू या न परे होने पर ट, ड या ढ परे होने पर डू और ल परे होने पर ल् हो जाता है।
जैसे
उत् + चारण = उच्चारण
उत्+छेद = उच्छेद
सत+जन = सजन
विपद्+ जाल = विपज्जाल
बृहत् + टीका = बृहट्टीका
उत्+ डयन = उड्डयन
तत् + लीन = तल्लीन
(ङ) त् या द् के बाद श् हो तो त् या द् को च और शुको छ हो जाता है और यदि त् से परे ह हो तो त् को द् और ह को ध् हो जाता है।
जैसे
सत्+ शास्त्र = सच्छास्त्र
उत्+हार = उद्धार
(च) छ के पूर्व स्वर हो तो छ के पूर्व च का आगमन होता है।
जैसे
वि+छेद = विच्छेद,
छत्र + छाया = छत्रछाया,
आ+ छाता = आच्छादन।
(च) म् के बाद यदि क से म तक का कोई व्यंजन हो तो म को अनुस्वार। अथवा बाद के वर्ण के वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है और यदि कोई अन्य व्यंजन
हो तो अनुस्वार हो जाता है।
जैसे
सम्+कल्प-संकल्प या सङ्कल्प
किम् + चित = किंचित या किञ्चित् ।।
सम्+ तोष = संतोष या सन्तोष
सम् + पूर्ण = संपूर्ण या सम्पूर्ण
सम्+योग = संयोग
सम्+ रक्षक = संरक्षक
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + हार = संहार
सम् + वत = संवत
सम् + शय = संशय।
परन्तु सम्राट, सम्राज्ञी और साम्राज्य में म को अनुस्वार नहीं होता।
(ज) ऋ या ए के बाद यदि न हो तो उसे ण हो जाता है चाहे उनके बीच के कोई स्वर, क वर्ग या प वर्ग का कोई वर्ण अथवा य, व, ह और अनुस्वार में से
कोई वर्ण भी हो।
जैसे
भूष् + अन = भूषण
ऋ + न = ऋण
प्र + माण = प्रमाण
राम + अयन = रामायण
(ज) यदि किसी शब्द के आद्य सू के पूर्व अ या आ को छोड़कर कोई और स्वर आवे तो श को ष हो जाता है। जैसे
अभि + सेक = अभिषेक
वि+सम = विषम
(ङ) से परे यदि र हो तो पहले र का लोप हो जाता है और उससे पहले का हस्व स्वर दीर्घ हो जाता है।
जैसे
निर्+रोग = निरोग
निर्+ रस = नीरस।
3. विसर्ग-संधि
विसर्ग के बाद स्वर या व्यंजन के आने पर विसर्ग में जो विकास होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं। विसर्ग-संधि के मुख्य-मुख्य नियम नीचे दिये जाते हैं।
(क) विसर्ग को च् या छ् परे होने पर श, ट् या ट् परे होने पर ए और तू या च परे होने पर स् हो जाता है। जैसे
नि: + चल = निश्चल
नि: + छल = निश्छल
धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
दुः +तर = दुस्तर
(ख) विसर्ग के बाद श् ष् य स हो तो विसर्ग को विकल्प से बाद का वर्ण होता है।
जैसे-
दुः + शासन = दुश्शासन या दुःशासन
निः +संदेह = निस्संदेह या निः:संदेह
(ग) यदि विसर्ग के पूर्व इ या उ हो और पीछे क् ख या प्.फ् में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग को ए हो जाता है। जैसे
नि: + कलंक = निष्कलंक
दु: + कर = दुष्कर
नि: + फल = निष्फल
नि: + पाप = निष्पाप
(घ) यदि विसर्ग के पहले अ या आ को छोड़कर कोई और स्वर हो और पीछे कोई स्वर, किसी वर्ग का तीसरा, चौथा या पाँचवाँ अक्षर अथवा य, र, ल,
व, ह में से कोई अक्षर हो तो विसर्ग का र हो जाता है। जैसे
नि: +आशा = निराशा
नि: + गुण = निर्गुण
निर् + लज्ज = निर्लज्ज
नि: + विकार = निर्विकार
नि: + झर = नि्झर
निः + यात = निर्यात
बहिः + मुख = बहिर्मुख
दुः+ लभ = दुर्लभ।
(अ) यदि अ के बाद विसर्ग हो और उसके बाद अ को छोड़कर कोई और स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है और फिर पास आये हुए स्वरों में सन्धि
नहीं होती।
जैसे
अतः +एव-अतएव।
(च) यदि विसर्ग के पहले अ और पीछे अ या किसी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ अक्षर अथवा य, र, ल, व, ह, में से कोई अक्षर हो तो पहले अ और विसर्ग के स्थान में ओ हो जाता है और पिछले अ का लोप हो जाता है।
जैसे
मनः +अविराम = मनोभिराम
अधः + गति = अधोगति
तेजः + राशि-तेजोराशि
मनः + हर = मनोहर।
(छ) कुछ अनियमित सन्धियाँ
पुराः + कार = पुरस्कार;
नमः + कार = नमस्कार।
तिरः + कार = तिरस्कार।
धन्यवाद !
दो अक्षरों के आस-पास होने पर मेल हो जाने से उनमें जो विकास होता है, उसे सन्धि कहते हैं,
जैसे-राम- अवतार-रामावतार इसमें राम का अन्त्य ''
और अवतार का पहला 'अ' मिलकर (दीर्घ) 'आ' हो गया है। इस परिवर्तन को सन्धि कहते हैं।
https://amzn.to/35fb9Tr
संयोग और सन्धि में यह अन्तर है कि संयोग होने पर अक्षर बदलते नहीं,पर संधि उच्चारण के नियमानुसार एक में या दोनों अक्षर में परिवर्तन हो जाता है। कभी-कभी उन दोनों की जगह उनसे भिन्न कोई तीसरा अक्षर आ जाता है। इसके अतिरिक्त संयोग केवल व्यंजनों में ही होता है, पर सन्धि स्वर और व्यंजन
दोनों में होती है।
(संधि के विषय संस्कृत से सम्बन्ध रखता है संस्कृत में संधियों के बात से नियम है। यहाँ केवल वही नियम दिये जाएंगे जो हिन्दी में विशेष रूप से प्रयुक्त होने वाले संस्कृत शब्दों को बनावट को समझने के लिए आवश्यक है। क्योंकि इन नियमों के जान बिना कई अच्छे लेखक भी 'आत्माभिमान' और "मनोकामना' जैसे अशुद्ध प्रयोग करते पाये जाते हैं।
सन्धि तीन प्रकार की है-
(1) स्वर-संधि,
(2) व्यंजन-सन्धि,
(3) विसर्ग-सन्धि।
https://www.amazon.in/tryprime?tag=AssociateTrackingID; aksharamaks0b-21
1. स्वर-संधि
दो स्वरों के पास-पास आ जाने से जो सन्धि होती है उसे स्वर-सन्धि कहते है। स्वर-सन्धि के पाँच भेद हैं-दीर्घ, गुण, वृद्धि यण, अयादि।
(क) दीर्घ-संधि-यदि सवर्ण (सजातीय) स्वर पास -पास आऊं तो दोनों के बदले सवर्ण दीर्घ स्वर हो जाता है-अरथ्थात् हस्व या दीर्घ अ, इ. उ से परे यदि हव या दीर्थ अ,इ उ हों तो दोनों के स्थान में वही दीर्घ स्वर हो जाता है,
जैसे --
अ+अ=आ -परम-अर्थ-परमार्थ
अ+आ=आ - रत्न +आकर - रत्नाकर
आ+आ=आ -विद्या-अभ्यास-विद्याभ्यास
आ+आ=आ -महा-आशय-महाशय
इ+इ=ई -कवि-इन्द्र-कवीन्द्र
इ+ई=ई -कवि-ईश्वर-कवीश्वर
ई+ई=ई -मही-इन्द्र-महेन्द्र
ई+ई+ई -मही-ईश-महेश
उ+उ=ऊ -गुरु-उपदेश-गुरूपदेश
ऊ-उ-ऊ- वधू-उत्सव-वधूत्सव
ऋ और ऋ की सन्धि का हिन्दी में कोई उदाहरण नहीं मिलता।
(ख) गुण सन्धि-यदि अ या आ के आगे इ या ई हो तो दोनों मिलकर ए, उ या ऊ हों तो दोनों मिलकर ओ और ऋ हो तो दोनों मिलकर अर् हो जाते हैं।
अ या आ+इ या ई=ए,
जैसे
देव+इन्द्र -देवेन्द्र
सुर+ईश -सुरेश
महा+इन्द्र -महेन्द्र
रमा + ईश -रमेश।
अ आ+उ या ऊ- ओ,
जैसे
वीर + उचित = वीरोचित,
नव + उडा =नवोढ़ा,
महा+उत्सव =महोत्सव।
अ आ ऋ-अर्
जैसे
सप्त+ऋषि =सप्तर्षि,
महा+ऋषि =महर्षि।
(ग) वृद्धि संधि- अ या आ के आगे ए या ऐ हो तो दोनों मिलकर ऐ, और ओ या औ हो तो दोनों मिलकर औ हो जाते हैं।
जैसे
एक+एक =एकैक
सदा+एव =सदैव
मत+ऐक्य =मतैक्य
महा+ऐश्वर्य =महेश्वर्य
वन +औषधि =वनौषधि
महा+ओज =महौज
परम+औदार्य =परमौदार्य
महा+औदार्य =महौदार्य
( य) यण सन्धि -इ, ई. उ. ऊ या ऋ के आगे कोई असवर्ण स्वर आवे तो इ, ई के स्थान में यू, ठ, ऊ के स्थान में व और ऋके स्थान में र हो जाता है।
जैसे-
यदि+अपि =यद्यपि
इति+आदि =इत्यादि
अभि+उदय=अभ्युदय
नि+ ऊन = न्यून
प्रति + एक = प्रत्येक
नदी+अर्पण = नद्यर्पण
सु+आगत= स्वागत
पितृ+अनुमति= पित्रनुमति
(च) अयादि सन्धि-ए, ओ, ऐ, औ, से परे यदि कोई स्वर हो तो ए को अय्, ओ को अव; ऐ को आयु तथा औ को आवू हो जाता है।
जैसे-
ने+अन = नयन
गै +अक = गायक
अन+एषण = अन्वेषण
मातृ+ आनन्द =मात्रानन्द।
भी+अन =भवन
भी+ उक = भावुक।
कहीं-कहीं संस्कृत से भिन्न हिन्दी के शब्दों के स्वर के साथ संस्कृत-शब्दों के स्वर की संधि भी दिखाई देती है।
जैसे-
ऊपर+उक्त = उपरोक्त
जिला+अधीश = जिलाधीश
ये सन्धियाँ यद्यपि व्याकरण-सम्मत नहीं हैं, पर अब बहुत प्रचलित हो गई हैं। उपरोक्त' का शुद्ध रूप (उपरि-उक्त) उपयुक्त है। पर आजकल खयातनामा
लेखक भी 'उपरोक्त का प्रयोग करते हैं।
2. व्यंजन संधि
व्यंजन से परे स्वर या व्यंजन के आने से व्यंजन में जो विकार होता है उसे
व्यंजन संधि कहते हैं। व्यंजन-संधि के मुख्य-मुख्य नियम नौचे दिये जाते हैं।
(क) कु, चू, टू और पू के आगे कोई स्वर या किसी वर्ग का तीसरा चौथा
अक्षर अथवा यु, र ल, व ह में से कोई वर्ण हो तो क् को गू च् को जू, ट् को ड्
और पू को बू हो जाता है। जैसे-
वाक् ईश-वागीश
वाक् विलास-वाग्विलास
षट्-दर्शन-षड्दर्शन
वाग्दान-वाग्दान
अच-अन्त-अजन्त
खाज-खाज य) यण सन्धि-इ, ई. उ. ऊ या ऋ के आगे कोई असवर्ण स्वर आवे तो
इ, ई के स्थान में यू, ठ, ऊ के स्थान में व और ऋके स्थान में र हो जाता है।
जैसे-
यदि-अपि-यद्यपि
इति-आदि-इत्यादि
अभि-उदय-अभ्युदय
न्यून-न्यून
प्रत्येक-प्रत्येक
नदी-अर्पण-नद्यर्पण
सुआगत-स्वागत
पितृ-अनुमति-पित्रनुमति
(च) अयादि सन्धि-ए, ओ, ऐ, औ, से परे यदि कोई स्वर हो तो ए को
अय्, ओ को अव; ऐ को आयु तथा औ को आवू हो जाता है। जैसे-
ने+अन-नयन
गै अक-गायक
अन-एषण-अन्वेषण
मातृ-आनन्द-मात्रानन्द।
भी-अन-भवन
भी-उक-भावुक।
कहीं-कहीं संस्कृत से भिन्न हिन्दी के शब्दों के स्वर के साथ संस्कृत-शब्दों
के स्वर की संधि भी दिखाई देती है। जैसे-
ऊपर+उक्त-उपरोक्त
ये सन्धियाँ यद्यपि व्याकरण-सम्मत नहीं हैं, पर अब बहुत प्रचलित हो गई
हैं। उपरोक्त' का शुद्ध रूप (उपरि-उक्त) उपयुक्त है। पर आजकल खयातनामा
लेखक भी 'उपरोक्त का प्रयोग करते हैं।
जिलाधीश-जिलाधीश
2. व्यंजन संधि
व्यंजन से परे स्वर या व्यंजन के आने से व्यंजन में जो विकार होता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं। व्यंजन-संधि के मुख्य-मुख्य नियम नौचे दिये जाते हैं।
(क) कु, चू, टू और पू के आगे कोई स्वर या किसी वर्ग का तीसरा चौथा अक्षर अथवा यु, र ल, व ह में से कोई वर्ण हो तो
क् को ग् च् को ज् ,
ट् को ड्और प् को ब् जाता है।
जैसे-
वाक् + ईश = वागीश
वाक् + विलास = वाग्विलास
षट्+ दर्शन = षड्दर्शन
वाक् + दान = वाग्दान
अच+ अन्त = अजन्त
खप् + ज = खाज
(ख) किसी वर्ग के पहले चार अक्षरों से परे यदि किसी वर्ग का पाँचवों जाता है। जैसे
वक् + मय = वाङ्मय,
षट्+ मास = पड़ मास,
जगत+नाथ = जगन्नाथ।
(ग) त् के आगे कोई स्वर, ग, घ, द, ध, ब, भअथवा य, र, व में से अक्षर हो तो त् को द् हो जाता है।
जग +ईश = जगदीश
उत्+ गम = उद्गम
भगवत् + भक्ति = भगवद् भक्ति
तत्+ रूप = तदूप।
(घ) त्या द को च या छ परे होने पर च, ज या झ परे होने पर जु, टू या न परे होने पर ट, ड या ढ परे होने पर डू और ल परे होने पर ल् हो जाता है।
जैसे
उत् + चारण = उच्चारण
उत्+छेद = उच्छेद
सत+जन = सजन
विपद्+ जाल = विपज्जाल
बृहत् + टीका = बृहट्टीका
उत्+ डयन = उड्डयन
तत् + लीन = तल्लीन
(ङ) त् या द् के बाद श् हो तो त् या द् को च और शुको छ हो जाता है और यदि त् से परे ह हो तो त् को द् और ह को ध् हो जाता है।
जैसे
सत्+ शास्त्र = सच्छास्त्र
उत्+हार = उद्धार
(च) छ के पूर्व स्वर हो तो छ के पूर्व च का आगमन होता है।
जैसे
वि+छेद = विच्छेद,
छत्र + छाया = छत्रछाया,
आ+ छाता = आच्छादन।
(च) म् के बाद यदि क से म तक का कोई व्यंजन हो तो म को अनुस्वार। अथवा बाद के वर्ण के वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है और यदि कोई अन्य व्यंजन
हो तो अनुस्वार हो जाता है।
जैसे
सम्+कल्प-संकल्प या सङ्कल्प
किम् + चित = किंचित या किञ्चित् ।।
सम्+ तोष = संतोष या सन्तोष
सम् + पूर्ण = संपूर्ण या सम्पूर्ण
सम्+योग = संयोग
सम्+ रक्षक = संरक्षक
सम् + लग्न = संलग्न
सम् + हार = संहार
सम् + वत = संवत
सम् + शय = संशय।
परन्तु सम्राट, सम्राज्ञी और साम्राज्य में म को अनुस्वार नहीं होता।
(ज) ऋ या ए के बाद यदि न हो तो उसे ण हो जाता है चाहे उनके बीच के कोई स्वर, क वर्ग या प वर्ग का कोई वर्ण अथवा य, व, ह और अनुस्वार में से
कोई वर्ण भी हो।
जैसे
भूष् + अन = भूषण
ऋ + न = ऋण
प्र + माण = प्रमाण
राम + अयन = रामायण
(ज) यदि किसी शब्द के आद्य सू के पूर्व अ या आ को छोड़कर कोई और स्वर आवे तो श को ष हो जाता है। जैसे
अभि + सेक = अभिषेक
वि+सम = विषम
(ङ) से परे यदि र हो तो पहले र का लोप हो जाता है और उससे पहले का हस्व स्वर दीर्घ हो जाता है।
जैसे
निर्+रोग = निरोग
निर्+ रस = नीरस।
3. विसर्ग-संधि
विसर्ग के बाद स्वर या व्यंजन के आने पर विसर्ग में जो विकास होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं। विसर्ग-संधि के मुख्य-मुख्य नियम नीचे दिये जाते हैं।
(क) विसर्ग को च् या छ् परे होने पर श, ट् या ट् परे होने पर ए और तू या च परे होने पर स् हो जाता है। जैसे
नि: + चल = निश्चल
नि: + छल = निश्छल
धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
दुः +तर = दुस्तर
(ख) विसर्ग के बाद श् ष् य स हो तो विसर्ग को विकल्प से बाद का वर्ण होता है।
जैसे-
दुः + शासन = दुश्शासन या दुःशासन
निः +संदेह = निस्संदेह या निः:संदेह
(ग) यदि विसर्ग के पूर्व इ या उ हो और पीछे क् ख या प्.फ् में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग को ए हो जाता है। जैसे
नि: + कलंक = निष्कलंक
दु: + कर = दुष्कर
नि: + फल = निष्फल
नि: + पाप = निष्पाप
(घ) यदि विसर्ग के पहले अ या आ को छोड़कर कोई और स्वर हो और पीछे कोई स्वर, किसी वर्ग का तीसरा, चौथा या पाँचवाँ अक्षर अथवा य, र, ल,
व, ह में से कोई अक्षर हो तो विसर्ग का र हो जाता है। जैसे
नि: +आशा = निराशा
नि: + गुण = निर्गुण
निर् + लज्ज = निर्लज्ज
नि: + विकार = निर्विकार
नि: + झर = नि्झर
निः + यात = निर्यात
बहिः + मुख = बहिर्मुख
दुः+ लभ = दुर्लभ।
(अ) यदि अ के बाद विसर्ग हो और उसके बाद अ को छोड़कर कोई और स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है और फिर पास आये हुए स्वरों में सन्धि
नहीं होती।
जैसे
अतः +एव-अतएव।
(च) यदि विसर्ग के पहले अ और पीछे अ या किसी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ अक्षर अथवा य, र, ल, व, ह, में से कोई अक्षर हो तो पहले अ और विसर्ग के स्थान में ओ हो जाता है और पिछले अ का लोप हो जाता है।
जैसे
मनः +अविराम = मनोभिराम
अधः + गति = अधोगति
तेजः + राशि-तेजोराशि
मनः + हर = मनोहर।
(छ) कुछ अनियमित सन्धियाँ
पुराः + कार = पुरस्कार;
नमः + कार = नमस्कार।
तिरः + कार = तिरस्कार।
धन्यवाद !
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