Saturday, January 23, 2021

दसवाँ अध्याय / योजक ( समुच्चयबोधक ) (Conjunctions)


                                                    दसवाँ अध्याय

                                योजक ( समुच्चयबोधक ) (Conjunctions)



         दो शब्दों, वाक्यांशों या वाक्यों को मिलाने वाले अव्यय योजक या समुच्च-बोधक कहलाते हैं। जैसे-राम और लक्ष्मण दोनों वन को चले। अधीनता स्वीकार करना या रणांगण में प्राणों की आहुति दे देना ये दो ही मार्ग हैं। तुम हरिद्वार चले हो फिर मैं वहाँ जाकर क्या करूंगा। उपरिलिखित वाक्यों में और', 'या', 'फिर' क्रमशः दो शब्दों, दो वाक्यांशों तथा दो वाक्यों को मिलाते हैं, अत: ये योजक अव्यय हैं।

        योजक अव्ययों के तीन मुख्य भेद हैं- 

        1. संयोजक 2. विकल्पवोधक 3.भेदबोधक।

        1. संयोजक-अनेक अर्थों का संयोग (मेल, संग्रह या समुच्चय) प्रकट करने वाले अव्यय को संयोजक कहते हैं। इनके द्वारा दो शब्दों या वाक्यांशों का मेल प्रकट होता है। मुख्य संयोजक अव्यय ये हैं-और, तथा, एवं भी जैसे-मैं तथा राम दोनों कल दिल्ली जाएँगे और वहाँ से तुम्हारे लिए एक जोड़ा धोती एवं तुम्हारी भाभी के लिए एक जोड़ा साड़ी लेते आएँगे।

        2. विकल्प बोधक-अनेक अर्थों में विकल्प प्रकट करने वाले अव्यय को विकल्पबोधक कहते हैं। वा, या, चाहे, अथवा किंवा, कि, या-या, चाहे-चाहे, क्या-क्या, न-न, न कि, नहीं तो, आदि विकल्पबोधक अव्यय हैं। जैसे-किसी गाँव या शहर या देश का वर्णन करते समय वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों अथवा जनता के रहन-सहन किंवा वहाँ की विशेषताओं का वर्णन करना आवश्यक है नहीं तो वह वर्णन चाहे कितनी ही सुललित भाषा में ही, अधूरा ही कहा जायेगा। अतएव या तो वह वर्णन तुम स्वयं लिखो या अपने भाई से सहायता लो, और एक ऐसा लेख लिखो जिनमें स्याम देश के क्या प्राकृतिक दृश्य और क्या वहाँ की सभ्यता-सब का पूरा वर्णन हो। तुम यह काम पाँच या दस दिन में कर सकोगे कि मैं और किसी को दूं? ऐसा न हो कि न तुम करो न मैं पीछे किसी दूसरे के द्वारा ही करवा सकू। करना हो तो अभी से स्याम देश- विषयक पुस्तकें देखना शुरू करो नहीं तो पीछे तुम जल्दी में ठीक न लिख सकोगे।

        3. भेदबोधक-एक बात का दूसरी बात से भेद बतलाने वाले अव्यय को भेदबोधक कहते हैं। ये कई तरह के होते हैं।

            (क) विरोधदर्शक- ये अव्यय दो वाक्यों में से पहले का निषेध या परिमित्त सूचित करते हैं। पर; परन्तु, किन्तु, मगर, वरन, बल्कि इस श्रेणी के हैं। राममोहन दरिद्र है पर है नेक। मैं वहाँ जाने को तैयार था परन्तु तुम्हारे समय पर पहुँचने के कारण मुझे भी अपना विचार छोड़ना पड़ा। मैं केवल सपेरा नहीं हूँ किन्तु भाषा का कवि भी हूँ। वे तो मान जायेंगे मगर तुम भी मानो तब न। वह केवल नेक ही नहीं है, वरन उसका आचरण भी जनतामात्र के लिए आदर्श है। वह केवल दिल लगाकर ही काम नहीं करता बल्कि काम जानता भी हैं।

            (ख) परिणाम-दर्शक, कारणवाचक और उद्देश्यमूलक - इसलिए सो, अत:, क्योंकि, जोकि, इसलिए, कि, ताकि, आदि इस श्रेणी के अव्यय हैं। वर्षा हुई है अतः (इसलिए) आज कीचड़ होगा। वे मेरा कहना न मानेंगे, अतएव (इसलिए) तुम्हीं उनके पास जाओ क्योंकि वह कल वहाँ समय पर नहीं गया इसलिए मुख्याध्यापक ने उसे निकाल दिया उसने स्वयं ही त्याग-पत्र दे दिया ताकि झगड़ा न बढ़े। हम तुम्हें ही इस काम पर भेजना चाहते हैं ताकि काम पूरी तरह हो जाये। तुम दूसरों को समय पर आने के लिए कह रहे थे सो पहले तुम्हें स्वयं ही समय पर पहुंचना चाहिए।

             (ग) संकेतबोधक-यदि-तो, जो-तो, यद्यपि, तथापि, कहे-परन्तु, आदि एक साथ आने वाले अव्यय इस श्रेणी के अव्यय कहे जाते हैं । यदि वह आ गया तो काम बन जायेगा। जो तुम इलाहाबाद जाना चाहते हो तो तैयार हो जाओ । यद्यपि वह बहुत सी सिफारिश लेकर आया था तथापि उसका काम बनता दिखाई नहीं देता।

            (घ) स्वरूपवाचक- इन अव्ययों द्वारा पहली बात का और अधिक स्पष्टीकरण होता है। अर्थात्, याने, मानो, यहाँ तक कि, इस श्रेणी के अव्यय हैं।

                  शिवाजी की विजय बिना किसी कष्ट के होती है अर्थात् विजय प्राप्ति के लिए उन्हें कष्ट नहीं करना पड़ता। तुम मेरे कहने पर विश्वास नहीं करते याने तुम मुझे भी झूठा समझते हो। आहा, वह कितनी सुन्दर थी मानो स्वर्ग से उतरी हुई परी हो। उसमें से कोई भी समय पर नहीं पहुँचा यहाँ तक कि स्वयं मंत्री महोदय भी 10 बजे तक न आये। 

                  अनेक वैयाकरण समुच्चयबोधक अव्यय का वर्गीकरण और ही प्रकार से  करते हैं। वे उसके दो मुख्य भेद मानते हैं-1. समानाधिकरण और 2. व्याधिकरण।

             जो समुच्चय-बोधक अव्यय ऐसे वाक्यों या शब्दों को जोड़ते हैं जो समान पद के हों अर्थात् एक ही प्रकार के हों वे समानाधिकरण समुच्चय-बोधक कहलाते हैं। जैसे-(एक ही प्रकार के शब्द) हरिण और कछुए में मित्रता हो गई। बहन तथा भाई का स्नेह जगत् की अद्भुत वस्तु है। वह धीरे-धीरे परन्तु एक ही चाल में चला। (एक ही प्रकार के वाक्य) राम आयेगा या श्याम ही आयेगा।

             जो समुच्चय-बोधक अव्यय किसी आश्रित वाक्य को मुख्य वाक्य से जोड़ते हैं उन्हें समानाधिकरण समुच्चय-बोधक कहते हैं। जैसे-मैं आज न जाऊँगा क्योंकि मेरी माँ बीमार हैं।

             समानाधिकरण समुच्चयबोधक तथा व्यधिकरण समुच्चयबोधक के चार-चार उपभेद किये जाते हैं। 

              समानाधिकरण समुच्चय-बोधक के उपभेद 

            1. संयोजक ( और, तथा भी एवं, आदि); 

            2. विभाजक (या, वा, अथवा, चाहे, आदि); 

            3. विरोधदर्शक (पर, परन्तु, किन्तु, मगर आदि);

            4. परिणाम दर्शक (इसलिए, अत:, आदि)।

               व्याधिकरण-समुच्चय-बोधक के उपभेद-

           1.स्वरूप वाचक ( अर्थात् याने, मानो आदि); 

           2. कारण-वाचक ( क्योंकि, जोकि, इसलिए आदि), 

           3. उद्देश्यवाचक (कि, जो, ताकि, आदि); 

           4. संकेत वाचक (यदि-तो, जो-तो, यद्यपि-तथापि, आदि।)



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