दूसरा अध्याय
संज्ञा (Noun)
संज्ञा या विकारी शब्द है जो किसी व्यक्ति, वस्तु स्थान या के नाम को बतेये ।
संज्ञा (Noun)
संज्ञा या विकारी शब्द है जो किसी व्यक्ति, वस्तु स्थान या के नाम को बतेये ।
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संज्ञा तीन प्रकार की होती है-
व्यक्तिवाचक (Proper Noun),
जाति - वाचक (Common Noun)
और भाव वाचक (Abstract Noun)
व्यक्तिवाचक संज्ञा वे हैं जिनसे एक ही व्यक्ति अथवा वस्तु का बोध हो। जैसे-दिल्ली सुरेन्द्र आदि। दिल्ली एक विशेष नगर का नाम है। इर एक रबर को दिल्ली नहीं करते। ऐसा ही सुरेन्द्र या यमुना पुरुष विशेष और नदी विशेष के नाम है। व्यक्तिवाचक संताएँ व्यक्तियों को पहचानने या पुकारने के लिए अपनी इच्छानुसार रखे हुए मात्र दो नाम बदल भी समाते। एक जगह का नाम रायसीना है । गवर्नमेंट यह निश्चय करती है ।इसे देहली पुकारा आये न किसी की वेप आपनि नही हो सकती । ये व्यक्तिवाचक नाम किसी स्वाभाविक गुण को नहीं प्रकट करते जिससे कि उनका बदलना कठिन हो। ऐसा भी प्राय: देखा जाता है कि व्यक्ति का रंग तो काला।
है वह कहलाता है-कर्पूरचंद। जातिवाचक संजा में पह रात नहीं
जातिवाचक संज्ञा- वे हैं जिनसे एक जाति के सब पदार्थों का समान रूप से बोध हो - जैसे-पुरुष सिंह .नगर, सभा, जल आदि। पुरुष से सभी पुरुषों- यादव, हरिश्चन्द्र आदि का बोध होता है, किसी व्यक्ति विशेष का नहीं। ऐसे की सिंह, नागर आदि भी एक जाति को व्यक्त करते है। ये नाम किती गुणों के आधार पर होते हैं। सभी व्यक्ति या वस्तु जिनमें ये गुण पाय जारी इसी नाम से पुकारी जायेंगी। ऐसे नामों का बदला जाना कठिन है। मेज का द्वार कहना कठिन है, दो शब्दों में अर्थ-भेद है। रायसीना और न्यू देहली में केवल नाम भेद या।।
कई वैयाकरण सभा (सभ्य लोगों का समूह), सेना (लड़ने वाले सिपाहियों का समूह) आदि शब्दों को जो सजातीय व्यक्तियों के समूह को प्रकट करते है. समूहवाचक संज्ञा (Collective Noun) कहते है। ऐसे ही उनके मतानुसार द्रव्य का बोध करने वाले शब्द द्रव्य वाचक संज्ञा (Material Noun) कहलाते है, जैसे-ग्राम, पानी, चाँदी आदि। अंग्रेजी व्याकरण का अनुकरण करने वाले इन चार भेदों का भाववाचक संज्ञा को मिलाकर संज्ञा के पाँच भेद मानते हैं। पर वास्तव में समूहवाचक संज्ञा तथा व्यय वाचक संज्ञा जातिवाचक संज्ञा ही हैं क्योंकि प्रत्येक फल-समूह को गुच्छा कहेंगे तथा शीतलता द्रवत्व आदि गुण वाले द्रव को जल कहेंगे चाहे वह गंगा का हो अथवा यमुना का या समुद्र का। अत: इसको जातिवाचक संज्ञाओं से पृथक् मानना ठीक नहीं ।
भाववाचक संज्ञा-वे हैं जिनमें पदार्थों के धर्म, गुण, दोष, अवस्था, व्यापार, भावना आदि जाने जाते हैं। जैसे
धर्म, गुण दोष-मराठी, सौंदर्य, कविता, नीचता। अवस्था-लड़कपन, यौवन दासता, स्वतन्त्रता। जयपुर--चोरी, पढ़ाई, दौड़। भावना-हर्ष, शोक, भय, क्रोध। कोई-कोई संज्ञा के दो ही मुख्य भेद करते हैं 1. पदार्थवाचक संज्ञा, 2.
भाववाचक संज्ञा। संज्ञा नाम हैं। नाम पदार्थ का होगा या गुण का। जो पदार्थ का नाम हो वह पदार्थवाचक संज्ञा और जो गुण का नाम हो गुणवाचक या भाववाचक संज्ञा होगी। व्यक्तिवाचक, जातिवाचक, समूहवाचक तथा द्रव्यवाचक संज्ञा पदार्थवाचक संज्ञा के अन्तर्गत हैं। नीचे की तालिका से ये सब भेद स्पष्ट हो जायेंगे --
संज्ञा
|ーーーーーーー⊥一一一一一一一|
पदार्थवाचक भाववाचक
|一一一一一一 ⏊ーーーーーーー|
जातिवाचक व्यक्तिवाचक
|一一ー一ー⏊ー一一一一 ー|
सामान्यवाचक द्रव्यवाचक समूहवाचक
कभी-कभी व्यक्तिवाचक नाम किसी विशेष गुण को प्रकट करते है, तब वे जातिवाचक संज्ञा कहलाते हैं, जैसे-'ऐ भारतवासियों, तुम हरिश्चन्द्र बनो, तभी भारत में सतयुग होगा' इस वाक्य में 'हरिश्चंद्र और 'सतयुग' जातिवाचक संज्ञाएँ हैं. क्योंकि हरिश्चन्द्र' से तात्पर्य है 'सत्य पर दृढ़ रहने वाला' और 'सतयुग' का अर्थ 'अच्छा समय'। इसी प्रकार 'कोई समय था कि भारत में घर-घर में सीता।और अनुसया थीं, आज जहाँ देखो कैकेयी और मंथरा दिखाई देती हैं, इस वाक्यमें सीता और अनुसूया शब्द उनका सा गुण (पति-भक्ति) रखने वाली तथा कैकेयी और मंथरा शब्द का सा अवगुण (ईर्ष्या) रखने के लिए प्रयुक्त हुए हैं, अत: ये जातिवाचक है। कई लेखक 'भारत में तीन प्रसिद्ध राम हुए हैं', वाक्य में राम पद को जातिवाचक मानते हैं यह जातिवाचक नहीं है, क्योंकि यह नाम किसी गुण को प्रकट नहीं करता। वह नाम बदले भी जा सकते हैं। व्यक्तिवाचक संज्ञा तभी जातिवाचक मानी जा सकती है, जब वह विशेष गुण को प्रदर्शित करे, जैसा कि ऊपर दिखाया गया है।
जातिवाचक संज्ञायें भी कभी-कभी व्यक्ति विशेष के लिए प्रयु होने से व्यक्तिवाचक होती है, जैसे-'गांधी जी कल यहाँ पधारेंगे', 'संवत् कौन सा है?' 'गोसाई जी की रामायण पढकर आनन्द आता है', 'तिलक महाराज का गीता भाष्य सर्वोत्तम है'.इन वाक्यों में गांधीजी (मोहनदास करमचन्द गांधी), संवत् (विक्रम संवत्), गुसाईजी (तुलसीदास), तिलक (बाल गंगाधर तिलक) व्यक्तिवाचक संज्ञा हैं, क्योंकि मे इन वाक्यों में व्यक्ति विशेष को सूचित कर रही हैं। भाववाचक संज्ञाएँ भी कभी-कभी जातिवाचक संज्ञाओं के समान प्रयुक्त होतो हैं । जैसे-हाथी और घोड़े की चालों में बड़ा अन्तर है।'चाल' शब्द साधारणतया भाववाचक है, पर ऊपर के वाक्य में जातिवाचक के रूप में प्रयुक्त हुआ है।
कई संज्ञा जातिवाचक और भाववाचक दोनों रूप में प्रयुक्त होती है। भाववाचक और जातिवाचक संज्ञा में भेद स्पष्ट करने के लिए नीचे कुछ उदाहरण दिये जाते हैं
लेख- मेरा लेख (Article), (लिखी हुई चीज) आज ' अर्जुन' में छपा है। (जातिवाचक)
अपने लेख को सुन्दर बनाओ। (भाववाचक)
सफेदी- सफेदी (चूना) महंगी है। (जातिवाचक)
इसमें दूध को सी सफेदी है। (भाववाचक)
भाववाचक संज्ञा चार प्रकार के शब्दों से बनती है
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(क) जातिवाचक संज्ञा से-
सड़क से लड़कपन, पंडित से पंडिताई, मित्र से मित्रता आदि।
(ख) सर्वनाम से-अहं से अहंकार, अपना से अपनापन।
(ग) विशेषण से-चतुर से चतुराई, मोटा से मिठाई।
(घ) क्रिया से-चढ़ना से चढ़ाई, सजाना से सजावट, घबराए से घबराहट मारना से मार, चुनना से चुनाव आदि।
कभी-कभी अन्य शब्द भी संज्ञा के समान प्रयुक्त होते हैं।
जैसे-
(विशेषण) गुणों का आदर करो। बड़ों का कहना मानो।
(क्रिया विशेषण) वहाँ का जलवायु अच्छा है। उसका बाहर-भीतर एक-सा है।
(विस्मयादिबोधक अव्यय) हाय-हाय क्यों मचा रखी है?
इन वाक्यों में 'गुणियों' आदि शब्द संज्ञा के रूप में प्रयुक्त हुए हैं।
धन्यवाद !
आपने बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है धन्यवाद - Hindi Grammar
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