Saturday, January 23, 2021

ग्यारहवाँ अध्याय द्योतक (विस्मयादि-बोधक) (Interjection)


                                                ग्यारहवाँ अध्याय

                          द्योतक (विस्मयादि-बोधक) (Interjection)



            जिन शब्दों से वक्ता के विस्मय, लज्जा, ग्लानि आदि मनोभाव प्रकट होते हैं उन्हें द्योतक या विस्मयादिबोधक अव्यय कहते हैं। जैसे-वाह! खूब खेला! छी! वह भी कोई मनुष्य है जो अपनी बहन की रक्षा नहीं कर सकता है! वह क्या कहते हैं! हाय! मेरा बोलता हुआ सुग्गा कहाँ उड़ गया। इन वाक्यों में वाह, छी; हैं, हाय आदि वक्ता के मनोभावों को प्रकट करते हैं, अत: ये विस्मयादि-बोधक अव्यय हैं।

             भिन्न-भिन्न मनोविकारों को सूचित करने के लिए भिन्न-भिन्न अव्यय प्रयोग में लाये जाते हैं।                जैसे - 

         हर्षबोधक-अहा! वाह वाह! धन्य धन्य! शाबास! आदि।

        शोकबोधक-आह ! आह! ऊह ! हा हा! बाप रे! हे राम! हा ईश्वर! त्राहि - त्राहि! आदि।

        आश्चर्य-कहो! ऐं! ओहो! क्या? आदि।

        स्वीकृतिबोधक-ठीक! अच्छा! हाँ! जी हाँ! आदि।

        तिरस्कारबोधक-छी! हट! अरे! दूर! धिक् ! चुप! आदि। 

       संबोधनबोधक-अरे! अरे रे! अरी रे! अजी! ओ! हे! आदि।

        कई एक सज्ञाएँ, क्रियाएँ, विशेषण और क्रिया-विशेषण भी विस्मयादिबोधक हो जाते हैं। 

        जैसे—भगवान्, अच्छा, लो, हट, चुप, क्यों। कभी-कभी वाक्यांश या वाक्य भी द्योतक हो जाते हैं

         क्यों न हो! बहुत अच्छा। सर्वनाश हो गया ।

        जब विस्मयादिबोधक अव्यय वाक्य में संज्ञा के समान प्रयुक्त होते हैं तब इनकी गणना        विस्मयादिबोधक में नहीं होती: क्योंकि तब ये किसी मनोभाव को प्रकट नहीं कराते, 

        जैसे-हाय हाय क्यों मचा रखी है? सब लोग त्राहि-त्राहि पुकार उठे।

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