3.प्रयोग
(ग) उच्चारण का कुछ-कुछ साम्य पर अर्थों की भिन्नता
यहाँ कुछ ऐसे शब्द भी देने आवश्यक हैं जिनका रूप और उच्चारण बहुत कुछ मिलता-सा है, पर अर्थों में बड़ा भेद है। जैसे
अपेक्षा-सीता की अपेक्षा (बनिस्बत) सुशीला अधिक सुन्दर है।
उपेक्षा- उनका उपेक्षा (तिरस्कार) भाव देख कर मैं वहाँ से चला आया।
आकाश-आकाश (आसमान) की ओर देख।
अवकाश-मुझे अवकाश (फुरसत) नहीं है।
ओर-देखो, उस ओर कितनी लाली है।
और-तुम और हम आज हरिद्वार जायेंगे।
उधार-पाँच रुपये उधार दे दो।
उद्धार-भगवान पतितों का उद्धार करने वाले हैं।
कुल-रामचन्द्रजी रघुकुल के दीपक थे।
कूल-गंगा के कुल (किनारे) पर बने बंगले में दिन बिताएँगे।
कोर-वस्त्र का कोर (किनारा) भी नहीं भीगा।
कार-बैठो, दो-तीन कौर (ग्रास) खा लो।
क्रम-पंक्ति में क्रमवार (सिलसिले से) बैठो।
कर्म-अपने कर्म (काम) ही बन्धन में बाँधते हैं।
तरणि-मध्याह-कालीन तरणि (सूर्य) के प्रखर करों से पृथ्वी तप रही थी।
तरणी-प्रभु! जीवन-तरणी (नौका) पार लगा दो।
तरुणी-सुन्दरी तरुणी (स्त्री) के कोमल कण्ठ से निकला गान किसको नहीं
लुभाता?
द्वीप-लंका द्वीप (टापू) में रावण राज्य करता था।
दीप-उसका जीवन-दीप (दिया) बुझ गया।
पढ़ना- मैं किताब पढ़ रहा हूँ।
पड़ना-मुझे घर जाना पड़ रहा है।
पराभव-कौरवों के पराभाव (हार) का मुख्य कारण कृष्ण का पांडवों के पक्ष में होना था।
प्रभाव- तुम पर भी उनका प्रभाव पड़ा दीखता है।
परुष-परुष (कठोर) वचन किसको नहीं बांधते ?
पुरुष-प्रत्येक पुरुष (मनुष्य) को सच बोलना चाहिए।
परिमाण-इस वस्तु का कुल कितना परिमाण (तोल) है?
प्रमाण-इस बात का क्या प्रमाण (सबूत) है?
परिणाम-आज परीक्षा का परिणाम (नतीजा) निकलेगा ।
प्रणाम-मैं आपको प्रणाम (नमस्कार) करता हूँ।
पानी-रूखी-सूखी खाय के ठंडा पानी (जल) पी ।
पाणि-पाणि (हाथ) पसार नाथ यह माँगउँ।
प्रसाद-गुरु के प्रसाद (कृपा) से इतनी विद्या पा सका हूँ।
प्रासाद- राज प्रासाद (महल) की शोभा अवर्णनीय है।
लोटना-आइये, इस गदेले पर लोटिये।
लौटना- आप सब वापिस लौटेंगे।
बिना-नाथ! तुम्हारे बिना कैसे रह सकूँगी?
वीणा-वीणा की झंकार बड़ी मीठी होती है।
व्यसन-तुम्हें सिनेमा का व्यसन (चसका) पड़ गया है।
वसन-सुन्दरी के शुभ्र वसन (कपड़े) उसकी मोहकता को बढ़ा रहे थे।
विजन-विजन (मनुष्य-रहित) देश है, निशा शेष है।
व्यजन-व्यजन (पंखे) की मन्द पवन से उसे होश आ गया।
समान-तुम्हारे समान (बराबर) झूठा मैंने कोई नहीं देखा।
सामान-वह अपना सब सामान लेकर चंपत हुआ।
सम्मान-अतिथि का सम्मान (आदर) करना मनुष्य का धर्म है।
सुत-पवन-सुत (पुत्र) हनुमान अपनी आदर्श भक्ति के कारण अमर हैं।
सूत-कर्ण सूत (सारथी) का पुत्र था। तुम्हारा सूत (तागा) बड़ा कच्चा है।
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