हिन्दी निबंध
TOURISM
1. मीनाक्षी देवी मन्दिर
मीनाक्षी मन्दिर तमिलनाडु राज्य के मदुरै शहर के बीच में बसा है। मन्दिर की लम्बाई 847 फीट और चौड़ाई 792 फीट है। मन्दिर की चारों ओर गोपुर हैं। मन्दिर में कुल 9 गोपुर हैं। बाहर के चार गोपुर ही अधिक सुन्दर और ऊँचे हैं। दक्षिणी गोपुर हो सबसे ऊँचा है जो 152 फीट है। उत्तरी गोपुर के द्वार से हम मन्दिर के अन्दर जाते हैं। पूर्वी गोपुर का द्वार हमेशा बन्द रहता है। दक्षिणी, उत्तरी, पूर्वी और पश्चिमी गीपुरों पर पौराणिक कथाएं प्रकट करनेवाली अनेक प्रतिमाएँ हैं।
मन्दिर के अन्दर पाँच संगीत स्तम्भ देख सकते हैं । प्रत्येक स्तम्भ में 22 छोटे स्तम्भ हैं जो एक ही पत्थर से बने हुए हैं। इन स्तम्भों से मधुर ध्वनि आती है। अर्द्ध मण्डप से मीनाक्षी देवी के दर्शन क्र सकते हैं। मन्दिर के गर्भगृह में सुन्दरेश्वर लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हुए हैं। इस मन्दिर में विशालकाय गणेश, शान्त दक्षिणामूर्ति, रजत-सभा दायाँ पैर ऊपर कर नाचनेवाले नटराज की सुन्दर प्रतिमाएं हैं। मन्दिर के भीतर स्वर्ण कमल पुष्करिणी है उसकी चारों और की दीवारों पर भगवान शिव को 64 लोलाओं के चित्र मिलते हैं।
2. रामेश्वरम
हिन्दुओं की तीर्थयात्रा में काशी और रामेश्वरम का महत्व सर्वाधिक है। रामेश्वरम एक द्वीप है। रावण-वध के बाद श्री रामचन्द्र और सीताजी अपने दोष मिटाने यहाँ एक शिवलिग की प्रतिमा करना चाहते थे। कैलाश से शिवलिंग के लाने में हनुमानजी को देरी हुई। अत: शुभ मुहूर्त में सीताजी के द्वारा बालू से निर्मित लिंग की प्रतिष्ठा की गयी। हनुमानजी के द्वारा लाये गये शिवलिंग की भी प्रतिष्ठा उसके बाद की गयी। आज भी पहले हनुमानजी के द्वारा लाये गये शिवलिंग और उसके बाद सीता के द्वारा निर्मित लिंग की पूजा की जाती है। मन्दिर के ईश्वर के नाम हैं रामलिंग, रामनाथ और रामेश्वर । देवी का नाम पर्वत वर्द्धनी है। मन्दिर में एक विशालकाय नन्दी है जिसकी लम्बाई 23- फौट चौडाई 12 फीट और ऊँचाई 17.5 फीट हैं।
रामेश्वर मन्दिर की लम्बाई 1000 फीट है और चौड़ाई 657 फीट है। इसमें तीन प्रदक्षिणा पथ है। उनकी चौड़ाई 20 से 30 फीट है और ऊंचाई 30 फौट है। इसकी लम्बाई 4000 फीट है। ऐसे प्रदक्षिणा पथ संसार में और कहीं भी नहीं है। इस मन्दिर में सेतु माधव की मूर्ति की प्रतिष्ठा कर शैवों और वैष्णवों में एकता लाने का प्रयत्न किया गया है। मन्दिर में अनेक पुण्य-तीर्थ हैं। उनमें यात्री स्नान करते हैं।
3. महाबलीपुरम
तमिलनाडु में चेन्नई के पास स्थित महाबलीपुरम में पल्लव राजाओं की मूर्तिकला के उत्कृष्ट नमूने हैं। इनके निर्माण में पल्लव राजा नरसिहवर्मन का योगदान अधिक रहा। उस राजा का दूसरा नाम मामल्लन था। इसलिए यह मामल्लपुरम भी कहलाता या। महाबलीपुरम के तीन भाग हैं मन्दिर, मण्डप और चट्टान-मूर्तियाँ।
यहाँ दो मन्दिर हैं। गांव के मध्य में विष्णु का मन्दिर है जिसका निर्माण विजय नगर के एक राजा ने किया था। समुद्र तट का मन्दिर राजसिंह नामक पल्लव सम्राट से किया गया था। इस मन्दिर में सिंह को प्रतिमाएँ देखने योग्य हैं इस मन्दिर के गभगृहों में सोमास्कन्द मूर्ति, शिवलिंग और योग-निद्रा में तल्लीन महाविष्णु की प्रतिमाएँ हैं।
पहाड़ की चट्टानों को खोदकर मण्डपों का निर्माण हुआ है। कुल दस मण्डप हैं। इन्हें गुफा-मन्दिर कहते हैं। एक स्थान में दीवार पर शेषनाग पर योग-निद्रा में डूबे महाविष्णु और महिषासुरमर्दिनी वास्तविक लगते हैं। वराह मण्डप में वराह अवतार की कथा मूर्तियों में वर्णित है। गर्भगृह में लक्ष्मी और दुर्गा को मुर्तियां हैं पशु मण्डप को दीवारों पर श्रीकृष्ण की कथा वर्णित है। यहाँ पाँच मन्दिर रथ के रूप में खोदे गये हैं। इन्हें पंच पाण्डव-रथ कहते हैं। ये हैं-धर्मराज रथ, भीम रथ, अर्जुन रथ, सहदेव रथ और द्रौपदी रथ। ये मन्दिर एक ही विशालकाय चट्टान काटकर बनवाये गये हैं।
यहाँ एक विशाल चट्टान है जिसकी लम्बाई 80 फीट और ऊँचाई 30 फौट है। इस चट्टान पर लगभग 250 मूर्तियाँ अंकित हैं। उनमें एक पैर से तपस्या करनेवाले भगीरथ, भूतगण, धनुषधारी शिकारी, सिंह, हिरन, हंस, छिपकली, कछुआ, देवलोक के स्त्री-पुरुष, आँखें मूंदकर तप करनेवाली बिल्ली आदि की सजीव मूर्तियाँ हैं।
4. बृहदीश्वर मन्दिर
तमिलनाडु में तंजाऊर में राजराज चोलन प्रथम ने बृहदीश्वर मन्दिर का निर्माण किया था। उन्होंने गर्भगृह के गोपुर को अन्य गोपुरों से ऊँचा बनाया यह गोपुर 216 फीट ऊँचा है। पूरे भारतवर्ष में यही सबसे ऊँचा गोपुर है। इस गोपुर के ऊपर एक ही चट्टान से बना गुम्बद है जिसका वजन 80 टन है।
ईश्वर के सामने नन्दी की बड़ी प्रतिमा है जो एक ही पत्थर से बनी है और उसकी लम्बाई 20 फीट, चौड़ाई 8.5 फीट और ऊँचाई 12 फीट है । मन्दिर के गर्भगृह में भगवान् बृहदीश्वर लिंग के रूप में दर्शन देते हैं। यह लिंग-मूर्ति एक ही पत्थर से निर्मित है। जिसकी ऊँचाई 13 फीट और घेरा 54 फीट है। इस विशाल और बृहद् शिवलिंग के कारण बृहदीश्वर नाम पड़ा है। इस मन्दिर के गर्भगृह की दीवारों पर क्षीरसागर-मन्थन, कण्णप्प नामनार, सुन्दर मूर्ति नामनार का कैलाश-प्रस्थान, भैरव, चिदम्बरम के नटराज का आनन्द-ताण्डव, त्रिपुर दहन आदि उल्लेखनीय चित्र अंकित हैं। साथ ही बृहदीश्वर मन्दिर के कुम्भाभिषेक, सम्राट राजराज चोलन अपने परिवार के साथ चिदम्बरम के नटराज की पूजा करना आदि सुन्दर चित्रों में तत्कालीन लोगों के वस्त्र और आभूषण के बारीक ब्यौरे भी मिलते हैं।
मन्दिर के अन्दर सुब्रह्मण्य मन्दिर, बृहत्रायकी देवी मन्दिर, नटराज मन्दिर, महागणपति मन्दिर, श्री वराही मन्दिर और करुवा देवर मन्दिर भी हैं।
5. कन्याकुमारी या कुमारी अन्तरीप
कन्याकुमारी भारत का दक्षिणी छोर है। यहाँ विवेकानन्द मण्डप है। बहाँ पहुँचकर हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी और अरब महासागर का संगम देख सकते हैं। यहाँ सूर्योदय और सूर्यास्त का दृश्य मनमोहक होता है। चैत मास की पूर्णिमा के दिन सुर्यास्त और चन्द्रोदय आकाश में एक साथ देख सकते हैं।
कन्याकुमारी देवी के मन्दिर के अन्दर जाने के लिए दो द्वार हैं जो उत्तर और पूरब की दिशाओं में हैं। पूरब का द्वार हमेशा बन्द रहता है क्योंकि उस द्वार से कन्याकुमारी देवी की नथनी से प्रकट होनेवाले किरण को देखकर दीपक समझकर मछुआरों के नाव पहाड़ों से टकरा गये थे। कन्याकुमारी देवी ने बाणासुर का वध किया था। वहाँ होनेवाले त्योहार में महादानापुरम के नाम से उसका अभिनय हर वर्ष भाद्रपद में होता है। जिस स्थान पर गाँधीजी का अस्थि कलश रखा गया था, वहाँ आज गांधी मण्डप बना हुआ है। गाँधीजी के जन्मदिन 2 अक्टूबर को उस स्थान पर सुर्य-किरण सीधा पड़ता है।
6. ताजमहल
ताजमहल शाहंशाह शाहजहाँ के द्वारा अपनी बेगम मुमताज महल की याद में मुमताज महल की कब्र के ऊपर बनाया गया मकबरा है। यह काम 22 सालों में सन् 1653 में पूरा हुआ। संगमरमर पर लिखी गयी कविता ताजमहल है। महल के अन्दर और बारीक नक्काशी हुई है। कीमती पत्थरों से उसकी सजावट की गयी थी। मकबरे का निचला भाग वर्गाकार है और उसका ऊपरी भाग 32.4 मीटर है। उसके चारों कोनों में न्यू बोला है और उसके मध्य गोलाकार गुम्बद है। शाहजहाँ और मुमताज की कब्र जमीन के नीचे है। मुख्य द्वार पर कुरान की आयतों की खुशनवीसी हुई है कि नीचे से ऊपर तक हर अक्षर समान आकार का दिखाई देता है। ताजमहल के सामने सुन्दर बगीचे, फव्वारे और सरोवर हैं। पूर्णिमा की रात को ताजमहल का दृश्य अतिआकर्षक होता है।
7. कोणार्क मन्दिर
उड़ीसा में स्थित कोणार्क मन्दिर का निर्माण राजा नरसिंह देव ने तेरहवीं शताब्दी में किया था। वास्तुशिल्प को दृष्टि से अद्भुत ढंग से बना सूर्य-मनदिर यह है। पूरी संरचना में वास्तुकलात्मक एकता है जिसके अंश के रूप में श्रीमन्दिर, जगमोहनमन्दिर, नलमन्दिर और भोगमन्दिर हैं। पूरा मन्दिर सूर्य के रथ के समान बनाया गया। उसमें सात घोड़े और बारह चक्र हैं। हर चक्र की ऊँचाई 3,6 मीटर है जिस पर कलात्मक शिल्प हैं।
आज भग्नावशेष के रूप में एक छोटा अंश ही प्राप्त है। एक प्रवेश कक्ष है जो 39 मोटर ऊँचा है। विशाल मन्दिर का ऊपरी हिस्सा जो पिरामिड की तरह है, 67.5 मीटर ऊँचा है। भग्न मन्दिर काम-भाव से भरे शिल्पों से भरा है। एक बड़ा नृत्य-प्रांगण है जिसकी लम्बाई 259.5 मीटर और चौड़ाई 162 मीटर है उसके तीन द्वार तीन दिशाओं में खुलते हैं। उड़ीसा की कला का अद्भुत उदाहरण है कोणार्क मन्दिर, जिसके ऊपर रहस्य का परदा है। मन्दिर के अन्दर कुछ नहीं है और बाहर अधिक अलंकृत है।
8. अजन्ता और एलोरा
अजन्ता महाराष्ट्र में औरंगाबाद के निकट बना गुफा-मन्दिर है। ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में ईस्वी सातवीं शताब्दी तक निर्मित बौद्ध गुफा-मन्दिर कुल 25 हैं और हिन्दू गुफा-मन्दिर 5 हैं। उनमें चैत्य नं० 19 विशेष रूप से उल्लेखनीय है। सब चैत्यों में बुद्ध के रूप मिलते हैं। गुफा-मन्दिरों को दीवारों और छतों पर बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं के चित्रण के साथ उनके चमत्कार के भी चित्रण चित्रों से किये गये हैं।
एलोरा गुफाएँ अजन्ता से 48 किलोमीटर दूरी पर हैं। इनमें 12 बौद्ध-विहार हैं। 24 खम्भों से बने महावदा विहार में दोनों तरफ 23 कमरे हैं कुछ विहार दुर्मंजिले और तिमंजिले भी हैं। विश्वकर्मा चैत्य अधिक प्रसिद्ध है। एलोरा में हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मों के गुफा-मन्दिर हैं। कुल 34 गुफा-मन्दिर हैं। उनमें कैलाश का मन्दिर एक पूरे पहाड़ को काटकर बनाया गया है।
9. कश्मीर
कश्मीर चारों और पहाड़ों और घाटियों से घिरा एक किले के समान है जो भारत और पाकिस्तान की सीमाओं पर है। कश्मीर में अनेक झीलें हैं। उनमें ऊलर और डल झोल उल्लेखनीय हैं। इल झोल पर लोग नाव घरों में रहते हैं । श्रीनगर से 10 किमी० दूरी पर मुगल बादशाहों ने कई बगीचे चनवाये हैं जिनमें फव्वारे हैं और असंख्य रंग बिरंगे फूल हैं। गुलमर्ग और पहलगांव अनेक यात्राओं के आरम्भिक स्थान हैं। गुलमर्ग से बर्फ से ढके पूर्वी हिमालय के शिखरों के दृश्य देख सकते हैं।
10. जयपुर
सन् 1927 को राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने जयपुर का निर्माण गुलाबी रंग के बालू और पत्थरों से किया था। नगर की चारों ओर दीवारें हैं जिनमें सात प्रवेश स्थान हैं। नगर में पक्की सड़कें हैं। पूरा नगर सात समकोणीय खण्डों में विभाजित है। 'सिटि- पैलेस' के अन्दर कई वैयक्तिक महल, बगीचे और दालान हैं। दरवाजों पर सुन्दर नक्काशी हुई है। इसमें एक अजायबघर है जिसमें पुराने ताड़-पत्र, शस्त्र, कवच, पोशाक, दरियाँ और बौने चित्र हैं। सवाई जयसिंह द्वितीय ने ही 1726 को जन्तर- मन्तर नामक वेधशाला का निर्माण किया था। पांच मंजिलों का हवामहल एक अद्वितीय महल है।
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