दूसरा अध्याय
वाक्य के भेद
अर्थ के अनुसार वाक्य के आठ भेद होते हैं
1. विधानार्थक -जिससे किसी बात का होना प्रमाणित हो। जैसे-कलकत्ता की आबादी नब्बे लाख थी। कुत्ता स्वामिभक्त जानवर है।
2. निषेधवाचक-जो किसी विषय का अभाव सूचित करता है। जैसे-बिना वायु के जीवधारी नहीं रह सकते। आपका वहाँ जाना उचित नहीं।
3. आज्ञार्थक-जिससे आज्ञा, विनती या उपदेश सूचित होता है। जैसे-यह काम करो। माता-पिता की आज्ञा माननी चाहिए।
4. प्रश्नार्थक-जिससे प्रश्न का बोध होता है। जैसे-वह कौन-सी पुस्तक है? क्या आप दिल्ली जायेंगे?
5. विस्मयादिबोधक-जो आश्चर्य विस्मय आदि भाव सूचित करता है। जैसे-छो: छी:। यह कैसा नारकीय जीवन है ! मेरे लाल, कहाँ हो?
6. इच्छाबोधक-जिससे इच्छा या आशीर्वाद सूचित हो। जैसे-ईश्वर तुम्हारा भला करे! दूधो नहाओ पूतों फलो।
7. सन्देहसूचक-जो सन्देह या सम्भावना प्रकट करता है। जैसे-शायद आज वह आये। सिनेमा समाप्त होने वाला होगा। 8. संकेतार्थक-जिससे संकेत अर्थात् शर्त पाई जाती है।
जैसे-आपको आज्ञा हो तो मैं अभी चला जाऊँ। भीम आ जाता तो काम का जाता।
रचना के अनुसार वाक्य के तीन भेद हैं-
1. सरल या साधारण, 2. मिश्रित, 3. संयुक्त।
1. सरल वाक्य- जिस वाक्य में एक उद्देश्य और एक ही विधेय रहता है उसे सरल वाक्य कहते हैं। जैसे-'राम खेलता है' इसमें 'राम' यह उद्देश्य है और 'खेलता है' एक विधेय। 'रमेश की पुस्तक इस कमरे में रखी है वह भी सरल वाक्य है। इसमें भी 'पुस्तक' यह एक उद्देश्य है और 'रखी है' यह एक विधेय। 'रमेश की' और 'इस कमरे में केवल उद्देश्य और विधेय का विस्तार है।
2. मिश्रित वाक्य-जिस वाक्य में एक प्रधान वाक्य हो और उसके आश्रित एक या अधिक खण्ड-वाक्य हो उसे मिश्रित वाक्य कहते हैं। जैसे-मैंने सुना है कि वह वहाँ पहुँच गया है' इसमें 'मैंने सुना है' यह प्रधान वाक्य है और वह वहाँ पहुँच गया है। उसका आश्रित वाक्य है।
आश्रित वाक्य तीन प्रकार के होते हैं-
(क) संज्ञा-वाक्य (ख) विशेषण वाक्य, (ग) क्रिया विशेषण-वाक्य।
(क) संज्ञा वाक्य-जिस आश्रित वाक्य का प्रयोग वाक्य की किसी संज्ञा (वार्ता, कर्म या पूरक आदि) की जगह होता है, उसे संज्ञा-वाक्य कहते हैं। जैसे- मैंने तुम्हारी शिकायत की', 'वह बिल्कुल झूठ है' इसमें 'मैंने तुम्हारी शिकायत की' यह आश्रित वाक्य 'है' क्रिया के कर्ता की जगह आया है, इसलिए इसे संज्ञा-वाक्य कहेंगे। 'कौन नहीं जानता कि दो और दो चार होते हैं' इसमें 'दो और दो चार होते हैं' वह आश्रित वाक्य है और 'जानता' क्रिया का कर्म है इसलिए यह भी संज्ञा-वाक्य है। 'मेरा विचार है कि राम सच्चा है' इस वाक्य में 'राम सच्चा है' वह खण्ड-वाक्य 'है' क्रिया का पूरक है, अत: संज्ञा-वाक्य है।
संज्ञा-वाक्य प्रायः 'कि' योजक से शुरू होता है; पर जब प्रधान वाक्य के पूर्व आये तो 'यह' द्वारा मिलाया जाता है। कहीं-कहीं 'कि' लुप्त भी रहता है; जैसे-उसने कहा था, मैं तुम्हें आज यहाँ मिलूँगा।
(ख) विशेषण वाक्य-जब कोई आश्रित वाक्य प्रधान वाक्य को किसी संज्ञा के विशेषण का काम देता है तब उसे 'विशेषण-वाक्य' कहते हैं। जैसे-' वे लोग, जिन्हें वाप-दादे का कमाया हुआ रुपया मिल जाता है, रुपये की कदर नहीं जानते', 'उस पुस्तक को लेकर मैं क्या करूँगा जिसके आदि-अन्त के पृष्ठ-फटे हों', 'उसी हाथ से जो कल छुरी से कट गया था, मैं आज लिखता हूँ, 'यह पुरस्कार उसी विद्यार्थी को दिया जायेगा जो श्रेणी में प्रथम रहेगा', 'विद्यार्थी उसी अध्यापक से डरते हैं जो खूब मारता है', 'राम का, जिसने हजारों वर्ष पहले रावण को पछाड़ा था, नाम आज भी आदर से लिया जाता है', 'यह उस शहर में रहता है जहाँ के ठग मशहूर हैं', इन सातों वाक्यों में आश्रित वाक्य विशेषण के रूप में आये हैं और क्रमशः लोग (कर्ता), पुस्तक को (कर्म), हाथ से (करण), विद्यार्थी को (सम्प्रदान), अध्यापक से (अपादान), राम का (सम्बन्ध' और शहर में (अधिकरण) की विशेषता सूचित करते हैं।
विशेषण-वाक्य जो, जिसने, जैसे, जिन्हें शब्दों से प्रारम्भ होते हैं।
(ग) क्रिया-विशेषण शावय-जो आश्रित वाक्य किसी क्रिया के विशेषण का काम देता है उसे क्रिया विशेषण-वाक्य कहते हैं: जैसे-'जब तुम जाओगे मैं तुम्हारे साथ चल दूंगा', 'जहाँ पहले सुन्दर नगर थे वहाँ अब एक भी मनुष्य नहीं दीखता', 'बच्चे जैसा दूसरों को करता देखते हैं, करने लगते हैं', "जितना वह खाता है उतना दो मनु । भी नहीं खा सकते, इन वाक्यों में 'अब जहाँ, 'जैसा' और 'जितना' से प्रारम्भ होने वाला वाक्य क्रमश:, काल-वाचक, स्थान-वाचक, रीतिवाचक और परिणामवाचक क्रिया विशेषण हैं।
क्रियाविशेषण वाक्य, जच, किधर, ज्यों, यदि, यद्यपि, आदि शब्द से आरम्भ होते हैं और प्रधान वाक्यों में उनके नित्य-सम्बन्धी शब्द रहते हैं। कभी कभी प्रधान वाचयों में नित्य-सम्बन्धी शब्द नहीं भी रहते। जैसे ऊपर पहले और तीसरे वाक्यों में नहीं हैं।
3. संयुक्त वाक्य-जिनमें दो या दो से अधिक सरल अथवा मिश्रित वाक्य परस्पर निरपेक्ष रूप में (एक दूसरे पर आश्रित न होकर) लिखते हैं वे संयुक्त वाक्य कहलाते हैं। जैसे
मैं नौकरी करूँगा, पर आधा वेतन पहले लँगा। (दो सरल वाक्य) ।
सिंह में सूँघने की शक्ति तीक्ष्ण नहीं होती इसलिए जब कोई शिकार उसकी दृष्टि से बाहर हो जाता है तब वह अपनी जगह को लौट आता है। (एक सरल, एक मिश्रित)
भाप जब जमीन के पास इकट्ठी होती है तब उसे कुहरा कहते हैं और जब वह हवा में कुछ ऊपर इकट्ठी होती है तब उसे मेघ कहते हैं। (दो मिश्रित वाक्य)
संयुक्त वाक्य को बनाने वाले वाक्य एक दूसरे पर आश्रित नहीं होते अतः उन्हें समानाधिकरण वाक्य कहते हैं; और वे समानाधिकरण वाक्य समुच्चय बोधकों के द्वारा जुड़े होते हैं। इन समुच्चय बोधकों के चार भेदों के कारण संयुक्त वाक्य भी चार प्रकार के कहे जाते हैं
(क) संयोजक- इनमें एक वाक्य दूसरे के साथ संयोजक समुच्चय बोधक द्वारा जुड़ा रहता है जैसे-तुम गये और वह आ गया। स्नान से शरीर शुद्हो ता है और सत्य से मन।
(ख) विभाजन-इनमें वाक्यों का एक दूसरे से भेद या विरोध का सम्बन्ध रहता है। जैसे-मैंने कहा तो था पर वह माना नहीं। प्रिय बोलना चाहिए पर असत्य नहीं। मैं जीता हूँ न कि श्याम।
(ग) विकल्प सूचक-इनमें दो बातों में से एक का स्वीकार होना पाया जाता है। जैसे-देशहितैषी बनो या देशद्रोही कहलाओ। मुझे पूरे पैसे दीजिए या ये भी रख लीजिए।
(घ) परिणामबोधक अथवा हेतुसूचक-इनमें एक वाक्य दूसरे का परिणाम होता है। कल यहाँ संगीत-सम्मेलन है अत: तुम जरूर आना। आज में बहुत थका हूँ इसलिए तुम्हें पढ़ा न सकँगा। संयुक्त वाक्यों में कई जगह बीच में योजक नहीं भी आते।
जैसे-'इस युद्ध में मुझे किसी ने बुलाया नहीं, मैं आप ही आया हूँ।'
जब संयुक्तवाक्य के खण्ड-वाक्यों का उद्देश्य या विधेय एक ही होता है तो उन्हें एक ही बार कहा या लिखा जाता है। ऐसे वाक्यों को 'संकुचित संयुक्त वाक्य' कहते हैं जैसे–'धर्म इस लोक को ही नहीं परलोक को भी सुधारता है। बहुधा वाक्य में ऐसे शब्दों को, जो आसानी से समझ में आ सकते हैं, छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार के वाक्यों को संक्षिप्त वाक्य कहते हैं, जैसे-सुना है लाहौर का बूचड़खाना बन्द करवा दिया जायेगा', 'कहते हैं तक्षशिला में भगवान् बुद्ध की मूर्तियाँ थीं' इनमें पहले वाक्य में शुरू में 'हमने' होना चाहिए पर वह लुप्त है। दूसरे वाक्य में 'लोग' होना चाहिए पर वह भी लुप्त है।
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