Saturday, January 23, 2021

आठवाँ अध्याय / क्रिया विशेषण (Adverb)

                    

                                                   आठवाँ अध्याय

                                        क्रिया विशेषण (Adverb)




          अब तक शब्दों के जिन भेदों का वर्णन हुआ है, वे विकारी हैं। उनके रूप, लिंग, वचन, पुरुष और करण बदलते रहते हैं। आगे जिन शब्द-भेदों का वर्णन होगा वे अविकारी या अव्यय कहलाते हैं। अर्थात् इन शब्दों का सब लिगों, सब विभक्तियों और सब वचनों में एक ही रूप रहता है। इनमें पहला क्रिया-विशेषण है। जिस अव्यय से क्रिया की कोई विशेषता जानी जाये उसे विशेषण कहते हैं। जैसे 'जल्दी चलो' अभी आओ', 'अभी' भली-भाँति पहुँच गया', 'थोड़ा खाया'। इन वाक्यों में 'जल्दी', 'अभी', 'भली-भाँति', 'थोड़ा', ये चारों शब्द अपने साथ की क्रिया की विशेषता प्रकट करते हैं, अत: ये क्रिया विशेषण हैं।



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          क्रिया-विशेषणों की विशेषता प्रकट करने वाले शब्द भी क्रिया-विशेषण कहलाते हैं, क्योंकि क्रिया-विशेषण की विशेषता प्रकट करते हुए परम्परा सम्बन्ध से वे क्रिया ही की विशेषता प्रकट करते हैं। जैसे-'बहुत थोड़ा खाओ में 'बहुत' और 'थोड़ा' दोनों क्रिया-विशेषण हैं।

          प्रयोग की दृष्टि से क्रिया-विशेषण के तीन भेद माने जाते हैं-साधारण, संयोजक और अनुबद्ध।

          जिन क्रिया विशेषणों का प्रयोग किसी वाक्य में स्वतन्त्र रूप में होता है उन्हें साधारण क्रिया-विशेषण कहते हैं। जैसे-यह काम जल्दी करो। थोड़ा खाओ खूब नाचो।

         जिनका सम्बन्ध किसी खंडवाक्य से या उपवाक्य से होता है उन्हें संयोजक क्रिया विशेषण कहते हैं। जहाँ तक दृष्टि जाती है वहाँ तक रेगिस्तान है।

         जब भीमसेन स्वयं नहीं आया तब मैं ही जाकर क्या करूँगा इस रूप में ये योजना अव्यय का भी काम देते हैं।

         जिनका प्रयोग अवधारण (निश्चय के) अर्थ में संज्ञा, सर्वनाम विशेषण, क्रिया-विशेषण आदि किसी भी शब्द-भेद के साथ हो सकता है वे अनुबद्ध क्रिया-विशेषण कहलाते हैं। जैसे-देख तो लो। चावल ही खाओगे क्या?

         इन क्रिया विशेषणों का वाक्य में स्थानान्तरण हो जाने से वाक्य का अर्थ सर्वथा बदल जाता है। जैसे-वह यहाँ ही रहेगा। (उस स्थान पर ही रहेगा, और कहीं नहीं जायेगा), वह ही वहाँ रहेगा (वह व्यक्ति ही वहाँ रहेगा और कोई नहीं।)

        अर्थ को लक्ष्य में रखकर क्रिया-विशेषण के चार भेद किये जा सकते हैं- -कालवाचक, स्थानवाचक, परिणामवाचक और रीतिवाचक।

        (क) कालवाचक-जिस क्रिया-विशेषण से समय अवधि तथा किसी क्रिया के बार-बार होने का ज्ञान हो उसे कालवाचक क्रिया विशेषण कहते हैं। जैसे-आज, कल, परसों, पहले, पीछे, प्रथम, निदान, आजकल, नित्य, सदा, सतत, निरन्तर, अब, तब, जब, कब, अभी, कभी, तभी, फिर, अब, तक, कभी-कभी, अब भी, दिन भर, अन्त में, कब का, बार बार घड़ी-घड़ी, बहुधा, प्रतिदिन आदि

         (ख) स्थानवाचक-जो विशेषण क्रिया के स्थान और दिशा आदि | का बोध कराये वह स्थानवाचक क्रिया-विशेषण कहलाता है।

   जैसे-यहाँ, वहाँ, कहाँ, जहाँ, आगे, पीछे, ऊपर, दायें, बायें, बाहर, भीतर, सर्वत्र, साथ, पास, दूर, सामने, इधर, उधर, जिधर किधर, चारों ओर, आर-पार आदि।

        (ग) परिमाणवाचक क्रिया का परिमाण बताने वाले शब्द परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण कहलाते हैं-जैसे-बहुत, अति, थोड़ा, अत्यन्त, बड़ा, कम, भारी, हल्का, खूब, कुछ, किंचित जरा, बिलकुल, बस, काफी, सर्वथा, इतना, उतना, थोड़ा, पर्याप्त आदि।

        (घ) रीतिवाचक-जो शब्द क्रिया करने की रीति बताते हैं; | रीतिवाचक क्रिया-विशेषण कहलाते हैं। गुणवाचक विशेषणों के समान इनका संख्या बहुत बड़ी है। जिनका समावेश दूसरे वर्गों में नहीं हो सकता उनका इसी  में समावेश होता है। रीतिवाचक क्रिया-विशेषण प्राय: नीचे लिखे अर्थो में आते हैं-

          प्रकार-धीरे धीरे, वैसे, कैसे, जैसे, तैसे, मानो, यथा, तथा, वृथा, अचानक, अनायास, एकाएक, सहसा, सुखपूर्वक, शान्ति से, हँसता हुआ, मन से, धड़ाधड़, झटपट, आप ही आप, शीघ्रता से, ध्यानपूर्वक ।

          निश्चय-अवश्य, ठीक, सचमुच, अलबत्ता, वास्तव में, बेशक। 

         अनिश्चय-कदाचित, शायद, संभव है, बहुत करके।

          स्वीकृत–हाँ, जी, ठीक, सच।

          हेतु-इसलिए, अतएव, क्यों, किसलिए, काहे को।

          निषेध-नहीं, मत, न।

         अवधारण-तो, ही, मात्र, भर , तक।


                                            क्रिया-विशेषण की बनावट

              बनावट की दृष्टि से क्रिया-विशेषण तीन प्रकार के होते हैं-

             1. मूल, 2. यौगिक या संयुक्त और 3, स्थानीय।


      जो क्रिया-विशेषण किसी दूसरे शब्द से नहीं बनते वे मूल क्रिया विशेषण कहलाते हैं।

           दूर, अचानक, फिर नहीं, आदि क्रिया-विशेषण मूल क्रिया-विशेषण हैं। ये किसी दूसरे शब्द में प्रत्यय लगाने से नहीं बनते हैं।

    जो क्रिया-विशेषण दूसरे शब्दों में प्रत्यय या शब्द जोड़ने से बनते हैं, वे यौगिक क्रिया-विशेषण कहलाते हैं। ये आगे लिखें शब्द-भेदों से बनते हैं-

         संज्ञा से-सबेरे, मन से, क्रमश: रात को, प्रेमपूर्वक, क्षणमात्र, प्रेमवश नियमानुसार, दिन भर, महीने तक आदि।

         सर्वनाम से-यहाँ, वहाँ, अब, कब, तब, जब, इधर, उधर, जिधर, किधर, इतना, उतना, जितना, अभी, ज्यों-त्यों आदि।

         विशेषण से-धीरे, चुपके, पहले, ऐसे, बहुधा आदि।

         क्रिया से-आते-जाते, करते हुए, बैठे हुए चाहे, सर्दी के मारे इत्यादि 

        अव्ययों के मेल-यहाँ तक, झट से, ऊपर को आदि।

         शब्दों की द्विरुक्ति से-दिन-दिन, हाथोंहाथ, साफ साफ, एकाएक, धीरे- धीरे, जहाँ-तहाँ आदि।        

        अवधारण अर्थ में 'हों ' या 'ई' के योग से--यहाँ- यहीं, वैसे-वैसे ही, अब-अभी आदि।

        भिन्न-भिन्न शब्दों के मेल से-देश-विदेश, रात-दिन, जब तब, कल परसों, जब-कभी, हर-घड़ी, एक साथ आदि। 

       अनुकरणवाचक शब्दों की द्विरुक्ति से सरासर, धड़ाधड़, तड़ातड़, कड़कड़ आदि।

        यौगिक क्रिया-विशेषण दूसरे शब्दों से नीचे लिखे शब्द अथवा प्रत्यय जोड़ने से बनते हैं।

                                                      संस्कृत के --

         पूर्वक-प्रेमपूर्वक

         वश-संयोगवश

         अनुसार-समयानुसार

         त:-वस्तुतः, स्वभावतः

         मात्र-क्षणमात्र

         वत्-पूर्ववत्

        दा-यदा, कदा,

        धा-बहुधा, शतधा

        :-कोटिशः, अक्षरश:

        था-अन्यधा, सर्वधा

        त्र-सर्वत्र, अन्यत्र

                                                        हिन्दी के --

          तक-अन्त तक

          में-अन्त में, संक्षेप में

         को-दिन को, रात को

         यों-क्यों, त्यों, ज्यों, यों

         , ए-दौड़ा, बैठा, उठाये, खड़े

         ता, ते-दौड़ता, खाता, चलते, जाते.

         भर-पल भर, घड़ी भर

         लिए-किसलिए, इसलिए

             

                                                      उर्दू के

         अन-फौरन, जबरन, मसलन।

        संस्कृत, हिन्दी और उर्दू के कई अव्ययीभाव समास क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त होते हैं।-

        संस्कृत-प्रतिदिन, प्रत्यक्ष, यथाशक्ति, यथासंभव, निस्सन्देह, आजन्म, समक्ष, संदेह, अकारण।

         हिन्दी-अनजाने, निधड़क।

         उर्दू-हररोज, बेकार, बाकायदा, बेफायदा।

    संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण आदि दूसरे शब्द- भेद जब बिना किसी विकार के क्रिया-विशेषण के रूप में प्रयुक्त होते हैं तो स्थानीय क्रिया विशेषण कहलाते हैं।

        (संज्ञा) वह अपना सिर पढ़ेगा? वह इस प्रकार का उत्तर खाक बताएगा?

        (सर्वनाम) क्या हुआ? मैंने तब यह किया।

        (विशेषण) लड़की अच्छा पकाती है। लोग सोये पड़े थे।

        (पूर्वकालिक क्रिया) दौड़ कर चलो।

        कुछ क्रिया-विशेषणों के साथ को, से, के, की और पर विभक्तियाँ भी लगती हैं। किधर को मुंह मोड़ा। 'सबको...टेरत.......दीन है'। आगे को ऐसा मत करना। कहाँ से आ रहे हैं? यहाँ से कब चलोगे? कब से आपकी बाट देख रहा हूँ। यहाँ का जलवायु अच्छा है। कहाँ की बात करता है? वहाँ बड़ी भीड़ है।

                                          मत, न, नहीं का प्रयोग

         'मत' का प्रयोग विधि (प्रवर्तना-आज्ञा, प्रार्थना, अनुमति आदि) के अर्थ में ही होता है। 

         जैसे-वहाँ मत जाओ, ऐसा मत करो।

          '' का प्रयोग निषेधमात्र में होता है। जैसे-मैं वहाँ न जाऊँगा। इसके अतिरिक्त 'न' का प्रयोग निश्चय के अर्थ में प्रश्नार्थक भी होता है।  जैसे-तुम तो वहाँ जाओगे न? कभी-कभी प्रवर्तना में भी इसका प्रयोग होता है, जैसे-जरा देर बैठिए न। तुम भी चलो न।

          दो क्रिया-विशेषणों के मध्य में 'न' जोड़ने से अनिश्चय का बोध होता हैं, 

         जैसे-कहीं न कहीं, कुछ न कुछ।

         निषेध में निश्चय प्रकट करने के लिए और सामान्य तथा सातत्यबोध के वर्तमान एवं आसन्न भूत से साथ और किसी प्रश्न के उत्तर में नहीं का प्रयोग होता है। जैसे-वह खाना नहीं खाता। उसने खाना नहीं खाया। तुम वहाँ जाओगे? नहीं, मैं नहीं जाऊँगा।


धन्यवाद! 

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