Wednesday, February 3, 2021

तीसरा अध्याय / वाक्य-रचना / 1. क्रम

 

                         तीसरा अध्याय

                           वाक्य-रचना

       वाक्य-रचना करते समय वाक्य में उद्देश्य, विधेय तथा उनके विस्तारों की स्थापना विशेष क्रम से की जाती है। मनुष्य अपने भावों को तभी ठीक-ठीक प्रकट कर सकता है जब उसके वाक्यों में शब्दों का क्रम तथा उनका पारस्परिक अन्वय या मेल ठीक हो, और उसने शब्दों और शब्द-समूहों का उपयुक्त प्रयोग किया हो। यह तभी हो सकता है जब उसे शब्दों के क्रम, अन्वय या मेल तथा प्रयोग के नियमों का उपयुक्त ज्ञान हो।

                               1. क्रम

         वाक्य में शब्द अपने अर्थ और सम्बन्ध के अनुसार यथास्थान रखे जाने पर विवक्षित अर्थ को ठीक-ठीक बताते हैं। इस प्रकार वाक्य में शब्दों के यथास्थान रखने को क्रम कहते हैं।

    क्रम के कुछ नियम आगे दिये जाते हैं

      (क) साधारणतः वाक्य में पहले कर्ता, फिर कर्म या पूरक और अन्त में क्रिया रखी जाती है। जैसे-मेरा भाई खाना खाता है। वह दूत है। जहाँ दो कर्म हों वहाँ गौण कर्म पहले और प्रधान कर्म पीछे रखा जाता है । जैसे-उसने मोहन को वह बात सुझा दी।

     (ख) करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण ये चार कारक प्राय: कर्ता और कर्म के बीच आते हैं। इनमें भी पहले अधिकरण, फिर अपादान, तत्पश्चात् सम्प्रदान और अन्त में करण आता है। जैसे-कोचवान खाली समय में बाग से घोड़े के लिए मशीन से घास काटता है।

       यदि वाक्य में एक से अधिक अधिकरण हों, तो पहले कालवाची अधिकरण रखा जाता है। जैसे-वह दिन भर घर (घर में) रहता है। खाली समय में बाग में टहल आया करो।

        (ग) सम्बन्धी से पहले सम्बन्धकारक, विशेष्य से पहले विशेषण, क्रिया से पहले क्रियाविशेषण रखा जाता है, जैसे- आपकी कन्या नीली साड़ी पहन कर अभी इधर गई है। परन्तु विधेय विशेषण, उपनाम-सूचक शब्द, उपाधि (degroe) आदि सूचक विशेषण तथा समानाधिकरण शब्द विशेष्य के बाद आते हैं। पदवी (title) सूचक शब्द विशेष्य से पहले ही आते हैं और विभक्ति पीछे आने वाले शब्द के साथ लगती है। जैसे-आपकी कलम सुन्दर है। पंडित जवाहरलाल नेहरू आये हैं। शिवदत्त शास्त्री प्रकाण्ड पंडित हैं पद्मश्री प्रो० भगतराम एम० ए० को सभापति पद के लिए मनोनीत किया गया है।

            (घ) विस्मयादिबोधक तथा सम्बोधन प्राय: वाक्य के आदि में आते हैं। जैसे- छी! छी! यह क्या कहते हो! मोहन! तुम पढ़ते क्यों नहीं? पर कहीं कहीं बल देने के लिए ये पीछे भी आते हैं। जैसे-ठीक कहते हो भीलराज! कहाँ गये हो लाल ! 

            (ङ) प्रश्नवाचक शब्द उसी के पहले रखा जाता है जिसके विषय में मुख्यतया प्रश्न किया जाये। प्रश्नवाचक शब्द के इधर-उधर होने से वाक्य का अर्थ बदल जाता है। जैसे-मोहन क्या पढ़ रहा है [ अर्थात् कौन सी पुस्तक पढ़ रहा है? और क्या मोहन पढ़ रहा है [ पढ़ रहा है या नहीं ] ?इन दोनों वाक्यों का अर्थ ' क्या' के स्थान परिवर्तन के कारण भिन्न भिन्न हो गया है।

            (च) भी, हो, तो, भर, तक, इत्यादि शब्द उन्हीं के पीछे और केवल सिर्फ, आदि शब्द उन्हीं के पहले आते हैं जिनके बारे में वे निश्चय प्रकट करते हैं या जिनकी विशेषता दिखाते हैं। इनके इधर उधर होने से भी वाक्य के अर्थ में अन्तर पड़ जाता है जैसे-मैं भी पढ़ रहा हूँ ।[ कोई और पढ़ रहा है साथ में मैं भी पढ़ रहा हूँ] मैं पढ़ भी रहा हूँ [ साथ-साथ और काम भी कर रहा हूँ। । आज मैं बाजा ही बजाऊँगा [ और कुछ नहीं बजाऊँगा], आज ही मैं बाजा बजाऊँगा [ फिर कभी नहीं]। आज केवल मैं स्कूल गया था [और कोई नहीं), आज मैं केवल स्कूल गया था (और कहीं नहीं), मैं केवल आज स्कूल गया था (और कभी नहीं)।

             (छ) निषेध-वाचक अव्यय 'नहीं' और 'मत' क्रिया से पहले या पौछे आते हैं। जैसे-वह नहीं जायेगा। मैं उसे कहूँगा तो सही, पर वह मानेगा नहीं। उसे मत रुलाना। उसे रुलाना मत। निषेधार्थक 'न' क्रिया से पहले आता है। जैसे-वह न जायेगा। अगर 'न' क्रिया के बाद आये तो उसका अर्थ निषेधार्थक नहीं होता अपितु अवधारणार्थक हो जाता है, जैसे-तुम आज जाओगे न?

             (ज) जब, तब, जहाँ, तहाँ, आदि सम्बन्धवाचक क्रिया विशेषण बहुधा वाक्य के आरम्भ में आते हैं, जैसे-जब मैं गया तब से लिख रहे थे।

               (झ) पूर्वकालिक क्रिया अपने कर्मादि सहित मुख्य क्रिया के पहले आती है, जैसे-मैं डाक देखकर यहाँ से चलूँगा। (अ) योजक अव्यय जिनको जोड़ते हैं उनके बीच में आते हैं। सम्बन्ध बोधक अव्यय जिस संज्ञा या सर्वनाम से सम्बन्ध रखते हैं उसके पीछे आते हैं। तुम और हम मित्र हैं। आय के अनुसार व्यय करो। पर 'बिना', 'सिवा', आदि कुछ सम्बन्धबोधक अव्यय सम्बन्ध से पहले भी आते हैं-तुम्हारे सिवा (सिवा तुम्हारे) और सब ठीक समय पर पहुँच गये ।

           ऊपर क्रम से कुछ एक नियम लिखे गये हैं। इन्हें बिल्कुल निश्चित नियम न समझना चाहिए। अवधारण के लिए अथवा किसी शब्द की प्रधानता जतलाने के लिए इन नियमों का व्यक्तिक्रम हो जाता है। जैसे-पिटना था उसे पिट गया मैं (कर्ता के पहले क्रिया), विद्वानों की संगति में रह कर मूर्ख भी विद्वान हो जाते हैं ।

        (कर्त्ता से पहले पूर्वकालिक) । ऐसे ही-'बुढ़ापा वह पतन है जिसका उत्थान केवल एक बार होता है और वह होता है-दहकती हुई चिता पर।' यहाँ अधिकरण सबके अन्त में आया है। मैं कहता हूँ-शासन के सूत्रधारों से, मैं कहता हूँ, देश के सुन्दर खिलौनों से', इस वाक्य में क्रिया कर्म से पहले रखी गई है।

        कविता में आवश्यकता के अनुसार प्रायः सभी शब्दों का स्थान- परिवर्तन किया जा सकता है,      

    जैसे

              "निश्चय मरेगा कल जयद्रथ, प्राप्त होगी जय मुझे! हे देव!

              मेरे यत्न तुम हो, मत दिखाओ भय मुझे।'


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