पंचवटी में प्रदर्शित लक्ष्मण की मनोदशा
आदर्श भाई
लक्ष्मण श्री रामचंद्र जी का छोटा भाई है उसका श्री राम के प्रति असीम प्यार है। उसमें आदर्श भाई के सभी लक्षण कूट-कूटकर भरे हुए है। 'पंचवटी' काव्य के पूर्वाभास ही में लक्ष्मण की मनोदशा का सुन्दर चित्रण श्री मैथिलीशरण गुप्त जी ने किया है।
सच्चा सेवक :
जब श्री राम सीता जी के साथ वनवास के लिए निकले तब लक्ष्मण भी साथ हो लिए, सीता के पूछने पर लक्ष्मण ने कहा "तुम मेरे सर्वस्व जहाँ आर्य चरण सेवा में समझो मुझको भी अपना भागी।
पंचवटी में लक्ष्मण की मनोदशा :
पंचवटी में राम-सीता पर्णकुटीर बनाकर रहते हैं। लक्ष्मण राम-सीता की सेवारत है। रात का समय है, लक्ष्मण के दिल में नाना प्रकार के विचार तरंगायित हो रहे हैं।
भरत का सम्मान :
लक्ष्मण यह विचार मग्न है कि सारा समाज राजत्व को बड़ा मानता है। परन्तु लक्ष्मण ने उसे तुच्छ समझा । वह कितना बड़ा भाग्यशाली है।
जैसे :
हुए भारत भी सब त्यागी
पर सौ सम्राटों से भी
हैं सचमुच वे बड भागी।
पूर्वजों की प्रशंसा :
लक्ष्मण विचार मग्न है कि हमारे पूर्वजों ने यह बताया है कि सच्चा सुख त्याग में ही है भोग में नहीं। इसपर लक्ष्मण पूर्वजों की नीति की तारीफ करते हैं।
जैसे :
होता यदि राजत्व मात्र ही
लक्ष्य हमारे जीवन का
तो क्यों अपने पूर्वज उसको
छोड माँग लेते वन का
मानव-मात्र का सम्मान :
लक्ष्मण का विचार है कि हमने चाहे शहर (राजमहल) का राज्य त्याग दिया है। परन्तु यहाँ वन में तो राम-राज्य ही चल रहा है। वन के पशु-पक्षी व वन के निवासी सब राम राज्य में खुश है। सब लोग हमारा स्वागत-सम्मान करते हैं। इसलिए हर मानव और पशु-पक्षी भी स्तुत्य हैं ही।
जैसे -
मैं मनुष्यता को सुरत्व की
जननी भी कह सकता हूँ
किन्तु पतित को पशु कहना भी
कभी नहीं सह सकता हूँ।
इसलिए लक्ष्मण का मानना है कि हर मानव जन्म से श्रेष्ठ न होता, बल्कि अपने सत्कर्म से ही पवित्र होता है।
अनुपम वरदान :
लक्ष्मण का विचार है यह वन जीवन कितना सुख-प्रद है। यहाँ मुनियों के आश्रम में हमें अनुपम ज्ञान मिलते हैं
जैसे :
मुनियों का सत्संग यहाँ है
जिन्हें हुआ है तत्व-ज्ञान
सुनने को मिलते है उनसे
नित्य नये अनुपम आरव्यान
समरसता पूर्ण वन राज्य :
लक्ष्मण का विचार है कि श्री राम का वन राज्य समरसता पूर्ण है, यहाँ कोई किसी को नहीं सताता ।
जैसे -
अहा! आर्य के विपिन राज्य में
सुख पूर्वक सब जीते हैं
सिंह ऊपर मृग एक घाट पर
आकर पानी पीते हैं।
संतुष्ट जीवन
लक्ष्मण का विचार है कि सन्तुष्ट जीवन ही सुखी जीवन है। हम जहाँ भी रहे सन्तुष्ट रहे और खुश रहें। मन ही सुख-दुख की कसौटी है।
जैसे-
मनः प्रसाद चाहिए केवल
क्या कुटीरफिर क्या प्रासाद?
महात्मा गोस्वामी तुलसीदास भी इसी बात की पुष्टि करते हैं।
जैसे :
गो-धन, गज धन, बाजी धन और रत्न धन खान।
जब आवत सन्तोष-धन, सब धन धूरि समान ।।
तमिल के महान कवि "श्री कण्णदासन भी इस तथ्य का समर्थन करते हैं।
जैसे :
மச்சிலே இருந்தாத்தான் மவுசுண்ணு எண்ணாதே
குச்சுலே குடியிருந்த குறைச்சலுண்ணு கொள்ளாதே
மச்சு குச்சு எல்லாமே மனசுலே தானிருக்கு
மனசு நிறைஞ்சிருந்தா மத்ததும் நிறைஞ்சிருக்கும்
- கவிஞர் கண்ணதாசன்
स्वावलंबन की महिमा:
लक्ष्मण का विचार है कि वन में हम लोग अपना कार्य स्वयं संभाल हैं। भाभी सीताजी भी स्वयं खेतों को पानी देती है। सारा काम स्वयं लेते कर लेती है। इस में कितना सुख है? कितना सन्तोष है,
जैसे :
अपने पौधों में जब भाभी
भर-भर पानी देती है
खुरपी लेकर आप निराती
जब वे अपनी खेती हैं
स्वावलंबन की एक झलक पर
न्योछावर कुबेर का कोश।।
पवित-पावन :
लक्ष्मण का विचार है: जिन्हें हम पतित, नीच-जन कहते हैं, वास्तव में वे ही महान होते हैं। उनका दिल निःछल है, निर्मल है वे भोले-भाले कपट रहित है, उनके उद्धार की आवश्यकता है।
जैसे :
गुह निषाद शबरी तक का मान
रखते हैं प्रभु कानन में
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इन्हें समाज नीच कहता है
पर हैं ये भी हैं प्राणी।
बाधाएँ ही साहस है:
लक्ष्मण का विचार है कि बाधाओं के अन्दर ही साहस निहित है। इन्हीं बाधाओं की वजह से हमें शक्ति, साहस आदि मिलते हैं ।
जैसे :
यदि बाधाएँ हुई तो हमें
उन बाधाओं ही के साथ
सहन-शक्ति भी आयी हाथ।
परिवार की चिन्ता :
लक्ष्मण का विचार है कि राजमहल में माताएँ ऊर्मिला-आदि चिन्तित रहेगी कि राम-सीता-लक्ष्मण तीनों वन में दुख भोगते होंगे उन्हें यहाँ लाकर दिखाना है कि हम यहाँ कितना सुख भोग रहे हैं।
जैसे -
बेचारी ऊर्मिला हमारे
लिए स्वयं रोती होगी।
क्या जाने वह, हम सब वन में
होंगे इतने सुख-भोगी।
निष्कर्ष:
लक्ष्मण के विचार, मानोदश आदि ने उन्हें उच्च आदर्श की चोटी पर लाकर खड़ा कर दिया है।
इस प्रकार जगत को एक आदर्श विभूति के प्रदर्शन करने में श्री मैथिलीशरण गुप्त जी का बड़ा हाथ रहा है।
धन्य है श्री मैथिलीशरण गुप्त जी।
धन्यवाद!!!!!
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