प्रमुख वाद
छायावाद/रहस्यवाद/हालावाद/प्रगतिवाद/प्रयोगवाद किसे कहते हैं? लक्षण बताइये:
छायावाद:
युग की उद्बुद्ध चेतना ने बाह्य अभिव्यक्ति से निराश होकर जो आत्मबद्ध अन्तर्मुखी साधना आरम्भ की वही काव्य में छायावाद कहा जाता है। कवि प्रकृति के साथ अपनापन जोड लेता है और अपनी मानसिक दशा का सहभागी बना लेता है अपनी अनुभुतियों की छाया जब वह बाह्य जगत में देखने लगता है, तब छायावादी कविता का जन्म होता है। छायावाद की प्रथमविशेषता है प्रेम-अनुभूति या श्रृंगारिकता। छायावाद में प्रकृति-रूप विश्वसुन्दरी का विशेष महत्व आंका गया है। कवियों ने प्रकृति के साथ अपनी आत्मा के तादात्म्य का अनुभव किया है। प्रसाद, पंत, निराला, महादेवी वर्मा ये छायावाद के चार प्रमुख स्तंभ कहे जाते हैं।
रहस्यवाद:
आत्मा और परमात्मा के संबंध में रचित काव्य को रहस्यवाद कहते हैं। समस्त संसार का संचालन करनेवाले सत्ता को ब्रह्म या परमात्मा भी कहा जा सकता है। इस अदृश्य सत्ता को खोजने और उससे मिलने के लिए साधक बेचैन हो उठे। पर इस दशा में विरह की व्याकुलता का वर्णन अनेक साधकों ने बडे मर्म स्पर्शी शब्दों में किया है। रहस्यवादी कवियों में जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
ASUS Gaming Monitor Starting Rs 17999/-
हालावाद:
छायावादी युग के अन्तिम चरण में हिन्दी साहित्य में एक ऐसी मादक भावना की हिलोर थी जिसने कुछ समय के लिए सम्पूर्ण हिन्दी जगत को मन्त्रमुग्ध सा कर लिया था। यह हिलोर "हालावाद" के नाम से प्रसिद्ध हुई। हरिवंशराय बच्चन इसके प्रवर्तक और कवि माने जाते हैं। हालावाद से प्रभावित होकर अनेक नवयुवक कवि इस ओर झुके और ऐसे ही मादक साहित्य का निर्माण करने लगे। हालावाद के कवियों में हरिवंशराय बच्चन पद्मकांत मालवीय, हृदयनारायण पांडेय, हृदयेश, "नवीन" आदि इसके समर्थक कवि थे। हालावाद तूफान की तरह आया और 1933 से लेकर 1936 तक केवल चार वर्ष जीवित रह उसी गति से विलीन हो गया।
प्रगतिवाद:
प्रगतिवादी साहित्य वह साहित्य है जो साम्यवादी भावनाओं से प्रेरित होकर लिखा गया है प्रगतिवादी साहित्य साम्यवादी भावनाओं से अनुप्राणित रहता है। प्रगतिवादी को प्राचीन संस्कृति का विरोधी कहा जाता है प्रगतिवाद ने साहित्य की दिशा ही मोड दी है। सूक्ष्म के प्रति स्थूल की प्रतिक्रिया ने प्रगतिवाद को जन्म दिया। प्रगतिवादी कवियों की दृष्टि मानव के बाहरी जीवन पर गयी। उनकी आस्ता मानव के सामूहिक जीवन में है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर प्रगतिवाद के सर्वप्रमुख कवि माने जाते हैं। प्रगतिवादी काव्य धारा का सूत्रपात करनेवाले कविद्वय पंत और निराला हैं। उदा:- निराला - वह तोडती पत्थर, बच्चन - बंगाल का काल और पंत - ग्राम्या।
प्रयोगवाद:
व्यापक सामाजिक सत्यों की अनुभूति और अभिव्यक्ति जिन कविताओं में हैं उन्हें प्रयोगवादी कविता कहते हैं। प्रयोगवादी कविता में भावना है और बुद्धि-प्रधान हैं। प्रयोग का व्यापक अर्थ बड़ा उपयोगी है। प्रयोगवाद उन कविताओं के लिए रूढ हो गया है जो कुछ नये बोधों, संवेदनाओं तथा उन्हें प्रेषित करनेवाले शिल्पगत चमत्कारों को लेकर शुरू-शुरू में "तार सप्तक" के माध्यम से सन् 1943 में प्रकाशन जगत में आयीं। प्रयोगवादी कविता मध्यवर्गीय समाज के जीवन का चित्र है। इस वाद के प्रमुख प्रवर्तक "अज्ञेय", गजानन मुक्तिबोध, नेमिचन्द, भारत भूषण, प्रभाकर माचवे, गिरिजाकुमार माथुर, डॉ. रामविलास शर्मा, नरेश मेहता, धर्मवीर भारती, भवानी प्रसाद, नर्मता प्रसाद खरे आदि।
***********************
No comments:
Post a Comment
thaks for visiting my website