तीसरा अध्याय
वाक्य-रचना
2. अन्वय मेल
वाक्य के पदों का एक दूसरे से लिंग, वचन, काल, आदि के अनुसार जो सम्बन्ध रहता है उसे अन्वय या मेल कहते हैं। वाक्य में कत्ता या कर्म के साथ क्रिया का: संज्ञा के साथ सर्वनाम का, सम्बन्ध के साथ सम्बन्ध-कारक का और विशेष्य के साथ विशेषण का मेल रहता है। मेल-सम्बन्धी अनेक नियम प्रसंगवश संज्ञा क्रिया आदि के उपकरणों में कहे जा चुके हैं, अब कुछ और नियम यहाँ लिखे जाते हैं।
(के) क्रिया का कर्त्ता और कर्म के साथ
(क) कर्ता जब विभक्ति-रहित होता है तब क्रिया के लिंग, वचन, पुरुष, उसी के अनुसार होते हैं जैसे-मैं रोटी खाता हूँ। हम रोटी खाते हैं। वह रोटी खाता है। सीता रोटी खाती है।
परन्तु आदर के अर्थ में एकवचन कर्ता के साथ भी बहुवचन क्रिया जाती है। जैसे-महात्माजी आप पधारेंगे।
(ख) यदि दो या दो से अधिक विभक्ति-रहित कर्ता 'या' आदि किसी विभाजक समुच्चयबोधक अव्यय से जुड़े हों तो क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष वही होंगे जो अन्तिम कर्ता के होंगे गोपाल की पाँच दरियाँ या एक कंबल बिकेगा। गोपाल का एक कंबल या पाँच दरियाँ बिकेंगी।
(ग) यदि वाक्य में एक ही लिंग, वचन तथा पुरुष के कई विभक्ति-रहित कर्ता और' अथवा अन्य किसी संयोजक समुच्चय बोधक अव्यय से जुड़े हुए हों तो क्रिया उसी लिंग के बहुवचन में होगी। मोहन और सोहन पढ़ते हैं सीता और सावित्री खेल रही हैं।
परन्तु एकवचन की दो या दो से अधिक अप्राणिवाचक संज्ञाओं के साथ क्रिया बहुधा एक वचन में आती है। जैसे-मेरी धोती और कमीज नहर में बह गई। (घ) यदि भिन्न लिगों के विभक्ति-रहित एकवचन कर्त्ता ' और' अथवा अन्य किसी संयोजक समुच्चयबोधक अव्यय से जुड़े हों तो क्रिया प्राय: पुल्लिंग और बहुवचन में होती है। जैसे-राम और सीता अपना पाठ पढ़ रहे हैं। इस राज्य में बाघ और बकरी एक घाट पानी पीते हैं।
(ङ) यदि भिन्न-भिन्न लिगों के विभक्ति-रहित कर्ता बहुवचन में हों तो क्रिया होगी तो बहुवचन में पर उसका लिंग, अन्तिम कर्त्ता के अनुसार होगा। जैसे-कुछ लड़कियाँ और लड़के मैदान में खेल रहे हैं। कुछ लड़के और लड़कियाँ मैदान में खेल रही हैं।
(च) यदि भिन्न-भिन्न लिगों के विभक्ति-रहित कर्त्ता भिन्न वचनों में हों तो क्रिया बहुवचन में होगी और उसका लिंग अन्तिम कर्ता के अनुसार होगा। जैसे-एक पुरुष दो स्त्रियाँ और कुछ लड़के अभी इधर आये थे। एक पुरुष, कुछ लड़के और दो स्त्रियाँ अभी इधर आई थीं। ऐसी जगह प्रायः पुल्लिंग और बहुवचन कर्ता अन्त में रहता है।
यदि पिछला कर्ता एकवचन में हो तो क्रिया एकवचन और बहुवचन दोनों में आ सकती है। जैसे-पाँच लड़के, दो स्त्रियाँ और एक पुरुष इधर आया था। (आये थे)।
(छ) यदि एक ही वाक्य में भिन्न-भिन्न पुरुषों के विभक्ति-रहित कर्ता हों तो क्रिया ऊँचे पुरुष के अनुसार होगी। उत्तम पुरुष को तीसरे स्थान पर रखेंगे जैसे-हम और तुम पढ़ोगे या तुम और हम पढ़ेंगे। हम और वे खेलेंगे। तुम और वे खेलेंगे। हम तुम और वे खेलेंगे।
(ज) यदि कर्ता विभक्ति-सहित हो और कर्म विभक्ति-रहित, हो तो क्रिया कर्म के अनुसार होगी और ऊपर के सब नियम कार्य के अनुसार लागू होंगे, जैसे-मोहन ने किताब पढ़ी, स्त्रियों ने मेला देखा था, लड़कों ने कंकड़ फेंके होंगे।
(झ) जिस वाक्य में कर्ता विभक्ति सहित हो और कर्म एक से अधिक हो, वहाँ जिस कर्म के साथ विभक्ति-चिह्न नहीं होगा, क्रिया उसी के अनुसार होगी। जैसे-विश्वामित्र ने राम को कथा सुनाई। विश्वामित्र ने राम को पाठ पढ़ाया।
(ञ) यदि कर्ता और कर्म दोनों विभक्ति-सहित हों तो क्रिया का मेल किसी से नहीं होता, वह सदा एकवचन पुल्लिग और प्रथम पुरुष में रहती है। जैसे-राम ने रावण को मारा। राम ने ताड़का को मारा।
(ट) जब सकर्मक क्रिया का कर्म लुप्त हो तो सविभक्तिक कत्ता की क्रिया एकवचन पुल्लिंग तथा प्रथम पुरुष में आती है। जैसे-मैंने देखा था ।
(ठ) जब क्रियार्थक संज्ञा कर्ता-करण में आती है तब भी क्रिया पुल्लिग अन्य पुरुष और एकवचन में आती है। जैसे-सबेरे का टहलना अच्छा होता है। यहाँ लड़कियों को बेल-बूटे काढ़ना सिखाया जाता है ।
(ड) जिसके लिंग में सन्देह हो ऐसे कर्ता और कर्म के साथ क्रिया पुल्लिंग में आती है, जैसे-कौन आया था? वहाँ कुछ देखा था?
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(ख) संज्ञा और सर्वनाम के मेल
(क) सर्वनाम के लिंग और वचन वही होते हैं जो उस संज्ञा के, जिसके स्थान पर प्रयुक्त हुआ है। परन्तु उसकी उक्ति के उद्धरण में उत्तम पुरुष का प्रयोग होता है। जैसे-सीता के पिता उसे वहाँ पहुँचा कर चले गये, वे कह गये हैं कि मैं अभी आऊँगा। सीता की सहेली कहती है कि वह (सीता) अभी आवेगी। सीता की सहेली कहती है कि मैं (सीता की सहेली) अभी जाऊँगी।
(ख) एक के अधिक संज्ञाओं के स्थान में यदि एक सर्वनाम प्रयुक्त हो तो उसके लिंग और वचन वे ही होंगे जो उन संज्ञाओं के समूह के समझे जाते हैं। जैसे-रघु और देव घर पर नहीं हैं, न मालूम कब लौटेंगे।
(ग) यदि कोई स्त्री अपने परिवार के पुरुषों और स्त्रियों दोनों की प्रतिनिधि होकर बोले तो सर्वनाम पुल्लिग में होगा। जैसे-शकुन्तला कहने लगी-आप लोग धनी ही सही, पर हम आपके पास भीख माँगने नहीं आये जो ऐसी बात सुना रहे हैं।
(घ) एक ही संज्ञा के बदले 'तू' और 'तुम', 'मैं' और 'हम', 'आप' और 'तुम' आदि का, या भिन्न-भिन्न पुरुषों के सर्वनामों का प्रयोग न करना चाहिए। पूर्व प्रसंग में संज्ञा के लिए जिस सर्वनाम का प्रयोग किया हो उसी का प्रयोग आगे भी करना चाहिए।" आप का पत्र मिला, पर तुमने यह नहीं लिखा", " आप इस समय औपन्यासिक सम्राट कहलाते हैं, इनका पहला मौलिक उपन्यास है-सेवासदन।" इन वाक्यों में इस नियम का पालन नहीं किया गया, अतः ये अशुद्ध हैं।
(ग) सम्बन्ध और सम्बन्धी का मेल
(क) सम्बन्ध कारक के विभक्ति-चिह्न के लिंग और वचन होते हैं जो सम्बन्धी शब्द के होते हैं; जैसे-सेठजी का घोड़ा, सेठजी की बहली, सेठजी के लड़के, सेठजी की कन्याएँ।
(ख) उसके सम्बन्ध शब्द पुल्लिग हों और उसके आगे कोई विभक्ति हो तो उसके एक वचन में होने पर भी सम्बन्ध कारक में 'का' और 'रा' की जगह 'के" और 'रे' चिह्न लगते हैं। जैसे-मोहन के धन का उपयोग करना अनुचित है। तुम्हारे दान का रुपया सुरक्षित है।
(ग) जब अनेक सम्बन्धी होते हैं तब सम्बन्ध कारक का चिह्न पहले सम्बन्ध के अनुसार होता है। जैसे-उसका धन और स्त्री सभी नष्ट हो गये
(घ) विशेष्य और विशेषण का मेल
(क) विशेषण के लिंग, वचन और कारक विशेष्य के अनुसार होते हैं। लिंग, वचन आदि के कारण विशेषणों में कहाँ रूपान्तर होता है और कहाँ नहीं यह विशेषणों के अध्याय में (पृ० 89-91 पर) बताया जा चुका है।
(ख) विभक्ति-सहित स्त्रीलिंग कर्मकारक का विधेय विशेषण प्रायः पुल्लिग में होता है। जैसे-दीवार को किसने पीला रंगा है?
(ग) एक ही विशेषण के कई विशेष्य हों तो विशेषण के लिग और वचन उसी विशेष्य के अनुसार होते हैं जो समीप हों जैसे-नये पलँग और दरियाँ नयी बत्तियाँ और लैंप ।
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