व्याकरण
पाँचवाँ अध्याय
अक्षर-विन्यास
देवनागरी लिपि की यही बड़ी भारी विशेषता है कि इसमें लिखना उच्चारण.के अनुकूल होता है। रोमन लिपि की तरह न तो इसके वर्णों की भिन्न-भिन्न ध्वनियाँ हैं और न शब्द में प्रयुक्त वर्ण मौन ही रहते हैं इस प्रकार फारसी लिपि की तरह इसमें एक ध्वनि को सूचित करने के लिए अनेक वर्ण नहीं हैं। इसमें तो
प्रत्येक वर्ण उसी ध्वनि को सूचित करता है जो ध्वनि उसके उच्चारण में मनुष्य के मुख से निकलती है। अत: इसमें अक्षर विन्यास (हिजे, Spellings) रटने की आवश्यकता नहीं होती। यदि कोई व्यक्ति हिन्दी या संस्कृत शब्द का शुद्ध उच्चारण जानता है तो उसको लिखेगा भी शुद्ध ही।
अत: अक्षर-विन्यास की जो अशुद्धियाँ हिन्दी भाषा के लिखने में होती हैं वे थोड़े से यल से सुधारी जा सकती
हैं। निम्नलिखित अशुद्धियाँ अधिकतर पाई जाती हैं
https://amzn.to/2F4CEUK
(क) हस्व या दीर्घ ई और ऊ के स्थान में दीर्घ या हस्व इ तथा उ का प्रयोग कर दिया जाता है। ऐसी कुछ आम अशुद्धियाँ नीचे दी जाती हैं ।
अशुद्ध शुद्ध
वायू वायु
साथि साथी
प्रभू प्रभु
मुनी मुनि
अतिथी अतिथि
हिन्दु हिन्दू
आलु आलू
बहु बहू
इसके लिए इस बात को याद रखना चाहिए कि संस्कृत के शब्दों को छोड़कर हिन्दी के शब्दों के अन्त में प्राय: दीर्घ ई तथा ऊ होते हैं।
जैसे-
पानी, साथी, हाथी, मोची, पाजी, रोटी, धोती, घी, दही, टोपी, आरी, माली, डाली, बिल्ली,
कुल्हाड़ी, चाकू, हिन्दू, बेबी, बहू इत्यादि।
संस्कृत के शब्दों में हस्व इकारान्त और अकारान्त तथा दीर्घ इकारान्त और ऊकारान्त सब प्रकार के शब्द है; अत: उसमें अशुद्धियों की अधिक सम्भावना
होती है। अतः उनका ही अधिक ध्यान रखना चाहिए। सब प्रकार के कुछ शब्द आगे दिये जाते हैं।
इकारान्त-
आकृति, कीर्ति, गति, मति, जाति, तृप्ति, दृष्टि, नीति, प्रीति, बुद्धि, बुद्धि, शुद्धि, भक्ति, पति, रीति, शान्ति, भ्रान्ति, संस्कृति, समाधि, औषधि, अतिथि, ऋषि, कवि, मुनि, राशि, रुचि, विधि।
अकारान्त-
नदी, पत्नी, वाणी, स्त्री, नारी, विदुषी, पृथ्वी, रजनी, पुत्री, देवी, लक्ष्मी, सखी, श्री।
उकारान्त-
वायु, ऋतु, गुरु, जन्तु, परमाणु, प्रभु, बन्धु, बाहु, बिन्दु, रघु, राहु, वस्तु, शिशु, साधु, हेतु, भानु।
ऊकारान्त-वधू, चमू, भ्रू।
(ख) बहुधा अकारान्त और अकारान्त शब्दों के बहुवचन में ई और ऊ को नियमानुसार हस्व न कर दीर्घ ही रहने दिया जाता है, जो अशद्ध है।
जैसे-स्त्रीयाँ , नदियाँ, हिन्दुओं को, बाबूओं का।
इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बहुवचन में ईकारान्त तथा अकारांत शब्दों के अन्तिम तथा ऊ
हस्व हो जाते हैं।
अत: इनके शुद्ध रूप ये हैं-स्त्रियाँ, नदियाँ, हिन्दुओं को, बाबुओं का।
(ग) ऋ को रि या इर और ण को न लिखने की अशुद्धियाँ भी पाई जाती हैं।
अशुद्ध शुद्ध
रिन ऋण
आसरण आचरण
रिषि ऋषि
तरुन। तरुण
हिरदय। हृदय
परिनाम परिणाम
किरपा कृपा
पुन्य पुण्य
निरत्य नृत्य
परनाम प्रणाम
त्रितिया तृतीया
मरन मरण
प्रिथिवी। पृथ्वी
आक्रमन आक्रमण
किरपान कृपाण
गन्ना गणना
इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि संस्कृत के शब्द में ही अधिकतर 'ऋ' और 'ण' का प्रयोग होता है।
(घ) अय और अव के स्थान में ऐ और औ का प्रयोग देखा जाता है।
जय को जै,
निर्भय को निरभै,
नारायण को नरैन,
अवतार को औतार,
बहुत लोग लिखते है।
हिन्दी में ऐ और औ का उच्चारण अय और अब से मिलता सा है अतएव ये
अशुद्धियाँ प्रायः होती हैं।
(ङ) और इ तथा च और व लिखने में भी बहुत लोग अशुद्धियाँ करते है ।
अशुद्ध शुद्ध
बचन वचन
बंध्या वंध्या
बन वन
वढ़ाई बड़ाई
बिश विष
चडाई चढ़ाई
(5) श, ष, स में बड़ी गड़बड़ होती है। कि श, श को स तथा स को य लिख दिया जाता है। ऐसे ही कई स को श भी लिखते हैं।
जैसे-
विष्णु को बिस्नु ,
पुरुष को पुरूष ,
मनुष्य को मनुष्य,
दृश्य को दृष्य,
शान्ति को सान्ति,
नाश को नास,
सुगन्ध को शुगन्ध।
यदि उच्चारण शुद्ध हो तो श और स में अशुद्धि होना असम्भव है, पर प और के भेद में कुछ कठिनता अवश्य पड़ती है। इसके लिए यह ध्यान रखना
चाहिए कि ष केवल तत्सम (संस्कृत) शब्दों में ही आता है। ष.वाले कुछ शब्द.नीचे दिये जाते हैं
कष्ट उषा कृषि कृष्ण
पुष्ट दुष्कर दोष धनुष नष्ट निष्ठुर भाषण मनुष्य वर्ष विषय
(छ) लिये, लिए: दिये, दिए; किये, किए; आदि दोनों रूप शुद्ध समझे जाते हैं , पर इसी कारण लिया, दिया आदि के स्थान में लिआ दिया आदि लिख देना अशुद्ध है।
(ज) जिन शब्दों के आरम्भ में स होता है उनके प्रारम्भ में बहुधा इ या अ लगा देते हैं अथवा स को पूरा लिखते हैं, ये दोनों ही अशुद्ध हैं। जैसे-स्कूल या
स्थान को स्कूल या सकूल और स्थान या स्थान।
ऐसे ही स्त्री को इस्त्री, स्तुति को इस्तुति तथा स्नान को अस्नान भी बहुत लोग लिखते हैं जो अशुद्ध है।
(झ) ज्ञ का उच्चारण बहुत लोग 'ग्य' करते हैं और फिर उसको लिखते भी अशुद्ध हैं-
जैसे-आज्ञा की जगह आ गया।
(ञ) सबसे अधिक अशुद्धियाँ संयुक्त अक्षरों में होती हैं। कई संयुक्त अक्षरों को अलग-अलग और कई असंयुक्त को संयुक्त लिख देते हैं। संयुक्त के स्थान पर
असंयुक्त का प्रयोग तो प्राय: ठीक उच्चारण न कर सकने या न जानने के कारण होता है, पर असंयुक्त के स्थान पर संयुक्त लिखे जाने का एक बड़ा भारी कारण
यह है कि हिन्दी में अनेक स्थलों पर 'अ' का उच्चारण नहीं होता, अतः लिखने में भी अ का लोप कर दिया जाता है।
ऐसी कुछ अशुद्धियाँ नीचे दिखाई जाती हैं-
(ड) कुछ फुटकर अशुद्धियाँ भी देखी जाती हैं
अशुद्ध शुद्ध
अन्ताकरण अन्तःकरण
प्राताकाल प्रात:काल
सुन्द्र सुन्दर
आतर आतुर
उपरिलिखित अशुद्धियाँ प्रायः उच्चारण के कारण है। संस्कृत के सन्धि के नियमों के न जानने के कारण भी बहुत सी अशुद्धियाँ होती हैं।
जैसे-
मनःकामना या मनकामना को मनोकामना।
ये अशुद्धियाँ उच्चारण को शुद्ध होने तथा सुलेखकों को पुस्तकें ध्यान से पढ़ने से ठीक हो सकती हैं।
धन्यवाद !
पाँचवाँ अध्याय
अक्षर-विन्यास
देवनागरी लिपि की यही बड़ी भारी विशेषता है कि इसमें लिखना उच्चारण.के अनुकूल होता है। रोमन लिपि की तरह न तो इसके वर्णों की भिन्न-भिन्न ध्वनियाँ हैं और न शब्द में प्रयुक्त वर्ण मौन ही रहते हैं इस प्रकार फारसी लिपि की तरह इसमें एक ध्वनि को सूचित करने के लिए अनेक वर्ण नहीं हैं। इसमें तो
प्रत्येक वर्ण उसी ध्वनि को सूचित करता है जो ध्वनि उसके उच्चारण में मनुष्य के मुख से निकलती है। अत: इसमें अक्षर विन्यास (हिजे, Spellings) रटने की आवश्यकता नहीं होती। यदि कोई व्यक्ति हिन्दी या संस्कृत शब्द का शुद्ध उच्चारण जानता है तो उसको लिखेगा भी शुद्ध ही।
अत: अक्षर-विन्यास की जो अशुद्धियाँ हिन्दी भाषा के लिखने में होती हैं वे थोड़े से यल से सुधारी जा सकती
हैं। निम्नलिखित अशुद्धियाँ अधिकतर पाई जाती हैं
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अशुद्ध शुद्ध
वायू वायु
साथि साथी
प्रभू प्रभु
मुनी मुनि
अतिथी अतिथि
हिन्दु हिन्दू
आलु आलू
बहु बहू
इसके लिए इस बात को याद रखना चाहिए कि संस्कृत के शब्दों को छोड़कर हिन्दी के शब्दों के अन्त में प्राय: दीर्घ ई तथा ऊ होते हैं।
जैसे-
पानी, साथी, हाथी, मोची, पाजी, रोटी, धोती, घी, दही, टोपी, आरी, माली, डाली, बिल्ली,
कुल्हाड़ी, चाकू, हिन्दू, बेबी, बहू इत्यादि।
संस्कृत के शब्दों में हस्व इकारान्त और अकारान्त तथा दीर्घ इकारान्त और ऊकारान्त सब प्रकार के शब्द है; अत: उसमें अशुद्धियों की अधिक सम्भावना
होती है। अतः उनका ही अधिक ध्यान रखना चाहिए। सब प्रकार के कुछ शब्द आगे दिये जाते हैं।
इकारान्त-
आकृति, कीर्ति, गति, मति, जाति, तृप्ति, दृष्टि, नीति, प्रीति, बुद्धि, बुद्धि, शुद्धि, भक्ति, पति, रीति, शान्ति, भ्रान्ति, संस्कृति, समाधि, औषधि, अतिथि, ऋषि, कवि, मुनि, राशि, रुचि, विधि।
अकारान्त-
नदी, पत्नी, वाणी, स्त्री, नारी, विदुषी, पृथ्वी, रजनी, पुत्री, देवी, लक्ष्मी, सखी, श्री।
उकारान्त-
वायु, ऋतु, गुरु, जन्तु, परमाणु, प्रभु, बन्धु, बाहु, बिन्दु, रघु, राहु, वस्तु, शिशु, साधु, हेतु, भानु।
ऊकारान्त-वधू, चमू, भ्रू।
(ख) बहुधा अकारान्त और अकारान्त शब्दों के बहुवचन में ई और ऊ को नियमानुसार हस्व न कर दीर्घ ही रहने दिया जाता है, जो अशद्ध है।
जैसे-स्त्रीयाँ , नदियाँ, हिन्दुओं को, बाबूओं का।
इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बहुवचन में ईकारान्त तथा अकारांत शब्दों के अन्तिम तथा ऊ
हस्व हो जाते हैं।
अत: इनके शुद्ध रूप ये हैं-स्त्रियाँ, नदियाँ, हिन्दुओं को, बाबुओं का।
(ग) ऋ को रि या इर और ण को न लिखने की अशुद्धियाँ भी पाई जाती हैं।
अशुद्ध शुद्ध
रिन ऋण
आसरण आचरण
रिषि ऋषि
तरुन। तरुण
हिरदय। हृदय
परिनाम परिणाम
किरपा कृपा
पुन्य पुण्य
निरत्य नृत्य
परनाम प्रणाम
त्रितिया तृतीया
मरन मरण
प्रिथिवी। पृथ्वी
आक्रमन आक्रमण
किरपान कृपाण
गन्ना गणना
इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि संस्कृत के शब्द में ही अधिकतर 'ऋ' और 'ण' का प्रयोग होता है।
(घ) अय और अव के स्थान में ऐ और औ का प्रयोग देखा जाता है।
जय को जै,
निर्भय को निरभै,
नारायण को नरैन,
अवतार को औतार,
बहुत लोग लिखते है।
हिन्दी में ऐ और औ का उच्चारण अय और अब से मिलता सा है अतएव ये
अशुद्धियाँ प्रायः होती हैं।
(ङ) और इ तथा च और व लिखने में भी बहुत लोग अशुद्धियाँ करते है ।
अशुद्ध शुद्ध
बचन वचन
बंध्या वंध्या
बन वन
वढ़ाई बड़ाई
बिश विष
चडाई चढ़ाई
(5) श, ष, स में बड़ी गड़बड़ होती है। कि श, श को स तथा स को य लिख दिया जाता है। ऐसे ही कई स को श भी लिखते हैं।
जैसे-
विष्णु को बिस्नु ,
पुरुष को पुरूष ,
मनुष्य को मनुष्य,
दृश्य को दृष्य,
शान्ति को सान्ति,
नाश को नास,
सुगन्ध को शुगन्ध।
यदि उच्चारण शुद्ध हो तो श और स में अशुद्धि होना असम्भव है, पर प और के भेद में कुछ कठिनता अवश्य पड़ती है। इसके लिए यह ध्यान रखना
चाहिए कि ष केवल तत्सम (संस्कृत) शब्दों में ही आता है। ष.वाले कुछ शब्द.नीचे दिये जाते हैं
कष्ट उषा कृषि कृष्ण
पुष्ट दुष्कर दोष धनुष नष्ट निष्ठुर भाषण मनुष्य वर्ष विषय
(छ) लिये, लिए: दिये, दिए; किये, किए; आदि दोनों रूप शुद्ध समझे जाते हैं , पर इसी कारण लिया, दिया आदि के स्थान में लिआ दिया आदि लिख देना अशुद्ध है।
(ज) जिन शब्दों के आरम्भ में स होता है उनके प्रारम्भ में बहुधा इ या अ लगा देते हैं अथवा स को पूरा लिखते हैं, ये दोनों ही अशुद्ध हैं। जैसे-स्कूल या
स्थान को स्कूल या सकूल और स्थान या स्थान।
ऐसे ही स्त्री को इस्त्री, स्तुति को इस्तुति तथा स्नान को अस्नान भी बहुत लोग लिखते हैं जो अशुद्ध है।
(झ) ज्ञ का उच्चारण बहुत लोग 'ग्य' करते हैं और फिर उसको लिखते भी अशुद्ध हैं-
जैसे-आज्ञा की जगह आ गया।
(ञ) सबसे अधिक अशुद्धियाँ संयुक्त अक्षरों में होती हैं। कई संयुक्त अक्षरों को अलग-अलग और कई असंयुक्त को संयुक्त लिख देते हैं। संयुक्त के स्थान पर
असंयुक्त का प्रयोग तो प्राय: ठीक उच्चारण न कर सकने या न जानने के कारण होता है, पर असंयुक्त के स्थान पर संयुक्त लिखे जाने का एक बड़ा भारी कारण
यह है कि हिन्दी में अनेक स्थलों पर 'अ' का उच्चारण नहीं होता, अतः लिखने में भी अ का लोप कर दिया जाता है।
ऐसी कुछ अशुद्धियाँ नीचे दिखाई जाती हैं-
(ड) कुछ फुटकर अशुद्धियाँ भी देखी जाती हैं
अशुद्ध शुद्ध
अन्ताकरण अन्तःकरण
प्राताकाल प्रात:काल
सुन्द्र सुन्दर
आतर आतुर
उपरिलिखित अशुद्धियाँ प्रायः उच्चारण के कारण है। संस्कृत के सन्धि के नियमों के न जानने के कारण भी बहुत सी अशुद्धियाँ होती हैं।
जैसे-
मनःकामना या मनकामना को मनोकामना।
ये अशुद्धियाँ उच्चारण को शुद्ध होने तथा सुलेखकों को पुस्तकें ध्यान से पढ़ने से ठीक हो सकती हैं।
धन्यवाद !
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