Tuesday, January 26, 2021

अनुवाद सिद्धांत -2 /अनुवाद की इकाई के रूप में अक्षर, शव्य और बाक्यः-

      

                                               अनुवाद सिद्धांत

                  अनुवाद की इकाई के रूप में अक्षर, शव्य और बाक्यः-

    (1. अनुवाद प्रक्रिया में 'अक्षर के महत्व पर चर्चा कीजिए।)

                    अक्षर:- अनुवाद की प्रारंभिक इकाई अक्षर है जैसा कि 'अक्षर' प्राब्द से प्रतीत होता है, इसे पूरी तरह अखण्डनीय और अविभाज्य इकाई के रूप में स्वीकृत किया गया है। संस्कृत और तमिल जैसी भाषाओं में अक्षरों के भी अर्थ होते हैं और कभी-कभी अनेक अर्थ भी होते हैं। उदाहरण के लिए हम "ख" शब्द को ले सकते हैं जिसका तात्पर्य है आकाश जैसे कि हमें ख गच्छति इति खग" से मालूम पडता है। तमिल भाषा में "अ" अक्षर का अर्थ "ईश्वर", "रूप", "कुरुप", "विस्तार", "अणु", "विराट" आदि हैं। तिरुवल्लुवर ने अपने तिरुक्करल के आरंभ में लिखा था "अगर मुवल एलुतेल्लाम आदि भगवन मुदटे उतलगु"

            अर्थात् "अ"कार से श्रृष्टि ईश्वरीयता के प्रारंभ होती है। अब में "अलीफ़'', यूनानी में "आल्फा आदि अक्षर भी इसी तरह ईश्वर के द्योतक के रूप में हमारे सामने आते हैं। अंग्रेजी के प्रसिद्ध उपन्यासकार "इविंग वैलस" ने अपने "दि वर्ड' शीर्षक कृति में लिखा है कि बाइबल के प्रारंभिक उक्ति अक्षर के संबंध में है। (In the beginning there was the word) श्रृष्टि के प्रारंभ में "अ" या "मुखवितर" को खोलने मे उत्पन्न ध्वनि थी, जिससे वृष्टि विकसित हुई थी। इसी बात को संस्कृत में "नाद रूपा सृष्टि से बिन्दु रूपा सृष्टि" का विकसित होने अथवा "सहबदल कमलचक्र में विद्यमान ओंकार या अनहद नाद से अष्टदल कमल चक्र में बिंदु के रूप में सृष्टि के प्रकट होने का उल्लेख देखते हैं। आचार्य रजनीश ने "ओंकार" के बारे में निम्नलिखित प्रकार लिखा है - "यह ध्वनि का मूल है, प्राण का एकाग्रण है और सृष्टि का प्रारंभ हैं।"

               प्रारंभ में जैसेकि हमें चीनी चित्रात्मक लिपि और मिश्र के "हीरोग्लिफीक्स" से पता चलता है, अक्षर को लिपि के रूप में परिवर्तित करने की शक्ति नहीं थी, केवल आकृति और स्वरूपों को परिवर्तित करते थे। "आटी जसपर्सन ने इस संबंध में लिखा है कि प्रारंभ कालीन संस्कृतियों में अक्षर स्वाभाविक होते हुए भी विशिष्ट माना जाता था और कुछ अक्षरों का उपयोग निषिद्ध भी माना जाता था। इसी क्रम में हम एक विकसित स्थिति में संस्कृत छंद शास्त्र के दग्धाक्षर क्रम को देखते हैं, जहां कुछ अक्षरों का प्रारंभ में प्रयोग निषिद्ध था। "अ", "क", "व" आदि कुछ अक्षर अत्यंत विशिष्ट महत्व के माने जाते थे, इसी कारण कदाचित संस्कृत के प्रसिद्ध कवि कालीदास ने अपने दो महाकाव्यों को निम्नलिखित प्रकार इन अक्षरों से शुरू किया अस्युत्तरात्यां विशिवेततात्मा हिमालव नाम नगाधि राजा" (कुमारसंभव),"बागधार्वितव संपक्ती बाग्थ प्रतिपत्तये" ( रुषुवंशम्)

              चीनी विश्वकोश के अनुसार तीन अक्षर प्रधान माने गये। "अंग", "चंग" और "लिंग"। इन अक्षरों को वे स्त्री शक्ति, पुरुष शक्ति और सम्मिलित के पर्याय के रूप में मानते थे। उत्तर अमेरिका के प्राचीन निवासियों में जिन्हें "रेड इण्डियन" कहा जाता है, शिशु के पैदा होते ही आनेवाली प्रथम ध्वनि तथा प्रकृति में उस समय उत्पन्न ध्वनि के आधार पर उसका व्यक्तित्व (नेता के रूप में अथवा गुलाम के रूप में) निर्धारित किया जाता था। तमिल परंपरा में निष्क्रमण के समय अर्थात् चौथे महीने नव जात शिशु को सूर्य दिखाते हुए उसके मुंह से "अ" और "क" के उच्चारण को प्रेरित करते हैं। तमिल के लोक गीतों में एक गीत में दादी कहती हैं “आणि अडितार पोल आवेन्दूर सन्ति अल" अर्थात् स्पष्ट रूप में "आ" कहकर रोओ, मेरे बच्चे।

             विभिन्न भाषाओं में लिपिबद्ध अक्षरों की संख्या कम है। हां, उच्चारण में एक ही अक्षर के अनेक विवर्तन देखे जाते हैं। कुछ भाषाएं ऐसी हैं जिनकी लिपियां उच्चारण क्रम को अनुपालित करती है जैसे देवनागरी। कुछ माषाएं ऐसी हैं जहां उच्चारण क्रम का लिपिक्रम में अनुपालन संभव नहीं हैं। इसी आधार पर अक्षर अनुवाद की इकाई बनती है। अनुवाद शब्द से ही विदित है कि इसमें किसी बात का पुनर्कथन अभिप्रेत है। अक्षरशुद्धि, भाषा में एक अनिवार्य आवश्यकता के रूप में मानी जाती है। उदाहरण के लिए हम अल्पप्राण और महाप्राण अथवा श, ष, स के उच्चारण को ले लें - इनमें होनेवाली त्रुटियों के कारण शब्द रूप कितने बदलते हैं - यह हम जानते ही हैं और अर्थ विस्तार में कितनी बाधाएं प्रस्तुत होती हैं यह भी अविदित नहीं है।

           अब हम अंग्रेजी के "ए" अक्षर को लें। इस अक्षर का आठ प्रकार से उच्चारण स्थितियां संभव हैं। जैसे 'Apple', 'Ant', 'Antique', 'Arboreal', 'Aunt', 'Autocratic', 'Ae', 'Aniseed' इन सबमें आप उच्चारण करके देखेंगे तो थोडा-थोडा भेद दृष्टिगत होगा। जब कभी इन्हें लिप्यंतरित करना पडता है तो हम लक्ष्यभाषा में अनेक कठिनाइयां देखते हैं। जैसे Apple' 'एपिल' या 'ऐपिल' लिखना पडेगा। स्वाहिली (आफ्रिकी भाषा) जैसी भाषाओं में स्वरों की संख्या करीब बाइस हैं अर्थात् 'आ'के ही पांच रूप हैं। इसी प्रकार की स्थिति चीनी और जापानी भाषाओं में भी हैं, जहां "च' के उच्चारण भेद से अर्थ भेद सिद्ध होता है। उदाहरण- चंग -परिवार चअंग-पहले, चेअंग-उपदेश, चओ-नौ, चई-चाउदैखना।




Best Sellers in Home Improvement

            कुछ भाषाओं में शब्दों के साथ स्वरातता की प्रवृत्ति देखी जाती है, जैसे भारतीय भाषाओं में 'तेलुगु' या यूरोपीय भाषाओं में 'इटली' की भाषा। कदाचित इसी कारण यह उक्ति प्रचलित है "तेलुगु पूर्वी देशों की इटालियन है।जब एक भाषा का शब्द भाषान्तर द्वारा तृतीय भाषा में पहुंचता है, तो वहां भी अक्षर भेद के कारण शब्द रूप में परिवर्तन देख सकते हैं। एक ज्वलंत उदाहरण भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति के नाम का है। उनका नाम तमिल भाषा में "आर. वेंकटरामन" है जो अंग्रेजी के जरिए हिन्दी में पहुंचकर "वेंकटरमन" बन गया है। यहाँ उल्लेखनीय है कि तमिल में वेंकटरामन और वेंकटरमण दोनों अलग-अलग नामों के रूपों में प्रचलित है और ऐसी स्थितियां अन्य अनेक तमिल नामवाचक संज्ञाओं के बारे में भी हैं।

              भारत में गत दो शताब्दियों से संपर्क भाषा के रूप में अंग्रेजी भी प्रचलित रही और शासकों की भाषा होने के कारण अंग्रेजी अक्षरों में हमारी नागरूपात्मक संज्ञाओं को प्रकट करने की जरूरत बराबर रही। हम स्थानों के नाम ले लें - गुजरात में एक प्रसिद्ध स्थान "वडोदरा" है, इसका नाम अंग्रेजी में "बरोडा" बन गया । बंगाल में "हाबड़ा" एक प्रसिद्ध स्थान है जिसका नाम अंग्रेजी में "हौरा" बन गया । 'मुलगुत्तण्णी' (काली मिर्च का पानी) तमिल नाडु का प्रसिद्घ पेथ है जो अंग्रेजी में "मुलगुटानी" (Mulligatawney) बन गया, इसी तरह "बड़ा साहब" - यह अभिव्यक्ति अंग्रेजी में "Burra Sahib बन गया है। यदि हम गुप्त, मिश्र आदि विशुद्ध भारतीय नामों को अंग्रेजी अक्षरों में लिखते हैं तो अंत में एक "ए" जोड देते हैं। और जब ये नाम तमिल जैसी भारतीय भाषाओं में आ जाती हैं तो "हस्वांत के बदले में दीर्घान्त के रूप में प्रयुक्त होने लगते हैं जैसे गुप्ता, मिश्रा। हम अंग्रेजी के प्रसिद्ध नाटककार शेक्सपियर के नाम को ले सकते हैं, जो रोमन अक्षरावली में योरप की विभिन्न भाषाओं में बहत्तर प्रकार से परिवर्तित अक्षर क्रम में, कुछ अक्षरों के लोप, कुछ अक्षर जोडकर प्रचलित हुआ है। अंग्रेजी के अनेक शब्द जब अमेरिका में पहुंचे तो उनका अक्षर रूप भी बदल गया जैसे Harbour - Harbor, Coconut - Coconut, Programme Program आदि। वेबस्टर अन्तर्राष्ट्रीय कोश के अनुसार दो हजार आठ सौ शब्द ऐसे हैं जिनका अमेरिकी अक्षर रूप अंग्रेजी अर्थात् इंगलैण्ड के अक्षर रूप से भिन्न है।

             उच्चारण में विशिष्ट शैलिगत स्वरूप को लक्षित करने के लिए भी कभी-कभी अक्षर परिवर्तन किया जाता है। जैसे "Eye testing testing ', Cool - kool' आदि। रोमन लिपि में विभिन्न भाषाओं में अक्षरों का उच्चारण बदला हुआ रहता है। एक भाषा के शब्द दूसरी भाषा में आते हैं तो उच्चारण की शैली भी साथ आती है। उदाहरण के लिए हम अंग्रेजी के शब्द 'restaurant और Rendezvous'। इनका फ्रांसीसी उचारण "रेस्तरां और "राण्डेऊ" ही प्रचलित है। "CH" का उच्चारण कभी हिन्दी के "ची" और कभी "शी के समान होता है। इस तरह जब अनुवाद के क्रम में इन अक्षरों को लेना पड़ता है तो उनके मूल उच्चारण क्रम को भी समझना पड़ता है। स्पष्ट है कि अक्षर अपने मूल इकाई में अनुवाद के दृष्टिकोण से नितांत महत्वपूर्ण है।



           (2. अनुवाद' प्रक्रिया में शब्द का स्थान क्या है?)

               शब्दः यास्क ने अपने निरुक्त में "अथातो शब्द व्याख्यास्यामः' कहते हुए शब्द की व्याख्या में बताते हैं कि वे अपने प्रयोग में, अभिग्रहण में, तथा विस्तरण में बराबर बदलते रहते हैं। शब्द की परिभाषा करते हुए हम उसके मूल रूप ध्वनि को भी लेते हैं और अर्थपुष्ट अक्षरयोग को भी लेते हैं। उदाहरण के लिए अंग्रेजी का अक्षर "।" अक्षर भी है और शब्द भी। "A" अक्षर तथा शब्द दोनों का स्वरूप है। जब हम अंग्रेजी के "There is a boy" का अनुवाद करते हैं तो "there" शब्द के लिए कोई अनुवाद नहीं है। और "ए" शब्द के लिए "एक" शब्द अनुवाद में लेते हैं। What a fine morning का अनुवाद करते समय हम लिखते हैं "कितना सुहाना सवेरा"| अब सोचिए, यहाँ "ए" बिलकुल लुप्त हो जाता है। अनुवाद में इसका कोई विशिष्ट अस्तित्व प्रयोग की दृष्टि से स्थापित नहीं हो सकता। यहां एक और उदाहरण भी दिया जा सकता है। एक अध्यापिका ने एक लड़की से पूछा, "Make a sentence with " लड़की ने कहना शुरू किया, "। is......अध्यापिका ने तुरन्त टोका और लडकी से कहा "याद रखो, के बाद हमेशा "Am" होना चाहिए। अध्यापिका के टोकने से लड़की असंतुष्ट हो गयी उसने कहा "ठीक है" और अपना वाक्य इस तरह बताया "I am the ninth letter of the alphabet" यहां स्पष्ट है कि लडकी पहले जिस क्रम से 1 और 's' को साथ साथ रखा वह सही उपयोग था। शब्द एक से अधिक ध्वनियों का समूह जब होते हैं, तब उनकी वर्तनी के कारण भी शब्द रूप में गडबडी पैदा हो जाती है। यहां हम तमिल से एक उदाहरण ले सकते हैं - तमिल में दो "" अक्षर हैं। अर्थात 0, 0 । एक का उचारण जरा जोर से किया जाता है। दो शब्द है तमिल के "अरम" (argab), "अरम" ( poto), एक का अर्थ "आरा" है और दूसरे का अर्थ "धर्म" है। प्रयोग में जब वर्तनी की अशुद्धि आ जाती है तो काफी गढबही अनुवाद में पैदा हो जाएगी।

             अंग्रेजी में 'saw' शब्द है जिसके संज्ञात्मक और क्रियात्मक दो अर्थ हैं। अब आप एक वाक्य देखिए। ! rawasaw. such a saw you never saw', 'saw' का संज्ञात्मक अर्थ आरा है। क्रियात्मक अर्थ में 'see' का भूतकालीन रूप है। अब हम अंग्रेजी में एक पंक्ति देखेंगे - He sawed the timber into pieces.

              कई अंग्रेजी पाठकों को यह विचित्र लगेगा और कुछ लोग तो sawed' को भूतकाल का भूतकाल भी समझेंगे। क्योंकि भूतकाल शब्द बनाने के लिए अक्सर ed' प्रत्यय जोडा जाता है। एक कहावत है - एक देश की बोली दूसरे देश की गाली - शब्द जिनका अर्थ पक्ष एक भाषा में एक प्रकार का रहता है दूसरी भाषा में वे न केवल बदल जाते हैं, बल्कि कभी-कभी उलट भी जाते हैं। कुछ शब्दों का अर्थ विस्तृत हो जाता है, जैसे निपुण, प्रवीण आदि शब्द। पुण्य करनेवालों को निपुण कहते थे और अच्छी तरह वीणा वादन करनेवालों को प्रवीण कहते थे। इनका अर्थ विस्तार हो गया अनुवाद करते समय शब्द के अर्थ विस्तार या परिवर्तित अर्थ में उसके प्रयोग पर खास ध्यान देना पड़ता है। तमिल में "नल्ल" जो शब्द है उसका अर्थ तमिल में "अच्छा" और तेलुगू में "काला" है। भाषाएं एक मूल की या एक कुल की होकर अनेकमुख होती हैं, इसलिए मूल प्रयोग से भिन्न प्रयोगों का देशांतर या कालांतर में होना कोई आश्चर्य की बात नहीं। अब "उपन्यास" शब्द को ले सकते हैं, जिसका अर्थ हिन्दी और बंगला में "लंबी कथावस्तु" है जबकि तमिल और तेलुगु में इस शब्द का अर्थ "व्याख्यान" है। हम "शिक्षा" शब्द को ले सकते हैं। तेलुगु और तमिल में इसका अर्थ "दण्ड देना" है, जबकि हिन्दी में इसका अर्थ विद्या से संबंधित है। अक्सर इसी कारण तेलुगु पत्रिकाओं में शिक्षा मंत्रालय को गृह मंत्रालय के साथ गडबडी में समझ लेते हैं। एक उदाहरण हैं जब गोविंद वल्लभ पंत हमारे गृह मंत्री थे और हैदराबाद आए थे तो उनका स्वागत करते हुए आंध्र प्रदेश के मुख्य मंत्री "बसमानंद रेड्डी ने उनका संबोधन तेलुगु में "शिक्षा मंत्रालय प्रधान" कहकर किया और हल्का-फुल्का वार्तनिंद का वहां विस्तार हुआ।

              एक ही भाषा में शब्द के अपने स्थान के अनुसार अर्थ परिवर्तित होते हैं और कभी-कभी एक अक्षर के परिवर्तित होने से भी उदाहरण के लिए हम अंग्रेजी के Advise" और 'Advice', 'complement' और 'compliment' को ले सकते हैं। अंग्रेजी में vice ' शब्द का अर्थ "पाप" है। एक vice' वह भी है जो Vice Chancellor', 'Vice Principal' आदि में आते हैं, जहां 'उप' के अर्थ में इस शब्द का प्रयोग हुआ है। भारतीय भाषाओं में कारकों का रूप भिन्न-भिन्न रहता है कभी-कभी बंगला असमिया आदि भाषाओं में मूल शब्द के साथ जुड़ा हुआ कारक शब्द उसी रूप में हिन्दी में या अन्य भाषाओं में प्रयुक्त होता है। प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाड़ी कपिल देव का विज्ञापन प्रयोग पाल्मोलिव दा जवाब नहीं" में तथा अक्सर लारियों के मुखौटे पर लिखित 'जय माता दी' आदि उसी रूप में अपनाये जाते हैं। यह भिन्न-भिन्न लिपियों में भी उसी रूप में लिखे जाते हैं। इस प्रकार गुजराती से बे (दो), त्रण (तीन), छे ( है:) आदि का बोलचाल की हिन्दी में बराबर प्रयोग देखते हैं। मराठी और कन्नड में "आज घर में महाभारत हुआ" का मतलब "भाइयों के बीच में झगडा हुआ"| बाणभट्ट की प्रसिद्ध कृति कादंबरी है। यह एक लंबी कथा है। इस आधार पर लंबी कथा या उपन्यास के लिए कादंबरी शब्द का प्रयोग मराठी और कन्नड में होने लगा है।


 ( 3 .वाक्य संरचना के किन-किन बातों पर अनुवादक को विशेष ध्यान देना पड़ता है?)

              बाक्यः वाक् शब्द से वाक्य शब्द निकला है। अक्षर और शब्द जब अपने-अपने अस्तित्व को मिटाकर बड़े अस्तित्व में सिमट जाते हैं तो उसे वाक्य कहते हैं, जैसे पहाड से उतरनेवाली निर्झरणी समतल में नदिया बनती हैं और सागर की विराटता में संगमित हो जाती है, उसी तरह अर्थप्रेषण के लिए सागर समान वाक्य है। वाक्य में एक से अधिक शब्दों के समूह से निश्चित विषय पर अर्थ संप्रेषित होता है। व्याकरण के आधार पर वाक्य में एक संज्ञा अथवा कर्ता, एक क्रिया और एक और संज्ञा अथवा कर्म अपेक्षित हैं। वाक्य के साथ पूरा अर्थ ध्वनित होता है। उदाहरण के लिए हम "कौन खडा है?" वाक्य को ले सकते हैं। यहां मात्र एक सर्वनाम और दो क्रियापद हैं। इसी का जब विस्तार होता है तो बाहर कौन खडा है?, घर के बाहर कौन खडा है? घर के बाहर धूप में कौन खहा है? इसी तरह अर्थ विस्तार वाक्य में होता जाता है। साधारण अभिधामूलक अर्थों को लक्षणा तथा व्यंजना से गर्भित करने की प्रक्रिया में वाक्य का स्वरूप है। अक्सर हम अपने भीतर रहनेवाले अर्थपक्ष के साथ संतुलित शब्द पक्ष ढुंढ नहीं पाते हैं। इसका कारण यह है कि जब हम लिखते हैं तो हमारे समक्ष "बाडी लैंग्जयेज" (शारीरिक अर्थबोधक प्रक्रिया) नहीं रहती है। प्रसिद्ध विद्वान चौकी अपने "अर्थ के मनोविज्ञान" शीर्षक लेख में कहते हैं कि वाक्य प्रतियमान अर्थों का वाहक नहीं है। निहित अर्थों का वाहक है। उदाहरण के लिए अंग्रेजी में वे 'did । say so' को लेते हैं। इसमें "क्या मैंने ऐसे बताया" - यहाँ प्रश्नात्मक वाक्य बोधित नहीं है, बल्कि "मैंने नहीं बताया" - यह अर्थ बोध होता है। इसी तरह अनेक स्थितियों में वाक्य सीमित शब्द पक्ष को असीम संभावनाओं से निहित करता है।

             भाषा में वाक्य निर्माण के समय शब्द स्थान का प्रायः महत्व होता है। चीनी जैसी भाषाओं में शब्द के स्थान जब बदल जाते हैं तो उनका अर्थ भी बदल जाता है। उदाहरण के लिए हम मंदारिन चीनी भाषा के निम्नलिखित वाक्य को ले सकते हैं ।

             " न्  गो ती नी" का मतलब है "मैं मारता हूँ तुझको"। जब इसका क्रम उलट जाता है और वाक्य "नी ती न्  गो" बनता है तो अर्थ निकलता है "तुम मारते हैं मुझको"। स्वाहिली भाषा में "नी सिहि किरिसित पाहि" का मतलब है "मैं ईसा मसीह को प्यार करता हूँ" यही जब "नी सिहि पाहि किरिसित बनता है, जिसका तात्पर्य है "ईसा मसीह मुझे प्यार करते हैं। अंग्रेजी में भी ऐसे अनेक उदाहरण हमें मिलते हैं, जैसे Rama killed Ravana यहां राम और रावण के स्थान बदल जाने पर अर्थ बदल जाता है। पर संसार में अनेक भाषाएं ऐसी हैं जो संश्लेषात्मक है और जिनमें संबंध तत्व अर्थ तत्व के साथ जुड़ा रहता है, जहां स्थान का बदलना अर्थ परिवर्तन संभवित नहीं करता । उदाहरण के लिए हम संस्कृत के वाक्य ले सकते हैं। "रामेन रावणः हतः" इसमें तीनों शब्द चाहें कहीं भी हो अर्थ नहीं बदलता। इसी तरह तुर्की भाषा में "एवलेर मेइक पुसरी" अर्थात् "नौकर को मालिक बुलाता है। यहाँ भी किसी भी हालत में चाहे शब्दों का स्थान कहीं भी हो, अर्थ अखण्डित और अपरिवर्तित रहता है। तमिल भाषा से भी हम एक उदाहरण ले सकते हैं। "नान अवनै पार्तेन" का अर्थ मैंने उसे देखा। यहां शब्द के ये तीन इकाइयां कहीं भी रह सकती हैं, मगर अर्थ बदलेगा नहीं। 

               अनुवाद में वाक्य का अत्यंत महत्वपूर्ण प्रभाव रहता है। भाषाओं में कर्ता, कर्म और क्रिया का क्रम परिवर्तनाधीन है। एक ही भाषा में कर्तु वाच्य स्वरूप व कर्म वाच्य स्वरूप देखे जाते हैं। अंग्रेजी में कर्ता के बाद क्रिया आती है, जबकि भारतीय भाषाओं में कर्ता के बाद कर्म आता है। उदाहरण I ate an apple. इसको हम हिन्दी में जब लिखते हैं तो "मैंने एक सेब खाया" सेब कर्म या कर्ता के बाद आता है। एक और उदाहरण देखिए I ate an apple which was brought to me by my brother from Kashmir, when he arrived here yesterday by G.T. Express. यहां इसका हिन्दी में अनुवाद करते हुए हम देखेंगे कि किस तरह पदक्रम में व्यतिक्रम हो जाता है और शब्दों का जो स्थान क्रम अंग्रेजी में रहता है, उससे बिलकुल परिवर्तित स्थान क्रम हिन्दी में है। "कल जी.टी. एक्स्प्रेस से यहां कश्मीर से आए मेरे भाई द्वारा लाये गये सेब मैंने खाया"। श्रोत भाषा और लक्ष्य भाषा की प्रकृति की विभिन्नता के कारण अक्सर ऐसे अनुवाद अनैसर्गिक प्रतीत होते हैं। अनुवाद में ऐसी स्थितियां अनिवार्य है। हा, लक्ष्य भाषा की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए हम इन्हें खण्डित में या पदबंधों द्वारा अभिव्यक्त सकते हैं। यहीं पर अनुवादक को परखने की तथा अपने अनुवाद के स्वरूप को बदल लेने की आवश्यकता पड़ती है। अक्सर वाक्य अपने भीतर एक से अधिक अर्थ पक्ष को ले सकते हैं। कर्ता के साथ विशेषण जुड सकता है, क्रिया का स्वरूप बदल सकता है। क्रिया विशेषणों का शाब्दों के साथ गठबंधन हो सकता है तथा वाक्योत्तर स्थितियां भी शब्द रूपों द्वारा प्रकट होती है। उदाहरण के लिए हम निम्नलिखित पंक्ति को ले सकते हैं।

               संध्या काल में आकाश से अवतरित होनेवाले धुंध में अप्रत्यक्ष अनेक स्थितियां तथा प्रत्यक्ष कुछ स्थितियां लक्षित होती हैं, जिनका अवलोकन कभी मादकता और कभी उदासी को प्रसारित करता है । जैसे "सागर में सिमटते नदिया के जल में मिलन की उत्कठा भी हो, मिटने की उदासी भी हो" (महादेवा वर्मा)। यह एक वाक्य है। पर अनेक वाक्य में प्रसारित होने लायक अर्थ पक्ष प्रभावशीलता को लक्षित करने के लिए लाक्षणिक रूप में एक वाक्य में आ गये हैं। जब हम अनुवाद की प्रक्रिया में लगते हैं तो इस वाक्य को खण्डित करके प्रस्तुत करने के लिए सोचते हैं और यह उचित भी है।

            अंग्रेजी और हिन्दी के बीच में इस प्रकार की अनगिनत संभावनाएं हैं। हिन्दी के वाक्य तीन प्रकार की शैलियाँ अपनाते हैं। एक देशी शैली, जिसमें कर्ता, क्रिया, कर्म का क्रम रहता है। जैसे "तोहार जवाब नाहीं" (तुम्हारा जवाब नहीं) दूसरा फारसी शैली, जिसमें शब्द क्रम बदलते हैं जैसे "दिले नादां तुझे हुआ क्या है" और तीसरा संस्कृत की तत्सम शैली जिसमें शब्द स्थान तो बदले हुए रह सकते हैं, पर क्रम सीधा है और अर्थ प्रत्यक्ष हो जाता है। जैसे "चारु चंद्र की चंचल किरनें खेल रही है जल थल में।" अंग्रेजी में जब हम इनका अनुवाद करने लगते हैं तो पहचानते हैं कि अंग्रेजी का जो शब्द क्रम है इसके लिए अनुचित है और हमें तब विशेषणों को प्रतिस्थापित करने या क्रिया पदों के प्रयोग में काव्यात्मिकता लाने आदि से गुजरना पडता है।

             वाक्य अर्थ प्रेषण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। किसी वाक्य में जब एक से अधिक क्रिया रहती हैं तब उसके स्वरूप में कभी-कभी भ्रम उत्पन्न हो जाता है। जैसे अंग्रेजी में कहते हैं 'He ate the food and left the place with a parcel इस वाक्य में अनुवाद करते समय "बह खाना खाकर पोटली के साथ वहां से निकला" - इस तरह करते हैं। इसका दूसरा अनुवाद भी हो सकता हैं, "स्थान पर एक पार्सल छोडकर वह खाना खाकर निकला"। इसी तरह अंग्रेजी में जब हम प्रश्न पूछते हैं 'Have you seen me wearing this dress' इसका दो अनुवाद निकल सकते हैं, "क्या आपने मुझे यह कपड़े पहनते हुए देखा" या "क्या आपने मुझे यह कपडे पहने हुए देखा। उत्तरोल्लिखित अनुवाद ही सही है। वाक्य में रचनात्मक भेदों के कारण संशय की संभावनाएं अक्सर होती हैं। जब कभी कोई क्रिया, पदबन्ध या मुहावरे के रूप में प्रयुक्त होता हैं, तो उससे गलत अर्थ निकल सकता है। उदाहरण के लिए this shop will be opening shortly' में 'opering' और shortly' के दो अर्थ निकल सकते हैं और कोई कोई अनुवादक अनुवाद करते हुए "यह दूकान जल्दी ही खुलेगी" के बदले में "इस दूकान का दरवाजा छोटा है" भी लिख सकते हैं। Outstanding, understanding, notwithstanding जैसे पदों का "बाहर खडा, नीचे खडा, साथ नहीं खडा" जैसे अनुवाद भ्रमात्मक रूप में हो सकते हैं। हां, ये उदाहरण हास्यप्रेरक हैं मगर ऐसे अनुवाद करनेवाले मिल ही जाते हैं, इसलिए वाक्य रचना में ऐसी त्रुटियों की संभावनाओं से बचने की कोशिश करनी चाहिए।

            वाक्य में साधारणतया, क्रियापद, काल, वचन व पुरुष आदि के कारण परिवर्तन हो सकता है। कुछ भाषाओं में पुरुषगत परिवर्तन नहीं होते हैं, कुछ में लिंगगत परिवर्तन नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए हिन्दी में लिंगगत परिवर्तन क्रिया में लक्षित होता है जबकि अंग्रेजी में नहीं। मलयालम जैसी भाषाओं में प्रथम पुरुष, मध्यम पुरुष और अन्य पुरुष तीनों में क्रिया रूप अपरिवर्तित रहता है। स्वाहिली जैसी भाषाओं में क्रिया रूप के पुल्लिंग, स्त्रीलिंग, नपुसक लिंग(उच्च), इस तरह तीन भेद होते हैं। अर्थात् मां शब्द के साथ जिस क्रिया का प्रयोग होता है उसका प्रयोग "बेटी" शब्द के साथ नहीं होता है, यद्यपि दोनों का अर्थ एक ही हैं। उदाहरण के लिए "आमा इसहिस" का मतलब है "मां यहां है", "उतु इसहिल" का मतलब है "बेटी यहा है। तमिल जैसी भाषाओं में बोलचाल में स्त्रीलिंग वाची क्रिया रूप अक्सर नपुंसक लिंग में बदल जाता हैं। "एन संसारम वंदिचु" यहाँ "वंदिचु" शब्द "नपुसक लिंग" क्रिया पद को सूचित करता है, लेकिन यहाँ यह स्त्रीलिंग सूचक है।

            अनुवाद एक जटिल प्रक्रिया है। इसमें रूपांतरण, भावान्तरण के साथ-साथ नवीन भंगिमा के स्थापन की भी आवश्यकता रहती है। इसी कारण हम भाषा के प्रारंभिक रूप अक्षर से लेकर भाषा की प्रारंभिक इकाई के रूप में विकसित शब्द तथा अर्थ की पूर्ण इकाई के रूप में विकसित वाक्य में विभिन्न अव्याख्येय स्थितियों को पैदा होते देखते हैं और जब हम उनके स्वरूप को पहचानते हैं तो उसके भीतर मानव मन की पूरी सांस्कृतिक भावुकता का परिचय हमें मिलता हैं । मानव संस्कृति में মिन्नताएं प्रवृत्तिगत न होकर कालगत ही हैं। जहां सभ्यता का विकास पहले ही हो गया ऐसे समुदाय में हम जो सांस्कृतिक स्वरूप देखते हैं, वह बाद में विकसित समुदाय में देख नहीं सकते। मिश्र, चीन और भारत जैसे देशों में नैरंतरिक विकास का क्रम रहा है, जबकि कई देशों में जैसे यूनान या प्राचीन क्रीटी या सुमेरिया या फिनिशिया आदि में इसे देख नहीं सकते। जब संस्कृतियां समाप्ति की ओर उन्मुख होती हैं तब लोग स्थानांतरगमन करते हैं। इसी तरह जातियों के बीच में विराट पैमाने में संघर्षात्मक मिलन होता है। जैसे चीन में चीनी और मंगोलियायी के बीच में, भारत में आर्य और द्राविड के बीच में या योरप में हुण और सैक्सन के बीच में या फिर आधुनिक अमेरिका में योरपीय निवासियों और प्राचीन अमेरिका निवासियों के बीच में। इस तरह के संघर्षों में जब एक जाति पूरी तरह अन्य जाति की संस्कृति में विलीन हो जाती है तब उसके भाषारूप भी काफी प्रभावित हो जाते हैं। संस्कृतियों की सोपान यात्रा में ऐसे सम्मिलन और सम्मिश्रण अनिवार्य है जिनके कारण हम अनुवाद करते समय अभिव्यक्तियों के तारतम्य को ठीक तरह से बिठा नहीं पाते हैं। जहां तक हिन्दी और अंग्रेजी का संबंध है. दोनों भाषाएं बड़ी उदारता से बाहर से शब्दों को लेनेवाली भाषाएँ हैं और इस संश्लेषक प्रवृत्ति के कारण उसके शब्द रूपों में काफी परिवर्तन हो गया है अंग्रेजी के कई शब्द है जो अपने अपरिवर्तित रूप में प्रतिकूल अर्थों को भी बोधित करते हैं । उदाहरण के लिए हम with' शब्द को ले सकते हैं। जिसका अर्थ "कैसाथ, के विरुद्ध। दोनों हैं। जैसे 'Ram fought with Ravana' में "विरुद्ध" अर्थ बोधित होता है। इसी तरह एक दूसरा शब्द है 'Impregnable' जिसका अर्थ 'प्रवेश्य' और 'अप्रवेश्य' दोनों हैं। The fortress is impregnable', The cow is in an Impregnable age', हिन्दी में भी जब प्रत्यय और उपसर्ग आदि को जोड़कर शब्द बनाये जाते हैं तो उनमें हम विपरीतार्थों को समानार्थी के साथ जुड़े देखते हैं। उदाहरण के लिए बेफिजूल शब्द को हम ले सकते हैं। इस शब्द में व्याकरणार्थ एक है जबकि प्रयोग कुछ अलग प्रकार का है। अरबी-फारसी के उपसर्गों को संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ या संस्कृत के उपसर्गों को अरबी-फारसी के शब्दों के साथ प्रयोग करने की प्रवृत्ति है। उदाहरण के लिए हम "सशर्त" को ले सकते हैं । इसी तरह प्रसिद्ध उपन्यासकार कृष्णचंदर ने अपने "बावन पत्ते" शीर्षक उपन्यास में निम्नलिखित प्रकार प्रयोग किया है। "सकुन्बा वह पहुंच गया" । कुटुंब से निकला शब्द 'कुन्बा' है, जिसके साथ 'स' उपसर्ग ठीक नहीं बैठता, फिर भी प्रयोग होते होते ऐसे शब्द प्रचलित हो जाते हैं और व्याकरण भी उन्हें स्वीकार कर लेता है।

                संस्कृत भाषा की आत्मा से हिन्दी काफी प्रभावित है, तथा संस्कृत में प्रचलित लक्षण ग्रंथों की परंपराए हिन्दी में भी प्रचलित हैं। अंग्रेजी भाषा भी अपने शब्दों में काफी लाक्षणिकता ला चुकी है। उदाहरण के लिए जानवरों के नाम हम देख सकते हैं हाथी के स्त्री लिंग वाचक रूप में 'cow' का प्रयोग होता है। जैसे elephant की cow' गाय नहीं है। बल्कि मादा है। 'guinea pig' को सुअर नहीं कह सकते। जहां तक अंग्रेजी भाषा का संबंध है, प्रसिद्ध विदुषी 'डोराती थाम्सन' ने उसे Glorious and Imperial Mongrel' (अर्थात् शानदार राजसी गली का कुत्ता) कहा है। यानि जिसपर अनेक श्रोतों से ज्यादा प्रभाव लक्षित हो सकता है। जब हम अंग्रेजी शब्दों को देखते हैं उनमें अर्थ पक्षों के इतना विस्तार लक्षित है कि अनुवाद करते समय हम आशंका में पड़ जाते हैं।

               हिन्दी में जब राजभाषा के शब्द सरकारी प्रयोजनों के लिए विकसित हुए तो उनमें हम निश्चित एकार्थ बोधकता देखते हैं, जबकि उनकी अंग्रेजी पर्याय में नहीं। उदाहरण के लिए 'promotion' शब्द को ले सकते हैं, जिसका हिन्दी में पर्याय पदोत्रति है। अंग्रेजी शब्द अनेकार्थ बोधक, जबकि उनके लिए हिन्दी में विकसित शब्द एकार्थ बोधक है। अन्य उदाहरण है transfer, increment' - इनके हिन्दी में पर्याय है 'स्थानांतरण' और 'वेतन वृद्धिः । transfer' शब्द अनेक पक्षों में भिन्न-भिन्न अर्थों में उद्घाटित हो सकता है, जबकि स्थानांतरण का एक ही निर्धारित और नियमित प्रयोग है।

              इसी प्रसंग में शब्द शक्ति के बारे में भी जानना है संस्कृत में 'शब्द' की तीन शक्तियां बतायी गयी हैं। ये हैं - अभिधा, लक्षणा और व्यंजना। इसे हम एक वाक्य द्वारा स्पष्टीकृत कर सकते हैं वाक्य है - 'वह हरिश्चंद्र है। अभिधा में इसका अर्थ होगा 'वह हरिश्चंद्र नामक व्यक्ति है। लक्षणा में इसका अर्थ होगा . 'वह हमेशा सत्य बोलनेवाला व्यक्ति है। और व्यंजना में इसका अर्थ होगा - 'वह हमेशा झूठ बोलनेवाला है। अनुवाद करते समय इन शब्द शक्तियों के परिग्रहण में असमर्थता से भी गलत अनुवाद निकल सकते हैं।


                                           *********************





No comments:

Post a Comment

thaks for visiting my website

एकांकी

Correspondence Course Examination Result - 2024

  Correspondence Course  Examination Result - 2024 Click 👇 here  RESULTS