तीसरा अध्याय
संज्ञाओं का रूपान्तर
पहले हम कह आये हैं कि वाक्य बनाने के लिए जब शब्द एक दूसरे से मिलते हैं, तो वाक्य के अर्थानुसार विकारी शब्दों के रूप में परिवर्तन होता रहता है। इसे रूपान्तर कहते हैं। संज्ञा का यह रूपान्तर या परिवर्तन लिंग, बचन और कारक के कारण होता है। जैसे-(लिंग) घोड़ा खाता है, घोड़ी खाती है, (वचन) घोड़ा दौड़ता है, घोड़े दौड़ते हैं, (कारक) घोड़ा लाओ, घोड़े पर चढ़ो। इस प्रकार लिंग, वचन और कारक के भेद से संज्ञा के रूप में परिवर्तन होता है।
1. लिंग (Gender)
संज्ञा के जिस रूप से वस्तु की जाति जानी जाये उसे लिंग कहते हैं।
हिन्दी भाषा में दो ही लिंग होते है-पुल्लिंग (Masculine) और स्त्रीलिंग (Feminine)। पुरुष-जाति का बोध कराने वाले शब्द पुल्लिंग और स्त्रो जाति का बोध कराने वाले शब्द स्त्रीलिंग कहलाते हैं। नपुंसकलिंग हिन्दी भाषा में नहीं होता।
पुरुषत्व और स्त्रीत्व का ज्ञान जीवों में ही होता है, निर्जीवों में नहीं। निर्जीव में पुरातत्व अथवा स्त्रीत्व की कल्पना करके उसका लिंग नियत किया जाता है। प्रति: मोटी, बड़ी, बेढंगी वस्तुओं के नाम पुल्लिंग तथा छोटी, हल्की वस्तुओं के नाम स्त्रीलिंग होता है। जैसे-पेड़, सोटा, नगर, हिमालय, कोट ये पुल्लिंग तथा लता, सोटी, नदी, पहाड़, पुरी ये स्त्रीलिंग माने जाते हैं।
लिंग की परख न होने पर संज्ञा के रूप में भी विकार आ जाता है। अत: संज्ञा के लिंग का ज्ञान आवश्यक है। कई शब्दों का लिंग स्पष्ट मालूम पड़ जाता है। ये
शब्द हैं जिनसे दोनों लिंगों में भिन्न-भिन्न रूप होते हैं; जैसे-शेर-शेरनी, घोड़ा - घोड़ी। शेष संज्ञाओं में कौन पुल्लिंग है और कौन स्त्रीलिंग, इसका निर्णय करने के
लिए कुछ नियम नीचे लिखे जाते हैं।
लिंग की परख
(क) जो प्राणिवाचक संज्ञा पुरुषवाचक हैं वे पुल्लिग होती हैं और जो स्त्रीवाचक हैं वे स्त्रीलिंग होती हैं; जैसे-पिता (पु०) माता (स्त्री०), बैल (पु०),गाय (स्त्री०)।
कई एक प्राणिवाचक संज्ञाओं से दोनों जातियों-नर और मादा का बोध होता है, पर उनका प्रयोग एक नियत लिंग में ही होता है। जैसे-उल्लू, कौआ,
भेड़िया, चीता-ये पुल्लिग में ही आते हैं; तथा कोयल, चील, मैना आदि केवल स्त्रीलिंग में। जातिवाद प्रकट करने के लिए इनके साथ नर या मादा शब्द लगाया
जाता है; यथा-नर कौआ, मादा कौआ, नर चीता, मादा चीता।
इसी तरह शिशु, कवि, मेंबर आदि शब्द भी पुल्लिग में ही बोले जाते हैं। जाति-भेद प्रकट करने के लिए इनसे पहले पुरुष या स्त्री शब्द जोड़ा जाता है, यथा-कमेटी के स्त्री मेंबर, स्त्री कवि इत्यादि।
(ख) प्राणियों के समुदायवाचक नाम व्यवहार के अनुसार पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे
पु०-मंडल, दल, संघ, समूह, दम्पती आदि।
स्त्री-सेना, सभा, फौज, टोली आदि।
(ग) ग्रह, धातु और रत्नवाचक शब्द प्रायः: पुल्लिंग होते हैं।
जैसे
सूर्य, चाँद, मंगल, बुध आदि।
सोना, ताँबा, शीशा, पीतल आदि।
हीरा, पन्ना, मोती, माणिक्य आदि।
पर पृथ्वी, चाँदी, मिट्टी तथा धातु (धात) स्त्रीलिंग हैं।
(घ) पेड़, अनाज और द्रव-पदार्थवाचक शब्द भी प्रायः: पुल्लिंग होते हैं।
जैसे-पीपल, बड़, देवदार, आम आदि।
चावल, बाजरा,, उड़द, चना, गेहूँ आदि।
पानी, तेल, घी, शरबत आदि।
पर इमली, मकई (मक्का) ज्वार, छाछ इत्यादि कई शब्द स्त्रीलिंग हैं।
(ङ) पहाड़ों, मासों और वारों के नाम पुल्लिंग में ही आते हैं। जैसे
विन्ध्याचल, हिमालय आदि।
चैत्र, बैशाख, ज्येष्ठ आदि।
रविवार, सोमवार, मंगलवार आदि।
(च) नदियों, तिथियों और नक्षत्रों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे
गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी आदि।
प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज )
आदि।
अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी आदि।
(छ) व्यवसाय को बताने वाले शब्द पुल्लिंग होते हैं। जैसे-दर्जी, धोबी आदि।
(ज) भाषाओं के नाम स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे-हिन्दी अरबी आदि।
(झ) जिन शब्दों के अन्त में आ, पा, आव और पन हो वे प्रायः पल्लिग होते हैं और जिनके अन्त में आई, वट, हट और ता हो वे प्राय: स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे
सोटा, बुढ़ापा, चढ़ाव और लड़कपन पुल्लिंग है तथा चढ़ाई, सजावट, चिल्लाहट ।सरलता आदि स्त्रीलिंग हैं
(অ) हिन्दी में आने वाले संस्कृत के पुल्लिंग तथा नपुंसकलिंग शब्द प्रायः पुल्लिंग होते हैं और स्त्रीलिंग शब्द प्राय: स्त्रीलिंग। जैसे-देश, रत्न, धन आदि।
पुल्लिग है और आशा, मति, दिशा आदि स्त्रीलिंग। पर कुछ शब्द ऐसे हैं जिनका
संस्कृत में और लिंग है तथा हिन्दी में और जैसे
संस्कृत हिन्दी
अग्नि पु० वि०
वायु " "
देवता स्त्री० पु०
संतान पु० स्त्री०
विधि " "
ऋतु पु० स्त्री०
देह " "
आत्मा " "
वस्तु नपुं० "
राशि पु०, स्त्री० "
व्यक्ति स्त्री० पु०
बाहु (बाँह) पु० स्त्री०
विजय " "
समाज, वायु आदि शब्द दोनों लिंगों में प्रयुक्त होते हैं हमारा उन्नत समाज (पु०) यह चाहता है। यहाँ की समाज (स्त्री०) के सभी सभासद। वायु बहती है, वायु चलता है। इसी प्रकार कई लेखकों ने देवता शब्द का प्रयोग स्त्रीलिंग में तथा आत्मा और विजय शब्दों का प्रयोग पुल्लिग में भी किया है '।
* आती है स्वातंत्र्य-देवता उसके चरण धुलने में।' 'एक भारतीय आत्मा "विजय-मेरे चिर सहचर!"
-जयशंकर प्रसाद
* कालिदास के काव्यों-नाटकों में भारत का आत्मा जिस तरह प्रकट हुआ है.
-जयचन्द्र विद्यालंकार
(ट) फारसी शब्दों का प्राय: वही लिंग रहता है जो उनका फारसी में है।
जैसे-बदबू, कलम आदि स्त्रीलिंग है तथा खयाल, दगा आदि पुल्लिग।अंग्रेजी शब्द व्यवहारानुसार पुल्लिंग या स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होते हैं। जैसे-राम का बूट, गोविन्द की पेंसिल, स्कूल की फीस।
(ठ) सभा, पत्र, पुस्तक और स्थान आदि के नामों का लिंग बहुधा शब्द के अनुसार होता है।
हिन्दू महासभा (स्त्री०), धर्म महामंडल (पु०), सरस्वती (स्त्री०), विश्वामित्र (पु०), आत्मकथा (स्त्री), तेरी कहानी (स्त्री) मेघदूत (पु०), दिल्ली (स्त्री०), मेरठ (पु०), मद्रास (पु०)।
(ड) समस्त शब्दों का लिंग प्रायः अन्त्य शब्द के लिंग के अनुसार होता जैसे-रसोई घर (पु०), देशभक्ति (स्त्री०)।
लिंग की परख के ये नियम अपूर्ण हैं और इनके बहुत से अपवाद मिली इसे हिन्दी में बहुत गड़बड़ रहती है। इसी कारण लिंग के नियमों को और सरल करने का आन्दोलन हो रहा है। साधारणतया प्रसिद्ध लेखकों के लेख तथा ग्रन्थकारों के ग्रन्थ ध्यानपूर्वक पढ़ने से ही लिग-भेद का अच्छा ज्ञान हो सकता है।
पुल्लिंग शब्द से स्त्रीलिंग बनाने का नियम
(1) अकारान्त और आकारान्त शब्दों के अन्तिम 'अ' या 'आ' के स्थान में प्रायः 'ई' प्रत्यय लगाने से स्त्रीलिंग बनता है। जैसे
पुत्र पुत्री लड़का लड़की
बन्दर बन्दरी घोड़ा घोड़ी
अप्राणिवाचक शब्दों में यह प्रत्यय लघुता या सूक्ष्मता के अर्थ में लगता है। जैसे- रस्सा, रस्सी।
(2) कुछ आकारान्त शब्दों में 'आ' के स्थान में 'इया' प्रत्यय लगता है और पहला स्वर हस्व हो जाता है।
चूहा चुहिया कुत्ता कुतिया
बूढ़ा बुढ़िया बेटा बिटिया
यह प्रत्यय कहीं-कहीं लघुता अर्थ में भी लगता है। जैसे - लोटा लुटिया डिब्बा डिबिया
(3) पेशा-सूचक पुल्लिंग शब्दों के अन्तिम स्वर के स्थान में 'इन' प्रत्यय नट लगाने से स्त्रीलिंग बनता है। जैसे -
सुनार सुनारिन कहार कहारिन
धोबी धोबिन जुलाहा जुलाहिन
(4) कुछ अकारान्त शब्दों के अन्त में 'नी' प्रत्यय और कछ में 'आनी लगाने से भी स्त्रीलिंग बनता है। जैसे -
नी आनी
सिंह। सिंहनी मेहतर मेहतरानी
जाट जाटनी पंडित पंडितानी
मोर मोरनी। सेठ सेठानी
ऊँट ऊँटनी नौकर नौकरानी
राजपूत राजपूतनी। देवर देवरानी
नी और आनी प्रत्यय अकारान्त से भिन्न शब्दों में भी कहीं-कहीं लगते हैं।
जैसे --
हाथी हथिनी, क्षत्रिय क्षत्राणी, चौधरी चौधरानी
(5) उपनामवाचक शब्दों के अन्तिम स्वर के स्थान पर प्राय: ' आइन' प्रत्यय लगता है और उनसे पहले के दीर्घ स्वर को हस्व कर दिया जाता है। जैसे-
पांडे पंडाइन बाबू बबुआइन
दुबे दुबाइन ठाकुर ठकुराइन
(6) संस्कृत से आये हुए पुल्लिग शब्दों के साथ प्राय: संस्कृत के स्त्री-प्रत्यय (आ या ई) लगाये जाते हैं। जैसे
सुत सुता बालक बालिका
देव देवी प्रबन्धकर्ता (र्तु) प्रबन्धकर्ता
विद्वान् विदूषी स्वामी (मिन्) स्वामिनी
प्रिय प्रिया विशारद (चतुर) विशारदा (चतुरा)
'विशारद' शब्द जहाँ उपाधि के अर्थ में प्रयुक्त होगा, वहाँ लिंग-परिवर्तन नहीं होगा (देखिये नियम 9)
(7) कई पुल्लिंग शब्दों के स्त्रीलिंग शब्द बिल्कुल भिन्न हैंं -
पु० स्त्री० पु० स्त्री० पु० स्त्री० पिता माता मर्द औरत वर वधू
बाप माँ भाई बहन 1 राजा रानी
पुरुष स्त्री पुत्र कन्या बैल गाय
(8) कुल शब्द रूप में परस्पर जोड़े जान पड़ते हैं, पर यथार्थ में उनका अलग-अलग होता है। जैसे
साँड साँडनी (ऊँटनी)
डाकू (लुटेर) डाकिनी (डायन, चुड़ैल)
(9) पाश्चात्य स्त्रियों को देखादेखी सेक्सी कुमारी कन्यायें अपने नाम के आगे अपने पिता का उपनाम (जाति) तथा विवाहित स्त्रियाँ अपने पति का उपनाम लगाती हैं। ये उपनाम पुल्लिग होते हैं, इनका लिंग-परिवर्तन नहीं होता।
जैसे-कुमारी जया पाण्डेय, श्रीमती लीला शर्मा, श्रीमती कमला डोगरा, श्रीमती मधु पाण्डेय।
इसी प्रकार बी० ए० शास्त्री, हिन्दी-प्रभाकर, विशारद, डॉक्टर इत्यादि उपाधियों में भी लिंग-परिवर्तन नहीं होता। जैसे-केशव प्रसाद विशारद, राजकुमारी विशारद, जगदीश शास्त्री, वत्सला शास्त्री, डॉक्टर श्रीदत्त अरविन्द पान्डेय, डॉक्टर शीला तिवारी।
शास्त्री की स्त्री शास्त्रिणी कही जा सकती है, पर वहाँ शास्त्री उपाधि न होगी।
जैसे-श्रीमती उर्मिला देवी शास्त्री।
इनके अतिरिक्त किसी हिन्दू पुरुष के नाम के आगे श्रीमती जोड़ कर तथा मुसलमान पुरुष के नाम के आगे बेगम जोड़कर भी उस पुरुष की स्त्री को सूचित
किया जाता है। जैसे-श्रीमति गोकुलचन्द्र नारंग, बेगम शाह नवाज आदि। अंग्रेजी के मिस्टर, मिसेज और मिस का भी हिन्दी में बहुत प्रयोग हो रहा है, विशेषत:
उपन्यासों और फिल्मों में।
(1.सम्बन्ध-भेद से भाई का स्त्रीलिंग भाभी, भावज या भाई तथा बहन का पुस्लिग बहनोई भी होता है।)
स्त्रीलिंग शब्दों से पुल्लिंग बनाने के नियम
जैसे पुरुषवाचक शब्दों के अन्त में प्रत्यय लगाने से वे स्त्रीवाचक बन जाते है, इसी तरह सती वाचक शब्दों के अन्त में कुछ प्रत्यय लगाने से वे पुरुषवाचक बन
जाते हैं।
(1) कुछ स्त्रीलिंग शब्दों में 'ओई', आव' और 'औटा' लगाने से। जैसे -
बहन बहनोई ननद ननदोई
बिल्ली बिलाव सिल सिलौटा
(2) कुछ ईकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के अन्तिम 'ई' को 'आ' में बदल देने से।
जैसे-
अधन्नी अधन्ना जीजी जीजा झोली झोला
(3) कई ईकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के अन्तिम 'ई' को 'अ' में बदल देने से।
जैसे-
रोटी रोट गठड़ी गट्ठर
(4) कई एक स्त्रीलिंग शब्दों के अन्त में आ लगा देने से। जैसे
भेड़ भेड़ा भैंस भैंसा राँड रँडुआ
(5) कई स्त्री-प्रत्ययान्त और स्त्रीलिंग शब्द अर्थ की दृष्टि से केवल स्त्रियों के लिए आते हैं उनके पुल्लिग रूप नहीं होते। जैसे-
सौत, सती, वेश्या, धाय, सुहागिन, गाभिन।
वचन (Number)
संज्ञा और अन्य विकारी शब्दों के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि वह एक के लिए प्रयुक्त हुआ है या एक से अधिक के लिए उसे वचन कहते हैं। हिन्दी में दो वचन होते हैं-एकवचन (Singular) और बहुवचन (Plural) एक ही वस्तु का बोध कराने वाला रूप एकवचन' कहलाता है और एक से अधिक को प्रकट करनेवाला रूप बहुवचन'। 'लड़का खेलता है' यहाँ लड़का एकवचन है. 'लडके खेलते हैं' यहाँ 'लड़के' बहुवचन हैं। आदर के लिए एकवचन में भी बहुवचन
आता है। जैसे-भाई साहब आज देहली गये हैं। कभी-कभी जातिवाचक शब्द एकवचन में भी बहुवचन का बोध कराते हैं जैसे यहाँ आम बहुत होता है, (आम बहुत होते हैं) हाथी बहुत बुद्धिमान होता है। (बुद्धिमान होते हैं)।
वचन के कारण संज्ञा में जो रूप परिवर्तन होता है उसे दो भागों में बाँटा जा सकता है,
(1) जब संज्ञा के साथ कारकों में विभक्ति या लगी हों (2) जव संज्ञा प्रथमा विभक्ति में हो और उसके साथ कोई विभक्ति-चिह्न न हो।
पहली तरह के परिवर्तन के सम्बन्ध में विशेष रूप से कारक के अध्याय में लिखा जायेगा। दूसरी तरह के परिवर्तनों के कुछ एक नियम यहाँ लिखे जाते हैं
पुल्लिंग शब्दों के बहुवचन बनाने के नियम
(1) हिन्दी के अकारान्त पुल्लिंग शब्दों को बहुवचन बनाने के लिए अन्त्य 'अ' के स्थान में 'ए' कर दिया जाता है। जैसे
लड़का--लड़के घोड़ा-घोड़े कपड़ा-कपड़े
पहिया-पहिये भानजा-भानजे पोता-पोते
अपवाद-मामा, नाना, बाबा, दादा आदि का सम्बन्धवाचक शब्द एशिया, जावा, सुमात्रा आदि स्थानवाचक शब्द और संस्कृत के अकारान्त ।
नकारान्त तथा सकारान्त शब्द जो हिन्दी में आकारान्त हो जाते हैं. एवं देवरा, सरमा दरिया आदि शब्द इस नियम के अपवाद हैं। इनके बहुवचन में 'आ' को
'ए' नहीं होता है। जैसे
सम्बन्धवाचक-मामा आये। उसके दादा यह कहा करते थे पर बाप-.दादी शब्द के बहुवचन में बाप दादे और बाप-दादा दोनों रूप बनते हैं जैसे-जो
बाप-दादे करते आये हैं वह ठीक है। जिनके बाप-दादा दिल्ली की आवाज सुनकर डर जाते थे...
ऋकारान्त -इतने दाता (दाता) यहाँ बैठे हैं पर किसी ने एक पैसा न दिया।
नकारान्त-गर्मियों के दिनों में बहुत से राजा (राजन्) और धनी पुरुष यहाँ सैर को आते हैं।
सकारान्त-हाथी ने सूंड़ से पानी को हिलाया तो उसे जल में अनेक चन्द्रमा (चन्द्रमस्) दीख पड़े।
(2) आकारान्तों को छोड़कर शेष पुल्लिंग शब्दों के रूप दोनों वचनों में समान ही रहते हैं। जैसे
एकवचन बहुवचन
एक आम लाओ। पाँच आम लाओ
हाथी आता है हाथी आते हैं
साधु गया साधु गये
वहाँ उल्लू बैठा है वहाँ उल्लू बैठे हैं।
स्त्रीलिंग शब्दों के बहुवचन बनाने के नियम
(3) अकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों का बहुवचन अन्तिम 'अ' को '' में बदलने
से बनता है। जैसे
बहन बहनें पुस्तक पुस्तकें
रात रातें आँख आँखेंं
4) इकारान्त और ईकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञाओं में ' ई' को हस्व करके अन्त्य स्वर के पश्चात् 'याँ' जोड़ते हैं। जैसे
तिथि तिथियाँ रानी रानियाँ
रीति रीतियाँ टोपी टोपियाँ
नीति नीतियाँ सखी सखियाँ
(5) जिन संज्ञाओं के अंत में 'या' हो सके 'या' के ऊपर केवल चन्द्र-बिन्दु लगाया जाता है। जैसे
डिबिया डिबियाँ बुढ़िया बुढ़ियाँँ
(6) शेष स्त्रीलिंग शब्दों का बहुवचन अन्तिम स्वर के बाद ' या'' जोड़ने से बनता है तथा अकारान्त शब्दों का अन्तिम 'ऊ' हस्ब हो जाता है।
जैसे
लता लताएं वस्तु वस्तुयें या वस्तुएँ
माता माताएँ बहू बहुएँ
कुछ अन्य नियम
(7) बहुत्व (बहुवचन) प्रकट करने के लिए संज्ञा के एक वचन के साथ गण, वृन्द, लोग, वर्ग आदि शब्द भी जोड़े जाते हैं।
जैसे-पाठकगण, सज्जन, वृन्द, बाबू लोग।
(8) प्राण, दर्शन, लोग, होश आदि शब्द प्राय: बहुवचन में ही बोले जाते हैं।
जैसे-बहुत दिनों से आपके दर्शन नहीं हुए। बड़ी मुश्किल से प्राण बचे। प्राण पखेरू उड़ गये। लोग कह रहे हैं। पुलिस को देखते ही उसके होश उड़ गये।
(9) सामग्री तैयारी आदि एकवचन में ही प्रयुक्त होते हैं।
संज्ञाओं के तीन भेदों से प्राय: जातिवाचक संज्ञा बहुवचन में आती हैं। परन्तु व्यक्तिवाचक और भाववाचक संज्ञाओं का प्रयोग जब जातिवाचक संज्ञा के समान होता है तब वे बहुवचन में भी प्रयुक्त हो सकती हैं जैसे-भारत में विभीषणों की कमी नहीं। "उठती बुरी हैं भावनाएँ हाय मम हद्धाम में " यहाँ विभीषणों.तथा भावनाएँ जातिवाचक संज्ञा हैं। जब एक ही नाम के कई व्यक्तियों को सूचित.करना होता है, तब भी व्यक्तिवाचक संज्ञा बहुवचन में आती हैं, यद्यपि तब वे.जातिवाचक नहीं कहलातीं। जैसे-भारत में तीन राम हुए हैं "कहू रावण रावण जग केते।"
व्यक्तिवाचक और भाववाचक संज्ञा के समान द्रव्यवाचक संज्ञा का प्रयोग प्राय: एकवचन में ही होता है। जैसे-पानी प्रभु की अत्युत्तम देन है। द्रव्यवाचक संज्ञा को जातिवाचक से भिन्न मानने का मुख्य कारण भी यही है। परन्तु जब द्रव्यवाचक संज्ञा का भी जातिवाचक के समान प्रयोग हो तब उसका भी बहुवचन होगा जैसे-गंगा, वर्षा और कुएँ के जलों में बड़ा अन्तर है। यहाँ जलों (बहुवचन) जातिवाचक संज्ञा है। जल के भिन्न-भिन्न भेदों से अभिप्राय है।
धन्यवाद !
संज्ञाओं का रूपान्तर
पहले हम कह आये हैं कि वाक्य बनाने के लिए जब शब्द एक दूसरे से मिलते हैं, तो वाक्य के अर्थानुसार विकारी शब्दों के रूप में परिवर्तन होता रहता है। इसे रूपान्तर कहते हैं। संज्ञा का यह रूपान्तर या परिवर्तन लिंग, बचन और कारक के कारण होता है। जैसे-(लिंग) घोड़ा खाता है, घोड़ी खाती है, (वचन) घोड़ा दौड़ता है, घोड़े दौड़ते हैं, (कारक) घोड़ा लाओ, घोड़े पर चढ़ो। इस प्रकार लिंग, वचन और कारक के भेद से संज्ञा के रूप में परिवर्तन होता है।
1. लिंग (Gender)
संज्ञा के जिस रूप से वस्तु की जाति जानी जाये उसे लिंग कहते हैं।
हिन्दी भाषा में दो ही लिंग होते है-पुल्लिंग (Masculine) और स्त्रीलिंग (Feminine)। पुरुष-जाति का बोध कराने वाले शब्द पुल्लिंग और स्त्रो जाति का बोध कराने वाले शब्द स्त्रीलिंग कहलाते हैं। नपुंसकलिंग हिन्दी भाषा में नहीं होता।
पुरुषत्व और स्त्रीत्व का ज्ञान जीवों में ही होता है, निर्जीवों में नहीं। निर्जीव में पुरातत्व अथवा स्त्रीत्व की कल्पना करके उसका लिंग नियत किया जाता है। प्रति: मोटी, बड़ी, बेढंगी वस्तुओं के नाम पुल्लिंग तथा छोटी, हल्की वस्तुओं के नाम स्त्रीलिंग होता है। जैसे-पेड़, सोटा, नगर, हिमालय, कोट ये पुल्लिंग तथा लता, सोटी, नदी, पहाड़, पुरी ये स्त्रीलिंग माने जाते हैं।
लिंग की परख न होने पर संज्ञा के रूप में भी विकार आ जाता है। अत: संज्ञा के लिंग का ज्ञान आवश्यक है। कई शब्दों का लिंग स्पष्ट मालूम पड़ जाता है। ये
शब्द हैं जिनसे दोनों लिंगों में भिन्न-भिन्न रूप होते हैं; जैसे-शेर-शेरनी, घोड़ा - घोड़ी। शेष संज्ञाओं में कौन पुल्लिंग है और कौन स्त्रीलिंग, इसका निर्णय करने के
लिए कुछ नियम नीचे लिखे जाते हैं।
लिंग की परख
(क) जो प्राणिवाचक संज्ञा पुरुषवाचक हैं वे पुल्लिग होती हैं और जो स्त्रीवाचक हैं वे स्त्रीलिंग होती हैं; जैसे-पिता (पु०) माता (स्त्री०), बैल (पु०),गाय (स्त्री०)।
कई एक प्राणिवाचक संज्ञाओं से दोनों जातियों-नर और मादा का बोध होता है, पर उनका प्रयोग एक नियत लिंग में ही होता है। जैसे-उल्लू, कौआ,
भेड़िया, चीता-ये पुल्लिग में ही आते हैं; तथा कोयल, चील, मैना आदि केवल स्त्रीलिंग में। जातिवाद प्रकट करने के लिए इनके साथ नर या मादा शब्द लगाया
जाता है; यथा-नर कौआ, मादा कौआ, नर चीता, मादा चीता।
इसी तरह शिशु, कवि, मेंबर आदि शब्द भी पुल्लिग में ही बोले जाते हैं। जाति-भेद प्रकट करने के लिए इनसे पहले पुरुष या स्त्री शब्द जोड़ा जाता है, यथा-कमेटी के स्त्री मेंबर, स्त्री कवि इत्यादि।
(ख) प्राणियों के समुदायवाचक नाम व्यवहार के अनुसार पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे
पु०-मंडल, दल, संघ, समूह, दम्पती आदि।
स्त्री-सेना, सभा, फौज, टोली आदि।
(ग) ग्रह, धातु और रत्नवाचक शब्द प्रायः: पुल्लिंग होते हैं।
जैसे
सूर्य, चाँद, मंगल, बुध आदि।
सोना, ताँबा, शीशा, पीतल आदि।
हीरा, पन्ना, मोती, माणिक्य आदि।
पर पृथ्वी, चाँदी, मिट्टी तथा धातु (धात) स्त्रीलिंग हैं।
(घ) पेड़, अनाज और द्रव-पदार्थवाचक शब्द भी प्रायः: पुल्लिंग होते हैं।
जैसे-पीपल, बड़, देवदार, आम आदि।
चावल, बाजरा,, उड़द, चना, गेहूँ आदि।
पानी, तेल, घी, शरबत आदि।
पर इमली, मकई (मक्का) ज्वार, छाछ इत्यादि कई शब्द स्त्रीलिंग हैं।
(ङ) पहाड़ों, मासों और वारों के नाम पुल्लिंग में ही आते हैं। जैसे
विन्ध्याचल, हिमालय आदि।
चैत्र, बैशाख, ज्येष्ठ आदि।
रविवार, सोमवार, मंगलवार आदि।
(च) नदियों, तिथियों और नक्षत्रों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे
गंगा, यमुना, सरस्वती, कावेरी आदि।
प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज )
आदि।
अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी आदि।
(छ) व्यवसाय को बताने वाले शब्द पुल्लिंग होते हैं। जैसे-दर्जी, धोबी आदि।
(ज) भाषाओं के नाम स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे-हिन्दी अरबी आदि।
(झ) जिन शब्दों के अन्त में आ, पा, आव और पन हो वे प्रायः पल्लिग होते हैं और जिनके अन्त में आई, वट, हट और ता हो वे प्राय: स्त्रीलिंग होते हैं। जैसे
सोटा, बुढ़ापा, चढ़ाव और लड़कपन पुल्लिंग है तथा चढ़ाई, सजावट, चिल्लाहट ।सरलता आदि स्त्रीलिंग हैं
(অ) हिन्दी में आने वाले संस्कृत के पुल्लिंग तथा नपुंसकलिंग शब्द प्रायः पुल्लिंग होते हैं और स्त्रीलिंग शब्द प्राय: स्त्रीलिंग। जैसे-देश, रत्न, धन आदि।
पुल्लिग है और आशा, मति, दिशा आदि स्त्रीलिंग। पर कुछ शब्द ऐसे हैं जिनका
संस्कृत में और लिंग है तथा हिन्दी में और जैसे
संस्कृत हिन्दी
अग्नि पु० वि०
वायु " "
देवता स्त्री० पु०
संतान पु० स्त्री०
विधि " "
ऋतु पु० स्त्री०
देह " "
आत्मा " "
वस्तु नपुं० "
राशि पु०, स्त्री० "
व्यक्ति स्त्री० पु०
बाहु (बाँह) पु० स्त्री०
विजय " "
समाज, वायु आदि शब्द दोनों लिंगों में प्रयुक्त होते हैं हमारा उन्नत समाज (पु०) यह चाहता है। यहाँ की समाज (स्त्री०) के सभी सभासद। वायु बहती है, वायु चलता है। इसी प्रकार कई लेखकों ने देवता शब्द का प्रयोग स्त्रीलिंग में तथा आत्मा और विजय शब्दों का प्रयोग पुल्लिग में भी किया है '।
* आती है स्वातंत्र्य-देवता उसके चरण धुलने में।' 'एक भारतीय आत्मा "विजय-मेरे चिर सहचर!"
-जयशंकर प्रसाद
* कालिदास के काव्यों-नाटकों में भारत का आत्मा जिस तरह प्रकट हुआ है.
-जयचन्द्र विद्यालंकार
(ट) फारसी शब्दों का प्राय: वही लिंग रहता है जो उनका फारसी में है।
जैसे-बदबू, कलम आदि स्त्रीलिंग है तथा खयाल, दगा आदि पुल्लिग।अंग्रेजी शब्द व्यवहारानुसार पुल्लिंग या स्त्रीलिंग में प्रयुक्त होते हैं। जैसे-राम का बूट, गोविन्द की पेंसिल, स्कूल की फीस।
(ठ) सभा, पत्र, पुस्तक और स्थान आदि के नामों का लिंग बहुधा शब्द के अनुसार होता है।
हिन्दू महासभा (स्त्री०), धर्म महामंडल (पु०), सरस्वती (स्त्री०), विश्वामित्र (पु०), आत्मकथा (स्त्री), तेरी कहानी (स्त्री) मेघदूत (पु०), दिल्ली (स्त्री०), मेरठ (पु०), मद्रास (पु०)।
(ड) समस्त शब्दों का लिंग प्रायः अन्त्य शब्द के लिंग के अनुसार होता जैसे-रसोई घर (पु०), देशभक्ति (स्त्री०)।
लिंग की परख के ये नियम अपूर्ण हैं और इनके बहुत से अपवाद मिली इसे हिन्दी में बहुत गड़बड़ रहती है। इसी कारण लिंग के नियमों को और सरल करने का आन्दोलन हो रहा है। साधारणतया प्रसिद्ध लेखकों के लेख तथा ग्रन्थकारों के ग्रन्थ ध्यानपूर्वक पढ़ने से ही लिग-भेद का अच्छा ज्ञान हो सकता है।
पुल्लिंग शब्द से स्त्रीलिंग बनाने का नियम
(1) अकारान्त और आकारान्त शब्दों के अन्तिम 'अ' या 'आ' के स्थान में प्रायः 'ई' प्रत्यय लगाने से स्त्रीलिंग बनता है। जैसे
पुत्र पुत्री लड़का लड़की
बन्दर बन्दरी घोड़ा घोड़ी
अप्राणिवाचक शब्दों में यह प्रत्यय लघुता या सूक्ष्मता के अर्थ में लगता है। जैसे- रस्सा, रस्सी।
(2) कुछ आकारान्त शब्दों में 'आ' के स्थान में 'इया' प्रत्यय लगता है और पहला स्वर हस्व हो जाता है।
चूहा चुहिया कुत्ता कुतिया
बूढ़ा बुढ़िया बेटा बिटिया
यह प्रत्यय कहीं-कहीं लघुता अर्थ में भी लगता है। जैसे - लोटा लुटिया डिब्बा डिबिया
(3) पेशा-सूचक पुल्लिंग शब्दों के अन्तिम स्वर के स्थान में 'इन' प्रत्यय नट लगाने से स्त्रीलिंग बनता है। जैसे -
सुनार सुनारिन कहार कहारिन
धोबी धोबिन जुलाहा जुलाहिन
(4) कुछ अकारान्त शब्दों के अन्त में 'नी' प्रत्यय और कछ में 'आनी लगाने से भी स्त्रीलिंग बनता है। जैसे -
नी आनी
सिंह। सिंहनी मेहतर मेहतरानी
जाट जाटनी पंडित पंडितानी
मोर मोरनी। सेठ सेठानी
ऊँट ऊँटनी नौकर नौकरानी
राजपूत राजपूतनी। देवर देवरानी
नी और आनी प्रत्यय अकारान्त से भिन्न शब्दों में भी कहीं-कहीं लगते हैं।
जैसे --
हाथी हथिनी, क्षत्रिय क्षत्राणी, चौधरी चौधरानी
(5) उपनामवाचक शब्दों के अन्तिम स्वर के स्थान पर प्राय: ' आइन' प्रत्यय लगता है और उनसे पहले के दीर्घ स्वर को हस्व कर दिया जाता है। जैसे-
पांडे पंडाइन बाबू बबुआइन
दुबे दुबाइन ठाकुर ठकुराइन
(6) संस्कृत से आये हुए पुल्लिग शब्दों के साथ प्राय: संस्कृत के स्त्री-प्रत्यय (आ या ई) लगाये जाते हैं। जैसे
सुत सुता बालक बालिका
देव देवी प्रबन्धकर्ता (र्तु) प्रबन्धकर्ता
विद्वान् विदूषी स्वामी (मिन्) स्वामिनी
प्रिय प्रिया विशारद (चतुर) विशारदा (चतुरा)
'विशारद' शब्द जहाँ उपाधि के अर्थ में प्रयुक्त होगा, वहाँ लिंग-परिवर्तन नहीं होगा (देखिये नियम 9)
(7) कई पुल्लिंग शब्दों के स्त्रीलिंग शब्द बिल्कुल भिन्न हैंं -
पु० स्त्री० पु० स्त्री० पु० स्त्री० पिता माता मर्द औरत वर वधू
बाप माँ भाई बहन 1 राजा रानी
पुरुष स्त्री पुत्र कन्या बैल गाय
(8) कुल शब्द रूप में परस्पर जोड़े जान पड़ते हैं, पर यथार्थ में उनका अलग-अलग होता है। जैसे
साँड साँडनी (ऊँटनी)
डाकू (लुटेर) डाकिनी (डायन, चुड़ैल)
(9) पाश्चात्य स्त्रियों को देखादेखी सेक्सी कुमारी कन्यायें अपने नाम के आगे अपने पिता का उपनाम (जाति) तथा विवाहित स्त्रियाँ अपने पति का उपनाम लगाती हैं। ये उपनाम पुल्लिग होते हैं, इनका लिंग-परिवर्तन नहीं होता।
जैसे-कुमारी जया पाण्डेय, श्रीमती लीला शर्मा, श्रीमती कमला डोगरा, श्रीमती मधु पाण्डेय।
इसी प्रकार बी० ए० शास्त्री, हिन्दी-प्रभाकर, विशारद, डॉक्टर इत्यादि उपाधियों में भी लिंग-परिवर्तन नहीं होता। जैसे-केशव प्रसाद विशारद, राजकुमारी विशारद, जगदीश शास्त्री, वत्सला शास्त्री, डॉक्टर श्रीदत्त अरविन्द पान्डेय, डॉक्टर शीला तिवारी।
शास्त्री की स्त्री शास्त्रिणी कही जा सकती है, पर वहाँ शास्त्री उपाधि न होगी।
जैसे-श्रीमती उर्मिला देवी शास्त्री।
इनके अतिरिक्त किसी हिन्दू पुरुष के नाम के आगे श्रीमती जोड़ कर तथा मुसलमान पुरुष के नाम के आगे बेगम जोड़कर भी उस पुरुष की स्त्री को सूचित
किया जाता है। जैसे-श्रीमति गोकुलचन्द्र नारंग, बेगम शाह नवाज आदि। अंग्रेजी के मिस्टर, मिसेज और मिस का भी हिन्दी में बहुत प्रयोग हो रहा है, विशेषत:
उपन्यासों और फिल्मों में।
(1.सम्बन्ध-भेद से भाई का स्त्रीलिंग भाभी, भावज या भाई तथा बहन का पुस्लिग बहनोई भी होता है।)
स्त्रीलिंग शब्दों से पुल्लिंग बनाने के नियम
जैसे पुरुषवाचक शब्दों के अन्त में प्रत्यय लगाने से वे स्त्रीवाचक बन जाते है, इसी तरह सती वाचक शब्दों के अन्त में कुछ प्रत्यय लगाने से वे पुरुषवाचक बन
जाते हैं।
(1) कुछ स्त्रीलिंग शब्दों में 'ओई', आव' और 'औटा' लगाने से। जैसे -
बहन बहनोई ननद ननदोई
बिल्ली बिलाव सिल सिलौटा
(2) कुछ ईकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के अन्तिम 'ई' को 'आ' में बदल देने से।
जैसे-
अधन्नी अधन्ना जीजी जीजा झोली झोला
(3) कई ईकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के अन्तिम 'ई' को 'अ' में बदल देने से।
जैसे-
रोटी रोट गठड़ी गट्ठर
(4) कई एक स्त्रीलिंग शब्दों के अन्त में आ लगा देने से। जैसे
भेड़ भेड़ा भैंस भैंसा राँड रँडुआ
(5) कई स्त्री-प्रत्ययान्त और स्त्रीलिंग शब्द अर्थ की दृष्टि से केवल स्त्रियों के लिए आते हैं उनके पुल्लिग रूप नहीं होते। जैसे-
सौत, सती, वेश्या, धाय, सुहागिन, गाभिन।
वचन (Number)
संज्ञा और अन्य विकारी शब्दों के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि वह एक के लिए प्रयुक्त हुआ है या एक से अधिक के लिए उसे वचन कहते हैं। हिन्दी में दो वचन होते हैं-एकवचन (Singular) और बहुवचन (Plural) एक ही वस्तु का बोध कराने वाला रूप एकवचन' कहलाता है और एक से अधिक को प्रकट करनेवाला रूप बहुवचन'। 'लड़का खेलता है' यहाँ लड़का एकवचन है. 'लडके खेलते हैं' यहाँ 'लड़के' बहुवचन हैं। आदर के लिए एकवचन में भी बहुवचन
आता है। जैसे-भाई साहब आज देहली गये हैं। कभी-कभी जातिवाचक शब्द एकवचन में भी बहुवचन का बोध कराते हैं जैसे यहाँ आम बहुत होता है, (आम बहुत होते हैं) हाथी बहुत बुद्धिमान होता है। (बुद्धिमान होते हैं)।
वचन के कारण संज्ञा में जो रूप परिवर्तन होता है उसे दो भागों में बाँटा जा सकता है,
(1) जब संज्ञा के साथ कारकों में विभक्ति या लगी हों (2) जव संज्ञा प्रथमा विभक्ति में हो और उसके साथ कोई विभक्ति-चिह्न न हो।
पहली तरह के परिवर्तन के सम्बन्ध में विशेष रूप से कारक के अध्याय में लिखा जायेगा। दूसरी तरह के परिवर्तनों के कुछ एक नियम यहाँ लिखे जाते हैं
पुल्लिंग शब्दों के बहुवचन बनाने के नियम
(1) हिन्दी के अकारान्त पुल्लिंग शब्दों को बहुवचन बनाने के लिए अन्त्य 'अ' के स्थान में 'ए' कर दिया जाता है। जैसे
लड़का--लड़के घोड़ा-घोड़े कपड़ा-कपड़े
पहिया-पहिये भानजा-भानजे पोता-पोते
अपवाद-मामा, नाना, बाबा, दादा आदि का सम्बन्धवाचक शब्द एशिया, जावा, सुमात्रा आदि स्थानवाचक शब्द और संस्कृत के अकारान्त ।
नकारान्त तथा सकारान्त शब्द जो हिन्दी में आकारान्त हो जाते हैं. एवं देवरा, सरमा दरिया आदि शब्द इस नियम के अपवाद हैं। इनके बहुवचन में 'आ' को
'ए' नहीं होता है। जैसे
सम्बन्धवाचक-मामा आये। उसके दादा यह कहा करते थे पर बाप-.दादी शब्द के बहुवचन में बाप दादे और बाप-दादा दोनों रूप बनते हैं जैसे-जो
बाप-दादे करते आये हैं वह ठीक है। जिनके बाप-दादा दिल्ली की आवाज सुनकर डर जाते थे...
ऋकारान्त -इतने दाता (दाता) यहाँ बैठे हैं पर किसी ने एक पैसा न दिया।
नकारान्त-गर्मियों के दिनों में बहुत से राजा (राजन्) और धनी पुरुष यहाँ सैर को आते हैं।
सकारान्त-हाथी ने सूंड़ से पानी को हिलाया तो उसे जल में अनेक चन्द्रमा (चन्द्रमस्) दीख पड़े।
(2) आकारान्तों को छोड़कर शेष पुल्लिंग शब्दों के रूप दोनों वचनों में समान ही रहते हैं। जैसे
एकवचन बहुवचन
एक आम लाओ। पाँच आम लाओ
हाथी आता है हाथी आते हैं
साधु गया साधु गये
वहाँ उल्लू बैठा है वहाँ उल्लू बैठे हैं।
स्त्रीलिंग शब्दों के बहुवचन बनाने के नियम
(3) अकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों का बहुवचन अन्तिम 'अ' को '' में बदलने
से बनता है। जैसे
बहन बहनें पुस्तक पुस्तकें
रात रातें आँख आँखेंं
4) इकारान्त और ईकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञाओं में ' ई' को हस्व करके अन्त्य स्वर के पश्चात् 'याँ' जोड़ते हैं। जैसे
तिथि तिथियाँ रानी रानियाँ
रीति रीतियाँ टोपी टोपियाँ
नीति नीतियाँ सखी सखियाँ
(5) जिन संज्ञाओं के अंत में 'या' हो सके 'या' के ऊपर केवल चन्द्र-बिन्दु लगाया जाता है। जैसे
डिबिया डिबियाँ बुढ़िया बुढ़ियाँँ
(6) शेष स्त्रीलिंग शब्दों का बहुवचन अन्तिम स्वर के बाद ' या'' जोड़ने से बनता है तथा अकारान्त शब्दों का अन्तिम 'ऊ' हस्ब हो जाता है।
जैसे
लता लताएं वस्तु वस्तुयें या वस्तुएँ
माता माताएँ बहू बहुएँ
कुछ अन्य नियम
(7) बहुत्व (बहुवचन) प्रकट करने के लिए संज्ञा के एक वचन के साथ गण, वृन्द, लोग, वर्ग आदि शब्द भी जोड़े जाते हैं।
जैसे-पाठकगण, सज्जन, वृन्द, बाबू लोग।
(8) प्राण, दर्शन, लोग, होश आदि शब्द प्राय: बहुवचन में ही बोले जाते हैं।
जैसे-बहुत दिनों से आपके दर्शन नहीं हुए। बड़ी मुश्किल से प्राण बचे। प्राण पखेरू उड़ गये। लोग कह रहे हैं। पुलिस को देखते ही उसके होश उड़ गये।
(9) सामग्री तैयारी आदि एकवचन में ही प्रयुक्त होते हैं।
संज्ञाओं के तीन भेदों से प्राय: जातिवाचक संज्ञा बहुवचन में आती हैं। परन्तु व्यक्तिवाचक और भाववाचक संज्ञाओं का प्रयोग जब जातिवाचक संज्ञा के समान होता है तब वे बहुवचन में भी प्रयुक्त हो सकती हैं जैसे-भारत में विभीषणों की कमी नहीं। "उठती बुरी हैं भावनाएँ हाय मम हद्धाम में " यहाँ विभीषणों.तथा भावनाएँ जातिवाचक संज्ञा हैं। जब एक ही नाम के कई व्यक्तियों को सूचित.करना होता है, तब भी व्यक्तिवाचक संज्ञा बहुवचन में आती हैं, यद्यपि तब वे.जातिवाचक नहीं कहलातीं। जैसे-भारत में तीन राम हुए हैं "कहू रावण रावण जग केते।"
व्यक्तिवाचक और भाववाचक संज्ञा के समान द्रव्यवाचक संज्ञा का प्रयोग प्राय: एकवचन में ही होता है। जैसे-पानी प्रभु की अत्युत्तम देन है। द्रव्यवाचक संज्ञा को जातिवाचक से भिन्न मानने का मुख्य कारण भी यही है। परन्तु जब द्रव्यवाचक संज्ञा का भी जातिवाचक के समान प्रयोग हो तब उसका भी बहुवचन होगा जैसे-गंगा, वर्षा और कुएँ के जलों में बड़ा अन्तर है। यहाँ जलों (बहुवचन) जातिवाचक संज्ञा है। जल के भिन्न-भिन्न भेदों से अभिप्राय है।
धन्यवाद !
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