लोकोक्तियाँ
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अंत गता सो मता-जिसका परिणाम अच्छा वह अच्छा।
अंत भले का भला-भले कार्य का परिणाम भला ही होता है।
अंधों में काने राजा-मूर्खों में थोड़ा पढ़े लिखे का मान होता है।
अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत-समय निकल जाने पर पछताना व्यर्थ है।
आँख के अन्धे गाँठ के पूरे-मूर्ख, पर धनवान।
आप मरे जग परलै-प्राण हैं तो संसार है।
उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे-अपराध करके किसी को डाँटना।
ऊँची दुकान फीका पकवान-दिखावटी काम होना।
एक अनार सौ बीमार- जब एक चीज के बहुत से इच्छुक हों तब कहा जाता है।
एक करेला दूसरा नीम चढ़ा-एक स्वयं खराब स्वभाव वाला होना फिर संगीत भी वैसी मिलना।
एक पंथ दो काज-एक काम करने से दो कामों का लाभ होना।
काला अक्षर भैंस बराबर-बिल्कुल निरक्षर भट्टाचार्य।
कुम्हारी अपना ही भाँडा सराहती है-सव अपनी चीख को अच्छा
कहते हैं।
कोयले की दलाली में मुँह काला - बुरी संगति में बुराई ही मिलती है।
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खोदा पहाड़ निकली चुहिया-बहुत परिश्रम करने पर
घर का भेदी लंका ढाहे- पारस्परिक फट से घर नाश होता है।
चिराग तले अंधेरा-पास में ही किसी घटना के होने पर भी उसका ज्ञान न होना या किसी ऐसे स्थान पर बुराई का होना जहाँ उसके रोकने का प्रबन्ध हो।
चोर की दाढ़ी में तिनका-पापी स्वयं डर जाता है।
जब तक साँसा तब तक ऐसे-मरने तक आशा लगी रहती है। ।
जागे सो पावे सोवे तो खोवे-सावधान रहने से भ होता है।
जिसकी लाठी उसकी भैंस-बलवान पुरुष का दबदबा रहता है।
जैसा देश बैसा भेस-जिन देश में वैसी ही रीति ग्रहण करती
चाहिए।
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अंत गता सो मता-जिसका परिणाम अच्छा वह अच्छा।
अंत भले का भला-भले कार्य का परिणाम भला ही होता है।
अंधों में काने राजा-मूर्खों में थोड़ा पढ़े लिखे का मान होता है।
अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत-समय निकल जाने पर पछताना व्यर्थ है।
आँख के अन्धे गाँठ के पूरे-मूर्ख, पर धनवान।
आप मरे जग परलै-प्राण हैं तो संसार है।
उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे-अपराध करके किसी को डाँटना।
ऊँची दुकान फीका पकवान-दिखावटी काम होना।
एक अनार सौ बीमार- जब एक चीज के बहुत से इच्छुक हों तब कहा जाता है।
एक करेला दूसरा नीम चढ़ा-एक स्वयं खराब स्वभाव वाला होना फिर संगीत भी वैसी मिलना।
एक पंथ दो काज-एक काम करने से दो कामों का लाभ होना।
काला अक्षर भैंस बराबर-बिल्कुल निरक्षर भट्टाचार्य।
कुम्हारी अपना ही भाँडा सराहती है-सव अपनी चीख को अच्छा
कहते हैं।
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खोदा पहाड़ निकली चुहिया-बहुत परिश्रम करने पर
घर का भेदी लंका ढाहे- पारस्परिक फट से घर नाश होता है।
चिराग तले अंधेरा-पास में ही किसी घटना के होने पर भी उसका ज्ञान न होना या किसी ऐसे स्थान पर बुराई का होना जहाँ उसके रोकने का प्रबन्ध हो।
चोर की दाढ़ी में तिनका-पापी स्वयं डर जाता है।
जब तक साँसा तब तक ऐसे-मरने तक आशा लगी रहती है। ।
जागे सो पावे सोवे तो खोवे-सावधान रहने से भ होता है।
जिसकी लाठी उसकी भैंस-बलवान पुरुष का दबदबा रहता है।
जैसा देश बैसा भेस-जिन देश में वैसी ही रीति ग्रहण करती
चाहिए।
जैसा मुंह वैसी चपेट या जैसा तेरी तिल चाँवरी वैसे रेगीत मजदूरी
के अनुसार कार्य होगा।
जैसी करनी वैसी भरनी-कर्म और फल मिलता है।
तन को कपड़ा न पेट को रोटी-बहुत गरीब। ।
तेली जोड़े पली पली रहमान लुटावे कुष्या किसी के मेहनत से ीड़े
हुये धन को जब कोई फिजूलखर्ची से उड़ा दे तब कहा जाता है।
थोथा चना बाजे घना-काम न करने वाला व्यक्ति बकवास बहुत करता है।
दाम बनाये कम पैसे से सब काम हो जाते हैं।
दूर के ढोल सुहाने-दूर की चीज अच्छी लगती है
धोबी का कुत्ता घर का न घाट का-जो एक ठिकाने पर जमकर बार
करे, कभी एक में लगे और कभी दूसरे में और किसी में सफल न ही, उमे कहा जाता है।
नदी में रहना मगर से बैर-जिसके अधीन होकर रहे और उसी से बैर करे तो गुजारा नहीं चलता है।
न रहेगा बाँस न बाजेगी बाँसुरी-जिससे नुकसान हो सकता नात ही कर देना अच्छा है।
नाच न जाने आँगन टेढ़ा-काम करने की योग्यता न होने पर टूसरे की दोष देना।
नीम हकीम जान का खतरा-अधिक जाल हानिकारक होता है।
नौ नगद न तेरह उधार-उधार पैसा देना टोक नहीं।
बेकार से बेगार भली-खाली रहने से बिना वेतन काम करना अच्छा है।
पहले आत्मा फिर परमात्मा- पहले अपना घर ठीक कर लो फिर उपकार आदि करो। पहले शरीर फिर धर्म आदि।
भागते चोर की लंगोटी ही सही-सब धन जाता हो तो उससे जो कुछ बचे वही बहुत है।
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मान न मान मैं तेरा मेहमान- जबरदस्ती गले पड़ना।
मियाँ की जूती मियाँ के सिर-किसी व्यक्ति की वस्तु से उसी की हानि करना।
साँप मरे न लाठी टूटे-काम भी सिद्ध हो और नुकसान भी न उठाना पड़े।
सौ सयाने एक मत-सभी सयानों अथवा चतुरों की एक सलाह होती है।
हाथ कंगन को आरसी क्या - प्रत्यक्ष के लिए और प्रमाण की
आवश्यकता नहीं।
हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और कहना कुछ और करना
कुछ और!
होनहार बिरवान के होत चीकने पात- होनहार के लक्षण पहले ही से दीख जाते हैं।
धन्यवाद !
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