Saturday, August 8, 2020

रश्मिरथी

 रश्मिरथी

चरित्र-चित्रण:

       "रश्मिरथी' काव्य चरित्र चित्रण की दृष्टि से अत्यन्त उन्नत तथा उच्च कोटि का है। इसमें कवि ने कुन्ती तथा कर्ण के चरित्र को चित्रित करने में पर्याप्त सफलता प्राप्त की है। कवि ने कर्ण को आदर्श मित्र, अनन्य गुरुभक्त, परम धार्मिक, तेजस्वी, कुशल धनुर्धर, सत्यवादी, वीरव्रती यती, निश्छल, निष्कपट, पवित्र कर्मा, पतितों का उद्धारक, नदियों का संरक्षक, दयाशील, दानशील, परम-त्यागी आदि अनेक गुणों से विभूषित करके अंकित किया है।



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            कवि ने महाभारत की कुन्ती को "रश्मिरथी" में अधिक सदय, वात्सल्यमयी तथा उदार हृदया अंकित किया है। वह ममता तथा वात्सल्य की करुणा मूर्ति है और नारी की विवश्ता तथा परवशता की साकार प्रतिमा जान पडती है। कुन्ती का बराबर यह प्रयत्न रहता है कि कैसे भी भाई-भाई में युद्ध न हो और इसके लिए वह अपमान, अनादर तथा तिरस्कार को सहने के लिए सन्नद्ध हो जाती है।

            इस काव्य में कवि ने श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर, अर्जुन तथा परशुराम से भी अधिक उज्जवल तथा श्रेष्ठ चरित्र कर्ण का अंकित किया है। उसे कवि ने अत्यधिक गरिमा तथा महिमा प्रदान की है ओर दुर्योधन जैसे दुश्चरित्र व्यक्ति को भी कर्ण के संपर्क के कारण सुयोधन के रूप में अर्थात् सच्चे स्नेही मित्र के रूप में अंकित किया है। 

रस :

        "रश्मिरथी' काव्य वीर-रस से पूर्ण है। इसमें कर्ण और अर्जुन के युद्ध-वर्णन में वीर-रस की सुन्दर तथा सजीव व्यंजना हुई है। 

प्रकृति चित्रण :

          कवि दिनकर का प्रकृति-चित्रण भी बडा ही मनोहर है किन्तु कवि यहाँ की प्रकृति की सुरम्य कवि में अधिक नहीं रमा है। उसका ध्यान मुख्यतया कर्ण के चरित्र-चित्रण तक ही सीमित रहा है। अतः यह एक चरित्र-काव्य है।

भाषा:

          दिनकर जी की भाषा ओजमयी है और उसमें सफलता, सुबोधता तथा प्रांजलता पर्याप्त मात्रा में विद्यमान है। मुहावरों तथा लोकोक्तियों के प्रयोग ने भाषा को और भी प्रभावोत्पादक बना दिया है। सर्वत्र ओज के साथ-साथ प्रसाद गुण भी विद्यमान है। 

अलंकार:

        इस काव्य में अलंकार-योजना भी पुष्ट, प्रौढ तथा भावानुकूल है। 

महाकाव्य या खण्डकाव्य :

            "रश्मिरथी' महाकाव्य की सी विस्तृत तथा रसात्मक परिधि प्राप्त करके भी इसमें महाकाव्य उचित गरिमा तथा गुरुत्व की सृष्टि में सफल नहीं हुआ है। इसमें महाकाव्य के शास्त्रीय लक्षण तो मिल जाते हैं, परन्तु यहाँ कवि न तो जीवन की विविधता के गरिमामय चित्र अंकित कर सका है, न इसकी कथावस्तु को व्यापक बनाकर महाकाव्योचित गंभीरता का सृजन कर सका है और न ही वर्णन कौशल तथा घटना-वैचित्र्य द्वारा वह महाकाव्य की-सी गंभीरता उत्पन्न करने में सफल हुआ है।

            इतना अवश्य है कि इसमें कवि ने युग-युग से प्रताडित तथा पद-दलित कर्ण के चरित्र को उन्नत करके नूतन मानवता की प्रतिष्ठा में भी अत्यधिक सहयोग प्रदान किया है। इसलिए चरित्र काव्यों में "रश्मिरथी' एक सफल तथा उत्कृष्ट काव्य-कृति है। निश्चय ही "रश्मिरथी' एक उच्चकोटि का खंड काव्य है।

धन्यवाद!!!






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