अकबरी लोटा
'अकबरी लोटा' श्री अन्नपूर्णानंद की हास्य कहानी है।
लाला झाऊलाल:
लाला झाऊलाल काशी के थे उनके मकान के नीचे दूकाने थीं, जिसके किराये से, आराम से उनका गुजारा हो जाता था।
पत्नी की मांग:
एक दिन उनकी पत्नी ने ढाई सौ रुपये की माँग की। लालाजी के पास इतने पैसे नहीं थे । पत्नी ने कहा-अगर आप दे नहीं सकते तो मैं अपने भाई से ले लेती हूँ। लालाजी के लिए यह प्रतिष्ठा की बात थी। उन्होंने सात दिन में पैसे देने का वादा किया।
लालाजी का चित्र:
पं. बिलवासी मिश्र लालाजी के मित्र थे। जब लालाजी से पैसों का कोई प्रबन्ध न हो पाया तो उन्होंने अपने मित्र से मदद माँगी।
बेढंगा लोटा:
पैसों की चिंता में लालाजी पानी से भरे अपने बेढंगे लोटे को तिमंजले से गिरा देते हैं। जिससे एक अंग्रेज के पैर के अंगूठे पर चोट लगती है। जब अंग्रेज नाराज होकर चिल्लाने लगता है, तब बिलवासी सारे मामले को संभालते हैं।
बिलवासी की समझदारी :
अंग्रेज को पुरानी और ऐतिहासिक चीजों का शौक था। बिलवासी अंग्रेज को यह कहकर उल्लू बनाते हैं कि बादशाह हुमायूँ ने इस लोटे से पानी पीकर अपनी प्यास बुझायी थी। इसलिए अकबर ने दस सोने के लोटे देकर इस बेढंगे लोटे को खरीदा था, तब से इसका नाम 'अकबरी लोटा हो गया।
बिलवासी की बातों में आकर अंग्रेज पाँच रुपये देकर उस बेढंगे लोटे को खरीद लेता है।
इस तरह बिलवासी ने अपनी समझदारी से अपने मित्र की प्रतिष्ठा को बचा लिया और एक सच्चे मित्र होने का फर्ज भी निभाया। जिसके पास बिलवासी जैसे समझदार मित्र हो, तो संकट कैसा?
धन्यवाद!!!
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